स्वर्ण

स्वर्ण मरिचिका : सोना कितना सोना है?


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सोने से मानव सभ्यता का लगाव दिलचस्प है। रसायन विज्ञान की नज़र से देखें तो यह उतना धातु उदासीन सी है क्योंकि यह शायद ही किसी धातु से अभिक्रिया करता है।

सोना एक धातु एवं तत्व है । शुद्ध सोना चमकदार पीले रंग का होता है जो कि बहुत ही आकर्षक रंग है। यह धातु बहुत मूल्यवान है और प्राचीन काल से सिक्के बनाने, आभूषण बनाने एवं धन के संग्रह के लिये प्रयोग की जाती रही है। सोना घना, मुलायम, चमकदार, सर्वाधिक संपीड्य (malleable) एवं तन्य (ductile) धातु है। रासायनिक रूप से यह एक तत्व है जिसका प्रतीक (symbol) Au एवं परमाणु क्रमांक 79 है। यह एक ट्रांजिशन धातु है। अधिकांश रसायन इससे कोई क्रिया नहीं करते। सोने के आधुनिक औद्योगिक अनुप्रयोग हैं – दन्त-चिकित्सा में, इलेक्ट्रॉनिकी में।

संकेत (Au), परमाणुसंख्या 79, परमाणुभार 196.97, गलनांक 106° से., क्वथनांक 2970° से. घनत्व 19.3 ग्राम प्रति घन सेमी, परमाणु व्यास 2.9 एंग्स्ट्राम A°, आयनीकरण विभव 9.2 इवों, विद्युत प्रतिरोधकता 2.19 माइक्रोओहम्‌ - सेमी.
संकेत (Au),
परमाणुसंख्या 79,
परमाणुभार 196.97,
गलनांक 106° से.,
क्वथनांक 2970° से.
घनत्व 19.3 ग्राम प्रति घन सेमी,
परमाणु व्यास 2.9 एंग्स्ट्राम A°,
आयनीकरण विभव 9.2 इवों,
विद्युत प्रतिरोधकता 2.19 माइक्रोओहम्‌ – सेमी.

स्वर्ण के तेज से मनुष्य अत्यंत पुरातन काल से प्रभावित हुआ है क्योंकि बहुधा यह प्रकृति में मुक्त अवस्था में मिलता है। प्राचीन सभ्यताकाल में भी इस धातु को सम्मान प्राप्त था। ईसा से 2500 वर्ष पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यताकाल में (जिसके भग्नावशेष मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में मिले हैं) स्वर्ण का उपयोग आभूषणों के लिए हुआ करता था। उस समय दक्षिण भारत के मैसूर प्रदेश से यह धातु प्राप्त होती थी। चरकसंहिता में (ईसा से 300 वर्ष पूर्व) स्वर्ण तथा उसके भस्म का औषधि के रूप में वर्णन आया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में स्वर्ण की खान की पहचान करने के उपाय धातुकर्म, विविध स्थानों से प्राप्त धातु और उसके शोधन के उपाय, स्वर्ण की कसौटी पर परीक्षा तथा स्वर्णशाला में उसके तीन प्रकार के उपयोगों (क्षेपण, गुण और क्षुद्रक) का वर्णन आया है। इन सब वर्णनों से यह ज्ञात होता है कि उस समय भारत में सुवर्णकला का स्तर उच्च था।

इसके अतिरिक्त मिस्रऐसीरिया आदि की सभ्यताओं के इतिहास में भी स्वर्ण के विविध प्रकार के आभूषण बनाए जाने की बात कही गई है और इस कला का उस समय अच्छा ज्ञान था।

आवर्त सारणी(पीरियोडिक टेबल ) के 118 तत्वों में केवल सोना ही एक ऐसा तत्व है, जिसे मानव मुद्रा के रूप में चुनना पसंद करता है। लेकिन क्यों? मानव ओसमियम, क्रोमियम या हीलियम के प्रति ऐसा प्रेम क्यों नहीं दिखाता है?

