1928 मे नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी मैक्स बार्न ने जाट्टीन्जेन विश्वविद्यालय मे कहा था कि
“जैसा कि हम जानते है, भौतिकी अगले छः महिनो मे सम्पूर्ण हो जायेगी।”
उनका यह विश्वास पाल डीरेक के इलेक्ट्रान की व्यवहार की व्याख्या करने वाले समीकरण की खोज पर आधारित था। यह माना जाता था कि ऐसा ही समिकरण प्रोटान के लिए भी होगा। उस समय तक इलेक्ट्रान के अतिरिक्त प्रोटान ही ज्ञात मूलभूत कण था। इस समिकरण के साथ सैद्धांतिक भौतिकी(Theoritical Physics) का अंत था, इसके बाद जानने के लिए कुछ भी शेष नही रह जाता। लेकिन कुछ समय बाद एक नया कण न्यूट्रॉन खोजा गया। इसके बाद मानो भानूमती का पिटारा खूल गया! इतने सारे नये कण खोजे गये कि उनके नामकरण के लीए लैटीन अक्षर कम पढ़ गये।
अब हम जानते है कि साधारण पदार्थ फर्मीयान समूह के कणो से बना होता है। इस समूह मे छः प्रकार के क्वार्क तथा छः प्रकार के लेप्टान होते है। प्रति-पदार्थ के लिए भी इसी तरह छः प्रकार के प्रति–क्वार्क तथा छः प्रकार के प्रति-लेप्टान होते है। पदार्थ या प्रति पदार्थ को बार्यानिक पदार्थ भी कहते है। इसके अतिरिक्त बल वाहक कण बोसान भी हैं।
मैक्स बार्न का सपना तोड़ने के लिए मानक प्रतिकृती के कण ही काफी नही थे कि एक और रहस्यमय पदार्थ सामने आ गया जिसे श्याम पदार्थ(Dark Matter)कहते है।
अनुपस्थित द्रव्यमान समस्या –Missing mass problem
1933 मे खगोलविज्ञानी फ़्रिट्झ झ्वीकी आकाशगंगाओं की गति का अध्य्यन कर रहे थे। झ्वीकी ने एक आकाशगंगाओं के समुह की दीप्ती के आधार पर उनके द्रव्यमान की गणना की। उन्होने दूसरी विधी से उसी आकाशगंगाओं के समुह का द्रव्यमान की गणना की, उन्होने पाया कि दूसरी गणना से प्राप्त द्रव्यमान पहली गणना से 400 गुणा ज्यादा था। निरिक्षित द्रव्यमान तथा गणना किये गये द्रव्यमान का अंतर “अनुपस्थित द्रव्यमान समस्या(Missing mass problem)” के नाम से जाता है। झ्वीकी की इस खोज को 1970 दशक के अंत तक भूला दिया गया , जब कुछ वैज्ञानिको ने पाया कि उनके कुछ निरिक्षणो की व्याख्या भारी मात्रा मे किसी अज्ञात पदार्थ से ही हो सकती है। वैज्ञानिको के अनुसार ब्रह्मांड की संरचना और उसके आकार के लिए आधार एक अज्ञात, अदृश्य पदार्थ प्रदान कर रहा है। वर्तमान मे वैज्ञानिक इस रहस्यमय श्याम पदार्थ की खोज आकाशगंगाओ की गति की व्याख्या के अतिरिक्त ब्रह्मांड की उत्पत्ती तथा भविष्यके सिद्धांतो के प्रमाणीकरण के लिए कर रहे है।

द्रव्यमान और भार : साधारण व्यक्ति के लिए दोनो एक ही है। वैज्ञानिको के लिए द्रव्यमान किसी पदार्थ की मात्रा को कहते है जबकि भार उस पदार्थ पर गुरुत्वाकर्षण से पड़ने वाला प्रभाव है। भार पदार्थ के द्रव्यमान पर निर्भर करता है। जितना ज्यादा द्रव्यमान होगा, उतना ज्यादा ही गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा आकर्षण और उतना ही ज्यादा भार। जब कोई अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष मे होता है, तब वह भारहीन होता है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण शुन्य है। लेकिन उस यात्री का शरीर और द्रव्यमान दोनो बरकरार है।
