चित्रकार की कल्पना मे नौंवा ग्रह

टेरा फ़ार्मिंग: किसी ग्रह को जीवन योग्य बनाना


हमारी अब तक की जानकारी के अनुसार द्रव जल जीवन के लिये आवश्यक है, इसके बिना जीवन संभव नही है। पृथ्वी पर हर कहीं द्रव जल उपलब्ध है और जीवन ने पनपने का मार्ग खोज निकाला है। इसलिये मानव अंतरिक्ष अण्वेषण मे सबसे पहले जल खोजता है। अब तक चंद्रमा, मंगल, युरोपा और एन्सलेडस पर जल की उपस्थिति के प्रमाण मिल चुके है, जिसमे युरोपा और एन्सलेडस पर जल द्रव रूप मे उपस्थित है, जबकी चंद्रमा पर जल हिम के रूप मे उपस्थित है। मंगल पर जल के हिम रूप मे होने के ठोस प्रमाण है लेकिन द्र्व रूप मे उपस्तिथि के अस्पष्ट प्रमाण है। जीवन की दूसरी आवश्यकता ऐसे वातावरण की उपस्थिति है जिसमे मानव बिना अंतरिक्ष सूट के विचरण कर सके। दुर्भाग्य से सौर मंडल मे पृथ्वी के अतिरिक्त किसी भी अन्य ग्रह पर ऐसा वातावरण नही है। बुध ग्रह पर वातावरण ही नही है, शुक्र का वातावरण अत्यंत घना है, बृहस्पति, शनि , युरेनस , नेपच्युन पर वातावरण है लेकिन ठोस धरातल नही है। चंद्रमाओ मे युरोपा और एन्सलेडस पर भी वातावरण नही है। शेष रह जाता है मंगल जिस पर वातावरण है लेकिन विरल है, आक्सीजन की उपस्थिति है लेकिन कार्बन डाय आक्साइड जानलेवा है, इसके अतिरिक्त चुंबकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति के कारण घातक रूप से सौर विकिरण की उपस्थिति है। इसका अर्थ यही है कि पृथ्वी से बाहर सौर मंडल मे जीवन आसान नही है।

आपने पिछले कुछ वर्षो मे अखबारो मे पढ़ा होगा, टीवी पर देखा होगा कि मंगल ग्रह पर बसने के लिये कुछ उम्मीदवारो का चयन किया गया है और वे मंगल ग्रह पर बसने के उद्देश्य से एकतरफ़ा यात्रा के लिये निकट भविष्य मे रवाना होने वाले है। तो वे यात्री मंगल ग्रह पर जीवन कैसे गुजारेंगे ?

इस चुनौति से निपटने के लिये वैज्ञानिको ने दो उपाय सोच रखे है। एक उपाय है मंगल ग्रह कांच के बड़े बड़े गोल गुंबदो का निर्माण, जिसके अंदर एक ऐसा वातावरण बनाया जाये जिसमे मानव बिना अंतरिक्ष सूट के पृथ्वी के जैसे जीवन बीता सके। इसके लिये इस गुंबद के अंदर पृथ्वी के जैसे वायुमंडलीय दबाव, गैसो का मिश्रण का निर्माण करना होगा, इस वातावरण मे 20% आक्सीजन, 78% नाईट्रोजन , 0.04% कार्बन डायाआक्साईड , अल्प मात्रा मे जल नमी तथा शेष अन्य गैसे होंगी। इस गुंबद मे जल स्रोत और आवासीय इमारतो का निर्माण होगा। कृषि तथा अन्य खाद्य सामग्री का उत्पादन की सुविधा होगी। लेकिन इस तरह के बड़े पैमाने के निर्माण की व्यवस्था करनी कठीन होगी और उसमे समय लगेगा। तब तक मंगल पर आरंभीक मानव बस्तिया कालोनी छोटे सीलेंडर नुमा संरचनाओ के रूप मे ही होंगी, जिसमे अधिकतम कुछ लोग ही रह पायेंगे, एक सिलेंडर से दूसरे सिलेंडर मे जाने के लिये उन्हे अंतरिक्ष सूट पहनने होंगे।

मंगल या किसी अन्य ग्रह पर बसने का दूसरा उपाय टेराफ़ार्मिंग है। इस उपाय मे किसी ग्रह को संपूर्ण रूप से ट्रासफ़ोर्म किया जायेगा और उसे कृत्रिम रूप से पृथ्वी के जैसे बनाया जायेगा। अर्थात उस ग्रह पर पृथ्वी के जैसे वायुमंडल का निर्माण, चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण, सागरो , झीलो, नदीयो और जंगलो का निर्माण किया जायेगा, साथ ही पृथ्वी के जैसे मौसम बनाना होगा, जिसमे बरसात, बर्फ़बारी, ग्रीष्म , शीत का समावेश होगा। लेकिन यह एक बहुत दूर की सोच है और अभी हमारा विज्ञान उस स्तर तक नही पहुंचा है लेकिन शायद अगली एक सदी मे यह संभव होगा।

