लेख संक्षेप :
GN-z11 यह एक अत्याधिक लाल विचलन(high redshift) वाली आकाशगंगा है जोकि सप्तऋषि तारामंडल मे स्थित है। वर्तमान जानकारी के आधार पर यह सबसे प्राचीन तथा दूरस्थ आकाशगंगा है। GN-z11 के प्रकाश के लालविचलन का मूल्य z=11.1 है जिसका अर्थ पृथ्वी से 32 अरब प्रकाशवर्ष की दूरी है। GN-z11 की जो छवि हम देख रहे है वह 13.4 अरब वर्ष पुरानी है अर्थात बिग बैंग के केवल चालिस करोड़ वर्ष पश्चात के छवि। इस वजह से इस आकाशगंगा की दूरी सामान्यत: 13.4 अरब वर्ष बता दी जाती है।
इस आकाशगंगा की खोज हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला तथा स्पिटजर वेधशाला के आंकड़ो के आधार पर की गयी है। शोध वैज्ञानिको ने हब्बल दूरबीन के वाईड फ़िल्ड कैमरा 3 के प्रयोग से इस आकाशगंगा के लाल विचलन की गणना द्वारा दूरी ज्ञात की। यह लाल विचलन ब्रह्माण्ड के विस्तार के कारण उत्पन्न होता है।
इससे पहले EGSY8p7 आकाशगंगा को सबसे प्राचीन आकाशगंगा माना जाता था लेकिन GN-z11 आकाशगंगा उससे 1.5 करोड़ वर्ष प्राचीन है।
हमारी अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी की तुलना मे GN-z11 पांच गुणा छोटी है और इसका द्रव्यमान मंदाकिनी का 1% है लेकिन इसमे तारो का निर्माण 24 गुणा तेजी से हुआ है।
क्या है GN-z11?
हमारे पास एक नया ब्रह्माण्डीय किर्तिमान है, 2013 मे खोजी गयी एक आकाशगंगा अब तक की ज्ञात सबसे दूरस्थ आकाशगंगा है। यदि शोध के आंकड़े सही है तो इस आकाशगंगा का जो प्रकाश हम आज देख रहे है वह उस आकाशगंगा से अबसे 13.3 अरब वर्ष पहले रवाना हुआ होगा। इस खोज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शायद हम ब्रह्मांड के सबसे आरंभिक तारों को जन्म लेते हुये देख रहे है!
वर्तमान जानकारी के अनुसार यह निरीक्षण और उससे संबधित आंकड़े सटिक लग रहे है लेकिन संदेह की गुंजाईश हमेशा रहती है। इन निरीक्षणो के लिये प्रयुक्त उपकरणो को उनकी क्षमता की अधिकतम सीमा तक प्रयोग किया गया है। इस प्रयोग मे हब्बल दूरबीन तथा स्पिट्जर दूरबीन का प्रयोग किया गया है। अब इसमे कोई शक नही है कि निकट भविष्य मे प्रक्षेपित की जानेवाली विशालकाय अंतरिक्ष वेधशाला जेम्स वेबर अंतरिक्ष वेधशाला का सबसे पहला लक्ष्य यही आकाशगंगा होगी। इस वेधशाला के प्रक्षेपण से पहले किसी अन्य उपकरण से इस निरीक्षण की स्वतंत्र पुष्टि संभव नही है क्योंकि किर्तिमान स्थापित करने वाली दूरी के निरीक्षण के लिये हमने अपने सबसे बेहतरीन उपकरणो को उनकी क्षमता की सीमा तक प्रयोग किया है।

इस आकाशगंगा GN-z11 को सप्तऋषि तारामंडल के पास पाया गया है, यह खोज अत्यंत दूरी पर स्थित आकाशगंगाओ के सर्वे का एक भाग है। हब्बल दूरबीन के विस्तृत क्षेत्र वाले कैमरा तीन के प्रयोग से खगोल वैज्ञानिको ने आकाश मे पांच छोटे बिंदु देखे। यह कैमरा तीन अवरक्त प्रकाश के लिये अत्यंत संवेदनशील है।
यह एक विस्मयकारी खोज थी। नवजात आकाशगंगाओ से सामान्यत: पराबैंगनी किरणो उत्सर्जित करती है क्योंकि उनमे निर्मित हो रये नवजात महाकाय ऊर्जा से भरे होते है और अपने आस पास इस ऊर्जा को फ़ैलाते रहते है। लेकिन ये आकाशगंगाये अत्यंत दूरी पर स्थित है, इतनी दूरी पर कि इनसे उत्सर्जित प्रकाश को हम तक पहुंचने के लिये ब्रह्माण्ड के विस्तार से जुझना पढ़ा है। इस यात्रा मे प्रकाश की ऊर्जा कम होती है और यह प्रकाश हम तक पहुंचते तक पराबैंगनी किरणो से अवरक्त किरणो मे परिवर्तित हो जाता है, इस प्रभाव को लाल विचलन(red shift) कहते है। इस प्रकाश को जांचने के लिये ही हब्बल के अवरक्त प्रकाश वाले उपकरणो का प्रयोग किया गया।
