किसी प्रश्न में ‘क्यों’ शब्द की उपस्थिति हमारी जिज्ञासा को व्यक्त करती है। और निश्चित तौर पर हमारी जिज्ञासा ही हमें नए तथ्यो के खोज की तरफ अग्रसर करती है। यदि न्यूटन के मन में यह जानने की जिज्ञासा न आई होती कि “आखिर, सेब नीचे ही क्यों गिरा?” तो शायद हमें गुरुत्वाकर्षण के अस्तित्व को जानने में देरी हो सकती थी। महान भौतिकविद् अल्बर्ट आइंस्टीन ने यह स्वीकार किया है कि
“मेरे अंदर कोई खास गुण नहीं है। मैं तो ऐसा व्यक्ति हूँ , जिसमें जिज्ञासा कूट-कूट कर भरी हुई है।”
यह एक स्वीकारोक्ति नहीं बल्कि मानव समाज को एक संदेश है कि नए तथ्यों के आविष्कार जिज्ञाशा से ही आती है। और वास्तव में जिज्ञाशा ही भौतिकी की जननी है। ‘ कुछ जानने की इच्छा’ ही हमें भौतिकी का आभास कराती है। और किसी प्रश्न में ‘कैसे’ शब्द की उपस्थिति हमारे कल्पना शक्ति को व्यक्त करती है। और हमारी कल्पना शक्ति हमें भौतिकी की गहराइयों तक ले जाती है। भौतिकी के पिता कहे जाने वाले तथा महान भौतिकविद् सर आइजैक न्यूटन ने यह कहा है कि
“आज मैं इस संसार को जो कुछ भी दे पाया हूँ वो मेरी कल्पना शक्ति का परिणाम है।”
ये दोनो उदाहरण हमें यह समझने के लिए उपयुक्त है कि भौतिकी को हमारी जिज्ञासा प्रेरित करती है और उसे विस्तारित हमारी कल्पना शक्ति करती है।
“भौतिकी, ब्रह्माण्ड तथा इसमें होने वाली समस्त क्रियाओं के विशिष्ट अध्ययन का स्त्रोत है। जो हमें हमेशा जिज्ञासु एवं कल्पनाशील होने का संदेश देती है।”
भौतिकी, जो आज नई उचाइयों को छू रही है, पूर्ण रूप से मानव समाज को बदलने और संरक्षित करने का प्रयास कर रही है, उसका कारण न्यूटन, गैलीलियो, केपलर, आइंस्टीन और स्टीफंस हॉकिंग जैसे महान भौतिकविद् ही हैं। भौतिकी में खोजों और सफलताओं का इतिहास इन महान भौतिकविदों के इतिहास पर ही आधारित है।
आइये हम इन भौतिकविदों के इतिहास को भौतिकी के इतिहास का शीर्षक देते हुए इनके जिज्ञासु और कल्पनाशील जीवन को आधार मानकर भौतिकी में इनके कार्यों को एक बार पुनः परिलक्षित करें।
भौतिकी का अस्तित्व मानव समाज में आर्यभट्ट के काल से भी पुरानी है, जिसको प्रमाणित ताराओं और आकाशगंगाओं का अध्ययन करती है। भौतिकी का वास्तविक युग न्युटन के काल से प्रारम्भ हुआ क्योंकि उन्होने अपने खोजो सिद्धान्तों को संरक्षित करके लिखित रूप से दुनिया के सामने लाने का प्रयत्न किया और भौतिकी को प्रगति की एक नई दिशा प्रदान की। लेकिन न्युटन के युग के पूर्व भी कुछ ऐसे भौतिकविद् हुए भौतिकी में जिनका योगदान अविसमरणिय है।
आइये हम अपने अध्ययन को न्युटन के युग से प्रारंभ कर कुछ महान भौतिकविदों के कार्यो के बारे मे चर्चा करें :
गैलीलियो गैलीलि (15 फरवरी 1564 – 8 जनवरी 1627)

अरस्तु, इब्न-अल-हैदम और आर्कमडीज जैसे महान भौतिकविदों ने भौतिकी की नींव रखी लेकिन गैलीलियो गैलीली नें इसे आगे बढाया।
गैलीलियो गैलीली एक इटालियन भौतिक विज्ञानी, गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और दार्शनिक थे; जिन्होने आधुनिक वैज्ञानिक क्रांति की नींव रखी थी। उनका जन्म 15 फरवरी 1564 को हुआ था, तथा मृत्यु 8 जनवरी 1642 मे हुयी थी।
