भौतिकी से जुड़ी कुछ सामान्य भ्रांतियाँ


कुछ नया सीखने मे सबसे बड़ी बाधा रहती है हमारे द्वारा पहले से सीखा हुआ (अ)ज्ञान! जिस भरे हुये पात्र मे कुछ और नही भरा जा सकता, उस तरह से कुछ नया सीखने के लिये कभी कभी पहले से सीखा हुआ भुलाने की आवश्यकता होती है।

भौतिकी से जुड़ी कुछ भ्रांतियाँ हमारे मस्तिष्क मे कुछ ऐसे बैठी हुयी है कि हमे कुछ नया सीखने से पहले उन्हे भूलना पड़ता है। आइये देखते है, ऐसी ही कुछ भ्रांतियाँ।

motion_laws1_240x1801. हर गतिशील वस्तु अंततः रूक जाती है। विरामावस्था सभी पिंडो की प्राकृतिक अवस्था है।

सभी भौतिकी भ्रांतियोँ मे यह सबसे बड़ी और सामान्य भ्रांति है। महान दार्शनिक अरस्तु ने भी अपने गति के नियमो मे भी इसे शामिल किया था। अब हम जानते है कि न्युटन के प्रथम गति के नियम के अनुसार यह गलत है। न्युटन के गति के प्रथम नियम के अनुसार :

प्रत्येक पिंड तब तक अपनी “विरामावस्था” अथवा “सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था” में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है।

इसमे प्रथम अवस्था ’विरामावस्था’ स्पष्ट है और हम इसे हमेशा हर जगह देखते रहते है, लेकिन द्वितिय अवस्था ’गतिशील’ अवस्था थोड़ी जटिल हो जाती है। यह जटिलता हमारे गति को रोकने वाले से संबधित एक महत्वपूर्ण कारक को ना समझने से आती है। यह कारक है घर्षण बल। घर्षण बल ऐसे एक दूसरे के संपर्क मे स्थित दो पिंडो के मध्य उत्पन्न होता है, यह बल गतिशील पिंड की गति की विपरित दिशा मे कार्य करता है जिससे गति कम होती है और अंतत: शून्य हो जाती है। जब हम किसी गेंद को फ़र्श पर लुढ़काते है तब वह गेंद फ़र्श और गेंद के मध्य के घर्षण बल के फलस्वरूप अंतत: विरामावस्था मे आती है।

2. निरंतर गति के लिये निरंतर बल की आवश्यकता होती है।

friction_diagramयह भ्रांति भी प्रथम भ्रांति का सीधा सीधा परिणाम है। यदि आप की गाड़ी को धक्का लगा रहे है तो उसे गतिशील रखने के लिये आपको निरंतर बल लगाना होता है क्योंकि ट्राली के पहियो और धरातल के मध्य का घर्षण बल आपकी गाड़ी की गति को कम कर रहा है। लेकिन आपने अंतरिक्ष मे यदि कोई पत्थर फ़ेंके तो वह पत्थर हमेशा उसी गति से गतिमान रहेगा क्योंकि अंतरिक्ष मे घर्षण उत्पन्न करने के लिये कुछ नही है।

3. किसी भी वस्तु को धकेलना उसके ’भार’ के कारण कठिन होता है।

एक सीमा तक यह भ्रांति शब्दो के गलत प्रयोग के कारण है। इस भ्रांति के कारण को हम रोजाना अपने आसपास देखते भी है। किसी भी वस्तु को धकेलना कठिन होता है लेकिन यह कठिनता उसके भार के कारण नही, उसके “जड़त्व या द्रव्यमान” के कारण होती है। जड़त्व किसी भी वस्तु के द्वारा अपनी अवस्था मे परिवर्तन के लिये उत्पन्न प्रतिरोध को कहा जाता है।
भार किसी भी वस्तु पर गुरुत्वाकर्षण द्वारा उत्पन्न त्वरण को कहा जाता है।

