स्टीफन विलियम हॉकिंग : ब्लैक होल को चुनौती देता वैज्ञानिक


विश्व प्रसिद्ध महान वैज्ञानिक और बेस्टसेलर रही किताब ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ के लेखक स्टीफन हॉकिंग ने शारीरिक अक्षमताओं को पीछे छोड़ते हु्ए यह साबित किया कि अगर इच्छा शक्ति हो तो व्यक्ति कुछ भी कर सकता है।

हमेशा व्हील चेयर पर रहने वाले हॉकिंग किसी भी आम मानव से इतर दिखते हैं। कम्प्यूटर और विभिन्न उपकरणों के ज़रिए अपने शब्दों को व्यक्त कर उन्होंने भौतिकी के बहुत से सफल प्रयोग भी किए हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ केम्ब्रिज में गणित और सैद्धांतिक भौतिकी के प्रेफ़ेसर रहे स्टीफ़न हॉकिंग की गिनती आईंस्टीन के बाद सबसे बढ़े भौतकशास्त्रियों में होती है।

 

स्टीफन विलियम हॉकिंग (जन्म 8 जनवरी 1942), एक विश्व प्रसिद्ध ब्रितानी भौतिक विज्ञानी, ब्रह्माण्ड विज्ञानी, लेखक और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सैद्धांतिक ब्रह्मांड विज्ञान केन्द्र (Centre for Theoretical Cosmology) के शोध निर्देशक थे।

स्टीफ़न हॉकिंग का जन्म 8 जनवरी 1942 को फ्रेंक और इसाबेल हॉकिंग के घर में हुआ। परिवार वित्तीय बाधाओं के बावजूद, माता पिता दोनों की शिक्षा ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में हुई जहाँ फ्रेंक ने आयुर्विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की और इसाबेल ने दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। वो दोनों द्वितीय विश्व युद्ध के आरम्भ होने के तुरन्त बाद एक चिकित्सा अनुसंधान संस्थान में मिले जहाँ इसाबेल सचिव के रूप में कार्यरत थी और फ्रेंक चिकित्सा अनुसंधानकर्ता के रूप में कार्यरत थे।

 

महत्वपूर्ण पड़ाव

  1. वर्ष 1942 में 8 जनवरी को स्टीफ़न का जन्म इंग्लैंड के ऑक्सफ़ोर्ड में हुआ था
  2. वर्ष 1959 में वो नेचुरल साइंस की पढ़ाई करने ऑक्सफ़ोर्ड पहुंचे और इसके बाद कैम्ब्रिज में पीएचडी के लिए गए
  3. वर्ष 1963 में पता चला कि वो मोटर न्यूरॉन बीमारी से पीड़ित हैं और ऐसा कहा गया कि वो महज़ दो वर्ष जी पाएंगे
  4. वर्ष 1988 में उनकी किताब ए ब्रीफ़ हिस्टरी ऑफ़ टाइम आई जिसकी एक करोड़ से ज़्यादा प्रतियां बिकीं
  5. वर्ष 2014 में उनके जीवन पर द थ्योरी ऑफ़ एवरीथिंग बनी जिसमें एडी रेडमैन ने हॉकिंग का किरदार अदा किया था
  6. वर्ष 2018 मृत्यु

स्टीफ़न हॉकिंग का विज्ञान जगत को योगदान

हॉकिंग भौतिक विज्ञान के कई अलग-अलग लेकिन समान रूप से मूलभूत क्षेत्र जैसे गुरुत्वाकर्षण, ब्रह्मांड विज्ञान, क्वांटम थ्योरी, सूचना सिद्धांत और थर्मोडायनमिक्स को एक साथ ले आए थे।

ब्लैकहोल और बिग बैंग

हॉकिंग का सबसे उल्लेखनीय काम ब्लैक होल के क्षेत्र में है। जब 1959 में हॉकिंग ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में स्नातक की पढ़ाई शुरू की थी उस दौर में वैज्ञानिकों ने ब्लैक होल के सिद्धांत को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था।

न्यू जर्सी स्थित प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के जॉन व्हीलर ने इस पर बेहद बारीकी से काम करते हुए कथित रूप से ब्लैक होल के नाम तक रख दिए थे। ब्रिटेन को रोजर पेनरोज़ और सोवियत यूनियन के याकोफ़ जेलदोविच भी इसी विषय पर काम कर रहे थे।

भौतिक विज्ञान में अपनी डिग्री हासिल करने के बाद हॉकिंग ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैंब्रिज कोस्मोलॉजिस्ट डेनिस स्काइमा के निर्देशन में पीएचडी शुरू की।

