मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन) भारत की एक महत्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। 2008 में चंद्र अभियान की सफलता से ख़ासे उत्साहित भारतीय वैज्ञानिक अब गहरे अंतरिक्ष में अपनी पैठ बनाना चाहते हैं।

भारत का मानवरहित चंद्रयान दुनिया के सामने चाँद पर पानी की मौजूदगी के पुख़्ता सबूत लेकर आया था। इसरो की सबसे बड़ी परियोजना चंद्रयान थी। इसरो के वैज्ञानिक बुलंद हौसले के साथ मंगल मिशन की तैयारी में जुट गए। लेकिन मंगल की यात्रा के लिए रवानगी और चाँद की यात्रा में ज़मीन आसमान का अंतर है। चंद्रयान को अपने मिशन तक पहुंचने के लिए सिर्फ़ चार लाख किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी जबकि मंगलयान को चालीस करोड़ किलोमीटर की दूरी तय करनी है। मंगलयान परियोजना के ज़रिए भारत वास्तविकता में गहरे अंतरिक्ष में क़दम बढ़ाने की शुरुआत कर रहा है।
यह यान अपने साथ 15 किलो के पाँच प्रयोग उपकरण ले जायेगा
- LAP (लाइमन अल्फा फोटोमीटर) :लाइमन अल्पा फोटोमीटर एक खास तरह का फोटोमीटर है। यह मंगल ग्रह के वायुमंडल में मौजूद ड्यूटेरियम और हाइड्रोजन का पता लगाएगा। इसकी मदद से वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश करेंगे की इस ग्रह से पानी कैसे गायब हुआ।
- मिथेन सेंसर मार्स (MSM) :यह सेंसर हवा में मौजूद मिथेन की जांच करेगा।
- मार्स इक्सोस्फेरिक न्यूटरल कम्पोजिशन एनालाइडर (MENCA) :यह मंगल ग्रह के वातावरण में मौजूद न्यूट्रल कम्पोजिशन की जांच करेगा।
- मार्स कलर कैमरा (MCC): यह कैमरा मंगल ग्रह के सतह की तस्वीरें लेगा। इस कैमरे की तस्वीरों से वैज्ञानिक मंगल ग्रह के मौसम को भी समझ सकेंगे।
- थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर (TIS) : यह कैमरा मंगल ग्रह ने निकलने वाली गर्मी की तस्वीरें लेगा। इसे दिन और रात दोनों समय इस्तेमाल किया जा सकेगा।
इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन कहते हैं,
“जब हम मंगल की बात करते हैं तो मंगल पर जीवन संभव है या नहीं इस बारे में खोज करना चाहते हैं, इसके साथ साथ हम यह भी जानना चाहेंगे कि मंगल पर मीथेन है या नहीं और अगर मीथेन है तो यह जैविक है या भूगर्भीय। हम मंगल पर कैसा वातावरण है, इसकी भी खोज करेंगे।”
अभियान
- 5 नवंबर को 2:38 बजे दिन में श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित पीएसएलवी 25 ।
- 40 मिनट से ज्यादा समय लगे इसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने ने ।
- 20 से 25 दिन अर्थात 30 नवंबर तक पृथ्वी की परिक्रमा कर हर परिक्रमा मे पृथ्वी से अपनी दूरी बढायी।
- 1 दिसंबर को मंगल के लिए मंगलयान ने अपनी यात्रा शुरू की ।
- 22 सितंबर 2014 को मंगल के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव मे पहुंचा।
- 24 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंच गया।
लागत
इस मिशन की लागत 450 करोड़ रुपये (करीब छह करोड़ 90 लाख डॉलर) है।
रॉकेट भेजने की तकनीक का अभाव

