2019 चिकित्सा नोबेल पुरस्कार: विलियम जी कायलिन जूनियर, सर पीटर जे रैटक्लिफ और ग्रेग एल सेमेंजा


विलियम जी कायलिन जूनियर, सर पीटर जे रैटक्लिफ और ग्रेग एल सेमेंजा
विलियम जी कायलिन जूनियर, सर पीटर जे रैटक्लिफ और ग्रेग एल सेमेंजा

इन तीन वैज्ञानिकों को चिकित्सा का नोबेल, कोशिकाओं पर शोध के लिए सम्मान

2019 के लिए नोबल पुरस्कारों का ऐलान शुरू हो चुका है। मेडिसिन के लिए संयुक्त रूप से विलियम जी कायलिन जूनियर, सर पीटर जे रैटक्लिफ और ग्रेग एल सेमेंजा के नाम की घोषणा की गई है। डॉक्टरों की इस टीम नें किस तरह से कोशिकाएं सेंस को समझती है और अपने आपको ऑक्सीजन के अनुकूल बनाती हैं,उसकी खोज के लिए मिला है।

विलियम जी केलिन जूनियर का जन्म 1957 में न्यूयॉर्क में हुआ था। दरहम के ड्यूक यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमडी की डिग्री हासिल की थी। जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी और बोस्टन के दाना-फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट से इंटरनल मेडिसिन और ऑन्कोलॉजी में प्रशिक्षण हासिल की थी।

ग्रेग एल सेमेंजा भी न्यूयॉर्क के रहने वाले हैं। उन्होंने बोस्टन में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से बॉयोलॉजी में बीए की डिग्री हासिल की।पेन्सिवेलनिया यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की है.

दो अमेरिकी शोधकर्ताओं के साथ सर पीटर जे रैटक्लिफ का संबंध इंग्लैंड से है। उनका जन्म 1954 में लंकाशायर में हुआ था। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के गोन्विले और साइअस कॉलेज से मेडिसिन की पढ़ाई की था। उसके बाद ऑक्सफोर्ड से नेफ्रोलॉजी में ट्रेनिंग हासिल की थी।

नोबेल पुरस्कार के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘बड़ी संख्या में बीमारियों के लिए ऑक्सीजन (Oxygen) संवेदन केंद्रीय है। इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) विजेताओं द्वारा की गई खोजों का शरीर विज्ञान के लिए मौलिक महत्व है और उन्होंने एनीमिया (Anaemia), कैंसर (Cancer) और कई अन्य बीमारियों से लड़ने के लिए नई रणनीतियों का वादा करने का मार्ग प्रशस्त किया है।’

इन शोधकर्ताओं ने यह बताया है की कैसे मानव कोशिकाएं ऑक्सीजन के प्रति बेहद संवेदनशील होती है और ऑक्सीजन स्तर में बदलाव होने पर अपने जीन में बदलाव कर अपनी प्रतिक्रिया देती है। इन वैज्ञानिकों के कार्य से शोधकर्ताओं को यह समझने में मदद मिलेगी की कैसे मानव शरीर निम्न ऑक्सीजन स्तर होने पर भी अपने आप को अनुकूल बनाकर सामंजस्य स्थापित कर सकता है साथ ही लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण और नई रक्त वाहिकाओं के कार्यक्षमता को बढ़ा सकता है।

इन शोधकर्ताओं की खोज HIF प्रणाली पर प्रकाश डालती है जो हमें बताती है की कैसे कोशिकाएं ऑक्सीजन के साथ अपनी प्रतिक्रिया देती है। मानव कोशिकाओं को सही ढंग से काम करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। यदि ऑक्सीजन को ठीक से विनियमित नहीं किया जाय तो कोशिकाएं मर सकती हैं। कार्य करने में, व्यायाम, प्रतिरक्षा, भ्रूण विकास, चयापचय और उच्च ऊंचाई पर भी कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी लगभग हर स्थितियों में देखी जाती है। HIF प्रणाली इन स्थितियों में कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आवश्यकता के अनुसार प्रतिक्रिया देने के लिए नियंत्रित करता रहता है इसके अलावा HIF प्रणाली एनीमिया, कैंसर, दिल का दौरा, स्ट्रोक और अन्य विकारों में भी अपनी अहम भूमिका निभाता है।

जीवन, जैसा की हम मानते है यह ऑक्सीजन के बिना मौजूद नहीं हो सकता। कोशिकाएं भी निर्वात में जीवित नही रह सकती वे भी ऑक्सीजन के बिना मरने लगती है। इन वैज्ञानिकों ने पाया की जब ऑक्सीजन का स्तर गिरता है तो सभी कोशिकाएं इसे समझ जाती है और उसके अनुसार ही अपनी प्रतिक्रिया देने लगती है। हमारा शरीर ऑक्सीजन के स्तर को आपके रक्त और ऊतकों में उचित रूप से उच्च स्तर पर बनाये रखने के लिए हर तरह का काम करता है। उदाहरण के लिए, जब आप उच्च ऊंचाई पर जाते है जहां हवा पतली होती है तो आपका शरीर एरिथ्रोपोइटिन के उत्पादन को चालू कर देता है। वास्तव में आपका शरीर एरिथ्रोपोइटिन के उत्पादन को चालू कर पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं होने का संकेत देता है सामान्यतः इसे हाइपोक्सिया(hypoxia) के रूप में जाना जाता है। एरिथ्रोपोइटिन जिसे EPO भी कहा जाता है यह गुर्दे द्वारा निर्मित एक हार्मोन है जो लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने के लिए अस्थि मज्जा को संकेत देता है। चूंकि लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन होता है जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन की पूर्ति करता है इसलिए लाल रक्त कोशिकाओं के बनाने से कोशिकाओं और ऊतकों में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है।

