गुरुत्वाकर्षण तरंग की खोज : LIGO की सफ़लता


लगभग सौ वर्ष पहले 1915 मे अलबर्ट आइंस्टाइन (Albert Einstein)ने साधारण सापेक्षतावाद का सिद्धांत(Theory of General Relativity) प्रस्तुत किया था। इस सिद्धांत के अनेक पुर्वानुमानो मे से अनुमान एक काल-अंतराल(space-time) को भी विकृत(मोड़) कर सकने वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगो की उपस्थिति भी था। गुरुत्वाकर्षण तरंगो की उपस्थिति को प्रमाणित करने मे एक सदी लग गयी और 11 फ़रवरी 2016 को लीगो ऑब्ज़र्वेटरी के शोधकर्ताओं ने कहा है कि उन्होंने दो श्याम विवरों (Black Holes)की टक्कर से निकलने वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाया है।

लिगो (LIGO / Laser Interferometer Gravitational-Wave Observatory) भौतिकी का एक विशाल प्रयोग है जिसका उद्देश्य गुरुत्वीय तरंगों का सीधे पता लगाना है। यह एमआईटी(MIT), काल्टेक(Caltech) तथा बहुत से अन्य संस्थानों का सम्मिलित परियोजना है। यह अमेरिका के नेशनल साइंस फाउण्डेशन (NSF) द्वारा प्रायोजित है।

गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने आंकड़ो के विश्लेषन(डेटा अनैलिसिस) समेत काफी अहम भूमिकाएं निभाई हैं। इंस्टिट्यूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च. गांधीनगर, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रॉनामी ऐंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे और राजारमन सेंटर फॉर अडवांस्ड टेक्नॉलाजी, इंदौर सहित कई संस्थान इससे जुड़े थे। गुरुत्वीय तरंगों की खोज का ऐलान आईयूसीएए पुणे और वाशिंगटन डीसी अमेरिका में वैज्ञानिकों ने किया। भारत उन देशों में से भी एक है, जहां गुरुत्वाकषर्ण प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है।
गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने आंकड़ो के विश्लेषन(डेटा अनैलिसिस) समेत काफी अहम भूमिकाएं निभाई हैं। इंस्टिट्यूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च. गांधीनगर, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रॉनामी ऐंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे और राजारमन सेंटर फॉर अडवांस्ड टेक्नॉलाजी, इंदौर सहित कई संस्थान इससे जुड़े थे।
गुरुत्वीय तरंगों की खोज का ऐलान आईयूसीएए पुणे और वाशिंगटन डीसी अमेरिका में वैज्ञानिकों ने किया। भारत उन देशों में से भी एक है, जहां गुरुत्वाकषर्ण प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है।

मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फ़ॉर ग्रेविटेशनल फ़िज़िक्स और लेबनीज़ यूनिवर्सिटी के प्रॉफ़ेसर कार्स्टन डान्ज़मैन ने इस शोध को डीएनए के ढांचे की समझ विकसित करने और हिग्स पार्टिकल की खोज जितना ही महत्वपूर्ण मानते है। वे कहते है कि इस खोज मे नोबेल पुरस्कार छिपा है। इस खोज के महत्व का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इन्हें शताब्दि की सबसे बड़ी खोज माना जा रहा है। दशकों से वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि क्या गुरुत्वाकर्षण तरंगें वाकई दिखती हैं। इसकी खोज करने के लिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी(ESA) ने “लीज पाथफाइंडर” नाम का अंतरिक्ष यान भी अंतरिक्ष में भेजा था।

आज से करीब सवा अरब साल पहले ब्रह्मांड में 2 श्याम विवरों (ब्लैक होल) में टक्कर हुई थी और यह टक्कर इतनी भयंकर थी कि अंतरिक्ष में उनके आसपास मौजूद जगह(अंतरिक्ष) और समय, दोनों विकृत हो गए। आइंस्टाइन ने 100 साल पहले कहा था कि इस टक्कर के बाद अंतरिक्ष में हुआ बदलाव सिर्फ टकराव वाली जगह पर सीमित नहीं रहेगा। उन्होंने कहा था कि इस टकराव के बाद अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण तरंगें उत्पन्न हुईं और ये तरंगें किसी तालाब में पैदा हुई तरंगों की तरह आगे बढ़ती हैं।

अब विश्व भर के वैज्ञानिकों को आइंस्टाइन की सापेक्षता के सिद्धांत (थिअरी ऑफ रिलेटिविटी) के प्रमाण मिल गए हैं। इसे अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बहुत बड़ी सफलता माना जा रहा है। गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज से खगोल विज्ञान और भौतिक विज्ञान में खोज के नए दरवाजे खुलेंगे।

ध्यान रहे कि इसके पहले युग्म श्याम विवरों(Binary Black Holes) की उपस्थिति के प्रमाण थे, लेकिन इस खोज से उनकी उपस्थिति पुख्ता रूप से प्रमाणित हो गयी है और यह भी प्रमाणित हो गया है कि अतंत: वे टकराकर एक दूसरे मे विलिन हो जाते है।

इन दोनो श्याम विवरो का विलय से पहले द्रव्यमान 36 तथा 29 सौर द्रव्यमान के बराबर था। उनके विलय के पश्चात बने श्याम विवर का द्रव्यमान 62 सौर द्रव्यमान है। आप ध्यान दे तो पता चलेगा कि नये श्याम विवर का द्रव्यमान दोनो श्याम विवर के द्रव्यमान से कम है और 3 सौर द्रव्यमान के तुल्य द्रव्यमान कम है। ये द्रव्यमान गायब नही हुआ है, यह द्रव्यमान ऊर्जा के रूप मे परिवर्तित हो गया है और इसी ऊर्जा से गुरुत्वाकर्षण तरंगे उत्पन्न हुयी है। इस ऊर्जा की मात्रा अत्याधिक अधिक है, इतनी अधिक की सूर्य को इतनी ऊर्जा उत्सर्जित करने मे 150 खरब वर्ष लगेंगे। (नोट : 1 सौर द्रव्यमान – सूर्य का द्रव्यमान)।

 दो LIGO प्रयोगशाला द्वारा प्राप्त वास्तविक आंकड़े। आलेख मे आया विचलन गुरुत्वाकर्षण तरंगो द्वारा अंतरिक्ष मे मोड़ उत्पन्न करने से है जोकि दो श्याम विवर के विलय से उत्पन्न हुयी थी।

दो LIGO प्रयोगशाला द्वारा प्राप्त वास्तविक आंकड़े। आलेख मे आया विचलन गुरुत्वाकर्षण तरंगो द्वारा अंतरिक्ष मे मोड़ उत्पन्न करने से है जोकि दो श्याम विवर के विलय से उत्पन्न हुयी थी।

गुरुत्वाकर्षण तरंगे क्या है?

