
कालटेक विश्वविद्यालय (Caltech University) के वैज्ञानिको ने ब्रह्मांड के आरंभीक समय मे बनने वाले पिंडो की खोज मे वर्षो व्यतित किये है। ये वैज्ञानिक अब एक बार फ़िर से सुर्खियों मे है, उन्होने अब तक की सर्वाधिक दूरी पर स्थित कुछ आकाशगंगाये खोज निकाली है। 28 अगस्त 2015 को विज्ञान शोध पत्रिका आस्ट्रोफिजिकल जरनल लेटर्स(Astrophysical Journal Letters) मे प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार उन्होने एक आकाशगंगा EGS8p7 खोज निकाली है जो कि 13.2 अरब वर्ष पुरानी है। जबकि हमारा ब्रह्माण्ड 13.8 अरब वर्ष पुराना है।
इस वर्ष के आरंभ मे नासा की अंतरिक्ष वेधशालाओं हब्बल(Hubble Space Telescope) तथा स्पिट्जर(Spitzer Space Telescope) से प्राप्त आंकड़ो के अनुसार EGS8p7 को आगे शोध के लिये उम्मीदवार माना गया था। हवाई द्विप की डब्ल्यु एम केक वेधशाला(W.M. Keck Observatory ) के अवरक्त किरणो के प्रयोग से एकाधिक पिंड के वर्णक्रम का अध्ययन करने वाले उपकरण( multi-object spectrometer for infrared exploration (MOSFIRE)) का प्रयोग किया। इस प्रयोग मे उन्होने स्पेक्ट्रोग्राफिक विश्लेषण (spectrographic analysis) द्वारा आकाशगंगा द्वारा उतसर्जित विकिरण मे लाल विचलन(redshift) का अध्ययन किया। किसी भी तरंग मे लाल विचलन डाप्लर प्रभाव के कारण होता है। इस प्रभाव को आप अपने से दूर जा रही ट्रेन की सीटी की पिच मे आये परिवर्तन से महसूस कर सहते है। लेकिन ब्रह्माण्डीय पिंडो मे ध्वनि तरंग की बजाय प्रकाश की तरंग मे बदलाव होता है, यह परिवर्तन तरंग के वास्तविक रंग से लाल रंग की ओर विचलन के रूप मे होता है।
वैज्ञानिक चकित है क्योंकि इस आकाशगंगा को हमे दिखायी ही नही पड़ना चाहिये। क्योंकि यह आकाशगंगा एक ऐसे समय से है जिसके पिंडो से निकला उत्सर्जन अनावेशित हायड्रोजन के बादलो द्वारा अवशोषित हो जाना चाहिए।
पारंपरिक रूप से किसी भी विकिरण मे आये लाल विचलन का प्रयोग आकाशगंगाओ की दूरी मापने मे होता है लेकिन ब्रह्मांड मे सर्वाधिक दूरस्थ पिंडो के प्रकाश मे उत्पन्न लाल विचलन के मापन मे कठिनायी होती है। ये दूरस्थ पिंड ही ब्रह्मांड के प्रारंभ मे निर्मित पिंड होते है। बिग बैंग के तुरंत पश्चात सारा ब्रह्मांड आवेशित कण इलेक्ट्रान-प्रोटान तथा प्रकाशकण- फोटान का एक अत्यंत घना सूप था। ये फोटान इलेक्ट्रान से टकरा कर बिखर जाते थे जिससे शुरुवाती ब्रह्माण्ड मे प्रकाश गति नही कर पाता था। बिग बैंग के 380,000 वर्ष पश्चात ब्रह्मांड इतना शीतल हो गया कि मुक्त इलेक्ट्रान और प्रोटान मिलकर अनावेशित हायड्रोजन परमाणु का निर्माण करने लगे, इन हायड्रोजन परमाणुओं ने ब्रह्माण्ड को व्याप्त रखा था, इस अवस्था मे प्रकाश ब्रह्माण्ड मे गति करने लगा था। जब ब्रह्माण्ड की आयु आधे अरब वर्ष से एक अरब वर्ष के मध्य थी, तब प्रथम आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ है, इन आकाशगंगाओ ने अनावेशित हायड्रोजन गैसे को पुनः आयोनाइज्ड कर दिया जिससे ब्रह्मांड अब भी आयोनाइज्ड है।
