प्रश्न आपके, उत्तर हमारे

प्रश्न आपके, उत्तर हमारे

यह ‘प्रश्न आपके और उत्तर हमारे’ का पहला भाग है। यहाँ अब 4000 के क़रीब टिप्पणियाँ हो गयी हैं, जिस वजह से नया सवाल पूछना और पूछे हुए सवालों के उत्तर तक पहुँचना आपके लिए एक मुश्किल भरा काम हो सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अब ‘प्रश्न आपके और उत्तर हमारे: भाग 2‘ को शुरू किया जा रहा है। आपसे अनुरोध है कि अब आप अपने सवाल वहीं पूँछे।

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1.
2. प्रश्न आपके, उत्तर हमारे: 1 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक के प्रश्नों के उत्तर

3,992 विचार “प्रश्न आपके, उत्तर हमारे&rdquo पर;

      1. सर आपकी वेब साइट (प्रश्न आपके और उत्तर हमारे)पर सवाल करने के लिए किस साइट
        पर प्रश्न भेजना चाहिये। आर्थत प्राप्तकर्ता पता क्या लिखना होगा

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    1. आपके जीवन मे सब कुछ आपकी मेहनत और इच्छा शक्ति पर है। लाकेट, तंत्रमंत्र , ताबीज सब बकवास है। कोई भी सफल व्यक्ति इन सब टोटको से दूर रहता है।

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    1. जब सौर मंडल का निर्माण हुआ था तब एक गैस का बादल तब वह अपने केंद्र के आसपास घूम रहा था। यह बादल बाद मे सूर्य और अन्य ग्रहो के रूप मे अस्तित्व मे आया। कोणीय संवेग की अविनाशिता के नियम के अनुसार सभी पिंडो को भी उस बादल के घूर्णन के समान घूमना चाहीये। बस उसी कारण से पृथ्वी ही नही सभी ग्रह और सूर्य भी अपने अक्ष पर घूर्णन करते है।

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  1. अगर आप अपने इंटरनेट की स्पीड से खुश नहीं हैं तो आप चांद का रुख कर सकते है। जी हां, नासा ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाते हुए चांद पर वाई-फाई कनेक्शन की सुविधा उपलब्ध कराई है जिसकी 19 एमबीपीएस की स्पीड बेहद हैरतअंगेज है।
    Sir esaka matlb kya hai

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    1. पृथ्वी पर इससे भी तेज इंटरनेट उपलब्ध है। आप इस समाचार का लिंक देंगे तो उसका विश्लेषण कर बता सकते है कि इस समाचार का तात्पर्य क्या है। संभव है कि चंद्रमा पर कोई उपकरण भेजा गया हो जो इस गति से चंद्रमा पर अन्य उपकरणो को इंटरनेट उप्लब्ध करा रहा हो। ध्यान दे अन्य उपकरणो को, नाकि किसी मानव को।

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    1. निहारीका अर्थात धुल गैस का विशाल बादल, इन मे तारे बनते है। अाकाशगंगा मे सैकड़ों निहारिका , अरबों तारे हो सकते है।

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    1. हवा मे धुलकण होते है वे नमी सोख लेते है, जिससे चिपचिपापन महसूस होता है. सागर किनारे वाले भाग मे हवा मे नमक भी होता है, जबकि औद्योगिक क्षेत्रो मे सल्फर डाय आक्साईड भी। इन क्षेत्रो मे बारीश मे अम्ल (एसीड) भी हो सकता है।

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  2. मान लिजिय हम दुर किसी ग्रह मे जान हे, लेकिन हम उधर पहुंचने के लिय हमारा आयु पर्याप्त नही हे इस मामले में क्या हमारे पास ऐसा चीज़ हे जिसे हम मानव शरीर को गहरा नींद मे सुलये ओर उस्क आयु कम नहो (interstellar फिल्म तरह)।

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  3. सर प्रकाश किरण जो की दरअसल 2 हाइड्रोजन परमाणु के नाभिकीय संलयन से हीलियम में बनने की प्रक्रिया द्वारा जिसमे अत्यधिक मात्रा के ऊर्जा प्राप्त होती है उसी का रूप फोटॉन है जो सबसे तेज गति प्रकाश की गति से चलती है… सर मैं समझ नही पा रहा की जब फोटॉन या रेडियो तरंगे अंतरिक्ष में गति करती है तो हमेशा प्रकाश की गति ही क्यों बनी रहती है कम क्यों नही होती जबकि श्याम ऊर्जा का अस्तित्व है dark mater भी है कही न कही किसी ग्रह का गुरुत्व उसके गति को रोकता होगा इतनी सब रुकावटों के बाद भी प्रकाश की गति रेडियो तरंग की गति में कुछ प्रभाव नही पड़ता गति कम नही होती। कृपया समझाए सर….

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    1. अंतरिक्ष मे 99 % जगह रिक्त है, इसलिये प्रकाशगति पर ज्यादा फर्क नही पड़ता है. जहाँ पर वे पदार्थ के पास से गुजरती है, उनका पथ मुड़ता है, गति मे परिवर्तन होता है.

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  4. सरजी अगर हम 1000 प्रकाशवर्ष दूर किसी ग्रह में भी कोई रोलर भेजे तो उस तक पृथ्वी पर से दिए जाने वाले कमांड कितने देर में पहुचेंगे?

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  5. सर जी, मुझे आपके समस्त लेख बहुत ही अच्छे लगते है मुझे लगता है जो मैं ढूंढ रहा था वो मिल गया है…. सर मुझे ये बताने का कष्ट करे की जो यान मंगल ग्रह क्यूरोसिटी नाम से भेजा गया है उसे पृथ्वी पर 20 मिनट पहले comond दिया जाता है हम उसे live नहीं देख सकते। सर मेरा प्रश्न ये है की हम जो comond देते है वो किस माध्यम से होकर जाता है? कृपया विस्तार में बताये…..

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    1. सारे निर्देश रेडीयो तरंग से भेजे जाते है। बिलकुल उसी तरिके से जिस तरिके से डीश एंटिना टी वी सिगनल पकड़ता है, मार्श रोलर मे डीश एंटिना लगा हुआ है।

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    1. जब सौर मडल बना तब ग्रहो के साथ उल्काये भी बनी, बचा पदार्थ धूल के रूप मे रह गया वही अब ग्रहो के गुरुत्व की चपेT मे आकर गिरती रहती है

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    1. भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषा करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबंधों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी भीतरी क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है।
      भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि।

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    1. 1.पुच्छल तारा धुमकेतु को कहते है, वे तारे नही होते है। हजारो धुमकेतु है, सबकी दूरी अलग अलग है। अभी पृथ्वी से युरेनस की दूरी तक कोई भी धुमकेतु नही है।
      2. मंगल पर खुले वातावरण मे मानव जीवन संभव नही है लेकिन कृत्रिम वातावरण मे संभव है।
      3.पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण 9.807 m/s²तथा बृहस्पति का 24.79 m/s² है।

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  6. Since my childhood I have some silly question wandering in my head.
    1. Is earth weight increasing because all living things are increasing, if you see the population in earth in 1960 there was 3.0365 billion and 7.125 billion (2013). I don’t think that make any different beacause all living things consuming what ever in earth.

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    1. कुल आठ ग्रह है, प्लूटो को अब ग्रह नही माना जाता। उसे सेडना, एरीस, सेरस इत्यादि के साथ ’वामन ग्रह (Dwarf Planet)’ माना जाता है…

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  7. सूर्य कि expire date होती हे कि नही ?? दो हायड्रोजन के परमाणु आपस मे विलिन होकर एक हिलियम परमाणु बनाते है इस्का मत्लब एक दिन हायड्रोजन खतम हो जाएगा

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  8. सर, विज्ञान कहता है की पृथ्वी सूर्य का चक्कर अपने धुरी पर करता है किन्तु मुझे यह समझ में नहीं आ रहा की पृथ्वी अगर धूमती है तो ठीक है धुमने के कारण पूर्व-पश्छिम दिशा में २४ घंटे का दिनरात होता है उत्तर-दक्षिण जिसे साउथ-नार्र्थ अटलांटिका में छ: महीना बराबर दिन रात होता है यहाँ पर भी बात समझ में आ जाती है पृथ्वी अपनी धुरी के साथ उलटा भी धूमती है एक दिन रात पृथ्वी पर अलास्का में होता है उसका जगह क्यों नहीं बदलता? अगर कोई चीज धुमेगा तो प्रकाश का स्थान भी बदल जाता है किन्तु वहाँ हमेशा वैसा ही दिन रात होता है यह बात समझ में नहीं आ रहा काफी प्रेकटिकल किया 3D में बनाकर देखा एनिमेशन के द्वारा चला के देखा पर इस सवाल का जबाब अभी तक नहीं निकल पाया की अगर पृथ्वी धूमती है तो अलास्का में जो दिन-रात होता है उसका स्थान क्यों नहीं चेंज हो रहा है? कृपया इस पर प्रकाश डाले

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      1. सर, आपके दिए हुए लिंक में भी वह दो ही पोल के बारे में बता रहा है मेरा सवाल है की अगर पृथ्वी धूमती है तो अलास्का में एक ही जगह पर दिनरात क्यों होता है उसका जगह क्यों नहीं बदलता?

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      2. सर, अलास्का उतरी गोलार्ध में है और उतरी गोलार्ध में ६ महीना तक रात भी रहती है पर अलास्का में दिन ही रहता है वह ऐसा क्यों होता है? अगर पृथ्वी धुमेगी तो वहा भी रात होनी चाहिए पर नहीं हो रहा है इस कनफ्यूजन को दूर करे

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      3. सर, अलास्का में एक ही तरह के दिन रात नहीं होती है वहा पर कई प्रकार के दिनरात होते है इस कारण उसका नाम मणिमय प्रदेश कहा जाता है ग्रंथों मे. जैसे उदाहरण अलास्का के Yakutat, Wainwright, Valdez, Unalaska, Talkeetna, Sitka, Prudhoe Bay, Point Lay, Point Hope, Nuiqsut, Nome, Noatak, Metlakatla, Kotzebue, Kodiak, Ketchikan, Kenai, Kaktovik, Juneau, Haines, Glennallen, Fairbanks, Barrow Alaska, Atqasuk, Arctic Village, Anchorage, Adak ये सभी नाम अलास्का के यह चारो दिशाओं के शहरों के नाम है जहां पर प्रत्येक दिशा में अलग अलग दिन एवं रात है इसको आप इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते है http://www.timeanddate.com/worldclock/astronomy.html?query=alaska विज्ञान ने इसे पृथ्वी से अलग का ही जगह बता दिया है ये सभ प्रमाण है जिसके द्वारा आपसे प्रश्न पूछ रहा हूँ उदाहरण ADAK में १७ घंटे का दिन हो रहा है, तो कही पूरा दिन कई दिनों से दिन ही हो रखा है, तो कही अभी सूर्य अगता है तभी डूब जाता है इस कारण मुझे संदेह हो रहा है की विज्ञान ने पृथ्वी को जो धुमाया है तो किस प्रकार से…. कृपया इसका समाधान करे?

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      4. हाँ, अलास्का धुर्विय प्रदेश है! ध्रुवीय प्रदेश मे गर्मीयों मे दिन अक्षांशो के अनुसार १२ घंटे से लेकर छह महिने तक का होता है, वही सर्दियों मे रात १२ घंटे से लेकर छह महिने तक की होती है!
        गर्मियाँ मे जैसे जैसे आप उत्तर की ओर जायेंगे दिन की लंबाई बढ़ते जायेगी, शून्य अक्षाँश पर वह छह महिने का हो जायेगा। सर्दियों मे इसका उल्टा होता है।
        यही स्थिति दक्षिण मे अंटार्कटिका मे होती है।

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      5. सर, लेकिन दक्षिण अटलांटिका में अलास्का जैसा कोई भी जगह नहीं है जहां अलास्का की तरह ही दिन रात होता हो? अगर उतरी अटलांटिका में यह सब हो रहा है तो दक्षिण अटलांटिका में भी यही सब होना चाहिए किन्तु ऐसा नहीं हो रहा… मेरे प्रश्नों का सही से जबाब नहीं मिल पा रहा है. आप विज्ञान वाचक है और मै प्रश्नकर्ता, प्रश्नकर्ता को आप उदाहरण द्वारा समझाये की अलास्का नामक जगह में ही यह सब क्यों हो रहा है?

