प्रकृति को पूरी तरह से समझना अब तक मानव मन के बूते के बाहर रहा है। मानव ने अपने इतिहास मे प्रकृति के कई रहस्य खोजे, ढेर सारे प्रश्नो का उत्तर पा लिया लेकिन उतने ही नये अनसुलझे रहस्य सामने आते गये है। मानव आज अपनी मातृभूमि पृथ्वी की सीमाओं को लांघ कर चंद्रमा तक जा पहुंचा है, उसके बनाये अंतरिक्ष यान सौर मंडल की सीमाओं को लांघ कर दूर अंतरिक्ष मे जा चूके है। हम आज किसी भी आकाशीय पिंड को देखकर, उसकी गति जान सकते है और बता सकते है कि अगले क्षण , अगले माह, अगले वर्ष या अगले सहस्त्र वर्षो पश्चात वह कहां होगा। इस गणना मे किसी चूक की भी कोई गुंजाइश नही है। हमारे पंचांग भी सदियों से हर एक नक्षत्र के उदय अस्त होने का समय तथा हर एक ग्रहण का अचूक समय बताते आ रहे है।

लेकिन मानव ज्ञान उस समय ठगा सा रह जाता है जब वह लघु स्तर पर किसी परमाणु के अंदर झांकता है। हम यह नही बता सकते कि परमाणु नाभिक की परिक्रमा करता इलेक्ट्रान कहां हो सकता है। प्रकृति बड़े पैमाने पर सरल है लेकिन लघू पैमाने पर अत्यंत जटिल है। ऐसा क्यों ? एक समय यह माना जाता था कि कोई इलेक्ट्रान परमाणु नाभिक की परिक्रमा एक अच्छी तरह से परिभाषित कक्षा मे करता है। इस मान्यता के आधार पर परमाणु की संरचना का यह प्रसिद्ध चित्र (बायें) बना था।

लेकिन क्या आप सोच सकते है कि बायें दिया यह प्रसिद्ध चित्र गलत है ?
‘अनिश्चितता के सिद्धांत(Uncertainty Principle)’ के अनुसार किसी गतिमान कण की स्थिति और संवेग को एक साथ एकदम ठीक-ठीक नहीं मापा जा सकता। यदि एक राशि अधिक शुद्धता से मापी जाएगी तो दूसरी के मापन में उतनी ही अशुद्धता बढ़ जाएगी, चाहे इसे मापने में कितनी ही कुशलता क्यों न बरती जाए। जितनी अचूक गति की जानकारी होगी, स्थिति उतनी ज्यादा अज्ञात होगी या इसके विपरीत जितनी अचूक स्थिति की जानकारी होगी , उसकी गति उतनी ही अज्ञात होगी। वर्तमान मे किसी भी परमाण्विक कण की स्थिती एवं गति की गणना को हम संभावना मे मापते है। हम कहते है कि किसी परमाण्विक कण के ’क’ स्थान पर ’ख’ ऊर्जा पर होने की ’म’ प्रतिशत प्रायिकता है।
किसी परमाणु की संरचना का सही चित्र दायें दिखाया गया है। यहां पर इलेक्ट्रानो की स्थिति को एक बादल के रूप मे दिखाया गया है जो कि इलेक्ट्रान की संभावित सभी अवस्थाओ को चित्रित करता है। किसी भी क्षण कोई इलेक्ट्रान इस बादल मे कहीं भी हो सकता है।
लघू स्तर पर परमाण्विक कणो का एक चिडी़याघर है, इसमे छः प्रकार के क्वार्क, छः प्रकार के लेप्टान, चार प्रकार के बोसान और लगभग इतने ही प्रतिकण है। सभी का व्यवहार और ऊर्जा स्तर भिन्न है। ये परमाण्विक कण दोहरा व्यवहार रखते है; ये कण और तरंग दोनो की तरह व्यवहार करते है। ये समझ से बाहर है कि प्रकृति लघु स्तर पर इतनी जटिल क्यों है ?
