प्रश्न आपके, उत्तर हमारे

प्रश्न आपके, उत्तर हमारे

यह ‘प्रश्न आपके और उत्तर हमारे’ का पहला भाग है। यहाँ अब 4000 के क़रीब टिप्पणियाँ हो गयी हैं, जिस वजह से नया सवाल पूछना और पूछे हुए सवालों के उत्तर तक पहुँचना आपके लिए एक मुश्किल भरा काम हो सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अब ‘प्रश्न आपके और उत्तर हमारे: भाग 2‘ को शुरू किया जा रहा है। आपसे अनुरोध है कि अब आप अपने सवाल वहीं पूँछे।

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1.
2. प्रश्न आपके, उत्तर हमारे: 1 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक के प्रश्नों के उत्तर

3,992 विचार “प्रश्न आपके, उत्तर हमारे&rdquo पर;

  1. श्री मान जी आप बताएंगे कि क्या ……..
    जब कोई दीपक यानी लैम्प जलता है तो उसका लव ऊपर की तरफ ही क्यों जाती है ?????,चाहे उसको सीधा जलाए या फिर उल्टा,,,,,।।।।।

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    1. आग ऑक्‍सीजन (Oxygen) की उपस्थिति में ही जल पाती है ऑक्‍सीजन (Oxygen) केे अलावा वातावरण (Environment) में अन्‍य गैैसें भी उपस्थिति रहती हैं जब किसी बस्‍तु या पदार्थ में आग जलती है तो उसमें ऑक्‍सीजन के साथ-साथ अन्‍य गैसें भी उत्‍सर्जित हाेती हैं जो कि ऑक्‍सीजन सेे हल्‍की होती हैं जिसमें धुआं भी शामिल है ये सभी गैंसे आग की लौ को ऊपर की तरफ ले जाती हैं या सीधे शब्‍दाें मेें कहें कि इन्‍हीें हल्‍की गैंसों के ऊपर उठने के कारण आग की लाैै ऊपर की ओर जाती है

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    1. सी एफ़ एल (प्रदीप्त बत्ती या प्रदीप्त नलिका या फ्लोरिसेण्ट लैम्प ) एक ‘गैस-डिस्चार्ज बत्ती’ (gas-discharge lamp) है जिसमें पारे के वाष्प को इक्साइट (excite) करने के लिये विद्युत विभव का उपयोग किया जाता है। यह समान मात्रा में प्रकाश पैदा करने के लिये साधारण बल्ब (इन्कैण्डिसेन्ट लैम्प) की तुलना में कम बिजली खाता है।
      तापदीप्त लैम्प या इन्कैंडिसेंट लैम्प (incandescent lamp) को बोलचाल में बल्ब कहते हैं। यह तापदीप्ति के द्वारा प्रकाश उत्पन्न करता है। गरम होने के कारण प्रकाश का उत्सर्जन, तापदीप्ति (incandescence) कहलाता है। इसमें एक पतला फिलामेन्ट (तार) होता है जिससे होकर जब धारा बहती है तब यह गरम होकर प्रकाश देने लगता है। फिलामेन्ट को काँच के बल्ब के अन्दर इसलिये रखा जाता है ताकि अति तप्त फिलामेन्ट तक वायुमण्डलीय आक्सीजन न पहुँच पाये और इस तरह क्रिया करके फिलामेन्ट को कमजोर न कर सके।

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    1. मनुष्य के खून का रंग एक प्रोटीन – हीमोग्लोबिन के कारण लाल होता है. हीमोग्लोबिन में लाल-रंग के घटक होते हैं जिन्हें हीम कहा जाता है. हीम का काम रक्त प्रवाह के साथ ऑक्सीजन को लाना- ले जाना होता है. जरा गहराई से समझें तो हीम में मौजूद आयरन ऑक्सीजन से क्रिया करता है और इनके मेल से बनने वाला अणु (मॉलेक्यूल) ही फेफड़ों से शरीर के अन्य अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है.

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    1. गीले बांस मे उपस्थित पानी, बांस के लवणो(नमक) से आयन बना देता है। ये आयन विद्युत चालक होते है। जिससे गीले बांस से विद्युत वाहन होता है।

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    1. जब कोई व्यक्ति पूरी तरह से या फिर आंशिक रूप से पानी में डूबता है तो श्वांस अवरोध के कारण व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।

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    1. पृथ्वी का आकार इतना अधिक है कि आप उसका कर्व नही देख सकते, पृथ्वी का कर्व देखने आपको कम से कम ८० किमी उंचाई पर जाना होगा। यदि आप फ़ुटबाल पर चिंटी रख दे तो उसे भी फ़ुटबाल का कर्व नही दिखेगा।
      २. पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण आपको पृथ्वी की सतह पर रखता है।

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    1. पृथ्वी पर पाए जाने वाले तत्वों में कार्बन या प्रांगार एक प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। इस रासायनिक तत्त्व का संकेत C तथा परमाणु संख्या ६, मात्रा संख्या १२ एवं परमाणु भार १२.००० है। कार्बन के तीन प्राकृतिक समस्थानिक ₆C¹², ₆C¹³ एवं ₆C¹⁴ होते हैं।

