हमारी पृथ्वी अन्य ग्रहो से बिलकुल अलग है और खास भी कारण धरती पर जीवन का होना। वैसे तो पृथ्वी पर असंख्य जीव है परंतु जब बात प्रतिभाशाली परिष्कृत जीव की होगी सर्वप्रथम स्थान “मानव”।
मनुष्य धरती पर सबसे प्रतिभाशाली जीव है क्योंकि मनुष्य देखने,सोचने,समझने और कार्य करने में पूर्णतः सक्षम है। मनुष्य को प्रतिभाशाली बनाने में सबसे ज्यादा योगदान मस्तिष्क और आँखों का है। हमलोग एक त्रिआयामी संसार(Three dimensional world)में रहते है हालांकि चौथा आयाम(Dimension)समय है पर समय के बारे में हमारी जानकारी अभी अपूर्ण है। हमारी आँखे सभी चीजों को त्रिआयामी छवि(Three dimensional image)के रूप में देखती है। मानव नेत्र एक प्रकाशीय यंत्र है जो फोटोग्राफिक कैमरे की तरह की व्यवहार करती है। हमसब जानते है जब प्रकाश किसी वस्तु से टकराकर हमारी दृष्टिपटल(Retina)पर पड़ता है तो उस वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर बनता है रेटिना नेत्र का प्रकाश सुग्राही भाग(light sensitive part)है। दृक तांत्रिक(optic nerve)यह रेटिना पर बनने वाले प्रतिविंब को संवेदनाओ द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचाने का कार्य करती है।
जैसा की ऊपर हमने उल्लेख किया मानव नेत्र कैमरा के समान है तो साधारण सा प्रश्न उठता है कि हम कैमेरे की क्षमता तो MP(Megapixel)में बता सकते है परंतु हमारी आँखे कितने MP कैमेरे के समान है। यदि आप सोच रहे है कि आपकी आँखे मोबाइल कैमेरे से ज्यादा मेगापिक्सेल की है तो आप गलत सोच रहे है। आपको जानकर आश्चर्य होगा आपकी आँखे महज 1.5~2.0 MP के कैमरा के समतुल्य है। जबकि आधुनिक स्मार्टफोन कैमेरे 13MP,16MP या उससे भी अधिक मेगापिक्सेल से लैस होते है।
अब प्रश्न है जब हमारी आँखे महज 2MP की है तो हम किसी भी छवि को इतना स्पष्ट कैसे देख पाते है इसका जवाब है “हमारा परिष्कृत मस्तिष्क”। जब हम किसी त्रिआयामी छवि को देखते है तो दृक तांत्रिक सभी संवेदी सूचनाएं हमारी मस्तिष्क को भेज देती है चूँकि हमारी नेत्र की क्षमता(1.5~2.0MP)कम है इसलिए इन सूचनाओं से जो छवि का निर्माण होता है उसमें लाखो-करोड़ो काले धब्बे(blind spots)होते है हमारा मस्तिष्क इन सारे ब्लाइंड स्पॉट को भर देता है और हमारे समक्ष एक स्पष्ट त्रिआयामी छवि प्रस्तुत कर देता है। दिमाग इस कार्य को करने में बहुत ही सूक्ष्म समय लेता है जबकि सुपर कंप्यूटर भी इस कार्य को इतने कम समय से इतनी कुशलता से नही कर सकता। आधुनिक वैज्ञानिक शोध बताते है कि हम जो कुछ भी देखते है उसमे 85%~90% योगदान हमारे मस्तिष्क का शेष हमारी नेत्रो का।
वास्तव मे किसी कैमरा और मानव नेत्र दृष्टि(vision)की तुलना मेगापिक्सेल मे सटीक रूप से नही की जा सकती क्योंकि हमारे नेत्र की दृष्टि किसी कैमेरे की तरह डिजिटल नही होती और तो और हम अपने विज़न का एक मामूली हिस्सा ही साफ-साफ देख पाते है। इस तथ्य को आप सरल प्रयोग से साबित कर सकते है। एक काम कीजिए। अपना हाथ सामने की ओर करके अपना अंगूठा आँखो के सामने रख अपना फोकस बिलकुल अंगूठा पर रखिये। अब अपने किसी मित्र से कहिये कोई अख़बार आपके अंगूठे के दाएं तरफ 6इंच की दुरी पर लेकर खड़ा रहे। तो क्या??बिना अंगूठे से ध्यान हटाये आप अख़बार में क्या लिखा है बता सकते है?
