सर आइजैक न्यूटन : आधुनिक भौतिकी की नींव


isaacnewton-16894 जनवरी 1643  (ग्रेगोरियन कैलेंडर से ,जुलियन कैलेंडर से 25 दिसंबर 1642 ) को धरती पर एक ऐसे अद्भुत व्यक्ति का जन्म हुआ जिसने विज्ञान की परिभाषा को एक नया रूप दिया। विज्ञान के ऐसे तथ्य प्रस्तुत किये जो आज तक चल रहे हैं। हम बात कर रहे हैं :- आइज़क न्यूटन (Isaac Newton) की।

विश्व को गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत देने वाले सर आईजैक न्युटन शुरुआती दिनों में ठीक प्रकार से बोल भी नहीं पाते थे। वे स्वभाव से काफी गुस्सैल थे और लोगों से कम ही वास्ता रखते थे। उनके इसी व्यवहार के कारण उनके मित्र भी न के बराबर थे। न्यूटन अपने विचार भी सही ढंग से व्यक्त नहीं कर पाते थे ,वह अपने उपलब्धियों या खोज को बताने में संकोच करते कि कहीं वह हंसी के पात्र न बन जाएं। शुरुआती दिनों में न्यूटन कई प्रकार के प्रयोग करते रहते थे। न्यूटन के व्यवहार के कारण उन्हें सनकी और पागल समझा गया पर लोगों की परवाह किये बगैर वे अपने शोध में लगे रहे और अंततः एक महान वैज्ञानिक बनकर उभरे।

संक्षिप्त जीवन परिचय

उनके पिता एक समृद्ध किसान थे, न्यूटन का जन्म उनके पिता की मृत्यु के तीन माह बाद हुआ था। उनके पिता का नाम भी आइज़क न्यूटन था। न्यूटन निश्चित समय से पहले पैदा होने वाला(Premature) वह एक छोटा बालक था; उनकी माता हन्ना ऐस्क्फ़(Hannah Ayscough) के अनुसार वह इतना छोटा था कि एक चौथाई गैलन जैसे छोटे से मग में समा सकता था।

न्यूटन की मां ने रेवरंड बर्नाबुस स्मिथ (Reverend Barnabas Smith) के साथ दूसरी शादी कर ली और उन्हीं के साथ रहने चली गयीं। अपने 3 वर्षीय पुत्र को अपनी नानी मर्गेरी ऐस्क्फ़(Margery Ayscough) के पास देखभाल के लिए छोड दिया। आइज़क न्यूटन अपनी माँ के दुबारा शादी करने के कारण ना अपने पिता को पसंद करता थे न ही अपनी माँ को।

किंग्स स्कूल, ग्रान्थम(King’s School, Grantham)में उन्होंने बारह वर्ष से सत्रह वर्ष की आयु तक शिक्षा प्राप्त की। बचपन में वह पढ़ाई में कुछ खास अच्छे नहीं थे। एक बार स्कूल में एक लड़के ने न्यूटन को पीटा मगर न्यूटन जब गुस्से में आ गए तो उस लड़के को भाग के अपनी जान बचानी पड़ी। फिर 1659 में जब उन्हें स्कूल से निकाला गया तो वे अपनी माँ के पास आ गए। जो दूसरी बार विधवा हो चुकी थी।

उनकी माँ ने जीविका चलाने के लिए न्यूटन को खेती करने के लिए कहा। वह खेती से नफरत करते थे। इसलिए उन्होंने खेती नहीं की। किंग्स स्कूल के मास्टर हेनरी स्टोक्स (Henry Stokes) ने आइज़क न्यूटन में एक प्रतिभा देखते हुए उनकी मां से उन्हें फिर से स्कूल भेजने का सुझाव दिया। जिससे वे अपनी शिक्षा को पूरा कर सकें। वहां स्कूल में एक लड़का उन्हें बार-बार नीचा दिखता था और मंदबुद्धि कहकर चिढ़ाता था। उससे बदला लेने की इच्छा से प्रेरित होने की वजह से वो पढ़ने लगे और अपनी प्रतिभा से स्कूल के सबसे मेधावी छात्र बनकर उभरे।