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    1. हाइड्रोजन (H) (मानक परमाणु भार: 1.00794(7) u) के तीन प्राकृतिक उपलब्ध [[समस्थानिक होते हैं:१H, २H, and ३H। अन्य अति-अस्थायी नाभि (४H से ७H) का निर्माण प्रयोगशालाओं में किया गया है, किंतु प्राकृतिक रूप में नहीं मिलते हैं।

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    1. यह मांसपेशियों को आराम करने, रक्त वाहिकाओं को कसने, सूजन को कम करने और दिल को उत्तेजित करने के द्वारा कार्य करता है।

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    1. हिलियम पदार्थ का दुर्लभ समस्थानिक। इसमें २ प्रोटान और एक न्यूट्रॉन होते हैं। यह रेडियोधर्मी नहीं होता है। 

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  2. आशीष जी, अगर पृथ्वी पर किसी चीज़ का प्रकाश आता है, तो कैसे पता चलता है कि वो कितनी दूर से आया है ?? अब तक का सब से दूर का जो प्रकाश आया है वो 13 अरब प्रकाशवर्ष का था तो वो कैसे पता चला के वो इतनी दूर से आया है ??

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  3. सर मेरे मन में एक सवाल है प्लीज उत्तर दीजिएगा पहला सवाल जो हम आसमान में देखते वह तारे सिर्फ हमारी आकाशगंगा के दिखाई देते है या और भी आकाशगंगा के दिखाई देते है और दूसरा धरती सूर्य का चक्कर लगा रही है तो हम साल भर में कभी इस तरफ तो कभी दूसरी तरफ होते हैं फिर भी हमे तारे वो ही दिखाई देते है जैसे कि दीवाल के दूसरी तरफ हमे पहली तरफ़ वाली कोई वस्तु दिखाई नहीं देती

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    1. नंगी आंखों से हमें केवल अपनी ही आकाशगंगा के तारे दिखाई देते हैं, दूसरी आकाशगंगा के नहीं। बल्कि हमें अपनी सबसे नजदीक वाली आकाशगंगा एंड्रोमिडा एक तारे की तरह दिखाई देती है। सबको नहीं दिखती, मग़र तेज़ आँख वाले देख सकते हैं। एक धुंधले धब्बे की तरह किसी तारे जितनी बड़ी ही दिखेगी।

      हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर भी घूमती है और सूर्य का चक्कर भी लगाती है। इस गति के कारण तारे हर रात हर समय अगल अलग स्थानों पर दिखते हैं। एक ही रात में धरती के दूसरी तरफ वाले तारे नहीं दिखेंगे, मग़र उन्हें दिन में (जो कि देखना मुश्किल है), या फ़िर सही समय का इंतेज़ार करके रात में भी देखा जा सकता है। गतियाँ क्रमिक होती हैं। दूसरा भाग भी क्रम से थोड़ा थोड़ा करके हर रात दिखता जायेगा।

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    1. सर्दियों में तारें इसलिए कठोर हो जाती हैं क्योंकि उनका तापमान कम होने से तार को बनाने वाले अणुओं की आंतरिक ऊर्जा में कमी आ जाती है और वो पहले की अपेक्षा धीमे धीमे कंपन करने लग जाते हैं और जिससे दो अणुओं के बीच जगह बच जाती है और अणु और पास पास आ जाते हैं। जितने पास आते हैं कठोरता उतनी ही बढ़ती चली जाती है।
      पेन की निब में नीचे एक गोलाकर छोटी सी धातु की गेंद डाली जाती है जो सभी दिशा में घूम सकती है। उसकी वजह से पेन और कागज़ के बीच घर्षण बहुत कम हो जाता है और लिखने में आसानी होती है।

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      1. सर, जिस जगह से महाविस्फोट हुआ उसके बाद ब्रम्हांड उस जगह से चारो ओर फैलने लगा समांतर गति से और अभी तक फैल रहा है, तो फिर महाविस्फोट वाली जगह केंद्र क्यों नही हो सकती??

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    1. दिन में पृथ्वी में आकाश नीला दिखता है क्योंकि पृथ्वी पर वायुमंडल है। चंद्रमा में वायुमंडल नहीं है। सब खुला है। जैसे हमें पृथ्वी से रात में आसमान दिखायी देता है, वैसे ही चंद्रमा से हर समय दिखायी देता है। जैसे हमें रात में तारे दिखते हैं वैसे ही वहाँ से भी दिखेंगे। उनके न दिखने का कोई कारण नहीं है।

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    1. सोडीयम जल से बहुत तीव्र गति से अभिक्रिया करके सोडीयम हायड्रॉक्सायड और हाइड्रोजन गैस बनाता है। इस अभिक्रिया में ऊष्मा भी उत्सर्जित होती है। यह ऊष्मा उत्पन्न हाइड्रोजन गैस के लिए चिंगारी का काम करती है और आग लग जाती है क्योंकि हाइड्रोजन एक ज्वलनशील गैस है। मिट्टी के तेल से सोडीयम क्रिया नहीं करता इसलिए उधर आग नहीं लगती।

