लाल विचलन के तीन प्रकार

खगोल भौतिकी 5 : लालविचलन(Redshift) के तीन प्रकार और उनका खगोलभौतिकी मे महत्व


लेखक : ऋषभ इस शृंखला के दूसरे लेख मे हमने देखा कि किस तरह से किसी खगोलभौतिक वैज्ञानिक के लिये विद्युत चुंबकीय वर्णक्रम(Electromagnetic Spectrum) ब्रह्माण्ड के रहस्यो को समझने के लिये एक महत्वपूर्ण और उपयोगी उपकरण है। किसी भी खगोलीय … पढ़ना जारी रखें खगोल भौतिकी 5 : लालविचलन(Redshift) के तीन प्रकार और उनका खगोलभौतिकी मे महत्व

ब्रह्मांड का व्यास उसकी आयु से अधिक कैसे है ?


ब्रह्मांड के मूलभूत और महत्वपूर्ण गुणधर्मो मे से एक प्रकाश गति है। इसे कई रूप से प्रयोग मे लाया जाता है जिसमे दूरी का मापन, ग्रहों के मध्य संचार तथा विभिन्न गणिति गणनाओं का समावेश है। और यह तो बस … पढ़ना जारी रखें ब्रह्मांड का व्यास उसकी आयु से अधिक कैसे है ?

GN-Z11: सबसे प्राचीन तथा सबसे दूरस्थ ज्ञात आकाशगंगा


लेख संक्षेप :

gn-z11GN-z11 यह एक अत्याधिक लाल विचलन(high redshift) वाली आकाशगंगा है जोकि सप्तऋषि तारामंडल मे स्थित है। वर्तमान जानकारी के आधार पर यह सबसे प्राचीन तथा दूरस्थ आकाशगंगा है। GN-z11 के प्रकाश के लालविचलन का मूल्य z=11.1 है जिसका अर्थ पृथ्वी से 32 अरब प्रकाशवर्ष की दूरी है। GN-z11 की जो छवि हम देख रहे है वह 13.4 अरब वर्ष पुरानी है अर्थात बिग बैंग के केवल चालिस करोड़ वर्ष पश्चात के छवि। इस वजह से इस आकाशगंगा की दूरी सामान्यत: 13.4 अरब वर्ष बता दी जाती है।

इस आकाशगंगा की खोज हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला तथा स्पिटजर वेधशाला के आंकड़ो के आधार पर की गयी है। शोध वैज्ञानिको ने हब्बल दूरबीन के वाईड फ़िल्ड कैमरा 3 के प्रयोग से इस आकाशगंगा के लाल विचलन की गणना द्वारा दूरी ज्ञात की। यह लाल विचलन ब्रह्माण्ड के विस्तार के कारण उत्पन्न होता है।

इससे पहले EGSY8p7 आकाशगंगा को सबसे प्राचीन आकाशगंगा माना जाता था लेकिन GN-z11 आकाशगंगा उससे 1.5 करोड़ वर्ष प्राचीन है।

हमारी अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी की तुलना मे GN-z11 पांच गुणा छोटी है और इसका द्रव्यमान मंदाकिनी का 1% है लेकिन इसमे तारो का निर्माण 24 गुणा तेजी से हुआ है।

क्या है GN-z11?

हमारे पास एक नया ब्रह्माण्डीय किर्तिमान है, 2013 मे खोजी गयी एक आकाशगंगा अब तक की ज्ञात सबसे दूरस्थ आकाशगंगा है। यदि शोध के आंकड़े सही है तो इस आकाशगंगा का जो प्रकाश हम आज देख रहे है वह उस आकाशगंगा से अबसे 13.3 अरब वर्ष पहले रवाना हुआ होगा। इस खोज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शायद हम ब्रह्मांड के सबसे आरंभिक तारों को जन्म लेते हुये देख रहे है!

