चंद्रमा पर मानव के 50 वर्ष विशेष : सोवियत संघ अमरीका से कैसे पिछड़ा ?


moonlandingheaderसोवियत संघ(वर्तमान मे रुस) अंतरिक्ष होड़ मे अमरीका से आगे था। उसके नाम अंतरिक्ष मे कई उपलब्धियाँ थी लेकिन वह चंद्रमा पर मानव भेजने मे अमरीका से पीछड़ गया था। इस लेख मे हम इन कारणो की समीक्षा करते है।

सोवियत संघ ने पहला कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक 1957 में लाँच किया था। सोवियत संघ ने सबसे पहले मानव को अंतरिक्ष मे भेजा था, उस मानव का नाम यूरी गागारीन था। 1969 में अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के ओपोलो 11 के सफ़ल होने और चंद्रमा पर पहले मानव के उतरने से पहले भी रूस चंद्रमा पर पहुंचने की होड़ में दो बार अमरीकियों को पीछे छोड़ चुका था। ये दो सफ़लताए थी, लूना 2 यान का चंद्रमा की सतह तक पहुंचना और लूना 9 का चंद्रमा की सतह पर सफ़लतापूर्वक साफ़्ट लैंडींग करना।

अंतरिक्ष की प्रारंभिक स्पर्धा

जॉन ह्यूबोल्ट
जॉन ह्यूबोल्ट

चंद्रमा पर सबसे पहले पहुंच कर, सोवियत संघ ने अंतरिक्ष की रेस को उल्लेखनीय गति दी। यह स्पर्धा भी सोवियत संघ ने शुरू की थी। सोवियत संघ ने पहला कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक 1957 में लाँच किया था। इसके बाद मास्को फ़रवरी, 1966 में चंद्रमा की सतह पर लूना 9 के ज़रिए पहली सॉफ्ट लैंडिंग करने में कामयाब रहा और चंद्रमा की सतह की तस्वीर भी सबसे पहले सोवियत संघ ने ही उतारी। चंद्रमा की सबसे पहली तस्वीरें सोवियत के लूना 9 ने 1966 में पृथ्वी पर भेजी थीं।

दो महीने बाद, लूना 10 चंद्रमा की कक्षा के चक्कर लगाने वाला पहला अंतरिक्ष यान बना था। इससे चंद्रमा की सतह के बारे में अध्ययन करने में मदद मिली थी। पहले दोनों देशों के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने माना था कि चंद्रमा की सतह पर सीधे उतरने की कोशिश करने के बदले अप्रत्यक्ष तौर पर कोशिश करना ज़्यादा बेहतर होगा।

1961 में नासा के वैज्ञानिक जॉन ह्यूबोल्ट ने लूनार आर्बिट रेंडेवू (एलओआर) नज़रिया दिया, जिसमें कहा गया कि एक मदरशिप होगा जो चंद्रमा की कक्षा के चक्कर लगाएगा और एक छोटा अंतरिक्ष यान उससे अलग होकर सतह पर लैंड करेगा। ह्यूबोल्ट के मुताबिक़ इस नज़रिए से समय और ईंधन दोनों बचेगा। इसके साथ ही अंतरिक्ष उड़ान के विभिन्न चरणों जैसे राकेट के विकास, जांच, टेस्टिंग, निर्माण, अंतरिक्ष यान को खड़ा करना, उल्टी गिनती और प्रक्षेपण सब आसान हो जाएंगे। इसी तरीक़े से अमरीकी चंद्रमा की सतह पर उतरने में सफ़ल हुए थे। हालांकि 1966 में सोवियत संघ चंद्रमा पर पहुंचने के बेहद क़रीब पहुंच गया था।

सफ़ल सोवियत चंद्र अभियान

लूना 2

लूना 2 की एक प्रतिकृति
लूना 2 की एक प्रतिकृति

यह अंतरिक्ष यान 12 सितंबर, 1959 को लाँच किया गया था। सोवियत संघ के अधिकारियों ने गोपनीयता के बीच एक ऐसा काम किया था जिससे विश्व को उनकी उपलब्धि के बारे में पता चला था। उन्होंने ब्रिटिश अंतरिक्ष यात्री बर्नाड लोवल से अपने इस अभियान की गोपनीय जानकारी जानबुझकर साझा की थी। लोवल ने इस अभियान की सफ़लता के बारे में विश्व को बताया। उन्होंने अमरीका को भी इस उपलब्धि के बारे में जानकारी दी जो पहले सोवियत संघ की उपलब्धि को मानने के लिए तैयार नहीं था।

लूना 2 चंद्रमा की सतह पर 14 सितंबर, 1959 की मध्य रात्रि के बाद क़रीब 12 हज़ार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से टकराई थी। बहुत संभव है कि अंतरिक्ष यान अपने उपकरणों सहित नष्ट हो गया होगा।

यह अभियान शीत युद्ध के दौरान एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ से ज़्यादा साबित हुआ था।

लूना 2 से वैज्ञानिक प्रयोग भी हुए थे- चंद्रमा का कोई प्रभावी चुंबकीय क्षेत्र नहीं था और ना ही कोई विकिरण पट्टा(रेडिएशन बेल्ट) मिला था।

