सूरज को धरती पर उतारने की तैयारी


मानव विकास के लिए अधिकाधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। बिजली पर हमारी बढ़ती निर्भरता के कारण भविष्य में ऊर्जा व्यय और भी बढ़ेगा। तो इतनी ऊर्जा आएगी कहाँ से? सब जानते हैं कि धरती पर कोयले और पेट्रोलियम के भंडार सीमित हैं, ये भंडार ज्यादा दिनों तक हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरी नहीं कर सकते। और इससे प्रदूषण भी होता है, जिसका प्रभाव पृथ्वी के जीव जगत पर पड़ता है। कोई कह सकता है कि अब तो नाभिकीय रिएक्टरों का इस्तेमाल बिजली पैदा करने में किया जाने लगा है तो कोयले और पेट्रोलियम के खत्म होने की चिंता करने की जरूरत नहीं है। मगर ऐसा नहीं है। जिस यूरोनियम या थोरीयम से नाभिकीय रिएक्टर में परमाणु क्रिया संपन्न होती है, उसके भी भंडार भविष्य में हमारी ऊर्जा जरूरतों के लिए बेहद कम हैं। और नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन के साथ-साथ रेडियोधर्मी (रेडियोएक्टिव) उत्पाद भी उत्पन्न होते हैं, जो पर्यावरण और मनुष्य के लिए घातक हैं। 

वैज्ञानिक लंबे समय से एक ऐसे ईंधन की खोज में हैं, जो पर्यावरण और मानव शरीर को नुकसान पहुंचाए बगैर हमारी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति करने में सक्षम हो। वैज्ञानिकों की यह तलाश नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूजन) पर समाप्त होती दिखाई दे रही है। नाभिकीय संलयन प्रक्रिया ही सूर्य तथा अन्य तारों की ऊर्जा का स्रोत है। जब दो हल्के परमाणु नाभिक जुड़कर एक भारी तत्व के नाभिक का निर्माण करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। यदि हम हाइड्रोजन के चार परमाणुओं को जोड़ें, तो हीलियम के एक परमाणु का निर्माण होता है। हाइड्रोजन के चार परमाणुओं की अपेक्षा हीलियम के एक परमाणु का द्रव्यमान कुछ कम होता है। हीलियम के द्रव्यमान में हुई कमी ऊर्जा के रूप में वापस मिलती है। वैज्ञानिक कई वर्षों से सूर्य मे संपन्न होनेवाली संलयन अभिक्रिया को पृथ्वी पर कराने के लिए प्रयासरत हैं, जिससे बिजली पैदा की जा सके। अगर इसमें सफलता मिल जाती है तो यह सूरज को धरती पर उतारने जैसा होगा।

हालांकि लक्ष्य अभी दूर है, मगर चीनी वैज्ञानिकों की इस दिशा में हालिया बड़ी सफलता ने उम्मीदें जगा दी हैं। चीन के हेफई इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल साइंसेज के मुताबिक चीन अपने नाभिकीय विकास कार्यक्रम के तहत पृथ्वी पर नाभिकीय संलयन प्रक्रिया द्वारा सूर्य की तरह का एक ऊर्जा स्रोत बनाने का प्रयास कर रहा है। हाल ही में इस परियोजना से जुड़े हुए वैज्ञानिकों ने एक बड़ी कामयाबी मिलने का दावा किया है। चाइना डेली में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों ने सूरज की सतह तापमान से भी 6 गुना ज्यादा तापमान तकरीबन 10 करोड़ डिग्री सेल्सियस, चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाज्मा फिजिक्स के न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर में उत्पन्न कर ली है। इस तापमान को तकरीबन 10 सेकंड तक स्थिर रखा गया। नाभिकीय संलयन क्रिया को सम्पन्न कराने के लिए इतना उच्च ताप और दाब जरूरी है। अभीतक इतना अधिक तापमान पृथ्वी पर प्राप्त नहीं किया जा सका था।  