आवर्त सारणी
आवर्त सारणी

रासायनिक तत्वो के वर्गीकरण की आवर्त सारणी देखीये।

गैस,तरल, क्षार और जहरीले तत्व

इस सारणी के दाहिने हिस्से पर पर ध्यान दें कि कुछ तत्व खारिज करने के लिए बहुत आसान होते हैं।यहां आप महत्वपूर्ण गैसें और रासायनिक पदार्थ पा सकते हैं। एक गैस किसी मुद्रा से अच्छी नहीं हो सकती है। किसी गैस को एक शीशी में भरकर इधर-उधर ले जाना बहुत व्यावहारिक नहीं होगा। गैसों के बारे में एक सत्य यह भी है कि वे रंगहीन होती हैं, ऐसे में आप यह कैसे पहचानेंगे कि वे क्या हैं?

इसी तरह दो तरल तत्व, पारा और ब्रोमाइन भी अव्यवहारिक हो सकते हैं। ये दोनों ज़हरीले भी होते हैं, यानी इनका गुण ऐसा नहीं होता है, जिसे आप मुद्रा के रूप में उपयोग कर सकें। इसी तरह आर्सेनिक और कुछ अन्य तत्वों को भी बाहर किया जा सकता है।

हम सोने की बनी सभी कान की बालियों, कंप्यूटर चिप में लगे सोने, प्री कोलंबिया की सभी सोने की मूर्तियों, सगाई की सभी अंगूठियों को जमा कर उसे पिघला दें तो जितना सोना मिलेगा, वह अनुमानत, 20 मीटर के घनाकार के बराबर या उसके आसपास होगा।
हम सोने की बनी सभी कान की बालियों, कंप्यूटर चिप में लगे सोने, प्री कोलंबिया की सभी सोने की मूर्तियों, सगाई की सभी अंगूठियों को जमा कर उसे पिघला दें तो जितना सोना मिलेगा, वह अनुमानत, 20 मीटर के घनाकार के बराबर या उसके आसपास होगा।

अब आप आवर्त सारणी के बाएं हिस्से की ओर ध्यान दें। क्षारीय धातुएं और भू-धातुएं अति-क्रियाशील हैं। बहुत से लोगों को अपने स्कूल के दिनों में पानी से भरी एक प्याली में सोडियम या पोटैशियम डालना याद होगा। इसमें सनसनाहट के साथ आवाज़ होती है। ऐसे में एक विस्फोटक मुद्रा लेकर चलना अच्छा विचार नहीं होगा।

रेडियोधर्मी पदार्थ

कुछ इसी तरह की बात तत्वों के एक और वर्ग पर लागू होती है। ये हैं रेडियोधर्मी पदार्थ, आप कभी यह नहीं चाहेंगे आपकी मुद्रा आपको कैंसर की मरीज बनाए।

इस आवर्त सारणी में एक और समूह है, जिसे दुर्लभ धातु के नाम से जाना जाता है। इनमें से बहुत से तत्व सोने की तुलना में कम दुर्लभ हैं। दुर्भाग्य से रासायनिक रूप से उनमें भेद कर पाना बहुत कठिन होता है। ऐसे में आपको यह नहीं पता चलेगा कि आपके जेब में क्या है।

धातुयें

आवर्त सारणी के ट्रांजीशन और पोस्ट ट्रांजीशन समूह में 49 तत्व हैं। इनमें से लोहा, एल्युमीनियम, तांबा, सीसा और चांदी जैसे धातुओं से हम परिचित भी हैं। लेकिन अगर आप इनका विस्तृत परीक्षण करेंगे तो पाएंगे कि इन सब में कुछ गंभीर कमियां हैं।

इस आवर्त सारणी के बाएं तरफ वाले हिस्से में हमें सबसे ठोस और टिकाऊ तत्व टाइटेनियम और ज़िरकोनियम जैसी धातुएं मिलती हैं। इन धातुओं से साथ समस्या यह है कि इन्हें पिघलाना बहुत कठिन काम है। इन धातुओं को इनके खनिजों से निकालने के लिए भट्टी को एक हज़ार सेंटीग्रेट के ऊपर तक ले जाना पड़ता है। इस तरह के विशेष उपकरण प्राचीन समय में लोगों के पास उपलब्ध नहीं थे।