अपने अंकल रेव विलियम एस्क्फ (Rev William Ayscough)के कहने पर जून 1661 में उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज(Trinity College, Cambridge) में अध्ययन के लिए प्रवेश लिया। पढ़ाई की फीस भरने और खाना खाने के लिए आइज़क न्यूटन कॉलेज में एक कर्मचारी की तरह काम भी करते थे। उस समय कॉलेज की शिक्षाएं अरस्तु पर आधारित थीं। लेकिन न्यूटन अधिक आधुनिक दार्शनिकों(modern philosophers) के विचारों को पढ़ना चाहते थे।

1664 में इनकी प्रतिभा के कारण एक स्कॉलरशिप की व्यवस्था कॉलेज की तरफ से हो गयी, जिसकी मदद से न्यूटन अब आगे की पढ़ाई कर सकते थे। उस समय विज्ञान बहुत आगे नहीं था। फिर यहीं रहकर न्यूटन ने प्रसिद्ध “केप्लर के नियम” पढ़े।

1665 में उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय(Binomial Theorem) की खोज की और एक गणितीय सिद्धान्त(Mathematical concept) विकसित करना शुरू किया जो बाद में अत्यल्प कलन(Calculus) के नाम से जाना गया। न्यूटन ने इसकी जानकारी काफी समय बाद दी। इसक कारण उन्होंने ये बताया की उन्हें डर था कि न्यूटन ने कहा कि वे अपने अत्यल्प कलन(Calculus) को प्रकाशित कर कहीं उपहास के पात्र न बन जाएँ।

न्यूटन इस तथ्य पर शोध कर रहे थे कि धरती सूर्य की परिक्रमा वृत्ताकार नहीं बल्कि दिर्घ वृत्ताकार परिक्रमा करती है। उनकी ऐसी और भी कई बातों पर खोज चल ही रही थी कि अचानक अगस्त 1665 में जैसे ही न्यूटन ने अपनी डिग्री प्राप्त की; उसके ठीक बाद प्लेग की भीषण महामारी पूरे शहर में फ़ैल गयी। बीमारी के भीषण रूप धारण कर लेने पर बचाव के रूप में विश्वविद्यालय को बंद कर दिया गया।

घर जाने से पहले वे एक बाग मे बैठे सोच रहे थे कि अब क्या किया जाये। अचानक उन्होने सोचा कि सारी चीजें नीचे क्यों गिरती है? फिर न्यूटन ने इस प्रश्न का उत्तर खुद ही खोजने की ठान ली। बहुत सालों तक न्यूटन इस पर शोध करते रहे और सबको ये बताया कि पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण बल(Gravity) नाम की एक शक्ति है।

न्युटन और लिबनिज विवाद

अधिकांश आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि न्यूटन और लिबनीज ने अत्यल्प कलन(Calculus) का विकास अपने अपने अलग अलग भिन्न संकेतो का उपयोग करते हुए स्वतंत्र रूप से किया।

न्यूटन की पांडुलिपियों के अनुसार, न्यूटन ने अपनी इस विधि को लिबनीज से कई साल पहले ही विकसित कर दिया था, लेकिन उन्होंने लगभग 1693 तक अपने किसी भी कार्य को प्रकाशित नहीं किया और 1704 तक अपने कार्य का पूरा लेखा जोखा नहीं दिया। इस बीच, लिबनीज ने 1684 में अपनी विधियों का पूरा लेखा जोखा प्रकाशित करना शुरू कर दिया। इसके अलावा, लिबनीज के संकेतों तथा “अवकलन की विधियों” को यूरोप महाद्वीप पर सार्वत्रिक रूप से अपनाया गया और 1820 के बाद, ब्रिटिश साम्राज्य में भी इसे अपनाया गया। जबकि लिबनीज की पुस्तिकाएं प्रारंभिक अवस्थाओं से परिपक्वता तक विचारों के आधुनिकीकरण को दर्शाती हैं, न्यूटन के ज्ञात नोट्स में केवल अंतिम परिणाम ही है।

