लेखक : ऋषभ
तारों के जीवन और विकास के अध्ययन पर आगे बढ़ने से पहले से पहले उनपर चलरही नाभिकिय अभिक्रियाओं को जानना महत्वपूर्ण है। तारकीय खगोलभौतिकी के अध्ययन मे भौतिकी के अन्य विषय जैसे नाभिकिय भौतिकी(nuclear physics), उष्मागतिकी(thermodynamics), कण भौतिकी(particle physics), विद्युतगतिकी(electrodynamics), सांख्यकिय यांत्रिकी(statistical mechanics) तथा गुरुत्विय भौतिकी(gravitational physics) की भी भूमिका होती है। यह खगोलभौतिकी की सर्वाधिक सक्रिय शाखा है। ’मूलभूत खगोलभौतिकी (Basics of Astrophysics)’ शृंखला के सत्रहवें लेख मे हम तारकीय नाभिकीय संश्लेषण(stellar nucleosynthesis) की प्रमुख अभिक्रियाओं पर चर्चा करेंगे। यह एक महत्वपूर्ण लेख है तथा तारकीय विकासक्रम मे एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
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तारों मे चल रही नाभिकिय अभिक्रियायें
तारों मे चल रही नाभिकिय अभिक्रियाओं के अध्ययन से पहले हम ब्रह्माण्ड की मूलभूत/आधारभूत संरचना को देखते है। ब्रह्मांड मूल रूप से दो मुख्य तत्वो से बना है, हायड्रोजन तथा हिलियम। तारो का जन्म धुल और गैस के विशालकाय बादलों के अपने ही गुरुत्चाकर्षण से संपिड़ित होने से होता है। ये बादल भी हायड्रोजन और हिलियम से बने होते है। रसायन शास्त्र की परंपरा से विपरित खगोलभौतिकी मे हायड्रोजन और हिलियम को छोड़कर सभी तत्व धातु(metal) होते है। इसलिये खगोलविज्ञान मे अधातु तत्व जैसे कार्बन, नाइट्रोजन, आक्सीजन इत्यादि भी धातु ही है। यह परंपरा प्रथम दो तत्वो की सापेक्षिक रूप से प्रचुर उपलब्धता के कारण है। अब तारों के जीवन का आरंभ हायड्रोजन के संलयन से शुरु होता है। इस लेख मे हम तारों के विकास पर फ़ोकस ना करते हुये केवल अभिक्रियाओं पर सीमित रहेंगे। अगला लेख तारों के विकास पर केंद्रित होगा।

हायड्रोजन संलयन(Hydrogen Fusion)
हायड्रोजन संलयन किसी भी तारे मे चल रही सबसे मूलभूत नाभिकिय अभिक्रिया है। हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख लेख मे हमने देखा कि कोई भी तारा जिसके केंद्र मे हायड्रोजन संलयन की प्रक्रिया चल रही हो मुख्य अनुक्रम का तारा कहलाता है। हमारा सूर्य मुख्य अनुक्रम का तारा है। हायड्रोजन के संलयन से हिलियम के निर्माण की दो मुख्य अभिक्रियाये है, प्रोटान-प्रोटान शृंखला(PP Chain) तथा कार्बन-नाइट्रोजन-आक्सीजन चक्र(CNO Cycle)।
PP शृंखला
PP शृंखला का अर्थ है प्रोटान-प्रोटान शृंखला। इस अभिक्रिया मे 4 हायड्रोजन के नाभिक मिलकर हिलियम का एक नाभिक बनाते है जोकि नीचे चित्र मे दर्शाया गया है।

