
प्लूटो के बारे में तो आपने सुना ही होगा। यह पहले अपने सौरमंडल का 9वां ग्रह था। लेकिन अब इसे ग्रह नहीं माना जाता। आओ आज प्लूटो के बारे में जानते हैं।
रोमन मिथक कथाओं के अनुसार प्लूटो (ग्रीक मिथक में हेडस) पाताल का देवता है। इस नाम के पीछे दो कारण है, एक तो यह कि सूर्य से काफ़ी दूर होने की वजह से यह एक अंधेरा ग्रह (पाताल) है, दूसरा यह कि प्लूटो का नाम PL से शुरू होता है जो इसके अन्वेषक पर्सीयल लावेल के आद्याक्षर है।
सूर्य की रोशनी को प्लूटो तक पहुंचने में छह घंटे लग जाते है जबकि पृथ्वी तक यही रोशनी महज आठ मिनट में पहुँच जाती है। प्लूटो की दूरी का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। बड़ी कक्षा होने के कारण सूर्य की परिक्रमा के लिए भी प्लूटो को अधिक वर्ष लगते है, 248 पृथ्वी वर्ष। प्लूटो अपनी धूरी के इर्दगिर्द भी घूमता है। यह अपने अक्ष पर छह दिवसों में एक बार घूमता है। प्लूटो की कक्षा अंडाकार है। अपनी कक्षा पर भ्रमण करते हुए कभी यह नेप्चून की कक्षा को लांघ जाता है। तब नेप्चून की बजाय प्लूटो सूर्य के समीप होता है। हालांकि प्लूटो को यह सौभाग्य केवल बीस वर्षों के लिए मिलता है। 1979 से लेकर 1999 तक प्लूटो आठवां जबकि नेप्चून नौवां ग्रह था।

प्लूटो का आकार हमारे चंद्रमा का एक तिहाई है। यानी हमारे चंद्रमा के तीसरे हिस्से के बराबर है प्लूटो। इसका व्यास लगभग 2,300 किलोमीटर है। पृथ्वी प्लूटो से लगभग 6 गुना बड़ी है। प्लूटो सूर्य से औसतन 6 अरब किलोमीटर दूर है। इस कारण इसे सूर्य का एक चक्कर लगाने में हमारे 248 साल के बराबर समय लग जाता है।
यह नाइट्रोजन की बर्फ, पानी की बर्फ और पत्थरों से बना है। इसके वायुमंडल में नाइट्रोजन, मिथेन और कार्बन मोनोक्साइड गैस है। इस कारण यहां का तापमान काफी कम रहता है। शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस नीचे यानी -200 डिग्री सेल्सियस रहता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है यहां कितनी ठंड लगती होगी। इतने कम तापमान में कोई यहां नहीं रह सकता है।
प्लूटो की खोज

प्लूटो (अंग्रेज़ी:- Pluto) की खोज की एक लम्बी कहानी है। रात्रि आकाश में प्लूटो को देखना रेत के ढेर में सुई ढुंढने के समान है। प्लूटो बेहद छोटा पिंड है। यहाँ तक कि यह कई उपग्रहों, यथा आयो, गेनीमेड, कैलिस्टो, टाइटन, ट्रीटोन, चन्द्रमा से भी छोटा है। प्लूटो को केवल बड़ी शक्तिशाली दूरबीनों की मदद से ही देखा जा सकता है। बड़ी दूरबीनों से भी यह महज तारों जैसा नजर आता है। इस बात में कोई शक नहीं कि प्लूटो को देखना दुष्कर कार्य है। तो फिर प्लूटो को आखिर किस तरह ढूंढा गया ?