न्यूटन ने कहा कि वे अपने कलन(Calculus) को प्रकाशित नहीं करना चाहते थे क्योंकि उन्हें डर था वे उपहास का पात्र बन जायेंगे।

न्यूटन का स्विस गणितज्ञ निकोलस फतियो डे दुइलिअर के साथ बहुत करीबी रिश्ता था, जो प्रारम्भ से ही न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से बहुत प्रभावित थे। 1691 में दुइलिअर ने न्यूटन के “फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका” के एक नए संस्करण को तैयार करने की योजना बनायी, लेकिन इसे कभी पूरा नहीं कर पाए।बहरहाल, इन दोनों पुरुषों के बीच सम्बन्ध 1693 में बदल गया। इस समय, दुइलिअर ने भी लिबनीज के साथ कई पत्रों का आदान प्रदान किया था।

1699 की शुरुआत में, रॉयल सोसाइटी (जिसके न्यूटन भी एक सदस्य थे) के अन्य सदस्यों ने लिबनीज पर साहित्यिक चोरी के आरोप लगाये और यह विवाद 1711 में पूर्ण रूप से सामने आया। न्यूटन की रॉयल सोसाइटी ने एक अध्ययन द्वारा घोषणा की कि न्यूटन ही सच्चे आविष्कारक थे और लिबनीज ने धोखाधड़ी की थी। यह अध्ययन संदेह के घेरे में आ गया, जब बाद पाया गया कि न्यूटन ने खुद लिबनीज पर अध्ययन के निष्कर्ष की टिप्पणी लिखी।

इस प्रकार न्यूटन बनाम लिबनीज  कटू विवाद शुरू हो गया, जो बाद में न्यूटन और लिबनीज दोनों के जीवन में 1716 में लिबनीज की मृत्यु तक जारी रहा।

न्यूटन को आम तौर पर सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय(The Binomial Theorem) का श्रेय दिया जाता है, जो किसी भी घात के लिए मान्य है। उन्होंने न्यूटन की सर्वसमिकाओं, न्यूटन की विधि, वर्गीकृत घन समतल वक्र (दो चरों में तीन के बहुआयामी पद) की खोज की, परिमित अंतरों के सिद्धांत में महत्वपूर्ण योगदान दिया, वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भिन्नात्मक सूचकांक का प्रयोग किया और डायोफेनताइन समीकरणों के हल को व्युत्पन्न करने के लिए निर्देशांक ज्यामिति (Coordinate Geometry)का उपयोग किया।

उन्होंने लघुगणक(logritham) के द्वारा हरात्मक श्रेणि(Harmonic Series) के आंशिक योग(paritial sum) का सन्निकटन किया, (यूलर के समेशन सूत्र का एक पूर्वगामी) और वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आत्मविश्वास के साथ घात श्रृंखला का प्रयोग किया और घात श्रृंखला का विलोम किया।

उन्हें 1669 में गणित का ल्युकेसियन प्रोफेसर चुना गया। उन दिनों, कैंब्रिज या ऑक्सफ़ोर्ड के किसी भी सदस्य को एक निर्दिष्ट अंग्रेजी पुजारी(Priest) होना आवश्यक था। हालाँकि, ल्युकेसियन प्रोफेसर के लिए जरुरी था कि वह चर्च में सक्रिय न हो।(ताकि वह विज्ञान के लिए और अधिक समय दे सके)| न्यूटन ने तर्क दिया कि समन्वय की आवश्यकता से उन्हें मुक्त रखना चाहिए और सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने इस तर्क को स्वीकार किया। [इसके लिये सम्राट चार्ल्स द्वितीयअनुमति अनिवार्य थी। ]इस प्रकार से न्यूटन के धार्मिक विचारों और अंग्रेजी रूढ़ीवादियों के बीच संघर्ष टल गया।

प्रकाशीकी(Optics)