द्रव्यमान द्वारा काल-अंतराल(spacetime) मे उत्पन्न विकृति
द्रव्यमान द्वारा काल-अंतराल(spacetime) मे उत्पन्न विकृति

आइंस्टाइन के साधारण सापेक्षतावाद सिद्धांत के अनुसार अंतरिक्ष और समय दोनो एक ही सिक्के के दो पहलु है, दोनो एक दूसरे से गुंथे हुये है, जिन्हे हम एक साथ ’काल-अंतराल(spcaetime)’ कहते है। इसे समझने के लिये कई उदाहरण है लेकिन सबसे सरल एक चादर है जिसके चार आयाम है जोकि अंतरिक्ष के तीन आयाम(लंबाई, चौड़ाई और गहराई) तथा चौथा आयाम के रूप मे समय है। ध्यान दें कि यह केवल समझने के लिये है, वास्तविकता इससे थोड़ी भिन्न होती है।

हम सामान्यत: गुरुत्वाकर्षण बल को एक आकर्षित करनेवाला या खिंचने वाला बल मानते है। लेकिन आइंस्टाइन के अनुसार गुरुत्वाकर्षण काल-अंतराल को मोड़ देता है, उसे विकृत कर देता है और इस प्रभाव को हम एक आकर्षण बल के रूप मे देखते है। एक अत्याधिक द्रव्यमान वाला पिंड काल-अंतराल को इस तरह से मोड़ देता है कि  इस मुड़े हुये काल अंतराल से गुजरते हुये अन्य पिंड की गति त्वरित हो जाती है। जैसे किसी तनी हुयी चादर के मध्य एक भारी गेंद रख देने पर वह चादर मे एक झोल उत्पन्न कर देती है, उसके पश्चात उसी चादर पर कुछ कंचे डालने पर वे इस झोल की वजह से गति प्राप्त करते है।

सरल शब्दो मे पदार्थ अंतरिक्ष को मोड़ उत्पन्न करने के लिये निर्देश देता है और अंतरिक्ष पदार्थ को गति करने निर्देश देता है।

साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के गणित के अनुसार यदि किसी भारी पिंड की गति मे त्वरण आता है, तो वह अंतरिक्ष मे हिचकोले, लहरे उत्पन्न करेगा जो उस पिंड से दूर गति करेंगी। ये लहरे काल-अंतराल मे उत्पन्न तरंग होती है, इन तरंगो की गति के साथ काल-अंतराल(spacetime) मे संकुचन और विस्तार उत्पन्न होता है। इस घटना को समझने के लिये आप किसी शांत जल मे पत्थर डालने से जल की शांत सतह को मोड़ रही लहरो के जैसे मान सकते है।

गुरुत्वाकर्षण तरंगो को उत्पन्न करने के कई तरिके है। जितना अधिक भारी और घना पिंड होगा वह उतनी अधिक ऊर्जावान तरंग उत्पन्न करेगा। पृथ्वी सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से त्वरित होकर एक वर्ष मे सूर्य की परिक्रमा करती है। लेकिन यह गति बहुत धीमी है तथा पृथ्वी का द्रव्यमान इतना कम है कि इससे उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण तरंग को पकड़ पाना लगभग असंभव ही है।

लेकिन यदि आपके पास दो अत्याधिक द्रव्यमान वाले पिंड है, उदाहरण के लिये न्युट्रान तारे जोकि महाकाय तारो के अत्याधिक घनत्व वाले अवशेष केंद्रक होते है, अपनी गति से ऐसी गुरुत्वाकर्षण तरंग उत्पन्न कर सकते है जिन्हे हम पकड़ सकें।

1974 मे खगोल वैज्ञानिक जोसेफ़ टेलर(Josheph Taylor) तथा रसेल ह्ल्स(Russel Hulse) ने एक ’युग्म न्युट्रान तारों(Binary Neutron Star)’ को खोजा था। ये दोनो अत्याधिक द्रव्यमान वाले घने तारे एक दूसरे की परिक्रमा अत्याधिक तीव्र गति से लगभग 8 घंटो मे करते थे। इस तीव्र गति से परिक्रमा करने पर वे थोड़ी मात्रा मे गुरुत्वाकर्षण तरंग के रूप मे ऊर्जा उत्पन्न करते थे। यह ऊर्जा उन तारो की परिक्रमा गति से ही उत्पन्न हो रही थी, जिससे गुरुत्वाकर्षण की ऊर्जा के ह्रास से उन तारो की परिक्रमा की गति भी कम हो रही थी। इससे उन तारो की कक्षा की दूरी भी कम हो रही थी और उनकी परिक्रमा का समय भी कम हो रहा था। समय के साथ उनकी कक्षा की दूरी मे आने वाली कमी की गणना की गयी और यह कमी साधारण सापेक्षतवाद के सिद्धांत से गणना की गयी कमी से सटिक रूप से मेल खाती थी।

टेलर और हल्स द्वारा निरीक्षित दो न्युट्रान तारो की कक्षा मे ह्रास का आलेख(लाल बिंदु)। नीले बिंदु साधारण सापेक्षतावाद द्वारा गणना किये गये है जोकि निरीक्षित प्रभाव से मेल खाते है।
टेलर और हल्स द्वारा निरीक्षित दो न्युट्रान तारो की कक्षा मे ह्रास का आलेख(लाल बिंदु)। नीले बिंदु साधारण सापेक्षतावाद द्वारा गणना किये गये है जोकि निरीक्षित प्रभाव से मेल खाते है।

टेलर और हल्स को इस खोज के लिये नोबेल पुरस्कार दिया गया था और उन्होने अप्रत्यक्ष रूप से गुरुत्वाकर्षण तरंग खोज निकाली थी। उन्होने गुरुत्वाकर्षण तरंगो के निर्माण से ऊर्जा के ह्रास को तारो की कक्षा मे आनेवाले परिवर्तन को देखा था, लेकिन उन्होने गुरुत्वाकर्षण तरंगो को प्रत्यक्ष नही देखा था।

लिगो (LIGO) ने गुरुत्वाकर्षण तरंगो को कैसे खोजा?

