
पिछले सप्ताह तक किसी अन्य आकाशगंगा का परग्रही मुझसे मेरा पता पूछता तो मेरा उत्तर होता
आशीष श्रीवास्तव, B-3,गुनीना हेलिक्स, इलेक्ट्रानीक सीटी, बैंगलोर,कर्नाटक, भारत,पृथ्वी, सौर मंडल,व्याध भूजा, मंदाकिनी आकाशगंगा, स्थानीय आकाशगंगा समूह, कन्या बृहद आकाशगंगा समूह, ब्रह्माण्ड(Ashish Shrivastava, B3, Gunina Helix, Electronic City, Bangalore,Karnataka,India,Earth, Solar System, Orion Arm, Milky Way Galaxy, Local Group, Virgo Supercluster, Universe).
लेकिन इस ब्रह्माण्ड मे मेरे पते मे एक और मोहल्ला बढ़ गया है जोकि मेरे पते के अंतिम दो क्षेत्रो के मध्य है, जिसे लानीआकिया (Laniakea)कहा जा रहा है, जोकि आकाशगंगाओं का एक विशालकाय समूह है।
मैने जो अपना पता बताया है उसमे आप सौर मंडल तक तो परिचित ही होंगे। हमारा सूर्य मंदाकिनी आकाशगंगा मे उसकी व्याध भूजा(Orion arm) मे स्थित है। मंदाकिनी आकाशगंगा के कुछ भाग को आप रात्रि मे उत्तर से दक्षिण मे एक बड़े पट्टे के रूप मे देख सकते है। यह आकाशगंगा वस्तुतः एक स्पायरल के आकार की है और उसकी पांच से अधिक भूजाये है। सूर्य इसमे से एक भूजा व्याध भूजा के बाह्य भाग मे स्थित है।
मंदाकिनी आकाशगंगा कुछ एक दर्जन अन्य आकाशगंगाओं के साथ एक स्थानीय आकाशगंगा समूह(Local Group) बनाती है जिसमे मंदाकिनी (Milkyway)आकाशगंगा और देव्यानी (Andromeda)आकाशगंगा सबसे बड़ी है। यह आकाशगंगा समूह भी एक बड़े आकाशगंगा समूह जिसे कन्या आकाशगंगा समूह (Virgo Cluster)के नाम से जाना जाता है, का एक भाग है। कन्या आकाशगंगा समूह मे 1000 से ज्यादा आकाशगंगाये है और यह समूह दसीयो लाख प्रकाशवर्ष चौड़ा है।

कन्या आकाशगंगा समूह भी एक विशालकाय आकाशगंगा समूह कन्या बृहद आकाशगंगा(Virgo Super Cluster) समूह का भाग है जिसमे कई आकाशगंगा समूह है। इन आकाशगंगा समूहों के नाम पृथ्वी के सापेक्ष आकाश मे उनकी दिशा पर किये गये है। ये कन्या बृहद आकाशगंगा समूह ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी संरचनाओं मे से एक है जिनकी चौड़ाई करोड़ो प्रकाशवर्ष होती है।

किसी बृहद आकाशगंगा समूह का मानचित्र बनाना अत्यंत दुष्कर कार्य है। सर्वप्रथम इन समूहो की किसी ग्रह के जैसे ठोस सीमा नही होती है, उनकी सीमा केंद्र से दूरी के साथ बस धूंधली होती जाती है, उस दूरी तक जब तक दूसरा बृहद आकाशगंगा समूह प्रारंभ ना हो जाये। इस धुंधलके मे सीमा का निर्धारण कैसे हो? दूसरे इन सीमाओ का निर्धारण त्री-आयामी अंतरिक्ष मे करना होता है जो इसे और भी कठिन बना देता है।
लेकिन खगोल शास्त्री ब्रेंट टल्ली के नेतृत्व मे एक टीम ने यही कर दिखाया है। इस टीम ने एक रेडीयो वेधशाला के प्रयोग से पृथ्वी के आसपास के स्थानीय ब्रह्माण्ड का निरीक्षण किया। ब्रह्माण्ड अपने विस्तार के साथ आकाशगंगाओं को हम से दूर ले जा रहा है, जिससे उन आकाशगंगाओं से उत्सर्जित रेडीयो तरंगो की ऊर्जा कम होते जा रही है, इस प्रभाव को हम डाप्लर प्रभाव के नाम से जानते है। इस ऊर्जा के ह्रास को “लाल विचलन(Red Shift)” कहा जाता है। आकाशगंगा जितनी दूर होगी उतना ही अधिक लाल विचलन होगा।
यदि आकाशगंगायें एक दूसरे के समीप स्थित हों तो वे एक दूसरे के गुरुत्वाकर्षण मे फंस कर एक दूसरे की परिक्रमा प्रारंभ कर देती है। यह परिक्रमा भी ब्रह्माण्ड के विस्तार से उत्पन्न लाल विचलन को प्रभावित करती है। हम स्थानीय स्तर पर ब्रह्माण्ड के विस्तार को जानते है, इसलिये आकाशगंगाओं की गति मे से ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति को हटा दे तो हमे उन आकाशगंगाओं की एक दूसरे के सापेक्ष परिक्रमा गति प्राप्त हो जाती है। इस जानकारी से हम इन आकाशगंगाओं पर पड़ोस की अन्य आकाशगंगाओं के गुरुत्व प्रभाव का मानचित्र बना सकते है। वैज्ञानिको ने इन जानकारीयों के विश्लेषण से आकाशगंगाओं के अंतरिक्ष मे घनत्व और गति का मानचित्र तैयार किया।