लेकिन इतना काफ़ी नही है। हायड्रोजन गैस पराबैंगनी प्रकाश किरणो का अवशोषण करती है। लेकिन इस अवशोषण की भी एक सीमा है। यदि प्रकाश मे अत्याधिक ऊर्जा है तो वह हायड्रोजन परमाणु से इलेक्ट्रान को अलग कर देती है जिससे परमाणु अब प्रकाश का अवशोषण नही कर पाता है। इस सीमा से अधिक ऊर्जा वाली पराबैंगनी प्रकाश किरण हायड्रोजन को पार नही कर पाती है। यदि हम इस प्रकाश के वर्णक्रम को देखें तो इस विशिष्ट ऊर्जा पर प्रकाश नही होता है। इसे लीमन अंतराल(Lyman Break) कहते है।
लेकिन यदि यह प्रकाश इतनी दूर की आकाशगंगा से आ रहा है तब लीमन अंतराल से दूर वाली प्रकाश किरणे भी लाल विचलन से प्रभावित होती है और अवरक्त किरणो के रूप मे दिखायी देती है। यदि आप भिन्न भिन्न फ़िल्टरो से इन आकाशगंगाओ का चित्र ले तो वे आपको को कुछ चित्र मे दिखायी देंगी , कुछ मे नही। यदि आप देखें कि वे किन चित्रों मे अदृश्य है आप उसकी दूरी की गणना कर सकते है। जो आकाशगंगा जितनी दूरी होगी, उतना अधिक लीमन अंतराल मे विचलन होगा।
पारंपरिक रूप से किसी भी विकिरण मे आये लाल विचलन का प्रयोग आकाशगंगाओ की दूरी मापने मे होता है लेकिन ब्रह्मांड मे सर्वाधिक दूरस्थ पिंडो के प्रकाश मे उत्पन्न लाल विचलन के मापन मे कठिनायी होती है। ये दूरस्थ पिंड ही ब्रह्मांड के प्रारंभ मे निर्मित पिंड होते है। बिग बैंग के तुरंत पश्चात सारा ब्रह्मांड आवेशित कण इलेक्ट्रान-प्रोटान तथा प्रकाशकण- फोटान का एक अत्यंत घना सूप था। ये फोटान इलेक्ट्रान से टकरा कर बिखर जाते थे जिससे शुरुवाती ब्रह्माण्ड मे प्रकाश गति नही कर पाता था। बिग बैंग के 380,000 वर्ष पश्चात ब्रह्मांड इतना शीतल हो गया कि मुक्त इलेक्ट्रान और प्रोटान मिलकर अनावेशित हायड्रोजन परमाणु का निर्माण करने लगे, इन हायड्रोजन परमाणुओं ने ब्रह्माण्ड को व्याप्त रखा था, इस अवस्था मे प्रकाश ब्रह्माण्ड मे गति करने लगा था। जब ब्रह्माण्ड की आयु आधे अरब वर्ष से एक अरब वर्ष के मध्य थी, तब प्रथम आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ है, इन आकाशगंगाओ ने अनावेशित हायड्रोजन गैसे को पुनः आयोनाइज्ड कर दिया जिससे ब्रह्मांड अब भी आयोनाइज्ड है।
पुनः आयोनाइजेसन से पहले अनावेशित हायड्रोजन गैस के बादलो द्वारा नवजात आकाशगंगाओ द्वारा उतसर्जित विकिरण कुछ मात्रा मे अवशोषित कर लिया जाता रहा होगा। इस अवशोषित विकिरण के वर्णक्रम मे लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line) का भी समावेश है जोकि नवजात तारो द्वारा उत्सर्जित पराबैंगनी(ultraviolet) किरणो से उष्ण हायड्रोजन का वर्णक्रमीय हस्ताक्षर है। इस लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line) को तारों के निर्माण के संकेत के रूप मे देखा जाता है। यदि किसी गैस के बादल मे वर्णक्रमीय विश्लेषण मे यदि लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line) दिखायी दे तो इसका अर्थ है कि उस बादल मे तारो का जन्म हो रहा है

किसी आकाशगंगा के वर्णक्रम मे पराबैगनी किरणो से अधिक ऊर्जा वाली किरणे अत्यंत कम दिखायी देती है(उपर। लेकिन यदि आकाशगंगा बहुत दूर है, मे वर्णक्रम लाल विचलन होता है(मध्य)। निचे के चित्र मे आकाशगंगा के प्रकाश मे एक सीमा के बायें कुछ नही दिखायी दे रहा है जिसे लीमन अंतराल कहते है।
