अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत की अंतरिक्ष संस्था भारतीय अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने नायाब उपलब्धि हासिल की है। पहली ही कोशिश में भारतीय अनुसंधान संस्थान (इसरो) का मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन) 24 सितंबर सुबह लगभग 8 बजे मंगल की कक्षा में प्रवेश कर गया। पहले प्रयास में मंगल पर पहुंचने वाला भारत विश्व का पहला देश बन गया है। एशिया से कोई भी देश यह सफलता हासिल नहीं कर सका है। चीन और जापान अब तक मंगल पर नहीं पहुंच पाए हैं। अमेरिका की मंगल तक पहुंचने की पहली 6 कोशिशें विफल रही थीं। सुबह साढ़े सात बजे करीब इंजन को प्रज्वलित किया गया। इसके बाद यान की गति को कम करने के लिये उसे 24 मिनट तक प्रज्वलित रखा गया। इसकी गति 4.3 किमी प्रति सेकंड होने पर इसे मंगल की कक्षा में स्थापित करने के लिए निर्देश दिया गया। इसरो यान पर लगे कैमरे से बुधवार दोपहर से मंगल ग्रह की तस्वीरें मिलने लगेंगी। पृथ्वी से मंगल की औसत दूरी करीब 22 करोड़ 50 लाख किलोमीटर है। इस दूरी को मंगलयान ने करीब 80 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की गति से तय किया। बाद में मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने के लिए इसकी गति को लगातार कम किया गया।

मंगलयान के मुख्य तरल इंजन का सोमवार 22 सितंबर को सफल परीक्षण किया गया था। मंगल की कक्षा में पहुंचने से पहले इस इंजन की जांच बहुत जरूरी और चुनौतीपूर्ण थी, क्योंकि यान का मुख्य इंजन पिछले 300 दिन (लगभग 10 महीने) से निष्क्रिय अवस्था में था। इसरो के मुताबिक, इंजन ने तय योजना के तहत 4 सेकंड तक ठीक काम किया था। सोमवार की सफलता के साथ ही भारत मंगल ग्रह के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में अपना उपग्रह पहुंचाने वाला एशिया का पहला देश बन गया था। इस समय मंगल के राज जानने के लिए सात अभियान काम कर रहे हैं। ये सभी अमेरिकी अभियान हैं। उसका सबसे ताजा प्रयास मावेन के रूप में सामने आया है। इसके अलावा मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और मार्स ऑर्बिटर मंगल की परिक्रमा कर रहे हैं। दो रोवर्स- स्पिरिट और अपॉर्च्युनिटी भी मंगल पर मौजूद हैं। इसके साथ ही लैंडर- फीनिक्स भी वहां तैनात हैं।
अभियान के उद्देश्य और उपकरण
मंगलयान के जरिए भारत मंगल ग्रह पर जीवन के सूत्र तलाशने के साथ ही वहां के पर्यावरण की जांच करना चाहता है। वह यह भी पता लगाना चाहता है कि इस लाल ग्रह पर मीथेन मौजूद है कि नहीं। मीथेन गैस की मौजूदगी जैविक गतिविधियों का संकेत देती है। इसके लिए मंगलयान को करीब 15 किलो वजन के कई अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया गया है। इसमें कई शक्तिशाली कैमरे भी शामिल हैं। इस अभियान मे मीथेन के अलावा और खनिजों के बारे में भी पता चल सकेगा। मंगलयान के साथ पाँच प्रयोगात्मक उपकरण भेजे गये हैं जिनका कुल भार १५ किलोग्राम है।
- मीथेन सेंसर (मीथेन संवेदक) – यह मंगल के वातावरण में मिथेन गैस की मात्रा को मापेगा तथा इसके स्रोतों का मानचित्र बनाएगा।
- थर्मल इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर (TIS) (ऊष्मीय अवरक्त स्पेक्ट्रोमापक) – यह मंगल की सतह का तापमान तथा उत्सर्जकता (emissivity) की माप करेगा जिससे मंगल के सतह की संरचना तथा खनिजकी (mineralogy) का मानचित्रण करने में सफलता मिलेगी।
- मार्स कलर कैमरा (MCC) (मंगल वर्ण कैमरा)- यह दृष्य स्पेक्ट्रम में चित्र खींचेगा जिससे अन्य उपकरणों के काम करने के लिए सन्दर्भ प्राप्त होगा।
- लमेन अल्फा फोटोमीटर (Lyman Alpha Photometer (LAP)) (लिमैन अल्फा प्रकाशमापी) – यह ऊपरी वातावरण में ड्यूटीरियम तथा हाइड्रोजन की मात्रा मापेगा।
- मंगल इक्सोस्फेरिक न्यूट्रल संरचना विश्लेषक (MENCA) (मंगल बहिर्मंडल उदासीन संरचना विश्लेषक) – यह एक चतुःध्रुवी द्रव्यमान विश्लेषक है जो बहिर्मंडल (इक्सोस्फीयर) में अनावेशित कण संरचना का विश्लेषण करने में सक्षम है।