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    1. हम लोग धरती पर खड़े रह पाते हैं क्योंकि धरती हमें अपनी ओर खींचती है। धरती से बहुत दूर जाने पर वो हमको नहीं खींच पाती। ऐसी स्थिति में हम स्वतंत्र हो जाते हैं। जिस ओर धक्का लग जाए उसी ओर चले जाते हैं। या कहें उड़ते रहते हैं। चूँकि वहाँ कोई खींच नहीं रहा होता इसलिए वहाँ ऊपर नीचे का कोई मतलब नहीं होता। हर दिशा समान होती है।

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    1. क्योंकि धागे में बाँधकर तुमने उसकी गति को सीमित कर दिया है इस वजह से उसकी दिशा को लगातार बदलती रहती है। वो अभी भी सीधी रेखा में ही जाना चाहता है मगर धागे से बँधे होने के कारण नहीं जा पाता। इस वजह से धागे में टेंशन आ जाता है यानी धागा हमेशा खिंची हुई अवस्था में ही होता है। ऐसे में उसके पास गति करने का जो रास्ता बचता है वो वृत्त ही होता है।

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    1. क्योंकि सर्दी-गर्मी पृथ्वी की सूर्य से नज़दीकी के कारण नहीं होता। पृथ्वी सूर्य का चक्कर दीर्घवृत्ताकार कक्षा में ज़रूर लगाती है मगर उसकी सबसे नज़दीक और सबसे दूर की स्थिति में मात्र 3% का अंतर होता है। इतने अंतर से तापमान में कोई भी significant अंतर नहीं पड़ता।

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    1. कोई भी गैस जिसका तापमान 0 डिग्री या उससे कम और और उसकी सप्लायी तब की पानी में की जाती रहे जबतक की पानी का तापमान भी 0 डिग्री तक न आ जाए।

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  4. पृथ्दिवी अपने अक्ष पर लगातार घुमती है । यदि किसी हवाई जहाज को आकाश मे किसी निर्धारित जगह(लखनऊ) पर स्थिर मान लिया जाय , और 65दिन के बाद क्या हवाई जहाज आकाश मे उसी स्थान पर होगी कि नहीं…..????

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    1. पृथ्वी अपने साथ पूरा वायुमंडल लेकर घूमती है। अगर हवाई जहाज को आकाश मे निर्धारित जगह पर स्थिर मान लिया जाय तो 65 दिन के बाद भी जहाज आकाश मे उसी स्थान पर होगा, किसी दूसरे देश नहीं पहुँच जाएगा। मगर मुख्य समस्या ये है कि आप 65 दिन तक जहाज़ को आकाश में एक जगह स्थिर कैसे रखेंगे? 😀

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    1. निसंदेह यह टक्क्र पृथ्वी के लिए विनाशकारी होगा। लेकिन वास्तविक तौर पर पृथ्वी को खतरा क्षुद्रग्रहो से हो सकता है। पहले वैज्ञानिक क्षुद्रग्रहो के आकार और उसके गति का पता लगाते है, फिर computational intelligence की मदद से पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव की सटीक गणना की जाती है।

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    1. हम सभी म्युटंट है। हमारे जीन हमारे माता पिता से अलग होते है। हमने मातापिता से भिन्न डीएनए होता है जो म्युटेशन से होता है। लेकिन फ़िल्मो मे दिखाये गये म्युटेंट संभव नही है।

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    1. कोई भी व्यक्ति प्रकाश की गति से नहीं चल सकता मगर प्रकाश के क़रीब की गति से ज़रूर चल सकता है। प्रकाश के नज़दीक की गति में भी वह व्यक्ति समय की गति में कोई परिवर्तन महसूस नहीं करेगा। हाँ, अगर वह व्यक्ति बाहर की चीज़ों को देखेगा जिनके सापेक्ष वो गति कर रहा है तो उसे वो चीज़ें धीमी गति से काम करती दिखायी देंगी। इसी तरह हम भी उसके कामों को देखेंगे तो वह हमें धीमा काम करता दिखायी देगा।

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    1. फ़्रिज एक तापमान तक ठंडा करने के बाद बंद हो जाता है। जब फ़्रिज का तापमान उस तापमान से अधिक होगा तो दोबारा चालु होता है।

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  5. सर क्या ये सही है की सभी ग्रह सूर्य के चकर लगाते है???????????
    पर सर मेने सुना है की कोई दो पिंड अपने भार के से बने बेयरपॉइंट के चकर लगाते है
    लेकिन हमे लगता है की ग्रह सूर्य के चकर लगा रहे है

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    1. सूर्य और ग्रह का जो सेंटर ओफ़ मास होता है, सूर्य और ग्रह दोनों उसी का चक्कर लगाते हैं। मगर चूँकि ग्रह का मास सूर्य के सापेक्ष नगण्य होता है इसलिए दोनों का सेंटर ओफ़ मास लगभग सूर्य के केंद्र के ही समीप होता है इसलिए हमें ग्रह सूर्य का चक्कर लगाते हुए महसूस होते हैं। यह प्रभाव तब आसानी से देखा जा सकता है जब दो पिंडों का मास लगभग बराबर हो या या कम से कम एक दूसरे का 10-20% तो हो ही।