4. ग्रह तारे की परिक्रमा गुरुत्व के कारण करते है।

हम जानते है कि गुरुत्व चारो मूलभूत बलों मे सबसे कमजोर बल है तथा यह आकर्षण बल है। ग्रह सूर्य की परिक्रमा करने के पीछे कारण यह है कि वे एक ऐसे बादल से उत्पन्न हुये है जो घूम रहा था। बादल का केंद्र सूर्य बन गया और बादल के बाह्य हिस्से विभिन्न ग्रह बन गये। ये ग्रह आज भी उसी केंद्र की परिक्रमा कर रहे है। यह कोणिय संवेग के संरक्षण के नियम (Law of conservation of anugular momentum) के अनुसार है।गुरुत्वाकर्षण तो केवल उस कक्षा को बनाये रखने मे मदद कर रहा है। गुरुत्वाकर्षण ग्रहो कि सूर्य की परिक्रमा मे एक संतुलन बनाये हुये है, लेकिन वह ग्रहो को उसकी कक्षा मे धकेल नही रहा है।

How-Objects-Fall5. भारी वस्तु हल्की वस्तु की तुलना मे तेज गति से गीरती है।

इस भ्रांति को काफ़ी पहले ही गैलिलीयो ने गलत सिद्ध कर दिया था, उन्होने पीसा के मीनार से दो भिन्न भिन्न द्रव्यमान की वस्तु को गीरा कर देखा था कि वे समान गति से नीचे गीरी थी।

यह भ्रांति भी घर्षण बल को नही समझने के कारण उत्पन्न होती है। इस उदाहरण मे यह वायु से उत्पन्न घर्षण बल है। सभी पिंड वायु से गुजरते है तथा सभी गिरते हुये पिंड वायु घर्षण का अनुभव करते है। वायु घर्षण बल गति की दिशा मे पिंड की सतह के अनुपात मे होता है। सामान्यतः यह बल नगण्य होता है लेकिन हल्की वस्तुओं जैसे पंख के इसका प्रभाव अधिक होता है। इस प्रयोग को चंद्रमा पर किया गया था, चंद्रमा पर पंख और हतौड़े को गिराकर प्रयोग किया गया था, दोनो समान समय मे सतह पर पहुंचे थे।

6. अंतरिक्ष मे गुरुत्वाकर्षण नही है।

अंतरिक्ष मे भी गुरुत्वाकर्षण है, लेकिन वह पृथ्वी की तुलना मे कमजोर है। अंतरिक्ष मे अंतरिक्षयात्री गुरुत्वाकर्षण महसूस नही करते क्योंकि वे गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से निरंतर गीर(freefall) रहे होते है। सभी चंद्रमा, उपग्रह तथा ग्रह निरंतर स्थिर गति से गीर रहे होते है।

SzyXD7.ग्रह सूर्य की परिक्रमा वृत्ताकार कक्षा मे करते है।

ग्रह सूर्य की परिक्रमा दिर्घवृत्ताकार कक्षा मे करते है, सूर्य दिर्घवृत्त के दो केंद्रो मे से एक केंद्र पर है। यह केप्लर के ग्रहिय गति के तीन नियमो से प्रथम है।
इससे जुड़ी एक और भ्रांति भी यह है कि मौसम इस दिर्घवृत्ताकार कक्षा के कारण बदलते है। लेकिन सच यह है कि उत्तरी गोलार्ध मे गर्मी उस समय होती है जब पृथ्वी सूर्य से दूर होती है और सर्दीयाँ सूर्य से निकटस्थ स्थिति मे। मौसम मे बदलाव पृथ्वी के अक्ष के झुके होने से होता है।[ इस पर विस्तार से किसी अन्य लेख मे]।

8.गुरुत्वाकर्षण दो द्रव्यमान रखने वाले पिंडो के मध्य का आकर्षण बल है।

spacetimeयह एक ऐसा सिद्धांत है जो वैज्ञानिक समुदाय मे काफ़ी समय से स्वीकृत रहा था। यह सिद्धांत महान वैज्ञानिक न्युटन ने दिया था। लेकिन एक और महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन प्रमाणित किया की यह एक गलत मान्यता थी। आइंस्टाइन ने जटिल गणितिय समीकरणो से प्रमाणित किया कि गुरुत्वाकर्षण बल नही है, बल्कि यह काल-अंतराल(space-time) की वक्रता से उत्पन्न एक प्रभाव मात्र है। आइंस्टाइन ने प्रमाणित किया कि द्रव्यमान वाले पिंड अपने आसपास के काल-अंतराल को वक्र कर देते है और हम काल अंतराल मे आयी इस वक्रता को बल के रूप मे देखते है।

