
सूर्य काफी विशाल है, बहुत ही विशाल। वह चौड़ाई मे पृथ्वी से सौ से भी ज्यादा गुणा है, उसके अंदर 10 लाख से ज्यादा पृथ्वीयाँ समा सकती है। यदि आप पृथ्वी और सूर्य को किसी ब्रह्माण्डीय तराजु पर तौले तो पायेंगे कि सूर्य पृथ्वी से 300,000 गुणा ज्यादा द्रव्यमान रखता है।
लेकिन सूर्य का द्रव्यमान कम हो रहा है। समय के साथ धीमे धीमे उसके द्रव्यमान मे ह्रास हो रहा है, यह दो तरह से हो रहा है, प्रथम है सौर वायु और द्वितीय है द्रव्यमान का ऊर्जा के रूप मे परिवर्तन जिससे सूर्य से प्रकाश और उष्मा का उत्सर्जन होता है।
सूर्य के द्रव्यमान मे उपरोक्त मे से किस विधि से द्रव्यमान ह्रास तेज गति से हो रहा है ? दोनो विधि को विस्तार से देखते है।
सौर वायु

सौर वायु परमाण्विक कणो की एक विशाल धारा है जो सूर्य से हर क्षण अंतरिक्ष मे प्रवाहित होते रहती है। इसमे अनेक प्रकार के कण होते है, जिसमे इलेक्ट्रान, प्रोटान तथा हीलियम के नाभिक प्रमुख है। सूर्य के शक्तिशाली और जटिल चुंबकिय प्रभाव द्वारा इस कणो की धारा का आकार तय होता है और इन कणो की गति कुछ सौ किमी प्रति सेकंड से लेकर हजारो किमी प्रति सेकंड हो सकती है।
सूर्य से इलेक्ट्रान और प्रोटान लगभग समान मात्रा मे प्रवाहित होते है लेकिन प्रोटान का द्रव्यमान इलेक्ट्रान से इतना ज्यादा होता है कि हम उनकी उपेक्षा कर सकते है, इसी तरह से हीलियम नाभिक भी कुल धारा का 4% होती है, हम उसकी भी उपेक्षा कर सकते है। पृथ्वी के कृत्रिम उपग्रहो के प्रयोग से हम सूर्य द्वारा प्रवाहित और पृथ्वी के पास गुजरते प्रोटानो की संख्या का मापन कर सकते है। यदि आपके पास 1×1 सेमी का जाल हो तो आप पृथ्वी के पास सूर्य द्वारा प्रवाहित 30 करोड़ प्रोटानो को हर सेकंड पकड़ सकते है। (वास्तविकता मे सूर्य अपने विषुवत पर ध्रुवो की तुलना मे ज्यादा प्रोटान प्रवाहित करता है लेकिन अभी हम इसकी भी उपेक्षा कर देते है।)

लेकिन इसका अर्थ है कि आपने बहुत कुछ छोड़ दिया है। सूर्य तो हर दिशा मे प्रोटानो को प्रवाहित कर रहा है, लेकिन आपका जाल तो किसी डाकटिकट से भी छोटा है। पृथ्वी की कक्षा के पास सूर्य द्वारा प्रवाहित सभी प्रोटानो को पकड़ने के लिये आपको सूर्य को घेरते हुये एक गोलाकार कवच नुमा जाल बनाना होगा। इस कवच की सतह का क्षेत्रफल 3 x 1027 वर्ग सेमी होगा। अर्थात हमारे 1×1 सेमी के जाल से हम प्रति सेकंड 3×108 प्रोटान पकड़ते है तो इस विशाल कवच से हम 9×1035 प्रोटान प्रति सेकंड पकड़ेंगे। एक प्रोटान का द्रव्यमान 1.7×10-24 ग्राम होता है अर्थात इन दोनो के गुणा करने पर हम पाते हैं कि सूर्य अपने द्रव्यमान का 15 लाख टन द्रव्यमान हर सेकंड सौर वायु के रूप मे प्रवाहित कर देता है।
