11 मई महान भौतिक वैज्ञानिक रिचर्ड फ़ाइनमेन का जन्मदिन है।
बीसवीं शताब्दी के पहले भाग के सबसे चर्चित वैज्ञानिक अलबर्ट आईंस्टाइन थे और रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन (फाइनमेन) बीसवी शताब्दी के अन्तिम भाग के। वे 1966 मे नोबेल पुरष्कार से सम्मानित हुए।
बीसवीं शताब्दी के बीच मे अच्छे विश्वविद्यालयों मे भौतिक शास्त्र को पढ़ाये जाने के तरीके पर विवाद चल रहा था।
- क्या भौतिक शास्त्र मे उसी तरह से उन्ही विषयों के साथ पढ़ाया जाय जैसे अभी तक पढ़ाया जा रहा था; या
- फिर नये तरह से नये विषयों के साथ पढ़ाया जाय।
इस विवाद को फाइनमेन जैसा ही व्यक्ति हल कर सकता था। उनका रुतबा सब मानते थे। उनका सम्मान इसलिये नहीं था कि वे कैल टेक मे थे बल्कि कैल टेक दुनिया का सबसे अचछा भौतिक शास्त्र का विश्वविद्यालय इसलिये माना जाता था क्योंकि फाइनमेन वहां थे। फाइनमेन ने 1961-63 मे कैल-टेक मे स्नातक के विद्यार्थियों को भौतिक शास्त्र पढ़ाया।
इतिहास गवाह है कि आज तक इतने बड़े वैज्ञानिक ने कभी स्नातक स्तर के विद्यार्थियों को नहीं पढ़ाया। फाइनमेन के अध्यापन के इन तीन साल ने भौतिक शास्त्र को पढ़ाने की नयी दिशा दी और भौतिक शास्त्र नयी तरह से नये विषयों के साथ पढ़ाया जाने लगा। फाइनमेन के इन लेक्चरों को तीन किताबों मे बदला गया। यह लाल बाईंडिंग मे थीं और ‘Lectures on Physics by Richard P Feynman’ के नाम से मशहूर हुईं। यदि आप भौतिक शस्त्र में महारत हासिल करने की सोचते हैं तो इन किताबों को पढ़ना आवश्यक है।
फाईनमेन का बचपन
रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन, का जन्म 11मई 1918 में हुआ था और मृत्यु 1988 में कैंसर से हो गयी। छुटपन में फाइनमेन अक्सर सोचा करते थे कि वह बडे होकर क्या बनें: विदूषक या वैज्ञानिक। बडे होकर उन्होंने इन दोनो भूमिकाओं को एक साथ बाखूबी निभाया। लोग कहते हैं कि वह इतने मशहूर क्यों हुये पर उनके बारे में वैज्ञानिक ठीक ही कहते हैं:
‘फाइनमेन तो ऐतिहासिक व्यक्ति हैं उनको जितना सम्मान मिला वे उस सब के अधिकारी हैं।’
फाइनमेन के पिता का बातों को बताने का अपना ही ढंग था। एक बार का किस्सा है कि पिता और पुत्र पार्क मे घूम रहे थे पिता ने एक चिड़िया की तरफ वह इशारा करके बताया कि यह चिड़िया दुनिया में अलग-अलग नामो से जानी जाती है। यह जरूरी नहीं है कि आप उन सब नामो को जाने, न ही महत्वपूर्ण है। पर महत्वपूर्ण यह है कि वह क्या और कैसे करती है। वे बच्चे के मन मे जिज्ञासा जगाने की कोशिश करते थे यह बताने की जरूरत नहीं है कि फाइनमेन बचपन से जिज्ञासु तथा कुतुहली थे।
फाइनमेन के पिता को आजकल के टीवी के प्रतियोगी कार्यक्रमो जैसे ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से तुलना करें तो आप अत्याधिक अन्तर पायेंगे। इस तरह के कार्यक्रम तो केवल यह बताते हैं कि कौन कितना रट सकता है। आज के इन कार्यक्रमो से यह पता नहीं चलता कि कौन कितना अच्छा सोच सकता है, किसमे कितना दम है और कौन विज्ञान की दुनिया को बदलने की ताकत रखता है।
रेडियो ठीक करने वाले रेडियोसाज