गुरुत्वाकर्षण तरंग बहुत से आकार और प्रकार मे आती है। लेकिन वे सभी की सभी अंतरिक्ष के आकार को न्युनाधिक मात्रा मे विकृत करती है। इसके कारण दो पिंडो के मध्य अंतरिक्ष मे आयी विकृति से दूरी कम ज्यादा होती है। इस दूरी के परिवर्तन को मापा कैसे जाये ? यह दो पिंडो के मध्य किसी पैमाने से उनकी दूरी मे आने वाले परिवर्तनो को मापने जैसा आसान नही है।

1. गुरुत्वाकर्षण तरंग से अंतरिक्ष मे संकुचन 10^22 भाग में एक भाग के बराबर है! यानी परमाणु के नाभिक का एक करोड़वां भाग। 2. प्रयोग से प्राप्त आंकड़ो में बहुत ही ज्यादा
1. गुरुत्वाकर्षण तरंग से अंतरिक्ष मे संकुचन 10^22 भाग में एक भाग के बराबर है! यानी परमाणु के नाभिक का एक करोड़वां भाग।
2. प्रयोग से प्राप्त आंकड़ो में बहुत ही ज्यादा “अवांछित संकेत” भी होते है, जो किसी ट्रेन के चलने, हवाई जहाज के चलने, ट्रैफिक, चलने और यहाँ तक परमाणुओं के कम्पन से भी उत्पन्न होते है। इन “अवांछित संकेतो” के मध्य में ही गुरुत्वाकर्षण तरंग के संकेत भी होते है, जिसकी तीव्रता अत्यंत कम होती है, जिसे बाकी अवांछित संकेत से अलग करना बहुत बड़ी चुनौती का काम होता है। पांच महीने इसी काम में लग गए हैं।
3. चार किलोमीटर लम्बी सुरंग के अंदर एक सीधा पाइप है, पाइप के अंदर निर्वात है, लेज़र निर्वात से गुजरता है! ताकि लेजर किसी परमाणु से टकराकर कोई “अवांछित संकेत” न उत्पन्न कर सके।

लिगो (LIGO / Laser Interferometer Gravitational-Wave Observatory) के अंतर्गत दो प्रयोगशालायें है एक वाशींगटन राज्य मे है, दूसरी लुसियाना राज्य मे है जिन्हे संयुक्त रूप से काल्टेक तथा एम आई टी संचालित करती है। ये किसी अन्य खगोलिय वेधशाला के जैसे नही है। इन दोनो वेधशालाओ मे बहुत लंबी L के आकार मे सुरंगे है। एक चार किमी लंबी सुरंग के सबसे दूर वाले सीरो पर दर्पण लगे है।

जिस जगह पर ये दोनो सुरंगे जुड़ी हुयी है उसके उपर एक शक्तिशाली लेजर उपकरण लगा हुआ है। यह लेजर उपकरण लेजर किरण को एक विशेष दर्पण पर डालता है और यह दर्पण इस लेजर किरण को विभाजित कर सूरंग के दोनो ओर भेजता है। सूरंग के दोनो सीरो के दर्पण से परावर्तित किरणो का अंत मे एक जांच उपकरण वापिस जोड़कर मापता है।

इस विशालकाय प्रयोग को सरल रूप से समझते है। इस प्रयोग की दो सुरंगो के दो सीरो पर चित्र मे दिखाये अनुसार दो दर्पण M1 तथा M2 लगे है। इन दो सूरंगो के जोड़ पर लेजर विभाजक B, लेजर उपकरण(स्रोत) LS तथा लेजर जांचक LD लगा है। लेजर स्रोत LS से लेजर किरण लेजर विभाजक B पर पड़ती है और वह उसे विभाजित कर दर्पण M1 तथा M2 पर भेजती है। M1 तथा M2 से परावर्तित किरणे B से गुजरते हुये लेजर जांचक उपकरण LD पर आती है। ध्यान दे कि B से M1 या M2 की दूरी 4 किमी है।

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इस जांच प्रणाली को मिशेल्सन इन्टर्फ़ेरोमिटर(Michelson Interferometer) कहते है।

इस प्रणाली को इस आसान चित्र मे देखे।

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साधारण स्थिति मे(गुरुत्वाकर्षण तरंगो की अनुपस्थिति मे) लेजर स्रोत LS से उत्सर्जित लेजर किरण विभाजित B द्वारा विभाजित हो कर M1/M2 तक इस चित्र के अनुसार जायेंगी और परावर्तित होकर लेजर जांचक LD तक पहुंचेंगी। हरा और लाल रंग समझने के लिये प्रयोग किया गया है, साथ ही लेजर पल्स का परावर्तित होकर आने वाला मार्ग केवल समझने के लिये हटकर दिखाया है।

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प्रकाश स्रोत बांये LS से उत्सर्जित होता है, तथा विभाजक तक पहुंचने से पहले साथ साथ चलता है, लाल तथा हरें बिंदु साथ मे है। विभाजक हरे रंग की किरण को उपर की ओर वाले दर्पण M1 तथा लाल रंग की किरण को दायीं ओर के दर्पण M2 की ओर भेजता है। दोनो किरणे M1/M2 से परावर्तित होकर विभाजक से होते हुये लेजर जांच उपकरण नीचे LD तक आती है।