पुनः आयोनाइजेसन से पहले अनावेशित हायड्रोजन गैस के बादलो द्वारा नवजात आकाशगंगाओ द्वारा उतसर्जित विकिरण कुछ मात्रा मे अवशोषित कर लिया जाता रहा होगा। इस अवशोषित विकिरण के वर्णक्रम मे लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line) का भी समावेश है जोकि नवजात तारो द्वारा उत्सर्जित पराबैंगनी(ultraviolet) किरणो से उष्ण हायड्रोजन का वर्णक्रमीय हस्ताक्षर है। इस लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line) को तारों के निर्माण के संकेत के रूप मे देखा जाता है। यदि किसी गैस के बादल मे वर्णक्रमीय विश्लेषण मे यदि लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line) दिखायी दे तो इसका अर्थ है कि उस बादल मे तारो का जन्म हो रहा है।

अनावेशित हायड्रोजन गैस के बादलो द्वारा इस विशेष अवशोषण के कारण कम से कम सैद्धांतिक रूप से EGS8p7 के वर्णक्रम मे लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line)का होना संभव नही होना चाहिये।
यदि आप ब्रह्माण्ड की प्रारंभिक आकाशगंगाओ का निरिक्षण करें तो पायेंगे कि उनमे अनावेशित हायड्रोजन है और वह लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line) का अवशोषण कर लेती है। हमारी अपेक्षा के अनुरूप इस आकाशगंगा से उत्सर्जित विकिरण का अधिकतर भाग अंतरिक्ष मे व्याप्त हायड्रोजन द्वारा कर लिया जाना चाहीये। लेकिन ऐसा नही है, इस आकाशगंगा से उत्सर्जित विकिरण मे लीमन-अल्फा रेखा(Lyman-alpha line) मौजूद है।
इसे विकिरण को मासफ़ायर उपकरण द्वारा देखा गया है, यह उपकरण तारों और दूरस्थ आकाशगंगाओ के विकिरण मे विभिन्न तत्वो के रासायनिक हस्ताक्षर की जांच करने मे सक्षम है जिसमे अवरक्त किरणो की तरंग के निकटस्थ तरंगो((0.97-2.45 microns) का भी समावेश है।
इस खोज की सबसे बड़ा आश्चर्यजनक पहलु यह है कि हमने 8.68 लाल विचलन वाली एक अत्यंत धूंधली आकाशगंगा के वर्णक्रम मे लीमन-अल्फा रेखा देखी है, जोकि एक ऐसे समय मे बनी है जिसमे ब्रह्माण्ड इस वर्णक्रम को अवशोषित करने वाले हायड्रोजन बादल से भरा हुआ था। इस खोज से पहले सबसे ज्यादा दूरी पर स्थित आकाशगंगा का लाल विचलन 7.73.था।
इस आकाशगंगा के इन हायड्रोजन बादलो के होने के बावजूद दिखायी देने के पीछे एक अन्य संभावना हो सकती है। वैज्ञानिक मानने है कि हायड्रोजन गैस का पुनः आयोनाइजेशन समांगी रूप से नही हुआ होगा। यह आयोनाइजेशन टूकडो टूकड़ो मे बिखरे बिखरे रूप से हुआ होगा। कुछ पिंड इतने चमकदार है कि वे आयोनाइज्ड हायड्रोजन गैस का एक बुलबुला बनाते है, लेकिन यह प्रक्रिया हर दिशा मे समान नही है।
EGS8p7 आकाशगंगा अप्रत्याशित रूप से दीप्तीवान है, यह शायद इस आकाशगंगा मे असाधारण रूप से उष्ण तारो के कारण हो सकता है। यह संभव है कि इस आकाशगंगा द्वारा उस समय की अन्य आकाशगंगाओ की तुलना मे काफ़ी तेजी से आयोनाइज्ड हायड्रोजन गैस का बुलबुला बनाया होगा।

वैज्ञानिको के अनुसार अब उन्हे ब्रह्माण्ड के जन्म के बाद की घटनाओं के समय का पुनःनिर्धारण करना होगा, क्योंकि इस आकाशगंगा ने ब्रह्मांड के पुन:आयोनाइजेशन घटना के समय पर प्रश्न चिह्न खड़े कर दिये है। यह ब्रह्मांड के जन्म की बाद की घटनाओं को सही रूप से समझने के लिये आवश्यक है।
sir ji ab tak kitne gyat aayam hai?
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तीन(लबाई x, चौड़ाई y, गहराई z) और समय को मिलाकर चार
सैद्धांतिक रूप से स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार 11 से लेकर 25 तक हो सकते है लेकिन प्रायोगिक/निरीक्षण के प्रमाण नही है।
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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Adyatan jankari ke liye dhanyawad!
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