नोबेल पुरस्कार विश्व का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है शायद इसी कारण नोबेल पुरस्कार ने कई बार विवाद को भी जन्म दिया है। अक्सर वैज्ञानिक, विशेष वैज्ञानिक क्षेत्र में अपनी कड़ी मेहनत के वावजूद वे नोबेल पुरस्कार पाने से वंचित रह गए। भौतिकी में 1965 के नोबेल पुरस्कार विजेता रिचर्ड फेनमैन ने एक बार कहा था कि इस पुरस्कार की अवधारणा भ्रामक है। “नोबेल” के रूप में किसी के शोध को वर्गीकृत करना एक अच्छा विचार नहीं है। प्रत्येक वैज्ञानिक की प्रतिभा और उसका प्रत्येक शोध अपने आप में एक नोबेल है।
यहां हम कुछ वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख कर रहे है जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में हमारी समझ बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया लेकिन वे इस शीर्ष सम्मान को कभी नहीं पा सके।
सत्येन्द्र नाथ बोस(SATYENDRA NATH BOSE)

उपलब्धि: बोस आइंस्टीन सांख्यिकी(Bose Einstein Statistics) और बोस आइंस्टीन कंडेनसेट्स(Bose Einstein Condensates) के जन्मदाता।
एस.एन. बोस एक भारतीय भौतिक विज्ञानी थे। भौतिकी, गणित, रसायन शास्त्र, जीवविज्ञान, खनिज, समेत विभिन्न क्षेत्रों में उनकी गहन रूचि थी। सत्येन्द्र नाथ बोस को बोस-आइंस्टीन के आंकड़ों और एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत में उनके योगदान के लिए, के बनर्जी(K. Banerji, 1956), डीएस कोठारी(D.S. Kothari, 1959), एसएन बागची(S.N. Bagchi, 1962) और एके दत्ता(A.K. Dutta, 1962) द्वारा भौतिकी में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। 12 जनवरी 1956 को एक पत्र में भौतिकी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रमुख केदारेश्वर बनर्जी ने नोबेल समिति को लिखा – बोस ने भौतिकी में बहुत ही उत्कृष्ट योगदान दिया है, उन्होंने एक सांख्यिकी विकसित किया है जिसे बोस सांख्यिकी कहा जा सकता है, आज हम बोस आइंस्टीन सांख्यिकी के नाम से जानते है। हाल के वर्षों में यह आंकड़े मौलिक कणों के वर्गीकरण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है और परमाणु भौतिकी के विकास में अत्यधिक योगदान दे रहे है। 1953 से लेकर आज तक की अवधि के दौरान बोस ने आइंस्टीन के यूनिटरी फील्ड थ्योरी के विषय पर गहन अध्यन्न किया है और दूरगामी परिणामों के लिए बहुत ही रोचक योगदान किए हैं। बोस के काम का मूल्यांकन नोबेल कमेटी के एक विशेषज्ञ ओस्कर क्लेन(Oskar Klein) ने किया था लेकिन उन्होंने बोस के काम को नोबेल पुरस्कार के योग्य नहीं पाया।
दमित्री मेंडलीव(DMITRI MENDELEEV)

उपलब्धि: तत्वों की आवधिक सारणी(The Periodic Table of Elements)
मेंडलीव एक रुसी रसायनज्ञ और आविष्कारक माने जाते है। मेंडलीव विश्व के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बताया की तत्वों के रासायनिक गुण उनके परमाणु संख्याओं के साथ सहबद्ध होते है और तत्वों के रासायनिक गुण कुछ परमाणु संख्याओं के बाद समय-समय पर दोहराए जाते हैं। इसी गुण को आधार मानकर मेंडेलेव ने आधुनिक आवधिक सारणी की भी नींव रख दी थी और बाद में अज्ञात तत्वों के लिए रिक्त स्थान छोड़े थे। उन्हें 1906 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था, लेकिन 1907 में उस सम्मान को पाए बिना ही उनकी मृत्यु हो गई।