प्रकृति के परमाण्विक स्तर पर विचित्र व्यवहार की कड़ी मे है क्वांटम एन्टेन्गलमेंट(Quantum Entanglement)। एन्टेन्गलमेंट का शाब्दिक अर्थ होता है उलझाव, गुंथा होना। यह एक अजीब व्यव्हार है। इसके अंतर्गत जब दो परमाण्विक कण (इलेक्ट्रान, फोटान, क्वार्क, परमाणु अथवा अणु) एक दूसरे से भौतिक रूप से टकरा्ने के पश्चात अलग हो जाते है, वे एक एन्टेंगल्ड(अन्तःगुंथित) अवस्था मे आ जाते है। इन दोनो कणो की क्वांटम यांत्रिकी अवस्थायें समान होती है अर्थात उनका स्पिन,संवेग, ध्रुवीय अवस्था समान होती है। एन्टेंगल्ड अवस्था मे आने के बाद यदि एक कण की अवस्था मे परिवर्तन होने पर वह परिवर्तन दूसरे कण पर स्वयं हो जाता है, चाहे दोनो कणो के मध्य कितनी भी दूरी हो। सरल शब्दो मे एन्टेंगल्ड कण-युग्म के एक कण पर आप के द्वारा किया गया परिवर्तन दूसरे कण पर भी परिलक्षित होता है।
परमाण्विक स्तर पर दो कणो के ’एन्टेंगल’ होने के इस अद्भूत गुण का प्रयोग ’टेलीपोर्टेशन’ के लिए संभव है। ध्यान दें कि जब भौतिक वैज्ञानिक टेलीपोर्टेशन शब्द का प्रयोग करते है, उनका आशय ‘सूचना’ अर्थात परमाणु की अवस्था का स्थानांतरण होता है नाकि भौतिक रूप से पदार्थ का। उनके इस प्रयोग के पिछे उद्देश्य अत्यंत तेजगति के क्वांटम कम्प्युटर बनाना है। किसी पदार्थ, वस्तु अथवा प्राणी का टेलीपोर्टेशन उनकी प्राथमिकता मे फिलहाल नही है।
क्वांटम टेलीपोर्टेशन की इस प्रक्रिया मे प्रथम दो आवेशित परमाणु (आयन) ’ब’ और ’क’ को एन्टेंगल किया जाता है। इसके पश्चात जिस क्वांटम अवस्था को टेलीपोर्ट करना है उसे आवेशित परमाणु(आयन) ’अ’ पर निर्मित किया जाता है।
इसके पश्चात एन्टेगल्ड परमाणु युग्म मे से एक परमाणु ’ब’ को ’अ’ से एन्टेंगल किया जाता है। अब ’अ’ और ’ब’ की आंतरिक अवस्था का मापन किया जाता है और परिणाम ’क’ को स्थांतरित हो जाते है। इस प्रक्रिया मे ’अ’ की क्वांटम अवस्था ’क’ मे स्थानांतरित हो गयी है। यह सारी प्रक्रिया मीलीसेकंडो मे एक बटन के दबाने के साथ हो जाती है।

इस प्रयोग को एक मील का पत्थर माना जा रहा है, जिससे अत्यंत तेज गति के सुपर कंप्युटर बनाये जा सकेंगे, जिसमे सूचना का प्रवाह अदृश्य तार(Wire)से होगा। ये नये सुपर कंप्युटर जटिल गणनाओं को वर्तमान सुपरकंप्युटर से कई गुणा ज्यादा गति से कर पायेंगे।
kya koi vastu ya koi prani ko ek jagah se dusari jagah pohchaya ja saakta hei???
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अभी तक के प्रयोग आरंभिक स्तर के है, केवल कुछ परमाणुओं को ही टेलीपोर्ट किया जा सका है। किसी वस्तु या प्राणी अभी बहुत दूर की बात है।
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हम बहुत फिल्मो मे human teleportation देखते हैं …क्या ये भविष्य मे संभव है?
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भविष्य मे हो सकता है लेकिन कम से कम एक सदी लगेगी।
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क्या बिजली ( power, light) बिना तार के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचायी जा सकती हैं
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हां, बेतार बिजली का संवहन संभव है। एक तरिका तो बिजली को Magnetic Coupling है, लेजर, माइक्रोवेव से भी संभव है। लेकिन यह सब महंगी तकनीक है साथ ही संवहन मे काफ़ी बिजली व्यर्थ भी नष्ट हो जाती है।
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पहली बार मैने बिजली के खंब्बे गीरते देख यही सोचा था की क्या यह संभव है। पर अब मै ईसपर ईतनी सारी मेहणत कर चुरां हु और कर रहा हु की एक दीन निश्चीत पुरी दुनीया वायरलेस बनेगी।
पर माईक्रोवेव्ह से बिजली प्रवाहीत करना कैसे संभव है। मैने ईस के बारे में भी रिसर्च की
यह तो पता है मेग्नेटीक कपल से सभंव है। क्यों की मै ईसपक 3-4 सालोसे काम कर रहा हुं।
अगर मैक्रोवेव्ह और लेजर से बीजली प्रवाहीत के बारेमें संक्षिप्त बता देते तो मे रिसर्च आगे बढे।
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अति सुन्दर लेख 🙂
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मतलब अदृश्य तार अभी तक खोजा नहीं गया है इसे भी खोजा जाना चाहिए ये भी एक बड़ी खोज हो सकती है क्योंकि भले ही अवस्था का ट्रांसफर होता हो, पर होता तो है, अगर इसे खोज लिया जाय तो इसका और अच्छी तरह से अपने उपयोग हो सकेगा.