फाइनमेन बचपन के दिनों में रेडियों ठीक किया करते थे। उस समय वाल्व वाले रेडियो हुआ करते थे। उनके पड़ोसी का रेडियो में शुरू होने के थोड़ी देर बाद खरखराने लगता था। उसने फाइनमेन से रेडिये ठीक करने के लिये कहा। फाइनमेन रेडियो को छूने के बजाय वही बैठ कर सोचने लगे। उन्हे लगा कि गर्म होने पर बिजली का अवरोध बढ जाता है जिससे खरखराहट बढ जाती है और दो वाल्वों को एक दूसरे से बदलने में यह दूर हो सकती है। उसने ऐसे ही किया और खरखराहट बन्द हो गयी और तभी से कई लोग उन्हे उस लड़के की तरह से याद रखते हैं जो केवल सोच कर रेडियो ठीक किया करता था।
स्कूल में वह गणित में सबसे अच्छे छात्र थे और गणित टीम के हीरो थे। पर उन्होंने बादगणित को छोड़ दिया। उन्हे लगा कि गणित मे उच्च शिक्षा प्राप्त करके वे दूसरों को गणित पढ़ाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते। वह कुछ व्यवहारिक करने का सोच कर, पहले इलेक्ट्रिकल इन्जीनियरिंग की तरफ गये पर बाद में भौतिक शास्त्र की पढ़ाई की। शायद यही ठीक निर्णय था। यह बीसवीं शताब्दी थी – भौतिक शास्त्रियों की शताब्दी। इस शताब्दी मे यदि कोई विज्ञान की दुनिया को बदलने का दम रखता था तो भौतिक शास्त्र ही उसका विषय था। यह उसी तरह से जैसे इक्कीसवीं शताब्दी जीव शास्त्रियों की शताब्दी है। चलिये हम वापस फाइनमेन पर चलें।
युवा फाइनमेन
फाइनमेन ने स्नातक की शिक्षा मैसाचुसेट इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलोजी (MIT)से पूरी की। वह वहीं पर शोध कार्य करना चाहते थे पर फिर प्रिंसटन मे शोध कार्य करने के लिये चले गये। बाद में वे कहा करते थे,
‘यह ठीक ही था। मैने वहां जाना कि दुनिया बहुत बड़ी है और काम करने के लिये बहुत सी अच्छी जगहें हैं।’
व्हीलर और घड़ी
यहां पर युवा फाइनमेन को व्हीलर के साथ शोध करने का मौका मिला। व्हीलर को नोबेल पुरूस्कार तो नहीं मिला लेकिन वे रॉबर्ट ओपेन हाइमर और एडवार्ड टेलेर जैसे ही ऐसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे जिन्हें दुर्भाग्यवश नोबेल पुरस्कार नहीं मिला। वे वह काम कर चुके थे जिसमें किसी को भी नोबेल पुरस्कार दिया जा सकता था। वे कुछ आडम्बर प्रिय थे कुछ अपनी अहमियत भी जताते थे। उन्होंने फाइनमेन को सप्ताह में एक दिन का कुछ निश्चित समय मिलने का दिया । पहले दिन मुलाकात के समय वह सूट पहने थे उन्होंने अपनी जेब से अपनी सोने की विराम घडी निकाल कर मेज पर रख दी ताकि फाइनमेन को पता चल सके कि कब उसका समय समाप्त हो गया है। फाइनमेन उस समय विद्यार्थी थे। उन्होंने एक बाजार से एक सस्ती विराम घड़ी खरीदी – उनके पास मंहगी घड़ी खरीदने के लिये पैसे नहीं थे। अगली मीटिंग पर उन्होंने अपनी सस्ती घड़ी उस सोने की घड़ी के पास रख दी। व्हीलर को भी पता चलना चाहिये कि उनका समय भी महत्वपूर्ण है। व्हीलर को मजाक समझ में आया और दोनो दिल खोल कर हंसे। दोनों ने घड़ियां हटा ली। उनका रिश्ता औपचारिक नहीं रहा, वे मित्र बन गये, उनकी बातें हंसी मजाक में बदल गयीं, और हंसी-मजाक नये मौलिक विचारों मे।
लॉस एलमॉस

इसी बीच दूसरा महायुद्ध शुरू हो गया। जर्मनी मे परमाणु बम बनाने का काम हो रहा था, यदि पहले वहां बन जाता तो हिटलर अजेय था। अमेरिका की लॉस एलमॉस लेबॉरेटरी मे दुनिया के वैज्ञानिक इक्कठा होकर परमाणु बम बनाने के लिये एकजुट हो गये। फाइनमेन को भी वहां बुलाया गया और उन्होने वहां काम किया।
लॉस एलमॉस मे सुरक्षा का जिम्मा सेना का था जिनके अपने नियम अपने कानून थे। यह नियम फाइनमेन को अक्सर समझ मे नहीं आते थे। फाइनमेन ताले खोलने मे माहिर थे। वे सेना के अधिकारियों को तंग करने के लिये की लेबोरेटरी की तिजोरियों खोल कर उसमे कागज पर “guess who” लिख कर छोड़ देते थे पर तिजोरियों से कुछ निकालते नहीं थे। यह वह केवल, सेना के अधिकारियों को बताने के लिये करते थे कि उनकी सुरक्षा प्रणाली कितनी गलत है।