एनी जंप कैनन(ANNIE JUMP CANNON)

उपलब्धि: सितारों को वर्गीकृत करना(Classifying The Stars)
कैनन हार्वर्ड वेधशाला में मैपिंग का काम करती थी, उनका काम था आकाश में मौजूद हर तारे का अध्यन्न कर उसे वर्गीकृत करना। अपने करियर के दौरान उन्होंने 200,000 से अधिक सितारों को देखा, उसका विस्तृत अध्यन्न किया और वर्गीकृत किया। लेकिन उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह है कि उन्होंने स्पेक्ट्रल अवशोषण लाइनों के आधार पर सितारों को वर्गीकृत करने के लिए एक स्टार वर्गीकरण प्रणाली तैयार की। हालांकि उनके योगदान उनके चालीस वर्ष के खगोल विज्ञान कैरियर के दौरान मान्यता प्राप्त नहीं कर सके लेकिन आज भी खगोलविज्ञान उनके द्वारा विकसित स्टार वर्गीकरण प्रणाली का उपयोग करती है। आज भी किसी तारे को आप तापमान के आधार पर वर्गीकृत कर रहे हो तो आपको एनी जंप कैनन का शुक्रगुजार होना चाहिए। आज तक अरबों-खरबों तारे उनकी विकसित प्रणाली के आधार पर ही सात ग्रुपो में वर्गीकृत की गयी है।
मेघनाद साहा(MEGHNAD SAHA)

उपलब्धि: साहा का आयनीकरण समीकरण(Saha’s Ionisation Equation)
मेघनाद साहा(6 अक्टूबर 1893 – 16 फरवरी 1956) एक भारतीय खगोलशास्त्री थे जिन्हे साहा आयनीकरण समीकरण के विकास के लिए जाना जाता है। उनका समीकरण, सितारों में रासायनिक और भौतिक संरचना संबंधी स्थितियों का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जाता है। साहा विश्व के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने बताया की किसी तारे का स्पेक्ट्रम उस तारे के तापमान से जुड़ा होता है। साहा थर्मल आयनीकरण समीकरण आज भी खगोल भौतिकी और एस्ट्रोकैमिस्ट्री के क्षेत्र में आधार स्तंभ माना जाता है।
साहा को 1930 के लिए देबेन्द्र मोहन बोस(Debendra Mohan Bose) और सिसीर कुमार मित्र(Sisir Kumar Mitra) द्वारा भौतिकी में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। नोबेल समिति ने साहा के काम का मूल्यांकन किया। इसे एक उपयोगी अनुप्रयोग के रूप में देखा, लेकिन साहा थर्मल आयनीकरण समीकरण को “खोज” नहीं माना। इस प्रकार उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया जा सका, लेकिन आर्थर कॉम्प्टन(Arthur Compton) ने 1937 और 1940 में साथ ही सिसीर कुमार मित्र ने 1939, 1951 और 1955 में फिर से साहा को भौतिकी में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया परंतु नोबेल समिति से अपने पहले के निर्णय को बदलना उचित नहीं समझा।
गिल्बर्ट न्यूटन लेविस(GILBERT NEWTON LEWIS)

उपलब्धि: रासायनिक बंधन कार्यप्रणाली(Understanding How Chemical Bonding Works)
लेविस एक अमेरिकी रसायनज्ञ थे, जिन्होंने 1900 के दशक में रसायन शास्त्र में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है। सहसंयोजक बंधन(covalent bond) की खोज लेविस की ही देन है, सहसंयोजक बंधन(जहां परमाणु इलेक्ट्रॉन जोड़े साझा करते हैं) और उन पदार्थों के रूप में अम्ल और क्षार की प्रकृति को समझाते हैं जो क्रमशः इलेक्ट्रॉनों की एक जोड़ी स्वीकार करते हैं या देते हैं। उन्होंने लेविस डॉट संरचना(Lewis dot structure) से भी दुनियां को अवगत कराया, लेविस डॉट संरचना, परमाणुओं और अणुओं में रासायनिक बंधन और अनबॉन्ड इलेक्ट्रॉनों का प्रतिनिधित्व करने का एक तरीका का सुझाव देता है।