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      6. अंटार्कटिका; नार्वे ;फिन लैंड ;साइबेरिया में भी अलास्का के जैसा ही दिन रात होती है। आप माध्यमिक स्कूल की भूगोल की पुस्तक पड़कर समझने का प्रयास करे।

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    1. १.आकाशगन्गाओ के प्रकाश मे दिखाइ देने वाला लाल विचलन(red shift)
      2. ब्रह्माण्डीय पृष्ठभूमी विकीरण(cosmic background radiation)
      3. प्रकाशगति की सीमा के कारण हम भूतकाल मे देख सकते है। ब्रह्मांड भूतकाल मे कैसा था, हम देख पा रहे है।

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      1. प्रकाशगति की सीमा के कारण हम भूतकाल मे देख सकते है। ब्रह्मांड भूतकाल मे कैसा था, हम देख पा रहे है। (do you mean time machine?)

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      2. प्रकाश गति असीमीत नही है, उसकी सीमा है। सूर्य से प्रकाश आने ने 8 मिनट लगते है। अर्थात हम सूर्य की वर्तमान छवि नही आठ मिनट पुरानी छवि देख रहे है। चंद्रमा से पृथ्वी तक प्रकाश आने मे 14 सेकंड लगते है, अर्थात हम 14 सेकंड पुराना चंद्रमा देख रहे है।
        सूर्य से सबसे निकट का तारा प्राक्सीमा 4 प्रकाशवर्ष दूर है, अर्थात हम उस तारे की चार वर्ष पुरानी छवि देख रहे होते है। इसी तरह हम सैकड़ो, हजारो, करोडो और अरबो वर्ष पुरानी छवि देखते है। जितना दूरी का पिंड उतनी पुरानी तस्वीर!

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    1. 1.स्टीफन हाकींग के अनुसार श्याम विवर(back hole) धीमे धीमे एक विशिष्ट विकिरण के द्वारा अपना द्रव्यमान खोते रहते है। इस विकिरण को ही हाकिंग विकिरण कहा जाता है। इसकी अभी पुष्टि नही हुयी है।
      2. गुरुत्वाकर्षण के कारण सौर मंडल के ग्रह सूर्य से बंधे है और सूर्य की परिक्रमा करते है, इस उदाहरण मे गुरुत्वाकर्षण श्याम ऊर्जा पर भारी पड़कर सौर मंडल को बांधे रखता है। इसी तरह से तारे भी एक दूसरे से बंधे रहकर आकाशगंगा बनाते है।
      बड़े पैमाने पर कुछ आकाशगंगाये भी एक दूसरे से बंध एक एक आकाशगंगा समूह बनाती है। हमारी आकाशगंगा, एंड्रोमिडा आकाशगंगा और कुछ छोटी आकाशगंगाये एक दूसरे से बंधी हुयी है और एक दूसरे की परिक्रमा करती है।

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    1. Santosh, I know the Moon Hoax theory! It all started from a documentary aired on Fox TV. The Fox TV is much like our “India TV”, total rubbish. I have article on Apolo mission but I did not covered Hoax Thoery Angle as most of the Indian people were not aware. Now I think I should write on that! Please see below link. It is also my blog https://antariksh.wordpress.com/category/%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8/

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    1. नील आर्मस्ट्रांग पहले व्यक्ति थे जो चंद्र्मा पर उतरे थे। उनके पश्चात 11 व्यक्ति चंद्रमा पर पहुंचे थे। चंद्रमा पर पहुंचने वाले सभी यात्रीयों के नाम है
      Neil Armstrong,
      Buzz Aldrin,
      Pete Conrad
      Alan Bean
      Alan Shepard
      Edgar Mitchell
      David Scot
      James Irwin
      John Young
      Charles Duke
      Eugene Cernan
      Harrison Schmitt.

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    1. viruses are non living outside the living body and vice versa it is possible that at the time inside the living structure viruses grasp some part of the living cells which is responsible for its multipication activity inside the living forms.these grasping material can be microscopic cell particles usefull for functioning.

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      1. सर डेल्टा समुद्र तथा नदी के जल के मिलने से बनती है। अर्थात धनात्मक तथा ऋणात्मक जल के अणुओ के मिलने से बनती है। तो सर जब किसी बर्तन जिसकी आकृति गोलाकार या आयताकार होती है,उससे जल गिरने से डेल्टा क्यो बनती है?

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      2. जल के अणुओ मे आवेश नही होता है, वे ना धनात्मक होते है ना ऋणात्मक!
        जल के द्वारा डेल्टा का बनना भौगोलीक परिस्थितियों पर निर्भर है।

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    1. पृथ्वी दो चक्कर लगाती है, 1.सूर्य का, 2. अपने अक्ष पर घूर्णन
      1. पृथ्वी जब सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है तब सूर्य के उदय के समय का नक्षत्र या राशी एक वर्ष पश्चात वही होता है।
      2.वैसे ही पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन करने के बाद सूर्य उसी स्थिति मे दिखायी देता है। उदाहरण के लिये यदि आपने सूर्योदय से गणना प्रारंभ की तो ठीक २४ घंटे पश्चात सूर्य दोबारा क्षितिज के पास होगा।

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    1. वातावरण मे वायु स्थिर नही रहती है, वह मोमबत्ती की लौ को लहराते रहती है। किसी कांच से लौ को घेरने पर लौ के आसपास वायु मे अपेक्षता स्थिरता आने से उसका लहराना बंद हो जाता है।

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    1. जीव जंतुओं या किसी भी जीवित वस्तु के अध्ययन को जीवविज्ञान या बायोलोजी (Biology) कहते हैं। इस विज्ञान की दो मुख्य शाखाएँ हैं :

      (1) प्राणिविज्ञान (Zoology), जिसमें जंतुओं का अध्ययन होता है और

      (2) वनस्पतिविज्ञान (Botany) या पादपविज्ञान (Plant Science), जिसमें पादपों का अध्ययन होता है।

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    1. जीव विज्ञान प्राकृतिक विज्ञान की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। यह विज्ञान जीव, जीवन और जीवन के प्रकृया से सम्बन्धित है। इस विज्ञान में पेड़-पौधों और जानवरों के अभ्युदय, इतिहास, भौतिक गुण, जैविक प्रक्रम, कोशिका, आदत, इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।

      जीव विज्ञान शब्द का प्रयोग सबसे पहले लैमार्क और ट्रविरेनस नाम के वैज्ञानिको ने १८०२ ई० मे किया। विज्ञान कि वह शाखा जो जीवधारियों से सम्बन्धित है, जीवविज्ञान कहलती है।

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    1. रसायनशास्त्र विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पदार्थों के संघटन, संरचना, गुणों और रासायनिक प्रतिक्रिया के दौरान इनमें हुए परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। इसका शाब्दिक विन्यास रस+अयन है जिसका शाब्दिक अर्थ रसों (द्रवों) का अध्ययन है। यह एक भौतिक विज्ञान है जिसमें पदार्थों के परमाणुओं, अणुओं, क्रिस्टलों (रवों) और रासायनिक प्रक्रिया के दौरान मुक्त हुए या प्रयुक्त हुए ऊर्जा का अध्ययन किया जाता है।

      संक्षेप में रसायन विज्ञान रासायनिक पदार्थों का वैज्ञानिक अध्ययन है। पदार्थों का संघटन परमाणु या उप-परमाण्विक कणों जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से हुआ है। रसायन विज्ञान को केंद्रीय विज्ञान या आधारभूत विज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि यह दूसरे विज्ञानों जैसे, खगोलविज्ञान, भौतिकी, पदार्थ विज्ञान, जीवविज्ञान और भूविज्ञान को जोड़ता है।

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    1. भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबंधों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी भीतरी क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है।

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    1. विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो कि किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि किसी भी विषय का क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कह सकते है। ऐसा कहा जाता है कि विज्ञान के ‘ज्ञान-भण्डार’ के बजाय वैज्ञानिक विधि विज्ञान की असली कसौटी है।
      सत्य को असत्य व भ्रम से अलग करने के लिये अब तक आविष्कृत तरीकों में वैज्ञानिक विधि सर्वश्रेष्ठ है। संक्षेप में वैज्ञानिक विधि निम्न प्रकार से कार्य करती है:

      (१) ब्रह्माण्ड के किसी घटक या घटना का निरीक्षण करिए,
      (२) एक संभावित परिकल्पना (hypothesis) सुझाइए जो प्राप्त आकडों से मेल खाती हो,
      (३) इस परिकल्पना के आधार पर कुछ भविष्यवाणी (prediction) करिये,
      (४) अब प्रयोग करके भी देखिये कि उक्त भविष्यवाणियां प्रयोग से प्राप्त आंकडों से सत्य सिद्ध होती हैं या नहीं। यदि आकडे और प्राक्कथन में कुछ असहमति (discrepancy) दिखती है तो परिकल्पना को तदनुसार परिवर्तित करिये,
      (५) उपरोक्त चरण (३) व (४) को तब तक दोहराइये जब तक सिद्धान्त और प्रयोग से प्राप्त आंकडों में पूरी सहमति (consistency) न हो जाय।
      किसी वैज्ञानिक सिद्धान्त या परिकल्पना की सबसे बडी विशेषता यह है कि उसे असत्य सिद्ध करने की गुंजाइश (scope) होनी चाहिये। जबकी धार्मिक मान्यताएं ऐसी होतीं हैं जिन्हे असत्य सिद्ध करने की कोई गुंजाइश नहीं होती। उदाहरण के लिये ‘जो हमारे धर्म के बताये मार्ग पर चलेंगे, केवल वे ही स्वर्ग जायेंगे’ – इसकी सत्यता की जांच नहीं की जा सकती।

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      1. Sir,
        अगर आंतरिक बल के कारण पृथ्वी की त्रिज्या उसके प्रारंभिक त्रिज्या के आधी हो जाए तो पृथ्वी का कोणीय वेग 4 गुणा बढ़ जाएगा।(from conservation of Angular momentom)
        मतलब हमारे सौरमंडल में किसी ग्रह के त्रिज्या कम होने से उसके कोणीय वेग पर प्रभाव पड़ता है जिससे कि कोणीय वेग बढ़ जाता है।
        इसके अनुसार –
        जब सौरमंडल में ग्रह बन होंगे तब उनका कोणीय वेग उनकी त्रिज्या के अनुसार होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं है, बृहस्पति ग्रह की त्रिज्या पृथ्वी से ज्यादा है फिर भी उसकी कोणीय वेग पृथ्वी से ज्यादा है…. क्यों??

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      2. विकास सारे ग्रह एक गैस के बादल से बने है, उस समय जिस ग्रह ने जो कोणीय वेग प्राप्त कर लिया वह अभी भी है. त्रिज्या कम करने पर सवेग कि अविनाशिता के नियम के अनुसार कोणीय वेग बढ़ता है लेकिन यह नियम ग्रह के बनने के बाद लागु होता है. जब ग्रह बन रहा था तब उस समय की परिस्थिती के अनुसार हर ग्रह ने भिन्न भिन्न कोणीय वेग प्राप्त कर लिया था….

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  9. Sir,
    अगर आंतरिक बल के कारण पृथ्वी की त्रिज्या उसके प्रारंभिक त्रिज्या के आधी हो जाए तो पृथ्वी का कोणीय वेग 4 गुणा बढ़ जाएगा।(from conservation of Angular momentom)

    मतलब हमारे सौरमंडल में किसी ग्रह के त्रिज्या कम होने से उसके कोणीय वेग पर प्रभाव पड़ता है जिससे कि कोणीय वेग बढ़ जाता है।

    इसके अनुसार –
    जब सौरमंडल में ग्रह बन होंगे तब उनका कोणीय वेग उनकी त्रिज्या के अनुसार होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं है, बृहस्पति ग्रह की त्रिज्या पृथ्वी से ज्यादा है फिर भी उसकी कोणीय वेग पृथ्वी से ज्यादा है…. क्यों?????????

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    1. बृहस्पति तथा सौर मंडल के सभी ग्रहो ने अपना कोणोय वेग सौर मंडल के जन्म के बाद प्राप्त किया था। इस आरंभिक कोणीय वेग के कमी/वृद्धि उनके आकार मे कमी या अन्य कारको से न्युन मात्रा मे ही हुयी है!

