प्राचीन समय मे मानव शरीर को पंच तत्व -भूमि, गगन, वायु, अग्नि और जल से निर्मित माना जाता था। लेकिन आज हम जानते है कि ये पंचतत्व भी शुध्द तत्व नही है, और अन्य तत्वों से मीलकर बने है। इस लेख मे हम देखेंगे कि मानव शरीर के लिये आवश्यक तत्व कौनसे है? और उन तत्वो का निर्माण कैसे हुआ है?
तत्व क्या होते है?
तत्व (या रासायनिक तत्व) ऐसे उन शुद्ध पदार्थों को कहते हैं जो केवल एक ही तरह के परमाणुओं से बने होते हैं। या जो ऐसे परमाणुओं से बने होते हैं जिनके नाभिक में समान संख्या में प्रोटॉन होते हैं। सभी रासायनिक पदार्थ तत्वों से ही मिलकर बने होते हैं। हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आक्सीजन, तथा सिलिकॉन आदि कुछ तत्व हैं। सन 2007 तक कुल 117 तत्व खोजे या पाये जा चुके हैं जिसमें से 94 तत्व धरती पर प्राकृतिक रूप से विद्यमान हैं। कृत्रिम नाभिकीय अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप उच्च परमाणु क्रमांक वाले तत्व समय-समय पर खोजे जाते रहे हैं।
मानव शरीर मे कौन से तत्व होते है?

मानव शरीर का लगभग 99% भाग मुख्यतः छह तत्वो से बना है: आक्सीजन, कार्बन, हायड्रोजन, नाइट्रोजन, कैल्सीयम तथा फास्फोरस। लगभग 0.85% भाग अन्य पांच तत्वो से बना है : पोटैशीयम, सल्फर, सोडीयम, क्लोरीन तथा मैग्नेशीयम है। इसके अतिरिक्त एक दर्जन तत्व है जो जीवन के लिये आवश्यक माने जाते है या अच्छे स्वास्थ्य के लिये उत्तरदायी होते है, जिसमे बोरान(Boran B), क्रोमीयम(Chromium Cr), कोबाल्ट(Cobalt Co), कापर(Copper Cu), फ़्लोरीन(Fluorine F), आयोडीन(Iodine I), लोहा(Iron Fe),मैग्नीज(Manganese Mn), मोलीब्डेनम(Molybdenum Mo), सेलेनियम(Selenium Se), सीलीकान(Silicon Si), टीन(Tin Sn), वेनाडीयम(Vanadium V) और जस्ता(Z) का समावेश है।
ब्रह्माण्ड के जन्म के पश्चात जीवन के लिये आवश्यक तत्वो का निर्माण कैसे हुआ ?
ब्रह्माण्ड का जन्म
ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट के परिणामस्वरूप हुआ। इसी को महाविस्फोट सिद्धान्त या बिग बैंग सिद्धान्त कहते हैं।, जिसके अनुसार से लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्रह्मांड एक परमाण्विक इकाई “सिंगुलरैटी” के रूप में था। तब समय और अंतरिक्ष (space-time) जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी। महाविस्फोट प्रतिरूप के अनुसार लगभग 13.7 अरब वर्ष पूर्व इस महाविस्फोट में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी कि जिसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जा रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोट सिद्धांत कहा जाता है। महाविस्फोट के मात्र 1.43 सेकेंड अंतराल के बाद समय, अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं। भौतिकी के नियम लागू होने लग गये थे। 1.43 वें सेकेंड में ब्रह्मांड 1034 गुणा फैल चुका था और क्वार्क, लैप्टान और फोटोन का गर्म द्रव्य बन चुका था। 1.4 सेकेंड पर क्वार्क मिलकर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बनाने लगे, और ब्रह्मांड अब कुछ ठंडा हो चुका था। हाइड्रोजन, हिलियम आदि के अस्तित्व का आरंभ होने लगा था। लेकिन महाविस्फोट ने केवल हायड्रोजन तथा हिलीयम जैसे हल्के तत्वों का ही निर्माण किया था, अन्य तत्वों का निर्माण कैसे हुआ ?
ब्रह्माण्ड के जन्म के पश्चात जीवन के लिये आवश्यक तत्वो का निर्माण कैसे हुआ ?