सामान्य सापेक्षता (जेनरल रिलेटिविटी) और ब्लैक होल में फिर से पैदा हुई वैज्ञानिकों की दिलचस्पी ने उनका भी ध्यान खींचा। यही वो समय था जब उनकी असाधारण मानसिक क्षमता सामने आने लगी।

और इसी दौरान उन्हें मोटर न्यूरॉन (एम्योट्रोफ़िक लेटरल सिलेरोसिस) जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होने के बारे में पता भी चला। इसी बीमारी की वजह से उनका शरीर लकवाग्रस्त हो गया था।

स्काइमा के दिशानिर्देशन में ही हॉकिंग ने बिग बैंग थ्योरी के बारे में सोचना शुरू किया था। आज उनके ब्रह्मांड के इस निर्माण के सिद्धांत को बहुत हद तक वैज्ञानिकों ने स्वीकार कर लिया है।

हॉकिंग को अहसास हुआ कि बिग बैंग दरअसल ब्लैक होल का उलटा पतन ही है। स्टीफ़न हॉकिंग ने पेनरोज़ के साथ मिलकर इस विचार को और विकसित किया और दोनों ने 1970 में एक शोधपत्र प्रकाशित किया और दर्शाया कि सामान्य सापेक्षता का अर्थ ये है कि ब्रह्मांड ब्लैक होल के केंद्र (सिंगुलैरिटी) से ही शुरु हुआ होगा।

इसी दौरान हॉकिंग की बीमारी बेहद बढ़ गई थी और वो बैसाखी के सहारे से भी चल नहीं पा रहे थे। 1970 के ही दशक में जब वो बिस्तर से बंध से गए थे उन्हें अचानक ब्लैक होल के बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ।

इसके बाद ब्लेक होल के बारे में कई तरह की खोजें हुईं।

  • हॉकिंग ने बताया था कि ब्लेक होल का आकार सिर्फ़ बढ़ सकता है और ये कभी भी घटता नहीं है।
  • ये बात सामान्य प्रकट होती है। क्योंकि ब्लेक होल के पास जाने वाली कोई भी चीज़ उससे बच नहीं सकती और उसमें समा जाती है और इससे ब्लेक होल का भार बढ़ेगा ही।
  • ब्लेक होल का भार ही उसका आकार निर्धारित करता है जिसे उसके केंद्र की त्रिज्या से नापा जाता है। ये केंद्र (घटना क्षितिज) ही वो बिंदू होता है जिससे कुछ भी नहीं बच सकता।
  • इसकी सीमा किसी फूलते हुए ग़ुब्बारे की तरह बढ़ती रहती है।
  • लेकिन हॉकिंग ने आगे बढ़कर बताया था कि ब्लेक होल को छोटे ब्लेक होल में विभाजित नहीं किया जा सकता।
  • उन्होंने कहा था कि दो ब्लेक होल के टकराने पर भी ऐसा नहीं होगा। हॉकिंग ने ही मिनी ब्लैक होल का सिद्धांत भी दिया था।

क्वांटम थ्योरी और जनरल रिलेटीविटी का मिलन

हॉकिंग ने भौतिक विज्ञान उन दो क्षेत्रों को एक साथ ले आए जिन्हें अभी तक कोई भी वैज्ञानिक एक साथ नहीं ला पाया था। ये हैं क्वांटम थ्योरी और जनरल रिलेटीविटी।

क्वांटम थ्यौरी के ज़रिए बेहद सूक्ष्म चीज़ों जैसे की परमाणु का विवरण दिया जाता है जबकि जनरल रिलेटीविटी (सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत) के ज़रिए ब्रह्मांडीय पैमाने पर तारों और आकाशगंगाओं जैसे पदार्थों का विवरण दिया जाता है।

मूल रूप में ये दोनों सिद्धांत एक दूसरे से असंगत लगते हैं। सापेक्षता का सिद्धांत मानता है कि अंतरिक्ष किसी काग़ज़ के पन्ने की तरह चिकना और निरंतर है।

लेकिन क्वांटम थ्योरी कहती है कि ब्रह्मांड की हर चीज़ सबसे छोटे पैमाने पर दानेदार है और असतत ढेरों से बनी है।

थ्योरी ऑफ़ एवरीथिंग

हाकिंग रेडीयेशन
हाकिंग रेडीयेशन

दुनियाभर के भौतिक वैज्ञानिक दशकों से इन दो सिद्धांतों को एक करने में जुटे थे जिससे कि ‘द थ्योरी ऑफ़ एवरीथिंग‘ या हर चीज़ के सिद्धांत तक पहुंचा जा सके। इस तरह का सिद्धांत आधुनिक भौतिक विज्ञान के लिए किसी पवित्र बंधन की तरह होता।