ऑक्सीजन की सामान्य मात्रा जिसे नॉर्मॉक्सिया(Normoxia) कहते हैं जबकि ऑक्सीजन की कमी हायपॉक्सिया(Hypoxia) कही जाती है।

ग्रेग एल सेमेन्ज़ा ने हाइपोक्सिया-इंड्यूसबल फैक्टर(hypoxia-inducible factor: HIF) नामक एक प्रोटीन कॉम्प्लेक्स की पहचान की है। यह प्रोटीन कॉम्प्लेक्स दो प्रोटीनों को एनकोड करता है और ऑक्सीजन स्तर कम होने पर एरिथ्रोपोइटिन उत्पादन को बढ़ा देता है ताकि कोशिकाएं कम ऑक्सीजन की स्थिति में भी अपने आप को समायोजित कर सकें। पीटर जे रैटक्लिफ़ ने खोजा की कोशिकाएं लगातार HIF प्रोटीन बनाती रहती है लेकिन अगर पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन हो तो कोशिकाएं तुरंत उन HIF प्रोटीनों को नष्ट भी कर देती है।विलियम केलिन एक आनुवंशिक सिंड्रोम का अध्ययन कर रहे थे जिसे वॉन हिप्पेल-लिंडौ रोग(von Hippel-Lindau’s disease) भी कहा जाता है। यह एक वंशानुगत रोज है जिसमें अक्सर मरीजों में अग्नाशय, गुर्दे और अधिवृक्क ग्रंथियों के साथ-साथ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में ट्यूमर की उपस्थिति देखी गयी है यह कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है। वॉन हिप्पेल-लिंडौ की बीमारी से ग्रसित परिवार वीएचएल(VHL) नामक जीन में उत्परिवर्तन करते हैं। केलिन ने दिखाया की एक कार्यात्मक VHL जीन के बिना कोशिकाएं निम्न ऑक्सीजन स्थितियों में होनेवाली प्रतिक्रिया देती है अर्थात एरिथ्रोपोइटिन का उत्पादन करती है यह एक संकेत है जो दर्शाती है की कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो गयी है। लेकिन कार्यात्मक VHL जीन जब म्यूटेशन करता है तब कोशिकाएं निम्न ऑक्सीजन स्थितियों में प्रतिक्रिया नही देती। विशेष परिस्थितियों में या कैंसर में एचआईएफ घटक निम्न ऑक्सीजन की प्रतिक्रियाओं को बंद कर सकता है जिससे कोशिकाओं का नाश हो जाता है। केलिन ने जांच में पाया की कैसे VHL जानता है कि HIF को कब टैग करना है और कब उसे अकेला छोड़ना है। जब ऑक्सीजन का स्तर सामान्य होता है तो HIF एक हाइड्रॉक्सिल समूह(ऑक्सीजन का एक अणु और हाइड्रोजन का एक अणु: OH) के साथ प्रतिक्रिया करता है। वास्तव में वह हाइड्रॉक्सिल समूह HIF के विनाश को आरंभ करने के लिए VHL के लिए एक संकेत है। जब ऑक्सीजन का स्तर गिरता है तो वीएचएल को कोई संकेत नही मिल रहा होता है। जिससे एचआईएफ को एरिथ्रोपोइटिन और अन्य प्रोटीन के उत्पादन को जारी करने की अनुमति मिलती है ताकि कम ऑक्सीजन में भी कोशिकाएं जीवित रह सके।

VHL जीन में होनेवाला म्यूटेशन VHL को निष्क्रिय करता है जिससे HIF का स्तर बढ़ जाता है इसलिए कैंसर कोशिकाएं अपने ऑक्सीजन-परिमार्जन गतिविधियों को बढ़ावा देती है और ट्यूमर में रक्त वाहिका वृद्धि को प्रोत्साहित करती है। यह एक प्रक्रिया है जिसे एंजियोजेनेसिस(angiogenesis) कहा जाता है। यह शोध कैंसर में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि कैंसर कोशिकाएं तेजी से बढ़ती है और कोशिकाओं में होनेवाली ऑक्सीजन की आपूर्ति को समाप्त करती है। इस कारण कैंसर ट्यूमर तेजी से वृद्धि करने लगते है। विकासशील मानव भ्रूण और प्लेसेंटा की उचित वृद्धि के लिए ऑक्सीजन का स्तर बड़ा महत्वपूर्ण योगदान देता है यदि मानव कोशिकाएं ऑक्सीजन स्तर के उतार चढ़ाव को भलीभांति समझकर प्रतिक्रिया देती है तो कई प्रकार के कोशिकीय रोग की रोकथाम में सहायक बन जाती है। अब शोधकर्ता कैंसर की दवाओं को विकसित करने की कोशिश कर रहे है जो ऑक्सीजन-संवेदी प्रक्रियाओं को लक्षित करते है।

वास्तव में इन शोधकर्ताओं ने अपनी इस खोज 1990 के दशक में ही कर ली थी लेकिन नोबेल समिति को कई बार वैज्ञानिकों को पुरस्कृत करने में दशकों लग जाते है। नोबेल चयन समिति के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय राल्फ पीटरसन(Ralf Pettersson) ने कहा था “नोबेल समिति किसी भी वैज्ञानिक को पुरस्कृत करने के लिए उस वर्ष तक का इंतजार करता है जब तक किसी खोज का पूरा प्रभाव सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट न हो जाये।”

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