अरलीन
उनके जीवन का एक और दृष्टान्त – बिल्कुल असम्भव सा लगता है, हम हमेशा सोचते हैं कि यह सब कहानियों या फ़िल्मो में होता है इस वास्तविक दुनियां में नहीं।
स्कूल के दिनों में फाइनमेन का अपनी सहपाठिनी अरलीन से प्रेम हो गया। उन्होने शादी तब करने की सोची जब फाइनमेन को कोई नौकरी मिल जाय। जब फाइनमेन शोध कार्य कर रहे थे तब अरलीन को टी.बी. हो गयी उसके पास केवल चन्द सालों का समय था। उन दिनों टी.बी. का कोई इलाज नहीं था। अरलीन को टी.बी. हो जाने के कारण, फाइनमेन उसे चूम भी नहीं सकते थे। उन्हे मालुम था कि अरलीन के साथ उसके सम्बन्ध केवल अध्यात्मिक (Platonic) ही रहेगें। इन सब के बावजूद, फाइनमेन अरलीन से शादी करना चाहते थे। उनके परिवार वाले और मित्र इस शादी के खिलाफ थे। इस बारे मे उनकी अपने पिता से अनबन भी हो गयी। इसके बावजूद फाइनमेन ने अरलीन के साथ शादी की।
फाइनमेन, जब लॉस एलमॉस में काम कर रहे थे तो वहां के निदेशक रौबर्ट ओपेन्हाईमर ने अरलीन को पास ही के सैनीटेरियम में भरती करवा दिया ताकि फाइनमेन उससे मिल सके। फाइनमेन के लॉस एलमॉस रहने के दौरान ही अरलीन की मृत्यु हो गयी। इस घटना चक्र पर एक फ़िल्म भी बनी है जिसका नाम इंफिनिटी (Infinity) है इसे मैथयू बौरडविक (Malthew Bordevick) ने इसे निर्देशित किया है।
कौरनल विश्वविद्यालय
फाइनमेन जिंदादिल थे और अक्सर मौज मस्ती के लिये काम करते थे। मौज मस्ती मे ही उन्होने उस विषय पर काम किया जिस पर उन्हे नोबेल पुरस्कार मिला। यह भी एक रोचक किस्सा है।
दूसरे महायुद्ध के दौरान लॉस एलमॉस लेबॉरेटरी में फाइनमेन की मित्रता बेथ से हुई जिनसे उनकी काफी पटती थी। बेथ कौरनल में थे, इसलिये फाइनमेन भी कौरनल चले गये। एक दिन वे कौरनल के अल्पाहार गृह में बैठे थे। वहां एक विद्यार्थी ने एक प्लेट को फेंका। प्लेट सफेद रंग की थी और उसमें बीच में कौरनल का लाल रंग का चिन्ह था। प्लेट डगमगा भी रही थी और घूम भी रही थी। यह अजीब नज़ारा था। फाइनमेन इसके डगमगाने और घूमने और के बीच में सम्बन्ध ढ़ूढ़ने लगे। इसमे काफी मुश्किल गणित के समीकरण लगते थे। इसमे उनका बहुत समय लगा। उन्होंने पाया कि दोनो मे 2:1 का सम्बन्ध है। उनके साथियों ने उनसे कहा कि वह इसमे समय क्यों बेकार कर रहे हैं। उनका जवाब था,
‘इसका कोई महत्व नहीं है मैं यह सब मौज मस्ती के लिये कर रहा हूं।’
पर वह इसके महत्व के बारे मे ठीक नहीं थे। वे जब इलेक्ट्रान के घूमने के बारे में शोध करने लगे तो उन्हें कौरनल की डगमगाती और घूमती प्लेट में लगी गणित फिर से याद आने लगी। इसी ने उस सिद्धान्त को जन्म दिया जिसके कारण उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला।
सच है जीवन में बहुत कुछ वह भी आवश्यक है जो केवल मौज मस्ती के लिये हो, चाहे उसका कोई और महत्व हो या न हो – मौज मस्ती ही अपने आप मे एक महत्व की बात है। यदि आप मौज मस्ती में ही अपनी जीविका ढ़ूढ सके तो क्या बात है, यदि यह नहीं हो सकता तो शायद जीविका में ही मौज मस्ती ढ़ूढ पाना दूसरी अच्छी बात है।
कैल-टेक
फाइनमेन न केवल एक महान वैज्ञानिक थे पर एक महान अध्यापक भी थे। उन्हे मालुम था कि अपनी बात दूसरे तक कैसे पहुंचायी जाय। व्याख्यानशाला उनके लिये रंगशाला थी, जिसमें नाटक भी था और आतिशबाजी भी।