साल 1960 से अब तक 45 मंगल अभियान शुरु किए जा चुके हैं। इनमें से एक तिहाई असफल रहे हैं। अब तक कोई भी देश अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हुआ है।
सामान्य तौर पर भारत को तीन चरणों वाला जीएएलवी जैसा प्रक्षेपण यान चाहिए। लेकिन इसकी ग़ैरमौजूदगी में पीएसएलवी का इस्तेमाल मंगल मिशन पर उपग्रह को भेजने के लिए किया जा रहा है।
मंगलयान को पृथ्वी की कक्षा से 30 नवंबर के पहले निकलना होगा। इसमें अगर देरी होती है तो अनुकूल स्थिति के लिए 26 महीने का लंबा इंतज़ार करना पड़ेगा।
मंगलयान के मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश की प्रक्रिया सही से संपन्न करना जरूरी है ताकि यान मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित हो जाय। ऐसा न होने पर मंगल मिशन फ्लाई बाय मिशन बन जाएगा।
इसरो ने बंगलौर के डीप स्पेस नेटवर्क बनाया है। जहां से भेजे गई कमांड को उपग्रह तक पहुंचने में 20 मिनट लगेंगे और कमांड का असर जानने में और बीस मिनट लगेंगे। यह समय भी एक अभियान की एक चुनौती है।
अभी तक किसी भी देश ने पहले मंगल अभियान में सफलता नहीं पाई है। भारत का यह पहला प्रयास है। इसके साथ ही भारत अलग तकनीक से मंगलयान को मंगल की कक्षा में विभिन्न चरणों में पहुंचा रहा है। इस कारण भी चुनौती ज़्यादा है।
भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस बात की है कि उसके पास गहरे अंतरिक्ष में रॉकेट भेजने की तकनीक नहीं है। यदि सामान्य रूप से मंगल पर पहुंचना हो तो इसके लिए हमें तीन चरणों वाले प्रक्षेपण रॉकेट चाहिए जैसा कि जीएसएलवी है। लेकिन अभी इसरो का जीएसएलवी पूरी तरह से तैयार नहीं है। इसलिए भारत का मंगल अभियान पीएसएलवी के जरिए ही लांच हो रहा है, जिसमें सिर्फ़ एक इंजन वाला रॉकेट होता है।
इसमें रॉकेट का एक इंजन प्रज्वलित होकर उपग्रह को धरती की कक्षा में पहुंचाता है। लेकिन जैसे ही यह उपग्रह पृथ्वी की दीर्घवृत्ताकार स्थानांतरण कक्षा में पहुंचता है, इसे गति देने के लिए एक और इंजन को प्रज्वलित करना होता है वर्ना उपग्रह वापस धरती की कक्षा में गुरुत्वाकर्षण की वजह से आ जाएगा।
इसके बाद फिर यही प्रक्रिया स्थानांतरण कक्षा से मंगल की कक्षा में प्रवेश के लिए होती है। लेकिन स्थानांतरण कक्षा से मंगल की कक्षा में पहुंचने के लिए सिर्फ़ एक इंजन की ज़रूरत होती है। इसलिए भारत अपने पीएसएलवी से इस यान को प्रक्षेपित करेगा। पहले इसरो पीएसएलवी द्वारा इस यान को धरती की कक्षा में भेजेगा। फिर यह मंगलयान धरती की कक्षा में एक महीने तक रहेगा। इसमें एक-एक करके इसके अंदर का जो अपना रॉकेट है, उसका विस्फ़ोट करके इसकी गति बढ़ाई जाएगी।
भारत मंगल पर जाने के लिए बिल्कुल अलग तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। आमतौर पर देश एक झटके में रॉकेट छोड़ते हैं और वो एक छलांग से सीधा मंगल की ओर चले जाते हैं। आसान खेल नहीं है, बहुत मुश्किल है, रास्ता जटिल है, भारत इस रास्ते पर पहली बार जा रहा है, कितना कारगर होगा? क्या सोलर विंड इसको धक्का देकर अपने रास्ते से बाहर कर देंगी? रास्ते में क्या-क्या अड़चने आएंगी? उसकी तैयारी की है।
