खगोल भौतिकी 18 :श्वेत वामन(WHITE DWARFS) क्या होते है और वे कैसे बनते है ?


लेखक : ऋषभ
इस शृंखला के पिछले सत्रह लेखों मे हमने जो जानकारी प्राप्त की है, अब उस जानकारी के अनुप्रयोग का समय है। हमने एक के बाद खगोलभौतिकी के विभिन्न सिद्धांतो को समझा है। अब हम उन सिद्धांतो के प्रयोग से खगोल भौतिकी की सबसे रोचक शाखा ‘तारकीय विकास(Stellar Evolution)’ को समझेंगे। ब्रह्माण्ड मे लगभग एक ट्रिलियन ट्रिलियन तारे है। हमने उन तारो को उनकी सतह के तापमान और विद्युत चुंबकीय वर्णक्रम के अनुसार सात वर्गो मे बांटा है। हमने हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख का अध्ययन किया है और तारों मे चलने वाली नाभिकिय अभिक्रियाओं को समझा है। इन सभी सिद्धांतो के आधार पर हम सूर्य के जैसे मध्यम आकार के तारो के जन्म और विकास को जानेंगे। । ’मूलभूत खगोलभौतिकी (Basics of Astrophysics)’ शृंखला के अठारहवें लेख हम चर्चा करेंगे कि श्वेत वामन(white dwarfs) तारे क्या है और वे कैसे बनते है ?

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तारों का जन्म(Birth of Stars)

हम चर्चा की शुरुवात एकदम आरंभ से करेंगे। ब्रह्मांड मुख्य रूप से दो मुख्य तत्वों से बना है, हायड्रोजन और हिलियम। ब्रह्मांड मे धूल और गैस के विशालकाय बादल है जो इन तत्वों से बने है। इन बादलो का आकार कई प्रकाशवर्ष मे होता है। समय के साथ ये बादल निकट आते है। जब धुल और गैस के इन बादलो मे पर्याप्त द्रव्यमान जमा होजाता है तब मे अपने गुरुत्वाकर्षण से संपिडित(collapse) होना शुरु हो जाते है। इस क्रांतिक द्रव्यमान सीमा(critical mass limit) को जिंस सीमा(Jeans limit) कहते है। यह संपिड़न लंबे समय तक चलते रहता है और यह बादल गैस के घूर्णन करते गोले मे बदल जाता है, इस गोले के चारो ओर बादल की शेष गैस और धुल होती है। गैस और धूल के संपिड़न से बने इस गोले की उष्मा परमाणुओं के आपस मे टकराव से उत्पन्न उष्मा से बढ़ते जाती है। जब यह तापमान 150 लाख केल्विन तक पहुंच जाता है तब हायड्रोजन संलयन(hydrogen fusion) आरंभ होता है और तारे का जन्म होता है। अब यह तारा हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख मे मुख्य अनुक्रम(main sequence) के तारो मे प्रवेश कर लेता है।

मुख्य अनुक्रम अवस्था (The Main Sequence Phase)

हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख मे मुख्य अनुक्रम वह पट्टा है जिसके तारे अपने केंद्रक मे हायड्रोजन संलयन से हिलियम बनाते रहते है। हमारा सूर्य मुख्य अनुक्रम का तारा है। मुख्य अनुक्रम चरण की विलक्षण बात यह है कि इस चरण मे तारा प्रसन्न अवस्था मे रहता है, इसका अर्थ यह है कि उसमे आदर्श द्रवस्थैतिक संतुलन(perfect hydrostatic equilibrium) होता है। उसके महाकाय आकार के कारण गुरुत्वाकर्षण उसे संपिडित करने का प्रयास करता है। तारे के केंद्र की दिशा मे इस गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करने के लिये नाभिकिय संलयन से उत्पन्न ऊर्जा द्वारा गैस का दबाव बाह्य दिशा मे कार्य करता है। गुरुत्वाकर्षण और नाभिकिय संलयन ऊर्जा से उत्पन्न दबाव एक दूसरे को संतुलन मे रखते है। यह नीचे चित्र मे दर्शाता गया है।

तारे के केंद्रक मे प्रोटान-प्रोटान शृंखला या CNO चक्र के द्वारा हायड्रोजन संलयन से हिलियम का निर्माण करती है जिसे हमने पिछले लेखों मे देखा है। सूर्य के जैसे तारो मे प्रोटान-प्रोटान अभिक्रिया प्रमुख होती है, जोकि धीमी प्रक्रिया है। इसलिये सूर्य को अपनी संपूर्ण हायड्रोजन को जलाकर हिलियम मे परिवर्तित करने के लिये दस अरब वर्ष लगेंगे। ध्यान दिजिये कि यह नाभिकिय अभिक्रिया केवल सूर्य के केंद्रक मे हो रही है जहाँ पर तापमान 150 लाख केल्विन है। सूर्य की सतह का तापमान केवल 6,000 केल्विन है।