हालांकि इस वैज्ञानिक को 35 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया। स्रोत बताते है की लेविस के अपने सहयोगियों और उनके समकालीन लोगों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंध, उनकी आलोचना ने उन्हें रसायन शास्त्र में नोबेल पुरस्कार जीतने से रोक दिया था।
सर फ़्रेड हॉयल(SIR FRED HOYLE)

उपलब्धि: बिग बैंग’ तारकीय न्यूक्लियोसिंथेसिस सिद्धांत(Big Bang’ Stellar nucleosynthesis theory), ब्रह्माण्ड का स्थिर अवस्था सिद्धांत(Steady state theory), हॉयल नर्लीकर सिद्धांत(Hoyle-Narlikar theory), ट्रिपल-अल्फा प्रक्रिया(Triple-alpha process)
तारों के केंद्र मे नाभिकिय संलयन के फलस्वरूप तत्वों के निर्माण की प्रक्रिया को समझने के लिये सर फ़्रेडेरिक हॉयल का बड़ा योगदान है। वे ब्रिटिश खगोलशास्त्री थे जिनके विचार अक्सर मुख्य वैज्ञनिक समुदाय के विपरीत होते थे। इनका काम मुख्यतः ब्रह्माण्डविज्ञान के क्षेत्र में है। इन्होंने तारों के नाभिकों में हो रही नाभिकीय प्रक्रियाओं का अध्ययन किया और पाया कि कार्बन तत्व बनने के लिये जिस प्रक्रिया की आवश्यकता होती है उसकी सम्भावना सांख्यिकी के अनुसार बहुत कम है। चूंकि मनुष्य और पृथ्वी पर मौजूद अन्य जीवन कार्बन पर आधारित है, हॉयल का विचार था कि ऐसा सम्भव होना इस बात को इंगित करता है कि पृथ्वी पर जीवन की मौजूदगी में किसी ऊपरी शक्ति का हाथ है। नाभिकीय प्रक्रियाओं पर इनके काम को नोबेल समिति ने उनकी अधिकतर अवधारणाओं के मुख्य धारा विज्ञान से विपरीत होने के कारण अनदेखा कर दिया और 1983 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार इनके सहयोगी विलियम ए फोलर(William Alfred Fowler) को दिया(सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर के साथ)। फ़्रेड हॉयल ब्रह्माण्ड के जन्म के बिग बैंग सिद्धांत में विश्वास नहीं रखते थे और उन्होने ही इस सिद्धांत का नाम मजाक उड़ाते हुये “बिग बैंग” रखा था। इनका विचार था कि ब्रह्माण्ड एक स्थिर अवस्था में है। महाविस्फोट सिद्धान्त के पक्ष में अधिक प्रमाण इकट्ठा होने पर वैज्ञानिकों ने स्थिर अवस्था को लगभग त्याग दिया है। हॉयल का यह भी विश्वास था कि पृथ्वी पर जीवन धूमकेतुओं के जरिए अन्तरिक्ष से आए विषाणुओं के जरिये शुरु हुआ। वे नहीं मानते थे कि रासायनिक प्रक्रियाओं के जरिए जीवन का प्रारंभ संभव है। इन्होंने विज्ञान कथाएँ भी लिखी हैं जिनमें शामिल है द ब्लैक क्लाउड(The Black Cloud, काला बादल) और ए फ़ॉर एन्ड्रोमीडा(A for Andromeda)। द ब्लैक क्लाउड में ऐसे जीवों का वर्णन है जो तारों के बीच के गैस के बादलों में उत्पन्न होते हैं और विश्वास नहीं कर पाते हैं कि ग्रहों पर भी बुद्धिमान जीव उत्पन्न हो सकते है।
स्रोत बताते है की सर फ़्रेड हॉयल को नोबेल पुरस्कार न देने के लिए नोबेल समिति ने राजनीती से प्रेरित कूटनीतिक चाल चली थी। 1974 का भौतिकी नोबेल पुरस्कार पल्सर तारों की खोज के लिए एंटनी हेविश(Antony Hewish) को दिया गया था। उस समय सर फ़्रेड हॉयल ने एक संवाददाता को दिए इंटरव्यू में कहा