दो प्रोटान जुड़कर एक ड्युटेरीयम(deuterium) का नाभिक बनाते है जिसमे एक प्रोटान और एक न्युट्रान होता है। इसके दो चरण होते है। पहले दो प्रोटान मिलकर एक डाई-प्रोटान(द्वि-प्रोटान/diproton) बनाते है। इसमे से एक प्रोटान न्युट्रान मे परिवर्तित होता है जिसमे एक एक पाजीट्रान (positron )और एक न्युट्रीनो उत्सर्जित होते है, इसे बीटा धन क्षय (beta plus decay)कहा जाता है। अब इस ड्युटेरियम के नाभिक पर एक और प्रोटान जुड़ता है और हिलियम-3 नाभिक बनाता है।(उपरोक्त चित्र देखे)। अब यह हिलियम-3 दूसरे हिलियम-3 से मिलकर हिलियम-4 तथा दो हायड्रोजन परमाणु बनाते है। ध्यान रहे कि इस समस्त प्रक्रिया मे कुल द्रव्यमान संख्या(नाभिको की संख्या) संरक्षित(समान) रही है।
यह नाभिकिय अभिक्रिया ही हमारे जीवन का स्रोत है। यही वह प्रक्रिया है जिससे सूर्य की ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसमे एक अभिक्रिया 26.4 MeV ऊर्जा निर्माण करता है। सूर्य मे प्रतिसेकंड उत्पन्न होने वाली ऊर्जा संपूर्ण इतिहास मे मानव द्वारा अब निर्मित कुल ऊर्जा से अधिक है। प्रोटान-प्रोटान शृंखला अभिक्रिया लगभग 150 लाख केल्विन पर आरंभ होती है। जब संपिडित होते हुये गैस के बादल इस तापमान पर पहुंचते है तारे का जन्म होता है। यह अभिक्रिया धीमी है। सूर्य जैसे तारे के लिये अपने केंद्रक मे अपनी हायड्रोजन को हिलियम के परिवर्तित करने के लिये 10अरब वर्ष लग जायेंगे। यदि आप इस अभिक्रिया को नही समझ पा रहे तब भी ठीक है लेकिन इस अभिक्रिया के महत्व को समझना आवश्यक है।
CNO चक्र(CNO Cycle)
CNO का अर्थ है कार्बन-नाइट्रोजन-आक्सीजन(Carbon-Nitrogen-Oxygen)। CNO चक्र भी एक ऐसी अभिक्रिया है जिसमे हायड्रोजन से हिलियम का र्निर्माण होता है, इस प्रक्रिया मे कार्बन, नाइट्रोजन और आक्सीजन उत्प्रेरक(catalysts) की भूमिका निभाते है।CNO चक्र के द्वारा मुख्य रूप से ऊर्जा का उत्पादन सूर्य के द्रव्यमान से 1.3 गुणा अधिक द्रव्यमान वाले तारों मे होता है। इस अभिक्रिया के आरंभ के लिये तापमान 170 लाख K चाहिये। सूर्य के केंद्रक का तापमान 150 लाख K है और प्रोटान-प्रोटान शृंखला ही मुख्य अभिक्रिया है। इस अभिक्रिया को नीचे दिये चित्र मे दर्शाया गया है।

CNO चक्र(CNO Cycle)
हिलियम संलयन(Helium Fusion)
ट्रिपल अल्फ़ा प्रक्रिया(Triple Alpha Process)
तारे द्वारा अपने केंद्रक मे संपूर्ण हायड्रोजन को हिलियम मे संलयन करने के पश्चात अगली नाभिकिय अभिक्रिया की बारी आती है। हिलियम के पश्चात ट्रिपल अल्फ़ा प्रक्रिया से कार्बन का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया सरल है। दो हिलियम-4 के नाभिक जुड़कर बेरेलियम-8 बनाते है। इस बेरेलियम-8 से हिलियम-4 का एक और नाभिक जुड़ता है और स्थाई कार्बन-12 का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया से 7.275 MeV ऊर्जा बनती है और इसे 1000 लाख केल्विन तापमान चाहिये।
इस अभिक्रिया से संबधित महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह तापमान पर निर्भर करती है। प्रोटान-प्रोटान शृंखला अभिक्रिया मे उत्सर्जित ऊर्जा तापमान के चतुर्थ घातांक के अनुपात मे होती है, जबकि ट्रिपल अल्फ़ा प्रक्रिया मे यह अत्याधिक अर्थात तापमान के 17 वे घातांक के अनुपात मे होती है। इस तरह से उत्सर्जित ऊर्जा भीषण होती है। जैसे ही कोई तारा हिलियम से कार्बन बनाना आरंभ करता है उसका अंत समीप होता है।