अपने करियर के शुरुआती दौर में स्टीफ़न हॉकिंग ने इसी थ्योरी में दिलचस्पी दिखाई लेकिन ब्लेक होल का उनका विश्लेषण इस तक नहीं पहुंच सका।

हालांकि ब्लेक होल की क्वांटम एनेलिसिस में उन्होंने पहले से मौजूद इन दोनों सिद्धांतों में पैबंद लगाने का काम किया।

क्वांटम थ्योरी के मुताबिक कथित तौर पर रिक्त स्थान वास्तव में शून्य से दूर हैं क्योंकि अंतरिक्ष सभी पैमानों पर सुचारू रूप से बिलकुल रिक्त नहीं हो सकता। इसके बजाए यहां गतिविधियां हो रही हैं और ये जीवित है।

अंतरिक्ष में कण लगातार उतपन्न हो रहे हैं और एक दूसरे से टकरा रहे हैं। इनमें एक कण है और एक प्रतिकण। इनमें से एक कण पर धनात्मक( पॉज़ीटिव) ऊर्जा है और दूसरे पर ऋणात्मक( नेगेटिव) ऐसे में कोई नई ऊर्जा उतपन्न नहीं हो रही है।

ये दोनों कण एक दूसरे को इतनी जल्दी ख़त्म कर देते हैं कि इन्हें देखा( डिटेक्ट) नहीं किया जा सकता। नतीजतन इन्हें आभासी कण( वर्चुअल पार्टिकल) कहा जाता है।

लेकिन हॉकिंग ने सुझाया था कि ये वर्चुअल कण वास्विक हो सकते हैं यदि इनका निर्माण ठीक ब्लैक होल के पास  होता है। हॉकिंग ने संभावना जताई थी कि इन दो कणों में से एक ब्लैक होल के भीतर चला जाएगा और दूसरा अकेला रह जाएगा।

ये अकेला रह गया कण अंतरिक्ष में बाहर निकलेगा। यदि ब्लैक होल में ऋणात्मक( नेगेटिव ऊर्जा) वाला कण समाया है तो ब्लैक होल की कुल ऊर्जा कम हो जाएगी और इससे उसका भार भी कम हो जाएगा और दूसरा कण  धनात्मक(पॉज़ीटिव) ऊर्जा लेकर अंतरिक्ष में चला जाएगा।

इसका नतीजा ये होगा कि ब्लैक होल से ऊर्जा निकलेगी। इसी ऊर्जा को अब हॉकिंग विकिरण(रेडिएशन) कहा जाता है। हालांकि ये रेडिएशन लगातार कम होती रहती है। अपने इस सिद्धांत ने हॉकिंग ने अपने आप को ही ग़लत साबित कर दिया था।

यानी ब्लैक होल का आकार कम हो सकता है। इसका ये अर्थ भी हो सकता है कि धीरे धीरे ब्लैक होल लुप्त हो जाएगा और अगर ऐसा हुआ तो फिर वो ब्लैक होल होगा ही नहीं। यह संकुचन आवश्यक रूप से क्रमिक और शांत नहीं होगा।

हॉकिंग ने अपनी थ्यौरी ऑफ़ एवरीथिंग से सुझाया था कि ब्रह्मांड का निर्माण स्पष्ट रूप से परिभाषित सिद्धांतों के आधार पर हुआ है।

उन्होंने कहा था,

“ये सिद्धांत हमें इस सवाल का जवाब देने के लिए काफ़ी हैं कि ब्रह्मांड का निर्माण कैसे हुआ, ये कहां जा रहा है और क्या इसका अंत होगा और अगर होगा तो कैसे होगा? अगर हमें इन सवालों का जवाब मिल गया तो हम ईश्वर के दिमाग़ को समझ पाएंगे।”

फ़िल्मो, टीवी धारावाहिको मे स्टीफ़न हाकिंग

लोकप्रिय टीवी धारावाहिक बिग बैंग थ्योरी मे
लोकप्रिय टीवी धारावाहिक बिग बैंग थ्योरी मे

स्टीफ़न हॉकिंग शायद आधुनिक दौर के सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं. लेकिन अशक्त बना देने वाली बीमारी के ख़िलाफ़ संघर्ष और, तुंरत पहचान में आने वाली अपनी रोबोट जैसी आवाज़ और स्टार ट्रेक, द सिंपसन जैसे शो में दिखाई दिये है।

उनके जीवन के इन्हीं रहस्यों से पर्दा उठाती, इस मशहूर ब्रिटिश वैज्ञानिक के जीवन पर आधारित एक फ़िल्म बन चुकी है। अपने जीवन पर बनी इस फ़िल्म के बारे में पूछने पर हॉकिंग कहते हैं