जवाब है…..नही!!
आपको अख़बार तो दिख रहा है पर अख़बार के अक्षर नही। इसका कारण मानव नेत्र के लिए पूर्ण दृष्टिक्षेत्र(total field of view)मे से केवल 2°क्षेत्र पर ही फोकस करना संभव है अर्थात आपके अंगूठे के साइज के बराबर। शोध यह भी बताते है कि हमारी दृष्टि तीक्ष्णता(visual acuity) अर्थात सामान्य प्रकाश मे देखने की क्षमता)लगभग 74MP के समान है और रेसोलुशन क्षमता 576MP की है।
दृष्टि तीक्ष्णता 74MP::औसत मानव रेटिना पचास लाख शंकु रिसेप्टर्स से बना होता है. शंकु रिसेप्टर्स रंग दृष्टि के लिए जिम्मेदार होते हैं, इसीलिए आप कह सकते हैं की ये आँख के लिए एक पांच मेगापिक्सेल के बराबर है.लेकिन यहाँ आप गलत होंगे. क्योंकि मानव आंख में सौ मिलियन मोनोक्रोम भी होते हैं, जो आंख द्वारा देखी जा रही छवि के तीखेपन(contrast)में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. इस दोनों के आधार पर हम 105 मेगापिक्सेल कह सकते है पर यह पूर्णतः असत्य होगा। परन्तु कुछ शोध हमारे द्वारा देखे गए छवि के गुणबत्ता के आधार पर इसे 76 मेगापिक्सल कहते हैं लेकिन ये भी पूर्ण सत्य नही लगता क्योंकि मनुष्य की आँख कोई डिजिटल कैमरा नहीं है।
Resolution 576MP::
सामान्य प्रकाश मे देखने की क्षमता(A) = (1/b)
जहाँ b= (रेखा युग्म)/(चाप-मिनिट)
सामान्य प्रकाश मे; A= 1.7; जिसका मतलब होता है की 1चाप-मिनिट = 1.7 रेखा युग्म
या 1 रेखा युग्म= 0.59 चाप-मिनिट
एक लाइन को परिभाषित करने के लिये हमे कम से कम 2 पिक्सल की जरूरत होती है, मतलब पिक्सल के बीच जो अंतराल होगा वो 0.59/2 ~ 0.3 चाप-मिनट होगा।
पिक्सेल की गणना करने के लिये हमे 2 विमा पर ही ध्यान देना होगा (ऐसा मान लीजिये की आप खिड़की या दरवाजे से बाहर एकदम सीधे देख रहें है) इस अवस्था मे आप जो भाग घेरेंगे वो करीब करीब 90°×90°का होगा लेकिन हमारे आँख का सामान्य दृश्य कोण (angle of vision) एकदम नाक के सीधे लगभग 60°लिया जाता है|
चूंकि; 0.3 चाप-मिनिट समतुल्य है 1 पिक्सल के
इसीलिये 90×60 होगा= 90×60/0.3 = 18000
दो विमा को बराबर मानते हुए कुल पिक्सेल = 18000×18000 पिक्सेल= 324 MP
सामान्य लोग 90°की जगह 120°मानते है तो उस अवस्था मे 120×60/0.3=24000
24000×24000 पिक्सेल = 576 MP
सरल शब्दों में मानव की दोनों आँखें मिलकर जो चारों ओर के दृश्य की समग्र छवि मस्तिष्क में पहुंचती है। वो कुल मिलाकर एक बहुत बड़े क्षेत्र की छवि बनाता है। जो लगभग 576 मेगापिक्सल के बराबर होता हैं। Actually 576MP जबाव तब सही हो सकता है जब मानव नेत्र किसी कैमरा स्नेप शॉट की तरह तस्वीर के हर कोण को साफ साफ देख सके पर ऐसा संभव ही नही। 2°के छोटे से क्षेत्र का रेसुलुशन 576MP नही 8 मेगापिक्सेल डाटा काफी है आपके इस 2°के क्षेत्र को भरने के लिए। अब आप ही अंदाजा लगा लीजिये की आपकी आंख कितने मेगा पिक्सल के बराबर होती हैं।