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    1. आकाश मे एक ही जगह स्थिर प्रतित होने वाले उपग्रह भूस्थैतिक उपग्रह(Geo Stationary) उपग्रह कहलाते है। इनकी गति और पृथ्वी की घूर्णन गति समान होती है जिससे यह एक ही स्थान पर स्थिर प्रतित होते है।

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    1. सभी पदार्थ कम/अधिक मात्रा मे सूर्य प्रकाश अवशोषित करते है। काले रंग के पदार्थ अन्य पदार्थो की तुलना मे अधिक प्रकाश अवशोषण करते है।

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  6. सर आपने लिखा है कि सूर्य आकाश गंगा का चक्कर लगा रहा है और वह एक चक्कर कई करोड़ों वर्ष बाद पूरा करता है क्या मेरा इसमें एक प्रश्न है जब आकाशगंगा का चक्कर लगा रहा है जिस प्रकार पृथ्वी सूर्य का अंडाकार चक्कर लगाती है क्या उसी प्रकार हमारा सूर्य भी आकाशगंगा का गोलाई में चक्कर लगाता है या अंडाकार चक्कर लगाता है यदि इस चक्कर में पृथ्वी सूर्य से बहुत दूर चली जाए जिससे सूर्य की मात्रा पृथ्वी पर बहुत कम पढ़े क्या ऐसा हो सकता है कि पृथ्वी में दोबारा हिमकाल आ सकता है

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    1. पृथ्वी की सूर्य से दूरी लगभग स्थिर है। सूर्य की गति या पृथ्वी की गति से इस दूरी मे इतना परिवर्तन नही आयेगा कि उससे हिमकाल आये।

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      1. पृथ्वी सूर्य की तरफ़ नहीं जाएगी बल्कि सूर्य का आकार पृथ्वी की कक्षा से भी बड़ा हो जाएगा इसलिए सूर्य पृथ्वी को निगल जाएगा। और 1000 अरब वर्ष नहीं, 5 अरब वर्ष।

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    1. नही, चंद्रमा पर वायुमंडल नही है, जल अल्प मात्रा मे है, गुरुत्वाकर्षण कम है।
      वायुमंडल नही होने से सूर्य की हानिकारक किरणे सतह तक पहुंचती है पृथ्वी पर वायुमंडल की ओजोन परत इन किरणॊ को रोक देती है।
      गुरुत्वाकर्षण कम होने से हड्डीयाँ कमजोर होते जाती है।

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    1. स्ट्रिंग सिद्धांत को खोजने वाला कोई एक वैज्ञानिक नही है, इसके पीछे कई वैज्ञानिक है। इस लेख मे कुछ जानकारी है उसे देखें:
      https://vigyanvishwa.in/2011/12/12/stringtheory7/

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    1. इलेक्ट्रान की ऊर्जा फोटानो के अवशोषण से उत्पन्न होती है। इलेक्ट्रान नियमित रूप से फोटानो का अवशोषण उत्सर्जन करते रहते है। इलेक्ट्रानो को फोटान प्रकाश, उष्मा या विद्युत प्रवाह से मिलते है।

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    1. राकेट मे भी पंख होते है, ध्यान से चित्रो को देखीये। सुखोई का आकार तीकोना होता है। यह तिकोना आकार ही पंख का कार्य करता है।

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    1. अत्यधिक चुम्बकीय, बहुत तेज घूर्णन करने वाले न्यूट्रॉन तारे हैं, जो की विद्युतचुम्बकीय विकरण उतपन्न करते हैं। इनका विकरण तभी आभासित होता है जब विकरण पैदा होने की दिशा प्रथ्वी की ओर हो। क्योंकि इनके द्वारा उतपन्न विकरण निश्चित अंतराल के बाद ही पृथ्वी पर आता है (यानी इनका सिग्नल निरंतर ना आकर रुक रुक कर आता है), इसलिए इन्हें प्रकाशस्तंभ प्रभाव देने वाले तारों की संज्ञा भी दी जाती है। चूँकि न्यूट्रॉन तारे बहुत ही घने निकाय होते हैं, उसकी घूर्णन अवधि और इसी तरह उनकी पल्स (धड़कन) के बीच का अंतराल बहुत ही नियमित होता है। कुछ पल्सर की धड़कन की नियमितता सटीक रूप में एक परमाणु घड़ी जैसी होती है। उनके पल्स विस्तार की प्रेक्षित अवधि १.४ मिली सेकण्ड से लेकर ८.५ मिली सेकण्ड है।

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    1. हाँ सारा पदार्थ ऊर्जा मे बदला जा सकता है लेकिन उसे नियंत्रित करना अत्यंत कठीन होगा।
      एक आसान तरिका पदार्थ के प्रतिपदार्थ( एंटी मैटर) से टकराव का है जिसमे पदार्थ के दोनो रूप ऊर्जा मे बदल जाते है।