वर्तमान जानकारी के अनुसार यह निरीक्षण और उससे संबधित आंकड़े सटिक लग रहे है लेकिन संदेह की गुंजाईश हमेशा रहती है। इन निरीक्षणो के लिये प्रयुक्त उपकरणो को उनकी क्षमता की अधिकतम सीमा तक प्रयोग किया गया है। इस प्रयोग मे हब्बल दूरबीन तथा स्पिट्जर दूरबीन का प्रयोग किया गया है। अब इसमे कोई शक नही है कि निकट भविष्य मे प्रक्षेपित की जानेवाली विशालकाय अंतरिक्ष वेधशाला जेम्स वेबर अंतरिक्ष वेधशाला का सबसे पहला लक्ष्य यही आकाशगंगा होगी। इस वेधशाला के प्रक्षेपण से पहले किसी अन्य उपकरण से इस निरीक्षण की स्वतंत्र पुष्टि संभव नही है क्योंकि किर्तिमान स्थापित करने वाली दूरी के निरीक्षण के लिये हमने अपने सबसे बेहतरीन उपकरणो को उनकी क्षमता की सीमा तक प्रयोग किया है।

यह चित्र ब्रह्माण्ड की कालरेखा दर्शाता है जो दायें 13.8 अरब वर्ष पहले हुये बिग बैंग से वर्तमान समय तक का है। नयी खोजी गयी आकाशगंगा GN-z11 सबसे अधिक दूरी पर स्थित आकाशगंगा है जिसका लाल विचलन z=11.1 है जो कि बिग बैंग के चालीस करोड़ वर्ष बाद की निर्मित है। इससे पहले की ज्ञात सबसे दूरस्थ आकाशगंगा GN-z11 के 15 करोड़ वर्ष पश्चात निर्मित हुयी थी।
यह चित्र ब्रह्माण्ड की कालरेखा दर्शाता है जो दायें 13.8 अरब वर्ष पहले हुये बिग बैंग से वर्तमान समय तक का है। नयी खोजी गयी आकाशगंगा GN-z11 सबसे अधिक दूरी पर स्थित आकाशगंगा है जिसका लाल विचलन z=11.1 है जो कि बिग बैंग के चालीस करोड़ वर्ष बाद की निर्मित है। इससे पहले की ज्ञात सबसे दूरस्थ आकाशगंगा GN-z11 के 15 करोड़ वर्ष पश्चात निर्मित हुयी थी।

इस आकाशगंगा GN-z11 को सप्तऋषि तारामंडल के पास पाया गया है, यह खोज अत्यंत दूरी पर स्थित आकाशगंगाओ के सर्वे का एक भाग है। हब्बल दूरबीन के विस्तृत क्षेत्र वाले कैमरा तीन के प्रयोग से खगोल वैज्ञानिको ने आकाश मे पांच छोटे बिंदु देखे। यह कैमरा तीन अवरक्त प्रकाश के लिये अत्यंत संवेदनशील है।

यह एक विस्मयकारी खोज थी। नवजात आकाशगंगाओ से सामान्यत: पराबैंगनी किरणो उत्सर्जित करती है क्योंकि उनमे निर्मित हो रये नवजात महाकाय ऊर्जा से भरे होते है और अपने आस पास इस ऊर्जा को फ़ैलाते रहते है। लेकिन ये आकाशगंगाये अत्यंत दूरी पर स्थित है, इतनी दूरी पर कि इनसे उत्सर्जित प्रकाश को हम तक पहुंचने के लिये ब्रह्माण्ड के विस्तार से जुझना पढ़ा है। इस यात्रा मे प्रकाश की ऊर्जा कम होती है और यह प्रकाश हम तक पहुंचते तक पराबैंगनी किरणो से अवरक्त किरणो मे परिवर्तित हो जाता है, इस प्रभाव को लाल विचलन(red shift) कहते है। इस प्रकाश को जांचने के लिये ही हब्बल के अवरक्त प्रकाश वाले उपकरणो का प्रयोग किया गया।

लेकिन इतना काफ़ी नही है। हायड्रोजन गैस पराबैंगनी प्रकाश किरणो का अवशोषण करती है। लेकिन इस अवशोषण की भी एक सीमा है। यदि प्रकाश मे अत्याधिक ऊर्जा है तो वह हायड्रोजन परमाणु से इलेक्ट्रान को अलग कर देती है जिससे परमाणु अब प्रकाश का अवशोषण नही कर पाता है। इस सीमा से अधिक ऊर्जा वाली पराबैंगनी प्रकाश किरण हायड्रोजन को पार नही कर पाती है। यदि हम इस प्रकाश के वर्णक्रम को देखें तो इस विशिष्ट ऊर्जा पर प्रकाश नही होता है। इसे लीमन अंतराल(Lyman Break) कहते है।