न्यूटन के दूसरे परावर्ती दूरदर्शी की एक प्रतिकृति जो उन्होंने 1672 में रॉयल सोसाइटी को भेंट किया।
न्यूटन के दूसरे परावर्ती दूरदर्शी की एक प्रतिकृति जो उन्होंने 1672 में रॉयल सोसाइटी को भेंट किया।

1670 से 1672 तक, न्यूटन ने प्रकाशिकी पर व्याख्यान दिया। इस अवधि के दौरान उन्होंने प्रकाश के अपवर्तन(refraction) की खोज की, उन्होंने प्रदर्शित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को रंगों के एक स्पेक्ट्रम में वियोजित कर देता है और एक लेंस और एक दूसरा प्रिज्म बहुवर्णी स्पेक्ट्रम को संयोजित कर के श्वेत प्रकाश का निर्माण करता है।

उन्होंने यह भी दिखाया कि रंगीन प्रकाश को अलग करने और भिन्न वस्तुओं पर चमकाने से रगीन प्रकाश के गुणों में कोई परिवर्तन नहीं आता है। न्यूटन ने वर्णित किया कि चाहे यह परावर्तित हो, या विकिरित हो या संचरित हो, यह समान रंग का बना रहता है।

250px-dispersive_prism_illustrationइस प्रकार से, उन्होंने देखा कि, रंग पहले से रंगीन प्रकाश के साथ वस्तु की अंतर्क्रिया का परिणाम होता है नाकि वस्तुएं खुद रंगों को उत्पन्न करती हैं।यह न्यूटन के रंग सिद्धांत के रूप में जाना जाता है।

इस कार्य से उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि, किसी भी अपवर्ती दूरदर्शी (refracting telescope) का लेंस प्रकाश के रंगों में विसरण(diffusion) या रंगीन विपथन(Diversion) का अनुभव करेगा और इस अवधारणा को सिद्ध करने के लिए उन्होंने अभिदृश्यक(object glass) के रूप में एक दर्पण का उपयोग करते हुए, एक दूरदर्शी का निर्माण किया, ताकि इस समस्या को हल किया जा सके। इस डिजाइन के निर्माण के अनुसार, पहले ज्ञात क्रियात्मक परावर्ती दूरदर्शी(reflecting telescope) को आज एक न्यूटोनियन दूरबीन के रूप में जाना जाता है। इस दूरदर्शी क निर्माण के लिये न्यूटन के योगदान मे तकनीक को आकार देना तथा एक उपयुक्त दर्पण के लिये आवश्यक पदार्थ की समस्या को हल करना शामिल है। न्यूटन ने अत्यधिक परावर्तक दर्शक धातु के मिश्रण से  दूरदर्शी के दर्पण को आधार दिया। उन्होने दूरदर्शी की प्रकाशिकी की गुणवत्ता की जाँच के लिए न्यूटन के छल्लों (Newton Rings)का प्रयोग किया गया।

फरवरी 1669 तक वे रंगीन विपथन(Diversion) के बिना एक उपकरण का उत्पादन करने में सक्षम हो गए। 1671 में रॉयल सोसाइटी ने उन्हें उनके परावर्ती दूरदर्शी को प्रर्दशित करने के लिए कहा। उन लोगों की रूचि ने उन्हें अपनी टिप्पणियों “ओन कलर” के प्रकाशन हेतु प्रोत्साहित किया, जिसे बाद में उन्होंने अपनी “ऑप्टिक्स” के रूप में विस्तृत कर दिया।

न्यूटन और राबर्ट हुक

जब रॉबर्ट हुक ने न्युटन के कुछ विचारों की आलोचना की, न्यूटन इतना नाराज हुए कि वे सार्वजनिक बहस से बाहर हो गए। हुक की मृत्यु तक दोनों दुश्मन बने रहे।

न्यूटन का प्रकाश कणिका सिद्धांत(corpuscles theory)