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    1. 1.सूर्य पर जीस मात्रा मे ऊर्जा उत्पन्न होती है वह केवल नाभिकिय संलयन से संभव है।
      2. सूर्य पर उपस्थित पदार्थो की मात्रा को उससे उत्सर्जित प्रकाश के वर्णक्रम से जांचा जा सकता है। यह बताता है कि सूर्यपर मुख्यत: हायड्रोजन और हिलियम ही है। सूर्य की यह संरचना के नाभिकिय संलयम से ही संभव है।

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    1. एसीड से लोहे को साफ़ करने की बजाये किसी रेतमल पेपर से जंग को अच्छी तरह से हटाये, उसके बाद आयरन आक्साईड प्रायमर लगाये, अंत मे पेंट की परत।

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  7. सर.लड़के और लड़कियों. में एक दूसरे के पृति आकर्षित होनें के क्या कारन है. क्यु होता है ऐसा की कोई लड़का किसी लड़की कोदेखे या लड़की किसी लड़के कोदेखे तो एक.आकर्षन होता है किसी को कोई अच्छा लगता है कीसी को नई..
    या ईसका कोई neturaly reason है

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    1. हर जीवन (मानव/प्राणी/बैक्टेरीया/पक्षी) का एक प्राथमिक उद्देश्य है संतानोत्पत्ती। यह हमारे DNA मे है, जब कोई भी जीवन संतानोत्पत्ति की आयु मे आता है तब उसके शरीर मे संतानोत्पत्ति/प्रेम से जुड़े हार्मोन स्रावित होते है और वे ही विपरित लिंगी की ओर आकर्षण बढ़ाते है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।

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    1. न्यूटन के गति नियम तीन भौतिक नियम हैं जो चिरसम्मत यांत्रिकी के आधार हैं। ये नियम किसी वस्तु पर लगने वाले बल और उससे उत्पन्न उस वस्तु की गति के बीच सम्बन्ध बताते हैं। इन्हें तीन सदियों में अनेक प्रकार से व्यक्त किया गया है। न्यूटन के गति के तीनों नियम, पारम्परिक रूप से, संक्षेप में निम्नलिखित हैं-
      प्रथम नियम: प्रत्येक पिंड तब तक अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है।
      द्वितीय नियम: किसी भी पिंड की संवेग परिवर्तन की दर लगाये गये बल के समानुपाती होती है और उसकी (संवेग परिवर्तन की) दिशा वही होती है जो बल की होती है।
      तृतीय नियम: प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।
      सबसे पहले न्यूटन ने इन्हे अपने ग्रन्थ फिलासफी नेचुरालिस प्रिंसिपिआ मैथेमेटिका (सन १६८७) में संकलित किया था। न्यूटन ने अनेक स्थानों पर भौतिक वस्तुओं की गति से सम्बन्धित समस्याओं की व्याख्या में इनका प्रयोग किया था। अपने ग्रन्थ के तृतीय भाग में न्यूटन ने दर्शाया कि गति के ये तीनों नियम और उनके सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम सम्मिलित रूप से केप्लर के आकाशीय पिण्डों की गति से सम्बन्धित नियम की व्याख्या करने में समर्थ हैं।

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    1. KELT-9b नामका ग्रह सूर्य से तो नही लेकिन बहुत से अधिकतर तारों से गर्म है, इसका तापमान 4,600 Kelvin है। सूर्य का तापमान 5,778 K है।

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  8. सर,
    में ये पूछना चाहता हूँ कि मेने पड़ा था कि
    11 k.m. से अधिक ऊंचाई पर ऑक्सीजन
    सिलेंडर काम नही करता ।
    क्या ये सही है सर,,
    सही है तो क्यू काम नही करता

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    1. यदि स्विच आन है तो एसी के कुछ भाग काम कर रहे है, बिजली की अल्पमात्रा मे खपत हो रही है, बिजली बिल आयेगा। वैसे ही पंखे का है अधिक रफ़्तार मे पंखा अधिक बिजली की खपत, अधिक बिल।

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  9. सर जैसे हवाई जहाज जब हवा में होती है तब नीचे या तो जमींन होती है या तो पानी उसी प्रकार हमारी धरती लटकी हुई है तो नीचे क्या है जमींन है या पानी

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    1. न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम[संपादित करें]

