दृश्य प्रकाश के रंग अद्भुत होते है और उससे अद्भुत है हमारी उन्हे देखने की क्षमता। मानव नेत्र लगभग एक करोड़ से ज्यादा रंग पहचान सकते है।
आपने कई रंग देखे होंगे लेकिन कभी सोचा है कि आखिर लाल रंग की वस्तु लाल क्यों दिखायी देती है? किसी भी वस्तु का कोई रंग क्यों होता है ? वास्तविकता यह है कि किसी वस्तु का रंग एक भ्रम मात्र है, लाल वस्तु लाल इसलिये दिखायी देती है कि वह वस्तु लाल रंग का अवशोषण नही कर पाती है, लाल के अतिरिक्त अन्य सभी रंग उस वस्तु द्वारा अवशोषित हो जाते है। उसी तरह नीले रंग की वस्तु केवल नीले रंग का अवशोषण नही कर पाती है!

- प्रकाश स्रोत से ’सफ़ेद’ प्रकाश उस वस्तु पर पड़ता है।
- लाल के अतिरिक्त सभी रंग अवशोषित हो जाते है।
- इससे हमारी आंखो तक केवल लाल रंग का प्रकाश पहुंचता है और हम उस वस्तु को लाल रंग का देखते है।
जैसा कि हम जानते हैं कि सफ़ेद रंग सभी रंगो का मिश्रण है, सफ़ेद रंग की वस्तु किसी भी रंग का अवशोषण नही करती है जिससे वह सफ़ेद रंग कि दिखायी देती है। काला रंग इसका विपरीत है, काला अपने आप मे कोई रंग नही होता है, इसका अर्थ है रंगो की अनुपस्थिति। काले रंग की वस्तु अभी रंगो का अवशोषण कर लेती है, जिससे वह काले रंग कि दिखायी देती है।
यदि हम किसी लाल वस्तु पर एक ऐसा प्रकाश डाले जिसमे लाल रंग को छोड़कर अन्य सभी रंग हो तब वह वस्तु हमे लाल नही काली दिखायी देगी। वैसे ही यदि आपने ध्यान दिया हो कि कपड़ो के (या किसी अन्य वस्तु) के रंग दुकान के प्रकाश की तुलना मे सूर्य की प्रकाश मे भिन्न दिखायी देते है। यहाँ भी कारण वही है कि सूर्य के प्रकाश मे लगभग सब रंग होते है जबकि कृत्रिम रोशनी मे कुछ रंग अनुपस्थित होते है जिससे कपड़े द्वारा रंग का अवशोषण दोनो प्रकाशो मे भिन्न होता है।
रंग की तकनीकी परिभाषा कुछ ऐसी होगी
रंग प्रकाश के उत्सर्जन, वितरण या परावर्तन द्वारा उत्पन्न वर्णक्रम संरचना से निर्मित दृश्य प्रभाव है।
यहाँ तक तो ठीक है लेकिन दर्पण का रंग क्या होगा ? वह भी तो किसी भी रंग का अवशोषण नही करता है, तो उसका रंग भी तो सफ़ेद होना चाहीये ना ?
इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले प्रकाश की कुछ विशेषताओं पर विचार करते है:
दृश्य प्रकाश अर्थात वह प्रकाश जिसे हमारी आंखे देख सकती है , वास्तविकता मे विद्युत चुंबकिय विकिरण के वर्णक्रम(Electromagnetic Radiation Spectrum) का एक छोटा सा भाग है। इस दृश्य प्रकाश मे भिन्न भिन्न आवृत्ती वाली तरंगे होती है, हमारी आंखे हर आवृत्ती की तरंगो को एक अलग रंग मे देखती है। मोटे तौर पर हम उन्हे सात रंग मे बांटते है जो कि लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, बैंगनी हैं। इनमे से लाल रंग की आवृत्ती सबसे कम और बैंगनी रंग की आवृती सबसे ज्यादा होती है। वास्तविकता मे रंगो की संख्या अनगिनत है, मानव आंखे भी लाखो रंगो को देखने मे समर्थ है।

मोटे तौर पर कह सकते है कि रंग दो प्रकार के हो सकते है :
- दृश्य प्रकाश के रंग : लाल और बैगनी रंग के मध्य के सभी रंग। इन्हे हम देख सकते है। इन रंगो के लांखो शेड है लेकिन मूल रूप से तीन ही रंग माने गये है,लाल, हरा और नीला।
- दृश्य प्रकाश बाह्य रंग : इन्हे हम देख नही सकते। इसका उदाहरण है पराबैंगनी किरण, अवरक्त किरण, एक्स किरण, गामा किरण। जब हम इन्हे देख नही सकते तो हमे पता कैसे चलेगा कि इनका आस्तित्व है ? एक तरीका फोटोग्राफीक प्लेट का है, जिसमे किसी भी विकिरण के पड़ने पर वह भाग काला हो जाता है। एक्स रे तस्वीर तो आपने देखी ही होगी। एक्स रे मानव आंखो की क्षमता के बाहर है साथ ही अधिक मात्रा मे यह हानिकारक भी है।) दूसरा तरीका है कि अदृश्य प्रकाश की एक विशेष आवृत्ती को लिए दृश्य प्रकाश के एक रंग से बदल दिया जाये। इससे जो चित्र बनेगा वह वास्तविक तो नही होगा लेकिन हमारे अध्यन के लिए पर्याप्त होगा जैसे एक्स रे चित्र। किसी काले-सफेद कैमरे से लिए गये चित्र मे भी विभिन्न रंगो को काले और सफेद के मध्य के विभिन्न शेडो से बदल दिया जाता है।
परावर्तन

प्रकाश की उसी माध्यम मे वापसी जिसमे से प्रकाश का अपतन होता है परावर्तन कहलाता है। जब किसी सतह पर प्रकाश पड़ता है तो उसका कुछ भाग सतह द्वारा परावर्तित कर दिया जाता है। विभिन सतहे भिन्न भिन्न मात्रा मे प्रकाश का परावर्तन करती है।
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (Total internal reflection)
यहएक प्रकाशीय परिघटना है जिसमें प्रकाश की किरण किसी माध्यम के तल पर ऐसे कोण पर आपतित होती है कि उसका परावर्तन उसी माध्यम में हो जाता है। सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती प्रकाश किरण का आपतन कोण सदि क्रांतिक कोण से अधिक होता है, तो वह उस माध्यम में वापस आकर परावर्तन के नियमों का पालन करती हैं। यह घटना पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहलाती है।हीरे में चमक पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण होता है।
इसके लिये आवश्यक शर्त यह है कि प्रकाश की किरण अधिक अपवर्तनांक के माध्यम से कम अपवर्तनांक के माध्यम में प्रवेश करे (अर्थात सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करे) तथा आपतन कोण का मान ‘क्रान्तिक कोण’ से अधिक हो।
पूर्ण आंतरिक परार्वतन के कारण ही रेगिस्तान में कुछ दूरी पर जल होने का भ्रम होता है। शीत प्रदेशों में जलयान वायु में लटके प्रतीत होता हैं, काँच की वस्तुओं में हवा के बुलबुले चमकीले दिखई देते हैं।
अपवर्तन
प्रकाश किरण का एक माध्यम से दूसर माध्यम में जाना, अपवर्तन कहलाता है। परावर्तन के लिए एक माध्यम एवं अपवर्तन के लिए दो माध्यम आवश्यक होत है। जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है, जो अभिलम्ब से दूर हट जाती है। जब प्रकाश की किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाती है, जो अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती है।

जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है, तब वह आपतन कोण जिसके लिए अपवर्तन (वर्तन) कोण का मपन 90° हो क्रांतिक कोण कहलाता है। अपवर्तन के कारण जलाशय कम गहरे प्रतीत होते हैं तथा जल में डुबाई गयी छड़ मुड़ी हुई प्रतीत होती हैं।
प्रकीर्णन

जब प्रकाश अणुओं, परमाणुओं व छोटे-छोटे कणों पर आपतित होता है तो उसका विभिन्न दिशाओं में प्रकीर्णन हो जाता है। जब सूर्य का प्रकाश जोकि सात रंगों का बना होता है वायुमंडल से गुजरता है तो वह वायुमंडल में उपस्थित कणों द्वारा विभिन्न दशाओं में प्रसारित हो जाता है। इस प्रक्रिया को ही प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। आकाश का रंग सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही नीला दिखाई देता है।
दर्पण का रंग
अब हम वापस आते है अपने प्रश्न पर कि दर्पण का रंग क्या होगा ?