सौर वायु के रूप मे सूर्य के द्रव्यमान का 15 लाख टन प्रति सेकंड ह्रास होता है, अब दूसरे प्रकार से ऊर्जा ह्रास को देखते है।
नाभिकीय संलयन द्वारा द्रव्यमान की क्षति

सूर्य ऊर्जा का उत्सर्जन करता है। यह ऊर्जा कहीं से तो आना चाहिये। सूर्य के केंद्र मे इस ऊर्जा का निर्माण द्रव्यमान के ऊर्जा मे परिवर्तन की सतत प्रक्रिया से होता है और यही ऊर्जा अंतरिक्ष मे सूर्यप्रकाश के रूप मे वितरीत होती है।
जब दो हल्के परमाणु नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी तत्व के परमाणु नाभिक की रचना करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। नाभिकीय संलयन के फलस्वरूप जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान संलयन में भाग लेने वाले दोनों नाभिकों के सम्मिलित द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में यह कमी ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन के समीकरण E = mc2 से ज्ञात करते हैं। तारों के अन्दर यह क्रिया निरन्तर जारी है। सबसे सरल संयोजन की प्रक्रिया है चार हाइड्रोजन परमाणुओं के संयोजन द्वारा एक हिलियम परमाणु का निर्माण।

हम जानते हैं कि सूर्य की दीप्ति कितनी है और वह कितना प्रकाश उत्सर्जित करता है। तथा आइंस्टाइन की मेहरबानी से हम यह भी जानते है कि इस ऊर्जा के उत्सर्जन के लिये कितने द्रव्यमान की आवश्यकता होगी।
उपर की गणना के जैसे ही हम प्रति वर्ग सेमी सूर्य प्रकाश के उत्सर्जन की गणना करें तो हम पाते हैं कि सूर्य द्वारा कुल ऊर्जा का उत्सर्जन 4×1033 ergs प्रति सेकंड होता है।(ergs ऊर्जा के मापन की एक बहुत ही छोटी इकाई है)।
हम जानते है कि E=mc2
अर्थात
m=E/c2
इस समीकरण मे E तथा c(3×1010 सेमी/सेकंड) का मान रखने के बाद गणना करने पर
m= 4 x 1033 / (9 x 1010)2
m= 4.4 x 1012 ग्राम/सेकंड
अर्थात 40 लाख टन/सेकंड द्र्व्यमान का ह्रास।
अर्थात सूर्य के द्रव्यमाने मे क्षति की दर नाभिकिय संलयन द्वारा ऊर्जा के निर्माण से सौर वायु द्वारा द्रव्यमान क्षति की दर से कहीं ज्यादा है।
इसका प्रभाव क्या होगा ?

हम जानते हैं कि द्रव्यमान से गुरुत्वाकर्षण उत्पन्न होता है, इसी गुरुत्वाकर्षण के फलस्वरूप पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। सूर्य के द्रव्यमान मे क्षति से उसके गुरुत्वाकर्षण मे क्षति होगी, अर्थात पृथ्वी पर सूर्य की पकड़ भी कमजोर होगी! ऐसी अवस्था मे क्या होगा ?