वैज्ञानिको के अनुसार ब्रम्हांड के कुल द्रव्यमान का 90-99 प्रतिशत द्रव्यमान अनुपस्थित है। “अनुपस्थित द्रव्यमान” एकतरह से गलत शब्द है क्योंकि तथ्य यह है कि इस पदार्थ द्वारा उत्सर्जित प्रकाश अनुपस्थित है, जिससे वह दिखायी नही दे रहा है। वैज्ञानिक कह सकते है कि श्याम पदार्थ उपस्थित है लेकिन वह उसे देख नही सकते है। वैज्ञानिको के अनुसार यह शर्मनाक है कि हम ब्रम्हांड के 90 प्रतिशत भाग को खोज नही पाये है।
आकाशगंगा के द्रव्यमान की गणना विधी
ब्रह्मांड के द्रव्यमान की गणना कैसे की जाये ? ब्रह्माण्ड की सीमाये अज्ञात है, इस कारण से ब्रह्मांड का वास्तविक द्रव्यमान भी अज्ञात होगा। लेकिन वैज्ञानिक ब्रह्मांड के अनुपस्थित द्रव्यमान की गणना प्रतिशत मे करते है जो वास्तविक संख्या नही है। अधिकतर दृश्य पदार्थ आकाशगंगाओं के रूप मे गुच्छो मे है, इसलिए सभी आकाशगंगाओं का कुल द्रव्यमान ब्रह्मांड के कुल द्रव्यमान की गणना के लिए पर्याप्त होगा। लेकिन असिमित संख्या मे आकाशगंगाओं के द्रव्यमान का योग करना असंभव है, इसलिए वैज्ञानिक ब्रह्मांड मे अनुपस्थित द्रव्यमान का अनुमान आकाशगंगा तथा आकाशगंगा समूह के अनुपस्थित द्रव्यमान की गणना से लगाते है। वैज्ञानिक एक से ज्यादा विधियों से आकाशगंगाओं के द्रव्यमान की गणना करते है जिससे उन्हे उस द्रव्यमान की मात्रा पता चल जाती है जो देखा नही जा सकता है।
डाप्लर प्रभाव: वैज्ञानिक आकाशगंगाओ की गति के अध्यन के लिए डाप्लर प्रभाव का प्रयोग करते है। डापलर प्रभाव यह किसी तरंग(Wave) की तरंगदैधर्य(wavelength) और आवृत्ती(frequency) मे आया वह परिवर्तन है जिसे उस तरंग के श्रोत के पास आते या दूर जाते हुये निरीक्षक द्वारा महसूस किया जाता है। यह प्रभाव आप किसी आप अपने निकट पहुंचते वाहन की ध्वनि और दूर जाते वाहन की ध्वनि मे आ रहे परिवर्तनो से महसूस कर सकते है।
इसे वैज्ञानिक रूप से देंखे तो होता यह है कि आप से दूर जाते वाहन की ध्वनी तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य(wavelength)बढ जाती है, और पास आते वाहन की ध्वनि तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य कम हो जाती है। दूसरे शब्दो मे जब तरंगदैधर्य(wavelength) बढ जाती है तब आवृत्ती कम हो जाती है और जब तरंगदैधर्य(wavelength) कम हो जाती है आवृत्ती बढ जाती है।