”यह फ़िल्म विज्ञान पर केंद्रित है, और शारीरिक अक्षमता से जूझ रहे लोगों को एक उम्मीद जगाती है। 21 वर्ष की उम्र में डॉक्टरों ने मुझे बता दिया था कि मुझे मोटर न्यूरोन नामक लाइलाज बीमारी है और मेरे पास जीने के लिए सिर्फ दो या तीन साल हैं। इसमें शरीर की नसों पर लगातार हमला होता है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में इस बीमारी से लड़ने के बारे में मैने बहुत कुछ सीखा”।

स्टीफन हाकिंग के जीवन पर बनी फ़िल्म " थ्योरी आफ़ एवरीथींग "
स्टीफन हाकिंग के जीवन पर बनी फ़िल्म ” थ्योरी आफ़ एवरीथींग “

हॉकिंग का मानना है कि हमें वह सब करना चाहिए जो हम कर सकते हैं, लेकिन हमें उन चीजों के लिए पछताना नहीं चाहिए जो हमारे वश में नहीं है।

‘परिवार और दोस्तों के बिना कुछ नहीं’

यह पूछने पर कि क्या अपनी शारीरिक अक्षमताओं की वजह से वह दुनिया के सबसे बेहतरीन वैज्ञानिक बन पाए, हॉकिंग कहते हैं,

”मैं यह स्वीकार करता हूँ मैं अपनी बीमारी के कारण ही सबसे उम्दा वैज्ञानिक बन पाया, मेरी अक्षमताओं की वजह से ही मुझे ब्रह्माण्ड पर किए गए मेरे शोध के बारे में सोचने का समय मिला। भौतिकी पर किए गए मेरे अध्ययन ने यह साबित कर दिखाया कि दुनिया में कोई भी विकलांग नहीं है।”

हॉकिंग को अपनी कौन सी उपलब्धि पर सबसे ज्यादा गर्व है? हॉकिंग जवाब देते हैं

”मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका निभाई। इसके रहस्य लोगों के लिए खोले और इस पर किए गए शोध में अपना योगदान दे पाया। मुझे गर्व होता है जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है।”

हॉकिंग के मुताबिक यह सब उनके परिवार और दोस्तों की मदद के बिना संभव नहीं था। यह पूछने पर कि क्या वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं हॉकिंग कहते हैं,

”लगभग सभी मांसपेशियों से मेरा नियंत्रण खो चुका है और अब मैं अपने गाल की मांसपेशी के जरिए, अपने चश्मे पर लगे सेंसर को कम्प्यूटर से जोड़कर ही बातचीत करता हूँ।”

मरने के अधिकार जैसे विवादास्पद मुद्दे पर हॉकिंग बीबीसी से कहते हैं,

”मुझे लगता है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी लाइलाज बीमारी से पीड़ित है और बहुत ज्यादा दर्द में है उसे अपने जीवन को खत्म करने का अधिकार होना चाहिए और उसकी मदद करने वाले व्यक्ति को किसी भी तरह की मुकदमेबाजी से मुक्त होना चाहिए।”

स्टीफन हॉकिंग आज भी नियमित रूप से पढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय जाते हैं, और उनका दिमाग आज भी ठीक ढंग से काम करता है। ब्लैक होल और बिग बैंग थ्योरी को समझने में उन्होंने अहम योगदान दिया है। उनके पास 12 मानद डिग्रियाँ हैं और अमेरिका का सबसे उच्च नागरिक सम्मान उन्हें दिया गया है।

2014 की उनकी एक वार्ता के अंश

“इस ब्रह्माण्ड से अधिक बड़ा या पुराना कुछ नहीं है। मैं जिन प्रश्नों की बाबत बात करना चाहूँगा वे हैं: पहला, हम कहाँ से आये? ब्रह्माण्ड अस्तित्व में कैसे आया? क्या हम इस ब्रह्माण्ड में अकेले हैं? क्या कहीं और भी ‘एलियन’ जीवन है? मानव जाति का भविष्य क्या है?

1920 के दशक तक हर कोई सोचता था कि ब्रह्माण्ड मूलतः स्थिर और समय के सापेक्ष अपरिवर्तनशील है। फिर यह खोज हुई कि ब्रह्माण्ड फैल रहा था। सुदूर तारामंडल हमसे और दूर जा रहे थे। इसका अर्थ यह हुआ कि पहले वे एक दूसरे के नज़दीक रहे होंगे। यदि हम पीछे इसके विस्तार में जाएं तो पाएंगे कि आज से करीब 15 बिलियन वर्ष पहले हम सब एक दूसरे के ऊपर रहे होंगे। यही ‘बिग बैंग’ था, ब्रह्माण्ड की शुरुआत।

