खोज करना मानव की फ़ितरत है। इसके लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार होता है। तभी तो, मानव उस चीज़ को खोजने में जुटा हुआ है, जिसकी कोई हद नहीं। जिसका कोई ओर-छोर नहीं।
पर, वो आख़िर क्या है जिसका कोई ओर-छोर नहीं और हम जिसकी खोज में जुटे हुए हैं। वो है हमारा ब्रह्मांड।
इस में कितनी आकाशगंगाएं हैं?
- कितने सितारे हैं?
- कितने ग्रह और उपग्रह हैं?
- इसमें से किसी भी सवाल का जवाब हमें नहीं मालूम। मगर हम ब्रह्मांड का ओर-छोर, इसके राज़ तलाशने में जुटे हैं।
मानव की खोजी फ़ितरत ने ही जन्म दिया है दुनिया के सबसे महान अंतरिक्ष अभियान को। इस महानअंतरिक्ष अभियान का नाम है-वायेजर।
बात आज से 40 साल पहले की है। 1977 में अगस्त और सितंबर महीने में अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने दो अंतरिक्ष यान धरती से रवाना किए थे। इन्हीं का नाम था वायेजर एक और दो। वायेजर 2 को 20 अगस्त को अमरीकी अंतरिक्ष सेंटर केप कनावरल से छोड़ा गया था। वहीं वायेजर एक को पांच सितंबर को रवाना किया गया। आज से 40 बरस बाद ये दोनों अंतरिक्ष यान धरती से अरबों किलोमीटर की दूरी पर हैं। वायेजर एक तो अब हमारे सौर मंडल से भी दूर यानी क़रीब 20 अरब किलोमीटर दूर जा चुका है। वही वायेजर दो ने दूसरा रास्ता लेते करते हुए क़रीब 17 अरब किलोमीटर का सफ़र तय कर लिया है।
ये दूरी इतनी है कि वायेजर एक से धरती पर संदेश आने जाने में क़रीब 38 घंटे लगते हैं। वो भी तब जब ये रेडियो संकेत, 1 सेकेंड में तीन लाख किलोमीटर की दूरी तय करते हैं, यानी प्रकाश की गति से चलते हैं। वहीं वायेजर 2 से धरती तक संदेश आने में 30 घंटे लगते हैं। सबसे दिलचस्प बात ये है कि आज 40 साल बाद भी दोनों यान काम कर रहे हैं और मानवियत तक ब्रह्मांड के तमाम राज़ पहुंचा रहे हैं। हां, अब ये बूढ़े हो चले हैं। इनकी काम करने की ताक़त कमज़ोर हो गई है। इनकी तकनीक भी पुरानी पड़ चुकी है। आज, वायेजर यानों से आने वाले संदेश पकड़ने के लिए नासा ने पूरी दुनिया में रेडियो संकेत सेंटर बनाए हैं।
ये बात कुछ वैसी ही है जैसे आप शहर से बाहर जाएं तो आपको मोबाइल का संकेत पाने में मशक़्क़त करनी पड़े। ठीक इसी तरह आज नासा, दुनिया भर में बड़ी-बड़ी सैटेलाइट डिश लगाकर वायेजर से आने वाले संकेत पकड़ता है।
इस अभियान से शुरुआत से जुड़े हुए वैज्ञानिक एड स्टोन कहते हैं कि आज वायेजर एक ब्रह्मांड में इतनी दूर है, जहां शून्य, अंधेरे और सर्द माहौल के सिवा कुछ भी नहीं। वो बताते हैं कि वायेजर अभियान के डिज़ाइन पर 1972 में काम शुरू हुआ था।
आज 40 साल बाद वायेजर अभियान से हमें ब्रह्मांड के बहुत से राज़ पता चले हैं। बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेपच्युन ग्रहों के बारे में तमाम दिलचस्प जानकारियां मिली हैं। इन विशाल ग्रहों के चंद्रमा के बारे में तमाम जानकारियां वायेजर अभियान के ज़रिए मिली हैं।

वायेजर अभियान से जुड़े एक और व्यक्ति थे वैज्ञानिक कार्ल सगन। सगन ने वायेजर यानों से ग्रामोफ़ोन जोड़ने के प्रोजेक्ट पर काम किया था। वो पहले अमरीका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में एस्ट्रोफिजिक्स पढ़ाया करते थे। बाद में सगन नासा के लिए काम करने लगे। वो मंगल ग्रह पर जाने वाले पहले अभियान वाइकिंग का भी हिस्सा थे। उन्होंने बच्चों के लिए विज्ञान की कई दिलचस्प क़िताबें लिखीं। कई रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में भी भागीदारी की।