डाप्लर प्रभाव प्रकाश तरंगो पर भी कार्य करता है। जब प्रकाश श्रोत पास आता है तब प्रकाश ज्यादा निला होता है जिसे निला विचलन(Blue shift) कहते है। जब प्रकाशश्रोत दूर ज्यादा है तब प्रकाश ज्यादा लाल हो जाती है जिसे लाल विचलन(red shift) कहते है। विचलन की मात्रा श्रोत की गति पर निर्भर करती है, जितनी ज्यादा गति उतना ज्यादा विचलन। डाप्लर प्रभाव से आया विचलन नंगी आंखो से देखा नही जा सकता है, वैज्ञानिक इसे मापने के लिए स्पेक्ट्रोस्कोप उपकरण का प्रयोग करते है। डाप्लर प्रभाव से तारो और आकाशगंगाओं की गति की गणना की जा सकती है।
विधि 1. घूर्णन गति:

डाप्लर प्रभाव के प्रयोग से वैज्ञानिक आकाशगंगाओ की गति के बारे मे काफी कुछ जानते है। यह ज्ञात है कि आकाशगंगाएँ घूर्णन करती है क्योंकि आकाशगंगा के एक छोर से निले विचलन वाला प्रकाश तथा दूसरे छोर से लाल विचलन वाला प्रकाश प्राप्त होता है। इसका अर्थ होता है कि एक छोर पृथ्वी की ओर आ रहा है, जबकि दूसरा छोर पृथ्वी से दूर जा रहा है। इस विचलन की मात्रा से घूर्णन गति की गणना की जा सकती है। घूर्णन गति के ज्ञात होने के बाद उस आकाशगंगा के द्रव्यमान की गणना की जा सकती है।
जब वैज्ञानिको ने आकाशगंगा की घूर्णन गति पर ध्यान दिया उन्हे एक विचित्र तथ्य ज्ञात हुआ। आकाशगंगा मे एक सामान्य अकेला तारे का व्यवहार हमारे सौर मंडल के किसी ग्रह के जैसे होना चाहिये अर्थात तारे की गति आकाशगंगा के केन्द्र से दूरी अनुपात मे कम होना चाहिये। जितनी ज्यादा दूरी उतनी कम गति। लेकिन डाप्लर प्रभाव के निरिक्षण के अनुसार कुछ आकाशगंगाओं मे तारो की गति केन्द्र से दूर होने के बावजूद भी कम नही होती है। इसके विपरित तारो की गति इतनी ज्यादा होती है कि आकाशगंगा को बिखर जाना चाहिये क्योंकि उन आकाशगंगाओ मे मापा गया पदार्थ का द्रव्यमान आकाशगंगा को सम्हाले रखने लायक गुरुत्वाकर्षण उत्पन्न करने मे सक्षम नही है।
इन उच्च घूर्णन गति वाली आकाशगंगाये यह दर्शाती है कि इन आकाशगंगाओ मे गणना किये गये द्रव्यमान से ज्यादा द्रव्यमान होना चाहिये। वैज्ञानिको के अनुसार यदि ये आकाशगंगा किसी अदृश्त पदार्थ के मण्डल से घीरी हुयी हो तभी यह आकाशगंगा इस उच्च घूर्णन गति पर स्थायी रह सकती है।
विधि 2. उत्सर्जित प्रकाश मात्रा का निरिक्षण:

आकाशगंगाओ(या उनके समुहो) के द्रव्यमान की गणना के लिए वैज्ञानिक उनके द्वारा उत्सर्जित प्रकाश का निरिक्षण करते है। पृथ्वी तक पहुंचने वाले प्रकाशकी मात्रा से वैज्ञानिक उसके तारो की संख्या का अनुमान लगाते है। तारो की संख्या के ज्ञात होने के पश्चात उस आकाशगंगा के द्रव्यमान की गणना कर सकते है।
फ्रिट्झ झ्वीकी ने इन दोनो विधियो से कोमा आकाशगंगा समूह के द्रव्यमान की गणना की थी। जब उन्होने दोनो आंकड़ो की तुलना की तब उन्हे अनुपस्थित द्रव्यमान समस्या का पता चला था। इन आंकड़ो से पता चला कि हम ब्रह्मांड के १० प्रतिशत भाग को ही देख पा रहे है बाकि ९०% भाग अदृश्य है।
श्याम पदार्थ (Dark Matter) की खोज
श्याम पदार्थ की खोज मे वैज्ञानिक क्या ढुंढते है ?