लोहे की मज़बूरी

लोहा मुद्रा के लिए अच्छा विकल्प हो सकता है। यह आकर्षक होता है और इसे चमकाया जा सकता है। लेकिन इसकी समयस्या है, इसमें लगने वाली जंग, जब तक आप इसे पूरी तरह सूखा नहीं रखते, इसे सुरक्षित रख पाना एक कठिन काम है। आपने आप में खोट वाली मुद्रा एक अच्छा विचार नहीं हो सकता।

इसी आधार पर सीसा(लेड) और तांबा(कॉपर) को बाहर कर दिया जाता है क्योंकि उनका क्षय होने लगता है। लोगों ने इन दोनों से मुद्राएं बनाईं, लेकिन वो ज़्यादा समय तक नहीं चल पाईं।

अब इस आवर्त सारणी के 118 तत्वों में से केवल आठ ही मुक़ाबले में रह गए हैं। ये हैं, प्लैटिनम, पैलाडियम, रोडियम, इरिडियम, आस्मिनम, रूथीनियम, स्वर्ण और चांदी। इन्हें महत्वपूर्ण धातुओं के रूप में जाना जाता है। ये महत्वपूर्ण इसलिए हैं कि ये अकेले रहते हैं और शायद ही किसी के साथ प्रतिक्रिया करते हैं। ये तत्व भी बहुत अधिक दुर्लभ हैं, जो किसी मुद्रा के लिए एक महत्वपूर्ण मापदंड है।

अगर लोहे में जंग न भी लगे, तो वह मुद्रा के लिए अच्छा आधार नहीं होगा, क्यों वो आपको आसपास अत्यधिक मात्रा में मिल जाता है। वहीं सोने और चांदी को छोड़कर अन्य उत्कृष्ट धातुओं के साथ अलग तरह की समस्या है कि वो बहुत अधिक दुर्लभ हैं। इनसे बहुत छोटे सिक्के ढलेंगे, जिनके खोने का ख़तरा अधिक होगा।

दुर्लभतम

इन्हें परिष्कृत करना भी काफी कठिन होता है, प्लैटिनम 1768 डिग्री सेंटीग्रेट के तापमान पर पिघलता है। ऐसे में बचते हैं सिर्फ दो तत्व, सोना और चांदी।दोनों बहुतायत में तो नहीं होते हैं। लेकिन वे दुर्लभ भी नहीं हैं। ये कम तामपान पर पिघल जाते हैं और इन्हें सिक्कों या आभूषणों में ढालना भी आसान होता है। चांदी गंदी होती है, यह गंधक(सल्फर) के साथ हवा में प्रतिक्रिया करती है। इसलिए सोने को बहुत अहमियत दी जाती है। यही गुण हैं, जो रासायनिक रूप से अरुचिकर होने के बाद भी सोने को मूल्यवान बनाता है।

आप सोने का एक तेंदुआ बनवा सकते हैं, इसके बाद आप यह उम्मीद कर सकते हैं कि एक हज़ार साल बाद भी वह सेंट्रल लंदन के संग्रहालय के शो केस में अपनी मूल अवस्था में पाया जा सकता है।

पहली बात यह कि इसका कोई स्वभाविक मूल्य नहीं होता है। किसी मुद्रा का वही मूल्य होता है, जो एक समाज के रूप में हम उसे देते हैं। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि दुनिया में कितनी कम मात्रा में सोना उपलब्ध है।

अगर हम सोने की बनी सभी कान की बालियों, कंप्यूटर चिप में लगे सोने, प्री कोलंबिया की सभी सोने की मूर्तियों, सगाई की सभी अंगूठियों को जमा कर उसे पिघला दें तो जितना सोना मिलेगा, वह अनुमानत, 20 मीटर के घनाकार के बराबर या उसके आसपास होगा।*

सुनहरा रंग

लेकिन केवल इसकी कमी और इसकी स्थिरता ही ऐसे गुण नहीं हैं। इसका एक और गुण है जो इसे मुद्रा के लिए आवर्त सारणी के तत्वों में से इसे अकेला दावेदार बनाता है, वह है इसका सुनहरा रंग। तांबे को छोड़कर आवर्त सारणी की अन्य धातुएं चांदी के रंग की है। हम यह जानते हैं कि हवा के संपर्क में आकर तांबे का रंग हरा हो जाता है। सोने का सुनहरा रंग उसे विशिष्ट बनाता है।

