LIGO ने दूसरी बार गुरुत्वाकर्षण तरंग देखने मे सफ़लता पायी


LIGO_GravityWaves_वैज्ञानिको ने दूसरी बार गुरुत्वाकर्षण तरंगो को पकड़ने मे सफ़लता पायी है। गुरुत्वाकर्षण तरंगे काल-अंतराल(space-time) मे उत्पन्न हुयी लहरे है, ये लहरे दूर ब्रह्माण्ड मे किसी भीषण प्रलय़ंकारी घटना से उत्पन्न होती है। वैज्ञानिको ने पाया है कि ये तरंगे पृथ्वी से 1.4 अरब प्रकाशवर्ष दूर दो श्याम विवरो(black hole) के अर्धप्रकाशगति से टकराने से उत्पन्न हुयी है।

वैज्ञानिको ने इन गुरुत्वाकर्षण तरंगो को युग्म लेजर इन्टरफ़ेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव आबजर्वेटोरी(LIGO) ने पकड़ी है जोकि लिंविंगस्टोन लुसियाना तथा हैफ़र्ड वाशिंगटन मे 3000 किमी की दूरी पर स्थित है। 26 दिसंबर 2015 3:38 UTC को दोनो जांच यंत्रो ने गुरुत्वाकर्षण तरंगो का एक सूक्ष्म संकेत पकड़ा।

लिगो द्वारा पकड़े गये प्रथम संकेत की घोषणा 11 फ़रवरी 2016 को की गयी थी, यह आंकड़ो मे गुरुत्वाकर्षण तरंग का स्पष्ट संकेत था। लेकिन यह दूसरा संकेत पहले संकेत की तुलना मे महीन है, इस तरंग का शिर्ष कमजोर है जिससे यह आंकड़ो मे दब गया था। आंकड़ो मे गहन विश्लेषण से शोधकर्ताओं ने पाया कि यह एक गुरुत्वाकर्षण तरंग का ही संकेत था।

शोधकर्ताओं ने गणना की कि यह गुरुत्वाकर्षण तरंग दो श्याम विवरो के टकराने से उत्पन्न हुयी है जिनका द्रव्यमान सूर्य से क्रमश: 14.5 तथा 7.5 गुना है। लिगो द्वारा पकड़े गये गुरुत्वाकर्षण तरंग के संकेत इन श्याम विवरो के विलय से पहले के अंतिम क्षणो को दर्शाते है। जब इन संकेतो को लिगो द्वारा ग्रहण किया जा रहा था तब ये श्याम विवरो ने एक दूसरे की 55 बार परिक्रमा की और इस दौरान उनकी परिक्रमा गति प्रकाश गति के आधे तक पहुंच गयी थी, उसके पश्चात दोनो एक दूसरे से टकराकर एक दूसरे मे विलिन हो गये जिससे गुरुत्वाकर्षण तरंगो के रूप मे भारी मात्रा मे ऊर्जा मुक्त हुयी, इस मूक्त हुयी ऊर्जा की मात्रा सूर्य के द्रव्यमान के तुल्य है। यह प्रलयंकारी घटना 1.4 अरब प्रकाशवर्ष पहले हुयी जिसके परिणाम स्वरूप सूर्य के द्रव्यमान से 20.8 गुणा बड़ा श्याम विवर निर्मित हुआ। ध्यान दिजिये कि इस श्याम विवर का निर्माण करने वाले श्याम विवरो के संयुक्त द्रव्यमान की तुलना मे नवनिर्मित श्याम विवर का द्रव्यमान कम है, दोनो के द्रव्यमान का अंतर गुरुत्वाकर्षण तरंग ऊर्जा के रूप मे मुक्त हुआ है।

गुरुत्वाकर्षण तरंग को दूसरी बार पकड़ा जाना आइंस्टाइन के साधारण सापेक्षतावाद सिद्धांत की पुष्टि तो कर ही रहा है, लिगो द्वारा अत्यंत सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण तरंगो की जांच की क्षमता को भी प्रमाणित कर रहा है।

MIT के कावली इंस्टीट्युट आफ़ अस्ट्रोफिजिक्स एन्ड स्पेस रिसर्च(Kavli Institute for Astrophysics and Space Research) के शोध वैज्ञानिक तथा लिगो शोधकर्ता सल्वाटोर विटाले(Salvatore Vitale) कहते है

” हमने यह दोबारा किया है। पहली घटना इतनी अद्भूत थी कि हम विश्वास नही कर पा रहे थे। अब हमने गुरुत्वाकर्षण तरंगो को दोवारा देखा है जो यह दर्शाता है कि ब्रह्मांड मे श्याम विवर युग्म मे एक अच्छी संख्या मे है। हम जानते है कि निकट भविष्य मे हम ऐसी अनेक घटनाये देख पायेंगे और उससे हमे रोचक ज्ञान प्राप्ति होगी।”

लिगो के शोधकर्ताओं ने इस खोज को “फिजिकल रिव्यु लेटर्स(Physical Review Letters)” मे प्रकाशित किया है।