समाप्ति बिंदु(Turnoff Point)

एक दिन केंद्र मे समस्त हायड्रोजन हिलियम बन जायेगी। अगली नाभिकिय प्रक्रिया ट्रिपल अल्फ़ा प्रक्रिया द्वारा हिलियम से कार्बन का निर्माण है लेकिन इसके लिये तापमान समस्या है। केंद्रक का तापमान 150 लाख केल्विन है, जबकी ट्रिपल अल्फ़ा प्रक्रिया को आरंभ करने के लिये 10 करोड़ केल्विन तापमान चाहिये। इस उच्च तापमान की अनुपस्थिति मे केंद्रक मे नाभिकिय अभिक्रिया रूक जाती है और केंद्रक निष्क्रिय हो जाता है, इसे ही समाप्ति बिंदु कहते है। अब तारा मुख्य अनुक्रम से बाहर हो जाता और दानव(Subgiant) शाखा मे प्रवेश करता है।

दानव अवस्था(Subgiant Phase)

हम इसे सरलतम रूप मे समझने का प्रयास करेंगे। जब कोई तारा समाप्ति बिंदु पर पहुंचता है तब केंद्रक मे कोई नाभिकिय प्रक्रिया नही हो रही होती है। अब वह हिलियम केंद्र के चारो ओर मोटे खोल मे हायड्रोजन के संलयन से हिलियम बनाना आरंभ करता है। यह प्रक्रिया नीचे चित्र मे दिखाई गई है।

तारे के केंद्र के द्रव्यमान से संबधित एक सीमा है जिसे स्कानबर्ग-चंद्रशेखर सीमा के नाम से जाना जाता है। यह सिद्धांत सरल है। यदि केंद्रक का द्रव्यमान इस सीमा से अधिक होगा तो अब केंद्रक उष्मीय संतुलन मे नही रह पायेगा। केंद्रक अब समतापीय अवस्था मे नही रह पाता है। केंद्रक के खोल पर हायड्रोजन के संलयन से निष्क्रिय हिलियम केंद्रक का द्रव्यमान बढ़ता है क्योंकि उपरी खोल से “राख” केंद्रक मे गीर रही होती है। जैसे ही केंद्रक का द्रव्यमान स्कानबर्ग-चंद्रशेखर सीमा पार करता है, वह संपिड़ित होता है और उष्ण होना आरंभ होता है। अपने आरंभिक द्रव्यमान के आधार पर तारों द्वारा इस सीमा तक पहुंचने के लिये लगनेवाला समय भिन्न भिन्न होता है। यह अंदर की कहानी है, लेकिन बाहर खोल पर संलयन के कारण तारे की बाह्य तहे विस्तार करती हुई शीतल होते जाती है।

लाल दानव शाखा(Red Giant Branch)

तारे का केंद्रक अब उष्ण हो रहा है, जबकि बाहर उसका आकार बढ़ रहा है। इस आकार मे वृद्धि से उसकी सतह शीतल होते जाती है। दूसरे शब्दो मे तारा अव लाल दानव बन रहा है। वह हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख दायें बढ़ता है और लाल दानव शाखा मे पहुंच जाता है। इस अवस्था मे बहुत सी आंतरिक घटनाये होती है जिसमे सबसे महत्वपूर्ण है ड्रेज अप(dredge up)।

ड्रेज अप(Dredge Up)

तारे के अंदर तीन प्रमुख क्षेत्र होते है : केंद्रक(core), विकिरण जोन(radiation zone) और संवहन जोन(convection zone)। केंद्रक से उष्मा विकिरण जोन तक सीधे सीधे विकिरण द्वारा पहुंचती है। संवहन जोन मे प्लाज्मा संवहन धाराओं मे होता है। किसी पात्र मे जल को गर्म करने से तुलना किजिये। इसी तरह से विकिरण जोन के पास से उष्ण प्लाज्मा उपर उठता है, सतह पर आता है, शीतल होता है और वापस नीचे जाता है। लाल दानव अवस्था मे यह संवहन जोन केंद्रक के समीप होते जाता है। इसके कारण भारी संलयन तत्व जैसे हिलियम और कार्बन मिश्रीत हो जाते है और अंत मे सतह तक आ जाते है, और उन्हे वर्णक्रम मे देखा जा सकता है। इस गतिविधि को ड्रेज अप कहते है। ड्रेज अप किसी तारे की आंतरिक प्रक्रियाओं के बारे मे महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।

