मानव मन किसी भी नये तथ्य को समझने के लिये उसकी अपने आसपास की रोज़मर्रा की वस्तुओं और उनके व्यवहार से तुलना करके देखता है। इसी तथ्य के कारण शिक्षक हर सिद्धांत को समझाने कुछ उदाहरण देते रहते हैं। लेकिन यह बड़े पैमाने की वस्तुओं तक ही सीमित है, परमाणु स्तर पर यह नही किया जा सकता है; इस स्तर पर तुलना के लिये हमारे पास कोई रोज़मर्रा का उदाहरण नही होता है।
परमाणु और परमाण्विक कण हमारे आसपास के रोजाना की किसी भी अन्य वस्तुओं जैसे व्यवहार नहीं करते हैं, यह आधुनिक विज्ञान के सबसे बड़े आश्चर्यजनक तथ्यों मे से एक है। वे छोटी गेंदों के जैसे उछलते नहीं रहते हैं, इसके विपरीत वे तरंगों के जैसे व्यवहार करते हैं। स्टैंडर्ड मॉडल सिद्धांत इन कणों के गुण धर्मों और व्यवहार की व्याख्या गणितीय रूप से करता है, लेकिन इन कणों के व्यवहार को समझने के लिये हमारे पास रोज़ाना के जीवन में कोई उदाहरण नहीं है। इन कणो के व्यवहार की तुलना के लिये हमारे पास कोई उदाहरण नही है।
यदि आपने इस श्रृंखला के प्रारंभिक लेख नही पढ़े है, तो आगे बढ़ने से पहले उन्हे पढ़ें।
- मूलभूत क्या है ?
- ब्रह्माण्ड किससे निर्मित है – भाग 1?
- ब्रह्माण्ड किससे निर्मित है – भाग 2?
- ब्रह्माण्ड को कौन बांधे रखता है ?
- परमाणु को कौन बांधे रखता है?
- कमजोर नाभिकिय बल और गुरुत्वाकर्षण
भौतिक वैज्ञानिक इन छोटे कणों की व्याख्या के लिए क्वांटम शब्द का प्रयोग करते हैं जिसका अर्थ “टुकड़ों में वृद्धि या खंड” होता है। ऐसा इसलिए है कि कुछ गुणधर्म केवल सुनिश्चित मान ले सकते हैं। उदाहरण के लिये विद्युत आवेश इलेक्ट्रॉन के आवेश का पूर्णांको में गुणनफल ही हो सकता है, या वह क्वार्क के विद्युत आवेश(1/3 तथा 2/3 ) के पूर्णांको में गुणनफल ही हो सकता है। क्वांटम यांत्रिकी इन कणों की आपसी प्रतिक्रिया की व्याख्या करती है।
कुछ महत्वपूर्ण क्वांटम संख्यायें निम्नलिखित है :
- विद्युत आवेश : क्वार्क का विद्युत आवेश इलेक्ट्रॉन के विद्युत आवेश का 2/3 या 1/3 ही हो सकता है, लेकिन वे हमेशा पूर्णांक विद्युत आवेश वाले यौगिक कणों का निर्माण करते हैं। क्वार्क के अतिरिक्त अन्य कणों का आवेश इलेक्ट्रॉन के आवेश का पूर्णांक में गुणनफल ही होता है।
- रंग आवेश : एक क्वार्क तीन रंग-आवेश में से किसी एक का हो सकता है तथा ग्लुआन आठ संभव रंग-प्रतिरंग युग्मों से एक का हो सकता है। अन्य सभी कण रंग उदासीन होते हैं।
- पीढ़ी : क्वार्कों और लेप्टानों को पीढ़ी अलग करती है।
- स्पिन : यह एक और विचित्र लेकिन महत्वपूर्ण गुण है। बड़े पिंड जैसे ग्रह या कंचे घूर्णन के कारण कोणीय संवेग या चुंबकीय क्षेत्र होता है। कण भी एक नन्हा सा कोणीय संवेग या चुंबकीय क्षेत्र रखते हैं इसलिए उनके इस गुणधर्म को स्पिन कहते हैं। यह शब्द थोड़ा गलत है क्योंकि ये कण वास्तविकता में स्पिन या घूर्णन नहीं करते हैं। स्पिन का मान प्लैंक के स्थिरांक के 0, 1/2, 1, 3/2 गुणनफल में होता है।
पाली व्यतिरेक सिद्धांत (Pauli Exclusion Principle)

हम क्वांटम गुणधर्मों के प्रयोग से कणों का वर्गीकरण कर सकते हैं।
