
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से 340 प्रकाशवर्ष दूर और बृहस्पति ग्रह के द्रव्यमान से चार गुना वजनी एक नए ग्रह की खोज की है जो तीन तारों की परिक्रमा लगाता है और मौसमों के अनुरूप हर दिन तीन बार सूर्योदय और सूर्यास्त का दीदार करता है। तारामंडल सेंटोरस में स्थित और पृथ्वी से करीब 340 प्रकाशवर्ष दूर स्थित HD 131399Ab ग्रह करीब 1.6 करोड़ साल पुराना है। (पृथ्वी की आयु 4.5 अरब वर्ष है।)
तीन तारों की परिक्रमा करता हुआ ग्रह : हमारे पास इस ग्रह के चित्र भी है।
खगोल वैज्ञानिको ने एक विचित्र ग्रह खोज निकाला है जिसका नाम HD 131399Ab है, यह ग्रह एक ऐसे तारे की परिक्रमा करता है जिसकी परिक्रमा एक युग्म मे बंधे दो अन्य तारे करते है।
हाँ यह चित्र इस ग्रह के वास्तविक चित्र है। A से D तक के फ़्रेम अवरक्त प्रकाश की भिन्न तरंगदैधर्य मे इस ग्रह को दर्शा रहे है जिसे b से दिखाया गया है। प्राथमिक तारे के स्थान को क्रासहेयर + से ढंका गया है।(सौर मंडल से बाहर के ग्रहो के चित्र को लेने के लिये तारे के प्रकाश को विभिन्न निरीक्षण तथा चित्र विश्लेषण तकनीक से हटा दिया जाता है। फ़्रेम E प्राथमिक तारे(A), ग्रह(b) तथा युग्म तारों(B,C) को दिखाया गया है।

इस संपुर्ण तारा प्रणाली को HD 131399 कहा जाता है और यह एक वर्गीकृत त्रिपक्ष(hierarchical triple) प्रणाली है, जिसमे दो तारे एक दूसरे की परिक्रमा करते हुये एक तीसरे मुख्य तारे की परिक्रमा कर रहे है। इसमे सबसे अधिक द्रव्यमान वाला मुख्य तारा HD 131399A है जो हमारे सूर्य से 1.8 गुणा द्रव्यमान वाला और अधिक तापमान वाला है। इसकी परिक्रमा करते युग्म तारों मे से एक सूर्य के जैसा है और दूसरा अपेक्षाकृत शीतल और कम द्रव्यमान(0.6 सौर द्रव्यमान) वाला है। यह युग्म मुख्य तारे की 40-60 अरब किमी दूरी से परिक्रमा करता है जोकि सूर्य से प्लूटो से दूरी का 10 गुणा है। इससे आप दूरियों की कल्पना कर सकते है।
यह तारा प्रणाली पृथ्वी से 300 प्रकाशवर्ष दूर एक खुले तारो के समूह का भाग है जिसे हम असोसिएसन कहते है। इन तारो के अध्ययन से हम जानते है कि ये तारे उम्र मे काफ़ी युवा है। इनकी आयु केवल 1.6 करोड़ वर्ष है। यह काफ़ी महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रथम निर्मित ग्रह अत्याधिक गर्म होते है और उन्हे शीतल होने मे लंबा समय तो लगता है और ग्रह जितने अधिक द्रव्यमान का होगा उसे शीतल होने मे उतना अधिक समय लगेगा।
किसी उष्ण ग्रह से उत्सर्जित प्रकाश उसके तापमान, द्रव्यमान और आयु पर निर्भर करता है। हम इस ग्रह की आयु जानते है, जिससे इस ग्रह से उत्सर्जित प्रकाश के अध्य्यन से हम उसका द्रव्यमान ज्ञात कर सकते है। खगोल वैज्ञानिको ने इस ग्रह का द्रव्यमान बृहस्पति से चार गुणा अधिक पाया है, जिसका अर्थ है कि यह ग्रह विशाल है लेकिन इसका द्रव्यमान ग्रहों की सीमा मे ही है। (यदि यह ग्रह अधिक उम्र का भी होता जिससे इसका द्रव्यमान अधिक होना चाहीये था तब भी यह एक ग्रह ही होता, इसकी किसी कम द्रव्यमान वाले तारे या भूरे वामन तारे होने की संभावना न्यूनतम है।)

हमारे सौर मंडल के चित्र को यदि HD 131399 प्रणाली पर रखा जाये तो इस चित्र के जैसा दिखेगा। यह ग्रह पाथमिक तारे की परिक्रमा सूर्य की परिक्रमा कर रहे प्लूटो से अधिक दूरी से करता है। ध्यान दिजिये कि इस चित्र मे रंग स्पष्टता के लिये डाले गये है और वे वास्तविक नही है।
तो हम कैसे जानते है कि यह ग्रह मुख्य तारे की परिक्रमा कर रहा है, किसी अन्य पृष्ठभूमी वाले पिंड की परिक्रमा नही कर रहा है ?