फाइनमेन के द्वारा भौतिक शास्त्र पर कैल-टेक के लेक्चरों का जिक्र इस लेख के आरंभ मे किया है। उन्होने इन लेक्चरों को उन्होने सितम्बर 1961-मई 1963 मे दिया था। यह लेक्चर खास थे इसलिये इन्हें हमेशा के लिये सुरक्षित रखा गया और बाद मे ये तीन लाल किताबों के रूप में छापे गये। फाइनमेन सप्ताह में केवल दो लेक्चर देते थे बाकी समय वह इन लेक्चरों को तैयार करने में लगाते थे। लेक्चर की हर लाइन, हर मजाक को (जो वह लेक्चरों के दौरान करते थे) पहले से सोच विचार कर रखते थे। कभी भी उनके साथ लेक्चर के नोटस नहीं होते थे। बस केवल एक छोटा सा कागज रहता था जिसमें आगे बताने के लिये कुछ खास शब्द केवल संकेत देने के लिये रहते थे। यह तीन साल, संसार मे किसी भी विश्वविद्यालय के, किसी भी विषय पर के लेक्चरों मे अद्वितीय हैं। न कभी ऐसे हुये न शायद फिर कभी होंगे। क्योंकि मालुम नहीं कि फिर कभी ऐसा व्यक्ति आयेगा कि नहीं।
फाइनमेन के लिये अंग्रेजी – बेकार, और दर्शन शास्त्र – तिरस्कृत विषय था। Religion से उनका कोई वास्ता नहीं था। घुमाफ़िराकर पर बात करना उनकी आदत में नहीं था। वह हमेशा सीधी बात करते थे। उनका मतलब वही होता था जो वे कहते थे। वे इस बात से भ्रमित हो जाते थे यदि उनकी सीधी बात दूसरे को परेशान कर देती थी।
चैलेंजर दुर्घटना जांच कमीशन
लोग फाइनमेन को लोग अलग अलग तरह से याद रखते हैं ,
- उस लडके की तरह जो केवल सोच कर रेडियो ठीक करता था;
- उस वैज्ञानिक की तरह से जो भौतिक शास्त्र की गणना टौपलेस रेस्तराँ में करना पसन्द करता था;
- उस चंचल युवा के रूप में याद रखते हैं जो लौस एलमौस की लेबॉरेटरी के तिजोरियों को खोल कर अलग अलग तरह के नोट लिखे कागज को रख कर, सेना के अधिकारियों को तंग करता था;
- उन्हें बोंगों बजाने वाले की तरह याद करते हैं।
- सम्भवत: सबसे ज्यादा लोग उन्हें उस व्यक्ति की तरह से याद करते हैं जिसने टीवी के सामने सार्वजनिक रूप से बताया कि चैलेंजर-दुर्घटना क्यों हुई।
28 जनवरी 1986 में चैलेंजर अंतरिक्ष शटल का विस्फोट आकाश में हो गया था, इसकी जांच करने के लिये एक कमीशन बैठा। फाइनमेन उसमें वैज्ञानिक की हैसियत से थे। यह विस्फोट, अंतरिक्ष शटल में कुछ घटिया किस्म का सामान लगाने के कारण हुआ था। नासा का प्रशासन (जिस पर सेना का जोर है) इसे दबाना चाहता था पर वैज्ञानिक इसे उजागर करना चाहते थे। कमीशन ने अपने निष्कर्ष को टीवी के सामने सीधे प्रसारण मे बताना शुरू किया (इसमें घटिया किस्म के सामान लगाने की बात स्पष्ट नहीं थी )। उस समय टीवी पर ही, सबके सामने फाइनमेन ने एकदम ठन्डे पानी के अन्दर घटिया सामान को डाल कर दिखाया कि वास्तव में विस्फोट क्यों हुआ था। यह सीधा प्रसारण था इसलिये फाइनमेन का प्रदर्शन रोका नहीं जा सका और यह दो मिनट की क्लिप कुछ घन्टो के अन्दर दुनिया की टीवी पर सबसे ज्यादा दिखायी जाने वाली समाचार क्लिप बन गयी।
टौपलेस परिवेषिकायें(Topless waitresses)
फाइनमेन पैसाडीना में अक्सर वहीं के एक रेस्तराँ मे जाते थे, जहां पर टौपलेस परिवेषिकायें ( Waitress) रहती थीं। उस रेस्तराँ में वे उसके मालिक को भौतिक शास्त्र बताते थे और वह उन्हे चित्रकारी। एक बार पुलिस वालों को लगा कि उस रेस्तराँ में कुछ गड़बड़- सड़बड़ होता है और रेस्तराँ के मालिक पर अश्लीलता का मुकदमा चलाया। वास्तव में वहां पर इस तरह का कोई कार्य नहीं होता था। उस रेस्तराँ में कई प्रतिष्ठित व्यक्ति आते थे रेस्तराँ के मालिक ने उन सबसे गवाही देने की प्रार्थना की। सबने चुप्पे से कन्नी काट ली, पर फाइनमेन ने नहीं। उन्होंने रेस्तराँ मालिक के पक्ष में गवाही दी और अगले दिन अखबारों के पहले पन्ने पर सबसे मुख्य खबर के रूप में छपी।