इस बार हम आंकड़ो की बाजीगरी नही करते है और गुरुत्वाकर्षण मे कमी की गणना नही करते है। इस मामले मे संवेग के संरक्षण का नियम लागु होगा, संवेग के मूल्य मे परिवर्तन नही हो सकता है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि सूर्य के द्रव्यामान मे कमी होने पर पृथ्वी की परिक्रमा कक्षा की त्रिज्या मे वृद्धि होगी। आंकड़ो के अनुसार सूर्य के द्रव्यमान मे 1% की कमी होने पर पृथ्वी की कक्षा की त्रिज्या मे 1% की वृद्धि होगी।
सूर्य कुल 6×1012ग्राम/सेकंड द्रव्यमान का ह्रास कर रहा है और उसका कुल द्रव्यमान 2×1033 ग्राम है। वह प्रति वर्ष अपने द्रव्यमान का 10-13 वाँ भाग का ह्रास करता है। पृथ्वी की कक्षा की त्रिज्या 15 करोड़ किमी है, इसमे 10-13 का गुणा करने पर 1.5 सेमी आयेगा, अर्थात पृथ्वी की कक्षा की त्रिज्या मे प्रतिवर्ष 1.5 सेमी की वृद्धि हो रही है। अर्थात हर वर्ष पृथ्वी सूर्य से 1.5 सेमी दूर जा रही है। इस गति से पृथ्वी को सूर्य से एक किमी दूर जाने के लिये 65,000 वर्ष लगेंगे। सूर्य के द्रव्यमान मे क्षति की दर को स्थिर मानकर चलें तो पृथ्वी पीछले एक अरब वर्ष मे सूर्य से 70,000 किमी दूर आयी है जोकि उसके व्यास का कुछ ही गुणा है और अंतरिक्ष पैमाने पर नगण्य है। सूर्य के द्रव्यमान मे ह्रास की गति भूतकाल मे ज्यादा थी लेकिन उसका पृथ्वी की कक्षा पर कोई खास अंतर नही पड़ा है।
सूर्य के संपूर्ण जीवनकाल मे कुल द्रव्यमान का ह्रास कितना होगा?
सूर्य के द्रव्यमान मे हर सेकंड लगभग 60 लाख टन की क्षति हो रही है और यह एक बड़ी संख्या लगती है।
सूर्य की आयु लगभग 4.5 अरब वर्ष है और एक वर्ष मे लगभग 3.1 करोड़ सेकंड होते है। इन सब का गुणा करने पर पता चलता है कि सूर्य के द्रव्यमान मे अब तक कुल ह्रास 1024 टन की हुयी है। यह पृथ्वी के द्रव्यमान का लगभग 100 गुणा है।
लेकिन सूर्य विशाल है और यह उसके द्र्वयमान का एक नगण्य भाग है। 4.5 अरब वर्ष मे सूर्य महाराज का मोटापा केवल 0.05% ही कम हुआ है।
इस दर से तो सूर्य खरबो वर्ष तक सौर वायु और नाभिकिय संलयन से द्रव्यमान के ह्रास के बावजूद जीवित रह सकता है ?
वास्तविकता ऐसी नही है, सूर्य के केंद्र मे परिस्थितियाँ हमेशा ऐसी नही रहेंगी। सूर्य के केंद्र मे नाभिकिय संलयन के लिये हायड़ोजन समाप्त हो जायेगी, उसके बाद सूर्य फूल कर एक लाल महादानव तारा बन जायेगा, इस प्रक्रिया मे वह बुध, शुक्र और संभवतः पृथ्वी को भी निगल जायेगा। इसके बाद वह अपनी बाह्य परतो को झाड़ देगा और अंत मे श्वेत वामन तारा बन जायेगा। इस प्रक्रिया के कुछ लाख से करोड़ वर्षो मे उसके द्र्व्यमान मे होने वाली क्षति उसके समस्त जीवन मे द्रव्यमान मे होने वाली क्षति से हजारो गुणा ज्यादा होगी। सूर्य इस संक्षिप्त घटनाक्रम मे अपना आधा द्रव्यमान खो देगा।
सूर्य की अंतिम अवस्था मे वह एक पृथ्वी के आकार का गर्म, अत्यंत संघनित श्वेत वामन तारा रहेगा, जो अरबो वर्ष तक शीतल होते रहेगा और धीमे धीमे मंद होते हुये अंधेरे मे खो जायेगा।
sir surya ka ye ghat ta dravamaan kaha Ja raha hai
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1. सूर्य के द्रव्यमान का कुछ भाग ऊर्जा मे परिवर्तित हो कर सौर मंडल मे फैल रहा है।
2. कुछ भाग सौर मंडल मे सौर वायु के रूप मे वितरित हो रहा है, इसका भी कुछ भाग सौर मंडल से बाहर आकाशगंगा मे फैल रहा है।
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sir kya prithvi ki tarah sabhi grah suraj se door ja rahe hai.
kya hamara suraj black hole ya super nova nahi banega.