      यदि पृथ्वी के द्रव्यमान के तुल्य द्रव्यमान वाली कोई वस्तु इसकी तरफ गिरे तो उस स्थिति में पृथ्वी का त्वरण भी नगण्य नहीं बल्कि मापने योग्य होगा।
      इसके बाद सर आइज़क न्यूटन ने अपनी मौलिक खोजों के आधार पर बताया कि केवल पृथ्वी ही नहीं, अपितु विश्व का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। दो कणों के बीच कार्य करनेवाला आकर्षण बल उन कणों की संहतियों के गुणनफल का (प्रत्यक्ष) समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है। कणों के बीच कार्य करनेवाले पारस्परिक आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) तथा उससे उत्पन्न बल को गुरुत्वाकर्षण बल (Force of Gravitation) कहा जाता है। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त नियम को न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम (Law of Gravitation) कहते हैं। कभी-कभी इस नियम को गुरुत्वाकर्षण का प्रतिलोम वर्ग नियम (Inverse Square Law) भी कहा जाता है।
      उपर्युक्त नियम को सूत्र रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है : मान लिया m1 और संहति वाले m2 दो पिंड परस्पर d दूरी पर स्थित हैं। उनके बीच कार्य करनेवाले बल f का संबंध होगा :
      F=G m1 m2/d‍2 — (१)
      यहाँ G एक समानुपाती नियतांक है जिसका मान सभी पदार्थों के लिए एक जैसा रहता है। इसे गुरुत्व नियतांक (Gravitational Constant) कहते हैं। इस नियतांक की विमा (dimension) है और आंकिक मान प्रयुक्त इकाई पर निर्भर करता है। सूत्र (१) द्वारा किसी पिंड पर पृथ्वी के कारण लगनेवाले आकर्षण बल की गणना की जा सकती है।

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    1. यह न्युटन ने अपने गुरुत्वाकर्षण के नियम मे पहले से ही प्रमाणित किया हुआ है, आप नया क्या प्रमाणित करना चाहते है?

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    1. कोई भी पिंड किसी अन्य पिंड के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव मे उसकी परिक्रमा करता है। गुरुत्वाकर्षण प्रभाव दूरी के वर्ग के विलोम मे कम होता है। चंद्रमा की दूरी पृथ्वी से कम है, जिससे चंद्रमा पर पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण सूर्य की तुलना मे अधिक प्रभावी है। इस वजह से चंद्रमा सूर्य की नही पृथ्वी की परिक्रमा करता है।

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    1. जलना अर्थात आक्सीकरण। कोई भी वस्तु बिना आक्सीजन के जल नही सकती। जलना यह एक रासायनिक प्रक्रिया है।
      हायड्रोजन का हिलियम मे परिवर्तन जलना नही है, यह एक नाभिकिय प्रक्रिया है जिसमे हायड्रोजन के परमाणु आपस मे जुड़कर हिलियम का परमाणु बनाते है। यह रासायनिक नही नाभिकिय प्रक्रिया है।

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    1. उसी यान से वापिस आते है। वापिस आने अधिक मेहनत नही करनी होती बस यान को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव मे गति कम कर के ले आओ, बाकि काम गुरुत्वाकर्षण कर देता है। शटल जैसे यान पृथ्वी पर विमान जैसे उतर जाते है, जबकि सोयुज जैसे यान पैराशुट की मदद से नीचे आते है।

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  10. सर मनुष्य के शरीर का तापमान 90.6f hota h यदि किसी तरह उसके तापमान को 40-45f पर नियंत्रण कर ले तो मनुष्य 1000-2000 साल जिवित रह सकता है। क्या ये सही है?

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  11. सर मे शुभम देसाई । light ki speed he 299 792 458 m / s or earth se sun ki duri 149.6 million km uske hisanb se average 30 km / s menas 30000 m / s ki raftar se light aayegi earth ke pass to light ko earth ke pass ane me 500 sec me hence 6 min and 20 sec. तो मेरा मुख्य सवाल हे की हमारी नजर भी light की तरह हे. जाब हम सून की ओर देखते हे तो हमारी नजर को भी 6 min 20 sec लागता होगा. इस हिसब से जव हम sun को देखते हे तो हम future dekhate he ky….??

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  12. सर जब सूर्य आकाश गंगा का चक्कर लगाता है तो सूर्य अन्य ग्रह जैसे मंगल ,बुध ,या अन्य के मार्ग को काटता है या नही। और ये आकाश गंगा का एक चक्कर कितने समय में पूरा करता है।