गैलीलियो गैलीली की उपलब्धियों मे उन्नत दूरबीन का निर्माण और खगोलिय निरिक्षण तथा कोपरनिकस के सिद्धांतो का समर्थन है। गैलीलियो को आधुनिक खगोलशास्त्र का पिता, आधुनिक भौतिकि का पिता, आधुनिक विज्ञान का पिता के नामो से सम्मान दिया जाता है।
भौतिकी में योगदान
आधुनिक खगोल जगत और प्रयोगिक भौतिकी के जनक कहे जाने वाले गैलीलियो ने भौतिकी में अत्याधिक योगदान दिया।
- अपने प्रयोगो के द्वारा प्रथम बार ‘अरैखिक संबंध’ का प्रतिपादन किया जिससे यह पता चला कि वाद्द यंत्र से निकलने वाली आवृती तनी हुई डोर के तनाव के वर्ग के समानुपाती होता है।
- इन्होने दुरबीन मे सुधार कर उसे और अधिक शक्तिशाली बनाया।
- इन्होने प्रकाश की गति को भी मापने का प्रयास किया।
- गैलीलियो ने ही जडत्व का सिद्धांत दिया।
- इन्होने गति के क्षेत्र में त्वरण का भी अध्ययन किया और सही गणितीय समीकरण दिया।
- सन् 1632 में उन्होने ज्वार-भाटे की व्याख्या पृथ्वी की गति द्वारा की।
निकोलस कापरनिकस (19 फरवरी 1473-24 मई 1543)
विश्व के दो समकालीन महान खगोलशास्त्रियों का जन्मदिन फ़रवरी माह में है, निकोलस कोपरनिकस तथा गैलेलियो गैलीली। गैलिलियो (Galilio) से लगभग एक शताब्दी पहले 19 फ़रवरी 1473 को पोलैंड में निकोलस कोपरनिकस का जन्म हुआ था।
निकोलस कोपरनिकस पहले योरोपियन खगोलशास्त्री है (First European Astronaut) जिन्होने पृथ्वी को ब्रह्माण्ड के केन्द्र से बाहर किया। अर्थात हीलियोसेंट्रिज्म (Heliocentrizm) का सिद्धांत दिया जिसमे ब्रह्माण्ड का केंद्र पृथ्वी ना होकर सूर्य था। इससे पहले पूरा योरोप अरस्तू के मॉडल पर विश्वास करता था, जिसमें पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र थी तथा सूर्य, तारे तथा दूसरे पिंड उसके गिर्द चक्कर लगा रहे थे। कोपरनिकस ने इसका खंडन किया।
सन 1530 में कोपरनिकस की पुस्तक “De Revolutionibus” प्रकाशित हुई, जिसमें उसने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई एक दिन में चक्कर पूरा करती है, और एक साल में सूर्य की परिक्रमा पूरा करती है। कोपरनिकस ने तारों की स्थिति ज्ञात करने के लिए “प्रूटेनिक टेबिल्स (Prutenic Tables)” की रचना की जो अन्य खगोलविदों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुईं।
भौतिकी में योगदान
1530 में कापरनिकस की किताब ‘डी रिवोलूशन्स’ प्रकाशित हुई। जिसमें इन्होने बताया
- इन्होने बताया कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र नही है और सभी गोले(आकाशिय पिण्ड) सूर्य का चक्कर लगाते हैं अतः सूर्य ही ब्रह्माण्ड का केन्द्र है।
- आकाश में हम जो गतियाँ देखते हैं वो दरअसल पृथ्वी की गति के कारण है।
रेने डिस्कार्टस (31 मार्च 1596-11 फरवरी 1650)

रने डॅकार्ट एक फ़्रांसिसी गणितज्ञ, भौतिकीविज्ञानी, शरीरक्रियाविज्ञानी तथा दार्शनिक थे।
गणित को इनकी सर्वोत्तम देन है वैश्लेषिक ज्यामिति। 1637 ई. में प्रकाशित इनके “दिस्कूर द ला मेतौद्’ (Discours de la Methode) में ज्यामिति पर भी 106 पृष्ठ का एक निबंध था। इन्होंने समीकरण सिद्धांत के कुछ नियमों का भी अविष्कार किया, जिनमें “चिन्हों का नियम’ अत्यंत प्रसिद्ध है।
भौतिकी में योगदान :
- प्रकाशीय भौतिकी के क्षेत्र में उन्होने प्रकाश के प्रावर्तन के नियम बताए और इन्द्रधनुष के कोण की खोज की।