पृथ्वी की कक्षा से निकलने का समय
सबसे बड़ी चुनौती यह है कि मंगलयान को 30 नवंबर से पहले पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलना होगा। इसमें कोई देरी नहीं होनी चाहिए वर्ना यह अपने मिशन में सफल नहीं हो पाएगा। दरअसल इस दौरान मंगल की दूरी पृथ्वी से सबसे कम होती है, जिससे उपग्रह को कम ऊर्जा ख़र्च करके मंगल की कक्षा में भेजना आसान होता है।
यह स्थिति 26 महीनों में एक बार बनती है। इसका मतलब यह हुआ कि यदि 30 नवंबर से पहले ट्रांसफ़र ऑर्बिट में यान नहीं पहुंचा तो इस स्थिति के दोबारा बनने के लिए 26 महीनों का इंतज़ार करना होगा।
राधाकृष्णन कहते हैं, “मंगलयान को नवंबर के पहले सप्ताह में भारत के पूर्वी तट पर श्री हरिकोटा से लांच किया जाएगा। इस यान को शक्तिशाली पीएसएलवी एकस्ट्रा लार्ज प्रक्षेपण यान से भेजा जाएगा। इस मिशन की कुल लागत 450 करोड़ रुपए है। मंगल पर जीवन की संभावना के अस्तित्व का पता लगाने के लिए भेजा जाने वाला यह यान नवंबर 2013 से सितंबर 2014 तक अपने मिशन को पूरा करेगा।

1.मंगल को लाल ग्रह कहते हैं क्योंकि मंगल की मिट्टी के लौह खनिज में ज़ंग लगने की वजह से वातावरण और मिट्टी लाल दिखती है।
2. मंगल के दो चंद्रमा हैं। इनके नाम फ़ोबोस और डेमोस हैं। फ़ोबोस डेमोस से थोड़ा बड़ा है। फ़ोबोस मंगल की सतह से सिर्फ़ 6 हज़ार किलोमीटर ऊपर परिक्रमा करता है।
3. फ़ोबोस धीरे-धीरे मंगल की ओर झुक रहा है, हर सौ साल में ये मंगल की ओर 1।8 मीटर झुक जाता है। अनुमान है कि 5 करोड़ साल में फ़ोबोस या तो मंगल से टकरा जाएगा या फिर टूट जाएगा और मंगल के चारों ओर एक रिंग बना लेगा।
फ़ोबोस पर गुरुत्वाकर्षण धरती के गुरुत्वाकर्षण का एक हज़ारवां हिस्सा है। इसे कुछ यूं समझा जाए कि धरती पर अगर किसी व्यक्ति का वज़न 68 किलोग्राम है तो उसका वज़न फ़ोबोस पर सिर्फ़ 68 ग्राम होगा।
4. अगर ये माना जाए कि सूरज एक दरवाज़े जितना बड़ा है तो धरती एक सिक्के की तरह होगी और मंगल एक एस्पिरीन टैबलेट की तरह होगा।
5. मंगल का एक दिन 24 घंटे से थोड़े ज़्यादा का होता है। मंगल सूरज की एक परिक्रमा धरती के 687 दिन में करता है। यानी मंगल का एक साल धरती के 23 महीने के बराबर होगा।
6. मंगल और धरती करीब दो साल में एक दूसरे के सबसे करीब होते हैं, दोनों के बीच की दूरी तब सिर्फ़ 5 करोड़ 60 लाख किलोमीटर होती है।
7. मंगल पर पानी बर्फ़ के रूप में ध्रुवों पर मिलता है और ये कल्पना की जाती है कि नमकीन पानी भी है जो मंगल के दूसरे इलाकों में बहता है।
8. वैज्ञानिक मानते हैं कि मंगल पर करीब साढ़े तीन अरब साल पहले भयंकर बाढ़ आई थी। हालांकि ये कोई नहीं जानता कि ये पानी कहां से आया था, कितने समय तक रहा और कहां चला गया।
9. मंगल पर तापमान बहुत ज़्यादा भी हो सकता है और बहुत कम भी।
10. मंगल एक रेगिस्तान की तरह है, इसलिए अगर कोई मंगल पर जाना चाहे तो उसे बहुत ज़्यादा पानी लेकर जाना होगा।
