
आज हम उस स्थिति में हैं कि अपने ब्रह्मांड की विशालता का मोटे तौर पर आकलन कर सकते हैं। हमारी विराट पृथ्वी सौरमंडल का एक साधारण आकार का ग्रह है, जो सूर्य नामक तारे के इर्दगिर्द परिक्रमा कर रही है। सौरमंडल का स्वामी होने के बावजूद सूर्य भी विशाल आकाशगंगा-दुग्धमेखला नाम की मंदाकिनी का एक साधारण और औसत आकार व आयु का तारा है। इस विराट ब्रह्मांड में हमारी आकाशगंगा की तरह लाखों अन्य आकाशगंगाएं भी हैं। अत: हमारा ब्रह्मांड आकाशगंगाओं का एक विशाल समूह है। आजकल के वैज्ञानिक यहाँ तक मानते हैं कि ब्रह्मांड एक नहीं बल्कि अनेक हैं। इसके पीछे उनका यह तर्क है कि दिक् (अंतरिक्ष) का कोई भी ओर-छोर नहीं है, इसलिए एक से अधिक ब्रह्मांड होने की सम्भावना है।
आख़िर हम यह कैसे कह सकते हैं कि हमारा ब्रह्मांड अनेक ब्रह्मांडों में से एक है?

अनेक ब्रह्मांड होने की संकल्पना में हमारी सदियों से दिलचस्पी रही है। निकोलस कोपरनिकस ने सर्वप्रथम यह बताया कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है तथा पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में नहीं है। आगे ज्योदार्न ब्रूनो ने यह बताया कि सूर्य एक तारा है और ब्रह्मांड में अनगिनत तारे हैं। उन्होंने यहाँ तक कहा कि आकाश अनंत है, तथा हमारे सौरमंडल की तरह अनेक और भी सौरमंडल इस ब्रह्मांड में अस्तित्वमान हैं। 18वी सदी आते-आते दूसरे सौरमंडलों के होने की ब्रूनों की कल्पना को सामान्य रूप से अपना लिया गया। इसलिए सूर्य की ब्रह्माण्ड में विशिष्ट स्थिति पर खतरा मंडराने लगा, यह तब और भी स्पष्ट हो गया जब यह पता चला कि सूर्य भी हमारी आकाशगंगा के अरबों तारों में से एक है और यह वहां भी केंद्र में नहीं है। जब आधुनिक काल में ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बिग बैंग सिद्धांत की खोज हुई तब लोगों को यह लगा कि हो न हो हमारी आकाशगंगा ही ब्रह्मांड के केंद्र में है, जो एक महा-विस्फोट का केंद्र बनी। परन्तु ऐसा भी नहीं था, अगर हम सोचें कि किसी अन्य आकाशगंगा से हमारा ब्रह्मांड कैसा दिखाई देगा? उत्तर है कि हमारे इस नए प्रेक्षण स्थल से भी सभी आकाशगंगाएं दूर भागती दिखाई देंगी। अत: आज पूर्व-कोपरनिकस निष्कर्षों का कोई औचित्य नहीं रह गया है। वास्तव में कोपरनिकस के सूर्यकेंद्री सिद्धांत ने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में ऐसी मांग उठाई, जैसी कभी उठाने की कल्पना भी नहीं की गयी थी! इसलिए वैज्ञानिकों को लगने लगा कि अनंत अंतरिक्ष में यह आवश्यक नहीं है कि एक ही ब्रह्मांड हो। इस सामान्य तर्क से एक से अधिक ब्रह्मांड होने की संकल्पना को बल मिला।

अनेक ब्रह्मांड होने की सम्भावनाओं पर बीसवी सदी में और इधर शुरू के वर्षों में काफी कार्य हुआ है। हमारे ब्रह्मांड के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति आज से तेरह अरब सत्तर करोड़ वर्ष पहले बिग बैंग नाम के महाविस्फोट से हुआ था। कहा जाता है कि हमारा संपूर्ण ब्रह्मांड एक अति-सूक्ष्म बिंदु में समाहित था। किसी अज्ञात कारण से इसी सूक्ष्म बिंदु से एक तीव्र विस्फोट हुआ तथा समस्त द्रव्य इधर-उधर छिटक गया। इस स्थिति में किसी अज्ञात कारण से अचानक ब्रह्मांड का विस्तार शुरू हुआ और यह भौतिक विज्ञानी ऐलन गुथ के अनुसार महास्फीति (महाविस्तार) की स्थिति से भी गुजरा। महास्फीति से अभिप्राय यह है कि ब्रह्मांड का यह विस्तार वर्तमान विस्तार दर की तुलना में अकल्पनीय तौर पर बहुत ही तीव्र गति से हुआ था। इस महाविस्तार को अभी तक ब्रह्मांड विज्ञान समझाने में पूर्णतया समर्थ नहीं है, परंतु वैज्ञानिकों का यह मानना है कि शुरुवाती ब्रह्मांड में अलग-अलग क्षेत्रों की विस्तारण दरें भी भिन्न-भिन्न रही होंगी और वे अपने अलग-अलग ब्रह्मांड भी बनाएं होंगे, जिनमें भौतिकी के नियम भी अलग-अलग रहे होंगे। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि इन क्षेत्रीय ब्रह्मांडों के बीच का अंतरिक्ष इतनी तीव्र गति से विस्तृत हो रहा है कि इन ब्रह्मांडों में से किन्हीं दो ब्रह्मांडों का सम्पर्क संभव नहीं है, यहाँ तक कि संदेश प्रकाश की गति से भी भेजा जाए तो भी नहीं! वैज्ञानिक कहते हैं कि भले ही ब्रह्मांड अलग-अलग हों, किंतु वे सदैव ऐसा नहीं रहेंगे। भविष्य में एक समय ऐसा भी आएगा कि जब वो एक-दूसरे के नजदीक आएंगे, और एक-दूसरे में विलीन हो जाएंगे। स्ट्रिंग सिद्धांत, जो दस आयामों की बात करता है को जब महाविस्तार सिद्धांत से मिलाया जाता है, तो वह यह भी बताता प्रतीत होता है कि एक महाब्रह्मांड में अनेकानेक शिशु ब्रह्मांड भी उपस्थित हो सकते हैं।
- पहला यह कि बिग बैंग से पहले क्या था? तथा
- दूसरा यह कि भौतिकी के नियम ऐसे ही क्यों हैं, जैसाकि हम जानते हैं?
समांतर ब्रह्मांड सिद्धांत