एक समय माना जाता था कि एक ही क्वांटम अवस्था में कोई भी दो कण एक ही समय एक ही स्थान में नहीं हो सकते हैं। इसे पाली व्यतिरेक सिद्धांत कहा जाता था। यह हर रसायानिक प्रक्रिया(Chemical Reaction) के मूल में है।
लेकिन बाद में कुछ ऐसे कणों की खोज हुई जो इस सिद्धांत का पालन नहीं करते हैं। पाली व्यतिरेक सिद्धांत का पालन करने वाले कणों को फर्मीयान तथा पालन नहीं करने वाले कणों को बोसान कहते हैं।
मान लीजिए किसी एक जैसे फर्मीयान कणों के एक बड़े परिवार के कुछ भाइयों को एक रात किसी ‘फर्मीयान मोटेल’ में बिताना है, साथ ही बोसान कणों के एक जैसे परिवार के कुछ भाइयों को ‘बोसान इन्न‘ होटेल में रात बीताना है। फर्मीयान झगड़ालू भाइयों की तरह होते हैं और वे किसी भी भाई के साथ कमरा बांटने से मना कर देते हैं और यह भी कोशिश करते हैं कि उनके कमरे एक दूसरे से ज्यादा से ज्यादा दूर हों। दूसरी ओर बोसान भाई एक ही कमरे में रहना पसंद करते हैं। फर्मीयान बोसान की तुलना में ज्यादा कमरे लेते हैं इसलिए मोटेल मालिक फर्मीयान के साथ व्यवसाय करना पसंद करते हैं। कुछ मोटेल मालिक तो बोसान को कमरा भी नहीं देते हैं।
फर्मीयान और बोसान
फर्मीयान
फर्मीयान कण का स्पिन अजीब होता है, वह स्पिन (1/2, 3/2,…) रखता है। क्वार्क और लेप्टान के साथ अधिकतर यौगिक कण जैसे प्रोटान और न्यूट्रॉन फर्मीयान है। अपने इस पूर्णांक के आधे स्पिन के कारण फर्मीयान पाली व्यतिरेक सिद्धांत का पालन करते हैं और एक अवस्था में एक स्थान पर एक समय में एक से ज्यादा फर्मीयान नहीं रह सकते हैं।
बोसान
बोसान का स्पिन पूर्णांक होता है, जैसे (0, 1, 2…).
सभी बल वाहक कण बोसान हैं। कुछ यौगिक कण (जैसे मेसान) जो फर्मीयान से बने होते हैं भी बोसान होते हैं।
* संभावित कण ग्रेवीटान स्पिन २ का कण होना चाहिये।
क्या आप जानते है?

बोसान का नाम भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बोस के सम्मान मे दिया गया है।
किसी परमाणु का केन्द्रक फर्मीयान या बोसान होना, उसके प्रोटान और न्यूट्रॉन की कुल संख्या के सम या विषम होने पर निर्भर करता है। सम संख्या होने पर वह बोसान होता है, विषम होने पर फर्मियान। हाल ही कुछ नयी खोजों से पाया है कि कुछ परमाणु इस गुणधर्म के कारण विचित्र व्यवहार करते हैं। इसका उदाहरण अति शीतलीकृत हीलियम(Supercooled Helium) है। हीलियम का केन्द्रक बोसान होता है, उसमें दो प्रोटान और दो न्यूट्रॉन होते हैं। बोसान केन्द्रक के कारण वह शीतल करने पर ठोस नहीं होता है। उसे परम शून्य तक शीतल करने पर वह अतिद्रव अवस्था(superliquid state) में आ जाता है। इस अतिद्रव के विचित्र गुण होते हैं जैसे शून्य गाढापन( zero viscosity ) और शून्य पृष्ठ तनाव(Surface Tension)। भविष्य में शायद हम बोसान केन्द्रक वाले परमाणु के कुछ और विचित्र गुण जानेंगे।
अगले भाग मे हमारे अनुत्तरित प्रश्न “भारी परमाणु केन्द्रक अस्थायी क्यों होता है ?” का उत्तर प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।
यह लेख श्रृंखला माध्यमिक स्तर(कक्षा 10) की है। इसमे क्वांटम भौतिकी के सभी पहलूओं का समावेश करते हुये आधारभूत स्तर पर लिखा गया है। श्रृंखला के अंत मे सारे लेखो को एक ई-बुक के रूप मे उपलब्ध कराने की योजना है।
सर हमारे लिए ether in physics पर एक लेख लिखिए plz.