जोहानस केपलर (21 दिसंबर 1571-15 नवंबर 1630)
केपलर का जन्म जर्मनी के स्टट्गार्ट नामक नगर के निकट बाइल-डेर-स्टाड्स स्थान पर हुआ था। इन्होंने टिबिंगैन विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1594 ईo में ऑस्ट्रिया के ग्रेट्ज विश्वविद्यालय में इन्हें प्राध्यापक की जगह मिल गई। ये जर्मन सम्राट् रूडॉल्फ द्वितीय, के राजगणितज्ञ टाइको ब्राए के सहायक के रूप में 1601ईo में नियुक्त हुए और ब्राए की मृत्यु के बाद ये राजगणितज्ञ बने। इन्होंने ज्योतिष गणित पर 1609ईo में ‘दा मोटिबुस स्टेलाए मार्टिस’ (De Motibus Stellae martis) और 1619 ईo में ‘दा हार्मोनिस मुंडी’ (De Harmonis mundi) में अपने प्रबंधों को प्रकाशित कराया। इनमें इन्होंने ग्रहगति के नियमों का प्रतिपादन किया था। ग्रहगति के निम्नलिखित सिद्धांतों में से प्रथम दो इनके पहले प्रबंध में तथा तीसरा सिद्धांत दूसरे प्रबंध में प्रतिपादित है:
- विश्व में सभी कुछ वृत्ताकार नहीं है। सौर मंडल के सभी ग्रह वृत्ताकार कक्षा में सूर्य की परिक्रमा नहीं करते, अपितु ग्रह एक दीर्घवृत्त पर चलता है, जिसकी नाभि पर सूर्य विराजमान है।
- सूर्य से ग्रह तक की सदिश त्रिज्या समान काल में समान क्षेत्रफल में विस्तीर्ण रहती है।
- सूर्य से किसी भी ग्रह की दूरी का घन उस ग्रह के परिभ्रमण काल के वर्ग का समानुपाती होता है।
उपर्युक्त सिद्धांतों के अतिरिक्त, इन्होंने गुरुत्वाकर्षण का उल्लेख अपने प्रथम प्रबंध में किया और यह भी बताया कि पृथ्वी पर समुदों में ज्वारभाटा चंद्रमा के आकर्षण के कारण आता है। इस महान गणितज्ञ एवं खगोलविद का 59 वर्ष की आयु में प्राग में 1630 ईo में देहावसान हो गया।
भौतिकी में योगदान :
- इन्होने बताया कि सूर्य के चारो ओर नक्षत्रों का परिक्रमा मार्ग अंडाकार होता है। और अपनी-अपनी परिधि पर परिक्रमा करते हुए हर नक्षत्र की गति में निरंतर परिवर्तन आता है।
- नक्षत्र की परिक्रमा समय की भी गणना की।
- इनका मानव दृष्टि तथा दृष्टि क्षेत्र के खोज का प्रकाश के अवसरण क्षेत्र में बहुत महत्व है।
- इन्होने दुरबीन तैयार करने की आधारशिला नियमों के रूप में प्रस्तुत किया।
- ज्वार भाटे का सही कारण भी प्रस्तुत किया।
और फिर भौतिक जगत में एक महान भौतिकविद का जन्म हुआ जिन्होने इन सब के खोजों को आगे बढाया।
सर आइजैक न्युटन(25 दिसंबर 1642-20 मार्च 1727)

सर आइज़ैक न्यूटन इंग्लैंड के एक वैज्ञानिक थे। जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण का नियम और गति के सिद्धांत की खोज की। वे एक महान गणितज्ञ, भौतिक वैज्ञानिक, ज्योतिष एवं दार्शनिक थे। इनका शोध प्रपत्र “Philosophiae Naturalis Principia Mathematica” सन् १६८७ में प्रकाशित हुआ, जिसमें सार्वत्रिक गुर्त्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या की गई थी और इस प्रकार चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल भौतिकी) की नींव रखी। उनकी फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका, 1687 में प्रकाशित हुई, यह विज्ञान के इतिहास में अपने आप में सबसे प्रभावशाली पुस्तक है, जो अधिकांश शास्त्रीय यांत्रिकी के लिए आधारभूत कार्य की भूमिका निभाती है।