क्योंकि प्रकाश से तेज कोई चीज नहीं चल सकती लेकिन इस प्रक्रिया में तो यह प्रकाश से भी ज्यादा स्पीड दिखा रही है.
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बहुत खूब जानकारी दी है अपने पर अगर आप “अदृश्य तार(Wire)” पर थोडा और प्रकाश डालेंगे तो आपका आभार होगा, मैं जानना चाहता हूँ की ये केसे होते है और क्या optical fiber से ये केसे अलग है?????????
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तरुण जी,
‘अदृश्य तार’ का अर्थ है कि कोई तार नहीं होता है, दोनों परमाणु के मध्य कोई संपर्क नहीं होता है. लेकिन एक परमाणु पर किया गया बदलाव दूसरे पर परिलक्षित अपने आप होता है. अपने आप अर्थात , दोनों के मध्य कोई तर नहीं, कोई संपर्क माध्यम नहीं है!
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धन्यवाद
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ध्यान से एक बार और पढ़ा जाए तब बात बनेगी
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इनतेंगल्ड स्थिति में आने के बाद दोनों कण कम्युनिस्टवत समानता का व्यवहार करते हैं
टेलीपोर्टेशन ….स्थिति का स्थानान्तरण …..अद्भुत लीला है प्रकृति की. द्रव्य नहीं बल्कि उसका गुण मात्र स्थानांतरित हो रहा है. सामान्य स्थिति में द्रव्य को गुण से पृथक नहीं किया जा सकता. द्रव्य और गुण अपृथक्त्व भाव से रहते हैं पर सूक्ष्म स्थिति में दोनों पृथक हो जाते हैं यह पंचमहाभूत से ठीक पूर्व की स्थिति “तन्मात्रा” से भी पूर्व की स्थिति है जिसे दर्शन की भाषा में “अहंकार” ( isness ) कहते हैं.
“प्रोबेबिलिटी” शब्द जगत की अवधारणा की एक स्थिति विशेष का द्योतक है. जो निरंतर गतिमान है वही तो “जगत” है. और जो गतिमान है उसकी स्टेशनरी स्थिति की कल्पना भर की जा सकती है …..किन्तु हमें तो समय के एक अंश विशेष में उसकी स्थिति जानने की जिद है …तो प्रोबेबिलिटी शब्द के बिना कम नहीं चलने वाला.
इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि ह्यूमन फिजियोलोजी और पैथोलोजी से सम्बंधित हमारे पास जो भी बायोकेमिकल विश्लेषण हैं वे भी किसी प्रोबेबल स्थिति के ही द्योतक हैं ….जो भी विश्लेषण है वह एक क्षण विशेष का है ….उस क्षण के बाद स्थिति बदल चुकी है, किन्तु हम अपनी उस क्षणिक फाइंडिंग को ही एक मानक बना कर आगे की परिकल्पनाएं करते हैं. अर्थात हमारा सम्पूर्ण तथाकथित ज्ञान समय और स्थिति सापेक्ष है, अब्सोल्यूट नहीं …..
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वाह भाई याद आ गए हीजेन्बर्ग और श्राडिन्गर !
बहुत सहज सरल तरीके से इस जटिल विषय को समझाया है आपने
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net pe hi kabhi kisi bhi material ko dekhne ka +23 -16 formula *10 mila tha……………usme bhi ye baat kahi gai thee……..
……………..ki brihat star par hum ‘brahmand’ ko dekh sakte lekin ‘parmanu’ ko nahi dekh sakte…………………………………..
pranam.
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समझ में कम आते हुए भी अच्छा लगा। कोशिश करते हैं समझने की। बढिया। धन्यवाद आपको।
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वाह भाई याद आ गए हीजेन्बर्ग और श्राडिन्गर !
बहुत सहज सरल तरीके से इस जटिल विषय को समझाया है आपने
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