इस प्रणाली मे आड़ी सुरंग सीधी खड़ी सूरंग से थोड़ी बड़ी है। इसलिये लाल किरण को थोड़ा अधिक समय लगता है इस्लिये वे जांच यंत्र तक थोड़ी देर मे आती है, और इससे हमे एक लय मे किरणे आती दिखायी देती है, लाल , हरी लाल , हरी और उनके मध्य समय अंतराल भी समान है। यह महत्वपूर्ण है जो हम आगे देखेंगे।

नीचे चित्र मे इन किरणो के आने का पैटर्न और समय देखे। पैटर्न स्पष्ट है, लाल और हरी किरण एक के बाद एक समान अंतराल मे आ रही है।

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अब गुरुत्विय तरंग को लेकर आते है।

यदि गुरुत्वाकर्षण तरंग आपकी स्क्रीन के पीछे से आपकी स्क्रिन के सामने की ओर जा रही है तो उसका प्रभाव नीचे चित्र के जैसे होगा।(प्रभाव को समझने के लिये बढ़ा चढ़ा कर दिखाया गया है।) गुरुत्वाकर्षण तरंग से अंतरिक्ष को मोड़ दिया गया है जिससे विभाजक और दर्पण M1/M2 के मध्य दूरी मे परिवर्तन हुआ है। अब हमारे जांच यंत्र मे आ रहे प्रकाश को देखिये। कभी कभी लाल और हरी किरण समान अंतराल मे आ रही है, कभी वे कम अंतराल मे आ रही है। यह प्रभाव गुरुत्वाकर्षण तरंग से आया है, गुरुत्वाकर्षण तरंग की अनुपस्थिति मे समय अंतराल नियमित था।

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इस प्रभाव को नीचे चित्र मे देखें, इस चित्र मे आप इन किरणो के समय अंतराल मे अनियमितता को देख सकते है। यह प्रभाव केवल गुरुत्वाकर्षण तरंग से संभव है। केवल गुरुत्वाकर्षण तरंग ही दो स्थानो के मध्य दूरी को संकुचित या विस्तार दे सकती है, यदि हमने यह प्रभाव देखा है अर्थात हमने गुरुत्वाकर्षण तरंग देख ली है।

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लिगो ने यह प्रभाव 14 सितंबर को देखा था।

इन्टरफ़्रेन्स जांच का संचालन

यदि आप सोच रहे है कि LIGO जैसे उपकरण को इन्टरफ़ेरोमेट्रिक गुरुत्वाकर्षण तरंग जांच उपकरण(interferometric gravitational wave detector) क्यों कहा जाता है, तो हमे तरंगो से संबधित कुछ मूल बाते समझनी होंगी। यदि आप जटिलता मे नही जाना चाहते तो बस इतना समझ लें कि LIGO जैसे उपकरण प्रकाश तरंग के गुणधर्मो मे आये परिवर्तनो से पिछले एनीमेशन वाले चित्र मे लेजर किरणो के आने के अंतराल को मापते है। यदि आप इस जटिलता मे नही जाना चाहते तो इस भाग को छोड़ कर अगले भाग से पढना जारी रखे।

प्रकाश एक तरंग होती है जिसमे चढ़ाव और उतार दोनो होते है जोकि विद्युत-चुंबकिय प्रभाव के अधिकतम और न्यूनतम से संबधित होते है। पिछले एनीमेशन मे हमने प्रकाश किरणो के प्रवाह के रूप मे देखा है लेकिन इसे किसी इन्टरफ़्रेमोमीटर मे प्रकाश तरंग पर पढ़ने वाले प्रभाव को समझने के लिये भी प्रयोग किया जा सकता है। इस एनिमेशन मे आप हर लाल और हरे बिंदु को प्रकाश तरंग के शिर्ष बिंदु के जैसे मान सकते है।

2 और 2 कण मिलकर चार कण बनते है। लेकिन दो भिन्न तरंगो को जोड़ने पर कुछ भी हो सकता है, कभी वे मिलकर एक बड़ी तरंग बनायेंगी, कभी छोटी तरंग और कभी दोनो एक दूसरे को नष्ट कर कुछ भी नही बनायेंगी। और कभी इससे जटिल परिणाम भी आ सकता है।

जब दो तरंग एक जैसे हो, अर्थात एक तरंग का शिर्ष दूसरी तरंग के शिर्ष के साथ हो तथा दोनो तरंग के निम्न बिंदु भी एक साथ हो तब दोनो मिलकर एक बड़ी तरंग बनाते है। नीचे का चित्र मे दिखाया गया है कि दो तरंगो के भिन्न हिस्से जब किसी प्रकाश जांचक यंत्र मे आते है तो मिलकर कैसे नयी तरंग बनाते है।(समझने के लिये हर तरंग के शिर्ष पर एक बिंदु बना दिया है।)

 

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उपरोक्त चित्र मे हरी तरंग लाल तरंग के साथ मे है। दोनो के शिर्ष तथा ढाल एक साथ है। जब ये दोनो मिलती है तो एक बड़ी तरंग बनाती है जिसे चित्र के नीचले भाग मे नीली तरंग के रूप मे दर्शाया है।

अब यदि किसी एक तरंग का शिर्ष यदी दूसरी तरंग के निम्न के साथ हो तो क्या होगा ? इस स्थिति मे दोनो एक दूसरे को नष्ट कर देंगी और परिणाम मे कुछ नही मिलेगा। नीचे वाला चित्र देखिये।

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ध्यान दे कि गुरुत्वाकर्षण तरंगो की अनुपस्थिति मे यही हो रहा है। लाल और हरी किरण के मध्य अंतराल समान है, एक तरंग का शिर्ष दूसरी तरंग के निम्न के साथ है। इसका परिणाम यह होता है कि प्रकाश जांच यंत्र तक कोई प्रकाश किरण नही पहुंचती है।(यह एक आदर्श स्थिति है।)