द एक्सपेरिमेंटल एडवांस सुपरकंडक्टिंग टोकामक (ईस्ट)

चीन निर्मित इस फ्यूजन रिएक्टर का व्यास 8 मीटर, लंबाई 11 मीटर और वजन 400 टन है। इस रिएक्टर को द एक्सपेरिमेंटल एडवांस सुपरकंडक्टिंग टोकामक (ईस्ट) नाम दिया गया है। चीन के अनहुई प्रांत में स्थापित रिएक्टर ईस्ट में प्लाज्मा को एक गोलाकार पात्र में गर्म किया जाता है। इसकी दीवारों को प्लाज्मा के उच्च ताप से बचाने के लिए चुंबकीय क्षेत्र का इस्तेमाल किया गया है। वर्तमान नाभिकीय विखंडन पर आधारित रिएक्टरों की आलोचना का सबसे बड़ा कारण है- इनसे ऊर्जा के साथ रेडियोएक्टिव अपशिष्ट पदार्थों का भी उत्पन्न होना। संलयन रिएक्टर में विखंडन रिएक्टर की तुलना में बहुत ज्यादा ऊर्जा उत्पन्न होती है, तथा इनसे किसी भी प्रकार का रेडियोएक्टिव अपशिष्ट भी नहीं निकलता।

तारों पर होनेवाली नाभिकीय संलयन प्रक्रिया को सर्वप्रथम मार्क ओलिफेंट ने 1932 में पृथ्वी पर दोहराने में सफलता प्राप्त की थी। अभीतक वैज्ञानिकों को इस प्रक्रिया को पृथ्वी पर नियंत्रित रूप से सम्पन्न कराने में कामयाबी नहीं मिली थीं, मगर हाल के अनुसंधानों में भारी सफलता मिली हैं। चीनी वैज्ञानिकों ने रिएक्टर ईस्ट में कृत्रिम संलयन करवाने लिए हाइड्रोजन के दो भारी आइसोटोपों ड्यूटेरियम और ट्रिट्रियम को ईंधन के रूप में प्रयोग किया है। धरती के समुद्रों में हाइड्रोजन भारी मात्रा में मौजूद है, इसलिए नाभिकीय संलयन के लिए ईंधन की कभी कमी नहीं होगी। ड्यूटेरियम में एक न्यूट्रॉन होता है और ट्रिट्रियम में दो। अगर इन दोनों में टकराव हो तो उससे हीलियम का एक नाभिक बनता है, तथा इस प्रक्रिया में ऊर्जा मुक्त होती है। भविष्य में इसी ऊर्जा का इस्तेमाल टरबाइन को चलाने में किया जाएगा, जिससे बिजली उत्पन्न होगी। वर्तमान में हम नहीं जानते कि इस प्रक्रिया को परिपक्व होने में कितना समय लगेगा। सर्वाधिक आशावादी अनुमानों के अनुसार इसमें अभी 10-15 वर्षों का समय और लगेगा। निश्चित रूप से चीन का नाभिकीय संलयन कार्यक्रम ऊर्जा संकट को दूर करने में और वैश्विक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा।

लेखक परिचय

प्रदीप

प्रदीप कुमार एक साइंस ब्लॉगर एवं विज्ञान संचारक हैं। ब्रह्मांड विज्ञान, विज्ञान के इतिहास और विज्ञान की सामाजिक भूमिका पर लिखने में आपकी  रूचि है। विज्ञान से संबंधित आपके लेख-आलेख राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं, जिनमे – नवभारत टाइम्स, दिल्ली की सेलफ़ी, सोनमाटी, टेक्निकल टुडे, स्रोत, विज्ञान आपके लिए, समयांतर, इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए, अक्षय्यम, साइंटिफिक वर्ल्ड, विज्ञान विश्व, शैक्षणिक संदर्भ आदि पत्रिकाएँ सम्मिलित हैं। संप्रति : दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर के विद्यार्थी हैं। आपसे इस ई-मेल पते पर संपर्क किया जा सकता है : pk110043@gmail.com

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