हिलियम कौंध(Helium Flash)

जैसे ही केंद्रक का तापमान 10 करोड़ केल्विन पहुंचता है, बेलगाम तरिके से हिलियम संलयन आरंभ होता है। इसे हिलियम कौंध(Helium Flash) कहते है। यह इतनी तीव्र विस्फोटक प्रक्रिया होती है कि हिलियम का 6‍% भाग क्षण भर मे कार्बन मे ट्रिपल अल्फ़ा प्रक्रिया से परिवर्तित हो जाता है। इसके पश्चात सामान्य रूप से ट्रिपल अल्फ़ा प्रक्रिया से हिलियम संलयन से कार्बन निर्माण होता है।

लाल दानव शाखा मे तारा द्रवस्थैतिक संतुलन(hydrostatic equilibrium) मे नही होता है। केंद्रक मे नाभिकिय अभिक्रिया की अनुपस्थिति के कारण गुरुत्चाकर्षण ने प्रभुत्व जमा लिया होता है और वह तारे को संपिड़ित करते जाता है। इस संपिड़न बल से केंद्रक उष्ण होते जाता है। लेकिन गुरुत्वाकर्षण बल तारे को पूर्ण संपिड़ित क्यो नही कर पाता है ? आखिरकार तारा लाल दानव अवस्था मे दो अरब वर्ष रहता है। इसका उत्तर है इलेक्ट्रान विकर्षण दबाव(electron degeneracy pressure)। हम जानते है कि इलेक्ट्रान फ़र्मियान(Fermions) है, और वे पाउली के अपवर्जन सिद्धान्त(Pauli’s exclusion principle) का पालन करते है। इसका अर्थ है कि कोई भी दो इलेक्ट्रान समान क्वांटम अवस्था मे नही रह सकते है। जब हम पदार्थ को संपिड़ित करते है तो वे निम्न क्वांटम अवस्था प्राप्त करते है, और अधिक संपिडन करने पर इन इलेक्ट्रानो द्वारा बाहर की दिशा मे विकर्षण दबाव उत्पन्न होता है। यह विकर्षण दबाव पाउली के अपवर्जन सिद्धान्त के कारण होता है।

इसलिये अब केद्रक विकर्षण(degenerate)अवस्था मे पहुंच जाता है और हिलियम कौंध द्वारा उत्पन्न भीषण ऊर्जा द्वारा इस विकर्षण अवस्था का सामना किया जाता है। ध्यान रहे कि सभी तारे विकर्षण अवस्था मे नही पहुंचते हौ और भारी तारो मे हिलियम कौंध नही होती है।

क्षैतिज शाखा(Horizontal Branch)

हिलियम कौंध के पश्चात केंद्रक पुन: सक्रिय हो जाता है। अब केंद्रक मे ट्रिपल अल्फ़ा प्रक्रिया द्वारा हिलियम संलयन से कार्बन निर्माण होता है। तारा संकुचित होता है और सतह का तापमान बढ़ता है। अब तारा हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख मे बाये चला जाता है। इस शाखा का नाम क्षैतिज शाखा है क्योंकि समान दीप्ती वाले तारे (दीप्ती Y अक्ष) पर विभिन्न वर्णक्रम के वर्गो(सतह का तापमान X अक्ष) मे एक क्षैतिज रेखा पर होते है। एक क्षैतिज रेखा शाखा वाले तारे का गुणधर्म है : हिलियम संलयन वाला केंद्रक जिसके खोल पर हायड्रोजन संलयन हो रहा होता है।

अनन्तस्पर्शी दानव शाखा(Asymptotic Giant Branch)

एक समय पश्चात तारे के केंद्रक मे हिलियम समाप्त हो जाती है। सारी हिलियम कार्बन मे परिवर्तित हो जाती है और केंद्रक फ़िर से निष्क्रिय हो जाता है क्योंकि कार्बन संलयन के लिये अत्याधिक 50 करोड़ केल्विन तापमान चाहीये। इस अवस्था मे जो खोल हायड्रोजन से हिलियम बना रहा था, वह हिलियम से कार्बन बनाना आरंभ कर देता है। इस खोल के उपर एक नया खोल हायड्रोजन से हिलियम बनाना आरंभ करता है जो कि नीचे चित्र मे दर्शाया गया है।