खोज का यह सफ़र बेहद रोचक रहा है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि प्लूटो के अस्तित्व का अनुमान उसकी खोज से पहले ही लगा लिया गया था। नेप्चून की अजीब गतिविधि ने इसके संकेत दे दिए थे। खगोलविद् पेर्सिवाल लॉवेल युरेनस और नेप्चून का अध्ययन कर रहे थे । उन्होंने पाया कि सातवें और आठवें ग्रह की हलचल कुछ अजीब है। कुछ गणनाओ के आधार पर यूरेनस और नेप्च्यून की गति में एक विचलन पाया जाता था। इस आधार पर एक ‘क्ष’ ग्रह (Planet X) की भविष्यवाणी की गयी थी, जिसके कारण यूरेनस और नेप्च्यून की गति प्रभावित हो रही थी। उन्हें लगा हो ना हो कोई नौवां ग्रह है जो इन पर अपना असर डाल रहा है। फिर उन्होंने संभावना के आधार पर इस नए ग्रह को खोजने की कोशिश की । लॉवेल की मृत्युपरांत, युवा खगोलविद् क्लायड टॉमबैग ने इस खोज को जारी रखा। वें एरिजोना की लॉवेल वेधशाला में कार्य कर रहे थे। उन्होंने दूरबीन का मुख उस ओर मोड़ दिया जहां ग्रह के मिलने की सर्वाधिक संभावना थी। एक से दो सप्ताहों तक उन्होंने एक के बाद एक अनेको तस्वीरें ली। फिर इन तस्वीरों का आपस में मिलान किया। उन्होंने पाया कि सितारों के बीच कुछ तो है जो हलचल कर रहा है। अंततः उनकी नजर एक बिंदु पर पड़ी जो विस्थापित होता हुआ दिख रहा था। यह बिंदु ही नया ग्रह था। इस तरह 1930 में प्लूटो की ऐतिहासिक खोज हुई।
उस समय लगा कि प्लूटो ग्रह है और उसे 9वां ग्रह मान लिया गया था। लेकिन प्लूटो इतना छोटा निकला कि यह नेप्च्यून और यूरेनस की गति पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता है। ‘क्ष’ ग्रह की खोज जारी रही। बाद में वायेजर 2 से प्राप्त आँकडों से जब नेप्च्यून और यूरेनस की गति की गणना की गयी तब नेप्च्यून और यूरेनस की गति मे कोई भी विचलन नहीं पाया गया। इस तरह ‘क्ष’ ग्रह की सारी संभावनाएँ समाप्त हो गयी।
नयी खोजों से अब हम जानते है कि प्लूटो के बाद भी सूर्य की परिक्रमा करने वाले अनेक पिंड है लेकिन उनमें कोई भी इतना बड़ा नहीं है जिसे ग्रह का दर्जा दिया जा सके। इसका एक उदाहरण हाल ही मे खोज निकाला गया बौना ग्रह जेना है।
ऐसे हुआ था नामकरण
सन 1930 की बात है जब 11 साल की एक बच्ची वेनेशिया फेयर / वेनिटा बर्नी ने नाश्ते की टेबल पर अपने दादाजी फल्कोनर मदान को प्लूटो नाम का सुझाव दिया था। दरअसल उसी वक्त वेनेशिया के दादाजी ‘द टाइम्स’ अखबार पढ़ रहे थे, जिसमें यह खबर छपी थी कि सौरमंडल में एक नया ग्रह खोजा गया है जिसका नाम तय नहीं हो पा रहा था। वेनेशिया के दादाजी ने उससे इस बात की चर्चा की। तभी वेनेशिया को टेलीफिल्म “नेमिंग प्लूटो “की याद आई और उसने कहा कि इस नए ग्रह का नाम प्लूटो रख देना चाहिए।
प्लूटो की खोज के बाद लॉवेल वेधशाला ने दुनियाभर के विज्ञान जिज्ञासुओं से इस ग्रह का नाम रखने के लिए विकल्प मांगे। वेनेशिया के दादाजी जो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की बौडलियन लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन पद से रिटायर हुए थे, ने प्लूटो नाम को रॉयल एस्ट्रोनोमिकल सोसाइटी की मीटिंग में रखवाया। इस मीटिंग में नए ग्रह का नाम तय किया जाना था। उनके दादाजी ने ऑक्सफोर्ड में एस्ट्रोनॉमी के प्रोफेसर हर्बर्ट हॉल