जलवायु परिवर्तन/ग्लोबल वार्मिंग के खतरे


global-warming‘ग्लोबल वार्मिंग’ विश्व के लिए कितनी बड़ी समस्या है, ये बात एक आम आदमी समझ नहीं पाता है। उसे ये शब्द थोड़ा ‘टेक्निकल’ लगता है इसलिए वो इसकी तह तक नहीं जाता है। लिहाजा इसे एक वैज्ञानिक परिभाषा मानकर छोड़ दिया जाता है। ज्यादातर लोगों को लगता है कि यह एक दूर की कौड़ी है और फिलहाल संसार को इससे कोई खतरा नहीं है। कई लोग इस शब्द को पिछले दशक से ज्यादा सुन रहे हैं इसलिए उन्हें ये बासी लगने लगा है।

भारत में भी ग्लोबल वार्मिंग एक प्रचलित शब्द नहीं है और भाग-दौड़ में लगे रहने वाले भारतीयों के लिए भी इसका अधिक कोई मतलब नहीं है। लेकिन विज्ञान विश्व की बात करें तो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं। इसको 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह (एस्टेरोइड) के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा माना जा रहा है।

ये हुई कुछ ऊपरी बातें जो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर कही गईं लेकिन अगर हम इसकी तह में जाएँ तो हमें पता चलेगा कि वाकई यह विषय बहुत महत्वपूर्ण है। पुरा विश्व इससे प्रभावित हो रहा है। अगर इसे नहीं संभाला गया तो यह किसी विश्वयुद्ध से ज्यादा जान-माल की हानि कर सकता है। सबसे पहले हमें इसकी कुछ शुरुआती बातें समझनी होंगी।

क्या आपको पता है कि ग्लोबल वॉर्मिंग है क्या? इसे रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर इतनी कोशिशें क्यों की जा रही हैं? इसके क्या नुकसान हैं?

ग्लोबल वॉर्मिंग है क्या?

CO2_invisibilityग्लोबल वार्मिंग (जलवायु परिवर्तन) यानी सरल शब्दों में कहें तो हमारी धरती के तापमान में लगातार बढ़ोतरी होना। हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से गरम होती है। ये किरणें वायुमंडल से गुजरते हुए पृथ्वी की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर धरती के ऊपर एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं। यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस तरह धरती को गरम बनाए रखता है। इंसानों, दूसरे प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की ज्यादा किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू होते हैं ग्लोबल वॉर्मिंग के दुष्प्रभाव मसलन समद्र स्तर ऊपर आना, मौसम में एकाएक बदलाव और गर्मी बढ़ना, फसलों की उपज पर असर पड़ना और ग्लेशियरों का पिघलना। यहां तक कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से प्राणियों की कई प्रजातियां भी लुप्त हो चुकी हैं।

माना जाता है कि पिछली शताब्दी में यानी सन 1900 से 2000 तक पृथ्वी का औसत तापमान 1 डिग्री फैरेनहाइट बढ़ गया है। सन 1970 के मुकाबले वर्तमान में पृथ्वी 3 गुणा तेजी से गर्म हो रही है। इस बढ़ती वैश्विक गर्मी के पीछे मुख्य रूप से मानव ही है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन, गाड़ियों से निकलने वाला घुँआ और जंगलों में लगने वाली आग इसकी मुख्य वजह हैं। इसके अलावा घरों में लक्जरी वस्तुएँ मसलन एयरकंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, ओवन आदि भी इस गर्मी को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार ग्रीन हाउस गैस वो होती हैं जो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश तो कर जाती हैं लेकिन फिर वो यहाँ से वापस ‘अंतरिक्ष’ में नहीं जातीं और यहाँ का तापमान बढ़ाने में कारक बनती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 3 से 8 डिग्री तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे।

विश्व के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल जाएँगी, समुद्र का जल स्तर कई फीट ऊपर तक बढ़ जाएगा। समुद्र के इस बर्ताव से विश्व के कई हिस्से जलमग्न हो जाएँगे। भारी तबाही मचेगी। यह तबाही किसी विश्वयुद्ध या किसी ‘एस्टेरोइड’ के पृथ्वी से टकराने के बाद होने वाली तबाही से भी बढ़कर होगी। हमारे ग्रह पृथ्वी के लिए वो दिन बहुत बुरे साबित होंगे।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारक

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के पीछे मुख्य रूप से ग्रीन हाउस गैसों का होना है। तो सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि ये गैसें कौन-सी हैं और कैसे पैदा होती हैं। ग्रीन हाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसें शामिल होती हैं। इनमें भी सबसे अधिक उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड का होता है। इस गैस का उत्सर्जन सबसे अधिक ‘पॉवर प्लांट्स’ से होता है।

याद रखें कि बूँद-बूँद से ही घड़ा भरता है। अगर हम ये सोचें कि एक अकेले हमारे सुधरने से क्या हो जाएगा तो इस बात को ध्यान रखें कि हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा। सभी लोग अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करें तो ग्लोबल वार्मिंग को भी परास्त किया जा सकता है

बिजली संयंत्रों को बिजली पैदा करने के लिए भारी मात्रा में जीवाश्म ईंधन (मसलन कोयला) का उपयोग करना पड़ता है। इससे भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होती है। माना जाता है कि संसार में 20 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड गाड़ियों में लगे गैसोलीन इंजन की वजह से उत्सर्जित होती है। इसके अलावा विकसित देशों के घर किसी भी कार या ट्रक से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं। इनको बनाने में कार्बन डाइऑक्साइड की बहुत मात्रा उत्सर्जित होती है। इसके अलावा इन घरों में लगने वाले उपकरण भी इन गैसों का उत्सर्जन करते हैं।

कहाँ से होता है ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन

  1. बिजली घर से – 21.3 प्रतिशत
  2. उद्योग कारखानो से – 16.8 प्रतिशत
  3. यातायात और गाड़ियों से – 14 प्रतिशत
  4. खेती-किसानी के उत्पादों से – 12.5 प्रतिशत
  5. जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल से – 11.3 प्रतिशत
  6. निवासी क्षेत्रों से – 10.3 प्रतिशत
  7. बॉयोमॉस जलने से – 10 प्रतिशत
  8. कचरा जलाने से – 3.4 प्रतिशत

क्या सचमुच ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी कोई प्रक्रिया हो रही है?

जी हां, बिल्कुल हो रही है। जलवायु में बदलाव हो रहा है, इसके प्रमाण :