इस कार्य में, न्यूटन ने सार्वत्रिक गुरुत्व और गति के तीन नियमों का वर्णन किया जिसने अगली तीन शताब्दियों के लिए भौतिक ब्रह्मांड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। न्यूटन ने दर्शाया कि पृथ्वी पर वस्तुओं की गति और आकाशीय पिंडों की गति का नियंत्रण प्राकृतिक नियमों के समान समुच्चय के द्वारा होता है, इसे दर्शाने के लिए उन्होंने ग्रहीय गति के केपलर के नियमों तथा अपने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के बीच निरंतरता स्थापित की, इस प्रकार से सूर्य केन्द्रीयता और वैज्ञानिक क्रांति के आधुनिकीकरण के बारे में पिछले संदेह को दूर किया।
भौतिकी में योगदान :
- पाई के सटीेक मान के लिए एक नए सूत्र को प्रस्तुत किया।
- इन्होने गुरुत्वाकर्षण बल की खोज की।
- द्रव्यमान और भार के बीच भिन्नता को प्रस्तुत किया।
- इन्होने गति के सम्बंध में तीन समीकरणों को प्रस्तुत किया।
- गति के सम्बंध मे तीन नियम बताए।
• इनके बाद गाटफ्रिड लेइबनिज,एलेस्सैन्द्रो वोल्टा,डेनियल बरनोली,अन्द्रे मैरीन एम्पियर,जेम्स प्रेसकाट,हैडस ओरेस्टेड,जूल,जार्ज ओम जैसे कई महान भौतिकविद् हुए जिन्होने भौतिकी की दुनिया ही बदल दी।
इनके बाद हुए कुछ महान भौतिकविदों पर प्रकाश डालते हैं।
माइकल फैराडे (22 सितंबर 1791-27 अगस्त 1867)
माइकेल फैराडे, अंग्रेज भौतिक विज्ञानी एवं रसायनज्ञ थे। उन्होने विद्युत-धारा के चुम्बकीय प्रभाव का आविष्कार किया। उसने विद्युतचुम्बकीय प्रेरण का अध्ययन करके उसको नियमवद्ध किया। इससे डायनेमों तथा विद्युत मोटर का निर्माण हुआ। बाद में गाउस (Gauss) के विद्युतचुम्बकत्व के चार समीकरणों में फैराडे का यह नियम भी सम्मिलित हुआ। फैराडे ने विद्युत रसायन पर भी बहुत काम किया और इससे सम्बन्धित अपने दो नियम दिये।
अपने जीवनकाल में फैराडे ने अनेक खोजें कीं। सन् 1831 में विद्युच्चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत की महत्वपूर्ण खोज की। चुंबकीय क्षेत्र में एक चालक को घुमाकर विद्युत्-वाहक-बल उत्पन्न किया। इस सिद्धांत पर भविष्य में जनित्र (generator) वना तथा आधुनिक विद्युत् इंजीनियरी की नींव पड़ी। इन्होंने विद्युद्विश्लेषण पर महत्वपूर्ण कार्य किए तथा विद्युद्विश्लेषण के नियमों की स्थापना की, जो फैराडे के नियम कहलाते हैं। विद्युद्विश्लेषण में जिन तकनीकी शब्दों का उपयोग किया जाता है, उनका नामकरण भी फैराडे ने ही किया। क्लोरीन गैस का द्रवीकरण करने में भी ये सफल हुए। परावैद्युतांक, प्राणिविद्युत्, चुंबकीय क्षेत्र में रेखा ध्रुवित प्रकाश का घुमाव, आदि विषयों में भी फैराडे ने योगदान किया। आपने अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें सबसे उपयोगी पुस्तक “विद्युत् में प्रायोगिक गवेषणाएँ” (Experimental Researches in Electricity) है।
भौतिकी में योगदान :
- इन्होने ओरेस्टेड के विचार के बिलकुल उल्टा सोचकर चुम्बकीय प्रेरण का आविष्कार किया। और यांत्रिक उर्जा को वैद्दुत उर्जा में बदलने वाले यंत्र ‘डायनमो’ का आविष्कार किया।
क्रिस्टियन डाप्लर (29 नवंबर 1803-17 मार्च 1853)