11. मंगल पर ज्वालामुखी बहुत बड़े हैं, बहुत पुराने हैं और समझा जाता है कि निष्क्रिय हैं। मंगल पर जो खाई है वो धरती की सबसे बड़ी खाई से भी बहुत बड़ी है।
12. मंगल का गुरुत्वाकर्षण धरती के गुरुत्वाकर्षण का एक तिहाई है। इसका मतलब ये है कि मंगल पर कोई चट्टान अगर गिरे तो वो धरती के मुकाबले बहुत धीमी रफ़्तार से गिरेगी। किसी व्यक्ति का वज़न अगर धरती पर 100 पौंड हो तो कम गुरुत्वाकर्षण की वजह से मंगल पर उसका वज़न सिर्फ़ 37 पौंड होगा।
13. मंगल की सतह पर धूल भरे तूफ़ान उठते रहते हैं, कभी-कभी ये तूफ़ान पूरे मंगल को ढक लेते हैं।
14. मंगल पर वातावरण का दबाव धरती की तुलना में बेहद कम है इसलिए वहां जीवन बहुत मुश्किल है।
नवंबर में लांच होने के बाद यह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो जाएगा और इसके बाद इसके छह इंजन इससे अलग होकर इसे वहां से दो लाख पंद्रह हज़ार किलोमीटर के दूरतम बिंदु पर स्थापित कर देंगे। जहां यह लगभग 25 दिनों तक रहेगा। फिर एक अंतिम तौर पर मंगलयान को 30 नवंबर को अंतरग्रहीय प्रक्षेप वक्र में भेज दिया जाएगा। उपग्रह को मंगल की कक्षा में जाने के लिए पहले पृथ्वी की कक्षा पार करनी होगी। इसके बाद यह एक दीर्घवृत्ताकार ट्रांसफ़र ऑर्बिट से गुज़रने के बाद मंगल की कक्षा में पहुंच जाएगा।
मंगल पृथ्वी से 200 से 400 मिलियन किलोमीटर दूर होता है क्योंकि उसकी कक्षा अंडाकार है। इसको पूरा करने में मंगल यान को नौ महीने का समय लगेगा। लेकिन नौ महीने बाद जब यह मंगल ग्रह के पास पहुंचेगा तब इसे सेटेलाइट में मौजूद छोटे रॉकेट से दुबारा फायर किया जाएगा और इस मंगल यान को धीमा किया जाएगा, नहीं तो मंगलयान मंगल ग्रह के साथ फ्लाई बाय मिशन बन जाएगा। उसको धीमा करके ऐसा किया जाएगा कि मंगल ग्रह उसको अपने गुरुत्वाकर्षण में पकड़ ले, जैसे लपक कर गेंद पकड़ी जाती है है, वैसे ही मंगल ग्रह उसको लपककर पकड़ लेगा। उसके बाद यह यान मंगलग्रह के चारो और घूमता रहेगा।
मंगलयान को अपने मुक़ाम तक पहुंचने के लिए क़रीब तीन सौ दिन का समय लगेगा। यदि पाँच नवंबर को मंगलयान रवाना होता है तो अगस्त के अंत तक वहां पहुंच पाएगा। इसमें भेजे गए पाँच खोजी उपकरणों के सॉफ्टवेयर इस तरह से निर्देशित किए गए हैं कि वे तीन सौ दिन बाद ही सक्रिय होंगे और आँकड़े देना शुरू करेंगे।
यह उपग्रह मंगल ग्रह के 80 हज़ार किलोमीटर की कक्षा मे परिक्रमा करेगा। भारत के इस मंगलयान में पाँच विशेष उपकरण मौजूद हैं। इसमें मंगल के बेहद संवेदनशील वातावरण में जीवन की निशानी मीथेन गैस का पता लगाने वाले सेंसर, एक रंगीन कैमरा और मंगल की धरती पर खनिज संपदा का पता लगाने वाले उपकरण मौजूद हैं।
संकेत मिलने की चुनौतियां
इसरो ने इस यान पर नियंत्रण के लिए बंगलौर के पास डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशन बनाया है, जहां से इस यान पर नियंत्रण रखा जाएगा और आँकड़े हासिल किए जाएंगे। लेकिन चुनौती यहीं ख़त्म नहीं होती। यदि उपग्रह को बंगलौर से कोई कमांड दिया जाए तो उसे उपग्रह तक पहुंचने में 20 मिनट का वक़्त लगेगा। उसका असर क्या हुआ, यह पता चलने में 20 मिनट और लगेंगे। इस तरह चालीस मिनट बाद पता चलेगा कि कमांड सही थी या नहीं।