लेकिन यदि यह प्रकाश इतनी दूर की आकाशगंगा से आ रहा है तब लीमन अंतराल से दूर वाली प्रकाश किरणे भी लाल विचलन से प्रभावित होती है और अवरक्त किरणो के रूप मे दिखायी देती है। यदि आप भिन्न भिन्न फ़िल्टरो से इन आकाशगंगाओ का चित्र ले तो वे आपको को कुछ चित्र मे दिखायी देंगी , कुछ मे नही। यदि आप देखें कि वे किन चित्रों मे अदृश्य है आप उसकी दूरी की गणना कर सकते है। जो आकाशगंगा जितनी दूरी होगी, उतना अधिक लीमन अंतराल मे विचलन होगा।

पारंपरिक रूप से किसी भी विकिरण मे आये लाल विचलन का प्रयोग आकाशगंगाओ की दूरी मापने मे होता है लेकिन ब्रह्मांड मे सर्वाधिक दूरस्थ पिंडो के प्रकाश मे उत्पन्न लाल विचलन के मापन मे कठिनायी होती है। ये दूरस्थ पिंड ही ब्रह्मांड के प्रारंभ मे निर्मित पिंड होते है। बिग बैंग के तुरंत पश्चात सारा ब्रह्मांड आवेशित कण इलेक्ट्रान-प्रोटान तथा प्रकाशकण- फोटान का एक अत्यंत घना सूप था। ये फोटान इलेक्ट्रान से टकरा कर बिखर जाते थे जिससे शुरुवाती ब्रह्माण्ड मे प्रकाश गति नही कर पाता था। बिग बैंग के 380,000 वर्ष पश्चात ब्रह्मांड इतना शीतल हो गया कि मुक्त इलेक्ट्रान और प्रोटान मिलकर अनावेशित हायड्रोजन परमाणु का निर्माण करने लगे, इन हायड्रोजन परमाणुओं ने ब्रह्माण्ड को व्याप्त रखा था, इस अवस्था मे प्रकाश ब्रह्माण्ड मे गति करने लगा था। जब ब्रह्माण्ड की आयु आधे अरब वर्ष से एक अरब वर्ष के मध्य थी, तब प्रथम आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ है, इन आकाशगंगाओ ने अनावेशित हायड्रोजन गैसे को पुनः आयोनाइज्ड कर दिया जिससे ब्रह्मांड अब भी आयोनाइज्ड है। पढ़ना जारी रखें “GN-Z11: सबसे प्राचीन तथा सबसे दूरस्थ ज्ञात आकाशगंगा”

EGS8p7 आकाशगंगा

सबसे दूरस्थ सबसे प्राचीन आकाशगंगा की खोज : आयु 13.2 अरब वर्ष


EGS8p7 आकाशगंगा
EGS8p7 आकाशगंगा

कालटेक विश्वविद्यालय (Caltech University) के वैज्ञानिको ने ब्रह्मांड के आरंभीक समय मे बनने वाले पिंडो की खोज मे वर्षो व्यतित किये है। ये वैज्ञानिक अब एक बार फ़िर से सुर्खियों मे है, उन्होने अब तक की सर्वाधिक दूरी पर स्थित कुछ आकाशगंगाये खोज निकाली है। 28 अगस्त 2015 को विज्ञान शोध पत्रिका आस्ट्रोफिजिकल जरनल लेटर्स(Astrophysical Journal Letters) मे प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार उन्होने एक आकाशगंगा EGS8p7 खोज निकाली है जो कि 13.2 अरब वर्ष पुरानी है। जबकि हमारा ब्रह्माण्ड 13.8 अरब वर्ष पुराना है।