वायेजर यानों में ग्रामोफ़ोन लगाने का उद्देश्य एक आशा थी। आशा ये कि धरती के अलावा भी ब्रह्मांड में कहीं जीवन अवश्य है। यात्रा करते-करते जब किसी और सभ्यता को हमारा वायेजर मिले, तो उसे मानवी सभ्यता की एक झलक इन ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड के ज़रिए मिले। यानी वायेजर सिर्फ़ एक अंतरिक्ष अभियान नहीं, बल्कि सुदूर ब्रह्मांड को भेजा गया मानवता का संदेश भी हैं। ये ग्रामोफ़ोन तांबे के डिस्क से बने हैं, जो क़रीब एक अरब साल तक सही सलामत रहेंगे। इस दौरान जो अगर वायेजर किसी ऐसी सभ्यता के हाथ लग गया जो ब्रह्मांड में कहीं बसती है, तो, इन ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड के ज़रिए उन्हें मानवता के होने का, उसकी प्रगति का संदेश मिलेगा।
नासा के सीनियर वैज्ञानिक एड स्टोन बताते हैं कि वायेजर यानों को साल 1977 में रवाना करने की भी एक वजह थी। उस साल सौर मंडल के ग्रहों की कुछ ऐसी स्थिति थी, कि ये यान सभी बड़े ग्रहों यानी बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून से होकर गुज़रते। इस अभियान पर काम करने वाली लिंडा स्पिलकर बताती हैं कि ग्रहों की स्थिति की वजह से उस दौरान नासा में काम कर रहे कई लोगों के बच्चे हुए थे। आज इन्हें वायेजर पीढ़ी के बच्चे कहा जाता है।
लॉन्च के 18 महीने बाद यानी 1979 में वायेजर 1 और 2 ने बृहस्पति यानी जुपिटर ग्रह की खोज शुरू की। दोनों अंतरिक्ष यान ने सौर मंडल के इस सबसे बड़े ग्रह की बेहद साफ़ और दिलचस्प तस्वीरें भेजीं।
वायेजर अभियान से जुड़े इकलौते ब्रिटिश वैज्ञानिक गैरी हंट बताते हैं कि वायेजर यानों से आने वाली हर तस्वीर जानकारी की नई परत खोलती थी।
वायेजर अभियान से पहले हमें यही पता था कि सौर मंडल में सिर्फ़ धरती पर ही ज्वालामुखी पाए जाते हैं। लेकिन वायेजर से पता चला कि बृहस्पति के एक चंद्रमा पर भी ज्वालामुखी हैं। एड स्टोन कहते हैं कि वायेजर अभियान ने सौर मंडल को लेकर हमारे तमाम ख़याल ग़लत साबित कर दिए। जैसे हमें पहले ये लगता था कि सागर सिर्फ़ धरती पर हैं। मगर, वायेजर से आई तस्वीरों से पता चला कि बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा पर भी सागर हैं।
आज की दिनांक में वायेजर अभियान की वास्तविक तस्वीरों को लंदन के क्वीन मैरी कॉलेज की लाइब्रेरी में रखा गया है। क्योंकि नासा ने इन तस्वीरों की डिजिटल कॉपी बना ली हैं।
गैरी हंट बताते हैं कि जब वायेजर 1 ने शनि के चंद्रमा मिमास की तस्वीरें भेजी थीं, तो उन्हें देखकर सभी लोग हैरान रह गए थे। वो दौर स्टार वार्स फ़िल्मों का था। इसलिए वैज्ञानिकों ने मिमास को ‘डेथ स्टार’ का फ़िल्मी नाम दिया था। वायेजर ने तस्वीरों के ज़रिए हमें शनि के वलयों के नए रहस्य बताए थे। इस अभियान से पता चला था कि शनि के उपग्रह टाइटन पर बड़ी तादाद में पेट्रोकेमिकल हैं। और यहां मीथेन गैस की बारिश होती है।
वायेजर अभियान के ज़रिए हमें शनि के छोटे से चंद्रमा एनसेलाडस का पता चला था। बात में कैसिनी-ह्यूजेंस अभियान के ज़रिए भी इसके बारे में कई जानकारियां मिली थीं। आज सौर मंडल में जीवन की के सबसे अधिक संभावना, शनि के चंद्रमा एनसेलाडस पर ही दिखती हैं।
वैज्ञानी एमिली लकड़ावाला कहती हैं कि शनि का हर चंद्रमा अपने आप में अलग है। एमिली के मुताबिक़ वायेजर के ज़रिए हमें ये एहसास हुआ कि शनि के तमाम चंद्रमाओं की पड़ताल के लिए हमें नए अभियान भेजने की ज़रूरत है। नवंबर 1980 में वायेजर 1 ने शनि से आगे का सफ़र शुरू किया। नौ महीने बाद वायेजर 2 ने सौर मंडल के दूर के ग्रहों का मार्ग लिया। वो 1986 में यूरेनस ग्रह के क़रीब पहुंचा। वायेजर 2 ने हमें बताया कि ये ग्रह गैस से बना हुआ है और इसके 10 उपग्रह हैं।
1989 में वायेजर 2 नेपच्यून ग्रह के क़रीब पहुंचा, तो हमें पता चला कि इस के चंद्रमा तो बेहद दिलचस्प हैं। ट्राइटन नाम के चंद्रमा पर नाइट्रोजन के गीज़र देखने को मिले। सौर मंडल के लंबी यात्रा में वायेजर 1 और 2 ने मानव को तमाम जानकारियों से सराबोर किया है। हमें पता चला है कि धरती पर होने वाली कई गतिविधियां सौर मंडल के दूसरे ग्रहों पर भी होती हैं।