राधाकृष्णनन बताते हैं, “मंगल की कक्षा में पहुंचने के बाद यह आँकड़े भेजना शुरू कर देगा। किसी भी तरह के आँकड़ों को मंगल की कक्षा से पृथ्वी की कक्षा तक आने में सिर्फ़ चार से 20 मिनट लगेंगे।”
भारत मंगल अभियान को अपने प्रतिद्वंदी चीन को लाल ग्रह तक पहुंचने की दौड़ में पीछे छोड़ देने के अवसर के रूप में इसे देखता है। ख़ासकर तब जब मंगल जाने वाला पहला चीनी उपग्रह 2011 के नवंबर में असफल हो गया था। जापान का 1998 में एक ऐसा ही प्रयास विफल रहा था।
भारत का मंगल अभियान
मंगल हमेशा से लोगों को अपनी ओर खींचता रहा है। नासा का क्युरियोसिटी रोवर अभी भी उसकी सतह की पड़ताल कर रहा है। वहाँ से लगातार नए नमूने और नए आँकड़े मिल रहे हैं। कुछ लोग यहीं नहीं रुकना चाहते। यहां तक कि मंगल पर बस्ती बनाने के बारे में सोचा जा रहा है। 2022 में मंगल ग्रह की एक परियोजना का उद्देश्य वहां कॉलोनी बसाना है।
यह यात्रा केवल वहाँ जाने के लिए है। वापस आने के लिए नहीं। लेकिन मंगल पर सशरीर यात्रा पूरा करने का अभियान कब पूरा होगा, यह तो वक़्त ही बताएगा। जब तक मानव रहेगा, विज्ञान रहेगा, तब तक अंतरिक्ष को खोजने का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा, चलता रहेगा।
जी, मंगल के बारे कुछ दिलचस्प बातें ज्यादा अच्छी लगीं। अपने बाकी साथियों से साझा करना चाहता हूं। 24-9-14 के लिए ब्लॉग पर ले रहा हूं। साथ में आपका बहुत-बहुत धन्यवाद्
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मुझे बहुत खुशी हो रही है। INDIA IS GREAT. ….
मेरा नमस्कार है भारतीय वैज्ञानिकों का । THANK U BHARTIY S……
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Hello
I am very very happy , today that’s why we be passed Mangalyaan ……
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हमेँ गर्व है भारतीय वैज्ञानिकोँ पर
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भारतीय वैज्ञानिकों का बेहतरीन प्रयास , और कौशल को सादर प्रणाम , सरकार को और ज्यादा बजट देना चाहिए इस विज्ञान के विकास के लिए और स्कुल से कालेज तक खगोल शास्त्र की पढ़ाई करानी चाहिए – -रेणिक बाफना
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sargarbhit
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आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन भाई दूज, श्री चित्रगुप्त पूजा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।
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मुझे पता था कि आप मंगलयान पर लेख जरूर लिखेगे इसलिए खबरे देखी ही नहीं. बस अब तो आशा है कि 24.9.14 को शुभ समाचार ही मिले.
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धन्यवाद इस विस्तृत और महत्वपूर्ण जानकारी का।
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