जब तक तारे जीवित रहते है तब वे दो बलो के मध्य एक रस्साकसी जैसी स्थिति मे रहते है। ये दो बल होते है, तारो की ‘जीवनदायी नाभिकिय संलयन से उत्पन्न उष्मा’ तथा तारों का जन्मदाता ‘गुरुत्वाकर्षण बल’। तारे के द्रव्यमान से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण उसे तारे पदार्थ को केन्द्र की ओर संपिड़ित करने का प्रयास करता है, इस संपिड़न से प्रचण्ड उष्मा उत्पन्न होती है, जिसके फलस्वरूप नाभिकिय संलयन प्रक्रिया प्रारंभ होती है। यह नाभिकिय संलयन प्रक्रिया और ऊर्जा उत्पन्न करती है। इस ऊर्जा से उत्पन्न दबाव की दिशा केन्द्र से बाहर की ओर होती है। इस तरह से तारे के गुरुत्व और संलयन से उत्पन्न ऊर्जा की रस्साकशी मे एक संतुलन उत्पन्न हो जाता है।
अपनी जिंदगी के अधिकतर भाग मे मुख्य अनुक्रम के तारे हाइड्रोजन संलयन की प्रक्रिया के द्वारा उर्जा उत्पन्न करते है। इस प्रक्रिया मे दो हाइड्रोजन के परमाणु हिलीयम का एक परमाणु निर्मित करते है। उर्जा का निर्माण का कारण है कि हिलीयम के परमाणु का द्रव्यमान दो हाइड्रोजन के परमाणु के कुल द्रव्यमान से थोड़ा सा कम होता है। दोनो द्रव्यमानो मे यह अंतर उर्जा मे परिवर्तित हो जाता है। यह उर्जा आईन्सटाईन के प्रसिद्ध समीकरण E=mc2 से ज्ञात की जा सकती है; जहाँ E= उर्जा, m=द्रव्यमान और c=प्रकाश गति। हमारा सूर्य इसी प्रक्रिया से उर्जा उत्पन्न कर रहा है। हाइड्रोजन बम भी इसी प्रक्रिया का प्रयोग करते है।
लगभग 10 अरब वर्ष मे एक मुख्य अनुक्रम का तारा अपनी 10% हाइड्रोजन को हिलीयम मे परिवर्तित कर देता है। ऐसा लगता है कि तारा अपनी हाइड्रोजन संलयन की प्रक्रिया को अगले 90 अरब वर्ष तक जारी रख सकता है लेकिन ये सत्य नही है। ध्यान दें कि तारे के केन्द्र मे अत्यधिक दबाव होता है और इस दबाव से ही संलयन प्रक्रिया प्रारंभ होती है लेकिन एक निश्चित मात्रा मे। बड़ा हुआ दबाव मतलब बड़ा हुआ तापमान। केन्द्र के बाहर मे भी हाइड्रोजन होती है लेकिन इतना ज्यादा दबाव नही होता कि संलयन प्रारंभ हो सके।


फ़्रेड हॉयल ब्रह्माण्ड के जन्म के बिग बैंग सिद्धांत में विश्वास नहीं रखते थे और उन्होने ही इस सिद्धांत का नाम मजाक उड़ाते हुये “बिग बैंग” रखा था। इनका विचार था कि ब्रह्माण्ड एक स्थिर अवस्था में है। महाविस्फोट सिद्धान्त के पक्ष में अधिक प्रमाण इकट्ठा होने पर वैज्ञानिकों ने स्थिर अवस्था को लगभग त्याग दिया है। हॉयल का यह भी विश्वास था कि पृथ्वी पर जीवन धूमकेतुओं के जरिए अन्तरिक्ष से आए विषाणुओं के जरिये शुरु हुआ। वे नहीं मानते थे कि रासायनिक प्रक्रियाओं के जरिए जीवन का प्रारंभ संभव है। इन्होंने विज्ञान कथाएँ भी लिखी हैं जिनमें शामिल है द ब्लैक क्लाउड (The Black Cloud, काला बादल) और ए फ़ॉर एन्ड्रोमीडा (A for Andromeda)। द ब्लैक क्लाउड में ऐसे जीवों का वर्णन है जो तारों के बीच के गैस के बादलों में उत्पन्न होते हैं और विश्वास नहीं कर पाते हैं कि ग्रहों पर भी बुद्धिमान जीव उत्पन्न हो सकते है।