वायेजर की खोज की बुनियाद पर ही बाद में कई और अंतरिक्ष अभियान शुरू किए गए। जैसे शनि के लिए कैसिनी-ह्यूजेंस अभियान अंतरिक्ष यान भेजा गया। बृहस्पति ग्रह के लिए गैलीलियो और जूनो यान भेजे गए। अब कई और अभियान सुदूर अंतरिक्ष भेजे जाने की योजना है। हालांकि फिलहाल यूरेनस और नेपच्यून ग्रहों के लिए किसी नए अभियान की योजना नहीं है। तब तक हमें वायेजर से मिली जानकारी से ही काम चलाना होगा।
मानव के इतिहास में ऐसे गिने-चुने अभियान ही हुए होंगे, जिनसे इतनी जानकारियां हासिल हुईं। आज चालीस साल बाद तकनीक ने काफ़ी तरक़्क़ी कर ली है। ऐसे में वायेजर यान पुराने पड़ चुके हैं।
वायेजर विश्व के पहले ऐसे अंतरिक्ष अभियान थे जिनका नियंत्रण कंप्यूटर के हाथ में था। आज चालीस वर्ष बाद भी ये दोनों ही यान ख़ुद से अपना सफर तय करते हैं। अपनी पड़ताल करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर अपना बैकअप सिस्टम चालू करते हैं।वायेजर को बनाने में इस्तेमाल हुई कई तकनीक हम आज भी इस्तेमाल करते हैं। आज के मोबाइल फ़ोन और सीडी प्लेयर वायेजर में इस्तेमाल हुई कोडिंग सिस्टम तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। आज के स्मार्टफ़ोन में तस्वीरें प्रोसेस करने की जो तकनीक है, वो वायेजर के विकास के दौरान ही खोजी गई थी।
वायेजर अभियान का सबसे महान क्षण उस वक़्त आया था, जब 14 फरवरी 1990 को इसने अपने कैमरे धरती की तरफ़ घुमाए थे। उस दौरान पूरे सौर मंडल और ब्रह्मांड में धरती सिर्फ़ एक छोटी सी नीली प्रकाश जैसी दिखी थी। एमिली लकड़ावाला कहती हैं कि पूरे ब्रह्मांड में ये एक छोटी सी नीले रंग की टिमटिमाहट ही वो जगह है, जहां हम जानते हैं कि जीवन मौजूद है। वो कहती हैं कि किसी भी खगोलीय घटना से धरती पर से जीवन समाप्त हो सकता है। ऐसे में वायेजर के ज़रिए ही हमारी सभ्यता की निशानियां सुदूर ब्रह्मांड में बची रहेंगी।
2013 में वायेजर 1 अंतरिक्ष यान सौरमंडल से दूर निकल गया। आज वो अंतरिक्ष में घूम रहा है। अभी भी जानकारियां भेज रहा है। जल्द ही वायेजर 2 भी सौरमंडल से बाहर चला जाएगा।
दोनों ही अंतरिक्ष यान में आण्विक बैटरियां लगी हैं। जल्द ही इनसे विद्युत बनना बंद हो जाएगी। हर साल इनसे चार वाट कम बिजली बनती है। वायेजर के प्रोग्राम मैनेजर सूज़ी डॉड कहते हैं कि हमें बहुत सावधानी से वायेजर अभियान को जारी रखना है। इसके पुराने पड़ चुके यंत्र बंद किए जा रहे हैं। दोनों के कैमरे बंद किए जा चुके हैं। क्योंकि अंतरिक्ष में घुप्प अंधेरा है। देखने के लिए कुछ भी नहीं है। विद्युत बचाकर वायेजर को सर्द अंतरिक्ष मे गर्म बनाए रखा जा रहा है। सूज़ी डॉड कहते हैं कि अगले दस वर्षो में दोनों को पूरी तरह से बंद करना होगा। ये पूरी मानवता के लिए बहुत दुखद दिन होगा। हालांकि तब तक दोनों ने अपनी बेहद दिलचस्प ज़िंदगी का सफ़र पूरा कर लिया होगा।
लेकिन दोनों ही अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में हमेशा ही मौजूद रहेंगे। शायद किसी और सभ्यता को मानवियत के ये दूत मिल जाएं। फिर वो इन यानों में लगे ग्रामाफ़ोन रिकॉर्ड के ज़रिए मानवता का संदेश पढ़ सकेंगे। वायेजर अभियान के ज़रिए 1977 की दुनिया अंतरिक्ष में जी रही है। वायेजर अभियान ने मानवता को अमर कर दिया है।
स्रोत : http://www।bbc।com/future/story/20170818-voyager-inside-the-worlds-greatest-space-mission
बहुत ही सारगर्भित लेख। बेहद सरल शब्दावली का प्रयोग करते हुए वायजेर अभियान का सुदंर वर्णन किया है। मैंने आज से पहले कहीं भी हिंदी में वायजेर अभियान पर इतना बेहतरीन लेख नहीं देखा।
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Hmare liye proud ki baat h ki…..agr aaj manav jati smapat bhi ho jaye to …..koi to h jo hmari yado ko smete huye rhrga or ek nyi duniya se phchan krwayega