न्यूटन ने तर्क दिया कि प्रकाश कणों या अतिसूक्षम कणों ( (corpuscles) से बना है, जो सघन माध्यम की और जाते समय अपवर्तित(refract) हो जाते हैं, लेकिन प्रकाश के विवर्तन(diffraction) को स्पष्ट करने के लिए इसे तरंगों के साथ सम्बंधित करना जरुरी था। बाद में भौतिकविदों ने प्रकाश के विवर्तन के लिए शुद्ध तरंग जैसे स्पष्टीकरण का समर्थन किया। आज की क्वाण्टम यांत्रिकी, फोटोन और तरंग-कण युग्मता के विचार, न्यूटन की प्रकाश के बारे में समझ के साथ बहुत कम समानता रखते हैं।

1675 की उनकी प्रकाश की परिकल्पना में न्यूटन ने कणों के बीच बल के स्थानान्तरण हेतु, ईथर की उपस्थिति को मंजूर किया।

हेनरी मोर के संपर्क में आने से रसायन विद्या में उनकी रुचि पुनर्जीवित हो गयी। उन्होंने ईथर को कणों के बीच आकर्षण और प्रतिकर्षण के वायुरुद्ध विचारों पर आधारित गुप्त बलों से प्रतिस्थापित कर दिया। जॉन मेनार्ड केनेज, जिन्होंने रसायन विद्या पर न्यूटन के कई लेखों को स्वीकार किया, कहते हैं कि

“न्युटन कारण के युग के पहले व्यक्ति नहीं थे: वे जादूगरों में आखिरी नंबर पर थे। Newton was not the first of the age of reason: He was the last of the magicians”

रसायन विद्या में न्यूटन की रूचि उनके विज्ञान में योगदान से अलग नहीं की जा सकती है। (यह उस समय हुआ जब रसायन विद्या और विज्ञान के बीच कोई स्पष्ट भेद नहीं था।)

यदि उन्होंने एक निर्वात में से होकर एक दूरी पर क्रिया के गुप्त विचार पर भरोसा नहीं किया होता तो वे गुरुत्व का अपना सिद्धांत विकसित नहीं कर पाते।

1704 में न्यूटन ने आप्टिक्स को प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने अपने प्रकाश के अतिसूक्ष्म कणों के सिद्धांत की विस्तार से व्याख्या की।उन्होंने प्रकाश को बहुत ही सूक्ष्म कणों से बना हुआ माना, जबकि साधारण द्रव्य बड़े कणों से बना होता है और उन्होंने कहा कि एक प्रकार के रासायनिक रूपांतरण के माध्यम से “सकल निकाय और प्रकाश एक दूसरे में रूपांतरित नहीं हो सकते हैं,और निकाय, प्रकाश के कणों से अपनी गतिविधि के अधिकांश भाग को प्राप्त नहीं कर सकते, जो उनके संगठन में प्रवेश करती है?” न्यूटन ने एक कांच के ग्लोब का प्रयोग करते हुए, एक घर्षण विद्युत स्थैतिक जनरेटर के एक आद्य रूप का निर्माण किया।

न्यूटन का सेब

न्यूटन अक्सर खुद एक कहानी कहते थे कि एक पेड़ से एक गिरते हुए सेब को देख कर वे गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत बनाने के लिए प्रेरित हो पाए।

बाद में व्यंग्य करने के लिए ऐसे कार्टून बनाये गए जिनमें सेब को न्यूटन के सर पर गिरते हुए बताया गया और यह दर्शाया गया कि इसी के प्रभाव ने किसी तरह से न्यूटन को गुरुत्व के बल से परिचित कराया। उनकी पुस्तिकाओं से ज्ञात हुआ कि 1660 के अंतिम समय में न्यूटन का यह विचार था कि स्थलीय गुरुत्व का विस्तार होता है, यह दूरी के वर्ग व्युत्क्रमानुपाती होता है; हालाँकि पूर्ण सिद्धांत को विकसित करने में उन्हें दो दशक का समय लगा। जॉन कनदयुइत, जो रॉयल टकसाल में न्यूटन के सहयोगी थे और न्यूटन की भतीजी के पति भी थे, ने इस घटना का वर्णन किया जब उन्होंने न्यूटन के जीवन के बारे में लिखा:

1666 में वे कैम्ब्रिज से फिर से सेवानिवृत्त हो गए और अपनी मां के पास लिंकनशायर चले गए। जब वे एक बाग़ में घूम रहे थे तब उन्हें एक विचार आया कि गुरुत्व की शक्ति धरती से एक निश्चित दूरी तक सीमित नहीं है, (यह विचार उनके दिमाग में पेड़ से नीचे की और गिरते हुए एक सेब को देख कर आया) लेकिन यह शक्ति उससे कहीं ज्यादा आगे विस्तृत हो सकती है जितना कि पहले आम तौर पर सोचा जाता था। उन्होंने अपने आप से कहा कि क्या ऐसा उतना ऊपर भी होगा जितना ऊपर चाँद है और यदि ऐसा है तो, यह उसकी गति को प्रभावित करेगा और संभवतया उसे उसकी कक्षा में बनाये रखेगा, वे गणना कर रहे थे कि इस प्रभाव की मात्रा कितनी होगी।

प्रश्न गुरुत्व के अस्तित्व का नहीं था बल्कि यह था कि क्या यह बल इतना विस्तृत है कि यह चाँद को अपनी कक्षा में बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है। न्यूटन ने दर्शाया कि यदि बल दूरी के वर्ग व्युत्क्रम में कम होता है तो, चंद्रमा की कक्षीय अवधि की गणना की जा सकती है और सटिक परिणाम प्राप्त हो सकता है। उन्होंने अनुमान लगाया कि यही बल अन्य कक्षीय गति के लिए जिम्मेदार है और इसीलिए इसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नाम दे दिया। जो हर चीज़ को अपनी ओर खींचती है और इसी बल के कारण चन्द्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है और पृथ्वी सूर्य का। आइज़क न्यूटन ने बताया कि ये बल(Force) दूरी बढ़ने के साथ साथ घटता जाता है। गुरुत्वाकर्षण बल को पृथ्वी के केंद्र में माना जाता है, इसीलिए पृथ्वी हर चीज़ को सीधा अपनी ओर खींचती है। पृथ्वी किसी वस्तु को कितनी शक्ति से खींचेगी इसका मान(Value) उस वस्तु के द्रव्यमान(Mass) पर निर्भर करता है।

एक समकालीन लेखक, विलियम स्तुकेले, सर आइजैक न्यूटन की ज़िंदगी को अपने स्मरण में रिकोर्ड करते हैं, वे 15 अप्रैल 1726 को केनसिंगटन में न्यूटन के साथ हुई बातचीत को याद करते हैं, जब न्यूटन ने जिक्र किया कि “उनके दिमाग में गुरुत्व का विचार पहले कब आया।

जब वह ध्यान की मुद्रा में बैठे थे उसी समय एक सेब के गिरने के कारण ऐसा हुआ। क्यों यह सेब हमेशा भूमि के सापेक्ष लम्बवत में ही क्यों गिरता है? ऐसा उन्होंने अपने आप में सोचा। यह बगल में या ऊपर की ओर क्यों नहीं जाता है, बल्कि हमेशा पृथ्वी के केंद्र की ओर ही गिरता है।”

इसी प्रकार के शब्दों में, वोल्टेर महाकाव्य कविता पर निबंध (1727) में लिखा,

“सर आइजैक न्यूटन का अपने बागानों में घूम रहे थे, पेड़ से गिरते हुए एक सेब को देख कर, उन्होंने गुरुत्वाकर्षण की प्रणाली के बारे में पहली बार सोचा।

न्यूटन के गति नियम

न्यूटन के गति नियम तीन भौतिक नियम हैं जो चिरसम्मत यांत्रिकी(Classical Mechanics) के आधार हैं। ये नियम किसी वस्तु पर लगने वाले बल और उससे उत्पन्न उस वस्तु की गति के बीच सम्बन्ध बताते हैं। इन्हें तीन सदियों में अनेक प्रकार से व्यक्त किया गया है। न्यूटन के गति के तीनों नियम, पारम्परिक रूप से, संक्षेप में निम्नलिखित हैं –