लेकिन क्या बिग बैंग से पहले भी कुछ था? अगर नहीं था तो ब्रह्माण्ड की रचना किसने की? बिग बैंग के बाद ब्रह्माण्ड उस तरह अस्तित्व में क्यों आया जैसा वह है? हम सोचा करते थे कि ब्रह्माण्ड के सिद्धांत को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला यह कि कुछ नियम थे जैसे मैक्सवेल की समीकरण वगैरह और यह देखते हुए कि एक दिए गए समय में समूचे स्पेस में उसकी जो अवस्था थी उसमें सामान्य सापेक्षता ने ब्रह्माण्ड के विकास को निर्धारित किया। और दूसरा यह कि ब्रह्माण्ड की प्रारंभिक अवस्था का कोई प्रश्न ही नहीं था।

पहले हिस्से में हमने अच्छी तरक्की की है, और अब हमें केवल सबसे चरम परिस्थितियों के अलावा अन्य सभी परिस्थितियों में विकास के नियमों का ज्ञान है। लेकिन अभी हाल के समय तक हमें ब्रह्माण्ड के लिए प्रारम्भिक परिस्थितियों की बाबत बहुत कम ज्ञान था। यह और बात है कि विकास के नियमों में इस तरह का वर्गीकरण और प्रारम्भिक परिस्थितियां अलग और विशिष्ट होने के साथ ही समय और स्पेस पर निर्भर होती हैं। चरम परिस्थितियों में, सामान्य सापेक्षता और क्वांटम थ्योरी समय को स्पेस में एक अलग आयाम की तरह व्यवहार करने देती हैं। इस से समय और स्पेस के बीच का अंतर मिट जाता है, और इसका यह अर्थ हुआ कि विकास के नियम प्रारम्भिक परिस्थितियों को भी निर्धारित कर सकते हैं। ब्रह्माण्ड अपने आप को शून्य में से स्वतःस्फूर्त तरीके से रच सकता है।

इसके अलावा, हम एक प्रायिकता की गणना कर सकते हैं कि ब्रह्माण्ड अलग-अलग परिस्थितियों में अस्तित्व में आया था। ये भविष्यवाणियाँ कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड के WMAP उपग्रह के पर्यवेक्षणों, जो कि बहुत शुरुआत के ब्रह्माण्ड की एक छाप है, से बहुत ज्यादा मेल खाती हैं। हम समझते हैं कि हमने सृष्टि के रहस्य की गुत्थी को सुलझा लिया है। संभवतः हमने ब्रह्माण्ड का पेटेंट करवाकर हर किसी से उसके अस्तित्व के एवज़ में रॉयल्टी वसूलनी चाहिए।

अब मैं दूसरे बड़े सवाल से मुख़ातिब होता हूँ – क्या हम अकेले हैं या ब्रह्माण्ड में और भी कहीं जीवन है? हम विश्वास करते हैं कि धरती पर जीवन स्वतःस्फूर्त ढंग से उपजा, सो यह संभव होना चाहिए कि जीवन दूसरे उपयुक्त ग्रहों पर भी अस्तित्व में आ सके जिनकी संख्या पूरी आकाशगंगा में काफी अधिक है ।

लेकिन हम नहीं जानते कि जीवन सबसे पहले कैसे अस्तित्व में आया। हमारे पास इसके पर्यवेक्षणीय प्रमाणों के तौर पर दो टुकड़े उपलब्ध हैं। पहला तो 3।5 बिलियन वर्ष पुराने एक शैवाल के फॉसिल हैं। धरती 4.6 अरब वर्ष पहले बनी थी और शुरू के पहले आधे अरब सालों तक संभवतः बहुत अधिक गर्म थी। सो धरती पर जीवन अपने संभव हो सकने के आधे अरब वर्षों बाद अस्तित्व में आया जो कि धरती जैसे किसी गृह के दस अरब वर्षों के जीवनकाल के सापेक्ष बहुत छोटा कालखंड है। इससे यह संकेत मिलता है कि जीवन के अस्तित्व में आने की प्रायिकता काफी अधिक है। अगर यह बहुत कम होती तो आप उम्मीद कर सकते थे कि ऐसा होने में उपलब्ध पूरे दस अरब वर्ष लग सकते थे।