मंगलयान को पिछले साल 5 नवंबर को 2 बजकर 36 मिनट पर इसरो के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से रवाना किया गया था। इसे पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-25 की मदद से छोड़ा गया। अमेरिका और रूस ने अपने मंगलयान छोड़ने के लिए इससे बड़े और खासे महंगे रॉकेटों का प्रयोग किया। इसे पहले पिछले साल ही 19 अक्टूबर को छोड़े जाने की योजना थी, लेकिन दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण यह काम टाल दिया गया था। इस पर 450 करोड़ रुपये की लागत आई है। इस यान का वजन 1350 किलो है। मंगलयान को छोड़े जाने के बाद से इसके यात्रा मार्ग में सात बार परिवर्तन किए गए, ताकि यह मंगल की दिशा में अपनी यात्रा जारी रख सके।
अभियान कालक्रम
- 3 अगस्त 2012 – इसरो की मंगलयान परियोजना को भारत सरकार ने स्वीकृति दी। इसके लिये 2011-12 के बजट में ही धन का आवण्टन कर दिया गया था।
- 5 नवम्बर 2013 – मंगलयान मंगलवार के दिन दोपहर भारतीय समय 2:38 अपराह्न पर श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) के सतीश धवन अन्तरिक्ष केन्द्र से ध्रुवीय प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी-25 द्वारा प्रक्षेपित किया गया।3:20 अपराह्न के निर्धारित समय पर पीएसएलवी-सी 25 के चौथे चरण से अलग होने के उपरांत यान पृथ्वी की कक्षा में पहुँच गया और इसके सोलर पैनलों और डिश आकार के एंटीना ने कामयाबी से काम करना शुरू कर दिया था।
- 5 नवम्बर से 01 दिसम्बर 2013 तक यह पृथ्वी की कक्षा में रहा तथा कक्षा (ऑर्बिट) सामंजस्य से जुड़े 6 महत्वपूर्ण ऑपरेशन किये गये। इसरो की योजना पृथ्वी की गुरुत्वीय क्षमता का भरपूर इस्तेमाल करके मंगलयान को पलायन वेग देने की थी। यह काफी धैर्य का काम है और इसे छह किस्तों में 01 दिसम्बर 2013 तक पूरा कर लिया गया।
- 7 नवम्बर 2013-भारतीय समयानुसार एक बजकर 17 मिनट पर मंगलयान की कक्षा को ऊँचा किया गया। इसके लिए बैंगलुरू के पीन्या स्थित इसरो के अंतरिक्ष यान नियंत्रण केंद्र से अंतरिक्ष यान के 440 न्यूटन लिक्विड इंजन को 416 सेकेंडों तक चलाया गया जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी से मंगलयान का शिरोबिन्दु (पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर स्थित बिन्दु) 28,825 किलोमीटर तक ऊँचा हो गया, जबकि पृथ्वी से उसका निकटतम बिन्दु 252 किलोमीटर हो गया।
- 11 नवम्बर 2013 को नियोजित चौथे चरण में शिरोबिन्दु को 130 मीटर प्रति सेकंड की गति देकर लगभग 1 लाख किलोमीटर तक ऊँचा करने की योजना थी, किंतु तरल इंजिन में खराबी आ गई। परिणामतः इसे मात्र 35 मीटर प्रति सेकंड की गति देकर 71,623 से 78,276 किलोमीटर ही किया जा सका। इस चरण को पूरा करने के लिए एक पूरक प्रक्रिया 12 नवम्बर 0500 बजे IST के लिए निर्धारित की गई।
- 12 नवम्बर 2013 – एक बार फिर मंगलवार मंगलयान के लिए मंगलमय सिद्ध हुआ। सुबह 05 बजकर 03 मिनट पर 303.8 सेकंड तक इंजन दागकर यान को 78,276 से 118,642 किलोमीटर शिरोबिन्दु की कक्षा पर सफलतापूर्वक पहुंचा दिया गया।
- 16 नवम्बर 2013 : पांचवीं और अंतिम प्रक्रिया में सुबह 01:27 बजे 243.5 सेकंड तक इंजन दागकर यान को 1,92,874 किलोमीटर के शिरोबिंदु तक उठा दिया। इस प्रकार यह चरण भी पूरा हुआ।
- 01 दिसम्बर 2013 – 31नवंबर-1दिसंबर की मध्यरात्रि को 00:49 बजे मंगलयान को मार्स ट्रांसफर ट्रेजेक्टरी में प्रविष्ट करा दिया गया, इस प्रक्रिया को ट्रांस मार्स इंजेक्शन (टीएमआई) ऑपरेशन का नाम दिया गया। यहाँ से इसकी 20 करोड़ किलोमीटर से ज्यादा लम्बी यात्रा शुरूआत हुयी जिसमे नौ महीने से भी ज्यादा का समय लगा और इसकी सबसे बड़ी चुनौती इसके अन्तिम चरण में यान को बिल्कुल सटीक तौर पर धीमा करने की थी, ताकि मंगल ग्रह अपने छोटे गुरुत्व बल के जरिये इसे अपने उपग्रह के रूप में स्वीकार करने को तैयार हो जाये।
- 22 सितंबर 2014 : मुख्य इंजन को 4 सेकंड तक दागकर उसका परीक्षण किया गया।
- 24 सितंबर 2014 :मुख्य इंजन को 24 मिनट तक दागकर यान को मंगल कक्षा मे पहुंचा दिया गया।
मंगलयान प्रोजेक्ट से भारत की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई थी। इससे पहले अमेरिका, रूस और यूरोप के कुछ देश ही संयुक्त रूप से मंगल पर अपना मिशन भेज पाए हैं। चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया। अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान नाकाम साबित हुए हैं। भारत का मंगल अभियान सफल होने के साथ ही अंतरिक्ष में उसका रुतबा काफी बढ़ गया है। जाहिर है अंतरिक्ष व्यवसाय के मामले में भी भारत नई छलांग लगा सकता है। इससे उसे विदेशी उपग्रह प्रक्षेपित करने के नए आदेश मिलने के पूरे आसार हैं। संबधित लेख : मंगलयान : भारत की बड़ी छलांग!