  1. प्रथम नियम: प्रत्येक पिंड तब तक अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है।
  2. द्वितीय नियम: किसी भी पिंड की संवेग परिवर्तन की दर लगाये गये बल के समानुपाती होती है और उसकी (संवेग परिवर्तन की) दिशा वही होती है जो बल की होती है।
  3. तृतीय नियम: प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।

 

सबसे पहले न्यूटन ने इन्हे अपने ग्रन्थ फिलासफी नेचुरालिस प्रिंसिपिआ मैथेमेटिका (सन 1687 मे संकलित किया था। न्यूटन ने अनेक स्थानों पर भौतिक वस्तुओं की गति से सम्बन्धित समस्याओं की व्याख्या में इनका प्रयोग किया था।

अपने ग्रन्थ के तृतीय भाग में न्यूटन ने दर्शाया कि गति के ये तीनों नियम और उनके सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम सम्मिलित रूप से केप्लर के आकाशीय पिण्डों की गति से सम्बन्धित नियम की व्याख्या करने में समर्थ हैं।

इसके आलावा आइज़क न्यूटन ने “भार”(Weight) और “द्रव्यमान”(Mass) के अंतर को भी समझाया। साथ ही साथ प्रकाश के क्षेत्र में काम करते हुए न्यूटन ने बताया कि सफ़ेद प्रकाश दरअसल कई रंगों के प्रकाश का मिश्रण होता है।

मृत्यु

ये माना जाता है कि न्यूटन ने आजीवन विवाह नहीं किया था। 20 मार्च 1727 को लन्दन शहर में न्यूटन की सोते समय मृत्यु हो गयी थी। उन्हें वेस्टमिंस्टर एब्बे में दफनाया गया था। न्यूटन, जिनके कोई बच्चे नहीं थे, उनके अंतिम वर्षों में उनके रिश्तदारों ने उनकी अधिकांश संपत्ति पर अधिकार कर लिया और निर्वसीयत ही उनकी मृत्यु हो गई।

न्यूटन अपने वैज्ञानिक कामों में इतने रम चुके थे की उनकी मृत्यु के बाद, उनके शरीर में भारी मात्रा में पारा पाया जाना, जो शायद उनके रासायनिक व्यवसाय का परिणाम था। पारे की विषाक्तता न्यूटन के अंतिम जीवन में उनके सनकीपन को स्पष्ट करती है।

फ्रेंच गणितज्ञ जोसेफ लुईस लाग्रेंज अक्सर कहते थे कि न्यूटन महानतम प्रतिभाशाली था और एक बार उन्होंने कहा कि वह

“सबसे ज्यादा भाग्यशाली भी था क्योंकि हम दुनिया की प्रणाली को एक से ज्यादा बार स्थापित नहीं कर सकते।”

अंग्रेजी कवि अलेक्जेंडर पोप ने न्यूटन की उपलब्धियों के द्वारा प्रभावित होकर प्रसिद्ध स्मृति-लेख लिखा:

Nature and nature’s laws lay hid in night;
God said “Let Newton be” and all was light।

न्यूटन अपनी उपलब्धियों का बताने में खुद संकोच करते थे, फरवरी 1676 में उन्होंने रॉबर्ट हुक को एक पत्र में लिखा:

If I have seen further it is by standing on ye shoulders of Giants

हालांकि आमतौर पर इतिहासकारों का मानना है कि उपरोक्त पंक्तियां, नम्रता के साथ कहे गए एक कथन के अलावा या बजाय , हुक पर एक हमला थीं (जो कम ऊंचाई का और कुबडा था)। उस समय प्रकाशिकीय खोजों को लेकर दोनों के बीच एक विवाद चल रहा था। बाद की व्याख्या उसकी खोजों पर कई अन्य विवादों के साथ भी उपयुक्त है, जैसा कि यह प्रश्न कि कलन(Calculus) की खोज किसने की, जैसा कि ऊपर बताया गया है।