दूसरी तरफ, ऐसा लगता है कि अब तक हमारे गृह पर अजनबी ग्रहों के लोगों का आगमन नहीं हुआ। मैं UFO’s की रपटों को नकार रहा हूँ। वे सनकियों या अजीबोगरीब लोगों तक ही क्यों पहुँचते हैं? अगर ऐसा कोई सरकारी षडयंत्र है जो इन रपटों को दबाता है और अजनबी ग्रहवासियों द्वारा लाये गए वैज्ञानिक ज्ञान को अपने तक सीमित रखना चाहता है, तो ऐसा लगता है कि यह नीति अब तक तो पूरी तरह से असफल रही है। और इसके अलावा SETI प्रोजेक्ट के विषद शोध के बावजूद हमने किसी भी तरह के एलियन टीवी क्विज़ शोज़ के बारे में नहीं सुना है। इससे संभवतः संकेत मिलता है कि हमसे कुछ सौ प्रकाशवर्ष की परिधि में हमारे विकास की अवस्था में कहीं कोई एलियन सभ्यता नहीं है। इसके लिए सबसे मुफ़ीद उपाय यह होगा कि एलियनों द्वारा अपहृत कर लिए जाने की अवस्था के लिए बीमा पालिसी जारी की जाएं।

अब मैं सबसे आख़िरी बड़े प्रश्न पर आ पहुंचा हूँ; मानव सभ्यता का भविष्य। अगर हम पूरी आकाशगंगा में अकेले बुद्धिमान लोग हैं, तो हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारा अस्तित्व बना रहे और चलता रहे। लेकिन हम लोग अपने इतिहास के एक लगातार अधिक खतरनाक होते हुए दौर में प्रवेश कर रहे हैं। हमारी आबादी और हमारी धरती के सीमित संसाधनों का दोहन बहुत अधिक तेज़ी से बढ़ रहे हैं, साथ ही हमारी तकनीकी क्षमता भी बढ़ रही है कि हम पर्यावरण को अच्छे या बुरे दोनों के लिए बदल सकें। लेकिन हमारा आनुवांशिक कोड अब भी उन स्वार्थी और आक्रामक भावनाओं को लिए चल रहा है जो बीते हुए समय में अस्तित्व बचाए रखने के लिए लाभदायक होती थीं। अगले सौ सालों में विनाश से बच पाना मुश्किल होने जा रहा है, अगले हज़ार या दस लाख साल की बात तो छोड़ ही दीजिये।

हमारे अस्तित्व के दीर्घतर होने का इकलौता अवसर इस बात में निहित है कि हम अपनी पृथ्वी ग्रह पर ही न बने रहें, बल्कि हमें अन्तरिक्ष में फैलना चाहिए। इन बड़े सवालों के उत्तर दिखलाते हैं कि पिछले सौ सालों में हमने उल्लेखनीय तरक्की की है। लेकिन यदि हम अगले सौ वर्षों से आगे भी बने, बचे रहना चाहते हैं तो हमारा भविष्य अन्तरिक्ष में है। इसीलिये मैं हमेशा ऐसी अन्तरिक्ष यात्राओं का पक्षधर रहा हूँ जिसमें मनुष्य भी जाएँ।

अपनी पूरी ज़िन्दगी मैंने ब्रह्माण्ड को समझने और इन सवालों के उत्तर खोजने की कोशिश की है। मैं भाग्यशाली रहा हूँ कि मेरी विकलांगता गंभीर अड़चन नहीं बनी। वास्तव में इसके कारण मुझे उससे अधिक समय मिल सका जितना अधिकतर लोग ज्ञान की खोज में लगाते हैं। सबसे आधारभूत लक्ष्य है ब्रह्माण्ड के लिए एक सम्पूर्ण सिद्धांत, और हम अच्छी तरक्की कर रहे हैं।

मैं समझता हूँ कि यह बहुत संभव है कि कुछ सौ प्रकाशवर्षों के दायरे में हम इकलौती सभ्यता हों; ऐसा न होता तो हमने रेडियो तरंगें सुनी होतीं। इसका विकल्प यह है कि सभ्यताएं बहुत लम्बे समय तक नहीं बनी रह पातीं, वे खुद अपना विनाश कर लेती हैं।”

स्टीफ़न हॉकिंग को क्या बीमारी थी और वो उनसे कैसे हार गई?

21 साल का एक नौजवान जब दुनिया बदलने का ख़्वाब देख रहा था तभी कुदरत ने अचानक ऐसा झटका दिया कि वो अचानक चलते-चलते लड़खड़ा गया।  शुरुआत में लगा कि कोई मामूली दिक्कत होगी लेकिन डॉक्टरों ने जांच के बाद एक ऐसी बीमारी का नाम बताया जिसने इस युवा वैज्ञानिक के होश उड़ा दिए। ये स्टीफ़न हॉकिंग की कहानी हैं जिन्हें 21 साल की उम्र में कह दिया गया था कि वो दो-तीन साल ही जी पाएंगे।

कब पता चला बीमारी का?