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  10. गुरू जी हाट्रोजन एक जवलनशील गैस है और अॉक्सीजन जलने मै सहायता करती है तो पानी मे आग क्यों नही लागती क्योंकि h²o दोनो एक साथ है

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    1. h²o अर्थात जली हुयी हायड्रोजन, हायड्रोजन जब जलती है तब आक्सीजन से मिलकर पानी बनाती है। जले हुये को दोबारा जलाया नही जा सकता ना।

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    1. मृत शरीर के विघटन प्रारंभ हो जाता है जिससे शरीर के अंदर गैसे बनना प्रारंभ हो जाती है। इन्ही गैसो से शरीर का घनत्व कम हो जाता है और शरीर तैरने लगता है।

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  11. सर, क्या हम पड़ते हे की एक बिगबैंक के विस्तार से ये ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ यदि यह सही मान भी लिया जाये तो कैसे इतनी अनुशासन के द्वारा हमारा ब्रह्माण्ड की गतिविधि हो सकती हे ? क्योकि एक कम्प्यूटर में सारे प्रोग्राम होते हे परन्तु बिना किसी के ऑपरेट करे वह अपने आप नहीं चल सकते या कोई प्रोग्राम नहीं बना सकते और एक सफल प्रोग्राम बनाने के लिए उतना ज्ञान भी होना अनिर्वाय हे.

    दूसरी बात की प्रोग्राम को या कम्प्यूटर को फॉर्मेट करने के लिए भी कोई तो चेतन सत्ता होनी चाहिए अपने आप कैसे फॉर्मेट हो जायेगा, कम्प्यूटर में बहुत सारे प्रोग्राम हे पर अपने आप तो कुछ कर नहीं सकते और प्रोग्रामिंग भी करने वाला कोई तो होगा।

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  12. समय का न्यूनतम स्तर क्या है । यानि अगर एक सेकंड को माइक्रो सेकंड में बाँट दिया जाये या नैनो सेकंड को भी खंडित कर दिया जाये तो क्या समय की एक ऐसी अवस्था आएगी जहाँ समय समाप्त हो जायेगा जहाँ 0 हो जायेगा । विस्तार से बताएं

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    1. वेदो मे देवताओ की स्तुति के अतिरिक्त कुछ नही है। वेदों पर कोई भी देश विज्ञान के लिये काम नही कर रहा है, हालांकि उसे उत्कृष्ट साहित्य के रूप मे माना जाता है।

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  13. 1. अगर किसी आदमी का वजन पृथ्वी पर 60 kg है तो चन्द्रमा पर उसका वजन कितना होगा ?
    *- उत्तर स्पस्ट रूप में बताएं और यह भी बतायें की क्यों होगा ।
    *- अन्य ग्रहों पर कितना होगा , कारण सहित बताएं ।

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    1. यदि वजन से आपका तात्पर्य भार से है तो उस व्यक्ति का भार चन्द्रमा पर 10KG रह जायेगा, यदि द्रव्यमान से है तो समस्त ब्रह्माण्ड मे वह 60KG ही रहेगा।
      किसी वस्तु में उपस्थित पदार्थ की मात्रा को द्रव्यमान जबकि किसी वस्तु पर पृथ्वी के लगाने वाले आकर्षण बल को भार कहते हैं। इसे (W=mg) से प्रकट किया जाता है, जहाँ m वस्तु का द्रव्यमान और g उस पर लगने वाला पृथ्वी का गुरुत्वीय त्वरण है। किसी वस्तु का द्रव्यमान प्रत्येक स्थान पर स्थिर रहता है, जबकि भार विभिन्न स्थानों पर g के मान में परिवर्तित होने के कारण बदलता रहता है।
      g का मान चन्द्रमा पर पृथ्वी का 1/6 है, इसलिये उस व्यक्ति का भार चन्द्रमा पर 10KG रह जायेगा.
      अन्य ग्रहो पर उस व्यक्ति के भार की गणना उस ग्रह के गुरुत्विय त्वरण(g) को जानकर की जा सकती है।

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  14. sir
    Qu.1-yadi big bang ke pehle time nhi tha to big bang kab hua matlb kyo ki koi bhi work hone ka koi time hota h or jaha time nhi h vaha koi work ya ghtna kese ho sakti h kyo ki jaha time nai h vaha to kuch na to hilta h na hi koi kriya hoti h jaha time nhi h vaha to……….???????

    Qu.2-क्वार्क और प्रतिक्वार्क मिलकर अस्थायी मेसान(mesons) कण बनाते हैsir ji to ye kese ho sakta h kyo ki क्वार्क और प्रतिक्वार्क मिलकर visfot karte h
    Qu.3-sir हमें चीज रंगीन क्यों दिखती h

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    1. परमाणु (एटम) किसी तत्व का सबसे छोटा भाग है जिसमें उस तत्व के रासायनिक गुण निहित होते हैं। परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसका घनत्व बहुत अधिक होता है। नाभिक के चारो ओर ऋणात्मक आवेश वाले एलेक्ट्रान चक्कर लगाते रहते हैं जिसको एलेक्ट्रान घन (एलेक्ट्रान क्लाउड) कहते हैं। नाभिक, धनात्मक आवेश वाले प्रोटानों एवं अनावेशित (न्यूट्रल) न्यूट्रानों से बना होता है। जब किसी परमाणु में एलेक्ट्रानों की संख्या उसके नाभिक में स्थित प्रोटानों की संख्या के समान होती है तब परमाणु वैद्युकीय दृष्टि से अनावेशित होता है; अन्यथा परमाणु धनावेशित या ऋणावेशित ऑयन के रूप में होता है।

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    1. ऊष्मा या ऊष्मीय ऊर्जा ऊर्जा का एक रूप है जो ताप के कारण होता है। ऊर्जा के अन्य रूपों की तरह ऊष्मा का भी प्रवाह होता है। किसी पदार्थ के गर्म या शीतल होने के कारण उसमें जो ऊर्जा की कमी या वृद्धी होती है उसे उसकी ऊष्मीय ऊर्जा कहते हैं। अन्य ऊर्जा की तरह इसका मात्रक भी जूल (Joule) होता है पर इसे कैलोरी (Calorie) में भी व्यक्त करते हैं।

      गर्म या शीतल होने की माप तापमान कहलाता है जिसे तापमापी यानि थर्मामीटर के द्वारा मापा जाता है। लेकिन तापमान केवल ऊष्मा की माप है, खुद ऊष्मीय ऊर्जा नहीं। इसको मापने के लिए कई प्रणालियां विकसित की गई हैं जिनमें सेल्सियस(Celsius), फॉरेन्हाइट(Fahrenheit) तथा केल्विन(Kelvin) प्रमुख हैं।

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    1. ध्वनि अपने मार्ग मे माध्यम के परमाणुओं से टकराकर अपनी ऊर्जा खोते जाती है, कुछ समय पश्चात वह क्षीण हो जाती है।

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    1. जुगनू के शरीर में नीचे की ओर पेट में चमड़ी के ठीक नीचे कुछ हिस्सों में रोशनी पैदा करने वाले अंग होते हैं। इन अंगों में कुछ रसायन होता है। यह रसायन ऑक्सीजन के संपर्क में आकर रोशनी पैदा करता है। रोशनी तभी पैदा होगी जब इन दोनों पदार्थों और ऑक्सीजन का संपर्क हो। लेकिन, एक ओर रसायन होता है जो इस रोशनी पैदा करने की क्रिया को उकसाता है। यह पदार्थ खुद क्रिया में भाग नहीं लेता है। यानी रोशनी पैदा करने में तीन पदार्थ होते हैं। इन बातों को याद रख सकते हैं कि इनमें से एक पदार्थ होता है जो उत्प्रेरक का काम करता है। ऑक्सीजन और रोशनी पैदा करने वाले पदार्थ की क्रिया में उस तीसरे पदार्थ की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण होती है। जब ऑक्सीजन और रोशनी पैदा करने वाले पदार्थ की क्रिया होती है तो रोशनी पैदा होती है।
      पुराने जमाने में लोग रोशनी पैदा करने वाले कीटों को पकड़कर अपनी झोपडि़यों में उजाले के लिए उपयोग करते थे। ये लोग किसी छेद वाले बर्तन में जुगनूओं को पकड़ कर कैद कर लेते थे और रात को इन कीटों को रोशनी में अपना काम करते थे। दूसरे युद्ध में जापानी फौजी किसी संदेश या नक्शे को पढ़ने के लिए कीटों से निकलने वाली रोशनी की मदद लेते थे। वे इन कीटों को एकत्र करके रख लेते थे और जब रात को किसी सूचना को पढ़ना होता था तो वे हथेली में उस कीट का चूरा रखकर थूक से गीला करते थे और इस तरह से उन कीटों के चूर्ण से रोशनी निकलती और वे अपना संदेश पढ़ लेते थे। जुगनूओं के अलावा और भी जीव हैं जो रोशनी पैदा करते थे। कुछ बैक्टीरिया कुछ मछलियां कुछ किस्म के शैवाल, घोंघे और केकड़ों में भी रोशनी पैदा करने का गुण होता है। कुछ फफूंद भी चमकने की क्षमता रखती है। लगातार रोशनी पैदा कर कीटों को अपनी ओर आकर्षित करती है। कुकरमुत्ते की एक किस्म होती है जो रात में बड़ी तेजी से चमकती है। जब चमकती है तो ऐसा लगता है कि मानों छतरियों में कोई लेप लगा दिये गये हो।

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    1. 1.सौर मंडल (जिसमें पृथ्वी भी शामिल है) का निर्माण अंतरतारकीय धूल(intersteller dust) तथा गैस, जिसे सौर नीहारिका(solar nebula) कहा जाता है, के एक घूमते हुए बादल से हुआ है, यह बादल आकाशगंगा के केंद्र का चक्कर लगा रहा था। यह बादल बिग बैंग 13.7 Ga के कुछ ही समय बाद निर्मित हाइड्रोजन व हीलियम तथा अधिनव तारों द्वारा उत्सर्जित भारी तत्वों से मिलकर बना था। लगभग 4.6 Ga में, संभवतः किसी निकटस्थ अधिनव तारे(supernova) की आक्रामक लहर(shockwave) के कारण सौर निहारिका के सिकुड़ने(collapse) की शुरुआत हुई थी। संभव है कि इस तरह की किसी आक्रामक तरंग के कारण ही नीहारिका के घूमने व कोणीय आवेग(angular momentum) प्राप्त करने की शुरुआत हुई हो. धीरे-धीरे जब बादल इसकी घूर्णन-गति(spin) को बढ़ाता गया, तो गुरुत्वाकर्षण तथा जड़त्व के कारण यह एक सूक्ष्म-ग्रहीय चकरी(planetary disc) के आकार में रूपांतरित हो गया, जो कि इसके घूर्णन के अक्ष के लंबवत थी। इसका अधिकांश भार इसके केंद्र में एकत्रित हो गया और गर्म होने लगा, लेकिन अन्य बड़े अवशेषों के कोणीय आवेग तथा टकराव के कारण सूक्ष्म व्यतिक्रमों का निर्माण हुआ, जिन्होंने एक ऐसे माध्यम की रचना की, जिसके द्वारा कई किलोमीटर की लंबाई वाले सूक्ष्म-ग्रहों का निर्माण प्रारंभ हुआ, जो कि नीहारिका के केंद्र के चारों ओर घूमने लगे|

      पदार्थों के गिरने, घूर्णन की गति में वृद्धि तथा गुरुत्वाकर्षण के दबाव ने केंद्र में अत्यधिक गतिज ऊर्जा का निर्माण किया। किसी अन्य प्रक्रिया के माध्यम से एक ऐसी गति, जो कि इस निर्माण को मुक्त कर पाने में सक्षम हो, पर उस ऊर्जा को किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित कर पाने में इसकी अक्षमता के परिणामस्वरूप चकरी का केंद्र गर्म होने लगा. अंततः हीलियम में हाइड्रोजन के नाभिकीय गलन की शुरुआत हुई और अंततः, संकुचन के बाद एक टी टौरी तारे (T Tauri Star) के जलने से सूर्य का निर्माण हुआ। इसी बीच, गुरुत्वाकर्षण के कारण जब पदार्थ नये सूर्य की गुरुत्वाकर्षण सीमाओं के बाहर पूर्व में बाधित वस्तुओं के चारों ओर घनीभूत होने लगा, तो धूल के कण और शेष सूक्ष्म-ग्रहीय चकरी छल्लों में पृथक होना शुरु हो गई। समय के साथ-साथ बड़े खण्ड एक-दूसरे से टकराये और बड़े पदार्थों का निर्माण हुआ, जो अंततः सूक्ष्म-ग्रह बन गये। इसमें केंद्र से लगभग 150 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक संग्रह भी शामिल था: पृथ्वी. इस ग्रह की रचना (1% अनिश्चितता की सीमा के भीतर) लगभग 4.54 बिलियन वर्ष पूर्व हुई| और इसका अधिकांश भाग 10-20 मिलियन वर्षों के भीतर पूरा हुआ। नवनिर्मित टी टौरी तारे की सौर वायु ने चकरी के उस अधिकांश पदार्थ को हटा दिया, जो बड़े पिण्डों के रूप में घनीभूत नहीं हुआ था।