टर्नर को अपनी पोती का बताया हुआ नाम सुझाया। प्रोफेसर ने इस नाम को क्लाइड डबल्यू टोमबौघ के सामने रखा, जिन्होंने इस ग्रह की खोज की थी। एक हज़ार से अधिक विकल्प मिलने के बाद मिनर्वा, क्रोनस और प्लूटो तीन नामों का चयन किया गया। इसके बाद नाम को अंतिम रूप प्रदान करने के लिए मतदान कराया गया जिसका नतीजा प्लूटो शब्द के पक्ष में रहा। आखिरकर कमेटी ने 1 मई 1930 को नए ग्रह का नाम प्लूटो सार्वजनिक तौर पर घोषित कर दिया। इससे खुश हुए दादाजी फल्कोनर ने वेनेशिया को 5 पाउंड का नोट बतौर ईनाम भी दिया था। चूंकि यह ग्रह 18 फ़रवरी को खोजा गया था, इसीलिए इस दिन को प्लूटो दिवस के रूप में जाना जाता है।
अजीबोगरीब ग्रह
बौने ग्रह प्लूटो पृथ्वी से लगभग 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर दूर स्थित प्लूटो का एक दिन धरती के 6.4 दिनों के बराबर होता है और पृथ्वी के 248.5 साल के बराबर इसका एक साल होता है, क्योंकि यह 248.5 साल में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है। 1500 मील से कम व्यास वाला प्लूटो सौरमंडल के बाहरी किनारे पर स्थित है।

प्लूटो की कक्षा की मुख्य विशेषता उसकी कक्षा का आकार और क्रांतिवृत्त से उसका झुकाव है । सौरमंडल को शीर्ष से देखने पर आप सभी ग्रहों की कक्षाएं प्रायः वृत्ताकार पायेंगे। लेकिन प्लूटो की कक्षा इनसे एकदम भिन्न है । प्लूटो की कक्षा अत्यधिक अण्डाकार है, इसलिए कभी यह सूर्य के बेहद निकट (30 AU), तो कभी बेहद दूर (39 AU) होता है । प्लूटो की कक्षा नेपच्यून की तुलना में ज्यादा चपटी है। इस वजह से कभी-कभी यह नेप्च्यून की कक्षा के भीतर घूस जाती है । यही कारण है कि 20 वर्षो के लिए नेपच्यून की बजाय प्लूटो सूर्य के समीप होता है । पिछली बार यह अवधि 7 फरवरी 1979 से 11 फरवरी 1999 तक रही थी । इससे पिछली परिक्रमा में यह स्थिति सन् 1700 में बनी थी ।
यह अन्य ग्रहों के विपरीत दिशा में सूर्य की परिक्रमा करता है। इसका घूर्णन अक्ष भी यूरेनस (अरुण ग्रह) की तरह इसके परिक्रमा प्रतल से लंबवत है, दूसरे शब्दों में यह भी सूर्य की परिक्रमा लुढकते हुये करता है।
प्लूटो की झुकी हुई कक्षा उसे कुछ असामान्य गुण देती है । आमतौर पर सभी ग्रहों की कक्षाएं क्रांतिवृत्त तल के आसपास मौजूद है, जबकि प्लूटो की कक्षा अत्यधिक झुकाव लिए हुए है । इसका मतलब यह है कि प्लूटो शेष ग्रहों की तरह एक ही तल पर नहीं रहता है । इसके बजाय प्लूटो 17 डिग्री के कोण पर परिक्रमा करता है । प्लूटो की कक्षा का कुछ भाग क्रांतिवृत्त तल के ऊपर और कुछ भाग इसके नीचे है । क्रांतिवृत्त वह काल्पनिक तल है जिस पर पृथ्वी की कक्षा स्थित है। प्रायः सभी ग्रहों की कक्षाएं क्रांतिवृत्त के समीप है ।
प्लूटो की और नेप्च्यून के चन्द्रमा ट्राइटन की असामान्य कक्षाओं के कारण इन दोनों में किसी ऐतिहासिक रिश्ते का अनुमान है। एक समय यह भी अनुमान लगाया गया था कि प्लूटो नेप्च्यून का भटका हुआ चन्द्रमा है। एक अन्य अनुमान यह है कि ट्राइटन यह प्लूटो की तरह स्वतंत्र था लेकिन बाद में नेप्च्यून के गुरुत्वाकर्षण की चपेट में आ गया।
