लगभग 115 वर्ष पहले 14 दिसंबर 1900 मे मैक्स प्लैंक(Max Plank) ने क्वांटम भौतिकी(Quantum Physics) की नींव डाली थी।
प्लांक ने ब्लैक बॉडी रेडियेशन पर कार्य करते हुए एक नियम दिया जिसे वीन-प्लांक नियम के नाम से जाना जाता है। बाद में उन्होने पाया कि बहुत से प्रयोगों के परिणाम इससे अलग आते हैं। उन्होने अपने नियम का पुनर्विश्लेषण किया और एक आश्चर्यजनक नई खोज पर पहुंचे, जिसे प्लांक की क्वांटम परिकल्पना कहते हैं। इन पैकेट्स को क़्वान्टा कहा जाता है। हर क़्वान्टा की ऊर्जा निश्चित होती है तथा केवल प्रकाश (विकिरण) की आवृत्ति (रंग) पर निर्भर करती है। (सूत्र E = hν जहाँ h प्लांक नियतांक तथा ν आवृत्ति है।)

प्लांक की इस परिकल्पना ने भौतिक जगत में हलचल मचा दी। यहीं से जन्म हुआ भौतिकी की नई शाखा क्वांटम भौतिकी का। बाद में इसी परिकल्पना का उपयोग करते हुए आइन्स्टीन ने प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या की, जिसके लिए उसे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस परिकल्पना के अनुसार प्रकाश तथा अन्य विद्युत चुम्बकीय विकिरण ऊर्जा का सतत प्रवाह न होकर ऊर्जा के छोटे छोटे पैकेट के रूप में चलता है।
क्वांटम भौतिकी की स्थापना के लिए प्लांक को 1918 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
क्वांटम भौतिकी 20वीं शताब्दी का सबसे रोचक व महत्वपूर्ण सिद्धांत था। यह एक ऐसा सिद्धांत है जिसने रेडियोधर्मिता व प्रतिपदार्थ (Antimatter) जैसी प्रक्रियाओं की सफलतापूर्वक व्याख्या करता है। साथ ही यह एक ऐसा सिद्धांत है जिसने सूक्ष्म स्तर पर प्रकाश व मूलभूत कणों के व्यवहार की सफलतापूर्वक व्याख्या करता है।
लेकिन क्वांटम भौतिकी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इसे आसानी से समझाया नहीं जा सकता है। क्वांटम कण एक साथ कई अवस्थाओं व स्थानों में अस्तित्व में हो सकते हैं। अनिश्चितता व विरोधाभासों से भरे क्वांटम सिद्धांत की सबसे खास बात यह है कि वह वस्तुनिष्ठ वास्तविकता(Objective Reality) के अस्तित्व पर ही उंगुली उठाता है, जिसकी वजह से वैज्ञानिक समुदाय में भी इसकी काफी आलोचना होती रही है। यहां तक कि आइजक न्यूटन के बाद के महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन को भी क्वांटम सिद्धांत को स्वीकार करने में काफी परेशानी का अहसास हुआ था। उन्होने चिढकर कहा था:
“God doesnt play Dice!(भगवान पासे नही खेलता)”।
21वीं सदी में वैज्ञानिक क्वांटम भौतिकी के रहस्यमय संसार की गुत्थी सुलाझाने में लगे हुए हैं, जिससे उसका अनुप्रयोग उन्नत टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में किया जा सके। साथ ही वैज्ञानिक क्वांटम भौतिकी और सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत को आपस में जोड़कर क्वांटम ग्रेवेटी के सिद्धांत को खड़ा करने में लगे हुए हैं।
एक विचित्र विचार का जन्म
क्वांटम सिद्धांत का जन्म 20वीं शताब्दी के शुरुआती दशकों में हुआ जब परंपरागत भौतिकी कई महत्वपूर्ण भौतिक अवधारणाओं की ब्याख्या करने में असफल सिद्ध हुई। पहले के सिद्धांतों के अनुसार परमाणु किसी भी आवृत्ति (frequency) पर कंपन कर सकते थे। इस गलत अवधारणा की वजह से वैज्ञानिकों ने यह गलत निष्कर्ष निकाला कि परमाणु अनंत मात्रा की का ऊर्जा उत्सर्जन कर सकते हैं। तब इसे पराबैंगनी प्रलय(Ultraviolet catastrophe)का नाम दिया गया था।