  1. वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि औद्योगिक क्रांति के बाद से वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में बेतहाशा इजाफा हो रहा है।
  2. प्रयोगों के द्वारा यह भी साबित हो चुका है कि ग्रीन हाउस जब वायुमंडल में मौजूद होती हैं तो वे सूरज की गर्मी को अवशोषित करती हैं। जिससे कि हमारे वातावरण का तापमान बढ़ता ही है।
  3. पिछले 100 सालों में विश्व के तामपान में कम से कम 0.85 सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है। इतना ही नहीं, इस दौरान समुद्र स्तर में भी 20 सेंटीमीटर की वृद्धि हुई है।
  4. पृथ्वी की जलवायु में चिंताजनक ढंग से बदलाव हो रहा है। मसलन उत्तरी गोलाद्ध में हिमपात का कम होना, आर्कटिक महासागर में बर्फ का पिघलना और सभी महाद्वीपों में ग्लेशियरों का पिघलना।
  5. पिछले 150 सालों में प्रकृतिक घटनाओं में भी जबरदस्त बदलाव देखनो को मिल रहा है। जैसे कि बेमौसम बारीश और ज्वालामुखी विस्फोट। हालांकि सिर्फ इन घटनाओं से ग्लोबल वॉर्मिंग को नहीं आंका जा सकता।
  6. पिछ्ले 50 वर्षों की वार्मिंग प्रव्रति लगभग दोगुना है पिछले 100 वर्षों के मुकाबले, इसका अर्थ है की वार्मिंग प्रव्रति की रफ़तार बढ रही है।
  7. समुद्र का तापमान 3000 मीटर (लगभग 9,800 फ़ीट) की गहराई तक बढ चुका है; समुंद्र जलवायु के बढे हुऎ तापमान की गर्मी का 80 प्रतिशत सोख लेते है।
  8. उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों में ग्लेशियर और बर्फ़ ढकें क्षेत्रों में कमी हुई है जिसकी वजह से समुंद्र का जलस्तर बढ गया है।
  9. पिछले 100वर्षों सेअंटार्टिका का औसत तापमान पृथ्वी के औसत तापमान से दोगुनी रफ़्तार से बढ रहा है । अंटार्टिका में बर्फ़ जमे हुऎ क्षेत्र में 7 प्रतिशत की कमी हुई है जबकि मौसमी कमी की रफ़्तार 15 प्रतिशत तक हो चुकी है।
  10. उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्से, उत्तरी युरोप और उत्तरी एशिया के कुछ हिस्सों में बारिश ज़्यादा हो रही है जबकि भूमध्य और दक्षिण अफ्रीका में सुखे के रुझान बढते जा रहे हैं।पश्चिमी हवायें बहुत मज़बुत होती जा रही हैं।
  11. सुखे की रफ़्तार तेज होती जा रही है, भविष्य में ये ज़्यादा लम्बे वक्त तक और ज़्यादा बडे क्षेत्र में होंगे। उच्चतम तापमान में बहुत महत्वपुर्ण बदलाव हो रहे हैं—गर्म हवायें और गर्म दिन बहुत ज़्यादा देखने को मिल रहे है जबकि ठंडे दिन और ठंडी रातें बहुत कम हो गयी है।
  12. अटलांटिक संमुद्र की सतह के तापमान में व्रद्धि की वजह से कई तुफ़ानों की तीव्रता में व्रद्धि देखी गयी है हांलकि उष्णकटिबंधीय तुफ़ानों की सख्यां में व्रद्धि नही हुई है।
  13. विश्व भर में मौसम में अजीबो-गरीब तरीके से बदलाव देखने को मिला है। बारिश और बर्फबारी में अंतर नोटिस किया जा सकता है। उत्तरी-दक्षिणी अमेरिका, यूरोप और उत्तरी-केंद्रीय एशिया में ज्यादा बारिश हो रही है। वहीं, मध्य अफ्रीका का साहेल इलाका, दक्षिणी अफ्रीका, भूमध्य सागर और दक्षिण एशिया सागर का इलाका सूख रहा है। साहेल अफ्रीका का वह इलाका है जो दशकों तक सूखे का प्रकोप झेल चुका है। आश्चर्यजनक रूप से इस इलाके में ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से बारिश भी हुई है। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि यह लंबे समय तक नहीं टिकने वाला। जलवायु परिवर्तन के नतीजन विश्व को गर्म हवाओं सूखे, बाढ़ और भयानक बीमीरियों का सामना करना होगा।

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क्या होगा असर?

वैज्ञानिक कहते हैं कि इस समय विश्व का औसत तापमान 15 डिग्री सेंटीग्रेड है और वर्ष 2100 तक इसमें डेढ़ से छह डिग्री तक की वृद्धि हो सकती है। एक चेतावनी यह भी है कि यदि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन तत्काल बहुत कम कर दिया जाए तो भी तापमान में बढ़ोत्तरी तत्काल रुकने की संभावना नहीं है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्यावरण और पानी की बड़ी इकाइयों को इस परिवर्तन के हिसाब से बदलने में भी सैकड़ों साल लग जाएँगे।

ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के उपाय

  1. वैज्ञानिकों और पर्यावरणवादियों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिए मुख्य रुप से सीएफसी गैसों का ऊत्सर्जन कम रोकना होगा और इसके लिए फ्रिज़, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिनसे सीएफसी गैसें कम निकलती हैं।
  2. औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकले वाला धुँआ हानिकारक हैं और इनसे निकलने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड गर्मी बढ़ाता है। इन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे।
  3. वाहनों में से निकलने वाले धुँए का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का सख़्ती से पालन करना होगा।
  4. उद्योगों और ख़ासकर रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोग में लाने लायक बनाने की कोशिश करनी होगी।
  5. और प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकनी होगी और जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा।
  6. अक्षय ऊर्जा के उपायों पर ध्यान देना होगा यानी अगर कोयले से बनने वाली बिजली के बदले पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली पर ध्यान दिया जाए तो आबोहवा को गर्म करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