अब हिलीयम से बना केन्द्र सिकुड़ना प्रारंभ करता है और बाहरी तह फैलते हुये ठंडी होना शुरू होती है, ये तह लाल रंग मे चमकती है। तारे का आकार बड जाता है। इस अवस्था मे वह अपने सारे ग्रहो को निगल भी सकता है। अब तारा “लाल दानव(red gaint)” कहलाता है। केन्द्र मे अब हिलीयम संलयन प्रारंभ होता है क्योंकि केन्द्रक संकुचित हो रहा है, जिससे दबाव बढ़ेगा और उससे तापमान भी। यह तापमान इतना ज्यादा हो जाता है कि हिलीयम संलयन प्रक्रिया से भारी तत्व जैसे कार्बन बनना प्रारंभ होते है। इस समय हिलीयम कोर की सतह पर हाइड्रोजन संलयन भी होता है क्योंकि हिलीयम कोर की सतह पर हाइड्रोजन संलयन के लिये तापमान बन जाता है। लेकिन इस सतह के बाहर तापमान कम होने से संलयन नही हो पाता है। इस स्थिति मे तारा अगले 100,000,000 वर्ष रह सकता है।
सूर्य के द्रव्यमान से नौ गुणा से ज्यादा भारी तारे हिलियम संलयन(Fusion) की प्रक्रिया के बाद लाल महादानव बन जाते है। हिलियम खत्म होने के बाद ये तारे हिलियम से भारी तत्वों का संलयन करते है। तारो का केन्द्र संकुचित होकर कार्बन का संलयन प्रारंभ करता है, इसके पश्चात नियान संलयन, आक्सीजन संलयन और सीलीकान संलयन होता है। तारे के जीवन के अंत में संलयन प्याज की तरह परतों पर होता है। हर परत पर एक तत्व का संलयन होता है। सबसे बाहरी सतह पर हायड़ोजन, उसके नीचे हिलियम और आगे के भारी तत्व। अंत में तारा लोहे का संलयन प्रारम्भ करता है। लोहे के नाभिक अन्य तत्वों की तुलना मे ज्यादा मजबूत रूप से बंधे होते है। लोहे के नाभिकों के संलयन से ऊर्जा नहीं निकलती है इसके प्रक्रिया ऊर्जा लेती है। लोहे के निर्माण के पश्चात प्रक्रिया थम जाती है, पुराने विशालकाय तारों के केन्द्र में लोहे का बड़ी सी गुठली बन जाती है।
इस तरह हम देखते है कि हिलीयम, लिथियम, कार्बन, नियान, आक्सीजन, सिलीकान और लोहे का निर्माण होता है। लेकिन तारो के अंतर्भाग मे चलने वाली यह नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया लोहे से भारी तत्वो का निर्माण नही कर सकते है।
लोहे से भारी तत्वों का निर्माण कैसे होता है?

तारो की मृत्यु उनके द्रव्यमान के अनुसार भिन्न भिन्न तरह से होती है। एक सामान्य द्रव्यमान का तारा अपनी बाहरी परतों का झाड़ कर एक “ग्रहीय निहारिका(Planetary nebula)” में परिवर्तित हो जाता है। बचा हुआ तारा यदि सूर्य के द्रव्यमान के 1.4 गुणा से कम हो तो वह श्वेत वामन तारा बन जाता है जिसका आकार पृथ्वी के बराबर होता है जो धीरे धीरे मंद होते हुये काले वामन तारे के रूप में मृत हो जाता है।
सूर्य के द्र्व्यमान से 1.4 गुणा से ज्यादा भारी तारे होते है अपने द्र्व्यमान को नियंत्रित नहीं कर पाते है। इनका केन्द्र अचानक संकुचित हो जाता है। इस अचानक संकुचन से एक महा विस्फोट होता है, जिसे सुपरनोवा कहते है। सुपरनोवा इतने चमकदार होते है कि कभी कभी इन्हें दिन मे भी देखा गया है। सुपरनोवा विस्फोट मे फेंके गये पदार्थ से निहारिका बनती है। कर्क निहारिका इसका उदाहरण है। बचा हुआ तारा न्युट्रान तारा बन जाता है। ये कुछ न्युट्रान तारे पल्सर तारे होते है। यदि बचे हुये तारे का द्रव्यमान 4 सूर्य के द्र्व्यमान से ज्यादा हो तो वह एक श्याम विवर(Black Hole) मे बदल जाता है।