जब कोई गुरुत्वाकर्षण तरंग LIGO से प्रवाहित होती है तब स्थिति मे परिवर्तन आता है। इस स्थिति मे दोनो तरंग के शिर्ष के आने के समय अंतराल का पैटर्न बदल जाता है।

इस स्थिति मे नीली रेखा जो कि लाल और हरी तरंग का समुच्च्य है, थोड़ी जटिल होती है। यह एक सीधी रेखा नही होती है। प्रकाश जांच यंत्र तक पहले प्रकाश नही पहुंच रहा था, अब जांच यंत्र तक प्रकाश पहुंच रहा है और इसके पीछे कारण गुरुत्वाकर्षण तरंग है।

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हमने इस लेख मे LIGO जैसे गुरुत्वाकर्षण तरंग जांच यंत्र प्रणाली को बहुत ही सरल रूप मे देखा है, वास्तविकता मे इसमे थोड़ी जटिलताये होती है। यह उपकरण बहुत से अन्य अनवांछित कारको से भी प्रभावित हो सकता है जिसमे उदाहरण के लिये किसी ट्रेन के गुजरने से उत्पन्न कंपन भी हो सकते है। LIGO जैसे उपकरण मे इस तरह के अवांछित कारको से उत्पन्न संकेतो को दबाना भी शामिल है।

LIGO जैसे प्रयोग किसी एक ही संस्था द्वारा संचालित नही किये जा सकते है। इस तरह के प्रयोगो के लिये अंतराष्ट्रीय स्तर के प्रयास होते है और कई देशो की संस्थाये सहयोग करती है।

वास्तविकता मे 14 सितंबर 2015 को क्या हुआ ?

कल्पना किजिये की दो श्याम विवर (black hole)काफ़ी समीप से एक दूसरे की परिक्रमा कर रहे है। दोनो का द्रव्यमान अत्याधिक है और वे एक दूसरे की परिक्रमा अत्याधिक गति (प्रकाश गति के बड़े भाग से) कर रहे है। इस परिक्रमा मे वे गुरुत्वाकर्षण तरंग उत्पन्न करेंगे, जोकि अंतरिक्ष मे लहर उत्पन्न करेंगी और प्रकाशगति से यात्रा करेंगी। यह संभव है कि इन लहरो को LIGO पकड़ पाये।

जैसे ही श्याम विअवर एक दूसरी की परिक्रमा करते हुये गुरुत्वाकर्षण तरंग उत्पन्न करते है उनकी कक्षिय गति मे ह्रास होता है। टेलर और हल्स के न्युट्रान तारो के जैसे इनकी कक्षा छोटी होते जाती है और वे एक दूसरे की परिक्रमा अधिक तीव्र गति से करते है।

उनकी कक्षा की गति मे परिवर्तन उनके द्वारा उत्पन्न तरंगो को प्रभावित करता है। तरंगो की आवृत्ती(तरंग की प्रति सेकंड संख्या) उन दो पिंडो की परिक्रमा गति पर निर्भर करती है। जैसे ही श्याम विवर की कक्षा छोटी होती है, उनकी परिक्रमा गति मे वृद्धि होती है और गुरुत्वाकर्षण तरंगो की आवृत्ती बढ़ते जाती है। श्याम विवर और तेज गति से परिक्रमा कर रहे है, वे और अधिक तरंग उत्पन्न करेंगे, इससे उनकी ऊर्जा मे ह्रास और तेजी से होगा जिससे वे अधिक तरंग उत्पन्न करेंगे।

ये एक घातांकी वृद्धि है। इस प्रभाव से श्याम विवर एक दूसरे के समीप और समीप आते जायेंगे, त्वरित होती गति से एक दूसरे की परिक्रमा करेंगे, और अधिक आवृत्ति वाली अधिक शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण तरंग उत्पन्न करेंगे। अंतत: वे एक दूसरे से टकराकर एक दूसरे मे विलिन हो जायेंगे और एक विशाल श्याम विवर का र्निमाण करेंगे।

जब ऐसी घटना होती है तब उसे LIGO गुरुत्वाकर्षण तरंग के हस्ताक्षर के रूप मे देखता है जिसकी आवृत्ति बढ़ते जाती है।

जैसे ही श्याम विवर एक दूसरे मे विलय होने के समीप होते है उनकी गुरुत्वाकर्षण तरंग की आवृत्ति अत्याधिक हो जाती है, उसे पकड़ना आसान होता है। 14 सितंबर 2015 को यही घटना घटी थी जिसे वाशींगटन राज्य के LIGO जे पकड़ा था और लुसियाना राज्य के LIGO ने सात मिलिसेकंड बाद पकड़ा था। दोनो के समय मे यह अंतर भी इन गुरुर्त्वाकर्षण तरंगो के प्रकाशगति से यात्रा करने के कारण आया था।

श्याम विवर का विलय एक प्रलंयकारी अद्भूत घटना है और 14 सितंबर से पहले हम इसे नही जानते थे।
LIGO ने हमारी आंखे खोल दी है।

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109 विचार “गुरुत्वाकर्षण तरंग की खोज : LIGO की सफ़लता&rdquo पर;

  1. सर सबसे पहले तो मुझे आपकी यह डॉक्यूमेंट्री बहुत पसंद आई पर अब इसमें मेरे कुछ सवाल है
    सवाल नंबर एक जब दो न्यूट्रॉन स्टार अब आपस में परिक्रमा कर रहे होते हैं तू उनकी ऊर्जा में हानि होती है जिससे वह गुरुत्वाकर्षण तरंगे उत्पन्न करते हैं लगातार एक दूसरे के समीप आते जाते हैं और अंततः टकरा जाते हैं और गुरुत्वाकर्षण तरंगे उत्पन्न करते हैं फिर ऐसा पृथ्वी और सूर्य के बीच क्यों नहीं होता जबकि सूर्य का द्रव्यमान बहुत अधिक है और पृथ्वी उसके इसी अधिक द्रव्यमान के कारण उसके चक्कर काट रही है तो फिर पृथ्वी और सूर्य के बीच ऊर्जा की हानि क्यों नहीं होती और यहां तक कि पृथ्वी तो लगातार अपनी कक्षा को बड़ा कर रही है मैंने एक डॉक्यूमेंट्री में पढ़ा था
    सवाल नंबर दो सूर्य ने अपने द्रव्यमान से अपने आसपास के स्पेस टाइम को विक्षोभित अब इस एरिया में यदि कोई ऑब्जेक्ट आती है तो वह एक्टिवेटेड होकर सूर्य के चक्कर लगाएगी जिस तरह प्रथवि रावा रही है पृथ्वी त्वरित है नहीं उसकी रफ्तार तो कांस्टेंट है
    बस मेरी यही कुछ सवाल थे मेरी आशा है आप इनके जवाब मुझे जल्दी देंगे धन्यवाद