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    1. अर्थिंग (earthing) :
      पृथ्वी का वोल्टेज शून्य माना जाता है । इसलिए किसी वैद्युतिक साधन कोे पृथ्वी से जोड देने पर उसका वोल्टेज भी शून्य हो जाता है। किसी ताँबे या जी.आईं. की प्लेट को पृथ्वी के अन्दर 2.5 या 3 मीटर नीचे अथवा नमी तक लगा देने को अर्थिंग कहते हैं। इसका वोल्टेज शून्य होता है और इससे सम्पर्क में आने वाले सभी विद्युतीय साधनों का भी वोल्टेज शून्य हो जाता है चाहे उस साधन में कितना भी वोल्टेज हो।
      दूसरे शब्दों में कहूं तो,
      किसी विद्युत उपकरण के विद्युत धारा वहन न करने वाले धातु भागों तथा न्यूट्रल तार को नगण्य प्रतिरोध तार द्वारा भू-भाग से इस प्रकार सम्बन्धित करने की क्रिया को, जिसके द्वारा उसमें आने वाले किसी भी विद्युत आवेश को बिना किसी खतरे के पृथ्वी में विसर्जित कर दिया जाये, अर्थिंग कहलाता है। अर्थिंग के लिए किसी नगण्य प्रतिरोधी चालक तार का उपयोग किया जाता है, जिसका एक सिरा भू-सम्पर्कित किए जाने वाले उपकरण से तथा दूसरा सिरा भूमि-भाग से संयोजित होता है। अर्थिंग के लिए उपयोग में लाया जाने वाला यह तार सतत् (continuous) होना चाहिए तथा प्रभावी रूप से भू-भाग से सम्बन्धित होना चाहिए।
      अर्थिंग के उदेश्य-
      1) जीवन का बचाव (safety of human life) :
      किसी वैद्युतिक उपकरण की धात्विक बॉडी का सम्बन्ध विद्युत से हो जाता है या मशीनों की वाइंडिंग या वायरिंग में लीकेज पैदा हो जाती है अथवा इन्मुलेशन खराब होने से उसके उपरी भाग में विद्युत आ जाती है तो स्पर्श करने मात्र से जीवन समाप्त हो सकता है।
      यदि ‘अर्थ’ का संबंध उपकरण या मशीन से कर दिया जाए तो स्पर्श करने वाले व्यक्ति को कोई हानि नहीं होगी।
      2) लाइन के वोल्टेज को स्थिर रखने के लिऐ ‘ अर्थिंग’ किया जाता है। प्रत्येक आल्टरनेटर और ट्रान्सफार्मर के न्यूट्रल को ‘ अर्थ’ किया जाता है।
      3) बडी़-बडी़ बिल्डिंगों को आसमानी विधुत से बचाने के लिए तडि़त चालक (Lighting arrester) प्रयोग किए जाते हैं जिससे आसमानी विद्युत अर्थ हो जाती है।
      4) ओवरहैड लाइन से लगी वैद्युतिक मशीनों आदि को आसमानी विद्युत से बचाने के लिए ‘ अर्थिंग’ की जाती है।
      5) टैलीग्राफी में “अर्थ” को रिटर्न वायर के रूप में प्रयोग किया जाता है।
      अर्थिंग न होने से हानियाँ :
      1) लीकेज या उपकरण की बॉडी का ‘ जीवित ‘ तार से सम्पर्क हो जाने पर धवका (shock) लग जाता है और मृत्यु भी हो सकती है।
      2) बडी़-बडी़ बिल्डिंग और विद्युत मशीनों को आसमानी विद्युत से हानि हो सकती है।
      3) न्यूट्रल के द्वारा लाइन में स्थिर वोल्टेज नहीं मिलते हैं।

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  13. हमारे शरीर पर गुरुत्वाकर्षण बल काम क्यों करता है और अगर यह प्रकृति का नियम है तो गुरुत्वाकर्षण बल को नियंत्रित किया जा सकता है या नहीं? अगर किया जा सकता है तो कैसे?

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    1. शरीर पर ही नही, हर उस वस्तु जो द्रव्यमान रखती है गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव मे आती है। इस बल पर नियंत्रण का कोई ज्ञात तरिका/तकनीक अब तक नही है।

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  14. सर जैसे आपने नीली शर्ट पहनी है तो सर क्या कारण है कि वह शर्ट नीली ही दिखती है मतलब हमारी आँखे रंग पहचान कैसे करती हैं pls

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  15. सर ये बताइये की जो tv का रिमोट में बल्ब जैसा लगा होता है उसे बटन दबाकर देखने से कोई प्रकाश नही दिखता पर वही बल्ब को मोबाइल के कैमरे में देखने से प्रकाश दिखाई देता है ऐसा क्यों
    कैसे ????????

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    1. टी वी का रिमोट अवरक्त (infrared) किरणो का प्रयोग करता है जिसे मानव आंखे नही देख सकती है। मोबाईल कैमरा उसे आसानी से देख सकता है। सारे नाईट विजन कैमरे इन्फ़्रा रेड किरणो का ही प्रयोग करते है।

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    1. पृष्ठ तनाव (Surface tension) किसी द्रव के सतह या पृष्ट का एक विशिष्ट गुण है। दूसरे शब्दों मे, पृष्ठ-तनाव के कारण ही द्रवों का पृष्ट एक प्रकार की प्रत्यास्थता (एलास्टिक) का गुण प्रदर्शित करता है। पृष्ट तनाव के कारण ही पारे की बूँद, गोल आकार धारण कर लेती है न कि अन्य कोई रूप (जैसे घनाकार)। पृष्ठ तनाव के कारण द्रव अपने पृष्ठ (सतह) का क्षेत्रफल न्यूनतम करने की कोशिश करते हैं।

      गणितीय रूप में, पृष्ठ के इकाई लम्बाई पर लगने वाले बल को द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं। दूसरे शब्दों में, द्रव के पृष्ठ के इकाई क्षेत्रफल की वृद्धि के लिये आवश्यक ऊर्जा को उस द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं। इसका मात्रक बल प्रति इकाई लंबाई (जैसे न्यूटन/मीटर), या ऊर्जा प्रति इकाई क्षेत्र (जैसे जूल/वर्ग मीटर) है।