जब कोई गतिशील ध्वनि स्रोत हमारे नजदीक आता है, तो प्रतीत होता है कि ध्वनि की तीव्रता क्रमश: बढ रही है और दूर जाने पर घट रही है। ध्वनि के इस प्रभाव की व्याख्या सन 1842 में ऑस्ट्रीयन भौतिकविद क्रिश्चियन डॉप्लर ने की। उन्होने बताया कि ध्वनि तरंगो के रूप में चलती है और जैसे जैसे यह पर्यवेक्षक के समीप आती जाती है तो इसकी आवृति बढती जाती है व दूर जाने पर क्रमश: घटती जाती है। यह प्रभाव अब ” डॉप्लर प्रभाव ” से जाना जाता है।
भौतिकी में योगदान :
- इन्होने पहली बार तरंग गति के आवृत्ति में परिवर्तन को मापा।
- इन्होने ध्वनि और प्रकाश दोनो तरंगो के बारे में अध्ययन किया।
- इनका डाप्लर रडार मौसम की जानकारी के लिए प्रयोग किया गया।
- पृथ्वी और अन्य तारों के गति के बीच सम्बंध के लिए इन्होने डाप्लर प्रभाव को प्रतिपादित किया।
अलबर्ट आइंस्टीन (14 मार्च 1879-18 अप्रेल 1955)

अब समय है18वीं सदी के अंत और 19 वीं सदी के प्रारम्भ का जो भौतिक जगत के महान भौतिकविद् ‘अलबर्ट आइंस्टीन’ का आविर्भाव काल था।
मानव इतिहास के जाने-माने वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन (Albert Einstein) 20 वीं सदी के प्रारंभिक बीस वर्षों तक विश्व के विज्ञान जगत पर छाए रहे। अपनी खोजों के आधार पर उन्होंने अंतरिक्ष, समय और गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत दिये।
वे सापेक्षता के सिद्धांत और द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण E = mc2 के लिए जाने जाते हैं। उन्हें सैद्धांतिक भौतिकी, खासकर प्रकाश-विद्युत ऊत्सर्जन की खोज के लिए 1921 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। आइंसटाइन ने सापेक्षता के विशेष और सामान्य सिद्धांत सहित कई योगदान दिए। उनके अन्य योगदानों में- सापेक्ष ब्रह्मांड, केशिकीय गति, क्रांतिक उपच्छाया, सांख्यिक मैकेनिक्स की समस्याऍ, अणुओं का ब्राउनियन गति, अणुओं की उत्परिवर्त्तन संभाव्यता, एक अणु वाले गैस का क्वांटम सिद्धांतम, कम विकिरण घनत्व वाले प्रकाश के ऊष्मीय गुण, विकिरण के सिद्धांत, एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत और भौतिकी का ज्यामितीकरण शामिल है। आइंस्टीन ने पचास से अधिक शोध-पत्र और विज्ञान से अलग किताबें लिखीं। 1999 में टाइम पत्रिका ने शताब्दी-पुरूष घोषित किया। एक सर्वेक्षण के अनुसार वे सार्वकालिक महानतम वैज्ञानिक माने गए।
भौतिकी में योगदान
- सापेक्षता सिद्धान्त का प्रतिपादन।
- इनके योगदान में सापेक्ष ब्रह्माण्ड, केशिकीय गति, सांख्यकी मैकेनिक्स की समस्या, अणुओं की ब्राउनियन गति, अणुओं की उत्परिवर्तन संभाव्यता, एक अणु वाले गैस का क्वांटम सिद्धांत, कम विकिरण घनत्व वाले प्रकाश के उष्मीय गुण विकिरण के सिद्धान्त आदि शामिल हैं।
मैक्स प्लैंक (23 अप्रेल 1858 – 4 अक्टूबर 1947)

जर्मन वैज्ञानिक मैक्स प्लांक (Max Planck) का जन्म 23 अप्रैल 1858 को हुआ था। ग्रेजुएशन के बाद जब उसने भौतिकी का क्षेत्र चुना तो एक अध्यापक ने राय दी कि इस क्षेत्र में लगभग सभी कुछ खोजा जा चुका है अतः इसमें कार्य करना निरर्थक है। प्लांक ने जवाब दिया कि मैं पुरानी चीज़ें ही सीखना चाहता हूँ. प्लांक के इस क्षेत्र में जाने के बाद भौतिकी में इतनी नई खोजें हुईं जितनी शायद पिछले हज़ार वर्षों में नहीं हुई थीं।