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      1. लेकिन सर फिर भी नहीं न्यूट्रॉन स्टार के बीच में उर्जा का हंस होता है वह भी आइंस्टाइन के समीकरण तुल्य होता है और उस एनर्जी से वह ग्रेविटेशन तरंगे पैदा करते हैं जिससे उनकी कक्षा लगातार छोटी होती है और गति तेज होती है यह सूर्य और पृथ्वी के बीच क्यों लागू नहीं होता

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      2. सूर्य द्वारा उत्सर्जित गुरुत्वाकर्षण तरंगे अत्यंत कमजोर होती है, द्रव्यमान ह्रास नगण्य होता है। उससे अधिक द्रव्यमान ह्रास तो हिलियम के निर्माण मे होता है।

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      3. और न्यूट्रॉन स्टार के बीच नाभिकीय सल्यान रुक चुका है और वह न्यूट्रल हो चुके हैं जिससे उनकी एनर्जी ग्रेविटेशनल तिरंगे बनाने में जाती है यही कारण है

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      4. नही, यहाँ हम दो न्युट्रान तारो की बात कर रहे है जो बहुत ही नजदिक की कक्षा मे(बुध की कक्षा के तुल्य) है। इससे दोनो एक दूसरे को गुरुत्वाकर्षण से अधिक प्रभावित कर रहे है। इन दोनो के द्रव्यमान और गुरुत्वाकर्षण की तुलना सूर्य या पृथ्वी(या बृहसपति जैसे बड़े ग्रह से भी) से तुलना नही हो सकती है।
        सूर्य का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव एक बड़े क्षेत्र मे हो रहा है, जबकि दो न्युट्रान तारों के एक दूसरे की परिक्रमा एक बहुत कम क्षेत्र मे हो रही है। ध्यान रहे कि गुरुत्वाकर्षण प्रभाव दूरी के वर्ग के विलोमानुपात मे कम होता है।

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      5. सर क्या आप मुझे बता सकते हैं स्पेशल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी और जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी में क्या अंतर है और उनमें कौन कौन से टॉपिक दिए गए हैं

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      6. सर एक सवाल और है के जब कोई ऑब्जेक्ट किसी दूसरी ऑब्जेक्ट कोई ग्रह सूरज यह किसी और और किसी के चक्कर लगा रही है तब वह चक्कर लगाते हुए लगातार कक्षा को छोटा कर कर उस ग्रह या उस तारे से टकराती क्यों नहीं है जब कि उसे उस ग्रह व तारे से गुरुत्वीय त्वरण लगातार मिल रहा है

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      7. जुनैद आप न्यूटन के तरीके से सोच रहे है। इसे आइंस्टाइन के तरीके से सोचे कि गुरुत्वाकर्षण स्पेसटाइम में झोल उत्पन्न करता है जिसमे ग्रह लुढकते चलते है।

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      8. सर एक और सवाल जब मरकरी सूरज के इतना करीब है मात्र 8000000 किलोमीटर सूरज की ग्रेविटेशनल फोर्स 5000 एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट दूर तक काम करती है फिर भी मरकरी सूरज में क्यों नहीं गिरता है क्या वह कोई है विपरीत आकर्षण बल लगाता है

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  2. सर, हालांकि मैंने IIT कानपुर से बी.टेक. किया है, पर फिर भी गुरुत्वीय तंरगों को लेकर कुछ कॉन्सेप्ट्स पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पा रहे थे, आपका लेख पढकर वे स्पष्ट हुए | मैं आपका अति आभारी हूँ कि आप हिंदी के लोगों के बीच विज्ञान का प्रसार कर रहे हैं, जिसकी बहुत ही जरूरत है क्योंकि हिंदी में अधिकतर किताबें और ब्लॉग जानकारी देने के बजाय भावुकता में खोकर मुद्दे से भटक जाते हैं और विस्तृत एवं जरूरी जानकारी नहीं दे पाते | मेरा भी सपना था कि अंग्रेजी में उपलब्ध विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के सिद्धांतों को हिंदीभाषी लोगो तक पहुंचा सकूँ, पर कुछ व्यस्तताओं के कारण यह सम्भव नहीं हो पा रहा है, आपको सलाम है, साधुवाद हैं|

    PS: इस लेख के प्रारंभ में अगर आपने स्पेस-टाइम को और स्पष्टता से समझाया होता तो सामान्य पाठक को सहूलियत होती|

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    1. यह एक बकवास और वाहियात कार्यक्रम है। इसमे आनेवाले तथाकथित विशेषज्ञ को वैज्ञानिक कोई महत्त्व नहीं देते है।

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      1. हितेंद्र, इस चैनल में विज्ञान नहीं है, न ही कोई वैज्ञानिक आता है। जितने भी तर्क वे देते है वे पुरातत्व और विज्ञान की कसौटी पर गलत होते है। कई वैज्ञानिकों, पुरातत्वशास्त्री ने उनके तर्कों की धज्जीयां उड़ाई है।

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      2. बिना ठोस प्रमाणो के कोई भी बात कितने ही शानदार तरीके से प्रस्तुत की जाए वाहियात ही होती है।
        जब आप को चिकित्सा सलाह चाहिए होती है तो आप किसी मेकेनिक के पास तो नहीं जाएंगे।
        प्राचीन काल के तथ्यों के विश्लेषण के लिए भी आप को पुरातत्व विशेषज्ञ, वैज्ञानिकों के पास ही जाना होगा।