दर्पण एक ऐसी आदर्श सतह है जो आदर्श परावर्तन करता है। अर्थात आपतित किरण और परावर्तित किरण का कोण समान होता है। लेकिन दर्पण किसी भी रंग को अवशोषित नही करता है, ना ही इसमे प्रकिर्णन होता है। दर्पण मे जिस रंग का प्रकाश आपतित होता है उसी रंग का प्रकाश परावर्तित कर देता है।
एक आदर्श सफेद कागज का रंग और आदर्श दर्पण का रंग एक जैसा ही होता है। लेकिन सफ़ेद कागज मे प्रकीर्णन होता है, दर्पण मे वह नही होता इस वजह से हमे दोनो के रंगो मे अंतर दिखायी देता है।
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विद्युत चुंबकीय वर्णक्रम और हमारी आंखे

जब और सारे धातु धूसर रंग के होते हैं, तब तांबा लाल रंग का होता है और सोना पीला रंग का होता है क्योंकि सिर्फ यही दोनो धातु दृश्यमान तरंगदैर्घ्यों में प्रकाश का प्रतिफलन कर सकते हैं और इन दोनो धातुओं के सिवाय और कोई भी धातु दृश्यमान तरंगदैर्घ्यों में प्रकाश का प्रतिफलन कर ही नहीं सकता है
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सर लोगो का भला करना चाहते है
जो की एक अच्छे इन्सान कि पहचान है
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K. P. SINGH के लेख पर
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Nice post……
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यदि काली वस्तु सभी रंगों का अवशोषण कर लेती है तो फिर वह हमें दिखाई कैसे देती है?
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काली वस्तु हमें दिखाई नही देती है। हमारा मस्तिष्क हमसे ट्रिक करता है, रंगों की अनुपस्थिति को एक रंग याने काले के रूप में दिखाता है।
वैसे 100 प्रतिशत काली वस्तु संभव नहीं है। 100 प्रतिशत काली वस्तु केवल ब्लैक होल हसि।
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sir aapne post me likha hai ki kaale rang ki vastu sabhi rango ka avshosan kar leti hai iska MATLAB ye bhi to ho sakta hai ki parkaash ki anupasthiti ko andhkaar kehte hai
raat me sabhi vastue kaali dikhaai deti hai par waha to avshosit karne ke liye parkaash hi nahi rehta fir raat me vastue kaali kyo dikhai deti hai
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जब आपकी आंखो मे कोई प्रकाश नही पहुंचेगा तो आपको अंधकार याने काला रंग दिखेगा।
1.काले रंग की वस्तु सभी रंगो को अवशोषित करती है अर्थात आपकी आंखो तक कोई प्रकाश नही पहुंच रहा है|
2.रात मे प्रकाश नही है, अर्थात आपकी आंखो तक कोई प्रकाश नही पहुंच रहा है!
अब स्वयं सोचे कि इन दोनो स्थितियों मे कोई अंतर है या दोनो एक जैसी है!
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Kya y chiz lights m bhi follow hoga ???
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Jaise kya Red light sirf red colour ka ausosad ni kr pati h isiye Red dikhti h???
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हाँ ये लाईट पर भी लागु होता है!
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ak red colour LED bulb k kiran me b 7 colour hote hai
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लाल रंग की LED मे केवल लाल ही रंग होगा।
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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thank a lots sir ji you are doing great job.Aprte.Namasate from punjab.
