जोहानस केपलर (योहानेस केप्लर) जर्मनी के महान वैज्ञानिक और गणितज्ञ थे। केपलर के अनुसार सूर्य की कक्षा मे परिक्रमा करते ग्रहों का मार्ग(कक्षा) गोलाकार नही अपितु दिर्घवृत्ताकार(अंडाकार) होता है। अपनी-अपनी परिधि में परिक्रमा करते हुए हर ग्रह की गति में निरंतर परिवर्तन आता रहता है, इन्होने घड़ी-पल सबकुछ गिन कर दिखा दिया की प्रत्येक नक्षत्र की वास्तविक स्थिति और गतिविधि कब क्या होनी चाहिए।
बचपन और शिक्षा

जोहानस केपलर का जन्म 21 दिसम्बर 1571 को जर्मनी के स्टट्गार्ट नामक नगर के निकट बाइल-डेर-स्टाड्स स्थान पर हुआ था। वह अभी 4 साल के ही थे कि चेचक की बड़ी बुरी तरह से शिकार हो गए। इससे उनकी आंखें बहुत कमजोर हो गए। उनके पिता एक सिपाही थे और उनकी मां एक सराय-मालिक की बेटी थी। पिता अक्सर नशे में होते, मां का दिमाग भी अक्सर कोई बहुत ठिकाने न होता। उनकी अपनी आंखें जवाब दे चुकी थी हाथ लुले और बाकी जिस्म भी कमजोर और बेकार था। इन सब बाधाओं के बावजूद केप्लर बचपन से ही एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे।
चर्चों की व्यवस्थापिका संस्था ने उनका भविष्य निर्धारित कर दिया और वह धर्म-विज्ञान का अध्ययन करने के लिए इसाई के ‘गुरुकुल’ में दाखिल हो गए। टिबिंगैन विश्व विद्यालय की छात्रवृति पर स्नातक की उपाधि प्राप्त की। यहां पहुंचकर वह कोपरनिकस के विचारों के संपर्क में आए कि किस प्रकार ग्रह सूर्य के गिर्द परिक्रमा करते हैं। विज्ञान और गणित के प्रति उनका ये आकर्षण शीघ्र ही एक आंतरिक मोह में परिवर्तन हो गया। उन्होंने पादरी बनने के अपने सभी विचार छोड़ दिए। 23 वर्ष की आयु में ग्रथस विश्वविद्यालय ने उन्हें निमंत्रित किया और उन्होंने नक्षत्र विज्ञान के प्रधान अध्यापक के रूप में नियुक्ति स्वीकार कर ली।
बड़ा आश्चर्य होता है यह जानकर कि वे विज्ञान के एक पुजारी होते हुए भी, ज्योतिष-शास्त्र में कुछ आस्था रखते थे। तारों और ग्रहों की स्थिति अंकित करते हुए वे अपने जीवन की दैवी घटनाओं का भी यथावत रिकॉर्ड रखा करते थे, हालाँकि उनका अपना कहना यही था कि मुझे ज्योतिष में रत्ती-भर भी विश्वास नहीं है किंतु अतीत के अंधविश्वास का प्रभाव उनके विचार पर कुछ न कुछ निसंदेह पड़ा था।
कार्य
केपलर को ग्रत्स छोड़ना पड़ा। इसके बाद जर्मन सम्राट् रूडॉल्फ द्वितीय, के राजगणितज्ञ टाइको ब्राहे के सहायक के रूप में 1601 ई ओ में नियुक्त हुए। यही दोनों वैज्ञानिक का सम्मिलन हुआ। किंतु ब्राहे कोपनिरकस का विरोधी था। उसकी आस्था भी ईश्वरीय नियमो में थी जिसके अनुसार ब्रह्मांड के केंद्र मे सूर्य को मानलेना से धर्म संगत नही है। इसी आस्था के अनुसार उसने पुराने जमाने से चली आ रही इस धारणा को ही वैज्ञानिक रूप में प्रमाणित करने का प्रत्यन किया समस्त ब्रह्मांड का केंद्र पृथ्वी है। ब्राहे के आकाशीय पिंड-संबंधित प्रत्यक्ष तथा सूक्ष्म निरीक्षणो की संख्या कितनी ही हजार तक पहुंच चुकी थी, और विज्ञान जगत आज भी 1592 में प्रकाशित तारों की आकाश में अपेक्षित स्थिति के उसके प्रतिपादन के लिए कृतज्ञ है। संभव हैं उसने स्वंय अनुभव भी किया हो की वह अबतक गलत थे था– क्योंकि केपलर को उसने अपने सहायक और उत्तराधिकारी के रुप में नियुक्त कर दिया, जबकि केप्लर की स्पष्ट धारणा यही थी कि ब्रह्मांड का केंद्र सूर्य हैं, पृथ्वी नहीं।
टायको ब्राहे की मृत्यु हो गई। उसके बाद भी केपलर की ग्रह-गणनाएँ चलती रही। उनकी अध्यक्षता में 228 अन्य तारों का सूक्ष्म अध्ययन किया गया। ब्राहे के संग्रहीत अध्ययनों का विश्लेषण करते हुए ही केपलर ग्रहों की गतिविधि के संबंध में कुछ नियम निर्धारित कर सकें, जिनकी व्याख्या न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के मूल सिद्धांत के आधार पर आगे चलकर की। विज्ञान में आज भी केप्लर और न्यूटन के नियमों का सामायिक हैं। यही नियम है जो मानव निर्मित उपग्रहो के भी नियामक है।
केपलर की नई खोज यही नही थी कि सूर्य के गिर्द ग्रहों का परिक्रमा-मार्ग दीर्घवृत्ताकार( अंडकार) होता है, अपितु यह भी थी की अपनी-अपनी परिधि में परिक्रमा करते हुए हर ग्रह की गति में निरंतर परिवर्तन आता रहता है। ग्रह ज्यों-ज्यों सूर्य के निकट पहुंचते जाते हैं, उनकी यह गति बढ़ती जाती है। केप्लर ने गणना द्वारा यह भी जान लिया कि किस ग्रह को सूर्य की परिक्रमा करने में कितना समय लगता है। जो ग्रह सूर्य के निकट होते हैं, उन्हे इस परिक्रमा में समय अपेक्षया कुछ कम ही लगता है।
गणित के नियमों के अनुसार ग्रहों के संबंध में केप्लर ने घड़ी-पल सबकुछ गिन कर दिखा दिया कि प्रत्येक ग्रह की वास्तविक स्थिति और गतिविधि कब क्या होनी चाहिए। केप्लर ने विज्ञान के अन्य संबद्ध क्षेत्रों में भी खोज किए। मानव दृष्टि तथा दृष्टि विज्ञान के संबंध में जो स्थापनाए उन्होंने विकसित की उनका प्रकाश के ‘अपसरण’ के क्षेत्र में बहुत महत्व है। यहां तक कि ग्रहों के अध्ययन के लिए एक दूरबीन तैयार करने की आधारशिला भी, नियमों के रूप में, वे रखते गए। गणित के क्षेत्र में उनकी खोजे प्राय: कैलकुलस का अविष्कार करने के निकट आ पहुंची थी और, साथी ही, गुरुत्वाकर्षण का उल्लेख अपने प्रथम प्रबंध में किया और यह भी बताया कि पृथ्वी पर समुदों में ज्वारभाटा चंद्रमा के आकर्षण के कारण आता है।
इन्होंने ज्योतिष गणित पर 1609 ई में ‘दा मोटिबुस स्टेलाए मार्टिस’ (De Motibus Stellae martis) और 1619 ई. में ‘दा हार्मोनिस मुंडी’ (De Harmonis mundi) में अपने प्रबंधों को प्रकाशित कराया। इनमें इन्होंने ग्रहगति के नियमों का प्रतिपादन किया था।
केप्लर के ग्रहीय गति के नियम