बहुत सारे लोगों का यह भी प्रश्न रहता है की आँखे फुल हाई डेफिनिशन में सभी चीजो को देखती है। किसी दृश्य या छवि को देखने के लिए हम अपनी आँखों को लगातार घुमाते रहते है इससे किसी दृश्य को देखने में निरंतरता आ जाती है यही दृष्टि निरंतरता और मस्तिस्क द्वारा उसे लगातार प्रोसेस करने के कारण हम किसी दृश्य को 3D हाई डेफिनिशन(Three dimensional High Definition) में देख पाते है।शायद आप अब भी थोड़े असमंजस मे है तो चलिए कुछ विरोधाभास को दूर कर देते है। वास्तब मे मेगापिक्सेल किसी कैमेरे की क्षमता का सटीक मापन नही कर सकता कि वह कैमरा कितनी स्पष्ट तस्वीर लेगा।(1 मेगापिक्सेल = दस लाख पिक्सेल) मेगापिक्सेल सिर्फ यह बताता है की कोई भी तस्वीर कितने पिक्सेल से बनी हुई है। ज्यादा मेगापिक्सेल की तस्वीरों का एक फायदा यह है आप उसे बड़े आकर में देख सकते है और बड़े साइज़ में उसे प्रिंटआउट कर सकते है l किसी भी तस्वीर की स्पष्टता इमेज सेंसर पर निर्भर करती है। इमेज सेंसर ही यह तय करता है कि किसी भी तस्वीर को स्पष्ट देखने या दिखाने मे कितनी प्रकाश की आवश्कता है। निशाचर जीव जंतु के आँखों में फोटो रिसेप्टर्स की संख्या ज्यादा होती है। इसी कारण वे रात मे ज्यादा प्रकाश को ग्रहण करके साफ छवि देख पाते है। चील और गिद्ध जैसे जीव लंबी दूरियों से भी छोटी से छोटी हलचल को देख लेते है क्योंकि उनकी आँखों मे सक्रिय फोटो रिसेप्टर्स की संख्या बहुत अधिक होती है। प्रोफ़ेशनल कैमरा इसलिए महँगे नही होते की उसमे ज्यादा मेगापिक्सेल लगे होते है बल्कि इसलिए महँगे होते है क्योंकि उसमे ज्यादा बड़े इमेज सेंसर और अति उन्नत अति संवेदनशील सेंसर लगे होते है।सरल शब्दो में आप कह सकते है इमेज सेंसर ही प्रकाश को किसी छवि में बदलने के लिए उत्तरदायी होता है।
मानव आंखे कितने मेगा पिक्सेल की होती है ? इसे और विस्तार से समझने की कोशिश करते है।
वास्तव में यह एक उलझन भरा प्रश्न है की मानव आँखों की क्षमता कितनी है। वास्तव में आँखों की सही और पुर्णतः सटीक क्षमता बता पाना फ़िलहाल मुमकिन ही नही कोई भी विश्वसनीय साइंस सोर्स आँखों की MP क्षमता सटीक नही बताता फिर भी अधिकांश जगहों पर उत्तर मिलता है 576 मेगापिक्सेल। परन्तु इसे ऐसे ही नहीं समझ जा सकता है।
मानव आँख किसी कैमरा की तरह ही काम करती है और किसी कैमरा में तीन मुख्य भाग होते है।
1. लेंस या प्रकाशीय यन्त्र जो प्रकाश को एकत्रित कर छवि का निर्माण करता है।
2. सेंसर जो छवि के प्रकाशीय ऊर्जा को विद्युत संदेशो या सिग्नल्स में बदलता है।
3. प्रोसेसर, जो उन विद्युत सिग्नल्स को वापस स्क्रीन पर छवि में बदल कर दिखाता है।
परंतु हमारी आँखें एक परिपूर्ण कैमरा नहीं है यह केवल कैमरा का पहला भाग हैं। मानव नेत्र केवल सामने से आने वाले प्रकाश को ग्रहण कर एक तस्वीर बनाने की क्षमता रखती है। इस बनायी गयी तस्वीर को समझने का कार्य मस्तिष्क का एक खास हिस्सा करता है जोकि वास्तव में सेसंर और प्रोसेसर दोनों का काम करता है।
चलिए इसे एक उदाहरण से समझते हैं।
आपके पास स्मार्ट फोन में जो कैमरा होता है उसकी क्षमता कितनी है?
