विश्व को बदल देने वाले 10 क्रांतिकारी समीकरण


विश्व के सर्वाधिक प्रतिभावान मस्तिष्को ने गणित के प्रयोग से ब्रह्माण्ड के अध्ययन की नींव डाली है। इतिहास मे बारंबार यह प्रमाणित किया गया है कि मानव जाति के प्रगति पर्थ को परिवर्तित करने मे एक समीकरण पर्याप्त होता है। … पढ़ना जारी रखें विश्व को बदल देने वाले 10 क्रांतिकारी समीकरण

सापेक्षतावाद के बारे मे जानने योग्य 12 तथ्य


आइंस्टाइन ने अपने सापेक्षतावाद सिद्धांत के द्वारा विश्व का अंतरिक्ष, समय, द्रव्यमान, ऊर्जा और गुरुत्वाकर्षण के प्रति दृष्टिकोण बदल कर रख दिया था। 1. आइंस्टाइन से पहले गति के को समझने के लिये आइजैक न्यूटन के नियमो का प्रयोग किया … पढ़ना जारी रखें सापेक्षतावाद के बारे मे जानने योग्य 12 तथ्य

आइंस्टाइन के द्रव्यमान और ऊर्जा समीकरण का सरल सत्यापन


मान लो कि गहन अंतरिक्ष में एक स्थिर डिब्बा तैर रहा है। इस डिब्बे की लंबाई L तथा द्रव्यमान M है। इस डिब्बे से एक E ऊर्जा वाले फोटान का उत्सर्जन होता है और वह बाएं से दायें प्रकाशगति c … पढ़ना जारी रखें आइंस्टाइन के द्रव्यमान और ऊर्जा समीकरण का सरल सत्यापन

सापेक्षतावाद सिद्धांत : विशेष सापेक्षतावाद


अब आप ब्रह्माण्ड के सभी बड़े खिलाड़ियों अर्थात अंतराल/अंतरिक्ष, समय, पदार्थ, गति, द्रव्यमान, गुरुत्वाकर्षण, ऊर्जा और प्रकाश से परिचित हो चुके है। विशेष सापेक्षतावाद के संदर्भ में यह स्पष्ट है कि इन ब्रह्माण्ड के यह सभी सरल से लगने वाले मुख्य गुण-धर्म कुछ विशिष्ट “सापेक्षिक” स्थितियों में बहुत अप्रत्याशित तरीके से व्यवहार करते हैं। विशेष सापेक्षतावाद को समझने की कुंजी इन ब्रह्माण्ड के इन गुणधर्मो पर सापेक्षतावाद के प्रभाव में छीपी हुयी है।

संदर्भ बिंदु (Frames of Reference)

relativity2आइंस्टाइन का विशेष सापेक्षतावाद का सिद्धांत “संदर्भ बिंदु” की धारणा पर आधारित है। संदर्भ बिंदु का अर्थ है एक ऐसी जगह जहां पर “व्यक्ति/निरीक्षक खड़ा” है। आप इस समय संभवतः अपने कंप्यूटर के सामने बैठे है। यह आपका वर्तमान संदर्भ बिंदु है। आपको महसूस हो रहा है कि आप स्थिर है, लेकिन आप जिस पृथ्वी पर है वह अपने अक्ष पर घूम रही है और सूर्य कि परिक्रमा कर रही है। संदर्भ बिंदु के संबंध मे सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि “हमारे ब्रह्मांड में अपने आप में संपूर्ण संदर्भ बिंदु के रूप में ऐसी कोई चीज नहीं है।” जब हम अपने आप में संपूर्ण संदर्भ बिंदु कहते है; तब हमारा तात्पर्य होता है पूरी तरह से स्थिर जगह और संपूर्ण ब्रह्माण्ड में ऐसी कोई जगह नहीं है। इस कथन का अर्थ है कि सभी वस्तुये गतिमान है अर्थात सभी गतियां सापेक्ष है। ध्यान दिजिये कि  आप एक जगह स्थिर है लेकिन  पृथ्वी गतिमान है इसलिए आप भी गतिमान हैं। आप अंतरिक्ष और समय मे हमेशा गतिमान रहते हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड मे कोई भी जगह/पिंड स्थिर नहीं है इसलिए गति के मापन/निरीक्षण के मानकीकरण के लिये कोई मूल संदर्भ बिंदु नहीं है। यदि राम श्याम कि दिशा मे दौडता है, इसे दो तरह से देखा जा सकता है। श्याम के परिप्रेक्ष्य में राम उसके समीप आ रहा है जबकि राम के परिप्रेक्ष्य श्याम उसके समीप आ रहा है। राम और श्याम दोनो को अपने संदर्भ बिंदु के परिप्रेक्ष्य मे निरीक्षण करने का अधिकार है। हर गति आपके संदर्भ बिंदु के सापेक्ष होती है। एक दूसरा उदाहरण, यदि आप एक गेंद को फेंकते है , तब गेंद को अधिकार है कि वह अपने संदर्भ बिंदु से अपने आप को स्थिर और आपको गतिमान समझे। गेंद मान सकती है कि आप उससे दूर जा रहे है जबकि आप देख रहे है कि गेंद आपसे दूर जा रही है। ध्यान मे रखिये कि आप पृथ्वी के धरातल के सापेक्ष गति नही कर रहे हैं लेकिन आप पृथ्वी के साथ गतिमान हैं। पढ़ना जारी रखें “सापेक्षतावाद सिद्धांत : विशेष सापेक्षतावाद”