      कम्प्यूटर सिम्यूलेशन यह दर्शाते हैं कि एक सूक्ष्म-ग्रहीय चकरी से ऐसे पार्थिव ग्रहों का निर्माण किया जा सकता है, जिनके बीच की दूरी हमारे सौर-मण्डल में स्थित ग्रहों के बीच की दूरी के बराबर हो| अब व्यापक रूप से स्वीकार की जाने वाली नीहारिका की अवधारणा के अनुसार जिस प्रक्रिया से सौर-मण्डल के ग्रहों का उदय हुआ, वही प्रक्रिया ब्रह्माण्ड में बनने वाले सभी नये तारों के चारों ओर अभिवृद्धि चकरियों का निर्माण करती है, जिनमें से कुछ तारों से ग्रहों का निर्माण होता है।
      2. सूर्य के अंदर छेद नही है

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  15. मेरा आपसे अनुरोध हैं कि आप विज्ञान की किताब छ्पवायें जिससे की जिसके पास इंटरनेट की व्यव्स्था ना हो वो भी इस सुविधा का लाभ उठा सकें….धन्यवाद

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    1. ब्रह्माण्ड की हर वस्तु जिसका द्रव्यमान होता है, वह गुरुत्वाकर्षण उत्पन्न करता है। यह पदार्थ का स्वाभिविक गुण है। आप मै, टेबल , कुर्सी, पेड़, पहाड़ सभी का गुरुत्वाकर्षण है। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण हम महसूस करते है क्योंकि उसका द्रव्यमान हमारी तुलना मे अत्याधिक ज्यादा है।

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    1. परमाणु नाभिक के स्थायी होने के लिये उसमे न्युट्रान और प्रोटान की संख्या मे एक संतुलन होना चाहिये। न्युट्रान नाभिक को स्थायी रखने मे एक बड़ी भूमिका निभाता है। लेड(सीसा) से बड़े नाभिको मे न्युट्रान और प्रोटान का यह संतुलन सही ना होने से वे तत्व स्थायी नही होते है, और रेडीयोसक्रियता के फलस्वरूप छोटे नाभिक वाले तत्वो मे टूट जाते है।

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    1. कोई भी चीज तभी दिखाई देती है जब वो दृश्य प्रकाश के किसी हिस्से को अवशोषित करे। अगर वह चीज दृश्य प्रकाश के किसी भी हिस्से का अवशोषण नहीं करती तो चीज पारदर्शी होती है। और प्रकाश का अवशोषण करना या न करना यह सब उस पदार्थ के इलेक्ट्रान्स पर निर्भर करता है, जो प्रकाश से ऊर्जा लेकर उत्तेजित हो जाते हैं और अपनी कक्षा छोड़कर दूसरी कक्षा में चले जाते हैं। और लौटते समय एक निश्चित रंग के प्रकाश को छोड़ते हैं, जिससे वह चीज उस रंग की दिखाई देती है।

      जल प्रकाश का बहुत अच्छा अवशोषक है। जल विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम के लगभग अधिकतर हिस्से के प्रकाश को अवशोषित कर लेता है मगर यह द्रश्य प्रकाश और उसके आस पास के कुछ हिस्सों को अवशोषित करने के मामले में पीछे रह जाता है, मतलब बहुत कम अवशोषित कर पाता है। इसका कारण है कि जल के पास इस प्रकाश के इस क्षेत्र को अवशोषित करने लायक इलेक्ट्रोन नहीं होते। बस जल द्रश्य प्रकाश को अवशोषित नहीं कर पाता, जिस कारण वो रंगहीन दिखाई देता है। हाँ, मगर यह पूरी तरह रंगहीन नहीं होता। यह हल्का नीले रंग का होता है। इसका कारण लाल रंग के प्रकाश का बहुत ख़राब अवशोषण करना है।

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    1. पृथ्वी अपने गुरुत्वाकर्षण से अपने समस्त पदार्थ को बांधे रखती है। इस पदार्थ मे पानी, हवा और अन्य सभी चीजे आ जाती है।
      वैसे पृथ्वी अंतरिक्ष मे लटकता हुयी एक गेंद के जैसे है, इसमे उपर नीचे जैसी कोई दिशा नही होती है। केवल दो ही दिशा होती है पृथ्वी की ओर या पृथ्वी से दूर। गुरुत्वाकर्षण हर चीज को पृथ्वी की ओर खींच कर रखता है जिसमे जल, वायु, पत्थर मिट्टी, प्राणी सभी का समावेश होता है।

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    1. भार गुरुत्वाकर्षण पर निर्भर करता है, यदि आप पृथ्वी के सापेक्ष किसी पिंड के भार की गणना करे तो जैसे जैसे आप पृथ्वी से दूर जायेंगे भार कम होते जायेगा। निर्वात मे वह शून्य के समीप होगा।

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    1. उत्तरी हिंद महासागर मे उठने वाले चक्रवातों का नामकरण आठ देशो की कमीटी करती है। हर देश ने नामो की सूची दी हुयी है, वर्ष के हर चक्रवात का नाम इस सूची मे अक्षरो के क्रम के आधार पर किया जाता है। अगले वर्ष सूची से वही क्रम दोहराया जाता है।

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  16. guru ji,
    1. sanveg aur gatij urja me kya antar hai?
    vistaar se bataiye
    2. hum padarth se urja bante kai sthano par padhte hai. kintu urja se padarth kis prakar bana hoga?
    3. urja kisi na kisi padarth se sambandhit hoti hai. jaise gatij urja,sthitij urja,nabhikiya urja, usmiya urja vikiran urja,vidyut urja etc. yadi universe ke sabhi matter ko urja me badal de to jo urja banega woh kaisa hoga? kyonki uska kisi padharth se koi sambandh na hoga.

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    1. 1.संवेग : किसी वस्तु के द्रव्यमान व वेग के गुणनफल को संवेग (momentum) कहते हैं:

      p=mv
      गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) किसी पिण्ड की वह अतिरिक्त ऊर्जा है जो उसके रेखीय वेग अथवा कोणीय वेग अथवा दोनो के कारण होती है।
      KE=1/2mv^2

      2.ऊर्जा से पदार्थ बनाया जा सकता है, कण त्वरको (particle acclerator) मे यह प्रक्रिया होती है। उदाहरण के लिये CERN के LHC कण त्वरक मे जब दो प्रोटानो को अत्याधिक ऊर्जा मे टकराया जाता है तब इस टकराव मे छोटे कण जैसे क्वार्क, मेसान इत्यादि बनते है, कुछ भाग ऊर्जा मे परिवर्तित होता है, इस ऊर्जा का कुछ भाग पुनः कणो मे भी परिवर्तित होता है। इस ब्लाग पर कण भौतिकी से संबधित कुछ लेखो मे यह अच्छे से बताया गया है, उन्हे भी देखें।

      3. ऊर्जा और पदार्थ भिन्न नही है एक ही वस्तु के भिन्न रूप है। पदार्थ को आप स्थिर रूप मे ऊर्जा मान सकते है(Energy at Rest) तथा ऊर्जा को कार्य करता पदार्थ/ऊर्जा(Energy at Work). ध्यान रहे यह गतिज ऊर्जा से भिन्न है। गतिज ऊर्जा की परिभाषा देखें तो वह कार्य करती ऊर्जा का एक भाग है। कुल ऊर्जा = द्रव्यमान + गतिज ऊर्जा + उस पदार्थ मे समाहित अन्य ऊर्जायें…
      जब ब्रह्मान्ड का जन्म हुआ था तब समस्त ऊर्जा एक बिंदु पर थी, बिग बैंग के पश्चात वह ऊर्जा के अन्य रूप जैसे(विकिरण, गुरुत्वाकर्षण विद्युत-चुंबकिय बल इत्यादि) और पदार्थ के रूप मे परिवर्तित हुयी। यह संभव है कि यदि ब्रह्मांड का अंत एक महासंकुचन के रूप मे होता है तब ब्रह्माण्ड का समस्त पदार्थ और ऊर्जा पुनः एक बिंदु के रूप मे समाहित हो जायें।

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      1. 2. to big-bang ke pehle ki sari energy jo ek bindu par kendrit thi wo matter me convert kaise hua? kya wo bhi isi prakar hua? lekin iske liye pehle se hi do proton ki zaroorat hai to phir ye kahaan se aaye? to Question ye hai ki jab sirf urja ka astitv tha to yah matter me kaise badla?????
        3. guru ji, aapne yah likha hai ki sari Energy ek bindu par kendrit thi par aapne yah nahi likha ki yah kaun si ya kis prakar ki urja thi? mera prashn abhi tak anuttarit hai.

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      2. 2.ब्रह्मांड के जन्म और ऊर्जा से पदार्थ के निर्माण के बारे मे हम प्लैंक काल अर्थात 10^-35 सेकेंड के बाद के बारे मे ही जानते है, उसके पहले क्या हुआ वह अज्ञात है। प्लैंक काल(५) के १० -३५ सेकंड के बाद एक संक्रमण के द्वारा ब्रह्मांड की काफी तिव्र गति से वृद्धी(exponential growth) हुयी। इस काल को अंतरिक्षीय स्फीति(cosmic inflation) काल कहा जाता है। इस स्फीति के समाप्त होने के पश्चात, ब्रह्मांड का पदार्थ एक क्वार्क-ग्लूवान प्लाज्मा की अवस्था में था, जिसमे सारे कण गति करते रहते हैं। जैसे जैसे ब्रह्मांड का आकार बढ़ने लगा, तापमान कम होने लगा। एक निश्चित तापमान पर जिसे हम बायरोजिनेसीस संक्रमण कहते है, ग्लुकान और क्वार्क ने मिलकर बायरान (प्रोटान और न्युट्रान) बनाये। इस संक्रमण के दौरान किसी अज्ञात कारण से कण और प्रति कण(पदार्थ और प्रति पदार्थ) की संख्या मे अंतर आ गया। तापमान के और कम होने पर भौतिकी के नियम और मूलभूत कण आज के रूप में अस्तित्व में आये। बाद में प्रोटान और न्युट्रान ने मिलकर ड्युटेरीयम और हिलीयम के केंद्रक बनाये, इस प्रक्रिया को महाविस्फोट आणविक संश्लेषण(Big Bang nucleosynthesis.) कहते है। जैसे जैसे ब्रह्मांड ठंडा होता गया, पदार्थ की गति कम होती गयी, और पदार्थ की उर्जा गुरुत्वाकर्षण में तबदील होकर विकिरण की ऊर्जा से अधिक हो गयी। इसके ३००,००० वर्ष पश्चात इलेक्ट्रान और केण्द्रक ने मिलकर परमाणु (अधिकतर हायड्रोजन) बनाये; इस प्रक्रिया में विकिरण पदार्थ से अलग हो गया । यह विकिरण ब्रह्मांड में अभी तक ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग विकिरण (cosmic microwave radiation)के रूप में बिखरा पड़ा है।