श्याम पदार्थ को देखा नही जा सकता, उसे स्पर्श नही किया जा सकता है लेकिन उसका आस्तित्व है। श्याम पदार्थ की संभावनाये इलेक्ट्रान के द्रव्यमान से १००,००० गुणा हल्के परमाण्विक कणो से लेकर सूर्य से करोड़ो गुणा भारी श्याम वीवर तक है। वैज्ञानिको के अनुसार श्याम पदार्थ के संभावित उम्मीदवारों की दो श्रेणीयां है जिन्हे माचो(Massive Astrophysical Compact Halo Object – भारी खगोलिय घना मण्डलाकार पिण्ड) तथा विम्प(WIMP-Weakly Interacting Massive Particle कमजोर प्रतिक्रिया वाले भारी कण) कहा जाता है। ये नाम थोड़े अजीब है लेकिन याद रखने के लिए आसान है। माचो विशालकाय आकार के श्याम पदार्थ पिण्ड होते है तथा उनका आकार किसी छोटे तारे से लेकर महाकाय श्याम वीवर तक का हो सकता है। माचो साधारण पदार्थ के ही बने होते है जिसे बार्योनिक पदार्थ कहते है। दूसरी ओर विम्प नन्हे परमाण्विक कण होते है जो साधारण पदार्थ के कणों से भिन्न कणों से बने होते है इसलिए उन्हे नान-बार्यानिक पदार्थ कहते है। खगोल वैज्ञानिक माचो की खोज कर रहे है तथा कण-भौतिक विज्ञानी(Particle Physicists) विम्प की खोज कर रहे है।
खगोल वैज्ञानिक तथा कण-भौतिक वैज्ञानिक श्याम पदार्थ की अवधारणा पर सहमत नही है। कणखगोलभौतिकी केन्द्र बार्कले विश्वविद्यालय के वाल्टर स्टाकवेल के अनुसार
“श्याम पदार्थ की प्रकृति कण भौतिकी तथा खगोलविज्ञान पर गहरा प्रभाव डालेगी। विवाद उस जगह शुरू होता है जब हम यह सोचते है कि वह क्या हो सकता है, साधारण बार्योनिक पदार्थ या नान-बार्योनिक पदार्थ”।
माचो बहुत दूर है तथा विम्प बहुत छोटे है, इसलिए खगोल विज्ञानी तथा कण-भौतिक विज्ञानियों ने उनके आस्तित्व को प्रमाणित करने के भिन्न तरीके ढुंढ निकाले है।
माचो (MACHO)
महाकाय घने मण्डलाकार पिंड (माचो) अप्रकाशित होते है और आकाशगंगाओं के आसपास एक मण्डल बनाते है। माचो सामान्यतः भूरे वामन तारे तथा श्याम वीवर को माना जाता है। कई अन्य खगोलिय पिंडो की तरह इनके आस्तित्व का पूर्वानुमान सैधांतिक रूप से लगा लिया गया था। भूरे वामन तारे का पूर्वानुमान तारे के बनने की प्रक्रिया से ज्ञात था, वहीं श्याम वीवर के आस्तित्व का प्रमाण आईन्स्टाईन के साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत ने दिया था।
भूरे वामन तारे(Brown Dwarf) : ये मुख्यतः हायड्रोजन से बने होते है- हमारे सूर्य के जैसे लेकिन आकार मे छोटे होते है। हमारे सूर्य के जैसे तारे अपने गुरुत्व से संपिड़ित होकर उच्च दबाव के कारण हायड्रोजन को हिलियम मे बदलना शुरू कर देते है, इस प्रक्रिया मे ऊर्जा उष्णता और प्रकाश के रूप मुक्त होती है। भूरे वामन तारे साधारण तारो से अलग होते है। इनका द्रव्यमान कम होता है जिससे उनका गुरुत्व उन्हे संपिड़ित कर हायड्रोजन को हिलियम मे बदलने की प्रक्रिया शुरू नही कर पाता है। भूरे वामन तारे सही अर्थो मे “तारे” नही हैं, वे सिर्फ़ हायड्रोजन की विशालकाय गेंद है जो गुरुत्व से बंधी है। भूरे वामन तारे कुछ मात्रा मे उष्मा और प्रकाश उत्सर्जित करते है,हमारे बृहस्पति की तरह।
श्याम वीवर (Black Holes): भूरे वामन तारों के विपरित श्याम वीवर मे पदार्थ अत्याधिक होता है। गुरुत्व के प्रभाव के कारण सारा पदार्थ एक बहुत ही छोटे क्षेत्र मे संपिड़ित हो जाता है। श्याम वीवर इतना घना होता है कि इसके गुरुत्व के प्रभाव से कुछ भी नही बच सकता है, प्रकाश भी नही। तारे इस श्याम वीवर से सुरक्षित दूरी पर उसी तरह परिक्रमा करते है, जिस तरह ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है। श्याम वीवर कोई प्रकाश उत्सर्जित नही करते है। वे सच मे ही काले श्याम होते है।