प्लूटो बेहद छोटा पिंड है। नेप्च्यून के असर से इसकी कक्षा बहुत हद तक अनिश्चित बनी रहती है । हालांकि खगोलविद प्लूटो स्थिति का पूर्वानुमान अतीत और भविष्य के कुछ लाख सालों के लिए तो कर सकते हैं, पर सुदूरवर्ती भविष्य में प्लूटो की सटीक स्थिति क्या होगी ? यह बता पाना असंभव है ।
प्लूटो और नेप्च्यून के परिक्रमण कालों में परस्पर 3:2 का एक निश्चित गणितीय अनुपात है । इसका अर्थ है, नेप्च्यून सूर्य के तीन चक्कर और प्लूटो सूर्य के दो चक्कर समान अवधि में लगाते है। यह दौर हमेंसा समान स्थिति में ख़त्म होता है । इस वजह से प्लूटो और नेप्च्यून का आपस में कभी टकराव नहीं होगा । यह पूरी प्रक्रिया 500 वर्षों में पूर्ण होती है ।
प्लूटो का द्रव्यमान उसकी अपनी कक्षा में मौजूद सामग्री का महज 0,07 गुना है । तुलना के लिए, पृथ्वी का द्रव्यमान उसकी कक्षा में मौजूद कुल मलबे का 15 लाख गुना है । चूँकि प्लूटो अपनी कक्षा की इस सामग्री का सफाया नहीं कर सका है, इसलिए उसे ग्रह नहीं माना गया है। प्लूटो एक वामन ग्रह के रूप में नामित है
वायुमंडल
ग्रहों को घेरे हुए गैसीय आवरण को वायुमंडल कहते है । प्लूटो पर वायुमंडल तो है, पर बेहद विरल है । नाइट्रोजन प्लूटो के वायुमंडल का मुख्य अवयव है। वायुमंडल में मीथेन और कार्बनडाई ऑक्साईड कुछ मात्र में पायी गयी है । नाइट्रोजन के गैसीय रूप को स्पेक्ट्रोस्कोपी से पहचानना बहुत मुश्किल है। इस वजह से प्लूटो की संरचना की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है । वैज्ञानिक भरोसा करते है कि नाइट्रोजन प्लूटो के वायुमंडल का मुख्य घटक है । सूर्य से दूरी प्लूटो के वायुमंडल को प्रभावित करती है । सूर्य से दूरी बदलते ही मौसम बदल जाता है । प्लूटो एक बर्फीला पिंड है । प्लूटो जब सूर्य के निकट आता है उसके सतह की बर्फ वाष्पीकृत हो जाती है। समूचा वातावरण तब गैसीय हो जाता है। इसके विपरीत सूर्य से दूर जाने पर वातावरण जम जाता है। जमीं हुई वायु प्लूटो की धरातल पर हिमपात के रूप में गिरती है । अब प्लूटो पर कोई वायुमंडल नहीं रह जाता है । 1989 में प्लूटो सूर्य के सर्वाधिक समीप था । तब उसकी अधिकांश सतह तप गयी थी। वातावरण अपने चरम पर पहुँच गया था । वैज्ञानिकों का अनुमान है कि प्लूटो का तापमान 2015 तक इसके दक्षिणी गोलार्ध में निरंतर बढ़ता रहेगा ।
उपग्रह

दिनों दिन अधिकाधिक शक्तिशाली दूरबीन का निर्माण हुआ । यहाँ तक कि बड़ी दूरबीनो को अंतरिक्ष तक में स्थापित किया गया । ऐसी ही एक दूरबीन है: हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी । हबल दूरबीन ने हमें 5 अरब किमी की दूरी से छोटी से छोटी वस्तु को स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम बनाया है । नासा ने इस दूरबीन की सहायता से प्लूटो के कम से कम पांच उपग्रहों को खोजा है । जिनमे से तीन उपग्रह क्रमशः शैरन, निक्स और हाइड्रा है, तथा हाल ही में खोजे गए अन्य दो उपग्रहों को औपचारिक नाम स्टाइक्स और केरबेरोस दिया गया है । खोजे गए चंद्रमाओं में स्टाइक्स सबसे छोटा है, इसका अनुमानित व्यास 13 से 34 किमी है । इसकी तुलना में, प्लूटो के सबसे बड़े चन्द्रमा शैरन का व्यास 1,043 किमी, और निक्स व हाइड्रा का व्यास 32 से 113 किमी के परास में है । शैरन की खोज 1978 में संयुक्त राज्य अमेरिका नौसेना वेधशाला स्टेशन, एरिज़ोना में हुई थी । तब प्लूटो को ग्रह का दर्जा प्राप्त था । शुरू के दो चन्द्रमा,निक्स और हाइड्रा, हबल दूरबीन की मदद से 2006 तक खोज लिए गए थे । चौथा चाँद स्टाइक्स हबल दूरबीन द्वारा 2011 में खोजा गया था । केरबेरोस के बारे में फिलहाल कुछ ख़ास जानकारी उपलब्ध नहीं है ।