क्वांटम भौतिकी के लिए सन 1900 इस मायने में एक युगांतकारी वर्ष था कि मैक्स प्लैंक ने इस समस्या का यह समाधान सुझाया कि परमाणु केवल विशिष्ट या क्वांटीकृत आवृत्तियों(frequencies) पर ही कंपन कर सकते हैं। इसके बाद सन 1905 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने प्रकाशविद्युत(Photoelectric) प्रभाव के रहस्य को उजागर कर दिया। प्रकाशविद्युत प्रभाव में धातुओं पर गिरने वाला प्रकाश विशिष्ट ऊर्जा के इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन करते हैं। तत्कालीन समय में तरंगों के रूप में प्रकाश का सिद्धांत प्रकाशविद्युत प्रभाव के सिद्धांत को समझा पाने में असफल सिद्ध हो चुका था। इसके लिए आइंस्टीन ने सुझाया कि प्रकाश फोटॉन के पैकेटों के रूप में होता है। आइंस्टीन को प्रकाश के फोटॉन सिद्धांत के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
हाल के दिनों में क्वांटम सिद्धांत में एक नया आयाम जुड़ा है। यह नया सिद्धांत और भी ज्यादा विचित्र है। इस सिद्धांत के अनुसार क्वांटम कण एक साथ कई व्यवहारों का प्रदर्शन करते हैं। ऐसा इसलिए है कि वे एक साथ अनंत समानांतर ब्रह्माण्डो(infinite parallel universes) में अस्तित्व में रहते हैं।
बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी: एक क्वांटम संकल्पना

सन 1924 में सत्येंद्र नाथ बोस ने प्लैंक के विकिरण नियम को समझाने के लिए एक सर्वथा नवीन विधि प्रस्तावित की। उन्होंने प्रकाश की कल्पना द्रव्यमानरहित कणों के एक गैस (जिसे अब फोटॉन गैस कहते हैं) के रूप में की। बोस को यह प्रदर्शित करने में सफलता मिली कि गैस के कण बोल्ट्ज्मैन सांख्यिकी(boltzmann statistics) के चिरसम्मत नियमों का पालन न कर अपनी अविभेद्य प्रकृति के कारण एक सर्वथा भिन्न सांख्यिकी के अनुरूप व्यवहार करते हैं। बोस के सैद्धांतिक तर्क को फोटॉनों से भिन्न कणों पर लगाकर आइंस्टीन को यह प्रदर्शित करने में सफलता मिली कि वे बोस द्वारा विकसित सांख्यिकी का ही पालन करते हैं। बोस और आइंस्टीन के नाम पर ही इसे अब बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी कहते हैं।
क्वांटम भौतिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी खोजें
जनवरी 1925 से जनवरी 1928 के बीच के तीन वर्र्षों की समयावधि में क्वांटम सिद्धांत के क्षेत्र में अचानक नई खोजों की बाढ़ सी आ गई। सन 1925 में वुल्फगैंग पॉली ने अपना अपवर्जन (Pauli Exclusion Priniciple) सिद्धांत दिया, जिसके अनुसार कोई भी दो इलेक्ट्रॉन एक ही क्वांटम अवस्था में नहीं रह सकते हैं। उसी वर्ष वर्नर हाइजेनबर्ग ने मैक्स बॉर्न और पास्कल जॉर्डन के साथ मिलकर आव्यूह यांत्रिकी (Metric Mechanics) की खोज की। सन 1926 में एर्विन श्रोडिंगर(Erwin Schrodinger) ने क्वांटम जगत की व्यवस्था के लिए एक वैकल्पिक सिद्धांत को प्रस्तावित किया जिसे तरंग यांत्रिकी(Wave Mechanics) का नाम दिया गया।
सन 1920 में एनरिको फर्मी (Enrico Fermi) तथा पॉल डिराक(Paul Dirrac) ने यह प्रस्तावित किया कि इलेक्ट्रॉन एक नई सांख्यिकी का पालन करते हैं। इसे फर्मी-डिराक सांख्यिकी(Fermi Dirrac Statstics) का नाम दिया गया। इलेक्ट्रॉन, फर्मियान नामक कणों के एक वर्ग से संबंध रखते हैं। पदार्थ का निर्माण करने वाले इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन आदि सभी फर्मियान ही हैं, जिनका स्पिन अर्ध पूर्णांक(half integer) होता है। इसके विपरीत बोसानों (फोटॉन, हीलियम के परमाणु, अल्फा कण, मेसॉन, ग्रेविटॉन आदि सभी बोसॉन होते हैं) का (शून्य समेत) पूर्णांकीय स्पिन होता है और ये कण बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी(Bose-Einsteen Statstics) का पालन करते हैं।
अनिश्चितता का सिद्धांत