5 MP, 8 MP, 13 MP या 20 MP
पर क्या आपको ये पता है कि आपके स्मार्ट फोन कैमरे का सेंसर किस आकार का है?
अधिकतर स्मार्ट फोन के सेंसर 1/3.2 इंच के आकार का होता है और यही कैमरे का वो भाग है जिस पर ली गई तस्वीर की गुणवत्ता निर्भर करती है। इसी लिए स्मार्टफोन कैमरा किसी डिजिटल SLR कैमरे का मुकाबला नहीं कर सकता है। क्योंकि समान मेगापिक्सेल होने के बावजूद भी DSLR कैमरे में सेंसर का आकार काफी बड़ा होता है। इसीलिए एक 8-10 MP का फुल फ्रेम DSLR कैमरा किसी 40 MP के स्मार्ट फोन कैमरे से अच्छी तस्वीर बना सकता है।
इसी प्रकार से मानव आँख जो प्रकाश ग्रहण करके छवि निर्माण करती है उस छवि की प्रोसेसिंग करने के लिए इसी तरह के सेंसर की जरूरत होती है और मानव शरीर में यह सेंसर आँख में ना होकर मस्तिष्क में होता है जहां तक आँखों से प्राप्त प्रकाशीय सिग्नल्स तंत्रिका तंत्र के द्वारा संचालित खास प्रकाशीय तंत्रिकाओं (optic nerves) के द्वारा पहुंचाया जाता है। इसके मस्तिष्क ही इस जानकारी को समझकर एक छवि का निर्माण करता है।
एक मानव आँख में लगभग 30 पुर्जे या कहिये 30 अलग अलग हिस्से होते हैं जो कि किसी छवि का निर्माण करते हैं। परंतु केवल छवि निर्माण जो ग्रहण किये गये प्रकाश की मात्रा और आँखों की कार्यकुशलता पर निर्भर होता है।
कोई व्यक्ति दो प्रकार से नेत्रहीन हो सकता है या तो उसकी आँखों में कोई कमी आ गई हो या उसके दिमाग का वो हिस्सा जो छवि प्रोसेसिंग करता है वो खराब हो गया हो। आपने सुना भी होगा कि जो लोग जन्मांध होते हैं उनकी आँखें बदलने पर भी वो कुछ देख नहीं पाते क्योंकि उनके अंधेपन का कारण उनके खराब या विकृत मस्तिष्क के उस भाग से होता है जो आँखों से मिले संदेश को हमें दिखाता है।
अब बात आती है आँखों की क्षमता की क्या यह वास्तव में 576 MP हैं? तो यहां स्थिति यह है कि मेगा पिक्सल दो राशियों का पैमाना हो सकती है। प्रकाशीय यंत्र की क्षमता अर्थात कि कोई प्रकाशीय यंत्र कितने बड़े क्षेत्रफल को एक बार में देख सकता है यह क्षेत्रफल भी मेगापिक्सेल में मापा जा सकता है।
दूसरा उस सेंसर की जो छवि को प्रोसेस करता है।
अब मानव आँख तो एक बार में 576 MP का क्षेत्रफल देख लेती है परंतु हमारा मस्तिष्क इसे एक साथ प्रोसेस नहीं कर पाता वह केवल थोड़े से ही हिस्से को ही हाई डेफिनेशन में प्रोसेस कर पाता है। इसीलिए किसी भी घटना को सही तरीके से देखने के लिए हमें अपनी आंखों को उस ओर घुमाना पड़ता है। यहां पर हम यह भी कह सकते हैं कि हमारा मस्तिष्क आँखों के दिये गये सिग्नल्स समझने में थोड़ा कमजोर होता है इसीलिए हम आसानी से दृष्टिभ्रम का शिकार हो जाते हैं। लगातार किसी बारीक काम को करने से जिसमें आँखों का ज्यादा इस्तेमाल हो, हमारा सिर दर्द करने लगता है।
इस लेख पर एक प्रश्न मैंने पढ़ा था कि जब मस्तिष्क ही छवि निर्माण को पूरा करता है तो हमें खराब कांच (घिसा कांच) से देखने पर धुंधला क्यों दिखाई देता है?