बाद में एक इतिहास में, न्यूटन ने लिखा:

मैं नहीं जानता कि में दुनिया को किस रूप में दिखाई दूंगा लेकिन अपने आप के लिए में एक ऐसा लड़का हूँ जो समुद्र के किनारे पर खेल रहा है और अपने ध्यान को अब और तब में लगा रहा है, एक अधिक चिकना पत्थर या एक अधिक सुन्दर खोल ढूँढने की कोशिश कर रहा है, सच्चाई का यह इतना बड़ा समुद्र मेरे सामने अब तक खोजा नहीं गया है।

स्मारक

वेस्ट्मिनिस्टर एबे मे न्यूटन की कब्र
वेस्ट्मिनिस्टर एबे मे न्यूटन की कब्र

न्यूटन का स्मारक (1731) वेस्टमिंस्टर एब्बे में देखा जा सकता है।

22 विचार “सर आइजैक न्यूटन : आधुनिक भौतिकी की नींव&rdquo पर;

  1. Sir ji eske bare me kuchh bataye mere what’s app pe aya hai..

    Planet nibiru प्लेनेट निबिरु मना यह जाता है की निबिरु प्लेनेट हमसे 7 असमान दूर है वह हमारे सौर मंडल में ही स्तिथ है इसकी खोज 1856 में जर्मनी वेज्ञानिकी william haison ने की थी। पहले इसे हमारे सौर मंडल का गृह ही माना जाता था लेकिन वाद में इसे गृह नही माना गया Dr. Jakiyar shin ने इसपे 30 साल खोज की तू उन्होंने पाया की आज से करोड़ो साल पहले पृथ्वी और निबिरु आपस में टकरये थे जिसमे पृथ्वी का एक हिस्सा टूट गया जो आज हमरा चाँद बन गया वही निबिरु जस का तस रहा लेकिन निबिरु में जीवन पनपने लगा। वह की जीवन शैली बहुत उनत हो गई। वो इतने उनत थे की वो एक गृह से दूसरे गृह तक का सफ़र करना जानते थे जो तकनीक उनके पास थी शयद हमे वो तकनीक हासिल करने में अभी और सदियां लगे लेकिन उनका गृह radiation से जलने लगा दावा किया गया है इसे बचने के लिए उनको सोने की जरूरत थी जो की हमारी धरती पर भरी मात्रा में उपलब्ध था। जो यह अपने कारण से आये थे वो सोना लेने के लिए बार बार नही आ सकते थे तो उन्हें यही के बाताबरण में रह सके तो वो इतने उनत थे। उन्होंने gentic bilogical इंसान पैदा किया इंसान के जीन इस तरह से बनया की हम इनको देवता मने और सोने की लालसा हमे रहे ताकि हम उसे खोजते रहे लेकिन निबिरु में जीवन खत्म हो गया आज निबिरु मन जाता है एक गरम ग्रह जैसा है लेकिन निबिरु हर 3600 साल बाद पृथ्वी के करीब आता है लेकिन वो हर बार पृथ्वी के बहुत नजदीक आ जाता है और Nasa इस बात की पुस्टि कर चूका है की भविस्य में निबिरु हमसे टकरयेगा जिसे पृथ्वी का अंत हो सकता है। भले ही जो भी इस खोज के बाद U.k or russia media में इसे वादे रोमांच तरीके से दिखया जा रहा है।

    पसंद करें

    1. जैसे हम पृथ्वी से चंद्रमा देखते है वैसे ही पृथ्वी भी चंद्रमा से दिखाई देती है। अंतर आकार और रंग का है। धरती चंद्रमा से निले रंग के गोले के रूप मे दिखाई देती है।

      पसंद करें

    1. इतिहास हमें पहले की गयी गलतियों को दोहराने से बचाता है, साथ ही किसी पहले से ज्ञात जानाकारी को दोबारा खोजने की मेहनत से बचाता है।

      पसंद करें

Leave a reply to आशीष श्रीवास्तव जवाब रद्द करें