लगभग पिछले 70 सालों से तरंग-कण द्वैतवाद (Wave Particle Duality) की व्याख्या क्वांटम सिद्धांत के एक अन्य प्रमुख पहलू हाइजेनबर्ग अनिश्चितता के सिद्धांत(Hisenberg Uncertainity Principle) के आधार पर की जाती रही है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन 1927 में वर्नर हाइजेनबर्ग ने किया था। इसके बारे में किसी भी कण की स्थिति और उसके संवेग का एक साथ परिशुद्ध मापन कर पाना असंभव है। अनिश्चितता के सिद्धांत के अनुसार परमाण्विक जगत में होने वाले मापनों में एक अंतनिर्हित अनिर्धार्याता होती है जो क्वांटम भौतिकी का बुनियादी पहलू है। हाल में किए गये परीक्षणों के अनुसार परीक्षणों के दौरान दिखाई देने वाले तरंग-कण द्वैतवाद (Wave particle duality) के पीछे मूल कारण एक प्रक्रिया है जिसे एटेनगेलमेंट (Entanglement) कहते हैं।

एटेनगेलमेंट के विचार के अनुसार क्वांटम की दुनिया में वस्तुएं एक दूसरे से स्वतंत्र नहीं होती है, यदि वे एक-दूसरे पर क्रिया-प्रतिक्रिया करती हैं या वे एक ही प्रक्रिया के द्वारा अस्तित्व में आई हैं। वे एक दूसरे से जुड़ जाती हैं या इंटेनगेल हो जाती हैं। ऐसे में एक वस्तु में परिवर्तन से दूसरी वस्तु में भी परिवर्तन हो जाता है। ऐसा उस समय भी होता है जब वस्तुएं एक-दूसरे से काफी दूर स्थिति होती हैं। इसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने स्पूकी एक्शन एट ए डिस्टेंस(spooky action at a distance) का नाम दिया था।
यह प्रक्रिया सुपरकंडक्टरों में भी पाई जा सकती है। इससे इस तथ्य की भी व्याख्या की जा सकती है कि क्यों वस्तुओं में द्रव्यमान होता है। इसके द्वारा भविष्य में कणों को बिना भौतिक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाए पहुँचाया जा सकता है, जिसे टेलेपोर्टेशन कहते हैं। क्वांटम अवस्था का प्रथम टेलेपोर्टेशन 1998 में किया जा चुका है और भविष्य में वैज्ञानिक अधिक से अधिक कणों, विभिन्न प्रकार के कणों और बड़े कणों को इंटेनगेल करने का प्रयास कर रहे हैं।
एटेनगेलमेंट के उपयोग

इंटेनगेलमेंट के द्वारा भविष्य में हमें कम्युनिकेशन का शत-प्रतिशत सुरक्षित तरीका मिल सकता है। क्वांटम क्रिप्टोग्राफी इंक्रिप्टेड कम्प्यूटर नेटवर्क को कुंजीया(keys) भेज सकने में सक्षम हैं। इंटेनगेलमेंट के द्वारा भविष्य में कार्यशील क्वांटम कम्प्यूटरों को भी बनाने में सफलता मिल सकती है। क्योंकि क्वांटम कण एक ही समय में कई अवस्थाओं में अस्तित्व में हो सकते हैं, इसलिए उनके द्वारा एक ही समय में कई गणनाएं कराई जा सकती हैं। भविष्य के क्वांटम कंप्यूटर 300 अंकों की संख्याओं का कुछ सेकेेंड में ही गुणन करने में सक्षम होंगे। इसी गणना को किसी परंपरागत कम्प्यूटर के द्वारा कई वर्र्षों में पूरा किया जा सकता है।
क्वांटम गुरुत्वाकर्षण
प्रकृति के चार मूलभूत बलों में से तीन बलों को क्वांटम सिद्धांत के द्वारा अच्छी तरह से समझा जा सकता है, लेकिन गुरुत्वाकर्षण को लेकर समस्या है। गुरुत्वाकर्षण काफी वृहद स्तर पर कार्य करती है और क्वांटम सिद्धांत अभी तक वहां नहीं पहुँच सका है।
गुरुत्वाकर्षण को क्वांटम सिद्धांत के साथ जोडऩे के लिए कई विचित्र सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है, जिन में कुछ के अनुसार अनियमित क्वांटम परिवर्तन(Random Quantum Fluctuations) के साथ अंतरिक्ष-समय का आयाम उठने लगता है। इसमें कई अनंत रूप से छोटे ब्लैक होल समाये होते हैं जिसे फोम(Foam) कहते हैं। बिग बैंग यानि महाविस्फोट के समय पूरे ब्रह्माण्ड में यही फोम व्याप्त था। इसने अंतरिक्ष-समय पर प्रभाव डाला जिससे आगे चलकर बड़े तारों व आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ।
