महान यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने कहा था कि मनुष्य स्वभावतः जिज्ञासु प्राणी है तथा उसकी सबसे बड़ी इच्छा ब्रह्माण्ड की व्याख्या करना है। ब्रह्माण्ड की कई संकल्पनाओं ने मानव मस्तिष्क को हजारों वर्षों से उलझन में डाल रखा है। वर्तमान में वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड की सूक्ष्मतम एवं विशालतम सीमाओं तक पहुंच चुके हैं। ब्रह्माण्डीय परिकल्पनाओं एवं प्रेक्षणों द्वारा खगोलविदों को ब्रह्माण्ड की विचित्रताओं और रहस्यों के बारे में पता चला है। दिलचस्प बात यह है कि ब्रह्माण्डीय संकल्पनाओं एवं पिंडों के बारे में हमारे ज्ञान में वृद्धि के साथ और अधिक विचित्रताएँ हमारे सामने आती गई हैं। ब्रह्माण्ड की इन्हीं विचित्रताओं में से एक है- ब्लैक होल या कृष्ण विवर। ये अत्यधिक घनत्व तथा द्रव्यमान वाले ऐसें पिंड होते हैं, जो अपने द्रव्यमान की तुलना में आकार में बहुत छोटे होते हैं। इनका गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल होता है कि इनके चंगुल से प्रकाश की किरणों का निकलना भी असंभव होता हैं। चूंकि ब्लैक होल प्रकाश की किरणों को भी अवशोषित कर लेते हैं, इसलिए हमारे लिए ये अदृश्य ही बने रहते हैं।
आजकल ब्लैक होल एक बार फिर चर्चा में हैं क्योंकि हाल ही में जापान, ताइवान और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के खगोल वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के सुदूर कोनों में स्थित 83 अतिविशालकाय (सुपरमैसिव) ब्लैक होल्स (ऐसे ब्लैक होल जिनका द्रव्यमान हमारे सूर्य के द्रव्यमान की तुलना में लाखों-करोड़ों गुना अधिक होता है) की खोज की है। इन बेहद विशालकाय ब्लैक होल्स की मौजूदगी के संकेत 83 अत्यधिक चमकीले क्वासर्स (क्वासी स्टेलर रेडियो सोर्सेज) के केंद्र में मिले हैं। ये क्वासर्स पृथ्वी से लगभग 13 अरब प्रकाश वर्ष दूर है। दूसरे शब्दों में, हम उन्हें देख रहे हैं क्योंकि वे 13 अरब वर्ष पहले अस्तित्व में थे। ब्रह्मांड की उत्पत्ति (बिग बैंग) 13.8 अरब वर्ष पहले हुआ था, इसलिए इन क्वासर्स/ब्लैक होल की यह समयावधि लगभग हमारे ब्रह्मांड की उम्र के बराबर है। आधुनिक खगोलीय मानकों के आधार पर इन क्वासर्स और ब्लैक होल्स को प्रारंभिक ब्रह्मांड के निवासी कहें तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।