जोसेलीन बेल(Jocelyn Bell) पल्सर तारे के वास्तविक खोजकर्ता है जबकि एंटनी हेविश तो उनके पर्यवेक्षक थे। मेरा मानना है जोसेलीन बेल को नोबेल पुरस्कार में शामिल करना चाहिए था।”
हॉयल की यह टिप्पणी अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ गयी थी और नोबेल समिति को उनकी यह टिप्पणी बड़ी नागावार लगी।
दूसरा विवाद तब जन्म लिया जब 1983 का भौतिकी नोबेल पुरस्कार विलियम अल्फ्रेड फाउलर(William Alfred Fowler) को ब्रह्मांड में रासायनिक तत्वों के गठन में तारकीय नाभिक प्रतिक्रियाओं के अपने सैद्धांतिक और प्रयोगात्मक अध्ययनों के लिए दिया गया। अब विवाद उठ खड़ा हुआ, क्योंकि हॉयल न्यूक्लियोसिंथेसिस के सिद्धांत के जन्मदाता थे और उनका न्यूक्लियोसिंथेसिस सिद्धांत दो शोध पत्रों में तुरंत प्रकाशित होने वाला था। अब संदेह उत्पन्न हो गया की नोबेल समिति ने उनकी अधिकतर खोजों को, उनकी अवधारणाओं के मुख्य धारा विज्ञान से विपरीत होने के कारण अनदेखा कर दिया है। बाद में ब्रिटिश वैज्ञानिक हैरी क्रोटो ने कहा कि
नोबेल पुरस्कार केवल काम के टुकड़े के लिए मिला एक पुरस्कार नहीं है, बल्कि एक वैज्ञानिक की समग्र प्रतिष्ठा है और होयले के चैंपियनिंग की मान्यता कई विवादित और अपमानजनक विचारों से उन्हें अमान्य कर सकती है।
नेचर के संपादक जॉन मैडॉक्स(John Maddox) ने कहा
फाउलर को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया और हॉयल को नहीं, यह बेहद शर्मनाक है।
एन्नाक्कल चांडी जॉर्ज सुदर्शन(ENNACKAL CHANDY GEORGE SUDARSHAN)

उपलब्धि: प्रकाशिय संबद्धता(Optical coherence), सुदर्शन-ग्लौबर निरूपण(Sudarshan-Glauber representation), क्वांटम शून्य प्रभाव(Quantum Zeno effect), प्रचक्रण-सांख्यिकी प्रमेय(Spin-statistics theorem), विवृत क्वांटम निकाय(Open quantum system), टेक्योन कण अवधारणा(Tachyon hypothetical particle)
जॉर्ज सुदर्शन टेक्सास विश्वविद्यालय, ऑस्टिन में प्रोफेसर, लेखक और भारतीय वैज्ञानिक थे। इनका योगदान भी सैद्धांतिक भौतिकी में अद्वितीय माना जाता है, प्रकाशिय संबद्धता सिद्धांत हमे बताता है की दो तरंग स्रोत पूरी तरह से सुसंगत हो सकते है यदि उनका आवृत्ति समान हो, वेवफॉर्म समान हो और उनका फेज अंतर नियत हो। यह सिद्धांत लहरों के भौतिकी की समझ की अनुमति देती हैं, और क्वांटम भौतिकी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवधारणा बन गई हैं। सुदर्शन-ग्लौबर निरूपण, क्वांटम यांत्रिकी अर्थात क्वांटम पैमाने पर अंतरिक्ष वितरण को दर्शाने का एक तरीका है। सुदर्शन-ग्लौबर पी निरूपण(Glauber-Sudarshan P representation) नकारात्मक द्विपदीय अवस्थाओं के निरूपण और उसके गुण की व्याख्या करता है, इस प्रकार ये सुसंगत अवस्था और थर्मल अवस्था के एकीकृत विवरण करने की अनुमति प्रदान करते है। क्वांटम यांत्रिकी में, स्पिन-सांख्यिकी प्रमेय एक कण के आंतरिक स्पिन से संबंधित है और सभी कण इस सांख्यिकी का पालन करते है। टेक्योन कण की अवधारणा जॉर्ज सुदर्शन ने ही की थी, उनका मानना था की टेक्योन की गति प्रकाश गति से भी तेज है । वैसे Tachyon एक काल्पनिक कण है। जब बात प्रकाश गति (C) से भी तेज गति की होती है तब ऐसे किसी कण का द्रव्यमान काल्पनिक या नेगेटिव होना चाहिये। माना जाता है की ऐसे कण का अस्तित्व केवल गणितीय रूप से संभव है लेकिन वास्तविक रूप में ऐसे किसी कण का अस्तित्व नहीं हो सकता।