लेकिन वास्तव में अब मुद्रा के रूप में कोई भी सोने का प्रयोग नहीं करता है। अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन ने वर्ष 1973 में अमरीकी डॉलर और सोने के संबंध को तोड़ने का फैसला किया। निक्सन ने यह फैसला बहुत ही साधारण कारणों से लिया, वह यह कि अमरीका के पास डॉलर छापने के जरूरी सोना नहीं था।

यहां सोने के साथ समस्या यह है कि अर्थव्यवस्था और इसकी आपूर्ति में कोई संबंध नहीं है। सोने की आपूर्ति इस बात पर निर्भर करती है कि इसका खनन कितना हो रहा है। दक्षिण अमरीका में 16वीं शताब्दी में सोने की खानों की खोज के बाद सोने की क़ीमतों में बहुत बड़ी गिरावट आई। वहीं बाकी चीजों की क़ीमतों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई। अमरीका में वर्ष 1930 में आई महामंदी के समय बहुत से देशों की अर्थव्यवस्था इसलिए बच गई क्योंकि उन्होंने अपनी मुद्रा को सोने से नहीं जोड़ा। इससे वे और मुद्रा छापने के लिए स्वतंत्र थे और उनकी अर्थव्यवस्था बच गई।

सोने की मांग में भारी अंतर हो सकता है। एक निश्चित आपूर्ति की दशा में इसकी क़ीमतों में भारी बढ़ोतरी भी हो सकती है। इसे उदाहरण के रूप में ऐसे समझ सकते हैं, वर्ष 2001 में क्लिक करें सोने की क़ीमत 260 डॉलर प्रति औंस थी। यह सितंबर 2011 में बढ़कर 1921 डॉलर प्रति औंस तक पहुँच गई। अभी इसकी क़ीमत गिरकर 1230 डॉलर प्रति औंस तक पहुँच गई है।

इस सबके बावजदू चर्चिल ने इसकी व्याख्या सबसे अधिक संभावना वाली मुद्रा के रूप में की थी।

कहाँ से आया सोना?

सोनामानव प्रजाति के लिये सोना विशेष महत्व की धातु है। इस पीली धातु की उत्पति को लेकर तमाम तरह की कहानियां प्रचलित है। वैज्ञानिक समुदाय में भी एक राय नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों के एक बड़े हिस्से का मानना है कि धरती के भीतर मौजूद सोना धरती की संपत्ति नहीं है और यह अंतरिक्ष से उल्कापिंडों के ज़रिए आया है।

इस क़ीमती पीली धातु की उत्पति के बारे में वैज्ञानिक जो तर्क पेश कर रहे हैं उसपर शायद ही किसी को भरोसा हो, लेकिन वैज्ञानिकों के पास इसके ठोस प्रमाण हैं।

वैसे सोने की उपलब्धता के बारे में पिछले कुछ दशकों से चर्चा में आए इस सिद्धांत पर वैज्ञानिक समुदाय को मुहर लगानी है। इस सिद्धांत की वकालत करने वालों का कहना है कि धरती के बाहरी तह, जो क़रीब 25 मील मोटा है, में घूलने वाले हर 1000 टन धातुओं में केवल 1.3 ग्राम सोना था।

धरती के बाहरी परत में मिल गया सोना

क़रीब साढ़े चार अरब साल पहले धरती की उत्पति के बाद इसकी सतह ज्वालमुखी और पिघले हुए चट्टानों से भरी पड़ी थी। इसके बाद लाखों सालों में धरती के बाहरी परत में घुलते हुए लोहा धरती के केंद्र में पहुंच गया है। संभवतः इसके साथ सोना भी पिघलकर धरती के बाहरी परत में मिल गया।

सिद्धांत यह है कि धरती के मुख्य हिस्से के गठन के बाद उल्का पिंडों की बौछार हुई जो धरती से टकराए। इन उल्का पिंडों में कुछ मात्रा में सोना था और इसने धरती के बाहरी सतह को सोने से भर दिया। सिद्धांत उल्का पिंडों की गतिविधियों से मेल खाता है, जैसा कि वैज्ञानिक समझते हैं। यह घटना क़रीब 3.8 अरब साल पहले घटी होगी।