अब हम वापस GN-z11 आकाशगंगा पर आते है। प्राथमिक गणनाओं से प्राप्त आंकड़ो के अनुसार GN-z11 के प्रकाश मे लाल विचलन की मात्रा z=11 है, जो उसे अब तक की सबसे अधिक दूरी पर स्थित आकाशगंगा बनायी है। यह इतनी महत्वपूर्ण खोज थी कि इस आकाशगंगा GN-z11 पर हब्बल दूरबीन की 12 परिक्रमा केंद्रित कर दी गती। इस निरीक्षण मे स्पेक्ट्रोमिटर का प्रयोग किया गया जोकि अवरक्त किरणो मे सटिकता से मापन करता है। यह एक अत्याधिक कठिन निरीक्षण था क्योंकि यह आकाशगंगा अत्यंत धुंधली है और इसके आसपास के तारे और आकाशगंगाओं का प्रकाश से निरीक्षण मे अशुद्धियाँ आ सकती थी। इस निरीक्षण मे आंकड़ो के विश्लेषण मे ध्यान रखा गया कि इन आंकड़ो मे कोई अशुद्धि का समावेश ना हो पाये।
जब उन्होने यह किया तो पाया कि विस्मयकारी रूप से इस आकाशगंगा का लाल विचलन z=11.09 था, जो कि इसे 13.3 अरब प्रकाश वर्ष दूर बना रहा था।
यह अत्याधिक दूरी है। यह एक विस्मयकारी दूरी भी है क्योंकि यह बिग बैंग के केवल 4 करोड़़ वर्ष बाद का समय है, यह वह समय है जब हम मानते है कि ब्रह्मांड मे तारो का जन्म प्रारंभ हुआ था। हम इस आकाशगंगा का जो प्रकाश अब देख रहे है वह ब्रह्मांड की सबसे पहली पिढी के तारो का प्रकाश हो सकता है।
इस निरीक्षण मे यह भी पता चलता है कि यह आकाशगंगा इसके पहले कुछ समय से तारो का निर्माण भी कर रही थी। हमारी जानकारी के अनुसार आकाशगंगाओ के निर्माण और तारो के जन्म के विभिन्न माडेल बताते है कि इस आकाशगंगा मे सूर्य के जैसे तारो के निर्माण की दर हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी से 24 गुणा अधिक है।
इस आकाशगंगा द्रव्यमान एक अरब सूर्य के तुल्य है जोकि बहुत कम है। हमारी आकाशगंगा का द्रव्यमान 1000 अरब सूर्य के तुल्य है। लेकिन यह ठीक है क्योंकि इस आकाशगंगा की आयु कम है। हमे केवल निर्मित तारों का प्रकाश दिखाती दे रहा है और इस आकाशगंगा मे ऐसा बहुत सा पदार्थ हो सकता है जो कि तारो के निर्माण के लिये कच्ची सामग्री है और तारो के रूप मे जन्म का इंतजार कर रहे हों।
अगला प्रश्न है कि हम इतनी दूरी पर ऐसी कितनी आकाशगंगाये खोज सकते है ? GN-z11 असामान्य रूप से दीप्तिमान है, इस दूरी पर आकाशगंगाये इतनी धुंधली होती है कि हमारी दूरबीनो की पकड़ से बाहर होती है। इस आकाशगंगा की खोज के लिये हम थोड़े भाग्यशाली रहे है।
सर, आपने ब्रह्माण्ड और खगोल विज्ञान पर तो बहुत जानकारी दी है, क्या आप संसार से जुड़े भौगोलिक और ऐतिहासिक तथ्यों से संबंधित जानकारी नहीं देते हैं? क्योंकि मै वेबसाइट के मेन पेज पर इन्ही आर्टिकल्स के स्निपेट को देख रहा हूँ
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ये वेबसाइट विज्ञान पर ही है, हमारी टीम में सभी विज्ञान से जुड़े व्यक्ति है। इतिहास और भूगोल पर जानकारी देना हमारे लक्ष्यों में नही रहा है। यदि समय मिला तो इन विषयों के लिए सहयोगी वेबसाइट बनाने विचार करेंगे।
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awesome the universe
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GN-z11 के प्रकाश के लालविचलन का मूल्य z=11.1 है जिसका अर्थ पृथ्वी से 32 अरब प्रकाशवर्ष की दूरी है।
GN-z11 की जो छवि हम देख रहे है वह 13.4 अरब वर्ष पुरानी है …….