यूके स्पेस एजेंसी के ह्यूमन एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम मैनेजर लिबी जैकसन बताते हैं, “इस अभियान से वैज्ञानिकों के चंद्रमा की सतह के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली थी।”

लूना 9

सात साल बाद, लूना 9 से अपोलो अभियान को मदद मिली थी। चंद्रमा पर उतरने से पहले, सोवियत संघ और अमरीकी वैज्ञानिकों का मानना था कि चंद्रमा की सतह अंतरिक्षयान के लिहाज़ से काफ़ी मुलायम होगी, उन्हें इस बात का डर था कि चंद्रमा की सतह रेत से भरी होगी जिसमें अंतरिक्ष यान धंस जाएगा।

चंद्रमा की सबसे पहली तस्वीरें सोवियत के लूना 9 ने 1966 में पृथ्वी पर भेजी थीं
चंद्रमा की सबसे पहली तस्वीरें सोवियत के लूना 9 ने 1966 में पृथ्वी पर भेजी थीं

सोवियत संघ के इस अभियान से पता चला कि चंद्रमा की सतह ठोस है और यह बेहद अहम जानकारी थी।

जैकसन बताते हैं,

“यह वास्तव में वैज्ञानिक उपलब्धि थी और इससे भविष्य के अभियानों को मदद मिली।”

लूना 10

यह भी सोवियत संघ की अमरीका पर जीत थी। जैकसन बताते हैं कि हमें याद रखना चाहिए कि भूगोल आधारित राजनीति ने भी अंतरिक्ष की रेस को दिशा दी थी।

लूना 10 ने कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण बातों का पता लगाया जिसमें चंद्रमा की मिट्टी के तत्व और वहां के पत्थरों के छोटे-छोटे कणों के बारे में जानकारी शामिल थी। पत्थरों के छोटे- छोटे कण स्पेस में तेज़ गति से गतिमान रहते हैं, यह किसी भी अंतरिक्ष अभियान और चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यात्रियों के लिए ख़तरा बन सकता था। अंतरिक्ष में वायुमंडल नहीं होने के चलते बिना किसी रोक टोक के गतिमान रहने वाले कण पृथ्वी की तुलना में कहीं ज़्यादा ख़तरनाक हो सकते थे।

मशहूर अंतरिक्ष इतिहासकार आसिफ़ सिद्दिक़ी ने जून में अमरीकी एनजीओ प्लैनेटरी सोसायटी को दिए इंटरव्यू में कहा है,

“सोवियत संघ यह सोचने लगा था कि 1961 में अंतरिक्ष में पहला यात्री भेजकर या फिर 1965 में पहला स्पेस वॉक करके उसने अंतरिक्ष की रेस जीत ली है। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि अमरीका चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यात्री को उतारने में कामयाब होगा।”

अमरीकी बढ़त

सोवियत अंतरिक्षयात्री एलेक्सी लियोनोव ने पहली बार अंतरिक्ष में स्पेसवॉक किया था, साल था 1965
सोवियत अंतरिक्षयात्री एलेक्सी लियोनोव ने पहली बार अंतरिक्ष में स्पेसवॉक किया था, साल था 1965

1968 में, अमरीका ने निर्णायक बढ़त तब बनाई जब अपोलो 8 अभियान के तहत उन्होंने चंद्रमा में मानव सहित अंतरिक्ष यान भेजा, जो उसकी कक्षा में जाकर सफलतापूर्वक लौट आया था।

इससे पहले 1965 मे सोवियत अंतरिक्षयात्री एलेक्सी लियोनोव ने पहली बार अंतरिक्ष में चहलकदमी(स्पेसवॉक) की थी।

एक साल के अंदर ही, अपोलो 11 चंद्रमा की सतह पर उतरने में सफ़ल रहा। सोवियत संघ के पास अपोलो 8 अभियान का कोई जवाब नहीं था, जबकि उससे पहले मानव सहित अंतरिक्ष यान भेजने के मामले में भी वे अमरीका से आगे था। आख़िर क्यों?

सोवियत संघ के पिछ्ड़ने के कारण

नासा के इतिहासकार रोजर लायूनियस ने के अनुसार

” सोवियत संघ के पास मानव अभियान के लिये पर्याप्त वैज्ञानिक तकनीक नहीं थी, ना ही आर्थिक आधार था और ना ही संगठनात्मक ढांचा बेहतर था।”

स्पष्ट है कि सोवियत संघ के चंद्रमा पर अभियान भेजने में तो कामयाब रहा था कि लेकिन मानव सहित यान भेजने के लिए ज़रूर विकास नहीं कर पाया।

शक्तिशाली राकेट

सबसे बड़ी बात ये थी कि मास्को के पास शक्तिशाली रॉकेट नहीं था जो मानव सहित अंतरिक्ष यान को सीधे चंद्रमा तक भेज पाता। अमरीका के पास शानदार सेटर्न V था जो मानव सहित यान वाले सभी चंद्रमा अभियान में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया था। सोवियत संघ के पास एन 1 था जो सभी चार टेस्ट प्रेक्षपण में नाकाम रहा था।