सर्वप्रथम, कांच पारदर्शी होते है इसका मतलब है ज्यादातर प्रकाश कांच के आरपार निकल सकते है जब हम कांच को घिस देते है तो यह कांच अर्द्ध पारदर्शी हो जाते है जिससे काफी प्रकाश की मात्र इसके आरपार नही आ सकती अर्थात प्रकाश की बड़ी मात्रा कांच से परावर्तित हो जाती है।जब इस तरह की घिसी कांच आँखों के आगे रखी जाय तो आँखों तक कम प्रकाश की मात्रा पहुँचेगी, इसी कारण आँखों को मिलने वाली सूचनाएं भी अपर्याप्त मात्रा में होगी। हमारा मस्तिष्क ज्यादातर देखने का काम केवल आँखों से मिलने वाली सूचनाओं के आधार पर ही करता है अगर सूचनाएं अपर्याप्त होगी तो मस्तिष्क सही छवि नहीं बना पायेगा और यदि सूचनाएं जरूरत से अधिक होगी तो भी मस्तिष्क सही से प्रोसेसिंग नहीं कर पायेगा।
इसे समझने के लिए एक छोटा सा प्रयोग आप घर पर करके देख सकते हैं।
एक A4 आकार का सफेद कागज ले। उसकी फोटो अपने स्मार्टफोन से लेकर सेव करले। अब इस कागज को अलग अलग रंगों से सराबोर कर दे। इसके बाद फिर से एक फोटो ले। अब दोनों फोटो द्वारा आपके स्मार्ट फोन में लिये गये स्पेस को देखे। रंगीन तस्वीर ज्यादा सूचनाएं लिए होती है तो उसका आकार सफेद तस्वीर की तुलना में ज्यादा होता है। अगर आप भी किसी ज्यादा सूचनाओं वाले दृश्य को देखते हैं तो आपका मस्तिष्क भी अधिक जानकारी के कारण दृष्टिभ्रम पैदा कर देता है। इस स्थिति में भी आँखें अपनी पूरी क्षमता पर होती है पर मस्तिष्क ही इसे समझने में असमर्थ होता है।हमारा मस्तिष्क छवियों की रूपरेखा और वस्तुओं की पहचान करने में काफी अच्छा है लेकिन कभी-कभी उसे भी दृष्टि भ्रम(Optical Illusion) हो जाता है। कोई वस्तु वास्तव में मौजूद न हो तब भी हमारा मस्तिष्क उसे देखकर धोखा खा सकता है।
हमारा मस्तिष्क छवि निर्माण करता है इसका अनुभव आप इस बात से कर सकते हैं कि सपने आपको बंद आँखों से ही दिखाई देते हैं जहां पूरी क्रिया मस्तिष्क द्वारा ही होती है।
स्रोत: Discovery science.
लेखिका परिचय
पल्लवी कुमारी, बी एस सी प्रथम वर्ष की छात्रा है। वर्तमान मे राम रतन सिंह कालेज मोकामा पटना मे अध्यनरत है।

Hamari ankhe medium pe bhi depend hoti hai.
पसंद करेंपसंद करें
13 MP
पसंद करेंपसंद करें
गलत जवाब, लेख पढीये
पसंद करेंपसंद करें
I am very very impressed.
पसंद करेंपसंद करें
Wow nice pali ji
पसंद करेंपसंद करें
मानव नेत्र 576 मेगापिक्सल देख सकती है लेकिन अगर दूरी में तुलना किया जाए तो कितना हो सकता है
पसंद करेंपसंद करें
I think infinite.