गुरुत्वाकर्षण तरंगो को पकड़ना

LIGO_GravityWaves_2लिगो के दो इंटरफ़ेरोमिटर जो कि 4-4 किमी लंबे है; इस तरह निर्मित है कि जब भी उनसे कोई गुरुत्वाकर्षण तरंग गुजरती है तब वे काल-अंतरिक्ष(space-time) मे आये एक लघु विस्तार/संकुचन की जांच सफ़लतापुर्वक कर लेते है। 14 सितंबर 2015 को इन उपकरणो ने पहली बार गुरुत्वाकर्षण तरंगो के संकेत को ग्रहण किया था, उस समय इन दोनो उपकरणो की लंबाई मे प्रोटान के व्यास से भी कम खिंचाव आया था। इस घटना के चार महिने पश्चात 26 दिसंबर 2016 को लिगो ने दूसरी बार गुरुत्वाकर्षण तरंग के संकेत पकड़े जोकि प्रथम संकेत से भी सूक्ष्म थे।

विटाले कहते है

“जब हमने पहली बार संकेत पकड़े थे तब वे छोटे लेकिन इतने मजबूत थे कि हम उन्हे आंकड़ो मे स्पष्ट देख सकते थे। लेकिन इन दूसरी घटना के संकेत इतने स्पष्ट नही थे। इन संकेतो को आंकड़ो मे त्रुटि से अलग करना कठिन था।”

इस संकेत को अलग करना और यह तय करना कि यह गुरुत्वाकर्षण तरंग का ही परिणाम है, उपकरण द्वारा पकड़ा गया कोई शोर या त्रुटि नही है कठीन था। इसके लिये वैज्ञानिको मे संकेत विश्लेषण की एक विशिष्ट तकनीक “मैच फ़िल्टरींग(match filtering”) अपनायी जोकि शोधकर्ताओं को ज्ञात तरंगो या शोर के पैटर्नो से गुरुत्वाकर्षण तरंगो के पैटर्न से अलग करने मे सहायक थी।

इस मामले मे शोधकर्ताओं ने लाखों की संख्या मे ज्ञात तरंगो के आंकड़े जमा किये जोकि भिन्न भिन्न द्रव्यमान और स्पिन के श्याम विवरो से संबधित थे। उसके बाद वैज्ञानिको ने पकड़े गये संकेतो को इन जमा किये गये आंकड़ो से मिलान प्रारंभ किया कि उन्हे कोई जोड़ मिल जाये।

एक अन्य विश्लेषण तकनीक “मानदंड आकलन (parameter estimation)” वैज्ञानिको ने पाया कि इस तरह के संकेत दो 14.2 तथा 7.5 सौर द्रव्यमान के श्याम विवरो के 1.4 अरब प्रकाश वर्ष दूर विलय से उत्पन्न हो सकते है। ये टकराने वाले श्याम विवर प्रथम संकेत के दौरान टकराने वाले श्याम विवरो से कम द्रव्यमान के है जिससे गुरुत्वाकर्षण तरंगे अपेक्षाकृत रूप से कमजोर है। लेकिन कम द्रव्यमान वाले श्याम विवरो की संख्या ब्रह्माण्ड मे खगोल शास्त्रीयों द्वारा निरीक्षित श्याम विवरो मे अधिक है।

शोधकर्ताओं के समूह की वैज्ञानिक लिसा बार्सोट्टी कहती है कि

यह एक अच्छा संकेत है, इसका अर्थ है कि हम भविष्य मे ऐसी अनेक घटनाये पारंपरिक खगोलशास्त्र के प्रयोग से भी देख पायेंगे क्योंकि ऐसे श्याम विवरो की बहुतायत है।

भूतकाल की समययात्रा

पहले चार महिनो मे ही लिगो जांचयंत्रो ने दो भिन्न प्रकार के युग्म श्याम विवरो के टकराने से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण तरंगो के संकेत दो बार पकड़े है। वर्तमान मे लिगो प्रयोगशाला बंद है और इसके उपकरणो का अद्यतन किया जा रहा है जिससे इनकी संवेदनशीलता बढ़ जायेगी। आने वाले कुछ महिनो मे इसके पुनः प्रारंभ होने की संभावना है, वैज्ञानिक मानकर चल रहे है कि उन्हे निकट भविष्य मे कई बार गुरुत्वाकर्षण तरंग जांच करने मे सफ़लता मिलेगी।

इस तरह की अनेक घटनाओ से वैज्ञानिक श्याम विवर के विलय से संबधित अनसुलझे प्रश्नो के उत्तर पाने की आशा रखते है। वैज्ञानिको के अनुसार यह दो तरह से संभव है। श्याम विवर महाकाय तारो के मृत्यु के समय होने वाले सुपरनोवा विस्फ़ोट के पश्चात बनते है। एक अवधारणा के अनुसार दो ऐसे तारे एक दूसरे की परिक्रमा करते रहे होंगे और सुपरनोवा विस्फोटो के पश्चात बने दोनो श्याम विवर भी एक दूसरे की परिक्रमा करते रहे होंगे, इस परिक्रमा मे दोनो एक दूसरे के निकट आते गये होंगे और अंतत: एक दूसरे मे विलिन हो गये होंगे। दूसरी अवधारणा के अनुसार ये दोनो स्वतंत्र श्याम विवर रहे होंगे जोकि श्याम विवरो की घनी जनसंख्या वाले क्षेत्र मे रहने से एक दूसरे के गुरुत्वाकर्षण मे बंध गये और अंतत: एक दूसरे मे विलिन हो गये।