इस वर्ष के आरंभ मे नासा की अंतरिक्ष वेधशालाओं हब्बल(Hubble Space Telescope) तथा स्पिट्जर(Spitzer Space Telescope) से प्राप्त आंकड़ो के अनुसार EGS8p7 को आगे शोध के लिये उम्मीदवार माना गया था। हवाई द्विप की डब्ल्यु एम केक वेधशाला(W.M. Keck Observatory ) के अवरक्त किरणो के प्रयोग से एकाधिक पिंड के वर्णक्रम का अध्ययन करने वाले उपकरण( multi-object spectrometer for infrared exploration (MOSFIRE)) का प्रयोग किया। इस प्रयोग मे उन्होने स्पेक्ट्रोग्राफिक विश्लेषण (spectrographic analysis) द्वारा आकाशगंगा द्वारा उतसर्जित विकिरण मे लाल विचलन(redshift) का अध्ययन किया। किसी भी तरंग मे लाल विचलन डाप्लर प्रभाव के कारण होता है। इस प्रभाव को आप अपने से दूर जा रही ट्रेन की सीटी की पिच मे आये परिवर्तन से महसूस कर सहते है। लेकिन ब्रह्माण्डीय पिंडो मे ध्वनि तरंग की बजाय प्रकाश की तरंग मे बदलाव होता है, यह परिवर्तन तरंग के वास्तविक रंग से लाल रंग की ओर विचलन के रूप मे होता है।

वैज्ञानिक चकित है क्योंकि इस आकाशगंगा को हमे दिखायी ही नही पड़ना चाहिये। क्योंकि यह आकाशगंगा एक ऐसे समय से है जिसके पिंडो से निकला उत्सर्जन अनावेशित हायड्रोजन के बादलो द्वारा अवशोषित हो जाना चाहिए।

पारंपरिक रूप से किसी भी विकिरण मे आये लाल विचलन का प्रयोग आकाशगंगाओ की दूरी मापने मे होता है लेकिन ब्रह्मांड मे सर्वाधिक दूरस्थ पिंडो के प्रकाश मे उत्पन्न लाल विचलन के मापन मे कठिनायी होती है। ये दूरस्थ पिंड ही ब्रह्मांड के प्रारंभ मे निर्मित पिंड होते है। बिग बैंग के तुरंत पश्चात सारा ब्रह्मांड आवेशित कण इलेक्ट्रान-प्रोटान तथा प्रकाशकण- फोटान का एक अत्यंत घना सूप था। ये फोटान इलेक्ट्रान से टकरा कर बिखर जाते थे जिससे शुरुवाती ब्रह्माण्ड मे प्रकाश गति नही कर पाता था। बिग बैंग के 380,000 वर्ष पश्चात ब्रह्मांड इतना शीतल हो गया कि मुक्त इलेक्ट्रान और प्रोटान मिलकर अनावेशित हायड्रोजन परमाणु का निर्माण करने लगे, इन हायड्रोजन परमाणुओं ने ब्रह्माण्ड को व्याप्त रखा था, इस अवस्था मे प्रकाश ब्रह्माण्ड मे गति करने लगा था। जब ब्रह्माण्ड की आयु आधे अरब वर्ष से एक अरब वर्ष के मध्य थी, तब प्रथम आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ है, इन आकाशगंगाओ ने अनावेशित हायड्रोजन गैसे को पुनः आयोनाइज्ड कर दिया जिससे ब्रह्मांड अब भी आयोनाइज्ड है। पढ़ना जारी रखें “सबसे दूरस्थ सबसे प्राचीन आकाशगंगा की खोज : आयु 13.2 अरब वर्ष”

डाप्लर प्रभाव तथा लाल विचलन


डाप्लर प्रभाव

डापलर प्रभाव यह किसी तरंग(Wave) की तरंगदैधर्य(wavelength) और आवृत्ती(frequency) मे आया वह परिवर्तन है जिसे उस तरंग के श्रोत के पास आते या दूर जाते हुये निरीक्षक द्वारा महसूस किया जाता है। यह प्रभाव आप किसी आप अपने निकट पहुंचते वाहन की ध्वनी और दूर जाते वाहन की ध्वनी मे आ रहे परिवर्तनो से महसूस कर सकते है।

इसे वैज्ञानिक रूप से देंखे तो होता यह है कि आप से दूर जाते वाहन की ध्वनी तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य(wavelength)बढ जाती है, और पास आते वाहन की ध्वनी तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य कम हो जाती है। दूसरे शब्दो मे जब तरंगदैधर्य(wavelength) बढ जाती है तब आवृत्ती कम हो जाती है और जब तरंगदैधर्य(wavelength) कम हो जाती है आवृत्ती बढ जाती है। पढ़ना जारी रखें “डाप्लर प्रभाव तथा लाल विचलन”