        कालांतर में थोड़े अधिक घनत्व वाले क्षेत्र गुरुत्वाकर्षण के द्वारा और ज्यादा घनत्व वाले क्षेत्र मे बदल गये। महा-विस्फोट से पदार्थ एक दूसरे से दूर जा रहा था वही गुरुत्वाकर्षण इन्हें पास खिंच रहा था। जहां पर पदार्थ का घनत्व ज्यादा था वहां पर गुरुत्वाकर्षण बल ब्रह्मांड के प्रसार के लिये कारणीभूत बल से ज्यादा हो गया। गुरुत्वाकर्षण बल की अधिकता से पदार्थ एक जगह इकठ्ठा होकर विभिन्न खगोलीय पिंडों का निर्माण करने लगा। इस तरह गैसो के बादल, तारों, आकाशगंगाओं और अन्य खगोलीय पिंडों का जन्म हुआ ,जिन्हें आज हम देख सकते है।
        3. बिग बैंग से पहले कुछ नही था केवल ऊर्जा थी, इसका जो भी प्रकार था वह हमे ज्ञात सभी प्रकारों (गुरुत्वाकर्षण , विद्युतचुंबकिय, कमज़ोर नाभिकिय, मज़बूत नाभिकिय) से भिन्न थी। इसका सही स्वरूप अभी ज्ञात नही है।

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    1. बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व से कम होता है। बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व का ९/१० होता है। जल का घनत्व अधिकतम 3.98 °C पर होता है।जमने पर जल का घनत्व कम हो जाता है और यह इसका आयतन 9% बढ़ जाता है। यह गुण एक असामान्य घटना को जन्म देता जिसके कारण: बर्फ जल के उपर तैरती है

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    1. परमाणु (एटम) किसी तत्व का सबसे छोटा भाग है जिसमें उस तत्व के रासायनिक गुण निहित होते हैं। परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसका घनत्व बहुत अधिक होता है। नाभिक के चारो ओर ऋणात्मक आवेश वाले एलेक्ट्रान चक्कर लगाते रहते हैं जिसको इलेक्ट्रान घन (इलेक्ट्रान क्लाउड) कहते हैं। नाभिक, धनात्मक आवेश वाले प्रोटानों एवं अनावेशित (न्यूट्रल) न्यूट्रानों से बना होता है। जब किसी परमाणु में इलेक्ट्रानों की संख्या उसके नाभिक में स्थित प्रोटानों की संख्या के समान होती है तब परमाणु वैद्युकीय दृष्टि से अनावेशित होता है; अन्यथा परमाणु धनावेशित या ऋणावेशित ऑयन के रूप में होता है।

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  17. sir in the book written by mr. feynman it is said
    “that if you were standing at an srm’s
    length from someone and each of you have one percent more electrons then protons the repelling force would be so strong it can lift the mass equal to the entire earth” so sir in current carrying wires the the electrons are too much then compared to protons so sir why they have not force to lift the entire earth and second question means what is a two dimansional sphere how can a sphere be
    in two dimansion

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    1. गूगल उत्पाद नही एक कम्पनी है। गूगल सन्युक्त एक अमरीकी बहुराष्ट्रीय सार्वजनिक कम्पनी है, जिसने इंटरनेट सर्च, क्लाउड कंप्युटिंग और विज्ञापन तंत्र में पूंजी लगाया है। यह कम्पनी स्टैनफ़ौर्ड यूनिर्वसिटी से पीएचडी के दो छात्र लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन द्वारा संस्थापित की गयी थी।

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    1. पृथ्वी अथवा पृथिवी नाम पौराणिक कथा पर आधारित है जिसका संबध महाराज पृथु से है। अन्य नाम हैं – धरा, भूमि, धरित्री, रसा, रत्नगर्भा इत्यादि। अंग्रेजी में अर्थ और लातीन भाषा में टेरा।

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    1. १.सभी आकाशगंगाये प्रकाशगति से या उससे अधिक गति से दूर नही जा रही है।
      २. यदि वे प्रकाशगति से भी जा रही हो तो भी कभी ना कभी उनका प्रकाश तो पहुंचेगा ही।

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    1. ये समस्या DOS, Windows आपरेटींग सीस्टम के साथ ही है। Mac, Unix, Linux जैसे आपरेटींग सीस्टम मे यह समस्या नही है।
      DOS, Windows मे CON ही नही CON, PRN, AUX, CLOCK$, NUL, COM1, COM2, COM3, COM4, COM5, COM6, COM7, COM8, COM9,
      LPT1, LPT2, LPT3, LPT4, LPT5, LPT6, LPT7, LPT8, LPT9 के नाम से भी फोल्डर नही बना सकते है क्योंकि ये सभी नाम किसी विशेष कार्य के लिये आरक्षित है। जैसे CON का अर्थ है कंसोल अर्थात मानीटर, आपरेटींग सीस्टम के लिये CON का अर्थ मानीटर है, PRN प्रिंटर के लिये…

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    1. रोटर प्रणाली या रोटर, हैलीकॉप्टर का एक घूमता हुआ भाग होता है, वह हवा को नीचे धकेलता है। न्युटन के तीसरे नियम के फलस्वरूप हवा हेलिकाप्टर को उपर धकेलती है।
      आगे बढ़ने के लिये हेलिकाप्टर के पीेछ्ले भाग मे भी रोटर होती है जो उसे आगे बढ़ने/दिशा बदलने मे मदद करती है।

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    1. प्रोटान धनात्मक आवेश लिये होते है, इलेक्ट्रान ऋणात्मक आवेश लिये होते है। न्युट्रान पर कोई आवेश नही होता है।

      परमाणु केंद्रक मे प्रोटान और न्युट्रान होते है, जबकि इस केंद्र की परिक्रमा करते इलेक्ट्रान होते है, क्योंकि धनात्मक प्रोटान ऋणात्मक इलेक्ट्रान को आकर्षित करता है। किसी परमाणु मे जितने प्रोटान होते है उतने ही इलेक्ट्रान होते है, अर्थात कुल आवेश शून्य! इसलिये पदार्थ मे वह गुण नही रहता है।

      रोशन, आपके बहुत से प्रश्नो का उत्तर इस साइट के लेखो मे पहले से ही है, एक बार उन्हे पढ़े। इस पन्ने पर कुछ लिंक है, सभी लेखो को पढ़े, आपके बहुत से प्रश्नो का उत्तर मिल जायेगा।
      https://vigyanvishwa.in/qp/

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    1. क्वार्क का स्वतंत्र अस्तित्व नही होता है, वे प्रोटान और न्युट्रान के अंदर ही हो सकते है। प्रोटान और इलेक्ट्रान दोनो विद्युत आवेशित होते है जिससे वे सक्रिय होते है।

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    1. किसी भी कण के साधारण अवस्था से उत्तेजीत अवस्था मे जाने के लिये ऊर्जा आवश्यक होती है, यह ऊर्जा उसे फोटानो से मिलती है। फोटान किसी प्रकाशस्रोत, विद्युत स्रोत, उष्णता स्रोत इत्यादि से प्राप्त हो सकता है।

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  18. aapke jawab se bahut si jankari mili…..
    dusra sawal kya taare par ho rahe nabhikiay sanlayan prakriya me radiation paida hoti hai ya nahi……..agar nahi to koun ,agar han to sabhi padarth radio-active hote hain…..aur humara sarir bhi radio-active hai…..to phir radiation ka hum par bura asar koun parta hai….

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    1. 1.रेडीयेशन(विकिरण) और रेडीयो सक्रियता दोनो अलग होते है।
      2.नाभिकिय संलयन से जो ऊर्जा निकलती है वह विकिरण गामा किरण के रूप मे होता है, जिसका अधिकतर भाग तारे के केंद्र से सतह तक आते आते साधारण प्रकाश मे बदल जाता है। ध्यान दें कि गामा किरण और साधारण प्रकाश दोनो विद्युत चुंबकिय तरंग है। प्रकाश एक चौड़े वर्णक्रम मे होता है, जिसके एक ओर हानिकारक अत्यंत अधिक ऊर्जा वाली किरणे जैसे जैसे गामा किरण,पराबैगनी किरणे है, मध्य मे दृश्य प्रकाश और नीचे अवरक्त किरणे, रेडीयो तरंग(मोबाइल/टीवी वाली) होती है। इसमे से केवल गामा किरण और पराबैगनी किरण ही हानिकारक है जिनसे कैंसर हो सकता है। बाकि सभी किरणो से कोई हानि नही होती है। अधिक जानकारी के लिये देखें:
      https://vigyanvishwa.in/2011/07/18/emf/

      3.रेडीयो सक्रियता : यह सीसे से भारी तत्वों जैसे युरेनीयम, रेडीयम मे होती है क्योंकि इनके नाभिक अपने बड़े आकार के कारण अस्थिर होते है। स्थिरता प्राप्त करने वे अल्फा( हिलीयम का नाभिक या दो प्रोटान दो न्युट्रान), बीटा किरण इलेक्ट्रान का उत्सर्जन कर छोटा नाभिक प्राप्त करने का प्रयास करते है। इस प्रक्रिया मे अल्फा कण या बीटा कण के साथ गामा किरण(ऊर्जा) का भी उत्सर्जन होता है। यह अत्याधिक हानिकारक होता है। अधिक जानकारी के लिये देखें:
      https://vigyanvishwa.in/2012/04/02/raqp/

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    1. अधिकतर पदार्थ(99% से ज्यादा) प्रोटान न्युट्रान और इलेक्ट्रान से बना होता है। इसमे से प्रोटान दो अप क्वार्क और एक डाउन क्वार्क से बना होता है। जबकि न्युट्रान मे दो डाउन और एक अप क्वार्क होता है। हम कह सकते है कि अधिकतर पदार्थ अप क्वार्क, डाउन क्वार्क और इलेक्ट्रान से बना है। बाकि क्वार्क और अन्य कणो की संख्या नगण्य है।
      जिस तरह से हायड्रोजन से हिलियम बनता है बाकि तत्व भी बनते है। सभी तत्व इसी प्रक्रिया से ही बनते है। इस लेख को देखें https://vigyanvishwa.in/2014/09/02/essentialelementforlife/

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    1. बादल फटना, (अन्य नामः मेघस्फोट, मूसलाधार वृष्टि) बारिश का एक चरम रूप है। इस घटना में बारिश के साथ कभी कभी गरज के साथ ओले भी पड़ते हैं। सामान्यत: बादल फटने के कारण सिर्फ कुछ मिनट तक मूसलाधार बारिश होती है लेकिन इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बादल फटने की घटना अमूमन पृथ्वी से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर घटती है। इसके कारण होने वाली वर्षा लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है। कुछ ही मिनट में 2 सेंटी मीटर से अधिक वर्षा हो जाती है, जिस कारण भारी तबाही होती है।

      मौसम विज्ञान के अनुसार जब बादल भारी मात्रा में आद्रता यानि पानी लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वो अचानक फट पड़ते हैं, यानि संघनन बहुत तेजी से होता है। इस स्थिति में एक सीमित इलाके में कई लाख लीटर पानी एक साथ पृथ्वी पर गिरता है, जिसके कारण उस क्षेत्र में तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है। इस पानी के रास्ते में आने वाली हर वस्तु क्षतिग्रस्‍त हो जाती है। भारत के संदर्भ में देखें तो हर साल मॉनसून के समय नमी को लिए हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं, लिहाजा हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में सामने पड़ता है।

      जब कोई गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर 26 जुलाई 2005 को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहां बादल किसी ठोस वस्‍तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे।

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    1. आपने जो कहा कि ब्रह्मा्ड के विस्तार की गति कम हो रही है, यह विचार वर्तमान अध्यन के अनुसार सही नही है, वर्तमान जानकारी के अनुसार श्याम ऊर्जा की वजह से ब्रह्मा्ड के विस्तार की गति को त्वरणमील रहा है

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  19. sir mene kahi par padha tha ki jab brmhand ki uttpati hui thi tab iske felne ki rate aaj ki tulna me jada thi or ek din ye ruk jaega fir vapas brmhand sikudega
    lekin sir dark Energy ke karan to ye gti tej ho rahi h matlab dark energy ke karan to galaxy ke dur jane ki spped me acceleration ho raha h to sir dono me se kya sahi h

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    1. न्युट्रीनो की गति प्रकाश से कम है। जिनेवा मे जो प्रयोग हुआ था उसके उपकरणो मे गलती थी जिससे वे गलत परिणाम दिखा रहे थे।

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  20. sar kya meri parikalpn sahi hogi ki :-
    big beng thevry ke hisab se brmhand ek point par kendrit tha lekin kya esa nahi ho sakta ki vo bindu ek atom ho jiska atomic number bahot jada ho or itne bade nucleus ke karan uske aas pas arbo electron Electron bahot teji se ghum rahe ho kyo ki ek dinhamara bramhnd sikude ga to jese hamare sun me H2 se He banta h vese hi hamre brmhand me bhi to ho sakta h