दरअसल, सन 1970 के दशक में आपोलो के चंद्रमा पर उतरने के बाद उल्कापिंडों के ज़रिए धरती पर सोना आने का सिद्धांत दिया गया। वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर चट्टानों से लिए गए नमूनों में उसकी सतह से लिए गए नमूनों की तुलना में कम रेडियम और सोना पाया। यह धरती की सतह और चट्टानों में पाए जाने वाले सोने से भी कम था।

इससे यह माना गया कि धरती और चंद्रमा पर अंतरिक्ष से रेडियम युक्त उल्कापिंड गिरे थे। उल्कापिंडों की इस बारिश के बाद ये तत्व चंद्रमा पर तो वे वैसे ही पड़े रहे लेकिन धरती की आंतरिक गतिविधियों के कारण वे उसमें समाहित हो गए। इस विचार को ‘‘लेट वेनीर हाइपोथेसिस” कहा गया और यह ग्रहीय विज्ञान का एक मूलभूत सिद्धांत बन गया।

इसके दो साल बाद विलबोल्ट और ब्रिस्टल और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिर्वसिटी की एक टीम ने ग्रीनलैंड के कुछ चट्टानों का परीक्षण किया। ये चट्टान क़रीब 60 करोड़ साल पहले हुई उल्कापिंडीय गतिविधि के बाद धरती के मूल आवरण में थे। टीम ने इस 4.4 अरब साल पुराने चट्टानों में सोने की माजूदगी नहीं पाई, लेकिन उसमें टंगस्टन था। टंगस्टन और सोना में कुछ समानता होती है।

उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि ग्रीनलैंड के चट्टान उल्कापिंडों की बारिश से पहले धरती के बाहरी परत में उपलब्ध तत्वों को बताते हैं। धरती पर उल्कापिंडों की बारिश क़रीब 4.4 अरब से 3.8 अरब साल पहले हुई थी।

विलबोल्ड के प्रभाव वाला यह अध्ययन सितंबर 2011 में नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ जिसमें 1970 के दशक में धरती और चांद पर ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बने चट्टानों में सोना और रेडियम की उपलब्ध विभिन्न मात्रा की व्याख्या करता है। लेकिन, उनकी यह परिकल्पना बदल गई। पिछले साल मैरीलैंड विश्वविद्याल की एक टीम और मथिऊ तॉबॉल ने रूस के कुछ चट्टानों का परीक्षण किया। ये चट्टान ग्रीनलैंड के चट्टान से युवा थे। केवल 2.8 अरब साल पुराना। परीक्षण में पाया गया कि इन चट्टानों में सोना सहित लौह अयस्क से चुड़े तमाम धातु थे।

अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि इस समय फिर से विचार करने की ज़रूरत है। सोने की उत्पति के बारे में कुछ वैज्ञानिकों की राय भले ही अलग हो, लेकिन विलबोल्ड के मुताबिक़ अधिकतर वैज्ञानिक ग्रीनलैंड की पहाड़ियों पर किए गए शोध को आज भी सबसे विश्वसनीय मान रहे हैं।
आप कभी भी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हो सकते। लेकिन इस मॉडल की ख़ूबसूरती यह है कि इसमें सभी आंकड़े बेहतरीन तरीक़े से मिल रहे हैं। उनके समस्थानिक(आइसोटोप) के माप से पता चलता है कि धरती के भार का 0.5 फ़ीसदी हिस्सा उल्कापिंडों की बारिश से बना है।

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* श्रोत : http://www.bbc.co.uk/news/magazine-21969100

5 विचार “स्वर्ण मरिचिका : सोना कितना सोना है?&rdquo पर;

  1. हमारे पास लगभग ३०० ईसा पूर्व के चांदी के कुछ सिक्के हैं। जिनका आकार १/१२८ (कार्षापण) है। जिनको अर्धकाकिणी कहा जाता है। जिसकी तौल कीमत १/४ रत्ती है। व्यास = २.४९ मि. मी. मोटाई = 1.2 मि. मी. ये सभी सिक्के बहुत ही छोटे हैं।
    http://www.sangrah.org/2013/02/blog-post_819.html

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