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प्रशांत, एथर का आस्तित्व नही है, यह एक पुरानी थ्योरी है जो कि गलत सिद्ध हो चुकी है।
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सर न्यूट्रॉन बोसान है?
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नही! वह फ़र्मियान है। https://vigyanvishwa.in/qp/ पर लेख है उन्हे पढीये।
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तो सर किसी परमणु का केन्द्रक बोसोन कैसे हो सकता है ?समझ नही आया।
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कहाँ पढ़ लिया जुनैद?
बोसान बलवाहक कण होते है, जैसे फोटान, W बोसान, हिग्स बोसान। इसके अलावा सभी पदार्थ का निर्माण करने वाले कण फ़र्मियान है, इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्युट्रान!
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किसी परमाणु का केन्द्रक फर्मीयान या बोसान होना, उसके प्रोटान और न्यूट्रॉन की कुल संख्या के सम या विषम होने पर निर्भर करता है। सम संख्या होने पर वह बोसान होता है, विषम होने पर फर्मियान। हाल ही कुछ नयी खोजों से पाया है कि कुछ परमाणु इस गुणधर्म के कारण विचित्र व्यवहार करते हैं। इसका उदाहरण अति शीतलीकृत हीलियम(Supercooled Helium) है। हीलियम का केन्द्रक बोसान होता है, उसमें दो प्रोटान और दो न्यूट्रॉन होते हैं। बोसान केन्द्रक के कारण वह शीतल करने पर ठोस नहीं होता है। उसे परम शून्य तक शीतल करने पर वह अतिद्रव अवस्था(superliquid state) में आ जाता है। इस अतिद्रव के विचित्र गुण होते हैं जैसे शून्य गाढापन( zero viscosity ) और शून्य पृष्ठ तनाव(Surface Tension)। भविष्य में शायद हम बोसान केन्द्रक वाले परमाणु के कुछ और विचित्र गुण जानेंगे।
अगले भाग मे हमारे अनुत्तरित प्रश्न “भारी परमाणु केन्द्रक अस्थायी क्यों होता है ?” का उत्तर प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।
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जुनैद, सभी बल वाहक कण बोसान होते है। प्रोटोन, न्युट्रान, इलेक्ट्रान फर्मीयान होते है।
लेकिन किसी परमाणु के नाभिक में प्रोटान और न्युट्रान की कुल संख्या सम होने पर परमाणु नाभिक बोसान जैसे व्यवहार करता है। ध्यान दो परमाणु नही , परमाणु नाभिक जिसमे प्रोटान और न्यूट्रॉन दोनो है।
यह व्यवहार छोटे परमाणु नाभिक जैसे हीलियम् में ही दिखता है।
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Ooh ok Thank you
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Insaan invisible ho sakta h aisa koi research ho gaya h kya
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आपके प्रश्न का उत्तर इस लेख मे है : https://vigyanvishwa.in/2015/04/19/theinvisibleman/
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Quark kisse milkar banr\e hote hai
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क्वार्क मूलभूत है, इन्हें तोडा नहीं जा सकता।
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उन्हें आज तोड़ा नही जा सकता
कल की बात अलग है
एक जमाना था अनु भी नही टूटते थे
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सर आपको बहुत -बहुत धन्यवाद ,
मैं कुछ और भी जानने की इच्छा व्यक्त करता हूँ.