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    1. HIV पीड़ित व्यक्ति का अंग दान केवल HIV पीड़ित को किया जा सकता है। स्वस्थ व्यक्ति को HIV पीड़ित व्यक्ति का अंग नही लगाया जाता क्योंकि HIV का वायरस शारीरिक द्रव्य जैसे खून से फैलता है।

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    1. कलन (Calculus) गणित का बहुत ही ख़ास क्षेत्र है, जो बीजगणित और अंकगणित से विकसित हुआ है ।

      कलन गणित की एक विशेष शाखा है जिसमें बीजगणित की छह मूल क्रियाओं-जोड़ना, घटाना इत्यादि-के अतिरिक्त सीमाक्रिया का प्रयोग विशेष रूप से होता है। इस क्रिया का प्रयोग 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आरंभ हुआ। इससे बीजगणित और ज्यामिति से भिन्न गणित की एक नवीन शाखा कलन का जन्म हुआ। वैसे तो अब भी सीमा की कल्पना बिल्कुल नई न थी, क्योंकि ज्यामिति में वृत्त का क्षेत्रफल उसके अंतर्लिखित बहुभुज की सीमा मानकर किया जाता था तथा बेलन और शंकु का घनफल समपार्श्व और सूचीस्तंभ की सीमा मानकर।

      कलन दो भागों का आपसी मिलन है : समाकलन और अवकलन । दोनो भागों में एक ख़ास विषय रहता है : अनन्त और अतिसूक्ष्म राशियों की मदद से गणना करना ।
      समाकलन (Integral Calculus) यह एक विशेष प्रकार की योग क्रिया है जिसमें अति-सूक्ष्म मान वाली (किन्तु गिनती में अत्यधिक, अनन्त) संख्याओं को जोड़ा जाता है। किसी वक्र तथा x-अक्ष के बीच का क्षेत्रफल निकालने के लिये समाकलन का प्रयोग करना पडता है।
      अवकलन (Differential Calculus) किसी राशि के किसी अन्य राशि के सापेक्ष तत्कालिक बदलाव के दर का अध्ययन करता है । इस दर को ‘अवकलज’ (en:Derivative) कहते हैं ।

      किसी फलन के किसी चर रासि के साथ बढ़ने की दर को मापता है। जैसे यदि कोई फलन y किसी चर रासि x पर निर्भर है और x का मान x1 से x2 करने पर y का मान y1 से y2 हो जाता है तो (y2-y1)/(x2-x1) को y का x के सन्दर्भ में अवकलज कहते हैं। इसे dy/dx से निरूपित किया जाता है। ध्यान रहे कि परिवर्तन (x2-x1) सूष्म से सूक्ष्मतम (tend to zero) होना चाहिये। इसी लिये सीमा (limit) का अवकलन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। किसी वक्र(curve) का किसी बिन्दु पर प्रवणता (slope) जानने के लिये उस बिन्दु पर अवकलज की गणना करनी पड़ती है।
      कैलकुलस का उपयोग सभी भौतिक विज्ञानों, इंजीनियरी, संगणक विज्ञान, सांख्यिकी, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, आयुर्विज्ञान, एवं अन्यान्य क्षेत्रों में होता है। जहाँ भी किसी डिजाइन समस्या का गणितीय मॉडल बनाया जा सकता हो और इष्टतम (optimal) हल प्राप्त करना हो, कलन का उपयोग किया जाता है। कलन की सहायता से हम परिवर्तन के अनियत चर दरों (non-constant rates) को भी लेकर आसानी से आगे बढ़ पाते हैं।
      कैलकुलस के विकास में मुख्य योगदान लैब्नीज (Leibniz) और आइजक न्यूटन का है। किन्तु इसकी जड़े बहुत पुरानी हैं। भारत के केरल के महान गणितज्ञ माधव ने चौदहवीं शताब्दी में कैलकुलस के कई महत्वपूर्ण अवयवों की चर्चा की और इस प्रकार कैलकुलस की नींव रखी। उन्होने टेलर श्रेणी, अनन्त श्रेणियों का सन्निकटीकरण (infinite series approximations), अभिसरण (कन्वर्जेंस) का इन्टीग्रल टेस्ट, अवकलन का आरम्भिक रूप, अरैखिक समीकरणों के हल का पुनरावर्ती (इटरेटिव) हल, यह विचार कि किसी वक्र का क्षेत्रफल उसका समाकलन होता है, आदि विचार (संकल्पनाएं) उन्होने बहुत पहले लिख दिया। फर्मत तथा जापानी गणितज्ञ सेकी कोवा ने भी इसमें योगदान दिया।

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    1. प्रकाश विद्युत चुंबकीय विकिरण है। यह सामान्यत किसी कण के द्वारा फोटान उत्सर्जन करने से उत्पन्न होता है। जैसे किसी बल्ब के फिलामेंट मे इल्केट्रान गर्म हो कर फोटान उत्सर्जित करते है। सूर्य मे फोटान उतसर्जन नाभिकिय प्रक्रियाओं द्वारा होता है।

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  21. सरजी मुझे एक बड़ी batrry बनानी है जिस्से पुरे घर में उजाला हो सके. battry जिससे ज्यादा power और कम खर्चे में बनाया जा सके उसके लिए कोई लेख या कोई हिंदी साइड बताये!!

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    1. प्रभात जी, आप घर पर आसानी से अम्ल और सीसे (Lead Acid) वाली बैटरी ही आसानी से बना सकते है. लेकिन जितने खर्चे मे आप इसे बनायेगे उससे काफी कम खर्च मे आपको बाजार मे ही मील जायेगी।
      मै आपका उद्देश्य समझ रहा हुँ, लेकिन घर पर बनाना व्यवहारिक नही होगा.

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    1. जब किसी तारे की परिक्रमा करता कोई ग्रह अपने मातृ तारे/प्रकास श्रोत के सामने से जाता है, उस तारे के प्रकाश मे थोड़ी कमी आती है, इसे संक्रमण(ग्रहण) कहते है। जितना बड़ा ग्रह होगा उतना ज्यादा प्रकाश रोकेगा। प्रकाश की इस कमी को वेधशाला(दूरबीन पकड़ लेती है और प्रकाश मे आयी कमी की मात्रा से उसका आकार ज्ञात हो जाता है।
      जब यह ग्रह अपने तारे की परिक्रमा करते है तब वे अपने मातृ तारे को भी अपने गुरुत्व से विचलीत करते। इस विचलन को भी उस तारे के प्रकाश से मापा जा सकता है, यह विचलन उसके प्रकाश मे आने वाले डाप्लर प्रभाव से देखा जाता है। यह डाप्लर विचलन दर्शाता है कि उस तारे पर ग्रह का गुरुत्व कितना प्रभाव डाल रहा है और यह गुरुत्व उस ग्रह के द्रव्यमान पर निर्भर करता है। इस प्रणाली मे हम उसके विशाल ग्रहो द्वारा डाले गये गुरुत्विय प्रभाव को मापने मे सफल हो पाये है, जिससे हम उसके विशाल ग्रहो का द्रव्यमान जानते है।
      इससे सबधित ये लेख देखे https://antariksh.wordpress.com/category/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9/

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  22. आशीष जी,
    आप मुझे क्रप्या ये बताइए की -‘ आखिर कोई ठोस पदार्थ प्रकाश की चाल या उससे अधिक रफ़्तार से क्यों नहीं चल सकता ‘
    प्लीज इस प्रश्न का उत्तर दे प्लीज ……………………..!

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    1. ऐसा कोई देश नही है जहाँ पर दो महिने का दिन होता है। उत्तरी ध्रुव के समीप के देश जैसे नॉर्वे में गर्मियों में रात के बारह बजे के बाद तक सूरज चमकता है। रातें कुछ घंटे की होती हैं, उस दौरान भी सूरज क्षितिज के करीब होता है इसलिए रातें अंधियारी नहीं होतीं। इसलिए इसे अर्धरात्रि के सूर्य वाला देश कहते हैं।

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    1. किसी भी पदार्थ का ऊच्च ऊर्जा वाली स्थिति से निम्न ऊर्जा वाली स्थिति मे आने का प्रयास प्राकृतिक है। उष्ण होने पर पदार्थ ऊच्च ऊर्जा वाली स्थिति मे होता है, विकिरण(radiation) द्वारा ऊर्जा का ह्रास होता है, इसलिये उष्ण होने पर पदार्थ विकिरण उत्सर्जोत करता है।

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    1. सैद्धांतिक रूप से सापेक्षतावाद का सिद्धांत समय यात्रा का विरोध नही करता है। इस सिद्धांत के अनुसार हर अंतरिक्षयात्री भविष्य की यात्रा कर आया हुआ समय यात्री है।

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    1. जल जलता नही है क्योंकि वह पहले से जला हुआ है। जैसे कार्बन(कोयला) जल कर कोयला बनाता है वैसे ही हायड़ोजन जल कर H2O बनाता है।

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  23. सर में सिर्फ इतना जानना चाहता हूँ की यदि ब्रह्मांड की उत्पति बिंग बेंग से हुई या किसी भी रीज़न से हुई हो… आखिरकार वो सुरुआती एनेर्जी या मेटर जो की एक बिंदु पर केन्द्रित था आया कहा से… !!

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    1. अभी इस बारे मे वैज्ञानिक एक मत नही है। कुछ के अनुसार बिंदु से ब्रह्माण्ड और ब्रह्माण्ड से बिंदु का एक अनंत चक्र है जो चलते रहता है। अन्य वैज्ञानिक इस बारे मे मौन है।

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  24. सर
    क्या ब्रह्माण्ड मे 4 से अधिक डायमेंशन हो सकते है
    यदि है तो वो स्पेस कैसे होगा ? और कहा होगा ?
    क्योकि जब हम स्पेस को देखते है तो स्पेस अनंत है ?

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  25. sar,
    mere prsn ka ans kab doge
    big beng thevry ke hisab se brmhand ek point par kendrit tha lekin kya esa nahi ho sakta ki vo bindu ek atom ho jiska atomic number bahot jada ho or itne bade nucleus ke karan uske aas pas arbo electron Electron bahot teji se ghum rahe ho
    sar ans jaldi dena plz………………
    me ye pahle bhi puch cuka hu

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    1. गाड पार्टीकल या हिग्स बोसान यह बलवाहक कण है, बल वाहक कणो के एन्टी पार्टीकल या प्रति कण नही होते है। बीना किसी श्रोत के कण या ऊर्जा अपना विस्तार नही कर सकते है।

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      1. kabhi kabhi ese sapne aate hai jo future me sach hote….jab ye sach hote hai tab hame pata chalta hai ki ye pahle ho chuka hai ya hum dekh chuke hai….ye kaise hota hai…kya ham future dekh sakte hai….ye future hamare universe se bahar hai…jab ham sote hai to hamara mind hamare universe se bahar jata hai …..