समांतर ब्रह्मांड की अवधारणा का विचार सर्वप्रथम वर्ष 1954 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय के शोध छात्र हुग एवेरेट ने दिया था। उन्होंने कहा था कि हमारे अपने ब्रह्माण्ड की ही तरह दूसरे कई समांतर ब्रह्माण्ड मौजूद हो सकते हैं और वे सभी ब्रह्माण्ड हमारे ब्रह्माण्ड से संबंधित हो सकते हैं। एवेरेट की इस अवधारणा का वर्षों तक मजाक उड़ाया जाता रहा, लेकिन जब सैद्धांतिक वैज्ञानिक मैक्स टैगमार्क ने क्वांटम आत्महत्या नामक वैचारिक प्रयोग को प्रस्तावित किया, तभी से इसको गम्भीरता से लिया जाने लगा है। सामान्य भाषा में इस वैचारिक प्रयोग के अनुसार एक व्यक्ति अपने सिर पर बंदूक ताने बैठा रहता है। वह व्यक्ति घबराहट में बंदूक का ट्रिगर दबाता है। ट्रिगर दबाते ही ब्रह्मांड का विभाजन दो परिणामों के अनुसार हो जाता है। एक ब्रह्मांड में गोली चल जाती है और वह व्यक्ति मर जाता है, तो दूसरे ब्रह्मांड में गोली नहीं चलेगी और व्यक्ति जीवित रहेगा।

शिशु ब्रह्मांड सिद्धांत

क्वांटम भौतिकी के सिद्धांत, जो व्यष्टि ब्रह्मांड के अध्ययन से संबंधित है, निश्चित परिणामों की बजाय सम्भावनाओं के सन्दर्भ में ब्रह्मांड का वर्णन करते है। और इस सिद्धांत का गणित यह सुझाव देता प्रतीत होता है कि किसी भी स्थिति के सभी सम्भव परिणाम होते हैं – अपने अलग-अलग ब्रह्मांड में। उदाहरण के लिए आप एक चौराहे पर पहुंचतें हैं, जहाँ पर आप सही या बाएं रास्ते पर जा सकते हैं। तो वर्तमान ब्रह्मांड दो शिशु ब्रह्मांडों की वृद्धि करता है : एक वह जिसमे आप सही रास्ते पर जाते हैं, तो दूसरा वह जिसमे आप गलत रास्ते पर जाते हैं। यह अवधारणा मूलतः समांतर ब्रह्मांड की अवधारणा से संबंधित है। इस सिद्धांत के अनुसार शिशु ब्रह्मांडों की उत्पत्ति उसके अभिवावक महा-ब्रह्मांड से हुई है।
बुलबुला ब्रह्मांड सिद्धांत

