
जब तक तारे जीवित रहते है तब वे दो बलो के मध्य एक रस्साकसी जैसी स्थिति मे रहते है। ये दो बल होते है, तारो की ‘जीवनदायी नाभिकिय संलयन से उत्पन्न उष्मा’ तथा तारों का जन्मदाता ‘गुरुत्वाकर्षण बल’। तारे के द्रव्यमान से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण उसे तारे पदार्थ को केन्द्र की ओर संपिड़ित करने का प्रयास करता है, इस संपिड़न से प्रचण्ड उष्मा उत्पन्न होती है, जिसके फलस्वरूप नाभिकिय संलयन प्रक्रिया प्रारंभ होती है। यह नाभिकिय संलयन प्रक्रिया और ऊर्जा उत्पन्न करती है। इस ऊर्जा से उत्पन्न दबाव की दिशा केन्द्र से बाहर की ओर होती है। इस तरह से तारे के गुरुत्व और संलयन से उत्पन्न ऊर्जा की रस्साकशी मे एक संतुलन उत्पन्न हो जाता है। तारे नाभिकिय संलयन के लिए पहले हायड़ोजन, उसके बाद हिलियम,लीथीयम के क्रम मे लोहे तक के तत्वो का प्रयोग करता है। विभिन्न तत्वों का नाभिकिय संलयन परतो मे होता है, अर्थात सबसे बाहर हायड़ोजन, उसके नीचे हीलीयम और सबसे नीचे लोहा।
लेकिन समस्या उस समय उत्पन्न होती है जब तारे का ईंधन समाप्त हो जाता है। एक सामान्य द्रव्यमान का तारा अपनी बाहरी परतों का झाड़ कर एक ग्रहीय निहारिका(Planetary nebula) बन जाता है। बचा हुआ तारा यदि सूर्य के द्रव्यमान के 1.4 गुणा से कम हो तो वह श्वेत वामन तारा बन जाता है।(1.4 सौर द्रव्यमान की इस सीमा को चंद्रशेखर सीमा कहते है, यह नाम नोबेल पुरस्कार विजेता सुब्रमनयन चंद्रशेखर के सम्मान मे है।)
सूर्य के द्रव्यमान से 1.4 गुणा से ज्यादा भारी तारे अपने द्रव्यमान को नियंत्रित नहीं कर पाते है। इनका केन्द्र अचानक संकुचित(Sudden Collapse) हो जाता है। इस अचानक संकुचन से तारे की बाह्य सतहें एक महाविस्फोट के साथ केन्द्र से दूर चली जाती है, इस विस्फोट को सुपरनोवा कहते है। बचा हुआ तारा न्युट्रान तारा बन जाता है। न्युट्रान तारे का व्यास लगभग 10 मील होता है। यदि बचे हुये तारे के केन्द्र का द्रव्यमान 4 सूर्य के द्रव्यमान से ज्यादा हो तो वह एक श्याम विवर(Black Hole) बन जाता है।
संक्षिप्त मे किसी सुपरनोवा विस्फोट के बाद बचे ताराकेन्द्र के भविष्य की तीन संभावनाएं होती है।

- श्वेत वामन तारा : 1.4 सौर द्रव्यमान से कम भारी “शेष तारा केन्द्र” का गुरुत्व इतना शक्तिशाली नही होता कि वह परमाण्विक और नाभिकिय बलो पर प्रभावी हो सके। वह श्वेत वामन तारे के रूप मे परिवर्तित हो जाता है।
- न्युट्रान तारा :1.4 सौर द्रव्यमान से भारी “शेष तारा केन्द्र”का गुरुत्व कुछ सीमा तक परमाण्विक तथा नाभिकिय बलो पर प्रभावी हो जाता है, जिससे तारा केन्द्र न्यूट्रॉन की एक भारी गेंद बन जाता है, जिसे न्युट्रान तारा कहते है।