शेरान असामान्य चन्द्रमा है क्योंकि सौर मंडल मे अपने ग्रह की तुलना मे सबसे बड़ा चंद्रमा है। इसके पहले यह श्रेय पृथ्वी और चंद्रमा का था। कुछ वैज्ञानिक प्लूटो /शेरान को ग्रह और चंद्रमा की बजाय युग्म ग्रह मानते है। प्लूटो और शेरान एक दूसरे की परिक्रमा समकाल मे करते है अर्थात दोनो एक दूसरे के सम्मुख एक ही पक्ष रखते है। यह सौर मंडल मे अनोखा है। शेरान को 1978 मे संक्रमण विधी से खोजा गया था, जब प्लूटो सौर मंडल के प्रतल मे आ गया था और शेरान द्वारा प्लूटो के सामने से गुजरने पर इसके प्रकाश मे आयी कमी को देखा जा सकता था।
प्लूटो का ग्रह का दर्जा छीना
जब 1930 में प्लूटो को ढूँढा गया तो बड़े ही सम्मान के साथ उसे ग्रह का दर्जा दे दिया गया था। हालाँकि शुरू से ही खगोलविदों का एक वर्ग इसे, ख़ास कर इसके छोटे आकार के कारण (अपने चंद्रमा से भी छोटा), ग्रह माने जाने के ख़िलाफ़ था।
अक्तूबर 2003 में हब्बल टेलीस्कोप से खींचे गए एक चित्र के आधार पर पिछले साल 2003यूबी313 (अस्थाई नाम ज़ेना) की खोज के बाद तो प्लूटो को ग्रह की कुर्सी से गिराने वालों ने बक़ायदा अभियान शुरू कर दिया। दरअसल ज़ेना आकार और द्रव्यमान में प्लूटो से भी बड़ा है। हालाँकि उसकी कक्षा भी प्लूटो के समान ही बेतरतीब है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ की दुविधा ये थी कि या तो ज़ेना को दसवाँ ग्रह माने या फिर प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से हटाए।
इतना ही नहीं, खगोलीय दूरबीनों की क्षमता लगातार बढ़ते जाने को देखते हुए ऐसी भी आशंकाएँ व्यक्त की जाने लगी थीं कि आने वाले वर्षों में प्लूटो जैसे दर्जनों और पिंड मिल सकते हैं जो कि ग्रहों के क्लब के दरवाज़े पर दस्तक देते मिलेंगे।
प्राग में जुटे 75 देशों के खगोलविदों के मध्य 24 अगस्त 2006 को अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ की महासभा में ग्रह की परिभाषा पर सहमति बनी। नई कसौटी पर प्लूटो खरा नहीं उतर पाया।
आश्चर्य की बात है कि 2006 तक ग्रह की कोई सर्वमान्य या औपचारिक परिभाषा नहीं थी। प्राग में क़रीब ढाई हज़ार खगोलविदों के बीच मतदान के ज़रिए जिस परिभाषा पर अंतत: सहमति बनी है, उसमें सौरमंडल के किसी पिंड के ग्रह होने के लिए तीन मानक तय किए गए हैं-
- यह सूर्य की परिक्रमा करता हो
- यह इतना बड़ा ज़रूर हो कि अपने गुरुत्व बल के कारण इसका आकार लगभग गोलाकार हो जाए
- इसमें इतना ज़ोर हो कि ये बाक़ी पिंडों से अलग अपनी स्वतंत्र कक्षा बना सके
और तीसरी अपेक्षा पर प्लूटो खरा नहीं उतरता है, क्योंकि सूर्य की परिक्रमा के दौरान इसकी कक्षा नेप्चून की कक्षा से टकराती है।
अब प्लूटो ग्रह कहलाने का हक़दार नहीं रह गया है। लेकिन प्राग सम्मेलन में मौजूद खगोलविदों के बीच एक प्रस्ताव आया था कि ग्रहों की तीन श्रेणी बना दी जाए ताकि प्लूटो तो ग्रह बना रहे ही, तीन और पिंडों को ग्रह मान लिया जाए, यानि कुल एक दर्जन ग्रह! लेकिन प्लूटो को ग्रहों के समूह से बाहर निकालने का अभियान चलाने वाले सफल रहे और फ़ैसला ग्रहों की संख्या आठ करने के पक्ष में सामने आया।