विटाले के अनुसार ये दोनो एक दूसरे से एकदम भिन्न तरह की संभावनायें है, हम भविष्य मे जानना चाहते है कि इन दोनो मे से कौनसी घटना अधिक घटती है। हमे ऐसी और घटनाओ का इंतजार है जिससे खगोलभौतिकी मे नयी रोचक खोजे होने की संभवानाये है।

जब लिगो पुन: प्रारंभ होगा उसे एक तीसरे इंटरफ़ेरोमिटर वर्गो(Virgo) की सहायता भी मिलेगी जोकि पिसा इटली मे स्थित है और 3 किमी लंबा है।

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गुरुत्वाकर्षण तरंग की खोज : LIGO की सफ़लता

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18 विचार “LIGO ने दूसरी बार गुरुत्वाकर्षण तरंग देखने मे सफ़लता पायी&rdquo पर;

    1. समन्वित सार्वत्रिक समय (ससस) (Coordinated Universal Time) विश्व के समय का प्राथमिक मानक है जिसके द्वारा विश्वभर में घड़ियाँ एवं समय नियंत्रित किये जाते हैं। यह ग्रीनविच माध्य समय (GMT) के बहुत सारे अनुवतियों (successors) में से एक है। साधारण कार्यों की दृष्टि से समन्वित सार्वत्रिक समय और ग्रीनविच माध्य समय एक ही हैं, किन्तु ग्रीनविच माध्य समय अब वैज्ञानिक समुदाय द्वारा परिशुद्धता पूर्वक (precisely) परिभाषित नहीं किया जाता है।

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  1. आशीष जी ,

    विज्ञान की नवीन खोजो की जानकारी देने के लिये धन्यवाद !

    विस्फोट शब्द नकारात्मक भाव के लिये प्रयुक्त किया जाता है नष्ट करने के भाव को प्रकट करता है ऐसे में महाविस्फोट (बिग बैंग) से जगत का प्रकटी करण का विचार तुच्छ विचार है
    आधुनिक भौतिकी इस विचार से मुक्त हो तभी जगत की उत्पत्ति के विज्ञान की खोज को सही दिशा प्राप्त हो सकती है

    धरती पर बडे -बडे विस्फोटो से (हिरोशिमा-नागासाकी) एक चींटी भी पैदा न की जा सकी, और महाविस्फोट से तारे- सितारे ,सूरज , ग्रह,उपग्रह यहा तक कि इन्सान के बन जाने की बात की जाती है
    तो एेसी फिजीक्स और उसके ब्रह्माण्ड ज्ञान पर तरस आता है
    हमारे शास्त्र और वेद उनके इस बिगबैंग फिनोमिना के स्थान पर जो शब्द उपयोग लाते है वे है – ब्रह्माण्ड उत्पत्ति के आदि काल में ज्योतिर्लिंग का उद्भव , जिससे जगत प्रकट हुआ I
    और इस ब्रह्माण्ड उत्पत्ति के दिन को हम शिवरात्रि के रूप मे सम्मान देते है

    शिवरात्रि वह रात्रि जिस समय डार्क ऐनर्जी सबसे पहले प्रकाश रूप ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुई जिससे पहला दिन बना
    यह प्रक्रिया ब्लेक होल से निकलते प्रकाश पुंज के रूप में हब्बल द्वारा देखी जा चुकी है यदि इन चित्रो का मिलान शिव लिंग आकृति से करे तो आप समझ सकते है कि क्यो वैदिक संस्कृति में अन्नत समय से शिव आराधना को इतना महत्व पूर्ण माना गया है

    ब्लेक होल का पूरा बायोडाटा शिव सहस्रनाम में उपलब्ध है

    जगत की उत्पत्ति, संस्थिति इसके साथ स्रजन व पालन शक्तियो के संलग्न होने के कारण है
    सही दिशा एवं आधारभूत ज्ञान की सत्यता ही पूर्ण ज्ञान की ओर ले जा सकती है

    केवल मशीनी विष्लेषण से वहॉ तक कैसे पहुँचा जा सकता है ?

    फिर भी प्रयास करने वालो के प्रयास सराहनिय है ,
    जानने की इच्छा और उसके लिये कर्म – प्रतिबध्ता प्रशंशनीय है
    पर
    आध्यात्म एवं विज्ञान का फ्यूजन ही श्रेष्ठतम परिणामो तक ले जा सकता है

    पूरब और पश्चिम का संयोग ही पूर्णता पा सकता है

    कृपया अपने विचारों से अवगत कराये

    आपका शभेच्छु
    B.s

    .

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