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हमने टेलीविजन के माध्यम से संसार में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ रहे खतरों को देखा है। आर्कटिक में पिघलती हुई बर्फ, चटकते ग्लेशियर, अमेरिका में भयंकर तूफानों की आमद बता रही है कि हम ‘मौसम परिवर्तन’ के दौर से गुजर रहे हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि इसका असर सिर्फ समुद्र तटीय इलाकों पर ही नहीं पड़ेगा बल्कि सभी जगह पड़ेगा।

माना जा रहा है कि इसकी वजह से उष्णकटिबंधीय रेगिस्तानों में नमी बढ़ेगी। मैदानी इलाकों में भी इतनी गर्मी पड़ेगी जितनी कभी इतिहास में नहीं पड़ी। इस वजह से विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारियाँ पैदा होंगी। वैज्ञानिकों के अनुसार आज के 15.5 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान के मुकाबले भविष्य में 22 डिग्री सेंटीग्रेट तक तापमान जा सकता है।

हमें ध्यान रखना होगा कि हम प्रकृति को इतना नाराज नहीं कर दें कि वह हमारे अस्तित्व को खत्म करने पर ही आमादा हो जाए। हमें उसे मनाकर रखना पड़ेगा। हमें उसका ख्याल रखना पड़ेगा, तभी तो वह हमारा ख्याल रखेगी।

याद रहे कि जो कुछ हो रहा है या हो चुका है वैज्ञानिकों के अनुसार उसके लिए मानवीय गतिविधियाँ ही दोषी हैं।

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5 विचार “जलवायु परिवर्तन/ग्लोबल वार्मिंग के खतरे&rdquo पर;

    1. भारत मे अफ़सरशाही ज्यादा है और राजनितिक कारणो से भी इन सब कार्यक्रमो पर असर होता है। प्रतिभा और वैज्ञानिक ज्ञान मे कोई समस्या नही है।

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  1. sir
    sawal zara bada hai dhyan se samjhe.
    yadi ham ek gamle me ped lagaye to ham usme roz sirf pani hi dete hai or wo paudha fir ped banta jata hai,
    gamle ki mitti kam nahi hoti, ab hamare paas pehle jitni hi mitti hai,usme dala gaya pani zarur hamare pas se kam gaya hai,
    baki is ped ke banne me gamle se kuchh nhi kam hua,
    bhavishya me yah ped,iski patti,fal iska sab kuchh mitti hi banega.
    and now..
    gamle ki mitti aaj bhi shuruat jitni hai or ped badhkar or mitkar dher sari mitti me badal gya hai.

    aisa hi har ped ke liye hai ki wah badhne me sirf dharti ka pani kam karta hai jabki mitkar dher sari mitti me badal jata hai..
    .
    to fir my question is….ki dharti par dhire dhire sadiyon se mitti badh rahi hai ?
    yadi nahi to kyu or kaise ?
    …..please sir detail me samjhaiyega.

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    1. पौधा जमीन से पानी ही नही अन्य खनीज भी लेता है। साथ ही वातावरण से आक्सीजन, कार्बन डाय आक्साईड भी लेता है। यही कार्बन डाय आक्साईड, आक्सीजन और पानी मुख्यत: पेड की लकड़ी के रूप मे होती है।

      कुल मिलाकर किसी पेड़ की वृद्धि मे मिट्टी कम होती है और वही मिट्टी पेड़ की मत्यु मे मिट्टी मे मिल जाती है। धरती पर जितनी मिट्टी, कार्बन डाय आक्साईड, पानी है, उसकी मात्रा मे कोई अंतर नही आता है। पेड़ इन तत्वो को ग्रहण कर बढ़ता है और उसके मरने पर ये सभी पदार्थ वापिस धरती मे मिल जाते है।

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