जापान के वैज्ञानिक योशिनोरी ओसुमी को वर्ष 2016 के चिकित्सा नोबल पुरस्कार के लिए चुना गया है। उन्हें ये पुरस्कार कोशिकाओं के क्षरण( डिग्रेडेशन) और पुन:चक्रण( रिसाइकिलिंग) पर उनके शोध के लिए दिया जा रहा है।
टोक्यो यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले ओहसुमी ने रॉकफेलर यूनिवर्सिटी से पोस्ट-डॉक्टरल की डिग्री हासिल की है। 1977 में रिसर्च एसोशिएट की पद पर काम करने वाले ओहसुमी को 1986 में टोक्यो यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के पद पर नियुक्त किया गया। 1986 में वो नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ बेसिक बॉयोलॉजी में काम करना शुरू किया, जहां उन्होंने प्रोफेसर का पद संभाला।
नोबेल कमेटी ने कहा कि ओसुमी की खोज से कोशिका से जुड़ी कई प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी करने में मदद मिली है। इनमें कोशिकाओं में होने वाले परिवर्तन और संक्रमण की प्रक्रिया शामिल हैं, जो पारकिंसन जैसी तंत्रिका से जुड़ी बीमारी, मधुमेह और कैंसर की वजह बनती हैं। पुरस्कार के एलान के बाद ओसुमी ने कहा कि एक शोधकर्ता के तौर पर इससे बड़ी खुशी नहीं हो सकती कि यीस्ट को लेकर किया गया शोध ऑटोफैगी में हुए हालिया शोधों के आगे बढ़ने के लिए बड़ी प्रेरणा बन गया।
अपने रिसर्च के लिए नोबेल पुस्कार मिलने की सूचना के बाद योशिनोरी ने कहा कि मैं काफी चकित रह गया था। जिस वक्त मुझे इस बारे में जानकारी मिली तब मैं लैब में था।
ऑटोफैगी एक शारीरिक प्रक्रिया है जो शरीर में कोशिकाओं के हो रहे क्षरण/नाश से निपटती है।
ऑटोफैगी की सबसे पहली चर्चा 1974 में क्रिटियन डे ड्यूव ने की थी। ऑटोफैगी से ही ऑटोफोबिया शब्द बना है, जिसका मतलब होता है अकेले रह जाने का डर। ऑटोफैगी एक प्राकृतिक रक्षा प्रणाली है, जो शरीर के जिंदा रहने में मदद करता है। ये शरीर को बिना खाने के रहने में मदद करता है, साथ ही बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में मदद करता है। ऑटोफैगी प्रक्रिया के नाकाम होने के कारण ही मानव में बुढ़ापा और पागलपन जैसी चीजें बढ़ती हैं।
अनुसंधानकर्ताओं ने सबसे पहले 1960 के दशक में पता लगाया था कि कोशिकाएं अपनी सामग्रियों को झिल्लियों में लपेटकर और लाइसोजोम नाम के एक पुनर्चक्रण क्षेत्र में भेजकर नष्ट कर सकती हैं।
ऑटोफैगी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कोशिकाएं ‘‘खुद को खा जाती हैं’’ और उन्हें बाधित करने पर पार्किनसन और मधुमेह जैसी बीमारियां हो सकती हैं। ऑटोफैगी कोशिका शरीर विज्ञान की एक मौलिक प्रक्रिया है जिसका मानव स्वास्थ्य एवं बीमारियों के लिए बड़ा निहितार्थ है।
Surely it will be a milestone in the field of cell biology and physiology people will be benefited by it
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शायद हम अपने जीवन काल में तो नहीं किन्तु हमारी आने वाली दूसरी, तीसरी पीढ़ी को इस आविष्कार का लाभ अवश्य मिलेगा “योशिनोरी ओसुमी” जी पूर्णतया इस सम्मान के योग्य है ,भविष्य के लिए इन्हें हार्दिक शुभकामनाये ।
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Congratulatin sir ji
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यह खोज भविष्य में मानव को अमरत्व की ओर ले जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगी..!
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