जॉर्ज सुदर्शन का नोबेल पुरस्कार का विवाद सुदर्शन-ग्लौबर निरूपण सिद्धांत से जन्म लिया था। जॉर्ज सुदर्शन 1960 से ही रोचेस्टर विश्वविद्यालय में क्वांटम ऑप्टिक्स पर काम करना शुरू किया था लेकिन दो साल बाद ही ग्लौबर ने ऑप्टिकल क्षेत्रों को समझाते हुए उनके शास्त्रीय विद्युत चुम्बकीय सिद्धांत के उपयोग की आलोचना की। इस वाकये ने सुदर्शन को हैरान कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि उनके सिद्धांत ने सटीक स्पष्टीकरण प्रदान किए हैं। सुदर्शन ने बाद में अपने विचार व्यक्त करते हुए एक पत्र लिखा और ग्लेबर को एक प्रीप्रिंट भेजा। ग्लेबर ने इसी तरह के परिणामों के साथ अपने शोध को सुदर्शन को दिखाया और जॉर्ज सुदर्शन की आलोचना भी की। हालांकि ग्लेबर का शोध विशिष्ट क्वांटम ऑप्टिक्स घटना की व्याख्या करने में सक्षम नहीं था लेकिन ग्लेबर को लगता था की सुदर्शन ने उनकी शोध को अपना नाम से प्रकाशित किया है। दोनों वैज्ञानिकों के बीच विवाद बढ़ता गया लेकिन बाद में इस शोध(सुदर्शन-ग्लौबर निरूपण) को दोनों वैज्ञानिकों के नाम से जाना जाने लगा।
जॉर्ज सुदर्शन को कई बार सुदर्शन-ग्लौबर निरूपण के लिए नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया, लेकिन सुदर्शन-ग्लौबर निरूपण के लिए अमेरिकी भौतिक विज्ञानी रॉय जे ग्लेबर(Roy J. Glauber) को 2005 भौतिकी नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हालांकि 2005 में कई भौतिकविदों ने स्वीडिश अकादमी को लिखा था कि सुदर्शन को सुदर्शन-ग्लौबर निरूपण के लिए पुरस्कार का हिस्सा दिया जाना चाहिए था। सुदर्शन और अन्य भौतिकविदों ने नोबेल समिति को एक पत्र भेजा कि सुदर्शन-ग्लौबर पी निरूपण में “ग्लेबर” की तुलना में “सुदर्शन” का अधिक योगदान है। लेकिन नोबेल समिति ने अपने नियम का हवाला देकर पुरस्कार में कोई बदलाव करने से साफ़ मना कर दिया।
2007 में, सुदर्शन ने हिंदुस्तान टाइम्स को दिए इंटरव्यू में बताया,
भौतिकी के लिए 2005 नोबेल पुरस्कार मेरे काम के लिए सम्मानित किया गया था, लेकिन मैं इसे प्राप्त करने वाला नहीं था। इस शोध में से प्रत्येक को यह पता था कि नोबेल को मेरे शोध के आधार पर मेरे ही काम के लिए दिया गया था।”
सारांश
वैसे नोबल पुरस्कार किसी वैज्ञानिक की प्रतिभा और उसके शोध का सटीक मापदंड तो नहीं हो सकता लेकिन किसी वैज्ञानिक को दी गयी सम्मान, प्रतिष्ठा तो है ही। नोबेल फाउंडेशन द्वारा स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की याद में वर्ष 1901 में शुरू किया गया यह शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार है। दिसंबर 1896 में अल्फ्रेड नोबेल ने अपने मृत्यु से पूर्व अपनी विपुल संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने एक ट्रस्ट के लिए सुरक्षित रख दिया। उनकी इच्छा थी कि इस पैसे के ब्याज से हर साल उन लोगों को सम्मानित किया जाए जिनका काम मानव जाति के लिए सबसे कल्याणकारी पाया जाए। स्वीडिश बैंक में जमा इसी राशि के ब्याज से नोबेल फाउँडेशन द्वारा हर वर्ष नोबेल पुरस्कार शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र में सर्वोत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है।