jab gn-z11 32 arab prakashvarsh door hai… kya iska matlab yah nahi ki jitni doori prakash ne 32 arab varsh me poori ki ye aakash gangaa utni doori par sthit hai.
Agar ye sahi hai to fir jo chhavi ham dekh rahe hain vo bhi 32 arab varsh puraani honi chahiye.
doori aur uplabdh chhavi me jo antar aapne bataya hai ukso zaraa vistaar me samjhaayen.
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पल्लव, 1. ब्रह्मांड का जन्म अब से 13.8 अरब वर्ष पहले हुआ था, जिसे बिग बैंग कहते है।
2. बिग बैंग के बाद से ब्रह्मांड निरंतर फैल रहा है, हर आकाशगंगा दूसरी आकाशगंगाओं से दूर जा रही है।
GN-z11 आकाशगंगा की जो छवि हम देख रहे है वह 13.4 अरब वर्ष पुरानी है क्योंकि उस समय यह आकाशगंगा पृथ्वी से 13.4 अरब प्रकाशवर्ष दूर थी, लेकिन यह आकाशगंगा हमारी आकाशगंगा से दूर जा रही है और वर्तमान मे GN-z11 आकाशगंगा 32 अरब प्रकाश वर्ष दूर होगी। इस आकाशगंगा का जो प्रकाश हम देख रहे वह 13.4 अरब प्रकाश वर्ष दूरी का है, वर्तमान का नही।
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sir mai janna chahta hun ki hamare vigyanik mangal vrah ke alawa aur kaun se grah ja chuke hai?? mangal ka vatawarn kaisa hai??
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वैज्ञानिक केवल चंद्रमा पर ही गये है। किसी भी ग्रह पर मानव नही जा पाया है। लेकिन रोबोटीक यान सभी ग्रहो के पास जा चुके है। रोबोटीक यान बुध, शुक्र, मंगल और टाईटन पर उतर चूके है।
मंगल का वातावरण काफ़ी पतला और कार्बन डाय आक्साईड से भरपूर है, इस पर मानव सांस नही ले पायेगा।
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अगर एलियन पृथ्वी पर नहीं आए तो ये कैसे बने कृपया कर दे अपनी रे अवश्य दे
1-The Palpa Flat Mountain
2-Nazca Lines, in the Nazca Desert, southern Peru, created between 400 and 650 AD.
3-Pyramids of Giza, near Cairo, Egypt
4-Teotihuacan
5-Tiwanacu and Puma Punku
6-Sacsayhuaman
7-Stonehenge
8-Costa Rica Stone Spheres
9-Star Child Skull
10-The Antikythera Mechanism
ये कुछ ऐसे रहस्य है जो इशारा करते है की एलियन पृथ्वी पर आते रहे है
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आपने जो सूची दी है वे सभी के सभी मानव निर्मित है। Star Child Skull किसी विकृत बच्चे की खोपड़ी है, इस तरह के शिशु वर्तमान मे भी जन्म लेते है।
प्राचीन मानव सभ्यताओं के योगदान और विकास को हल्के से ना लें, वे भी कुशल कारीगर थे।
समय मिलने पर आपकी सूची पर एक विस्तार से लेख लिखता हुं।
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पुरातत्व खोजों में भी कई रहस्य है जैसे
१- 1974 में त्रानसिलवेनिया की मुर्से नदी में एक 20 हज़ार साल पुराने मैस्तदन की हड्डियों से एक एल्युमीनियम की एक कील मिली थी जिसे वैज्ञानिकों ने 300 से 400 साल पुराना बताया था. लेकिन हैरानी की बात ये थी कि एल्युमीनियम हमेशा किसी भी धातु के साथ मिश्रित होता है. लेकिन उस वक्त विशुद्ध एल्युमीनियम आया कहां से?