हाल के दिनों में सबसे विख्यात क्वांटम गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का कहना है कि ब्रह्माण्ड में कणों व बलों का विकास छोटे लूप या स्ट्रिंग के कंपनों से होता है। ये स्ट्रिंग या लूप लगभग 10-35 मीटर तक लंबे होते हैं। एक अन्य सिद्धांत के अनुसार सबसे छोटे स्तरों पर अंतरिक्ष व समय एक दूसरे से पृथक हैं। ऐसा स्पिन नेटवर्को की वजह से होता है। हाल में एक अन्य सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है जिसे दोहरा विशेष सापेक्षतावाद (Double special relativity) कहते है। यह सिद्धांत आइंस्टीन के एक सार्वत्रिक अचर प्रकाश की गति को झुठलाता है और सूक्ष्म स्तर पर एक अन्य अचर(constant) की बात करता है। यह विवादास्पद सिद्धांत गुरुत्वाकर्षण, प्रसरण और अदृश्य ऊर्जा की बात भी करता है। इस तरह से कई सिद्धांत हाल के दिनों में प्रतिपादित किए गए हैं जिनको जांचने के लिए भौतिकविद् कई परिक्षण कर रहे हैं जिससे विभिन्न सिद्धांतों को जांचा जा सके।
भविष्य की तकनीकी संभावनाएं
क्वांटम भौतिकी के नियमों का पालन करने वाले परमाणुओं व अन्य परमाणु कणों का उपयोग करने से आने वाले समय में कई उन्नत तकनीकों का विकास करना संभव है। वैज्ञानिक परमाणुओं को परम शून्य तापमान के करीब ठंडा करके पदार्थ की अवस्था का विकास कर चुके हैं, जिसे बोस-आइंस्टीन या फर्मिओनिक कंडेनसेट कहते हैं। बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट का प्रयोग ऐसी लेजर किरणों को बनाने में किया गया है जिससे आने वाले समय में ऐसे सुपरकंडक्टरों का निर्माण किया जा सकेगा जो साधारण तापमान पर भी काम करेंगे।
यह लेख भी देखें : कण भौतिकी(Particle Physics) क्या है?
हमारा आप एक सवाल है क्या आप हमें परमाणु की अवस्था के विषय कोई जानकार दे सकते हैं की वो ठोस, द्रव्य, गैस अवस्था में है?
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किसी परमाणु की अपनी कोई अवस्था नही होती। परमाणुओ या अणुओ के मध्य आपसी बंधन उनकी अवस्था निर्धारित करता है। यदि कमजोर हो तो वे गति करने मे स्वतंत्र होते है, गैस अवस्था मे होंगे, उससे अधिक मजबूत बंधन हो तो परमाणु/अणुओ की गति कम होगी और द्रव अवस्था होगी। यदि बहुत अधिक मजबूत हो तो परमाणु/अणुओ की गति न्यूनतम होगी और वह ठोस होंगे।
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One of the best site….आपका बहुत ही आभार ऐसी बेहतरीन जानकारी देने के लिए…
आप इसी तरह ब्रह्माण्ड से जुडी technical information upload करते रहिये …
science ke typical topic पर article देते रहिये।
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सामानांतर ब्रम्हांड के बदले आपने क्वांटम भौतिकी के बारे में लिख दिया..हालांकि सामानांतर ब्रम्हांड क्वांटम भौतिकी से ही निकली कल्पना है….और आप समानांतर ब्रम्हांड ककए गुणधर्म के बारे में बताए…plz
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we are first stage of quantum physics.. further it will be helpful to develop next generation computers
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Thanks
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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I think string theory easly define hw reality wrk I’m not sure that sme theory is like” double special relativity ” can be wrk in deepest level of reality so we need to find dark matter in LHC nd it can be explain string theory is right or wrong
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