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u know sir सौर पाल is not enough and practical source of energy for a spaceship . kyoki iski size or energy dene ki capacity spaceship ke liye best option nhi ho skta.current time to bilkul v nhi.
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राहुल, इस प्रश्न का विस्तृत उत्तर एक लेख के रूप मे देता हुं!
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Haan sir hmm or bhi ache or tej upkarn bnakr antriksh me bhej skte h taki hmme or jankari prapt ho ske
Yaa phir koi or greh hmmare signal catch Kr ske
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sir, aaj hum logo ko प्लुटोनियम आधारित परमाणू भटटी का प्रयोग petrol, disel, gas, col ki jgh use krna chhiye na to
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सामान्य उपयोग के लिये खतरनाक है। प्लुटोनियम का रेडीएशन जानलेवा होता है।
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sir ,to fir hm log bde bde spaceship lekr space me kisi or grh pr jayege kese. kyoki atomic energy ke bina to yha sambhav hi nhi h
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उसके लिए सौर पाल जैसी तकनीक है।
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वायेजर 1 अब इस स्थिति में है की वहा अंधेरा है।जब किसी तरह का चार्ज का जरिया अगर वह पा ले तो क्या वह पहले की तरह सभी उपकरणो के साथ काम कर पायेगा?
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नही, वायेजर यान सोलर पैनल पर कार्य नही करते थे, वे प्लुटोनियम आधारित परमाणू भटटी का प्रयोग करते है।
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धन्यवाद
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दीर्घ अवधि के बाद आपका लेख आया। अत्यंत सूंदर जानकारी। धन्यवाद !
आशा करता हूँ सब कुशल मंगल होगा। और आप आगे भी लेख प्रसारित करते रहेंगे।
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इन यानों से सन्देश क्या सीधे पृथ्वी की तरफ आते हैं???
और क्या सारी सूचनाएं पृथ्वी तक पहुँच जाती है? यदि हाँ तो कैसे और नहीं तो क्यों
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इन यानो के संदेश भेजने वाले एंटीना का रूख पृथ्वी की ओर रखा जाता है।
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किन्तु पृथ्वी की गति के कारण यान और पृथ्वी के मध्य कई बार पिंड, ग्रह आदि के आने का क्या सारी सूचनाये मिल जाती हैं?
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नही ऐसी स्तिथियों मे सूचना नही मिल पाती है।
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sir .
namaste,
bahot dino baad aapka blog padhne ko milaa bahot achaa lagaa.
dhanyavaad
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन रामास्वामी परमेस्वरन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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लेख पढ़ कर बहुत ही अहिम जानकारी मिली है अमेरिका ने बहुत ही पहले ऐसे प्रोग्राम शुरू कर के दुनिया को जानकारी देने की मिसाल पैदा की है,
लेकिन एक बात समझ नही आई कि जब साधन सीमित थे तो वायेजर 1,2 जैसे अभियान अंतरिक्ष मे भेजे गए ,लेकिन आज तो विज्ञान बहुत ज्यादा तरक्की कर चुका है फिर क्यो नही वॉयेजर की अगली पीढियां अंतरिक्ष मे भेजी गई।
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ऐसा नही है, वायेजर के बाद, गैलेलीयो, कासीनी, न्यु होरीजोंस जैसे यान भी भेजे गये है।
कासीनी १५ सितंबर को अपना अभियान समाप्त कर शनि मे समा जायेगा, न्युहोरीजोंस प्लूटो के आगे जा चुका है।
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