माचो की खोज
खगोलशास्त्रीयों को माचो की खोज के लिए काफी सारी परेशानीयां आयी है। उन्हे एक ऐसे पिंड की खोज करनी थी जो खगोलिय दूरीयो पर है और प्रकाश उत्सर्जित नही करता है। लेकिन यह कार्य अब नयी तकनिको से आसान होते जा रहा है।
1.हब्बल से खोज : हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला हमारी और पास की आकाशगंगाओं के मण्डल मे भूरे वामन तारों की खोज मे सक्षम है। लेकिन हब्बल से ली गयी तस्वीरो मे खगोलशास्त्रीयों की उम्मीद से कम भूरे वामन तारे पाये गये। जान्स हापकिन्स विश्वविद्यालय के विज्ञानी फ्रान्सेस्को पार्सेक के अनुसार ” हमे हब्बल की तस्वीरो मे एक सीरे से दूसरे सीरे तक धूंधले लाल तारो की आशा थी।” इस खोज के परिणाम निराशाजनक थे, हब्बल खोज के परिणामो के अनुसार आकाशगंगा के मण्डल का ६% भाग ही भूरे वामन तारो का है।
2.गुरुत्विय लेंसींग(Gravitional Lensing) :खगोलशास्त्री श्याम पदार्थ की खोज के लिए गुरुत्विय लेंसीग तकनिक का प्रयोग करते है। जब एक भूरा वामन तारा या श्याम वीवर किसी प्रकाश श्रोत जैसे आकाशगंगा तथा पृथ्वी पर किसी निरिक्षक के मध्य से गुजरता है , गुरुत्विय लेंस के जैसे प्रभाव उत्पन्न करता है। यह पिंड प्रकाश किरणो को इस तरह से फोकस करता है कि श्रोत ज्यादा प्रदिप्त नजर आता है। खगोलविज्ञानी ऐसे माचो की खोज मे रात मे आकाश के विभिन्न हिस्सो के चित्र लेते रहते है।

माचो प्रकाश को अवरूद्ध क्यों नही करते है ? श्याम पदार्थ एक लेंस के जैसे कार्य कैसे करता है ? इन प्रश्नो का उत्तर है, गुरुत्वाकर्षण। १९१९ मे आइंस्टाइन ने सिद्ध किया था कि गुरुत्वाकर्षण प्रकाश को मोड़ सकता है। उन्होने पूर्वानुमान लगाया था कि कोई तारा यदि सूर्य के पिछे हो तब वह सूर्यग्रहण के दौरान दिखायी देगा। आइंस्टाइन सही थे, सूर्य के पिछे का तारा सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य के बाजू मे दिखायी दे रहा था क्योंकि सूर्य का गुरुत्व उस तारे की प्रकाश किरणो को मोड़ रहा था।
खगोलविज्ञानी गुरुत्विय लेंस तकनिक से माचो को खोज लेते है तथा उसकी दूरी तथा लेंस प्रभाव के अंतराल द्वारा उसके द्रव्यमान की गणना भी कर लेते है। गुरुत्विय लेंस तकनिक आईंस्टाईन के समय से ज्ञात है लेकिन माचो की खोज के लिए इसका प्रयोग हाल के वर्षो मे प्रचलित हुआ है। इस तकनिक से भी आकाश के सर्वे मे माचो की संख्या भी आशा के अनुरूप नही पायी गयी है।
3.परिक्रमा करते तारे (Rotating Star): किसी श्याम वीवर की खोज का एक उपाय उसके द्वारा आसपास के पिंडो पर डाला जाने वाले गुरुत्वाकर्षण है। जब कोई तारा किसी अज्ञात अदृश्य बिंदू की परिक्रमा करते दिखायी देता है, वहां पर श्याम वीवर होने का संदेह होता है। इस विधी से श्याम वीवरो को खोजा जा चुका है।
लेकिन श्याम वीवरो तथा भूरे वामन तारो की खोज के बावजूद भी उनकी संख्या और द्रव्यमान इतना नही है कि वे “अनुपस्थित द्रव्यमान समस्या” का समाधान कर सकें, इसलिए अब अधिकतर वैज्ञानिक मानते है कि श्याम पदार्थ बार्यानिक माचो तथा नान-बार्योनिक विम्प का मिश्रण है।
विम्प(WIMP)
