
वशिष्ठ, जिसका बायर नामांकन “ज़ेटा अर्से मॅजोरिस” (ζ UMa या ζ Ursae Majoris) है, सप्तर्षि तारामंडल(Big Dipper/Ursa Major) का चौथा सब से दीप्तिमान तारा है, जो पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से 70वाँ सब से दीप्तिमान तारा भी है।
शक्तिशाली दूरबीन से देखने पर ज्ञात हुआ है कि यह वास्तव में 4 तारों का एक मंडल है। इसके बहुत पास इस से काफ़ी कम रोशनी वाला अरुंधती तारा (बायर नाम: 80 अर्से मॅजोरिस, 80 UMa) दिखता है जो स्वयं एक युग्म तारा है। इन दोनों के मिलकर जो 6 तारे हैं वे एक दूसरे के गुरुत्वाकर्षण से बंधे हुए हैं और पृथ्वी से लगभग 81 प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं। वशिष्ठ का चार-तारा मंडल और अरुंधती का युग्मतारा एक दूसरे से अनुमानित 1.1 प्रकाश वर्ष की दूरी रखते हैं। वशिष्ठ की पृथ्वी से देखा गया औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि दीप्ति का माप) +2.23 है लेकिन इसके सबसे रोशन तारे की चमक +2.27 मैग्निट्यूड है। ध्यान रहे कि मैग्निट्यूड एक उल्टा माप है और यह जितना अधिक हो तारा उतना ही कम चमकिला लगता है।

युग्म तारा : यदि दो तारे एक दूसरे के समीप हो तथा एक दूसरे की परिक्रमा कर रहे हों तो उन्हे युग्म तारा कहते है।
अन्य भाषाओं मे
- वशिष्ठ तारे को अंग्रेज़ी में “माइज़र” (Mizar) कहा जाता है। यह अरबी भाषा के “मीज़र” (مئزر) से आया है, जिसका मतलब है “कमरबंद”।
- अरुंधती तारे को अंग्रेजी में “ऐल्कॉर” (Alcor) कहा जाता है। यह अरबी के “अल-ख़व्वार” से आया है, जिसका मतलब है “धुंधला”, क्योंकि यह तारा वशिष्ठ के सामने बहुत धुंधला लगता है।
वशिष्ठ दो युग्मतारा का मंडल है, यानि इसमें कुल 4 तारे हैं। दूरबीन से देखने पर यह दोनों युग्मतारे दो अलग तारे लगते हैं, जिन्हें अंग्रेज़ी में “माइज़र ए” (Mizar A) और “माइज़र बी” (Mizar B) कहा जाता है। जब इनका वर्णक्रम (स्पॅक्ट्रम) ग़ौर से देखा जाता है तो ज्ञात होता है कि इनमें दो नहीं बल्कि चार तारे हैं। इन दोनों युग्मतारों में माइज़र ए अधिक रोशन है। अनुमान लगाया गया है कि यह दोनों युग्मतारे एक दूसरे की एक परिक्रमा हर 200 वर्ष में पूरी कर लेते हैं, हालाँकि कुछ खगोलशास्त्रियों के अनुसार इन्हें एक परिक्रमा में हज़ारों साल लगते हैं। माइज़र ए युग्मतारा के दोनों तारे हमारे सूरज से लगभग 35 गुना अधिक चमक (निरपेक्ष कान्तिमान) रखते हैं। माइज़र ए के दोनों तारे A2 V श्रेणी के मुख्य अनुक्रम तारे हैं। माइज़र बी का मुख्य तारा A7 श्रेणी का तारा है।
अरुंधती के दो तारों को अंग्रेज़ी में “ऐल्कॉर ए” और “ऐल्कॉर बी” कहा जाता है और इसका मुख्य तारा A5 V श्रेणी का है।
बचपन में पाठ्य पुस्तकों में या अन्यत्र सप्तर्षि का चित्र आकाशिय दृश्य के उलटा प्रकाशित देखता था।ऐसा क्यों?
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सप्तऋषि ध्रुव तारे की परिक्रमा करते दिखाई देते है। वह आपको आकाश में दोनों स्थितियों में दिखेंगे। बस निर्भर करता है कि आप किस समय देख रहे है।
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प्रति नेनो सेकेन्ड की गति से यदी खगोल को खंगाला जाए, तब भी उसके आश्चर्यजनक रहस्यों को जानने मे मानवजात के कितने ही युग बीत जाएंगे …
वाकई ब्रह्माण्ड मायाजाल, मायावी, और मायामय है ….
विज्ञान दर्शन कराने के लिए’ विज्ञान विश्व के बहोत बहोत आभारी है ….
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परमाणु पदार्थ की इकाई कोशिका जीवन की। कोशिका हजारो लाखों परमाणु से बनी होती है। हायड्रोजन का परमाणु प्रयोगशाला में देखा जा चूका है।
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