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ek sawal har wastu jo prakash ke kisi khash rang ko chhor kar bad baanki ko awsoshit kar leti hai….jaise apple lal dikhai deta hai iska matlab wo prakash ke lal rang ko chhor kar baad banki ko awsoshit kar raha hai aur dusri or sabhi tarang me urja hoti hai to kya ham ek seb ko prakash me jitni der tak rakhte hain usme utni hi urja jama honi chahiye…..q ki wo to jab tak prakash me rahegi lal rang ko chor kar sabhi ko awsoshit kar rahi hogi bilkul ek battery ki tarah usme urja jama ho rahi hogi….ab sawal ye uthta hai ki wo urja jaati kahan hain….jabki humko pata hai ki ek apple me ek limit tak hi urja hoti hai….
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जब आप धूप मे रहते है आप का शरीर गर्म होता है या नही ? आशा है आपको उत्तर मील गया होगा.. 🙂
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आशीष जी धन्यवाद, ऐसी सारथक विज्ञान समाग्री के लिये पर मुझे २६ विमाओ वाले अंतराल को कैसे समझ सकते हैं जबकि हम सिर्फ ४ विमाओ वाले अंतराल में रहते हैं मेरा मतलब उनको गणितीय तरीकों से अनुभव करने से है
कृपया मेरी जिज्ञासा का समाधान अपने लेख द्वारा करें
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सही कहा प्रदीप जी …यह सब विज्ञान की पुस्तकों में उपस्थित है……वैसे—
—–मूल रूप से तीन ही रंग माने गये है,लाल, हरा और नीला।…असत्य कथन है ..मूल रंग …लाल, पीला व नीला होते हैं …हरा तो पीला व नीले का मिश्रण है ….
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मैं भी” विज्ञान के अद्भुत चमत्कार ”(www.bhotki.wordpress.com) पर” दर्पण,माया-महल और मरीचिकाये ” शिर्षक से एक पोस्ट लिखने को सोंच रहा हूँ ! आशीष जी क्या आप मेरे इस पोस्ट को तैयार करने में मार्गदर्शन कर सकतें हैं ?
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शानदार लेख ! बहुत से लोग सोंचते हैं ,कि दर्पण को देखा जा सकता हैं ,वें गलत हैं ! अच्छा और साफ़-सुथरा दर्पण अदृश्य होता हैं !आप दर्पण का फ्रेम देख सकते हों ,उसकी किनारी देख सकते हों ,उसके द्वारा प्रतिबिंबित वस्तुओं को देख सकते हों,लेकिन यदि गंदा नही हैं,तो उसे आप नही देख सकते हों !कोई भी परावर्तक सतह अपने आप में अदृश्य होती हैं ! उसमे और प्रकिर्णक सतहों(ऐसी सतह जो प्रकाश-किरणों को हर सम्भव दिशा में फेकती हों )में यही फर्क हैं ! दर्पण को उपयोग करने वाली जादू इत्यादी इसी तथ्य पर आधारित हैं कि दर्पण स्वयं अदृश्य होता हैं ,दृश्य होता हैं सिर्फ प्रतिबिम्बित वस्तुए!
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लेख अच्छा है और सभी लेख अच्छे होते हैं। आशीष जी, आप एक योग्य इंसान हो, लेकिन आप जितना समय दूसरों की खोज कल्पनाओं को पढ़कर लिखने में व्यर्थ करते हो, तो उसमें से थोड़ा समय यदि आप अपनी योग्यता से खोज करने में लगाओ तो, आप दूनिया को नही दूनिया आपको पढे़गी। जो बातें दूसरों ने कह दी हैं, उन्हें दोहराने से कोई फायदा नही। इस कार्य को दूसरों पर छोड़ दो, अपना कुछ नया करो। ज्ञान के लिए दूसरों को पढ़ो लेकिन उन्हें….
के. पी. सिंह
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agar koi ensan acha kar raha hai to uska utsaha barao naki essi kharab bate karo. agar kitab study kar ke hi sabh kuch samajh aa jata tab guru ki jarurat hotti kya? teacher hamesa kitab ki likhi bato ko assan kar ke bata hai jis karn se study karna asan ho jatta.Vase se bhi bina guru ke giyan nahi hotta.
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