Because,
Hamlog sun,moon,stars, ko bhi dekh
Sakte hai jo earth se itni distance par hai.
पसंद करेंपसंद करें
मापन के उद्देश्य से यह ठीक हो सकता है। लेकिन देखने का अनुभव प्रत्येक को अलग अलग होता है। छोटे बच्चों को आसमान जितना नीला दिखाई पड़ता है, बड़ों को वह उतना नीला नहीं दिखाई पड़ता। एक ही समय में, एक ही स्थान पर मौजूद एक स्त्री या पुरुष प्रत्येक को कम अथवा अधिक सुन्दर व आकर्षक दिखाई पड़ता है। यह कैसे?
पसंद करेंपसंद करें
kuchh adhi adhuri jankari app se mili thanks pallavi ji
पसंद करेंपसंद करें
सर “glass” transparent होता है उसमे से प्रकाश अार-पार हो जाता है हमारी आंख फिर भी glass को देखती है
कैसे ?
पसंद करेंपसंद करें
कांच से पूरा पारदर्शी नही है।
पसंद करेंपसंद करें
Thanks for your job
पसंद करेंपसंद करें
Bahut bahut dhanyavad ji
Sisi jankari ke liye
पसंद करेंपसंद करें
Thanks a lot sir ye information dene ke liye absolutely Jo is post me likha ha vo absolutely rite ha
Muje pta chal gya humari eyes kese kam karti ha thanks sir
Is type ki information or dijiye
पसंद करेंपसंद करें
very nice writing for human eye thank you so much pallavi
पसंद करेंपसंद करें
बहुत ही अच्छा और ज्ञान वर्धक लेख है
बहुत बहुत धन्यावाद
पसंद करेंपसंद करें
WHAT IS RIGHT ANSWER?
MAY TELL ANYONE ?
मानव नेत्र कितने मेगापिक्सल की होती है?
A.2.0MP
B.74MP
C.576MP
D.1.5MP
पसंद करेंपसंद करें
नेत्र + मस्तिष्क = दृश्य अनुभूति 576 MP मानिये !
पसंद करेंपसंद करें
Good
पसंद करेंपसंद करें
Excellent
पसंद करेंपसंद करें
bahut achha
पसंद करेंपसंद करें
Thank you so much, l like it.
पसंद करेंपसंद करें
धन्यवाद, बहुत अच्छा लेख है.आँख के बारे में
पसंद करेंपसंद करें
ये जानकारी बहुत अच्छी है इसके लिये धन्यवाद! इसमे बहुत सरल तरीके से और विस्तार से जानकारी दी गई जो की तारीफ के काबिल है इससे पहले मुझे इस टाॅपिक पर आधी अधूरी जानकारी थी जोकि अब कुछ बेहतर हो गई है. सर मै भी इण्टर का छात्र हूँ अगर मै पल्लवी जी की तरह कोई लेख लिख कर यहाँ इस वेबसाइट पर प्रकाशित काराना चाहूँ तो क्या ये सम्भव है?
पसंद करेंपसंद करें
अपना लेख ash.shri@gmail.com पर भेजे
पसंद करेंपसंद करें
धन्यवाद सर मुझे ये मौका देने के लिये मै कोई बहुत ही अच्छा और सटीक लेख लिखकर भेजूंगा एक बार फिर आपका धन्यवाद
पसंद करेंपसंद करें
Good tips
पसंद करेंपसंद करें
very nice
पसंद करेंपसंद करें
nice
पसंद करेंपसंद करें
Great post you have expained about everything thank you for sharing
पसंद करेंपसंद करें
ब्लॉग बुलेटिन की विजयदशमी विशेषांक बुलेटिन, “ब्लॉग बुलेटिन परिवार की ओर से विजयादशमी की मंगलकामनाएँ “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
पसंद करेंपसंद करें
Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
पसंद करेंपसंद करें
बहुत ही अच्छा लेख, मै अपने ब्लॉग पर इस संबंधी सुधार करूँगा।
पसंद करेंपसंद करें