न्युटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के परिपेक्ष्य मे गुरुत्वाकर्षण का प्रकाश पर प्रभाव नही होना चाहिये क्योंकि उसका कोई द्रव्यमान नही होता है। लेकिन आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार प्रकाश पर भी गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़्ना चाहिये। इसे सर आर्थर एडींगटन के एक प्रयोग द्वारा प्रमाणित भी कर दिया गया। उन्होने खगोल सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य के पीछे तारो को देखा था, इन तारो से आने वाला प्रकाश सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से वक्र हो रहा था जिससे वे सूर्य के पीछे अपनी वास्तविक स्थान की बजाय सूर्य के बाजू मे दिखायी दे रहे थे। इन तारो की वास्तविक स्थिति तथा निरीक्षित स्थिति के मध्य अंतर सामान्य सापेक्षतावाद के समीकरणो के अनुरूप था।

न्युटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत अब भी स्कूलो के पाठ्यक्रम है क्योंकि वह आसान है। यह सिद्धांत केवल अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्रो मे या अत्याधिक कम दूरी पर गलत होता है जैसे बुध तथा उसकी सूर्य की परिक्रमा की कक्षा। बुध की कक्षा को न्युटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत से नही आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षतावाद सिद्धांत से समझा जा सकता है।

e-clouds9.इलेक्ट्रान की नाभिक की परिक्रमा ग्रहो द्वारा सूर्य की परिक्रमा के जैसे है।

इलेक्ट्रान परमाणु के कवच(खोल) के रूप मे रहते है। उनकी वास्तविक स्थिति ज्ञात नही की जा सकती है यह हाइजेन्बर्ग की अनिश्चितता के सिद्धांत के अनुसार है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी इलेक्ट्रान की वास्तविक स्थिति तथा गति ज्ञात नही की जा सकती है। नील्स बोह्र का माडेल जिसमे इलेक्ट्रान को परमाणु नाभिक के इर्दगिर्द अलग अलग कक्षाओं मे दिखाया जाता है, इस नियम का उल्लंघन करता है और सही नही है।

आशा है कि इस लेख से आपकी कुछ भ्रांतिया दूर हुयी होंगी।

26 विचार “भौतिकी से जुड़ी कुछ सामान्य भ्रांतियाँ&rdquo पर;

  1. न्यूटन के गति के नियम वास्तव में अभिगृहीत हैं जिन्हें गलत या सही कहने का कोई अर्थ नहीं होता। यही अरस्तू के गति के नियम के संबंध में भी है। ज़रा इसे इस तरह देखने की कोशिस करें- न्यूटन कहते हैं कि अगर पिण्ड गतिमान है तब गतिमान रहेगा और यदि स्थिर है तो स्थिर रहेगा। तब लोग सवाल करते हैं कि ये गलत है क्योंकि गतिमान पिण्ड रुक जाते हैं तब न्यूटन का जवाब होता है कि अगर ऐसा है तो निश्चित ही कोई कारक है जो ऐसा कर रहा है। इसे नाम मिला “बल”।
    अब ज़रा अरस्तू के नियम पर ध्यान दीजिए-अरस्तू कहते हैं कि यदि पिण्ड अप्राकृतिक गति कर रहा है तब वह कुछ समय बाद रुक जाएगा। लोग सवाल करते हैं कि चाँद और सूर्य की गति कभी क्यों नहीं रुकती तब अरस्तू का जबाब होता है कि वह उसकी प्राकृतिक गति है जो नहीं रुकेगी। फिर अरस्तू को प्राकृतिक और अप्राकृतिक गतियों को परिभाषित करना होगा। इस तरह अरस्तू का नियम भी गति की परिघटनाओं को समझा सकेगा लेकिन यह नियम न्यूटन की तुलना में जटिल होगा। इसलिए यह कहना की यह नियम गलत है और यह नियम सही है एक गलत ढंग है। हमें इसकी बजाए कहना चाहिए कि यह नियम किसी दूसरे नियम की तुलना मे परिघटनाओं को आसान ढंग से समझाता है।
    ऐसा ही कोपरनिकस और टोलेमी के संबंध में है। कोपरनिकस की तरह ही टोलेमी का खगोल भी आकाशीय पिण्डों के गति को पूर सफलता से समझाता है इसलिए इनमें से किसी को भी गलत या सही नहीं कहा जा सकता।
    इसी प्रकार कुछ लोग कहते हैं कि न्यूटन के नियम गलत हैं और आइंस्टीन के नियम सही हैं। यहाँ भी वही समस्या है। चूँकी न्यूटन के गति के नियम मात्र अभिगृहीत है इसलिए कोई चाहे तो न्यूटन के इन नियमों के आधार पर वे सभी परिघटनाएँ समझा सकता है जो आइंस्टीन ने समझाई है, बस इसके लिए उसे ईथर की परिकल्पना करनी होगी। आइंस्टाइन ने ईथर को नकार दिया जिसके बदले उन्हें आकाश-समय को भौतिक स्वरूप देना पड़ा। कोई चाहे तो इसी बात की व्याख्या अलग ढंग से कर सकता है। प्रश्न बस इतना होगा की वह व्याख्या आइंस्टाईन की व्याख्या की तुलना में अधिक जटिल है या आसान।