इस विधि से वैज्ञानिको ने इन सभी आकाशगंगाओं का ब्रह्माण्ड मे स्थिति का एक त्री-आयामी(3D) मानचित्र बनाया। और उन्होने पाया कि कन्या बृहद आकाशगंगा समूह वास्तविकता मे एक महा-बृहद आकाशगंगा समूह लानीआकिया का एक भाग है। “लानीआकिया ” हवाई भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है “ऐसा अंतरिक्ष जिसे मापना असंभव” है। लानीआकिया 50 करोड़ प्रकाशवर्ष चौड़ी है और इसका द्रव्यमान 10 करोड़ अरब सूर्य के तुल्य है।
लानीआकिया की सीमा सही तरह से परिभाषित नही है लेकिन खगोलशास्त्री ने इसके निर्धारण के लिये उसके गुरुत्व का अध्ययन किया। कोई भी आकाशगंगा जो लानीआकिया के गुरुत्विय प्रभाव मे है, वह इसकी सीमा के अंदर है। यदि आकाशगंगा किसी अन्य आकाशगंगा समूह के प्रभाव मे है अर्थात वह लानीआकिया की सीमा के बाहर है। यह परिभाषा मोटे तौर पर है, सभी स्थितियों का समावेश नही करती है लेकिन व्यवहारिक तौर पर परिपूर्ण है।
खगोल विज्ञान हमारे ज्ञान को विस्तृत करता है, वहीं वह हमे ब्रह्माण्ड की तुलना मे हमारी जगह बताता है कि इस विस्तृत ब्रह्माण्ड की तुलना मे हम कितने नगण्य है। लेकिन हमे यह नही भूलना चाहिये कि हम इस ब्रह्माण्ड के भाग है ; हमने यह सब ज्ञान स्वयं प्राप्त किया है और यह एक छोटी उपलब्धि नही है।
सर आप बोलते है की ब्रह्माण्ड में पदार्थ की मात्रा 0.0009 लगभग से भी कम है तथा बाकि सब रिक्त स्थान है तब यहाँ तो कई आकाशगंगाये है ये सब 0.000009 से भी कम कैसे हो सकते है ?
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अंतरिक्ष में रिक्त स्थान अत्यधिक है। उदाहरण के लिए पृथ्वी और चन्द्रमा के मध्य इतना रिक्त स्थान है क़ि सौर मंडल के सारे ग्रह् उसमे समा सकते है।
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sir air ek qz
Pluto ek akhari planet h to vaha sun light pahuchati nhi h??? if aisa h to vaha ka temp minus m hoga? if minus h to ice hoga? if ice hoga to water hoga if water hoga to may be life being ho sakta h na sir I min jaroor human system n ho mgr ice life ho sakti h for ex. small small biological jiv ……??????
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विनोद, प्लुटो पर सूर्यप्रकाश अत्यल्प मात्रा मे पहुंचता है, जल बर्फ भी है लेकिन जीवन की उत्पत्ति के लिये द्रव जल आवश्यक है, ठोस नही!
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sir moon aur star h unko Kaiser light received hoti h?????
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तारे प्रकाश स्व्य उत्पन्न करते है, वे भी सूर्य के जैसे ही है. चन्द्रमा सूर्य के प्रकाश लेकर परावर्तित करता है
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यह प्रयास निसंदेह हिंदी जगह के लिए गर्व की बात है और पढकर महसूस होता है भारत के विश्वगुरू कहलाने के प्रमाण आप जैसे इंसानों से पक्के होते हैं। धन्यवाद!
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कल 12/सितंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
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Adbhud. Yakin hi nahi hota ki ham bhi is kaynat ka hisa he. Ham to kiya hamari parithwi bhi kisi ginti me nahi he
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