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  3. सर् आइस्टीन के सामान्य सापेछता नियम के अनुसार न्यूटन के गुरुत्वीय नियम गलत साबित होते है फिर हमॅ न्यूटन के गुरुत्वीय नियम क्यो पढाये जाते है आइस्टीन के क्यो नही

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    1. हरीश, न्यूटन के नियम गलत नहीं है उनकी सीमाये है। आइंस्टाइन का सपेक्षतावाद का सिद्धांत इन सीमाओ को दूर करता है। सामान्य जीवन में न्यूटन के नियमो से गणनाएं आसान है और सटीक है। सापेक्षतावाद का सिद्धांत अत्याधिक गति या अत्यधिक गुरुत्वार्षण के लिए आसान प्रयोग किये जाते है क्योंकि इन स्थितियों में न्यूटन के नियम गलत परिणाम देते है।

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    1. किसी भी पदार्थ को जलाने पर उसका आक्सीकरन होता है, इस प्रक्रिया मे रासायनिक बंधनो के टूटने और नये बंधनो के बनने पर कुछ रासायनिक ऊर्जा मुक्त होती है। यह मुक्त ऊर्जा ही हम प्रयोग मे लाते है।

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    1. चुम्बक (मैग्नेट्) वह पदार्थ या वस्तु है जो चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। चुम्बकीय क्षेत्र अदृश्य होता है और चुम्बक का प्रमुख गुण – आस-पास की चुम्बकीय पदार्थों को अपनी ओर खींचने एवं दूसरे चुम्बकों को आकर्षित या प्रतिकर्षित करने का गुण, इसी के कारण होता है
      कुछ चुम्बक प्राकृतिक रूप से भी पाये जाते हैं किन्तु अधिकांश चुम्बक निर्मित किये जाते हैं। निर्मित किये गये चुम्बक दो तरह के हो सकते हैं :
      स्थायी चुम्बक
      इनके द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र बिना किसी वाह्य विद्युत धारा के ही प्राप्त होता है। और सामान्य परिस्थितियों में बिना किसी कमी के बना रहता है। (इन्हें विचुम्बकित (डी-मैग्नेटाइज) करने के लिये विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है।) ये तथाकथित कठोर (हार्ड) चुम्बकीय पदार्थ से बनाये जाते हैं।
      अस्थायी चुम्बक
      ये चुम्बक तभी चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करते हैं जब इनके प्रयुक्त तारों से होकर विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। धारा के समाप्त करते ही इनका चुम्बकीय क्षेत्र लगभग शून्य हो जाता है। इसी लिये इन्हें विद्युतचुम्बक (एलेक्ट्रोमैग्नेट्) भी कहते हैं। इनमें किसी तथाकथित मृदु या नरम (सॉफ्ट) चुम्बकीय पदार्थ का उपयोग किया जाता है जिसके चारो ओर तार की कुण्डली लपेटकर उसमें धारा प्रवाहित करने से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।

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    1. किसी भी यौगिक या तत्व के परमाणू आपस मे रासायनिक बंधन से बंधे होते है, यह बंधन प्रोटानो और इलेक्ट्रान के मध्य विद्युत आकर्षण से उत्पन्न होता है।

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    1. सतपाल , हर पदार्थ की आण्विक संरचना अलग होती है।
      प्रकाश किरण के फोटान का किसी पदार्थ द्वारा अवशोषण, परावर्तन या अपवर्तन इन इलेक्ट्रानो द्वारा फोटान के साथ व्यवहार पर निर्भर है। यदि इलेक्ट्रानो का अवशोषण हो तो पदार्थ काला दिखेगा। 100% अपवर्तन हो तो पदार्थ पारदर्शी होगा। यदि परावर्तन हो तो परावर्तित प्रकाश के आधार पर उसका रंग दिखेगा।

      कांच की आण्विक संरचना मे इलेक्ट्रान फोटानो का अवशोषण नही कर पाते है जिससे वह कांच से पार/अपवर्तन हो जाने से कांच पारदर्शी होता है।

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  4. सर आज से मै भी आपके लेखो का नियमित पाठक बन गया हूँ।मुझे विज्ञान के रोचक तत्थ्यों के बारे में जानने की उत्सुकता रहती है।और इसे अपनी मात्र भाषा में पढ़ना मानो “भूखे को कोई स्वयम् अपने हाथो से भोजन करा दे”

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  5. धन्यवाद,सर आपको इतनी महत्वपूर्ण जानकारी को एक सरल एवं सुव्यवस्थित ढंग से हमें समझाने के लिये।वाकई बहुत अद्भुत है ये इससे बहुत बड़ी राज तरंग के बारे में खुलने वाली है।।।।।

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  6. धन्यवाद आशिष जी।
    कल शाम को जब मैने ये खबर सुनी तो मुझे ज्यादा समझ नही आयी, फिर आज सुबह अखबार में भी पड़ा तो भी ज्यादा समझ नही आया फिर ऑनलाइन ढूंढते हुए मुझे आपके पुराने लेख मिले 2012 तक के मैंने आज का दिन आपके लेख पड़ने मे लगाया और मुझे तब समझ आया सच में वैज्ञानिक ने बहुत अच्छी खोज की ह और इसलिए इस प्रोजेक्ट पर 1000 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे है ।
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद हर लेख को इतने अच्छे से समझाने के लिए।
    मैं हमेशा से जीवन के रहस्य को लेकर परेशान रहती थी लेकिन अभी अच्छा लग रहा है की मैं भी थोड़ा बहुत जानने लगी हूँ।। 🙂

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  7. sir
    1.yadi kal-antral me vakrata(ex.of chaadar) ke dwara hi chhote pind bade pindo ka chakkar lagate hai to ham ye parikrama gravity ke dwara kyu samajhte hai, kya is antral-vikrati ki ghatna me graviton ka role nahi hota.
    2.sbhi scientists purush hi kyu hote hai koi badi research kisi mahila ne kyu nahi ki, kya mahilao ka dimag real me purushon se kam hota hai.
    3.scientists banne ke liye kaisi padhai karni hoti hai.