अब तारा हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख मे दायें चला जाता है क्योंकि उसकी सतह का तापमान कम हो गया है। यह इसके पहले के लाल दानव शाखा के जैसा है, इसलिये इसे अनन्तस्पर्शी दानव शाखा(Asymptotic Giant Branch) कहते है। इस शाखा के तारे अत्याधिक द्रव्यमान वाले होते है। इनके गुणधर्म मे निष्क्रिय कार्बन केंद्रक, उसके उपर हिलियम संलयन करता खोल और उसके उपर हायड्रोजन संलयन करता खोल। इस अवस्था मे तारा फ़ूल जाता है और उसका आकार एक खगोलीय इकाई तक (1 AU) तक होता है। इन तारो मे द्वितिय ड्रेज अप होता है। इसलिये शीलत और महाकात अनन्तस्पर्शी दानव शाखा(Asymptotic Giant Branch) के वर्णक्रम मे गहरी कार्बन रेखा दिखाई देती है।

सूर्य जैसे तारों मे इतनी क्षमता नही होती कि उनके केंद्रक मे कार्बन संलयन हो सके। वे एक विस्फोट के साथ अपनी समस्त बाह्त तहो के पदार्थ को ग्रहीय निहारिका के(planetary nebula) के रूप मे फ़ेंक देते है और उनका कार्बन आक्सीजन केंद्रक दिखाई देने लगता है। यही तारे कार्बन आक्सीजन वाले श्वेत वामन तारे बनते है। श्वेत वामन तारों मे नाभिकिय अभिक्रिया थम गई होती है। इस अवस्था मे उनका संपिड़न इलेक्ट्रान विकर्षण दबाव द्वारा रोक दिया जाता है जिसे हम उपर देख चुके है।

श्वेत वामन(White Dwarfs)

श्वेत वामन तारे छोटे और मध्यम आकार के तारों की अंतिम अवस्था है। ये अत्याधिक घनत्व वाले तारे है, इनका एक चम्मच पदार्थ पृथ्वी की सबसे अधिक द्रव्यमान वाली वस्तु के तुल्य होता है। इस बिंदु पर हमे भारतीय खगोल वैज्ञानिक सुब्रमनियन चंद्रशेखर(S.Chandrasekhar) द्वारा 19 वर्ष की उम्र प्रस्तावित की गई चंद्रशेखर सीमा का जिक्र करना आवश्यक है। चंद्रशेखर सीमा द्रव्यमान की वह सीमा है जिसमे एक श्वेत वामन तारा इलेक्ट्रान विकर्षण दबाव(electron degeneracy pressure) द्वारा संतुलित अवस्था मे रह सकता है। यदि द्रव्यमान इससे अधिक हुआ तो इलेक्ट्रान विकर्षण दबाव गुरुत्विय संपिडन को सम्हालने मे असफ़ल रहेगा और परिणाम स्वरूप न्यूट्रान तारा या ब्लैक होल बन जायेगा।

हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख मे श्वेत वामन तारे निचले बायें कोने मे होते है। इसका अर्थ है कि उनकी सतह का तापमान अत्याधिक होता है, लेकिन उनके छोटे आकार के कारण उनका ऊर्जा उत्पादन या दीप्ती कम होती है।

हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख(THE HERTZSPRUNG RUSSELL DIAGRAM)

लेखक का संदेश

इस लेख मे हमने छोटे से लेकर मध्यम आकार के जीवन विकास को सरलतम रूप से समझाने का प्रयास किया है। अब आप आसानी से देख सकते है कि तारो का वर्णक्रम आधारित वर्गीकरण , हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख और तारों की नाभिकिय अभिक्रियायें किस तरह से महत्वपूर्ण है। तारकीय खगोलभौतिकी इस क्षेत्र की एक प्रमुख शाखा है। इसमे भौतिकशास्त्र के अनेक सिद्धांतो का प्रयोग होता है। इस लेख को लिखने मे हमे अत्याधिक कठिनाई हुई क्योंकि इसमे बहुत सी प्रक्रियाओं को सरल रूप मे प्रस्तुत करना था। अगले लेख मे हम बड़े महाकाय तारों के जीवनचक्र को देखेंगे जो कि न्यूट्रान तारा या ब्लैक होल बन जाते है। हमारे साथ बने रहिये।

मूल लेख :WHAT ARE WHITE DWARFS & HOW DO THEY FORM?

लेखक परिचय

लेखक : ऋषभ

Rishabh Nakra
Rishabh Nakra

लेखक The Secrets of the Universe के संस्थापक तथा व्यवस्थापक है। वे भौतिकी मे परास्नातक के छात्र है। उनकी रूची खगोलभौतिकी, सापेक्षतावाद, क्वांटम यांत्रिकी तथा विद्युतगतिकी मे है।

Admin and Founder of The Secrets of the Universe, He is a science student pursuing Master’s in Physics from India. He loves to study and write about Stellar Astrophysics, Relativity, Quantum Mechanics and Electrodynamics.

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