नोबेल पुरस्कार, विश्व का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार, मानव जाति के लिए सबसे कल्याणकारी शोध कार्य, किसी वैज्ञानिक का सर्वोत्कृष्ट योगदान जैसे मापदंडों से चुनना बड़ा कठिन कार्य है क्योंकि हजारों-हजार शोध प्रति वर्ष होते है जिनमें बहुत सारे शोध मानव जाति के लिए बड़े महत्वपूर्ण होते है। वैसे तो नोबेल पुरस्कार के लिए किसी को चुनना बड़ा कठिन कार्य है लेकिन कई ऐसे अवसर आये है जब नोबेल समिति ने गलतियां की है और विवादों को जन्म दिया है, नोबेल समिति चाहती तो इन विवादों पर लगाम लगा सकती थी लेकिन नोबेल समिति इन विवादों को रोकने में असफल रही। यहां हम नोबेल समिति पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगा रहे है लेकिन जो तथ्य है वो तो रहेंगे ही।
प्रत्येक वैज्ञानिक की प्रतिभा और उसका प्रत्येक शोध अपने आप में एक नोबेल है।”
Nice Post Really Open My Site
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Sir mera naam Shiva Naag h.
Kya ham kh sakte h ki nobel price m bhartihon k sath hmesa nainsafi hoti h .
Kyoki bharat k kai vegyanik yese h jinhone viswa k klyan k liye bhi mhatva purn khojen ki h.
Fir hm bhartiyon ko es price se vanchit rkha gya.
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नोबेल पुरस्कार के साथ कुछ विवाद हुए है। सिर्फ भारतीय वैज्ञानिक ही नहीं विदेशी वैज्ञानिकों के साथ भी नोबेल को लेकर विवाद हुआ है इसलिए हम ये नहीं कह सकते है सिर्फ भारतीय वैज्ञानिकों के साथ ही नाइंसाफी हुई है।
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बेहद अच्छा लेख है, आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस लेख को शेयर करने के लिए
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प्रोफेसर जी एन रामचंन्द्रन
रोसलिंंड फ्रेंक्लिन
जगदीश चंद्र बोस
आदि भी हैं
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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Write about the Nobel prize in 2011 in physics
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समय निकाल कर इस लेख को विस्तार देते है।
https://vigyanvishwa.in/2011/10/11/2011physicsnobel/
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धन्यवाद भाई
4 अगस्त 2018 को 3:05 pm को, विज्ञान विश्व ने
लिखा:
> Pallavi Kumari posted: “नोबेल पुरस्कार विश्व का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार
> है शायद इसी कारण नोबेल पुरस्कार ने कई बार विवाद को भी जन्म दिया है। अक्सर
> वैज्ञानिक, विशेष वैज्ञानिक क्षेत्र में अपनी कड़ी मेहनत के वावजूद वे नोबेल
> पुरस्कार पाने से वंचित रह गए। भौतिकी में 1965 के नोबेल पुरस”
>
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