सुपरनोवा अपनी चरमसीमा पर होता है, वह कभी-कभी कुछ ही हफ़्तों या महीनो में इतनी उर्जा प्रसारित कर सकता है जितनी की हमारा सूरज अपने अरबों साल के जीवनकाल में करेगा। इस महाविस्फोट के दौरान उष्मा और दबाव इतना ज्यादा होता है कि लोहे से भारी सभी तत्वो का निर्माण इन्ही सुपरनोवा भट्टियों मे हुआ है। हमारा अपना सूर्य और सौर मण्डल के सभी ग्रह किसी सुपरनोवा विस्फोट के पश्चात बचे हुये पदार्थ से निर्मित है।
इस तरह से हम देखते है कि ब्रह्माण्ड मे हल्के तत्वों की अधिकता है, जैसे जैसे तत्वों का भार बढ़ते जाता है उनकी उपलब्धता कम होते जाती है क्योंकि उनकी निर्माण प्रक्रिया उतनी ही कठीन होते जाती है।
परमाणु क्रमांक | तत्व | द्रव्यमान अनुपात प्रति दस लाख भाग |
---|---|---|
1 | हायड्रोजन Hydrogen | 739,000 |
2 | हिलियम Helium | 240,000 |
8 | आक्सीजन Oxygen | 10,400 |
6 | कार्बन Carbon | 4,600 |
10 | निआन Neon | 1,340 |
26 | लोहा Iron | 1,090 |
7 | नाइट्रोजन Nitrogen | 960 |
14 | सिलीकान Silicon | 650 |
12 | मैग्नेशीयम Magnesium | 580 |
16 | गंधक Sulfur | 440 |
किसी प्राचीन तारे की मृत्यु ने हमे जीवन दिया है, कार्ल सागन के शब्दो मे हम तारो की धुलि(Star Dust) से निर्मित है।
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अंतरिक्ष में लोहा अधिक है और नाइट्रोजन कम। धरती पर तो नाइट्रोजन ही अधिक है न? ऐसा क्यों?
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नहीं, अंतरिक्ष मे लोहा भी कम है। जितना भारी तत्व उतनी कम मात्रा !
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Sir. Kripya mujhe ye batae ki agar hamare surya ka nirman kisi dusre taare k supernova se hua hai to wo mul taara kaha hai. Q k visfot k baad wo tara ya to black hole ban gaya hoga ya swet waman. Phir v to uska astitva hoga hi na. Kya us taare k wajud ko khoja gaya hai. Plz mere is jigyasa ko sant kare.. Thnx
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नविन, ये अब से 4.5 अरब वर्ष पहले हुआ है। सूर्य का निर्माण जिस तारे के अवशेषो से हुआ है उसकी मृत्यु एक सुपरनोवा विस्फोट मे हुयी है। उस वास्तिविक तारे का क्या हुआ, हम नही जानते है। 4.5 अरब वर्ष मे बहुत कुछ हो गया होगा। शायद भविष्य मे हम जान पायें।
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आप ने कहा कि हीलियम संलयन के बाद कार्बन संल़न,नियान संलयन, आक्सीजन संलयन और सीलीकान संलयन शुरू होता है..
पर कार्बन,नियान,आक्सीजन आदि बनते कैसे हैं?
क्या हीलियम-हाइड्रोजन ही नये तत्व बनाते हैं?
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लेख के बीच मे एक चित्र दिया है, उस चित्र मे कार्बन,नियान,आक्सीजन के बनने की प्रक्रिया दिखायी गयी है। सभी तत्व का मूल तत्व हायड्रोजन ही होता है।
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जीवन केसे पेदा होता है?