- श्याम विवर: 4 सौर द्रव्यमान से ज्यादा भारी “शेष तारा केन्द्र” मे अंततः गुरुत्वाकर्षण की विजय होती है, वह सारे परमाण्विक तथा नाभिकिय बलो को तहस नहस करते हुये उस तारे को एक बिंदु के रूप मे संपिड़ित कर देती है, जो कि एक श्याम विवर होता है।
हमारा सूर्य अपनी मृत्यु के बाद श्याम विवर नही बनेगा, वह एक श्वेत वामन के रूप मे मृत्यु को प्राप्त होगा।
महाकाय महाभारी श्याम विवर(Supermassive Blackhole) के जन्म के बारे मे हम ज्यादा नही जानते है। ये महाभारी श्याम विवर आकाशगंगाओ के केन्द्र मे होते है। एक संभावना यह है कि ये श्याम विवर शुरुवाती ब्रह्माण्ड के महाकाय तारो मे हुये सुपरनोवा विस्फोटो से बने होंगे, जो कालांतर अरबो वर्षो मे अपने आसपास के पदार्थ को निगलते हुये महाकाय बन गये होंगे। एक साधारण तारकीय श्याम विवर भी दूसरे श्याम विवर के साथ विलय करते हुये बड़ा हो सकता है, यह घटना आकाशगंगाओ के टकरावो के फलस्वरूप भी हो सकती है।
श्याम विवर कैसे बड़े होते है?

श्याम विवर का द्रव्यमान अपने आसपास के पदार्थ को निगले जाने से बढ़ता है। उसके घटना क्षितीज मे आने वाला हर पदार्थ उसके गुरुत्वाकर्षण के चपेट मे आ जाता है। जो पिंड श्याम विवर से सुरक्षित दूरी नही रखते है वे निगल लिए जाते है।
अपनी छवी के विपरीत श्याम विवर खगोलीय दूरीयों के पिंडो को नही निगलते है। एक श्याम विवर अपने समीप आये पिंडो को ही निगलते है। श्याम विवर ब्रह्माण्डीय वैक्युम क्लीनर नही है, वे मक्खी मारने के विद्युतयंत्र के जैसे है, जो मक्खी पास जायेगी वही मारी जायेगी। उदाहरण के लिये यदि सूर्य की जगह उसी द्रव्यमान का श्याम विवर रख दिया जाये तो सभी ग्रह उसी प्रकार उतनी ही दूरी पर उतनी ही गति से परिक्रमा करते रहेंगे। कोई भी ग्रह श्याम विवर द्वारा निगला नही जायेगा। सूर्य के द्रव्यमान के श्याम विवर द्वारा निगले जाने के लिये पृथ्वी को उसके 10 मील की दूरी पर जाना होगा। पृथ्वी से सूर्य की दूरी 930 लाख मील है।

ज्ञात श्याम विवरो का भोजन मुख्यतः गैस और धूल होती है जोकि ब्रह्माण्ड के रिक्त स्थान मे फैली हुयी है। श्याम विवर अपने पास के तारो से भी पदार्थ खींच लेते है। कुछ महाकाय श्याम विवर पूरे तारो को भी निगल सकते है। श्याम विवर अन्य श्याम विवरो से टकराकर विलय से भी बड़ सकते है। यह वृद्धी प्रक्रिया श्याम विवर की उपस्थिति दर्शाती है। जब गैस का प्रवाह श्याम विवर की ओर होता है, वह अत्याधिक उष्मा से गर्म होती है, जिससे शक्तिशाली रेडीयो तरंग तथा X किरणो का उत्सर्जन होता है, इस उत्सर्जन से श्याम विवर की उपस्थिती ज्ञात होती है।
खगोलविद श्याम विवरो को कैसे देखते है?