‘Caltech’s Feynman tells lewd case jury, he watched the girls while doing his equations’
फाइनमेन पर पुस्तके
फाइनमेन की जीवन की घटनाओं के बारे में यदि कोई लिखने बैठे तो एक किताब भी पूरी न पड़े। शायद इसलिये फाइनमेन पर कई किताबें लिखी गयीं हैं।
- Surely You’re Joking, Mr. Feynman! by Richard Feynman & Ralph Leighton;
- What Do You Care What Other People Think? by Richard Feynman & Ralph Leighton;
- Richard Feynman-A life in Science’ by John Gribbin & Mary Gribbin;
- Tuva or Bust! by Ralph Leighton;
- No Ordinary Genius: The Illustrated Richard Feynman; edited by Christopher Sykes;
- Most of the Good stuff; edited by Laurie Brown & John Rigden;
- Genius: Richard Feynman and Modern Physics by James Gleik;
- The Beat of The Different Drum; by Jagdish Mehra.
यह सब पढ़ने योग्य हैं पर इनमें से यदि आप एक किताब पढना चाहें तो आप Richard Feynman-A life in Science’ by John Gribbin & Mary Gribbin पढ़ें।
Reblogged this on oshriradhekrishnabole and commented:
Very very nice
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I wrote this article on my उन्मुक्त blog in a series more than a decade ago and then published it on my लेख blog here. Thanks for publishing it here. It will get wider circulation.
Feynamn’s daughter published a book on the letters written by Feynman titled ‘Don’t you have time to think’. I reviewed this book in series on my उन्मुक्त blog and then published in my लेख blog here. This also a very good book – worth reading.
There is another interesting article by Freeman Dyson about his meeting with Feynman in his book ‘Disturbing the Universe’. This article is also worth reading.
But the book I immensely enjoyed reading is ‘The Pleasures of finding things out’ by Feynman. It is collection of articles by Feynam.
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अगर feynmenn की किताबों को हिन्दी में translate कर सको तो बहुत ही बड़िया resourse होगा ।
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पूरा तो नही पढ़ा , पर जल्दी ही अपने ब्लॉग पर इसका लिंक देंगे। आशीष जी हमारा ब्लॉग जरूर देखिएगा।
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क्या The Feynman Lectures on Physics हिंदी में उपलब्ध है?
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दुर्भाग्य से नही!
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Then provide the link for “The Feynman Lectures on Physics” in english plz.
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http://www.feynmanlectures.caltech.edu/
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बढ़िया आलेख. रचनाकार पर लिंक दिया है.
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