हॉकिंग का पालन-पोषण लंदन और सेंट अल्बंस में हुआ और ऑक्सफ़ोर्ड से फ़िजिक्स में फ़र्स्ट क्लास डिग्री लेने के बाद वो कॉस्मोलॉजी में पोस्टग्रेजुएट रिसर्च करने के लिए कैम्ब्रिज चले गए।

साल 1963 में इसी यूनिवर्सिटी में अचानक उन्हें पता चला कि वो मोटर न्यूरॉन बीमारी से पीड़ित हैं। कॉलेज के दिनों में उन्हें घुड़सवारी और नौका चलाने का शौक़ था लेकिन इस बीमारी ने उनका शरीर का ज़्यादातर हिस्सा लकवे की चपेट में ले लिया। साल 1964 में वो जब जेन से शादी करने की तैयारी कर रहे थे तो डॉक्टरों ने उन्हें दो या ज़्यादा से ज़्यादा तीन साल का वक़्त दिया था।

लेकिन हॉकिंग की क़िस्मत ने साथ दिया और ये बीमारी धीमी रफ़्तार से बढ़ी। लेकिन ये बीमारी क्या थी और शरीर को किस तरह नुकसान पहुंचा सकती है?

बीमारी का नाम क्या?

इस बीमारी का नाम है मोटर न्यूरॉन डिसीज़ (MND)।

एनएचएस के मुताबिक ये एक असाधारण स्थिति है जो दिमाग और तंत्रिका पर असर डालती है। इससे शरीर में कमज़ोरी पैदा होती है जो वक़्त के साथ बढ़ती जाती है। ये बीमारी हमेशा जानलेवा होती है और जीवनकाल सीमित बना देती है, हालांकि कुछ लोग ज़्यादा जीने में कामयाब हो जाते हैं। हॉकिंग के मामले में ऐसा ही हुआ था। इस बीमारी का कोई इलाज मौजूद नहीं है लेकिन ऐसे इलाज मौजूद हैं जो रोज़मर्रा के जीवन पर पड़ने वाले इसके असर को सीमित बना सकते हैं।

क्या लक्षण हैं बीमारी के?

इस बीमारी के साथ दिक्कत ये भी कि ये मुमकिन है कि शुरुआत में इसके लक्षण पता ही न चलें और धीरे-धीरे सामने आएं।

इसके शुरुआती लक्षण ये हैं:

  1. एड़ी या पैर में कमज़ोरी महसूस होना। आप लड़खड़ा सकते हैं या फिर सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत हो सकती है
  2. बोलने में दिक्कत होने लगती है और कुछ तरह का खाना खाने में भी परेशानी होती है
  3. पकड़ कमज़़ोर हो सकती है। हाथ से चीज़ें गिर सकती हैं। डब्बों का ढक्कन खोलने या बटन लगाने में भी परेशानी हो सकती है
  4. मांसपेशियों में क्रैम्प आ सकते हैं
  5. वज़न कम होने लगता है। हाथ और पैरों की मांसपेशी वक़्त के साथ पतले होने लगते हैं।
  6. रोने और हंसने को क़ाबू करने में दिक्कत होती है

ये बीमारी किसे हो सकती है?

मोटर न्यूरॉन बीमारी असाधारण स्थिति है जो आम तौर पर 60 और 70 की उम्र में हमला करती है लेकिन ये सभी उम्र के लोगों को हो सकती है। ये बीमारी दिमाग और तंत्रिका के सेल में परेशानी पैदा होने की वजह से होती है। ये सेल वक़्त के साथ काम करना बंद कर देते हैं। लेकिन ये अब तक पता नहीं चला कि ये कैसे हुआ है।

जिन लोगों को मोटर न्यूरॉन डिसीज़ या उससे जुड़ी परेशानी फ्रंटोटेम्परल डिमेंशिया होती है, उनसे करीबी संबंध रखने वाले लोगों को भी ये हो सकती है। लेकिन ज़्यादातर मामलों में ये परिवार के ज़्यादा सदस्यों को होती नहीं दिखती।

कैसे पता चलता है बीमारी का?

शुरुआती चरणों में इस बीमारी का पता लगाना मुश्किल है। ऐसा कोई एक टेस्ट नहीं है जो इस बीमारी का पता लगा सके और ऐसी कई स्थितियां हैं जिनके चलते इसी तरह के लक्षण हो सकते हैं।

यही बीमारी है और दूसरी कोई दिक्कत नहीं है, ये पता लगाने के लिए ये सब कर सकते हैं:

  • रक्त जांच
  • दिमाग और रीढ़ की हड्डी का स्कैन
  • मांसपेशियों और तंत्रिका में विद्युत सक्रियता ( इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी) को आंकने का टेस्ट
  • लम्पर पंक्चर जिसमें रीढ़ की हड्डी में सुई डालकर द्रव लिया जाता है
  • इलाज में क्या किया जा सकता है?