जब हम अंतरिक्ष की ओर अपनी नजरे उठाते है, हम तारो और अन्य पिंडो से आ रहे प्रकाश को देखते है। हजारो वर्षो से भारतीय और अन्य प्राचिन सभ्यताओं के खगोलविज्ञानीयों ने रात्री आकाश का निरिक्षण किया है। उनके द्वारा दिये गये नाम और सिद्धांत आज भी प्रचलित है। लेकिन मानव आंखे अंतरिक्ष के निरिक्षण के लिए ज्यादा सक्षम नही है और आधुनिक खगोल वैज्ञानिक आधुनिक संवेदनशील दूरबीनो का प्रयोग करते है।
आधुनिक दूरबीने दृश्य प्रकाश का ही प्रयोग नही करती है। दृश्य प्रकाश किरणे ’विद्युत चुंबकीय विकिरण(Electromagnetic Radiation)’ का ही भाग है जिसे हमारी आंखे देख सकती है, लेकिन इसके अतिरिक्त भी कई तरह के विकिरण है। इन विकिरणो को उनके तरंगदैधर्य(wavelength) पर वर्गीकृत किया जाता है। यदि तरगदैधर्य दृश्य प्रकाश की तुलना मे छोटी है तब उसे X किरण कहते है। यदि तरंगदैधर्य दृश्य प्रकाश की तुलना मे ज्यादा हो तो उसे रेडीयो तरंग(Radio Wave) कहते है।

हमारे ब्रह्माण्ड मे श्याम विवर दृश्य किसी भी प्रकार के प्रकाश का उत्सर्जन नही करते है। लेकिन खगोलविज्ञानी ने उन्हे खोजा है और बहुत सी जानकारी प्राप्त की है। यह जानकारी श्याम विवर के आसपास के पदार्थ द्वारा उत्सर्जित दृश्य प्रकाश, X किरण और रेडीयो तरंगो के अध्यन से प्राप्त हुयी है। उदाहरण के लिए जब एक सामान्य तारा किसी श्याम विवर की परिक्रमा करता है, तब हम उस तारे की गति उसके द्वारा उत्सर्जित दृश्य प्रकाश से ज्ञात कर सकते है। उसकी तारे की गति और गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से यह पता लगाया जा सकता है कि वह किसी अन्य पिंड की जगह किसी श्याम विवर की परिक्रमा कर रहा है। इस गणना से श्याम विवर के द्रव्यमान की भी गणना की जा सकती है। दूसरी विधी मे, जब गैस किसी श्याम विवर परिक्रमा करती है, वह घर्षण से अत्याधिक गर्म हो कर X किरण और रेडीयो तरंग का उत्सर्जन करती है। इस X किरण और रेडीयो तरंग के श्रोत के निरीक्षण और अध्यन से श्याम विवर का पता लगाया जा सकता है।
ब्रह्माण्ड मे कितने श्याम विवर है ?
ब्रह्माण्ड मे श्याम विवरो की संख्या इतनी ज्यादा है कि उनकी गिनती असंभव है। यह कुछ किसी समुद्री तट पर रेत के कणो की गिनती के जैसा है। सौभाग्य से ब्रह्माण्ड हमारी कल्पना से ज्यादा विशाल है और पृथ्वी को हानी पहुंचाने की सीमा मे कोई भी श्याम विवर नही है।

तारकीय द्रव्यमान वाले श्याम विवर महाकाय तारो के जीवन के अंत मे हुये सुपरनोवा विस्फोट के पश्चात बचे हुये केन्द्रक से बनते है। हमारी आकाशगंगा मे लगभग 100 अरब तारे है। मोटे तौर पर हजार मे से एक तारा श्याम विवर बनने के लायक द्रव्यमान लिए होता है। इसलिए हमारी आकाशगंगा मे कम से कम 10 करोड़ तारकीय द्रव्यमान वाले श्याम विवर होना चाहीये। इनमे से अधिकतर हमे दिखायी नही देते है लेकिन हमने लगभग एक दर्जन को पहचान लिया है। इनमे से हमारे सबसे पास वाला श्याम विवर 1600 प्रकाशवर्ष दूर है। पृथ्वी से दृश्य ब्रह्मांड मे लगभग 100 अरब आकाशगंगायें है। इसमे से हर आकाशगंगा मे 10 करोड़ श्याम विवर है। और लगभग हर सेकंड एक सुपरनोवा विस्फोट होता है जिससे एक श्याम विवर का जन्म होता है।