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यह लेख देखें : https://vigyanvishwa.in/2011/01/24/alienlifesearch/
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blach hole ka andir time ka vajod h ya nhi. agar h to kyo h ? agar nhi h to kyo
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श्याम विवर मे समय धीमा हो जाता है। समय और अंतरिक्ष दोनो एक दूसरे से गुंथे हुये है और यह दोनो मिलकर एक चार आयाम वाले ब्रह्माण्ड का निर्माण कर देते है। श्याम विवर का गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा होता है कि वह समय की गति को धीमा कर देता है। या दूसरे शब्दो मे समय-अंतरिक्ष(Space-Time) को विकृत(distort) कर देता है।
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sir discovery science pr lakho prakash warsh dur ke galaxy aur black hole ke bare me spast jankari kaise di jati hai? Kya itni dur jana ya dekh pana avi samvaw hai?
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aapke is lekh main kuch verodhabhas hai jaisa aapne bataaya ki hamaare brahmmand ki aayu 12 se 14 arab vars hai lekin ek taara apni 10% haidrojan ko hiliam main parivartit karta hai to kam se kam ak taare ki aayu 10 araab vars honi chahiye. maine kam se kam kaha hai ye jyaada bhi ho sakti hai aapke anusaar. aage aapne kaha hai ki hamaara sun aur hmaare sour mandal ke grah kisi suparnova visphot se banaa hai aur suparnova visphot ke liye kam se kam 10 arab varsh chaahiye to kripaya bataayeye ki hamaare brammand ki aayu 14 araab vars kaise ho sakti hai is hisab se to hamaara brahmmand kanhi jyada puranaa hai. krapiyaa meri ye jegyaasa shant kijiye………….. Answer please…….
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अजय, लेख में विरोधाभाष नहीं है। ऐसे कुछ तारे है जो दस अरब वर्ष से भी पुराने है लेकिन ऐसे भी तारे है जो कुछ लाख वर्ष पुराने है।
ब्रह्माँड में आकाशगंगाओं में तारे ग्रह के साथ गैसों के विशालकाय बादल होते है जो सैकड़ों प्रकाश वर्ष चौड़े हो सकते है। तारों का जन्म इन्हीं बादलों में होता है। तारों का निर्माण और मृत्यु का क्रम ब्रह्माँड के जन्म के कुछ लाखों वर्ष प्रारंभ हो गया था जो अब तक रूका नहीं है। अभी भी नये तारे बन रहे है और पुराने मृत हो रहे है।
बड़े तारे हायड़्रोजन तेजी से जलाते है और उनकी आयु कम होती है लेकिन छोटे तारे धीमी गति से हायड़ोजन जलाये है और उनकी आयु ज्यादा होती है। सूर्य मध्यम आकार का है, वह अभी लगभग पांच अरब वर्ष का है, आधी आयु का।
जीतना बड़ा तारा उतनी कम आयु..
भूतकाल मे 7-8 अरब वर्ष पहले सूर्य के स्थान पर कोई तारा रहा था जो सुपरनोवा बन कर मृत हो गया, कुछ समय(1-2 अरब वर्ष भी हो सकता है) बाद उसके अवशेष किसी गैस के बादल में विलीन हो गये होंगे और सूर्य का जन्म हुआ होगा।
इस लेख को भी पढ़े
http://antariksh.wordpress.com/2007/01/25/starbirth/
https://vigyanvishwa.in/2007/01/23/starbirth/
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वैज्ञानिक किस विधि से पृथ्वी पर मनुष्य की उपस्थिति निर्धारित करते हैं ?
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मनुष्य की पृथ्वी पर उपस्थिति की ठीक ठीक तिथि की गणना लगभग असंभव है। विज्ञान एक लगभग तिथि/काल बता सकता है।
इस गणना का मुख्य आधार जिवाश्म है। पृथ्वी के अनेक भागो मे मानव और मानवो से पहले की प्रजाति के जिवाश्म मिलते है। इन जिवाश्मो की आयु कार्बन-डेटींग विधि से ज्ञात की जाती है।
इन जीवाश्मो से मानव की एक प्रजाति से दूसरे प्रजाति मे विकास के भी प्रमाण मिलते है। उदाहरण के लिये होमो-अर्गस्टर(Homo – Ergaster) के जिवाश्म की आयु लगभग 16 लाख वर्ष से 18 लाख वर्ष है। जबकि आधुनिक मानव की प्रजाति के जिवाश्म की आयु 2 लाख वर्ष पायी गयी है। इन दोनो प्रजातियों के मध्य अनेक प्रजाति का उद्भव हुआ था।
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