2015 रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार टामस लिंडल(Tomas Lindahl), पाल माडरीच(Paul L. Modrich) तथा अजीज संकार(Aziz Sancar) को दिया गया है।

2015 रसायन नोबेल पुरस्कार : टॉमस लिंडाल, पॉल मॉडरिश और अज़ीज सैंकर


2015 रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार टॉमस लिंडाल(Tomas Lindahl), पॉल मॉडरिश Paul L. Modrich) तथा अजीज सैंकर(Aziz Sancar) को दिया गया है।

2015 रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार टामस लिंडल(Tomas Lindahl), पाल माडरीच(Paul L. Modrich) तथा अजीज संकार(Aziz Sancar) को दिया गया है।
2015 रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार टामस लिंडल(Tomas Lindahl), पाल माडरीच(Paul L. Modrich) तथा अजीज संकार(Aziz Sancar) को दिया गया है।

यह पुरस्कार “DNA क्षतिपुर्ति के यांत्रिकी अध्ययन” के लिये दिया गया है।

इस साल रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार तीन वैज्ञानिकों टॉमस लिंडाल, पॉल मॉडरिश और अज़ीज सैंकर को दिया जाएगा। उन्हें ये पुरस्कार डीएनए की मरम्मत पर उनके अध्ययन के लिए दिया जा रहा है।
‘रॉयल स्वीडिश अकेडमी ऑफ साइंसेज़’ का कहना है कि इन वैज्ञानिकों के अध्ययन ने इस बात को समझने में मदद की कि कैंसर जैसी परिस्थितियों में स्थिति किस तरह बिगड़ सकती है। इन वैज्ञानिकों ने बताया कि कोशिकाएं किस तरह क्षतिग्रस्त डीएनए की मरम्मत करती हैं।

डीएनए मरम्मत पर अध्ययन के लिए नोबेल

क्षतिग्रस्त डीएनए को कोशिकाएं कैसे सुधारती हैं, ऐसी अहम खोज करने वाले तीन वैज्ञानिकों को इस साल रसायन शास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

तीनों वैज्ञानिकों ने कोशिकाओं के डीएनए मरम्मत तंत्र के बारे में अहम खोज की है। स्वीडन के थोमास लिंडाल, अमेरिका के पॉल मॉडरिश और अमेरिकी तुर्क वैज्ञानिक अजीज सैंकर के नाम का एलान करते हुए रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस ने कहा,

“डीएनए रिपेयर पर किये गए उनके काम से “यह आधारभूत जानकारी मिली है कि जीवित कोशिकाएं कैसे काम करती हैं।”

इस जानकारी की मदद से कैंसर का नया इलाज खोजा जा सकता है।

डीएनए एक ऐसा मॉलिक्यूल है जिसमें जीन छुपे होते हैं। 1970 तक यह समझा जाता था कि डीएनए हमेशा स्थिर रहता है। लेकिन स्वीडिश वैज्ञानिक लिंडाल ने साबित किया है कि डीएनए तेजी से विघटित होता है। सूर्य की पराबैंगनी किरणों और कैंसर संबंधी तत्वों का उस पर बुरा असर पड़ता है। इसी दौरान लिंडाल को महसूस हुआ कि डीएनए के तेजी से विघटित होने के बाद भी इंसान कई साल तक जिंदा रहता है, यानि कोई तंत्र विघटित होते डीएनए को फिर से दुरुस्त करता है।

इसी से जुड़ी एक बड़ी कामयाबी सैंकर को मिली। अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी से जुड़े सैंकर ने कोशिकाओं के डीएनए मरम्मत को सिद्धांत को बूझा। उन्होंने ऐसा तंत्र बनाया जिससे पता चला कि कोशिकाएं कैसे पराबैंगनी प्रकाश से क्षतिग्रस्त हुए डीएनए को दुरुस्त करती हैं।

तीसरे वैज्ञानिक मॉडरिश ने यह साबित किया कि कोशिकाएं कैसे विभाजन के दौरान होने वाली गलतियों को सुधारती हैं। विभाजन के दौरान बनने वाली नई कोशिकाओं में भी डीएनए होता है, लेकिन बंटवारे के दौरान अगर कोई गलती हो तो कोशिकाएं इसे खुद ही सुधार लेती हैं।

इंसान का प्रतिरोधी तंत्र भी इसी आधार पर चलता है, लेकिन कैंसर हो जाए तो वह भी इसी कारण फैलता है। असल में मरम्मत तंत्र के चलते कैंसर कोशिकाएं लगातार जीवित रहती हैं। लेकिन अगर कैंसर कोशिकाओं के भीतर इस मरम्मत तंत्र को ही खत्म कर दिया जाए तो जानलेवा बीमारी नहीं फैलेगी।

तीनों वैज्ञानिकों को 10 दिसंबर को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। पुरस्कार के तहत मिलने वाली 80 लाख स्वीडिश क्रोनर की राशि को तीनों विजेताओं में बराबर-बराबर बांटा जाएगा।
ब्रिटेन के फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट में कार्यरत टॉमस लिंडाल ने कहा, “इस पुरस्कार के लिए ख़ुद को चुने जाने पर मुझे ख़ुशी भी है और गर्व भी।”

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