महाभारी श्याम विवर सूर्य से करोड़ो से लेकर अरबो गुणा भारी होते है और आकाशगंगाओं के केन्द्र मे पाये जाते है। अधिकतर आकाशगंगाये और शायद सभी के पास कम से कम एक ऐसा श्याम विवर होता है। इस तरह से पृथ्वी से दृश्य ब्रह्माण्ड मे 100 अरब महाभारी श्याम विवर होना चाहीये। सबसे पास का महाभारी श्याम विवर हमारी मंदाकिनी आकाशगंगा के केन्द्र मे है जो 28,000 प्रकाशवर्ष दूर है। सबसे ज्यादा दूरी पर के महाभारी श्याम विवर अरबो प्रकाशवर्ष दूर क्वासर आकाशगंगाओं मे हैं।
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नोट : कुछ और तरह के विद्युत चुंबकिय विकिरण भी होते है। ध्यान दें कि जिस विकिरण की जितनी कम तरंगदैधर्य होती है, उस तरंग मे उतनी ज्यादा ऊर्जा होती है।
- X किरणो से भी छोटी तरंगदैधर्य वाले विकिरण को गामा किरण (Gama rays) कहते है। गामा किरणें अत्यधिक ऊर्जा वाली किरणें होती है।
- X किरणों और दृश्य प्रकाश के मध्य वाली तरंगदैधर्य के विकिरण को पराबैंगनी प्रकाश (Ultraviolet)कहा जाता है। पराबैंगनी प्रकाश के निरीक्षण से तारो के मध्य की गैस का अध्ययन किया जाता है।
- दृश्य प्रकाश के दूसरी ओर रेडीयो तरंग और दृश्य प्रकाश के मध्य के विकिरण को अवरक्त(infrared) किरणे कहा जाता है। इन किरणो के अध्ययन से तारो के बनने का अध्ययन किया जाता है।
Sir kya ye possible hai ki koi insan ydi black hole me jaye to vo kahi or worm hole se nikle
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कहानियों में तो संभव है। वास्तविकता में अभी कुछ कहना संभव नहीं है।
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आशीष जि,
नमस्कार,
मै नेपाल से हु और आपका एक पाठक
भी ।
सन २०१५ के मुभी Interstellar के अधिन रहकर एक लेख प्रस्तुत करने कि मद्दद करेंगे ?
समझनेमे बहुत कठिन लगा, आप कि मदद मिल्नेकी उमीद है।
धन्यबाद !
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आप अपने प्रश्न रखे समयानुसार उत्तर देने का प्रयास करेंगे।
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Is gyanvardhan ke liye me jinta aabhar prakat kru… km hi he.
Mere ek prashn he. Aasha he aap uttar denge.
Yadi koi tara humse 400 prakash warsh door he. To uska prakash hum 400 warsh me hi pohoscta hoga.. to kya hum manav ki aankho se, us tare ki 400 sal purani chhavi dekhte he??