2- सन् 1934 में जब ये हथौड़ा पुरातत्व विभाग को मिला तो ये एक चौंका देने वाली घटना थी, जिसका कारण इस हथौड़े के लोहे की शुद्धता थी. साथ ही इस हथौड़े में लगी लकड़ी कोयला बन चुकी थी. मतलब साफ़ था, ये हथौड़ा करोड़ों साल पुराना था. जबकि इंसानों ने ऐसे औज़ार बनाने सिर्फ 10 हजार साल पहले शुरू किए थे.
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यह दोनो कथन भी किसी एलीयन सभ्यता की ओर कोई संकेत नही दे रहे है। इनका अर्थ केवल यह हो सकता है कि हमे मानव के तकनीकी विकास से संबंधित पूर्ण जानकारी नही है।
यह लिंक देखे : http://rationalwiki.org/wiki/London_Hammer
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सर आपने एलियन के सम्बन्ध बहुत सी जानकारी दी और कहा की एलियन पृथ्वी पर नहीं आ सकते क्योंकि उनकी हमसे दुरी बहुत ज्यादा है या पृथ्वी उनके लिए कोई महत्तव नहीं रखती क्योंकि उनका विज्ञानं बहुत विकसित हो सकता है, लेकिन हो सकता है की कोई एलियन प्रजाति पृथ्वी के विकास पर नजर रखती हो, आपने लिखा था की एक बेहद संपन्न प्रजाति दे एलियन के सामने हम चींटी की तरह है लेकिन हो सकता है कोई चीटियों को कई हजार वर्षों से पाल रहा हो उन्हें विकसित होते देख रहा हो……….
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आप मधुमख्खी पाल सकते है क्योंकि आपको उससे मधु प्राप्त होगा, आप चींटी क्यों पालेंगे ? किसी अन्य सभ्यता द्वारा मानव के पालन के पीछे उनका कोई उद्देश्य होना चाहिये। पृथ्वी तक का सफ़र करने मे सक्षम सभ्यता इतनी कुशल होगी कि उसे किसी गुलाम प्रजाति की आवश्यकता नही होगी।
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सर मैं आप के प्रयास से बहुत प्रभावित हु. इस ब्लॉग के लिए धन्यवाद.
मैं ये जानना चाहता हु की क्या प्रकाश मैं भी किसी तरह का
ह्रास (depreciation) उत्पन्न होता है
प्रकाश के यात्रा करने के दौरान ?
कृपया मुझे आप का व्यक्तिगत ईमेल पता भेजे
धन्यवाद
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प्रकाश की यात्रा के साथ उसकी तरंग दैधर्य(wavelength) फैलते जाती है!
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कृपा सप्तॠषि तारामंडल के बारे मे विस्तार से बताना।
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https://vigyanvishwa.in/2015/12/23/uma/
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यदि ब्रह्माण्ड़ के प्रसार की दर बढ़ रही है तो इसका तात्पर्य है कि आकाशगंगाएं बहूत ही तेज गति से एक दूसरे से दूर भागती जा रही हैं| तथा उनकी यह गति भूतकाल मे और तेज होती जायेगी| क्या यह संभव है कि आकाशगंगाएं प्रकाश की चाल से गति करने लगें? यदि ऐसा है तो हम उन्हें देख ही नहीं पायेंगे|
वसंतोत्सव की शुभकामनाएं…!
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वर्तमान में भी कुछ आकाशगंगाये की एक दूसरे से प्रकाशगति से तेज जा रही है।
वास्तविकता मे यह आकाशगंगा की गति नही है, दो आकाशगंगा के मध्य अंतरिक्ष का विस्तार है।
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महाविस्फोट के बाद से ही ब्रह्माण्ड मे प्रसार हो रहा है| इसके प्रसार की दर बड़ रही है, घट रही है अथवा यह एक समान दर से प्रसारित हो रहा है?
आपके इस जनोपयोगी कार्य को अतीव शुभकामनाएं!
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ब्रह्माण्ड के प्रसार की दर बड़ रही है।
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ओह ….,
वाकई मनुष्य बडा महान है’ या फिर भाग्यशाली है,
आर्यावर्त के अनुसंधान होना भी गौरव प्रकट करता है. …
अजीबोगरीब है ब्रह्माण्ड’ और गजब है विज्ञान शक्ति …, कितना कुछ जानपाते है हम …., कमाल है
☆आप हिन्दी के माध्यम से राष्ट्र सेवा यज्ञ कर रहे है …,
वेद जीवित हो उठे है ….आभारी है आपके – आपके दिव्य द्रष्टि के ……धन्य हो धन्य हो
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Apko Shayd ek bar ved padhna chahye… science aur ved me dur dur ka koi nata nai h… science science h bhai chhote dimag valo ki soch se pare..
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