प्लांक ने अपने अनुसंधान की शुरुआत ऊष्मागतिकी (Thermodynamics) से की. उसने विशेष रूप से उष्मागतिकी के द्वितीय नियम पर कार्य किया। उसी समय कुछ इलेक्ट्रिक कंपनियों ने उसके सामने एक ऐसे प्रकाश स्रोत को बनाने की समस्या रखी जो न्यूनतम ऊर्जा की खपत में अधिक से अधिक प्रकाश पैदा कर सके. इस समस्या ने प्लांक का रूख विकिरण (Radiation) के अध्ययन की ओर मोड़ा . उसने विकिरण की विद्युत् चुम्बकीय प्रकृति (Electromagnetic Nature) ज्ञात की. इस तरह ज्ञात हुआ कि प्रकाश, रेडियो तरंगें, पराबैंगनी (Ultraviolet), इन्फ्रारेड सभी विकिरण के ही रूप हैं जो दरअसल विद्युत् चुम्बकीय तरंगें हैं।
प्लांक ने ब्लैक बॉडी रेडियेशन पर कार्य करते हुए एक नियम दिया जिसे वीन-प्लांक नियम के नाम से जाना जाता है। बाद में उसने पाया कि बहुत से प्रयोगों के परिणाम इससे अलग आते हैं। उसने अपने नियम का पुनर्विश्लेषण किया और एक आश्चर्यजनक नई खोज पर पहुंचा, जिसे प्लांक की क्वांटम परिकल्पना कहते हैं। इन पैकेट्स को क़्वान्टा कहा जाता है। हर क़्वान्टा की ऊर्जा निश्चित होती है तथा केवल प्रकाश (विकिरण) की आवृत्ति (रंग) पर निर्भर करती है। (सूत्र E = hν जहाँ h प्लांक नियतांक तथा ν आवृत्ति है।)
भौतिकी में योगदान :
- ये क्वाटम भौतिकी के जन्म दाता कहे जाते हैं।
- इन्होने अपने रिसर्च की शुरुआत ऊष्मागतिकी(Thermodynamics) से की थी।
- इन्होने विकिरण की विद्दुत चुम्बकीय प्रकृति की खोज की।
- इन्होने वीन-प्लांक नियम का प्रतिपादन किया।
- क्वांटम उर्जा को बताया।
वार्नर हाइजेनवर्ग (1901-1976)
वर्नर हाइजनबर्ग , एक जर्मन सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी थे, जो क्वांटम यांत्रिकी में अपने मूलभूत योगदान के लिए जाने जाते हैं। उनके दिए गए अनिश्चितता सिद्धान्त को अब क्वांटम यांत्रिकी की एक आधारशिला माना जाता है।
भौतिकी में योगदान :
- इन्होने मैक्स प्लैंक के सोच को आगे बढाया और क्वांटम भौतिकी में योगदान दिया।
- इन्होने नाभिकीय भौतिकी जैसे कई क्षेत्र में योगदान दिया।
स्टीफंस हॉकिंग (8 जनवरी 1942- अब तक)
भौतिकी जगत निरंतर महानता को परिभाषित करती रही है। समय को समझने का अद्वतिय प्रयास 20वीं सदी के महान भौतिकविद् स्टीफंस हॉकिंग ने किया।
स्टीफन विलियम हॉकिंग एक विश्व प्रसिद्ध ब्रितानी भौतिक विज्ञानी, ब्रह्माण्ड विज्ञानी, लेखक और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सैद्धांतिक ब्रह्मांड विज्ञान केन्द्र (Centre for Theoretical Cosmology) के शोध निर्देशक हैं।
भौतिकी में योगदान :
- ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ का प्रतिपादन।
- ‘ब्लैक होल’ का सिद्धांत दुनिया को दिया।
- अभी परग्रही दुनिया पर शोध कर रहे हैं।
भौतिकी में इनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता । ये सदैव भौतिकी के आदर्श रहेंगे। इन्होने भौतिकी के लिए जो मार्ग प्रस्सत किया है उस पर अब हमें चलना है। हमें अब भौतिकी को नई ऊचाइयों पर पहुँचाना होगा। और हमारे साथ मौजूद हैं होफ्ट, पीटर हिग्स और स्टीफंस हाकिंग जैसे महान भौतिकविद जो लगातार हमें और भौतिकी को संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। हमें अनंनता के मुद्दे पर विजय प्राप्त करनी होगी। भौतिकी के इतिहास के महान