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हाँ हम 400 साल पुरानी तस्विर देख रहे होते है
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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श्याम बिवर के आसपास में जो धूल और गैस घुर्णन कर रहा हे, आप के मुताबिक येह क्षेत्र श्याम बिवर कि एकत्व से बाहर और घटना क्षितिजकि सिमा से भितर मे चल रहा एक प्रक्रिया हे / मेरे खियाल में एकत्व से बाहर और घटना क्षितिज से भितर के क्षेत्र श्याम बिबर बन्ने कि प्रक्रिया में हमेसा रहेता हे / प्रकृया कि यीस अवस्था मे प्रकाश और धूल कि कण उत्सर्जन हो सक्ता हे / परन्तु,एकत्व कि भितर जो सही माने मे श्याम बिवर हे, कदापी उस से निकलकर बाहर आ जाना सम्भव हो नही सक्ता ,,,,,,,,,एकत्व बाहर से लेकर घटना क्षितिज तकका घटना देखकर बैज्ञानिक, जो इस निष्कर्ष बना लेते हे कि, श्याम बिवर कणको उत्सर्जन करता हे ,,तोह सायद एह ,,,,गलत भि हो सक्ता हे,,,,,,, मुझे ऐसा लगता हे ……
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एक और जिज्ञासा आप से, मान लुँ कि, श्याम बिवरका गुरुत्वाकर्षण बहुत ज्यादा होता हे / आस पास आने वालाको खाइ लेता हे / परन्तु इस ब्रह्माण्ड मे बहुत सारे तारे हे, छोटा-बडा-मझौला आदि,,,, / अगर कोइ बिशाल तारा नजिक आ जाए, जिसको गुरुत्व बल श्याम बिवर के गुरुत्व से भि ज्यादा हो, तोह यीस अवस्था मे कोहि श्याम बिवर बिशाल तारा का भोजन नही कर सकता ?? एक तारा ने श्याम बिवरको रिसाइक्लिंग करके उर्जा के रुप मे खपत नही कर सकता ?? कृपया बताइए ,,,,,,
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गुरुजी मेरा जिज्ञासा येह है कि, श्याम बिवरका आफ्ना प्रकाश होता हे या नही ?? श्याम बिवरका घटना क्षितिज मे जो प्रकाश बक्र होता हे, ओह प्रकाश श्याम बिवार खुदका हे वा किसी दुसरे तारो ओं का ?? कृपया बताइए ,,,
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यह प्रकाश दूसरे तारो का भी हो सकता है लेकिन अधिकतम प्रकाश उस श्याम विवर के आस बनी धूल और गैस के वलय से उत्पन्न होता है, इस वलय मे पदार्थ इतनी तेजी से घु्रणन करता है कि उषण होकर प्रकाश, X रे उत्सर्जन प्रारम्भ कर देता है.
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ब्लैक होल के बारे में अच्छी जानकारी !
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यह ज्ञानपूर्ण साइट है
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वाह! हम तो समझते थे कि हम ही सबसे कुशल मक्खीमारक हैं। पर यह श्यामविवर सिन्ह तो सबसे तेज निकला जी! जाने कब से चट किये जा रहा है “मक्खिया”!
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आपका हिन्दी में विज्ञान समझाना बहुत भाया मित्र!
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very nice post
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आशीष जी, गूढ बातों को इतने सरल ढंग से आप ही समझा सकते हैं।
ब्लैक होल्स के बारे में इतने विस्तृत ढंग से पहली बार पढने को मिल रहा है। आभार।
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“सूर्य के द्रव्यमान के श्याम विवर द्वारा निगले जाने के लिये पृथ्वी को उसके 10 मील की दूरी पर जाना होगा। पृथ्वी से सूर्य की दूरी 930 लाख मील है।”
क्या साधारण स्थितियों में सूर्य के इतने करीब (१० मील) पहुचं जाने पर पृथ्वी वैसे ही उसके गुरुत्व के कारण सूर्य में नहीं समा जायेगी?
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निशांत जी,
गुरुत्वाकर्षण बल, द्रव्यमान पर निर्भर करता है। दोनो ही स्थितियों मे द्रव्यमान समान है अर्थात समान गुरुत्वाकर्षण बल। इसलिये साधारण स्थितियों मे भी 10 मील की दूरी पर पृथ्वी सूर्य द्वारा नीगल ली जायेगी।
लेकिन दोनो स्थितियों मे सूर्य और श्यामवीवर की त्रिज्या मे एक बहुत बड़ा अंतर है। सूर्य के द्रव्यमान के श्याम वीवर का ’घटना क्षितिज Event Horizon’ बहुत छोटा (कुछ सौ मीटर) का होगा। इस दूरी के पश्चात प्रकाश का भी लौटना असंभव होगा।
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