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Best
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Respected Aashish ji,
In your article, you have considered the ‘reduction in mass’, but you have not considered the ‘increase in distance’ while calculating the gravitational force. The increase in distance will further decrease the gravitational force. Perhaps you have to calculate all the things again.
Pranod
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Respected aashish ji,
I have a question, which I have asked many times at many places. The question is That the orbital balance of our earth depends on two factors, which are gravitational force (F = G*m1*m2/r^2) and centripetal force (F = M1*v^2/r). These two forces are in ‘unstable equilibrium’. A negligible change in ‘r’ will spoil the equilibrium. And the earth will leave the orbit.
Pramod
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hallow
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कोइ चिंता की बात नहीं तब तक न हम होंगे न तुम…..
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iska matlab surya ke hydrogen atoms kabhi bhi khatm ho sakte hain aur surya kabhi bhi earth ko nashht kar sakta hai…
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कभी भी नही, सूर्य के पास अगले पांच अरब वर्षो के लिये पर्याप्त हायड़ोजन है।
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हम अंतरिक्ष के आयु की गणना कैसे करते हैँ अर्थात् किस आधार पर । अंतरिक्ष मेँ सारे तारे व ग्रह उत्पन्न और नष्ट होते रहते हैं आइंस्टीन समीकरण के अनुसार तारों के नष्ट होनें से उत्पन्न उर्जा पुन: तारे मे परिवर्तित हो जाती होगी तो मेरा सवाल यह है कि आखिर किस आधार पर हम अंतरिक्ष के आयु की गणना करते हैं शायद जिस आधार पर हम गणना किये हों उससे पहले भी कई चीजें उत्पन्न होकर नष्ट हो गयी हो।
मेरा फेसबुक पेज है Krishn kumar the star of universe इसे लाइक करेँ।
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कृष्ण जी, आपके प्रश्न का उत्तर लंबा है, निकट भविष्य मे एक लेख लेकर आता हूं इस पर
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These calculations are based E=mc2
In August 2014, a book is coming
BEYOND EINSTEIN AND E=MC2
It carries equation, delta E =Ac2delta m
According to this life of the Sun , can be MORE.
Thus we need to be optimistic
Ajay Sharma
Email ईमेल आई डी संपादित
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अजय जी, इस लेख की गणनाये एकदम ’सटिक’ नही है क्योंकि बहुत से कारको का सन्निकटिकरण किया गया है या उनकी उपेक्षा की गयी है। इसके बावजूद भी परिणाम सच्चाई के समीप है।
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It is well known , the calculations are based upon indirect evidences
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very good post .
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mast ha sir
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“…सूर्य की अंतिम अवस्था मे वह एक पृथ्वी के आकार का गर्म, अत्यंत संघनित श्वेत वामन तारा रहेगा, जो अरबो वर्ष तक शीतल होते रहेगा और धीमे धीमे मंद होते हुये अंधेरे मे खो जायेगा।…”
बहुत ही भयंकर सत्य है यह – नश्वर सब संसार!
शायद तब तक मनुष्य विज्ञान में इतनी तरक्की कर ले (विज्ञान फैंटेसी फ़िल्मों की तरह) कि वो अंतरिक्ष में अन्यत्र किसी मुफीद जगह पर निवास कर अपने कौम और कुनबे को बचाए रखने का कोई जुगाड़ कर ले!
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