१ यदि कोई यान प्रकाश के वेग के बराबर वेग प्राप्त करता है तो समय का प्रबाह धीमा हो जाता है ,,
ऐसा मैंने आपके किसी लेख मैं पड़ा है और ,स्टीफन होकिंग के एक प्रोगराम डिस्कवरी चेनल पे भी देखा ,और उनका कहना ये भी है की ३००००० किमी/सेकंड से ज्यादा वेग हो तो समय रिनात्मक हो जाता है , या समय संकुचित हो जाता है ,लेकिन ऐसे कैसे हो सकता है ? क्रप्या समझाने का कस्ट करें ,
मेरा मानना है की ,हम ३००००० किमी/सेकंड से ज्यादा वेग चलते है ,,और देखते है की एक सेकंड के समय मैं १/१०० वे भाग के बराबर व्रदि हो जाती है
( १ रियल सेकंड =१.०१ रियल सेकंड )और यान अपने स्थिर वेग से चलता है और वो एक सेकंड मैं ३०३०००किमि चलता है दुसरे सेकंड मैं ३०३०००किमि /सेकंड के वेग से चलता है तब उसके समय मैं हुई वर्धि १/१००वे भाग के बराबर संकुचित होता है अतः १ सेकंड =१.०२०१ सेकंड और वो समय मैं ३०६०३०किमि के दुरी तय करेगा ..तो ये क्रम कुछ और सेकंड तक चलेगा तो 1 सेकंड मैं2सेकंड और वेग भी दोगुना हो जायेगा तो इसे क्या कहेंगे ,,समय का संकुचुत होना या वेग मैं वृधि हो जाना.
दोनों बातो मैं एक बात ही माँननी होगी तो आप किसे मानेगे ?
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सापेक्षतावाद संबधित लेखो मे आपके प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा।
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ये जानकारी अत्यंत मह्त्वपूर्ण है और मेरे कुछ सवाल है जिनके बारें मैं मैं बिस्तर से जानना चाहूँगा
(1)ताप क्या है ?,क्या ताप का प्रभाब गुरुत्वीय बल को घटा या बड़ा सकता है ? यदि हाँ तो ताप बड़ने पर गुरुत्वीय बल घटेगा या बढेगा ?
(२)ताप घटने पर गुरुत्वीय बल घटेगा या बढेगा ? यदि बढेगा तो हीलियम परम शून्य तक शीतल करने पर वह अतिद्रव अवस्था मैं क्यों रहती है.?
(३) गुरुत्वीय बल और ताप मैं संबध क्या है ?
(४) इस प्रस्थ मैं बोसन नाम बहुत बार जिक्र किया तो ये बताने कास्ट करें की इस नाम को कब पर्भासित किया गया ? यदि ये नाम हिग्स-बोसन के पहले का है तो हिग्स-बोसन मैं जो भारत के वैज्ञानिक का नाम का जिक्र है तो हम समझते हैं की हम फिर से ठग लिए गये हैं…….
जैसे मेरी सोच है हो सकता की मैं गलत हो ..लेकिन मेरे सवालों का जबाब प्लीज मेरी मेल aknsu444@gmail.com पर देनेकी क्रपा करें आपकी अति क्रपा होगी ,क्योंकि इस पाज को सायद मैं न सका …
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1.ताप विद्युत-चुंबकीय(Electro Magnetic) ऊर्जा का ही एक रूप है जोकि फोटान से ही बना होता है। इसका गुरुत्व पर कोई प्रभाव नही पड़्ता है।
2.ताप का गुरुत्व पर कोई प्रभाव नही पढता है। परम शुन्य पर शीतलीकृत करने पर हीलीयम के परमाणु अपनी गतिज ऊर्जा बंद कर देते है, यह गुरुत्व से भिन्न है। ध्यान रहे कि गुरुत्व बल सबसे कमजोर बल है।
3. 1,2 मे उत्तर दिया गया है।
4. बोसान एक तरह के परमाण्विक कण है, इसके कई प्रकार है जिनमे फोटान, हिग्स बोसान प्रमुख है। बोसान नाम सत्येन्द्रनाथ बोस के सम्मान मे है। हिग्स बोसान यह बोसान का ही एक प्रकार जिसकी कल्पना और खोज बाद मे हुयी। हम लोग ठगे नही गये है, बोस का तो सम्मान बड़ा है।
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bahut upyogi jankari,aabhar…
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बेहतर…
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