इसके लिये खगोल वैज्ञानिको ने इस प्रणाली के पिछले कई वर्षो के चित्रो के अध्ययन से इसके पिंडो की गति का अध्ययन किया। आकाश मे सभी तारे आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा करते है। लेकिन इन तारो की गति का सीधा सीधा मापन इन तारो की अत्याधिक दूरी के कारण कठीन होता है। लेकिन कुछ तारे हमारे समीप है और उन तारो की गति का मापन किया जा सकता है। (जब आप किसी टेन या बस से यात्रा करते है तब आपके समीप के पेड़ तेजी से गति करते महसूस होते है लेकिन दूरस्थ पहाड़ धीमे धीमे गति करते महसूस होते है।
इन प्रणाली के तारों और ग्रह की गति मे मापन से खगोल वैज्ञानिको को पता चला कि यह ग्रह अपने साथ के तारो के साथ आकाश मे गति कर रहा है जो यह प्रमाणित करने के लिये काफ़ी था कि यह ग्रह इसी प्रणाली का एक सदस्य है। लेकिन इस ग्रह की गति तारो की गति के समान नही है क्योंकि यह ग्रह इस प्रणाली के एक तारे की परिक्रमा कर रहा है जिससे ग्रह की गति अंतरिक्ष मे इस प्रणाली की गति से अधिक मापी गयी।
इस ग्रह की कक्षा का आकार और दूरी का निर्धारण कठीन है, लेकिन वैज्ञानिको ने पाया कि यह ग्रह अपने मातृ तारे से 12 अरब किमी दूर है और इसे अपनी कक्षा मे एक परिक्रमा पूरी करने मे 550 वर्ष लगते है। यह सूर्य से प्लूटो की तुलना मे अपने मातृ तारे से दुगनी दूरी पर है लेकिन इसका तापमान 575°C (1070°F) जोकि इसके कम उम्र होने से अधिक उष्ण है।
यह सब इस ग्रह को अब तक के ज्ञात ग्रहो मे सबसे अलग ठहराती है। यह अब तक के खोजे सौर बाह्य ग्रहो मे किसी तीन तारो की प्रणाली सबसे चौड़ी कक्षा है। यह कक्षा इतनी चौड़ी है कि युग्म तारो के गुरुत्वाकर्षण के भी प्रभाव मे आ जाती होगी। समय के साथ इसकी कक्षा अस्थिर होते जायेगी और एक दिन यह अस्थिरता इसे इस प्रणाली से दूर फ़ेंक देगी।
वर्तमान विज्ञान के अनुसार किसी मातृ तारे से इतनी दूरी पर इतने बड़े ग्रह का निर्माण संभव नही है। इस बात की संभावना अधिक है कि इस ग्रह का निर्माण मातृ तारे के समीप हुआ होगा और किसी अन्य भारी ग्रह की प्रतिक्रिया के फ़लस्वरूप यह इस कक्षा मे आ गया है।(हम इस दूसरे भारी ग्रह को अभी तक देख नही पाये है, यह अपने मातृ तारे के अत्याधिक समीप हो सकता है)। एक दूसरी संभावना के अनुसार इस ग्रह का निर्माण युग्म तारो की कक्षा मे हुआ होगा और इन युग्म ग्रह के किसी अन्य भारी ग्रह से प्रतिक्रिया स्वरूप फ़ेंका जा कर वर्तमान कक्षा मे आ गया होगा।
यदि दूसरी संभावना सही निकलती है तो इसका अर्थ होगा कि कोई जरूरी नही कि ग्रह अपने वास्तविक मातृ तारे की ही परिक्रमा करें। यह कितना विचित्र है?