खगोल विज्ञान में केप्लर के ग्रहीय गति के तीन नियम इस प्रकार हैं –
- सभी ग्रहों की कक्षा की कक्षा दीर्घवृत्ताकार होती है तथा सूर्य इस कक्षा के नाभिक (focus) पर होता है।
- ग्रह को सूर्य से जोड़ने वाली रेखा समान समयान्तराल में समान क्षेत्रफल तय करती है।
- ग्रह द्वारा सूर्य की परिक्रमा के आवर्त काल का वर्ग, अर्ध-दीर्घ-अक्ष (semi-major axis) के घन के समानुपाती होता है।
इन तीन नियमों की खोज जर्मनी के गणितज्ञ एवं खगोलविद जॉन केप्लर (Johannes Kepler 1571–1630) ने की थी। और सौर परिवार के ग्रहों की गति के लिये वह इनका उपयोग करते थे। वास्तव में ये नियम किन्ही भी दो आकाशीय पिण्डों की गति का वर्णन करते हैं जो एक-दूसरे का चक्कर काटते हैं।
इस महान गणितज्ञ एवं ज्योतिषी का 59 वर्ष की आयु में प्राग में 15 नवंबर 1630 ई को देहावसान हो गया।
केप्लर : संक्षिप्त जीवन वृत्त

केप्लर के लेखों से ऐसा नहीं लगता है कि वे सूर्य केन्द्रित ब्रह्मांड का समर्थन कर रहे थे बल्कि शायद कहना चाह रहे थे कि सूर्य को ब्रह्मांड का केन्द्र मानने पर खगोलीय गणनाएँ करना आसान हो जाता है। पृथ्वी को गतिमान मानने में कई तार्किक समस्याएँ रही होंगी इसलिए हो सकता है कि वे पृथ्वी केन्द्रित ब्रह्मांड पर ही विश्वास करते हों या उस समय के चर्च के डर से वे खुलकर सूर्य केन्द्रित ब्रह्मांड का समर्थन ना कर पा रहे हों। इतना तो निश्चित है कि केप्लर के पास पृथ्वी को गतिमान मानने के पक्ष में गैलीलियो के जैसा सापेक्षता सिद्धांत नहीं था जिससे वे अपनी बात को स्पष्ट कर सकें।
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