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    1. गाड पार्टीकल/हिग्स बोसान यह एक तरह का बल वाहक कण है। फोटान भी बल वाहक कण है और वह विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा का वहन करता है, जबकि हिग्स बोसान पदार्थ के द्रव्यमान का वहन करता है।

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    1. पृथ्वी से लगभग 80 किलोमीटर के बाद का संपूर्ण वायुमंडल आयानमंडल कहलाता है। आयतन में आयनमंडल अपनी निचली हवा से कई गुना अधिक है लेकिन इस विशाल क्षेत्र की हवा की कुल मात्रा वायुमंडल की हवा की मात्रा के 200वें भाग से भी कम है। आयनमंडल की हवा आयनित होती है और उसमें आयनीकरण के साथ-साथ आयनीकरण की विपरीत क्रिया भी निरंतर होती रहती हैं। प्रथ्वी से प्रषित रेडियों तरंगे इसी मंडल से परावर्तित होकर पुनः प्रथ्वी पर वापस लौट आती हें ।
      आयनमंडल में आयनीकरण की मात्रा, परतों की ऊँचाई तथा मोटाई, उनमें अवस्थित आयतों तथा स्वतंत्र इलेक्ट्रानों की संख्या, ये सब घटते बढ़ते हैं।रेडियो तरंगों (विद्युच्चुंबकीय तरंगों) के प्रसारण में सबसे अधिक है। सूर्य की पराबैगनी किरणों से तथा अन्य अधिक ऊर्जावाली किरणों और कणिकाओं से आयनमंडल की गैसें आयनित हो जाती हैं। ई-परत अथवा केनली हेवीसाइड परत से, जो अधिक आयनों से युक्त है, विद्युच्चुंबकीय तरंगें परावर्तित हो जाती हैं। किसी स्थान से प्रसरित विद्युच्चुबंकीय तरंगों का कुछ भाग आकाश की ओर चलता है। ऐसी तरंगें आयनमंडल से परावर्तित होकर पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर पहुँचती हैं। लघु तरंगों (शार्ट वेव्स) को हजारों किलोमीटर तक आयनमंडल के माध्यम से ही पहुँचाया जाता है।

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    1. iska ans bhi me hi de deta hu. esa APVARTAN ke karan nahi balki angle of contact ke karan hota h.
      jab kisi thos ki satah drv ke sampark me ati h to contact me aye bhag me drv ki sath vakrakar hoti h is sthiti me kisi contact poiny drv par khici gai rekha thos ki sath se jo angle banati h use angle of contact kahte h or is liye hi पानी से भरी किसी बर्तन की तली में ऊपर उठा हुआ दिखाई देता है or agar ye angle 90′ hoga ya isse kam hoa to ye bhigota drav hoga or cepillary tube me upar cadega jese whater or yadi ye angle 90′ se jada hoga to ye drv kisi vastu ko gila nahi karega or cepillary tube me niche girega jese para

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  26. उपग्रह( satellite) के अंदर प्रतेयक वस्तु भारहीनता(weightlessness) की अवस्था में होती है मतलब उपग्रह के अंदर बैठे अंतरिक्ष-यात्री(astronaut) को भारहीनता का अनुभव होगा !उपग्रह के तल द्वारा यात्री पर लगाया गया प्रतिकिर्या(reaction) बल शून्य होता है ! इसलिए उपग्रह के अंदर यदि कोई व्यक्ति गिलास से पानी पीना चाहे ,तो वह नहीं पी सकेगा ,क्योंकि गिलास टेड़ा करते ही उसमे से पानी निकलकर बाहर बूंदो के रूप में तैरने लगेगा ! यहाँ तक ठीक है, न ?
    अब आते है ,अपने प्रश्न पर -तो बताइये की चन्द्रमा भी पृथ्वी का उपग्रह है ,लेकिन वहाँ पर भारहीनता नहीं है ,क्यों ?

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    1. विषुवतीय त्रिज्या ३,३९६.२ ± ०.१ कि॰मी॰, ०.५३३ पृथ्वी के तुल्य
      ध्रुवीय त्रिज्या ३,३७६.२ ± ०.१ कि॰मी॰, ०.५३१ पृथ्वी के तुल्य
      द्रव्यमान ६.४१८५×१०^२३ कि.ग्रा., ०.१०७ पृथ्वी के तुल्य

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    1. eV यह ऊर्जा मापने की ईकाई है लेकिन परमाण्विक कणो का द्रव्यमान भी इसी ईकाई मे मापा जाता है। ध्यान दें कि द्र्व्यमान और ऊर्जा एक ही है। द्रव्यमान को स्थिर ऊर्जा कह सकते है, उसी तरह ऊर्जा को कार्य करता हुआ द्रव्यमान भी कह सकते है।

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  27. काल-अंतराल एक विशाल चादर के जैसे हैं और पदार्थ उसमे अपने द्रव्यमान से एक झोल उत्पन्न करते है। यह झोल ही गुरुत्वाकर्षण बल उत्पन्न करता है। गुरुत्विय तरंगे इसी चादर(काल-अंतराल) मे उत्पन्न लहरे हैं।
    ye sahi he ki nutan ka f=Mm/r2

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    1. अभिषेक , दोनो सही है! लेकिन न्युटन के नियमों की अपनी सीमा है, वे प्रकाशगति के समीप गति वाले कण/पिंड या अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण मे कार्य नही करते है।
      चादर वाली तुलना आसानी से समझाने के लिये है।

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    1. अमित, सूर्य गुरुत्विय ऊर्जा से नही चमकता है। सूर्य के अधिकांश जीवन में, ऊर्जा p–p (प्रोटॉन-प्रोटॉन) श्रृंखलाEn कहलाने वाली एक चरणबद्ध श्रृंखला के माध्यम से नाभिकीय संलयन द्वारा उत्पादित हुई है; यह प्रक्रिया हाइड्रोजन को हीलियम में रुपांतरित करती है, वह अपने अंदर की हायड्रोजन को हिलीयम बनाता है उससे ऊर्जा प्राप्त करता है। सूर्य अगले 5 अरब वर्ष तक चमकेगा।

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  28. (1) आशीष जी, स्वयं के अस्तित्व एवम् उसकी क्षमता को “बिना जाने” कोई भी तकनीक, चाहे वो धर्म के रुप में हो या विज्ञान के रुप में, जिसे हमने स्वयं के लिए, विकसित करने का निर्णय लिया है वो निर्णय, हमारे बुद्धिजीवी होने के आधार पर, किसी भी दृष्टिकोण से, हमारे द्वारा लिया गया क्या एक उचित “निर्णय” है ?

    (2) जबकि हम अपने दैनिक जीवन में भी, किसी भी वस्तु का तभी उपयोग करते हैं, जब हमें उस वस्तु के अस्तित्व का और उसकी क्षमता का पूर्ण ज्ञान होता है, चाहे वो वस्तु “पैर का जूता” ही क्यों ना हो ।

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  29. श्रीमान,
    मैं कुछ प्रश्नों का उत्तर जानना चाहता हूँ।

    प्रश्न-क्या ईश्वर का अस्तित्व हैं?
    प्रश्न- विश्व का सबसे विकसित लिपि किस भाषा का हैं ?
    (1)हिंदी (2) अंग्रेजी (3)मंदारिन (4)अरबी।
    प्रश्न – क्या विज्ञान के दृष्टिकोण से जिव हत्या करना उचित हैं ? तथा मांस खाना ।
    प्रश्न – किस देश के जन सर्प खाते हैं ?
    प्रश्न -विश्व का सबसे मूल्यवान धातु क्या हैं ?
    प्रश्न -सीमेंट किस पदार्थ से बनता हैं ?
    प्रश्न -काँच कैसे बनता हैं ?
    प्रश्न – सबसे सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जाति कौन सी हैं ?
    प्रश्न – क्या चाइनीज लोग पीले होते हैं ?
    प्रश्न -भारत में सबसे ऊची भवन (बिल्डिंग)का क्या नाम हैं ?
    प्रश्न – विश्व का सबसे प्राचीन भाषा कौन हैं ?
    प्रश्न – क्या स्वर्ग -नर्क ,जन्नत – जहन्नुम ,हेल -हेवेन ये सब वास्तव में होता हैं अथवा केवल भ्रम मात्र हैं ?
    प्रश्न -कोई ऐसा उपयोगी यंत्र जिसका अविष्कार भारत में हुवा हैं ?ं

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    1. 1. पृथ्वी के सबसे पास का श्याम विवर(Black Hole) V4641 Sgr है और 1600 प्रकाश वर्ष दूर है।
      2. सापेक्षतावाद के सिद्धांत को प्रमाणित होने मे बहुत समय लगा था। यह एक कारण हो सकरा है।
      3. हमारी आकाशगंगा ’मंदाकिनी’ और एन्ड्रोमीडा , के साथ कुछ और आकाशगंगाये एक समूह मे है जिन्हे स्थानिक समूह(Local Cluster) कहते है। ये सभी आकाशगंगाये एक दूसरे के गुरुत्वाकर्षण से बंधी हुयी है। इनमे कुछ तो सेटेलाईट आकाशगंगा है और दूसरी आकाशगंगा की परिक्रमा कर रही है। इसी कारण से एन्ड्रोमीडा और मंदाकिनी दोनो एक दूसरे के समीप आ रही है।

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  30. (1) आशीष जी, चूकि विज्ञान को विकसित करने वाले हम “स्वयं” हैं, इसीलिए “विज्ञान के विकास के आधार” को स्पष्ट करने हेतु, मैं आपके समक्ष एक अति साधारण सा प्रश्न प्रस्तुत कर रहा हूँ –

    (2) प्रश्न है – अंतरिक्ष, हमें अति विशाल क्यों लगता है ?

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  31. श्रीमान जी! यदि इलेक्ट्रान को धनावेशित और प्रोटोन को ऋणावेशित माना जाये तो विद्युतीय धारा जो है प्रवाह अथवा बहाव के नियम (ऊंचे स्तर से नीचे स्तर की ओर) का पालन नहीं करने लगेगा क्यूंकी ऐसा कहते हैं कि इलेक्ट्रान का प्रवाह धारा के उलट नीचे स्तर से ऊपरी स्तर की ओर होता है.

    दूसरा प्रश्न यह कि इलेक्ट्रान कि खोज करने के बाद वैज्ञानिक ने उसे ऋणावेशित ही क्यों माना (या प्रोटोन को धनावेशित) ?

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    1. विद्युत आवेश के धन और ऋण को संख्याओं के धन/ऋण से जोड़ कर ना देंखे। ये केवल इलेक्ट्रान और प्रोटान के विपरित प्रकृति को दर्शाने के लिये प्रयुक्त चिह्न है। यदि आप प्रोटान को ऋण माने और इलेक्ट्रान को धन तो विद्युत के किसी भी नियम या समिकरण पर कोई फर्क नही पडेगा, सब कुछ पहले जैसा ही होगा।

      ये कुछ ऐसा है कि सूर्य के उगने की दिशा को पुर्व का नाम दे दिया गया, यदि उस दिशा को कोई और नाम भी दे दे तब सूर्य के उगने पर कोई अंतर नही आयेगा।

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    1. अंतरिक्ष मे
      किसी ब्रह्माण्डीय पिण्ड, जैसे पृथ्वी, से दूर जो शून्य (void) होता है उसे अंतरिक्ष (Outer space) कहते हैं। यह पूर्णतः शून्य (empty) तो नहीं होता किन्तु अत्यधिक निर्वात वाला क्षेत्र होता है जिसमें कणों का घनत्व अति अल्प होता है। इसमें हाइड्रोजन एवं हिलियम का प्लाज्मा, विद्युतचुम्बकीय विकिरण, चुम्बकीय क्षेत्र तथा न्युट्रिनो होते हैं। सैद्धान्तिक रूप से इसमें ‘डार्क मैटर’ dark matter) और ‘डार्क ऊर्जा’ (dark energy) भी होती है।

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  32. (1) आशीष जी, आपका उत्तर अब तक विकसित हुए विज्ञान के आधार पर, किसी भी दृष्टिकोण से अनुचित नहीं । क्योंकि आपके द्वारा प्रस्तुत किये गये समस्त लेखों को मैने ध्यान पूर्वक पढ़ कर ये निष्कर्ष निकाला है कि, आपको ब्रह्मांड से संबंधित लगभग सभी शोधों का विस्तार पूर्वक ज्ञान है, जितना कि, एक अति जिज्ञासु व्यक्ति को होना चाहिए ।

    (2) किंतु आशीष जी, आपसे मैं सार्वजनिक रूपसे एक व्यक्तिगत प्रश्न पूछता हूँ कि, क्या आप इस ज्ञान का मात्र भंडारण और प्रसारण करने में ही रूचि रखते हैं या साथ ही साथ आप, इस अमूल्य ज्ञान के आधार पर ब्रह्माण्डिय शोध में भी रूचि रखते हैं ?

    (3) यदि रखते हैं, तो आपके अनुमति के उपरान्त, मैं आपको गुरुत्वाकर्षण के विषय में एक ऐसा संकेत देना चाहता हुँ, जिसके आधार पर मात्र गुरुत्वाकर्षण का नियम ही भंग नही होगा, अपितु इस प्रश्न का भी उत्तर प्राप्त होगा कि, क्या कारण है की प्रत्येक गोल पिंड के केंद्र, यहाँ तक की अणु एवं परमाणु के भी केंद्र, गोल ही होते हैं, किसी भी रूप में केंद्र का कोंणिय आकार संभव नहीं ।

    (4) इसके साथ ही ये संकेत क्रमशः अन्य प्रश्नों के साथ-साथ, आपके उन २० उलझे प्रश्नों को भी सुलझाने में पथ-प्रदर्शक के रूप में अग्रणी भूमिका निभाएगा, जिनको सुलझाना अभी शेष है ।

    (5) अंततः मैं आपको इस बात का १००% आश्वासन देता हुँ कि, गुरुत्वाकर्षण के नियम के भंग होने के उपराँन्त भी, आपके समस्त राकेट भी प्रक्षेपित होंगे औऱ आपके तोप के गोले भी सटिक जगह पर ही गिरेंगे ।

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    1. बोइंग 747 का द्रव्यमान 430 टन होता है.
      एअरबस A380 560 टन होता है
      बोइंग 737 का द्रव्यमान 80 टन होता है.

