
स्वर्ण/सोना मानव मन को सदियों से ललचाता रहा है! लेकिन स्वर्ण की उत्पत्ती कैसे हुयी ? हम यहा पर स्वर्ण खदानो की चर्चा नही कर रहे है, चर्चा का विषय है कि इन खदानो मे स्वर्ण का निर्माण कैसे हुआ है?
हमारे सौर मंडल मे स्वर्ण की मात्रा शुरुवाती ब्रह्माण्ड मे निर्माण हो सकने लायक स्वर्ण की मात्रा के औसत से कहीं ज्यादा है। स्वर्ण निर्माण की यह प्रक्रिया सूर्य मे नियमित रूप से होने वाली हिलीयम निर्माण की प्रक्रिया के जैसे ही है। इस प्रक्रिया मे हायड्रोजन परमाणु के दो नाभिक हिलीयम का नाभिक बनाते है। हिलीयम निर्माण की इस प्रक्रिया से उत्पन्न ऊर्जा के कारण ही सूर्य प्रकाशमान है।
दो हिलीयम के नाभिको के संलयन से कार्बन बनता है, इसी क्रम मे मैग्नेशीयम, सल्फर और कैल्सीयम बनते है। विभिन्न तत्वो के संलयन के फलस्वरूप अन्य भारी तत्व बनते है। लेकिन लोहे के नाभिको के निर्माण की प्रक्रिया तक पंहुचते पहुंचते यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है क्योंकि यह प्रक्रिया ऊर्जा उत्पन्न करने की बजाये ऊर्जा लेना शुरू कर देती है। स्वर्ण(परमाणु क्रमांक 79) लोहे(परमाणु क्रमांक 27) से बहुत ज्यादा भारी तत्व है। सूर्य जैसे तारो मे स्वर्ण निर्माण असंभव होता है!
स्वर्ण आया कहां से ?
एक संभावना सुपरनोवा विस्फोट की है। सुपरनोवा विस्फोट की प्रचंड ऊर्जा और दबाव मे लोहे से ज्यादा भारी तत्व बन सकते है। सूर्य दूसरी पिढी़ का तारा है। यह किसी तारे के सुपरनोवा विस्फोट के पश्चात बचे पदार्थ से बना है। लेकिन सुपरनोवा विस्फोट से भी इतनी मात्रा मे स्वर्ण नही बन सकता है जितना हमारे सौर मंडल मे है !
प्रश्न वहीं है स्वर्ण आया कहां से ?
वैज्ञानिको ने एक नया सिद्धांत प्रस्तुत किया है। न्युट्रान से भरे नाभिक वाले तत्व जैसे स्वर्ण दो न्युट्रान तारो के टकराव से आसानी से बन सकते है। इस तरह के न्युट्रान तारो के टकराव द्वारा लघु अवधी वाला गामा किरण विस्फोट(GRB) भी होता है। प्रस्तुत चित्र दो न्युट्रान तारों के टकराव को दर्शा रहा है। चित्र कल्पना आधारित है।
ये विस्फोट विनाशकारी होते है! क्या आपके पास इन महाकाय विस्फोटो की कोई निशानी है ?
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निशानी ?
हाँ ! है तो …पर वह अर्धांगिनी जी के पास है ……पता नहीं क्यों उस निशानी से इतना लगाव है उनका …..लादे घूमती रहती हैं.
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आभार….
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मायावी मामा?
रूमानी जज्बों का सागर..
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बहुत कठिन प्रक्रिया है जी. यहाँ जनता डिमांड सप्लाई और सेफ हेवेन के नाम पार भाव बढ़ा-घटा देती है. बनाना पड़े तो पता चले 🙂
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