ब्रह्मांड विज्ञान में महास्फिति नामक एक अवधारणा है, जिसके अनुसार बिग बैंग से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बाद यह तेजी से विस्तारित हुआ। प्रभाव में यह एक गुब्बारे की तरह बढ़ रहा है, अर्थात् जब हम हम गुब्बारे को फुलाते हैं तो उसके बिंदियो के बीच दूरियों को बढ़ते हुए देखते हैं। टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक अलेक्ज़ेंडर विलनेकिन द्वारा प्रस्तावित आदिम महास्फिति से पता चलता है कि अन्तरिक्ष असंतुलित अर्थव्यवस्था की भांति अराजकता की स्थिति में तीव्र गति से विस्तृत हो रही है, और बुलबुलों की उत्पत्ति हो रही है। यह विस्तार ही बुलबुलों को जन्म दे रहा है, जोकि नए ब्रह्मांडों की उत्पत्ति का कारण है। इस प्रकार हमारे स्वयं के ब्रह्मांड में जहाँ महास्फिति समाप्त हो गयी है, जिसके फलस्वरूप तारों और आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ और हो रहा है। ब्रह्मांड के विस्तार ने ब्रह्मांड को एक बुलबुला बना दिया और इस बुलबुले से नये ब्रह्मांडों की उत्पत्ति हुई, जिनमें न कोई आपसी जुड़ाव था और न ही उनके भौतिकी के नियम-कानून एक हैं। आसान शब्दों में कहें तो प्रत्येक बिग बैंग से एक फैलते बुलबुले का जन्म हुआ होगा और हमारा ब्रह्मांड उनमें से एक विस्फोट की उपज है।
अनेक ब्रह्मांड के बारे में वर्तमान में प्रचलित कुछ प्रमुख सिद्धांतों की ऊपर हमने चर्चा की है। मुश्किल यह है कि इसमें से किसी भी सिद्धांत को सत्य की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता है, क्योंकि यदि दूसरे ब्रह्मांड अस्तित्व में हों भी तो वर्तमान विज्ञान उनसे सम्पर्क करने में असमर्थ है। बहरहाल, हम वर्तमान बहु-ब्रह्मांडीय सिद्धांतों को बौद्धिक विलसिता या कोरी कल्पना नहीं कह सकते हैं क्योंकि गणितीय समीकरण हमें यह अजीबोगरीब संकेत देते नज़र आ रहें हैं कि एकाधिक ब्रह्मांड हो सकते हैं! हालाँकि इन सिद्धांतों को हम तब तक नहीं स्वीकार करेंगे, जब तक कि वैज्ञानिक विधि के अनुसार प्रयोगों द्वारा इसके पक्ष में प्रभावी साक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाते हैं। फिलहाल अनेक ब्रह्मांड होने की संकल्पना पर वैज्ञानिक गम्भीरतापूर्वक काम कर रहे हैं। और वे उस बुनियादी सिद्धांत (थ्योरी ऑफ़ एवरीथिंग) को ढूढने का प्रयास कर रहें हैं, जो प्रत्येक स्थान पर, प्रत्येक स्थिति में लागू हों। तबतक के लिए आप ब्रायन ग्रीन की तरह दैनिक जीवन की सामान्यता से बाहर निकलर ब्रह्मांड को उसके विशालतम रूप (महाब्रह्मांड रूप) को गणितीय समीकरणों के अधीन देखकर आनन्दित महसूस कीजिये।
लेखक के बारे मे

श्री प्रदीप कुमार यूं तो अभी विद्यार्थी हैं, किन्तु विज्ञान संचार को लेकर उनके भीतर अपार उत्साह है। आपकी ब्रह्मांड विज्ञान में गहरी रूचि है और भविष्य में विज्ञान की इसी शाखा में कार्य करना चाहते हैं। वे इस छोटी सी उम्र में न सिर्फ ‘विज्ञान के अद्भुत चमत्कार‘ नामक ब्लॉग का संचालन कर रहे हैं, वरन फेसबुक पर भी इसी नाम का सक्रिय समूह संचालित कर रहे हैं।
सर, आपने इंटेलीजेंट डिज़ाइन के बारे में जरूर पढ़ा होगा। ये एक माडर्न रिलीजन है, जो अपना भगवान एलियनों को मानता है, इनके अनुसार पूरी पृथ्वी उनके ही द्वारा बनाई गई है और उन्होंने ही जीवन को यहाँ पर लाया है। इसके संस्थापक RAEL नामक एक व्यक्ति हैं जो ये सारी बातें बताते हैं। उनका कहना है कि एक एलियन ने उन्हें खुद आकर सारी बातें बताई थी। ये लोग उसे एलोहिम कहते हैं। ये लोग सारी बातें धर्मग्रंथों को विज्ञान से जोड़ कर कहते हैं। इनके सिद्धांत सही हैं या गलत। जरूर बताएँ।
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इंटेलीजेंट डीजाईन मे शून्य इंटेलीजेंस है। यह धार्मिक मान्यताओं को वैज्ञानिक जामा पहनाने का एक बेहुदा प्रयास है।
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सर,
इस हिसाब से तो अनेक बिगबैंग हुए होंगे। और ब्रह्मांड एक नहीं बल्कि अनेक बिन्दुओं के रूप में समाहित रहा होगा ????
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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सर जी, इस लेख से हटकर मेरा एक सवाल है कि ऐसे समुद्री जहाज जो ज्यादा भारी या वजनी सामानों का परिवहन करते हैं क्या वो साधारण जल में डूब जाएँगे ? जिस प्रकार आलू साधारण जल में डूब जाता है लेकिन संतृप्त विलयन मे नहीं डूबता ।
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इतना अधिक अंतर नही आयेगा। समुद्री जल सादे जल की तुलना मे संतृप्त होता है लेकिन जहाजो के लिये अंतर नगण्य है।
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बहुत-बहुत धन्यवाद सर जी !
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गणेश शंकर विद्यार्थी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।
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सर आत्मा को तरंग संकेत के रूप में मान सकते है क्या?
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विज्ञान के पास आत्मा के समर्थन और विरोध मे प्रमाण नही है।
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