इसमें स्पेशलाइज्ड क्लीनिक या नर्स की ज़रूरत होती है जो ऑक्यूपेशनल थेरेपी अपनाते हैं ताकि रोज़मर्रा के कामकाज करने में कुछ आसानी हो सके

  • फ़िज़ियोथेरेपी और दूसरे व्यायाम ताकि ताक़त बची रहे
  • स्पीच थेरेपी और डाइट का ख़ास ख़्याल
  • रिलुज़ोल नामक दवाई जो इस बीमारी के बढ़ने की रफ़्तार कम रखती है
  • भावनात्मक सहायता

कैसे बढ़ती है ये बीमारी?

मोटन न्यूरॉन बीमारी वक़्त के साथ बिगड़ती जाती है। समय के साथ चलने-फिरने, खाना निगलने, सांस लेने में मुश्किल होती जाती है। खाने वाली ट्यूब या मास्क के साथ सांस लेने की ज़रूरत पड़ती है।

ये बीमारी आख़िरकार मौत तक ले जाती है लेकिन किसी को अंतिम पड़ाव तक पहुंचने में कितना समय लगता है, ये अलग-अलग हो सकता है।

हॉकिंग ने बीमारी को कैसे छ्काया?

न्यूरॉन मोटर बीमारी को एमीट्रोफ़िक लैटरल स्क्लेरोसिस (ALS) भी कहते हैं। ये डिसऑर्डर किसी को भी हो सकता है। ये पहले मांसपेशियों को कमज़ोर बनाता है, फिर लकवा आता है और कुछ ही वक़्त में बोलने या निगलने की क्षमता जाती रहती है।

इंडिपेंडेंट के मुताबिक ALS एसोसिएशन के मुताबिक इस बीमारी के ग्रस्त मरीज़ों का औसत जीवनकाल आम तौर पर दो से पांच साल के बीच होता है। बीमारी से जूझने वाले पांच फ़ीसदी से भी कम लोग दो दशक से ज़्यादा जी पाते हैं। और हॉकिंग ने ऐसी ही एक रहे।

किंग्स कॉलेज लंदन के प्रोफ़ेसर निगल लेग़ ने कहा था,

”मैं ALS से पीड़ित ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानता जो इतने साल जिया हो।”

फिर क्या हॉकिंग कैसे अलग हैं? क्या वो सिर्फ़ क़िस्मत के धनी हैं या फिर कोई और बात है? इस सवाल का जवाब कोई साफ़ तौर पर नहीं दे सकता।

उन्होंने ख़ुद कहा था,

”शायद ALS की जिस क़िस्म से मैं पीड़ित हूं, उसकी वजह विटामिन का गलत अवशोषण है।”

इसके अलावा यहां हॉकिंग की ख़ास व्हीलचेयर और उनकी बोलने में मदद करने वाली मशीन का ज़िक भी करना ज़रूरी है। वो ऑटोमैटिक व्हीलचेयर का इस्तेमाल करते थे और वो बोल नहीं पाते थे इसलिए कंप्यूटराइज़्ड वॉइस सिंथेसाइज़र उनके दिमाग की बात सुनकर मशीन के ज़रिए आवाज़ देते थे।

 निधन

एक परिवार के प्रवक्ता के मुताबिक, 14 मार्च 2018 की सुबह सुबह अपने घर कैंब्रिज में ‘हॉकिंग की मृत्यु हो गई थी। उनके परिवार ने उनके दुःख व्यक्त करने वाले एक बयान जारी किया था।

स्रोत :

इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री(BBC, Wikipedia)

साक्षात्कार साभार : अशोक पांडे

 

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8 विचार “स्टीफन विलियम हॉकिंग : ब्लैक होल को चुनौती देता वैज्ञानिक&rdquo पर;

  1. वाकई में दुनिया के कई महत्वपूर्ण राज से पर्दा उठाया . फिर भी हम कोसो दूर है उस दुनिया तक पहुंचने में जिनका आज अस्तित्व है ,

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  2. Sir! मैं Stephen hawking की personal website जानना चाहता हूँ, जिसमें उन्होंने अपने सभी विचारों व खोजो को विस्तृत रूप से सम्मिलित किया है।जिससे मैं उनके सभी facts को अच्छी तरह से जान व समझ सकूँ। share करने की कृपा करें।
    धन्यवाद।

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  3. उनकी शिक हमेशा पूरे विश्व को प्रेरित करेगी।कठिनाइयां जीवन को लढने की ,कुछ नया करनेकी ताकद देती है।इस अमूल्य प्रेरणा का उधा: ही ऐसे महान इंसान का जीवन है जो विश्व को नया ज्ञान देकर गये।

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