कण-भौतिकी वैज्ञानिको के अनुसार श्याम पदार्थ सूक्ष्म नान-बार्योनिक कणो से बना हुआ है जो अन्य साधारण पदार्थ कणो से अलग है। परमाणु से छोटे इन विम्प(Weakly Interactive Massive Particles कमजोर प्रतिक्रिया वाले भारी कण) कणो मे का द्रव्यमान होता है और ये कण साधारण कणो से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा प्रतिक्रिया करते है लेकिन साधारण पदार्थ के आरपार निकल जाते है। विम्प का द्रव्यमान कम होता है इसलिए अनुपस्थित द्रव्यमान की व्याख्या के लिए उनका बड़ी संख्या मे होना अनिवार्य है। इसका अर्थ यह है कि हर क्षण करोड़ो विम्प कण साधारण पदार्थ के आरपार जा रहे है, पृथ्वी के, आपके और मेरे आरपार ! कुछ लोगो का मानना है कि विम्प कण का प्रस्ताव इसलिए किया गया था कि यह अनुपस्थित पदार्थ समस्या का एक आसान हल था लेकिन कुछ वैज्ञानिक के अनुसार विम्प कणो का आस्तित्व है। वाल्टर स्टाकवेल के अनुसार खगोलविज्ञानी मानते है कि अनुपस्थित पदार्थ का कुछ भाग विम्प से बना होना चाहीये। वे आगे कहते है
“माचो का समूह खुद यह प्रमाणित कर देगा कि माचो की संख्या इतनी नही है कि श्याम पदार्थ की कुल मात्रा की व्याख्या कर सके।”
विम्प की खोज के साथ समस्या यह है कि वे साधारण पदार्थ के साथ प्रतिक्रिया नही करते है, जिससे उनकी उपस्थिती पता कर पाना कठीन हो जाता है।
विम्प की जांच : विम्प की जांच की आशाएं इस उम्मीद पर है कि कभी कोई विम्प कण साधारण पदार्थ से गुजरते हुये किसी साधारण कण से टकराएगा। विम्प कण साधारण पदार्थ के आरपार जा सकते है इसलिए उनके ठोस साधारण पदार्थ के कणो से टकराने की दूर्लभ घटना की जांच से ही विम्प के आस्तित्व को प्रमाणित किया जा सकता है। डा. बर्नार्ड सेडौलेट तथा वाल्टर स्टाकवेल बार्कली विश्वविद्यालय मे इसी योजना पर कार्य कर रहे है। इस प्रोजेक्ट मे एक विशाल क्रिस्टल को परम शुन्य (Absolute Zero) के पास तक शीतल किया जायेगा, इस अवस्था मे परमाणु की गति बंद हो जाती है और वे स्थिर हो जाते है। किसी विम्प के किसी परमाण्विक कण से टकराने से उत्पन्न ऊर्जा उपकरणो उष्मा के रूप मे दर्ज हो जाएगी। यह प्रयोग जारी है लेकिन अभी तक कोई परिणाम नही आया है।
इसी तरह का एक प्रयोग अंटार्कटिका महाद्विप मे जारी है। यह प्रोजेक्ट जिसे अमांडा (AMANDA Antarctica Muon and Neutrino Detector Array) नाम दिया गया है, शिकागो विश्वविद्यालय, प्रिन्सटन विश्वविद्यालय तथा एटी & टी का संयुक्त प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट मे उपकरण अंटार्कटिका की बर्फ की सतह के निचे लगाये गये है। इस प्रयोग मे क्रिस्टल की जगह अंटार्कटिका की बर्फ का उपयोग किया जा रहा है।
यह भी पढे़ : श्याम पदार्थ पर एक और लेख(यह लेख श्याम पदार्थ की विस्तृत व्याख्या करता है।)
अगले भाग मे श्याम पदार्थ का ब्रम्हांड के भूत और भविष्य पर प्रभाव
Sir,
Super massive black hole itne bade kaise ho jate h ??
please explain.
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Dark energy भी spacetime मे आई विकृति के कारण बनती है अौर यही कारण हैं कि universe का विस्तार हो रहा है
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सर मुझे लगता है किdark matter space time मे आई विकृति के कारण बनता है
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agar dark matter hai toh usme bhi koi energy hoti hai
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पदार्थ और ऊर्जा एक ही वस्तु के दो रूप है।
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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awesome
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माचो -यह शब्द सौन्दर्य शास्त्र में यहीं से लिया गया है क्या ?:)
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बेहतरीब ब्लॉग ..जिस पर हिंदी अंतर्जाल को गर्व होना चाहिए मुझे खुशी है कि मैं आज आप तक पहुंच पाया । फ़ौलोवर का औप्शन नहीं है इसलिए बुकमार्क ही कर लिया है आपको
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