      छोटे हल्के वायुयान 100 किलो तक के भी हो सकते है।

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  33. आशीष जी, गुरूत्विय केंद्र का आकार गोल ही क्यों होता है ? इस प्रश्न के विषय में आपके द्वारा कोई भी उत्तर ना देने का अर्थ, क्या मैं ये समझुँ कि, विज्ञान के पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं है ? और यदि विज्ञान के पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं है तो, इसका ये निष्कर्ष निकलता है कि,

    (1) न्यूटन द्वारा खोजा गया गुरुत्वाकर्षण का नियम “आधारहीन” ही नहीं अपितु, संपूर्ण ब्रह्मांडीय खोजों के प्रयासों को दिग्भ्रमित करने वाला एवं ब्रह्मांडीय खोजों से प्राप्त सूचनाओं के मध्यम से, सम्बंधित लक्ष्य के विषय में उचित निष्कर्ष निकालने में असमंजसता (हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता) की स्थिति उत्पन्न करने वाला, एकमात्र केंद्र बिंदु भी है ।

    (2) क्योंकि, जब वैज्ञानिकों को इस बात का ज्ञान ही नहीं कि, गुरूत्विय केंद्र के ‘गोल’ होने का कारण क्या है, तो उन्होनें किस आधार पर और क्यूँ, न्यूटन के इस मौलिक खोज को स्वीकार करने के साथ-साथ, न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम को अपने ब्रह्मांडीय खोज का भी मूल आधार बना लिया कि,

    (3) “केवल पृथ्वी ही नहीं, अपितु ‘विश्व’ का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर ‘आकर्षित’ करता रहता है और, दो कणों के बीच कार्य करनेवाला ‘आकर्षण बल’ उन कणों की संहतियों के गुणनफल का (प्रत्यक्ष) समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है।”

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    1. अरूण जी,
      प्रश्नो के उत्तर देने मे मुझसे विलंब होता है। इसलिये थोड़ा धैर्य अपेक्षित है।
      1.गुरुत्विय केंद्र का भौतिक अस्तित्व नही होता है जिससे उसका कोई आकार नही होता है। वह एक ऐसा बिंदु होता है जहाँ पर गुरुत्वाकर्षण केंद्रित होता है। इस बिंदु को शून्य विमा वाला बिंदु कहते है। लेकिन इस बिंदु पर केंद्रित गुरुत्वाकर्षण ही किसी भी पिंड को गोलाकार रूप देता है बशर्ते उसके द्रव्यमान से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण बल अन्य बलो से शक्तिशाली हो।
      2. न्युटन के गुरुत्विय बल के प्रभाव को महसूस किया जा सकता है, उसे प्रायोगिक रूप से सिद्ध किया जा सकता है। समस्त राकेट प्रक्षेपण उन्ही नियमो के कारण सफल होते है। किसी तोप के गोले को दागने के पश्चात उसका पथ और गिरने की जगह की सटिक गणना संभव है। इन्ही कारणो से वैज्ञानिक इस खोज को सत्य मानते है।

      यह संभव है कि मै आपको एक संतोषजनक उत्तर देने मे असमर्थ हो सकता हुं। लेकिन इसमे न्युटन के गुरुत्वाकर्षण या विज्ञान की कमी नही , मेरी असमर्थता है।

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    1. रिक्त अंतरिक्ष, ब्रह्मांड की सीमाओं के बाहर होगा। यहाँ पर किसी भी पदार्थ तथा समय की भी अनुपस्थिति होगी। पदार्थ और समय की अनुपस्थिति मे इस स्थान का कोई अर्थ ही नही है।

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  34. 1. आशीष जी आपके अनुसार, किसी भी पिंड का गुरूत्विय केंद्र उस पिंड के ऐसे बिंदु पर होता है जिससे सभी कण समान दूरी पर हो। इस स्पष्टीकरण में कहे गये, “गुरूत्विय केंद्र” अर्थात केंद्र के विषय में ही मैं जानना चाहता हूँ क़ि, मूल रूपसे उस बिंदु अर्थात केंद्र का आकार गोल ही क्यों होता है ?

    2. अन्य स्पष्टीकरण मुझे स्पष्ट रूपसे समझ में आ गया है।

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    1. जब कोई पदार्थ (धातु एवं अधातु ठोस, द्रव एवं गैसें) किसी विद्युतचुम्बकीय विकिरण (जैसे एक्स-रे, दृष्य प्रकाश आदि) से उर्जा शोषित करने के बाद इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करता है तो इसे प्रकाश विद्युत प्रभाव (photoelectric effect) कहते हैं। इस क्रिया में जो एलेक्ट्रान निकलते हैं उन्हें “प्रकाश-इलेक्ट्रॉन” (photoelectrons) कहते हैं।

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  35. आशीष जी चलिए मान लेते हैं कि, गुरुत्वाकर्षण पिंड के सभी कणो को अपने केंद्र की ओर खींचने का प्रयास करता है जिससे वह पिंड गोलाकार होने लगता है । किंतु यहाँ, एक प्रश्न उठता है कि, किसी भी पिंड का केंद्र गोल ही क्यों होता है, किसी अन्य आकर का क्यों नहीं ? जोकि मेरे, पूर्व के ही प्रश्न में निहित था । परिपथ के विषय में प्रश्न शेष है ।

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    1. क्योकि गोलाकार ही एक ऐसी ज्यामितिक आकृति है जिसमे सभी दूरस्थ बिंदु एक ही ही दूरी पर हो सकते है। किसी अन्य ज्यामिती मे ऐसा संभव नही है।

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    2. परिपथ के बारे मे मैने उत्तर दिया था, वह गोलाकार नही होता है। ग्रह तारो की परिक्रमा गोलाकार मे नही, दिर्घवृत्ताकार(elliptical orbit) मे करते है।

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      1. आशीष जी, आपने एकदम सही कहा ग्रहों का परिपथ गोलाकार नहीं अपितु दिर्घवृत्ताकार होता है । किंतु दिर्घवृत्ताकार ही क्यूँ होता है इस प्रश्न का उत्तर मुझे, मेरे प्रश्न – किसी भी पिंड का केंद्र गोल ही क्यों होता है, किसी अन्य आकार का क्यों नहीं ? के उत्तर के उपरांत, शायद मुझे स्वयं ही मिल जाए । इस आशा में मैं, इस प्रश्न को यही स्थगित करता हूँ ।

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      2. १.किसी भी पिंड का गुरूत्विय केंद्र उस पिंड के ऐसे बिंदु पर होता है जिससे सभी कण समान दूरी पर हो। किसी भी पिंड के गोलाकार होने के लिये आवश्यक शर्त है कि उस पिंड का द्रव्यमान इतना होना चाहिये कि उससे उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण अन्य सभी बलों पर भारी पड़े। यदि गुरुत्वाकर्षण बल अन्य सभी बलों पर भारी है तब वह पिंड गोलाकार रूप लेना प्रारंभ करेगा, यह प्रक्रिया पिंड के केंद्र प्रारंभ होकर बाहर की ओर तक आयेगी , जिससे केंद्र गोलाकार होगा , उसके पश्चात संपूर्ण पिंड। इस स्थिति मे पिंड/केंद्र गोलाकार ही हो सकता है क्योंकि यह एकमात्र ज्यामितिय आकृति है जिसमें गुरूत्व बल समान रूप से वितरण हो सकता है।
        २.यदि पिंड का द्रव्यमान कम है और उससे उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण बल अन्य बलों से कमज़ोर है तब पिंड गोलाकार नहीं होगा, जैसे क्षुद्रग्रह , धूमकेतु इत्यादि!
        ३. घूर्णन करते पिंड भी पूर्णत: गोल नहीं होते है वे अपसारी बल से विषुवत पर फैल जाते है और ध्रुवों पर चपेट जैसे पृथ्वी।

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    1. हाँ स्वर्ण को कृत्रिम रूप से बनाया जा सकता है। इसले लिये नाभिकिय संलयन या नाभिकिय विखंडन जैसी प्रक्रिया का प्रयोग करना होगा।
      नाभिकिय संलयन प्रक्रिया मे दो हल्के तत्वो के नाभिकों को उच्च तापमान और दबाव मे जोड़कर स्वर्ण का नाभिक बनाया जा सकता है। यह प्रक्रिया सूर्य पर चल रही ऊर्जा निर्माण की प्रक्रिया के जैसे है जिसमे दो हायड़्रोजन के परमाणु मिलकर हिलीयम का परमाणु बनाते है।
      नाभिकिय विखंडन की प्रक्रिया मे स्वर्ण से भारी किसी तत्व के नाभिक को तोडकर स्वर्ण का नाभिक बनाया जा सकता है। यह प्रक्रिया परमाणु बम जैसी है जिसमे युरेनियम का नाभिक विखंडित हो कर क्रिप्टान और बेरीयम बनाता है।
      लेकिन यह दोनो प्रक्रिया जटिल और महंगी है, इन प्रक्रियाओं से स्वर्ण बनाना अत्याधिक महंगा पड़ेगा!

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    1. किसी भी पिंड के गोलाकार होने के पीछे गुरुत्वाकर्षण कारणीभूत है। गुरुत्वाकर्षण पिंड के सभी कणो को अपने केंद्र की ओर खींचने का प्रयास करता है जिससे वह पिंड गोलाकार होने लगता है।
      ग्रहो का पथ , गोल ना होकर दिर्घवृत्ताकार होता है और इसके पीछे केप्लर के नियम कारणीभूत होते है।

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  36. अब तक के निष्कर्षों के आधार पर – जब कहीं किसी कारणवश कोई ध्वनि उत्पन्न होती है, और उस ध्वनि से उत्पन्न हुई तरंगे जब आकर, हमारे कर्ण-पटल से टकराती हैं, तब वो ध्वनि हमें सुनाई देती है । किंतु …
    प्रश्न ये उठता है कि, इस सुनने की क्रिया में हम ये कैसे जान लेते हैं कि, ध्वनि उत्पन्न करने वाला श्रोत, हमारे किस दिशा में और हमसे कितनी दूरी पर, स्थित है ? अर्थात् वो श्रोत हमारे दायें है या बायें, आगे है या पीछे, ऊपर है या नीचे किस दिशा में स्थित है और हमसे लगभग, एक मीटर की दूरी पर स्थित है या एक सौ मीटर की दूरी पर, ये हम कैसे जान लेते हैं ?

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    1. हमारा मस्तिष्क बहुत शक्तिशाली है। वह ध्वनि की दिशा ज्ञात करने के लिये हमारे दोनो कानो की सहायता लेता है। दोनो कानो तक पहुंचने वाली ध्वनि एक समान नही होती है , दोनो मे एक महीन अंतर आयेगा क्योंकि दोनो कान अलग अलग है। इसी अंतर से मस्तिष्क ध्वनि की दिशा ज्ञात करता है।
      मस्तिष्क इस विश्लेषण के लिये दोनो कानो मे आयी ध्वनी की तिव्रता, समय और आवृत्ती मे अंतर का प्रयोग कर दिशा निर्धारित करता है।
      इसी तकनिक के प्रयोग से वह किसी भी पिंड की गहराई (3D) भी समझता है।

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      1. आशीष जी, यदि किसी व्यक्ति का एक कान, पूर्णतया अप्रभावी कर दिया जाए, तो क्या उस व्यक्ति के लिए दिशा और दूरी का अनुमान लगाना कदापि संभव नहीं ?

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  37. गुरु जी
    यदि सब कुछ स्पेस मे है तो स्पेस किस मे है बहुत सी थ्योरी मे ये ही कहा
    जाता है की स्पेस और टाइम भी बिग बैंग से साथ ही शुरूवात हुए थे यदि ऐसा हुआ भी है तो बिग बैंग कहा पर हुआ था ?

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