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    1. कच्चे/गीले बांस मे पानी की उपस्थिति से उसमे उपस्थित लवण विद्युत धारा के वाहक बन जाते है। सूखे बांस मे लवण विद्युत वाहन नही कर पाते है।

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    1. 1.तारे (Stars) स्वयंप्रकाशित (self-luminous) उष्ण गैस की द्रव्यमात्रा से भरपूर विशाल, खगोलीय पिंड हैं। इनका निजी गुरुत्वाकर्षण (gravitation) इनके द्रव्य को संघटित रखता है। सूर्य या किसी अन्य तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिण्डों को ग्रह कहते हैं।
      2.आसमान में जगमगाते तारों को देखकर हमें ऐसा लगता है जैसे वे अनवरत नहीं चमक रहे हैं, पल-पल चमकना बंद करते रहते हैं। किंतु ऐसी कोई बात नहीं है। तारे सदा निरंतर, एक समान चमकते रहते हैं। दरअसल तारों से छूटती रोशनी को हमारी आँखों तक पहुँचने से पहले वायुमंडल में विद्यमान अवरोधों का सामना करना पड़ता है। अतः उनकी रोशनी रास्ते में विचलित होती रहती है, सीधी हम तक नहीं पहुँच पाती। वायुमंडल में हवा की कई चलायमान परतें होती हैं। ये परतें तारों की रोशनी के पथ को बदलती रहती हैं। इसके फलस्वरूप उनकी रोशनी हमारी नजरों से कभी ओझल, कभी प्रकट होती रहती है। इसीलिए तारे टिमटिमाते दिखाई देते है।
      3. पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण पानी को पृथ्वी की ओर खिंचता है। ध्यान रहे पृथ्वी जैसे विशाल गोले मे नीचे का मतलब पृथ्वी होता है आप कहीं पर भी हो।

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    1. गुरुत्वाकर्षण पिंड के द्रव्यमान पर निर्भर करता है। चन्द्रमा का द्रव्यमान पृथ्वी का 1/6 है इसलिए उसका गुरुत्वाकर्षण भी 1/6 है।

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    1. हरिंद्र, आपके प्रश्न का उत्तर विज्ञान के पास नही है, वर्तमान विज्ञान बिग बैंग के पहले क्या था, कैसे था, इन सब प्रश्नो का उत्तर नही जानता है।

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  2. sir,
    1.hame dharti se kon kon se grah dikhai dete hai aur kab,kahan dikhai dete hai.
    2.kya samudra ka pani kisi use me ata hai,aur kya ise pine layak banaya ja sakta hai.
    3.yadi prathvi par koi tatva swatantra awastha me nahi hai to inka adhyayan kaise hua,kya ye matters se alag swatantra kiye ja sakte hai.

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    1. 1. पृथ्वी से आप बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि को बिना दूरबीन से देख सकते है। युरेनस, नेपच्युन और प्लूटो के लिये दूरबीन चाहीये। इन्हे देखने के समय और स्थान जानने लिये किसी साफ़्टवेयर/App जैसे SkyEye का प्रयोग करें। कुछ पंचाग और समाचार पत्र भी यह जानकारी देते है।
      2. समुद्र के पानी को पीने योग्य बनाया जा सकता है और मध्य पूर्व (अरब देशो) मे यह किया जाता है। समुद्री पानी से खनीज भी निकाले जाते है।
      3. तत्व स्वतंत्र रूप मे नही पाये जाते लेकिन विभिन्न रासायनिक तथा भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा उन्हे अलग कर अध्ययन किया जाता है।

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  3. शानदार आलेख! 🙂 🙂 🙂 छोटी क्लास के विद्यार्थियों को इस लेख को अवश्य पढना चाहिए, क्योंकि उनके पाठ्यक्रमों में अभी भी कई इसी प्रकार की भ्रांतियों की भरमार है!

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