इसके अलावा व्यवस्थागत ढांचे में भी सोवियत संघ पिछड़ गया और केंद्रीकृत टॉप-डाउन व्यवस्था के चलते अमरीका अपने अभियान में कामयाब हुआ था।

एन-1 सोवियत रॉकेट
एन-1 सोवियत रॉकेट

अंतरिक्ष मे डॉकिंग सिस्टम

अमरीका और सोवियत संघ, दोनों को अंतरिक्ष की होड़ में काफ़ी पहले यह समझ में आ गया था कि लूनार ऑर्बिट रेंडबू (एलओआर) अभियान के कामयाब होने के लिए उन्हें इन-स्पेस मैनुएल डॉकिंग सिस्टम चाहिए था जहां पर अभियान का युद्धस्तर पर अभ्यास हो सके।

अमरीका इस चुनौती को 1966 तक पूरा करने में कायमाब रहा था लेकिन सोवियत संघ इसे जनवरी, 1969 से पहले हासिल नहीं कर पाया था।

राजनैतिक और सैन्य कारक

सोवियत संघ के अंतरिक्ष अभियान को कम्यूनिस्ट नेतृत्व से भी लगातार संघर्ष करना पड़ रहा था। उन्हें संसाधनों के लिए सेना से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही थी। उस वक़्त सेना अपने आण्विक कार्यक्रम को गति देना चाहती थी। सोवियत संघ की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं पर परमाणु हथियार बनाने के सैन्य दबाव का असर भी पड़ा।

अपनी पुस्तक चैलेंज टू अपोलो- द सोवियत यूनियन एंड स्पेस रेस 1945-74 में आसिफ़ सिद्दिक़ी ने बताया है कि अमरीका के अभियान की सफ़लता के कुछ सालों के बाद ही सोवियत संघ ने चंद्रमा पर मानवों को भेजने के अभियान को 1964 में गंभीरता से लेना शुरू किया।

वे बताते हैं,

“सोवियत संघ के अंतरिक्ष कार्यक्रम को लेकर काफ़ी गोपनीयता रखी जा रही थी। लेकिन वह एक एडहॉक प्रोग्राम जैसा था जिसमें काफ़ी बाधाएं थी।”

सोवियत संघ के शीर्ष स्तर से जुड़े लोगों ने भी इस तरह की बात कही है। सोवियत संघ के राष्ट्रपति ख्रुश्चेव के बेटे और एयरोस्पेस इंजीनियर रहे सर्जेइ ख्रुश्चेव ने साइंटिफिक अमरीकन मैग्ज़ीन से बताया था,

“सोवियत संघ के अंतरिक्ष कार्यक्रम की जब बात होती है, तो पश्चिम में यह ग़लतफ़हमी है कि वहां केंद्रीकृत व्यवस्था थी। वास्तव में यह अमरीका के अपोलो अभियान से भी ज़्यादा अकेंद्रीकृत व्यवस्था थी। सोवियत संघ में कई डिजाइनर थे जो एक दूसरे से ही होड़ ले रहे थे।”

इतना ही नहीं, मास्को के अंतरिक्ष अभियान का नेतृत्व कर रहे इंजीनियर सर्जेइ कुरोलेव का निधन जनवरी, 1966 में अचानक हो गया था। यह बहुत बड़ा झटका था।

अंतिम प्रयास

आर्मस्ट्रॉन्ग (तस्वीर में) और एल्ड्रिन चंद्रमा से निकलने ही वाले थे जब 500 मील दूर लूना 15 क्रैश हो गया
आर्मस्ट्रॉन्ग (तस्वीर में) और एल्ड्रिन चंद्रमा से निकलने ही वाले थे जब 500 मील दूर लूना 15 क्रैश हो गया

जब सोवियत संघ को यह एहसास हो गया था कि चंद्रमा पर सबसे पहले मानव उतारने के अभियान में वह पिछड़ रहा था तब उसने एक अंतिम ट्रिक आज़माई, उसने वह अभियान शुरू किया जिसका उद्देश्य अपोलो 11 से पहले चंद्रमा की सतह से सैंपल एकत्रित करके लौट आना था।

अपोलो 11 की उड़ान से तीन दिन पहले 13 जुलाई, 1969 को लूना 15 ने अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी। चार दिन बाद और अपोलो 11 से 72 घंटे पहले यह यान चंद्रमा की कक्षा में दाख़िल हो गया। लेकिन सतह पर पहुंचने की कोशिश में यह नष्ट हो गया।

सोवियत संघ के अंतरिक्ष कार्यक्रम को सर्जेइ कुरोलेव की जगह नेतृत्व कर रहे वेस्ली मिशहिन ने अमरीकी टीवी नेटवर्क पीबीएस से 1999 में दार्शनिक अंदाज़ में कहा था,

“हमारा मानना था कि हम पूरी विश्व से आगे हैं और हम अमरीका से इस अभियान में भी आगे रहेंगे। लेकिन इच्छा का होना एक बात है और अवसरों का होना दूसरी बात।”

स्रोत :

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