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    1. मुर्गी पहले बनी या अंडा, यह सवाल दुनिया के हर शख्स से पूछा जाता है. अब तक इसका ठोस जवाब किसी को नहीं सूझा है. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि संसार में पहले मुर्गी आई और फिर उसने अंडा दिया.
      ब्रिटेन के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बात के पुख्ता सबूत मिले हैं कि दुनिया में पहले मुर्गी बनी. इंग्लैंड की शेफील्ड और वारविक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि अंडे की जांच से उन्होंने यह राज खोला है. वैज्ञानिकों के मुताबिक अंडे के छिलके में एक खास तरह का प्रोटीन होता है जो सिर्फ मुर्गी के अंडाशय से निकलता है. इसलिए कहा जा सकता है कि पहले मुर्गी बनी और फिर उसने अंडा दिया.
      वैज्ञानिक यह पहले से जानते थे कि वोक्लेडिडिन-17 (OC-17) नामका यह प्रोटीन अंडे का खोल बनाने में अहम भूमिका निभाता है. अब नई तकनीक के जरिए यह पता चला है कि OC-17 कैसे बनता है. जब कैल्शियम कार्बोनेट के साथ OC-17 मिलता है अंडे का खोल बनने लगता है. इसके बाद सवाल उठता है कि मुर्गी कैसे बनी. वैज्ञानिकों का कहना है कि अंडा देने वाली पक्षियों की कुछ अन्य प्रजातियों ने मुर्गी को जन्म दिया.
      इस नतीजे को एक बड़ी कामयाबी बताते हुए शेफील्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन हार्डिंग कहते हैं, ”यह जानना कि मुर्गी अंडे का खोल कैसे बनाती हैं, वाकई में अनूठा अनुभव है. इससे एक और राह खुली है. अब नई डिजायन का पदार्थ बनाने के काम मदद मिलेगी. प्रकृति ने विज्ञान और तकनीक के नायाब जोड़ से हर तरह की समस्या के हल निकाले हैं. हम इनसे काफी कुछ सीख सकते हैं.”

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    1. आसमान से गीरने वाली बिजली की मात्रा अत्याधिक होती है, लेकिन अत्याधिक कम समय मे होती है। बिजली के गिरने का पूर्वानुमान कठीन है, और उसकी मात्रा का नियंत्रण भी कठीन है, जिससे उसका भंडारण लगभग असंभव हो जाता है।

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  16. अल्बर्ट आइंस्टीन ने कभी भगवत गीता या अन्य हिन्दू धर्म ग्रंथ के बारे में कभी कोई टिपण्णी की है के इन ग्रंथो से मुझे अपेक्षित सिद्धांत की प्रेरणा दी कहा जाता है जब आइंस्टीन और रबीन्द्रनाथ टैगोर की भेठ हुई थी तब आइंस्टीन ने ये बात कही के मैने भगवत गीता से प्रेरणा मिली क्या टैगोर और आइंस्टीन की बातचीत में भगवत गीता का कोई ज़िकर मिलता है?

    येह टिप्पणियां मैने इंटरनेट पे पढ़ी है पर कभी किसी पुस्तक में नहीं

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    1. विज्ञान के अनुसार पृथ्वी पर समस्त जीवन का उद्भव एक प्राथमिक एककोशीय जीव से हुआ है। इसी एक कोशीय जीव से सभी तरह का जीवन विकसीत हुआ है, जिसमे पेड़ पौधे प्राणी का समावेश है। इस सिद्धांत को विकासवाद कहते है। इसके अनुसार मानवो और वानरो का पूर्वज एक ही जीव था।
      इसके अनुसार कोई एक व्यक्ति सबसे पहला नही है।

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  17. Sir..
    हमारी आँख केवल अपने अंगूठे ऊपरी भाग जितने भाग को ही स्पष्टता से देख पाती है ये मैंने आपकी वेबसाइट पर पढ़ा था
    लेकिन डिजिटल कैमरा जो तस्वीर देखता है वो पूरी तस्वीर के हर भाग को बराबर ही स्पष्टता से देखता है हमारी आँख क्यों नहीं देख पाती ।

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    1. पेन ड्राइव सूचना के स्थानांतरण के लिये USB प्रोटोकॉल का प्रयोग करता है। इस प्रोटोकॉल का प्रयोग माउस, कीबोर्ड, प्रिंटर, मोबाइल जैसे उपकरण भी करते है।

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      1. इसे आभामण्डल कहते है जो एक प्रकाश संबंधित वायुमण्डलीय घटना है जिसके अंतर्गत सूर्य अथवा चंद्रमा के इर्दगिर्द एक अस्थाई प्रकाशकीय घेरा दृष्टिगोचर होता है। यह वायुमण्डलीय घटना कुछ विशेष प्रकार के बादलों के साथ जुड़ी हुई है।

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  18. SIR..
    निकोला टेस्ला सर नेअपने समय में उड़न तश्तरी जिसे आज कल UFO कहने लगे हैं उसका अविष्कार सच में किया था या वो केवल उनकी कल्पना मात्र थी या फिर ये बात अफवाह हैं

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