इस ग्रह के निरीक्षण से यह भी ज्ञात हुआ है कि इस ग्रह का वातावरण है जिसमे मिथेन और जलबाष्प की उपस्थिति है जो कि इस तरह के गैस महादानव ग्रहो का सामान्य गुण है। यह आश्चर्यजनक है कि यह सब जानकारी हम इस ग्रह से 3,000 ट्रिलियन किमी दूरी से जान पा रहे है। और खगोल वैज्ञानिक इन सब कार्यो मे सटिक होते जा रहे है।
इस ग्रह का आकाश कैसा लगता होगा ? इस ग्रह के चंद्रमा भी होंगे क्योंकि यह एक गैस महादानव है।
इस ग्रह का मातृ तारा 12 अरब किमी दूर है जिससे इस ग्रह के आकाश मे उसकी चमक पृथ्वी पर सूर्य की चमक का 1/500 भाग होगी। लेकिन इस ग्रह के आकाश मे इस तारे की चमक पूर्ण चंद्रमा से अधिक होगी, यह तारा एक बेहद चमकीले बिंदु के रूप मे दिखायी देता होगा। युग्म तारे आकाश मे धूंधले दिखाई देते होंगे। लेकिन इन तारो की चमक उनके मुख्य तारे की परिक्रमा करते हुये उनकी इस ग्रह से दूरी के अनुसार कम अधिक होती होगी।
इस प्रणाली के दो तारे इस ग्रह से दो भिन्न तारो के रूप मे दिखायी देते होंगे लेकिन युग्म तारे एक दूसरे की परिक्रमा भी करते है तो कुछ समय के लिये एक ही तारे के रूप मे दिखायी देते होंगे और कुछ समय के लिये दो भिन्न तारो के रूप मे।
यदि इस तरह की प्रणाली मे जीवन की उपस्थिति है तो उनके लिये ग्रह तारों की गति का अध्ययन हमारी तुलना मे कितना जटिल होगा? ब्रह्माण्ड हमारी कल्पना से कहीं अधिक जटिल है।
* इस तारा प्रणाली का नाम हेनरी ड्रेपर खगोलीय पिंड कैटेलाग( Henry Draper stellar catalog) मे 131,399 क्रमांक से आया है।The name comes from the star being the 131,399th entry in the Henry Draper stellar catalog. एकाधिक तारा प्रणाली मे तारों का नाम उनकी चमक के आधार पर रोमन अक्षरो के कैपीटल रूप A,B,C,D… दिये जाते है। जबकी ग्रहो के नाम तारों के नाम के सामने रोमन अक्ष्रो के छोटे रूप b,c,d से दिये जाते है।(ध्यान रहे पहले ग्रह मे मे b, दूसरे मे c , इसी क्रम मे खोज के अनुसार नाम दिये जाते है।)
निशांत जी जब भी आपके लेख पढ़ता हुँ, तो मुझे हम इंसानों की हैसियत बहुत छोटी लगने लगती है, पर कभी कभी यह भी लगता है कि यह सब कुछ हमारे लिए है।
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Sir,Mera sawal yeh hai ki agar kisibhi pind jese surya ka mass jinta jyada ho toh space time main bkrta jyada hoga.Toh jab hamare surya ek gaint star mein badal jayega tab kya space time mein bhi badlab aayega aagar ha toh kya prithvi ke gaati jyada hoga?Answer plz
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जब सूर्य लाल महादानव बनेगा तब उसका आकार बढेगा, द्रव्यमान वही रहेगा। पृथ्वी की गति वही रहेगी।
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Can any planet orbit two or three stars simultaneously?
Like orbiting centre of gravity of all stars?
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हाँ , एक ग्रह् एकाधिक तारे की परिक्रमा कर सकता है।
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ek megawatt ke altinetar ko chalne me kitne hp ki jarrurat hoti hai
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कम से कम 1341.02209 hp
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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what is sun
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सूर्य एक गैस का विशालकाय गोला है जिसमे हायड्रोजन के संलयन से ऊर्जा बनती रहती है।
सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा है जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है।
सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है।
इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। [[इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है।
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Dear Sir,
Its very pleasant to get such sort of information , even though somebody do not possess the required knowledge to understand the Universe and its activity.
Ones again thanks a lot for this useful information and updating.
Regards,
Sudhir Ingle
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सर कोई पिंड एक साथ तीन तारो का घूर्णन कैसे कर सकता है? क्या उए तारे एक ही दिशा मे तथा एक ही क्रम मे है?
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चित्र देखे, ग्रह् एक ही तारे की परिक्रमा कर रहा है जिसकी परिक्रमा दो अन्य तारे भी कर रहे है।
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आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति आशापूर्णा देवी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर … अभिनन्दन।।
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