गोल्डीलाक क्षेत्र :जीवन पनपने के लिये सर्वोत्तम क्षेत्र

गोल्डीलाक जोन
गोल्डीलाक जोन

हर तारे के पास एक ऐसा क्षेत्र होता है जहाँ पर द्रव जल पाया जा सकता है जिसे गोल्डीलाक जोन कहते है। इस क्षेत्र मे तारे से प्राप्त ऊर्जा इतनी होती है कि जल द्रव अवस्था मे रह सकता है।

तारों के वर्गीकरण के अनुसार गोल्डीलाक जोन
तारों के वर्गीकरण के अनुसार गोल्डीलाक जोन

लेकिन टीकाउ जीवन के लिये उस ग्रह तक आनेवाली ऊर्जा के अतिरिक्त और भी बहुत से महत्वपूर्ण कारक होते है।

किसी जीवन योग्य ग्रह के लिये आवश्यक होता है कि वह अपने तारे से प्राप्त ऊर्जा का किस तरह से प्रयोग करता है। तारे से प्राप्त कुछ ऊर्जा का अवशोषण होना चाहिये कि जिससे उस तारे पर एक विशिष्ट तापमान बनाये रखा जा सके लेकिन आयोनाइजींग विकिरण जीवन के लिये खतरनाक हो सकता है।

किसी भी जीवन की संभावना वाले ग्रह के पास सतह तक अधिक तीव्रता वाले आयोनाइजींग विकिरण के पहुंचने से बचाव की व्यवस्था होनी चाहिये, जबकी उष्मा और ऊर्जा के रूप मे कम ऊर्जा वाले आयोनाइजींग विकिरण को पहुचने देना चाहिये।

 

ग्रह का द्रव्यमान

केप्लर 90 और सौर मंडल के ग्रहों के आकार की तुलना
केप्लर 90 और सौर मंडल के ग्रहों के आकार की तुलना

जीवन के लिये ग्रह के आसपास एक वायुमंडल होना चाहिये जो उष्मा को ग्रहण कर के रख सके तथा हानिकारक विकिरण का परावर्तन करे। सभी चट्टानी ग्रह इस आकार के नही होते कि वे वायुमंडल के निर्माण योग्य गुरुत्वाकर्षण उत्पन्न कर सके।
जबकि कुछ ग्रह इतने विशाल होते है कि उनपर अत्याधिक वायुमंडलीय दबाव से जीवन कुचल जायेगा।
ग्रह का आकार और उस पर उपस्थित वायुमंडल का दबाव ही अकेला महत्वपूर्ण कारक नही है।

वायुमंडल और ग्रीनहाउस प्रभाव

पृथ्वी जैसे ग्रह की सतह पर कम ऊर्जा वाला विकिरण ही पहुंच पाता है।
वायुमंडल मे उपस्तिथ गैसे तथा कण आने वाले विकिरण से एक जटिल तरह से प्रतिक्रिया करती है।
हम वातावरण मे CO2 तथा उसके जैसी ग्रीनहाउस गैसे उत्सर्जन करते है, जोकि वातावरण मे विकिरण को उष्मा को सोख कर रखती है।

वातावरण को परिवर्तित करना कठीन है लेकिन हम जानते है कि यह संभव है।

चुंबकीय क्षेत्र

पृथ्वी का शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के वातावरण को सूर्य के हानिकारक आयोनाइजींग विकिरण से बचाता है।

चुंबकीय क्षेत्र द्वारा सौर वायु से बचाव
चुंबकीय क्षेत्र द्वारा सौर वायु से बचाव

पृथ्वी का पिघला लोहे का केंद्र समस्त सौर मंडल मे सबसे शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। यह हमे सौर वायु तथा ब्रह्माण्डीय विकिरण से बचाता है, जिससे ना केवल जीवन की रक्षा होती है साथ ही वायुमंडल के क्षरण से भी बचाव होता है।

नासा ने इसवर्ष एक प्रोजेक्ट का प्रस्ताव किया है जिसमे मंगल पर कृत्रिम रूप से चुंबकिय क्षेत्र का पुन:निर्माण किया जायेगा और वह वातावरण के पुन: निर्माण को सहायता करेगा।

मंगल के सामने एक चुंबकीय क्षेत्र के निर्माण से उसके वायुमंडल के सौर वायु और ब्रह्मांडीय विकिरण से क्षरण मे रोक लगेगी।

लेकिन इससे मंगल के CO2 से भरे वातावरण पर क्या प्रभाव होगा स्पष्ट नही है। इससे सतत क्षरित होते हुये वातावरण पर रोक लगेगी लेकिन इसके बावजूद जीवन संभव नही होगा। अब हम मंगल के वातावरण के घटको के बदलाव पर कार्य कर उसे जीवन योग्य बनाने की ओर कार्य कर सकते है।

किसी ग्रह को जीवन योग्य बनाना एक लंबे अरसे तक नही होगा लेकिन हमारे पास तकनीक है, यह संभव है और अंतरिक्ष मे मानव के आगे बढने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

ग्राफिक्स स्रोत : https://futurism.com

मूल ग्राफिक्स कॉपी राइट : https://futurism.com

लेख सामग्री : विज्ञान विश्व टीम

 

 

 

 

 

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