तब से सौरमंडल में आठ ही ग्रह रह गए हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्चून।
बौने ग्रहों का एक नया वर्ग बनाया गया है, जिसमें हैं- प्लूटो, 2003यूबी313 और सेरस।
सेरस सौरमंडल में मौजूद सबसे बड़ा एस्टेरॉयड या क्षुद्र ग्रह है, और इसकी विशेषता है इसका गोल आकार। जबकि 2003यूबी313 सौरमंडल के सुदूरवर्ती हिमपिंडों की पट्टी में स्थित एक गोलाकार पिंड है। मतलब बौने ग्रह की श्रेणी में भी शामिल होने के लिए भी किसी सौरपिंड का गोलाकार होना ज़रूरी है।
अगले अंक मे न्यु हारीजोंस की प्लूटो यात्रा
Sir, Mars ke baare me koi latest jankari hai?
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SIR, EARTH SE MARS KI DOORI KITNI HAI?
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न्यूनतम दूरी 5.46 करोड़ किमी । अधिकतम दूरी 40.1करोड़ किमी । औसत दूरी 22.5 करोड़ किमी
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SIR, BHAGWAN RAM NE VIGYAN KI SAHAYATA SE SAMUNDRA PAR SETU KA NIRMAD KIYA THA KI DIVINE SHAKTI DWARA?
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रितेश मै धार्मिक ग्रन्थ ,धर्म और ईश्वर पर टिप्पणी नही करता। लेकिन यदि यह पुल बना था तो वह मानवीय शक्ति से बना था।
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BHAGWAN VISHNU KA NIVASH STHAN KSHEER SAGAR HAI YA SIRF KALPANA HAI
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क्षीर सागर अर्थात दूध का सागर। अब आप स्वयं निर्णय ले क़ि दूध का सागर हो सकता है या नहीं !
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jo pind suray ki charo aor chakkar lgate hai planet kahlate hai ” chote pind bhi sury ki chakkar lgate hai planet nahi kahlate hai .why¿
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उसमें सौरमंडल के किसी पिंड के ग्रह होने के लिए तीन मानक तय किए गए हैं-
१.यह सूर्य की परिक्रमा करता हो
२.यह इतना बड़ा ज़रूर हो कि अपने गुरुत्व बल के कारण इसका आकार लगभग गोलाकार हो जाए
३.इसमें इतना ज़ोर हो कि ये बाक़ी पिंडों से अलग अपनी स्वतंत्र कक्षा बना सके
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Thank you sir
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behad rochak jaankari. mazaa aa gaya pluto ke baare me jaankar. neeche ki panktiyoN ko thora vistaar se bataayen.. khaaskar aakhiri pankti ko.
शेरान असामान्य चन्द्रमा है क्योंकि सौर मंडल मे अपने ग्रह की तुलना मे सबसे बड़ा चंद्रमा है। इसके पहले यह श्रेय पृथ्वी और चंद्रमा का था। कुछ वैज्ञानिक प्लूटो /शेरान को ग्रह और चंद्रमा की बजाय युग्म ग्रह मानते है। प्लूटो और शेरान एक दूसरे की परिक्रमा समकाल मे करते है अर्थात दोनो एक दूसरे के सम्मुख एक ही पक्ष रखते है।
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अगले लेख मे विस्तार देते है
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