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I just want this blog to be translated in english…..i don’t understand any of these which is in hindi or sanskrit
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अनिल, यह ब्लाग हिन्दी भाषा के लिये ही है, अन्ग्रेजी मे ढेरो है.. Anil this blog is for Hindi Language only.
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Ashish sir according to science. energy ka na aadi hai na ant at then same situation ved bhi permatma(god) ko yese hi explain karte hai then energy hi god toh nahi hai jisse ye galaxy and universe bana hai. what do you think about it
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मै भगवान जैसी किसी शक्ति मे विश्वास नही करता लेकिन यदि आप विज्ञान के नियमों को भगवान कहें तो मै उन्हे मान सकता हुं, क्योकिस समस्त विश्व उन नियमों से संचालित है 😀
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but bhai science ke niyam bahut si cheejo me ya samay samay par galat bhi sabit hote hai …jo ki insaan kabhi nahi samaz sakata aur usi energy ko hum God kahte hai..me aapke dikha to nahi sakta
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वही हम कह रहे है अज्ञान का नाम ईश्वर है। जिसे समझ नही पाते वह ईश्वर। जैसे पिछली सदी में, चेचक जैसी बीमारी, आसमान की बिजली ईश्वर ही थे।
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sir kya energy ka koi size(aakar) hota hai and kya ye nirgun hoti hai please reply as soon as
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ऊर्जा और द्रव्यमान दोनो अलग अलग नही एक ही है, एक रूप मे उसका आकार होता है दूसरे रूप मे नही। ऊर्जा और द्रव्यमान दोनो के अपने अपने गुण है, निर्गुण तो दोनो रूप नही है।
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sir yah yaan hai kya yah vaapis bhi aayega. Agar aayega to kab tak vapis aayega
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यह यान मंगल ग्रह का एक उपग्रह बन गया है। यह वहाँ के चित्र लेगा, वातावरण का अध्ययन करेगा और सब पृथ्वी पर भेजेगा। यह यान वापिस नही आयेगा।
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Mangalyan ki kamyabi par sabhi desh vasiyo ko badhai. Sir kiya magalyan se koi upkaran mangal ki satah par utrega.
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नही इस अभियान मे कोई उपकरण मंगल पर उतारा नही जायेगा।
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बहुत अच्छा लेख आशीष जी.
आप ऐसे ही लेख लिखते रहिए लोगो तक पहुँचाना मेरा काम. कल ही आप की इस पोसट को अपने पाँचो फेसबुक पेजो पर शेयर कर दिया था शायद इसलिए ही यह पोसट नंम्बर दो पर पहुँच गई है.
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धन्यवाद साहिल.
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Asish bhah, namaskar mai baastav me bahut prrassana hu. please yah bhi batane ka kast kare ke es mission ka head kaun hai?
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पूरी टीम
के राधाकृषणन अध्यक्ष इस्रो K. Radhakrishnan – Chairman, ISRO
एम आय प्रसाद निदेशक सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा M.Y.S. Prasad – Director, Satish Dhawan Space Center Sriharikota
ए एस किरण कुमार निदेशक एस ए सीA. S. Kiran Kumar – Director, SAC
वी आदिमुर्ती V. Adimurthy – Mission Concept Designer, MOM
मील्स्वामी अन्नादुरै Mylswamy Annadurai – Programme Director, MOM
बी एस चंद्रशेखर B. S. Chandrashekar – Director, ISTRAC
पी राबर्ट P. Robert – Operations Director, MOM
सुबैहा अरुणन Subbiah Arunan – Project Director, MOM
वी केशवाराजु V. Kesavaraju – Post-Launch Mission Director, MOM
पी एकाम्ब्रम P. Ekambaram – Operations Director, MOM
पी कुन्हीकृष्णन P. Kunhikrishnan – Launch Mission Director, PSLV-XL
जितेन्द्रनाथ गोस्वामी Jitendra Nath Goswami – Director, Physical Research Laboratory ISRO
एस के शिवाकुमार S. K. Shivkumar – Orbiting payload Director, ISAC
बी जयाकुमार B. Jayakumar – Launch Vehicle Director, PSLV
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एक लम्बी छलांग….
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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Mera bharat mahan!
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