क्वासर्स ने भी लंबे समय से खगोल वैज्ञानिकों को उलझन में डाल रखा है। वैसे तो क्वासर्स हमारी आकाशगंगा से करीब पाँच लाख गुना छोटे पिंड हैं, मगर ये 100 से भी अधिक आकाशगंगाओं के बराबर रेडियो तरंगों का उत्सर्जन करते हैं। क्वासर्स की खोज के शुरुवाती दौर से ही कुछ वैज्ञानिक यह अनुमान लगाते आए हैं कि ब्रह्मांड के ये रहस्यमय बाशिंदे ब्रह्मांड की दूरस्थ सीमाओं पर स्थित हो सकते हैं। जापान, ताइवान और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के खगोलविदों की इस हालिया खोज ने वैज्ञानिकों के इस पूर्वानुमान की पुष्टि की है तथा पहली बार क्वासर्स के केंद्र में अतिविशालकाय ब्लैक होल्स की मौजूदगी के स्पष्ट संकेत मिले हैं। मजेदार बात यह है कि ये सभी ब्लैक होल्स ब्रह्मांड की उत्पत्ति की घटना बिग बैंग के ठीक बाद अस्तित्व में आए! एक अनुमान के मुताबिक उस समय ब्रह्मांड की आयु ब्रह्मांड की वर्तमान आयु से 10 प्रतिशत से भी कम रही होगी।
चूंकि ब्लैक होल हमें दिखाई नहीं देते, इसलिए वैज्ञानिकों ने इन ब्लैक होल्स की खोज 83 क्वासरो की मदद से की है। इन क्वासरो की गैसीय द्रव्यराशि को ब्लैक होल्स अपनी ओर लगातार खींच रहें हैं। ब्लैक होल में क्वासर की द्रव्यराशि लगातार गिरने के कारण उसमें से काफी तेजी से रेडियो तरंगे उत्सर्जित होने लगती है। इन्हीं तीव्र रेडियो तरंगो के उद्गम के निरीक्षण से वैज्ञानिकों ने इन 83 प्राचीन ब्लैक होल्स की खोज को अंजाम दिया है। यह खोज एहिम यूनिवर्सिटी, जापान के खगोल वैज्ञानिक योशिकी मत्सुओका के निर्देशन में की गई है और इसके परिणाम द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं। इस खोज में नेशनल एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेटरी के सुबारू टेलीस्कोप में लगे अत्याधुनिक उपकरण ‘हाइपर सुपरटाइम-कैम’ (एचएससी) के आंकड़ों के अलावा ला-पाल्मा द्वीप स्थित दूरबीन ग्रैन टेलीस्कोपियो कैनेरिया और चिली स्थित जेमिनी साउथ टेलीस्कोप की सहायता ली गई।
यह खोज ब्रह्मांड विज्ञानियों के लिए एक बड़ा रहस्य बनकर सामने आया है क्योंकि इन सभी ब्लैक होल्स का निर्माण बिग बैंग के ठीक बाद हुआ था, जबकि वर्तमान खगोलीय सिद्धांतों के अनुसार उस समय तो आकाशगंगाओं और तारों को जन्म देने वाली निहारिकाओं का भी निर्माण शुरू नहीं हुआ था। इस संदर्भ में प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के खगोल वैज्ञानिक और इस खोजी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले माइकल स्ट्रॉस का कहना है कि “यह उल्लेखनीय है कि बिग बैंग के तुरंत बाद इतनी विशाल घनी वस्तुएं बनने में सक्षम थीं। ब्लैक होल्स प्रारंभिक ब्रह्मांड में कैसे बन सकते हैं और इनकी मौजूदगी कितनी सामान्य हैं, यह ब्रह्माण्ड संबंधी हमारे वर्तमान मॉडल के लिए एक चुनौती है।” चुनौती का कारण है कि जब ब्रह्मांड बिलकुल नया रहा होगा, ब्रह्मांड का विस्तार भी ज्यादा नहीं हो पाया होगा अर्थात जब ब्रह्मांड इतने बड़े ब्लैक होल्स को जन्म देने के लिए पर्याप्त ही नहीं रहा होगा, उस समय इन 83 ब्लैक होल्स की उत्पत्ति कई प्रश्न खड़े करती हैं।
गौरतलब है कि जब सूर्य से लगभग 10 गुना अधिक द्रव्यमान वाले तारों का हाइड्रोजन और हीलियम रूपी ईंधन खत्म हो जाता है, तब उन्हें फैलाकर रखने वाली ऊर्जा चुक जाती है और वे अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण के कारण सिकुड़कर अत्यधिक सघन पिंड- ब्लैक होल बन जाते हैं।

प्रश्न यह उठता है कि जब तारों का ही जन्म नहीं हुआ था तब तारों के अवशेष से 83 अतिविशालकाय ब्लैक होल्स की उत्पत्ति कैसे हुई होगी? क्या यह सम्भव है कि पिता के जन्म से पहले ही पुत्र का जन्म हो जाए? यह नवीनतम खोज बिग बैंग को ब्रह्मांड की उत्पत्ति की सम्पूर्ण तार्किक व्याख्या मानने से इंकार करती है और उसमें संशोधन की मांग करती नजर आ रही है। हमारा अद्भुत ब्रह्माण्ड रहस्यों से भरा पड़ा है। लेकिन अब हम विज्ञान व गणित की सहायता से धीरे-धीरे इसके रहस्यों को जान पा रहे है। यही विज्ञान है, जो प्रश्नों के जवाब तो देता है किंतु साथ ही सर्वथा नए प्रश्न भी खड़े कर देता है।
लेखक परिचय

प्रदीप कुमार एक साइंस ब्लॉगर एवं विज्ञान संचारक हैं। ब्रह्मांड विज्ञान, विज्ञान के इतिहास और विज्ञान की सामाजिक भूमिका पर लिखने में आपकी रूचि है। विज्ञान से संबंधित आपके लेख-आलेख राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं, जिनमे – नवभारत टाइम्स, दिल्ली की सेलफ़ी, सोनमाटी, टेक्निकल टुडे, स्रोत, विज्ञान आपके लिए, समयांतर, इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए, अक्षय्यम, साइंटिफिक वर्ल्ड, विज्ञान विश्व, शैक्षणिक संदर्भ आदि पत्रिकाएँ सम्मिलित हैं। संप्रति : दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर के विद्यार्थी हैं। आपसे इस ई-मेल पते पर संपर्क किया जा सकता है : pk110043@gmail.com
शानदार, यानी “बिग बैंग” पर बड़ा प्रश्रचिन्ह!!!
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आनन्द आ गया पढ़कर। विज्ञान की नित नयी जानकारियों को प्रस्तुत करने के लिए आपका अतीव धन्यवाद।
एक प्रश्न सदैव मन में बना रहता है, क्या ब्रह्माण्ड का उद्भव नितान्त शून्य से हुआ है? या कुछ था जिसे हम समझ नहीं पा रहे?
बिग बैंग को ही ले लीजिए, क्या इसके अनुसार ब्रह्माण्ड उत्पत्ति से पूर्व सर्वस्व अस्तित्वहीन था? फिर बिगबैंग की घटना किससे जुड़ी? किससे घटित हुई? क्यों हुई? बिगबैंग के लिए उत्तरदायी काल्पनिक अति परमाण्वीय इकाई या उसमें विचलन क्या अनस्तित्व की सूचना देते हैं?
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