भारी तत्वों का निर्माण
नाभिकिय अभिक्रियायें कार्बन पर ही नही रूकती है। लेकिन यह ध्यान मे रखा जाना चाहिये कि केवल महाकाय तारे ही इस के आगे पूरे पैमाने पर नाभिकिय अभीक्रियायें जारी रख सकते है। हिलियम संलयन के बाद की नाभिकिय अभिक्रियाओं पर एक नजर डालते है।
कार्बन संलयन(Carbon Fusion)
कार्बन संलयन अत्याधिक उष्ण तापमान 5000 लाख केल्विन पर आरंभ होता है। इस प्रक्रिया के उत्पाद निआन, आक्सीजन, सोडीयम और मैग्नेशियम है। 8 सौर द्रव्यमान से कम द्रव्यमान वाले तारों मे कार्बन संलयन संभव नही है। 8से 11 सौर द्रव्यमान वाले तारों मे कार्बन संलयन आरंभ तो होता है लेकिन तारा उसे जारी नही रख पाता है। 11 सौर द्रव्यमान से अधिक द्रव्यमान वाले तारे ही अधिक भारी तत्वों का संलयन कर पाते है।
आक्सीजन संलयन(Oxygen Fusion)
आक्सीजन नाभिक जोकि इससे पहले की अभिक्रियाओं से निर्मित होता है उसे ही निर्माण होने के लिये ही अत्याधिक तापमान चाहीये। आक्सीजन के संलयन के लिये उस तापमान से कहीं अधिक तापमान अर्थात 2 अरब केल्विन का तापमान चाहिये तब आक्सीजन से सिलिकानम फास्फ़ोरस और सल्फ़र के नाभिक बनते है। इस अभिक्रिया को पूरा होने मे कुछ वर्ष लगते है और उससे उत्पन्न ऊर्जा भीषण होती है।
अल्फ़ा सीढ़ी(Alpha Ladder)
एक बार केंद्रक मे सिलिकान बन जाता है, अभिक्रियाओं की एक सीढ़ी तैयार होती है। सिलिकान का द्रव्यमान क्रमांक 28 है। सिलिकान के पश्चात भारी अल्फ़ा तत्व बनते है, इसका अर्थ है कि सिलिकान के पश्चात वह तत्च बनते है जिनका द्रव्यमान क्रमांक 4 के गुणांक मे होता है। इसे नीचे चित्र मे दिखाया गया है।

यह अभिक्रिया क्रम Ni-56 पर थम जाता है। इसके शृंखला की कड़ी मे अगला तत्च Zn-60 है लेकिन निकेल से जिंक बनाने वाली प्रक्रिया उष्मागतिकीय दृष्टी से प्रतिकूल होती है। क्योंकि यह अभिक्रिया ऊष्माशोषी(endothermic) होती है, अर्थात यह अभिक्रिया ऊर्जा उत्पन्न करने की बजाय ऊर्जा लेना शुरु कर देती है। सिलिकान संलयन लगभग 3 अरब केल्विन पर आरंभ होता है। इस अभिक्रिया की प्रबलता इसी तथ्य से समझी जा सकती है कि प्रोटान-प्रोटान शृंखला को पूरा होने मे दस अरब वर्ष लगते है जबकि सिलिकान संलयन एक दिन मे पूरा हो जाता है। निकेल और लोहा ये दो तत्व है जो किसी तारे के केंद्रक मे नाभिकिय संलयन के द्वारा बन पाते है। इसके पश्चात तारा संपिडित होकर या तो न्युट्रान तारा बनता है या एक ब्लैक होल बन जाता है।
लेखक का संदेश
अब हमने अपने सारे पत्ते खोल दिये है। इस लेख के साथ खगोल भौतिकी के सारे मूलभूत सिद्धांतो को हमने देख लिया है। इसके पश्चात इन सिद्धांतो के प्रयोग से हम तारों के जीवन चक्र का अध्ययन करेंगे। हमने एक आसान मूलभूत प्रश्न से आरंभ किया था कि खगोल भौतिकी क्या है ? इसके बाद हमने विद्युत चुंबकीय वर्णक्रम(EM spectrum), स्टीफ़न का नियम(concept of magnitude), परिमान के सिद्धांत(concept of magnitude), तारों का वर्गीकरण( classification of stars), साहा का समीकरण(Saha’s equation), तारो का वातावरण(atmosphere of stars) और सबसे महत्वपूर्ण हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख (Hertzsprung Russell diagram)की चर्चा की। इन सब सिद्धांतो के साथ खेलते हुये अब हम अगले आलेखों मे तारकीय विकास की चर्चा करेंगे। हमसे जुड़े रहीये।
मूल लेख :NUCLEAR REACTIONS IN STARS
लेखक परिचय
लेखक : ऋषभ

लेखक The Secrets of the Universe के संस्थापक तथा व्यवस्थापक है। वे भौतिकी मे परास्नातक के छात्र है। उनकी रूची खगोलभौतिकी, सापेक्षतावाद, क्वांटम यांत्रिकी तथा विद्युतगतिकी मे है।
Admin and Founder of The Secrets of the Universe, He is a science student pursuing Master’s in Physics from India. He loves to study and write about Stellar Astrophysics, Relativity, Quantum Mechanics and Electrodynamics.
2 विचार “खगोल भौतिकी 17 : तारों मे चल रही नाभिकिय प्रक्रियायें(NUCLEAR REACTIONS IN STARS)&rdquo पर;