सापेक्षतावाद सिद्धांत : प्रकाश के गुणधर्म


प्रकाश (सूर्य)

प्रकाश ऊर्जा का ही एक रूप है। प्रकाश का व्यवहार थोड़ा विचित्र है। न्युटन के कारपसकुलर अवधारणा(corpuscular hypothesis) के अनुसार प्रकाश छोटे छोटे कणों (जिन्हें न्युटन ने कारपसकल नाम दिया था।) से बना होता है। न्युटन का यह मानना प्रकाश के परावर्तन(reflection) के कारण था क्योंकि प्रकाश एक सरल रेखा मे परावर्तित होता है और यह प्रकाश के छोटे कणों से बने होने पर ही संभव है। केवल कण ही एक सरल रेखा मे गति कर सकते है।

थामस यंग का प्रकाश अपवर्तन दिखाता डबल-स्लिट प्रयोग जिसने प्रकाश के तरंग होने की पुष्टि की थी।

लेकिन उसी समय क्रिस्चियन हायजेन्स( Christian Huygens) और थामस यंग( Thomas Young) के अनुसार प्रकाश तरंगो से बना होता था। हायजेन्स और यंग का सिद्धांत प्रकाश के अपवर्तन(refraction) पर आधारित था, क्योंकि माध्यम मे परिवर्तन होने पर प्रकाश की गति मे परिवर्तन आता था, यह प्रकाश के तरंग व्यवहार से ही संभव था। न्युटन के कारपसकुलर अवधारणा के ताबूत मे अंतिम कील मैक्सवेल(James Clerk Maxwell) ने ठोंक दी थी, उनके चार सरल समीकरणों ने सिद्ध कर दिया कि प्रकाश विद्युत-चुंबकिय क्षेत्र की स्वयं प्रवाहित तरंग( self-propagating waves) मात्र है। इन समीकरणों से प्रकाश की गति की सटीक गणना भी हो गयी थी। लेकिन २० वी शताब्दि मे फोटो-इलेक्ट्रिक प्रभाव(Photoelectric effect) की खोज ने प्रकाश के कणो के बने होने के सिद्धांत मे एक नयी जान डाल दी।

इन दोनो मे क्या सही है? क्या प्रकाश कण है ? या एक तरंग ? पढ़ना जारी रखें “सापेक्षतावाद सिद्धांत : प्रकाश के गुणधर्म”

सापेक्षतावाद सिद्धांत : परिचय


einsteenअलबर्ट आइन्स्टाइन ने 1905 में “विशेष सापेक्षतावाद(Theory of Special Relativity)” तथा 1915 में “सामान्य सापेक्षतावाद(Theory of General Relativity)” के सिद्धांत को प्रस्तुत कर भौतिकी की नींव हीला दी थी। सामान्य सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार न्युटन के गति के तीन नियम(Newtons laws of motion) पूरी तरह से सही नहीं है, जब किसी पिंड की गति प्रकाश गति के समीप पहुंचती है वे कार्य नहीं करते है। साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार न्युटन का गुरुत्व का सिद्धांत भी पूरी तरह से सही नहीं है और वह अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्रो में कार्य नहीं करता है।

हम सापेक्षतावाद को विस्तार से आगे देखेंगे, अभी हम केवल न्युटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत तथा साधारण सापेक्षतावाद सिद्धांत के मध्य के अंतर को देखेंगे। ये दोनों सिद्धांत कमजोर गुरुत्वाकर्षण के लिए समान गणना करते है , यह एक सामान्य परिस्तिथी है जो हम रोजाना देखते और महसूस करते है। लेकिन निचे तीन उदाहरण दिए है जिसमे इन दोनों सिद्धांतो की गणनाओ में अंतर स्पष्ट हो जाता है। पढ़ना जारी रखें “सापेक्षतावाद सिद्धांत : परिचय”