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    1. 1. गुरुत्वाकर्षण द्वारा पिंडॊ का एक दूसरी की परिक्रमा करने का कथन न्यूटन ने दिया था। यह समझने मे आसान है। लेकिन द्रव्यमान द्वारा अंतरिक्ष मे उत्पन्न विकृति से पिंडॊ की परिक्रमा (चादर वाला उदाहरण) आइंस्टाइन ने दिया था, यह समझने मे थोड़ा कठिन है। दोनो सही है लेकिन न्यूटन का कथन हर परिस्थिति मे सही नही होता है। बस एक ही तथ्य को दो भिन्न तरिके से समझाया गया है।
      2. आपने महिला वैज्ञानिक जैसे मेरी क्युरी का नाम नही सुना है। महिलाये विज्ञान मे पुरुषो से कम नही है। इसरो के कई अभियान महिलायें ही चलाती है।
      3. वैज्ञानिक बनने के लिये आपको किसी अच्छे संस्थान से B Sc, M Sc , PhD करनी चाहिये।

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  8. आज IUCAA में सेमिनार अटेंड किया! प्रोफ़ेसर संजीव धुरन्धर, जिन्होंने ग्रेविटेशनल वेव्स को डिटेक्ट करने के मॉडल और उससे प्राप्त डेटा को अनालिसिस करने पर महत्वपूर्ण काम किया है, ने भी लगभग लगभग यही सब बातें बतायीं!

    सेमीनार में कुछ और बातें बताई गयी हैं, जो लेख में जुड़ सकती हैं-
    १. संकुचन 10^22 भाग में एक भाग के बराबर है! यानी किसी परमाणु के नाभिक का करोड़वां हिस्सा!
    २. डेटा में बहुत ही ज्यादा नॉइस होती है, जो किसी ट्रेन के चलने, हवाई जहाज के चलने, ट्रैफिक, चलने और यहाँ तक परमाणुओं के कम्पन से भी प्रभावित होती है! इसी नॉइस के बीच में ही ग्रेविटेशनल वेव भी होती है, जिसकी तीव्रता अत्यंत कम होती है, जिसे बाकी नॉइस से अलग करना बहुत बड़ी चुनौती का काम होता है! पांच महीने इसी काम में लग गए हैं!
    ३. तीन-चार मीटर लम्बी सुरंग के अंदर एक सीधा पाइप है, पाइप के अंदर निर्वात है, लेज़र निर्वात से गुजरता है! ताकि लेजर किसी परमाणु से टकराकर कोई नॉइस न पैदा कर सके!!

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    1. “विज्ञान विश्व” पुर्णत: अव्यवसायिक है, विज्ञापन नही लगाये है। News Hunt पर इसे देने के लिये इसे व्यवसायिक करना होगा, जो मै नही चाहता हुं। जब तक संभव हो इसे विज्ञापन मुक्त रखना चाहता हुं।

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    1. जी, ऋषि तो नही हुं, मेरा कुछ भी मौलिक नही है, एक छात्र अवश्य हुं जो यहाँ वहाँ से जानकारी जमा कर इस वेबसाईट पर हिंदी मे डाल देता है।

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    1. इसके प्रयोग से हमे ब्रह्मांड के भूतकाल और भविष्य के बारे मे जानने मे मदद मिलेगी। वर्तमान मे इसका प्रायोगिक उपयोग नही है, शायद भविष्य मे कुछ सामने आये।

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  9. आशीष जी वैज्ञानिको के मुताबिक पृथ्वी का वजन सून्य है तो क्या हम अगर अन्तरिक्ष में जाए और किसी भी तरह पृथ्वी को किसी बड़े रस्से से खीचे तो क्या ये अपना जगह बदलेगी

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    1. पृथ्वी का द्रव्यमान नही भार शून्य है। आप पृथ्वी से बाहर जाकर किसी रस्सी से उसे खींच कर जगह बदल सकते है बस आपको सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से अधिक बल लगाना होगा!

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    1. समय अंतरिक्ष से अलग नहीं है। दोनों एक साथ जुड़े है और इन्हें कल-अंतराल(spacetime) कहते है। गुरुत्वाकर्षण से अंतरिक्ष के साथ समय भी मुड़ता है। समय वास्तविकता में पिंडो की गति से उत्पन्न भ्रम है, गति न हो तो समय भी नहीं होगा।

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  10. आश्चर्यजनक! मेरा विचार है की गुरुत्वाकर्षण तरंगों के द्वारा काल-अंतराल मे उत्पन्न संकुचन विरलन का प्रभाव तारों पर भी पड़ता होगा| जब तारों का केन्द्र संकुचन के प्रभाव मे आयेगा तो ताप उत्पन्न होगा और एकाएक संलयन की क्रिया बढ़ जायेगी| यह प्रभाव तारों के चमक मे आये अंतर के रुप मे देखा जा सकेगा| क्या इस विधि से गुरुत्वाकर्षण तरंगों को पहचाना जा सकता है?

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    1. सैद्धांतिक रूप से आप सही लेकिन इस परिवर्तन को पृथ्वी से पकड़ना मुश्किल होगा। हमारी दूरबीने ऐसे परिवर्तन को पकड़ने में सक्षम नहीं

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      1. आप वाकई हमारे लिए एक दिव्य द्रष्टि प्रदान करते है,
        विज्ञान की फैलती क्षितिजों से रूबरू होने का अवसर विज्ञान विश्व के माध्यम से संभव हो रहा है,
        “विज्ञान विश्व” के ज्ञान यज्ञ द्वारा राष्ट्र की सेवा सिर्फ प्रशंसनीय ही नही, वंदनीय भी है …
        आपकी विज्ञान यात्रा के यात्री होने का गर्व प्रगट करता हूं – आपका धन्यवाद
        – swami nijanand

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