नायक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है की ” एक बार हमें अपनी सीमा का ज्ञान होने पर हम उसके पार जा सकते हैं।” यह कथन हमें यह बताता है कि हम सीमारहित अर्थात हमारा अस्तित्व अनंत नहीं है। और यही भौतिकी के लिए भी सत्य है। क्योंकि अनंत वह क्षेत्र है जो हमें सभी निश्चितताओं से परे कर देता है, और भौतिकी में तो सब कुछ निश्चित है। हम आशा करते हैं कि एक दिन हम भौतिकी की सीमा तक जरूर पहुँचेंगे। और उसके पार जाने का भी प्रयत्न करेंगे जो हमें शायद इन प्रश्नो के उत्तर अवगत कराये।
- क्या ब्रह्माण्ड अनंत है?
- बिग बैग सिद्धांत का आधार ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति का वह बिन्दु कहाँ से आया?
- क्या हम समय जैसी किसी भ्रम को काबू कर पायेंगे?
- हमारे और हमारे मस्तिष्क की सीमा क्या है?क्या हम अपने मस्तिष्क का वास्तविक प्रयोग कर रहे हैं?
- क्या हम ब्रह्माण्ड के सबसे शक्तिशाली प्राणी हैं अथवा सबसे कमजोर?
इन प्रश्नों के उत्तर को ढूँढना हमारे भविष्य का उद्देश्य है जिसे हमें प्राप्त करना है। और मैं ये निश्चित तौर पर कह सकता हूँ कि इस ब्रह्माण्ड में भौतिकी तब तक प्रगति करता रहेगा जबतक कहीं भी ‘कुछ जानने की इच्छा’ जिज्ञासा और कल्पना अस्तित्व में होगा।
लेखक:
वीरेश्वर मिश्र
लेखक कक्षा 12 के छात्र है और मोमेंटम पब्लिक स्कूल-गोण्डा (उप्र) में अध्यनरत हैं।
Sir, how can I write any artical to you…
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ash.shri@gmail.com पर अपने लेख भेजे।
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सभी भारतीय वैज्ञानिकों का जीवन परिचय
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waa bhiya mea aapki iss mhanta ki daag deta huuu.selute………
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very good
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lekin sir dobara install karne ke liye option nahi mil raha hsi. matlab kaha se install kare
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उसके लिये आपको एम एस आफ़िस इन्स्टालेशन सीडी चाहिये होगी।
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sir mere laptop me jo Microsoft office install hai usme se word 2013, PowerPoint application open nahi ho rahi hai par excel etc application open ho rahi hai .sir plz help me main uper di gai application ko kaise open karu aur sir use kya hum dobara install kar sakte hai uske liye usme setup ka option bhi nahi hai
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आपको एम एस आफिस दोबारा इंस्टाल करना होगा।
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sir maine ek baar apna laptop safe mode me start kiya tha jisme window 10 hai .aur kya ab main jab bhi use on karta hu kya wo safe mode me hi start hota hai . hume pata kaise chalega ki wo safe mode me hai ya nahi .matlab main use safe mode me start nahi karna chahta sir wo safe mode se kaise hatega
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