प्लूटो : न्यु हारीजोंस की प्लूटो यात्रा पर विशेष भाग 1


11 जुलाई 2015 को न्यु होरीजोंस द्वारा लिया चित्र
11 जुलाई 2015 को न्यु होरीजोंस द्वारा लिया चित्र

प्लूटो के बारे में तो आपने सुना ही होगा। यह पहले अपने सौरमंडल का 9वां ग्रह था। लेकिन अब इसे ग्रह नहीं माना जाता। आओ आज प्लूटो के बारे में जानते हैं।

रोमन मिथक कथाओं के अनुसार प्लूटो (ग्रीक मिथक में हेडस) पाताल का देवता है। इस नाम के पीछे दो कारण है, एक तो यह कि सूर्य से काफ़ी दूर होने की वजह से यह एक अंधेरा ग्रह (पाताल) है, दूसरा यह कि प्लूटो का नाम PL से शुरू होता है जो इसके अन्वेषक पर्सीयल लावेल के आद्याक्षर है।

सूर्य की रोशनी को प्लूटो तक पहुंचने में छह घंटे लग जाते है जबकि पृथ्वी तक यही रोशनी महज आठ मिनट में पहुँच जाती है। प्लूटो की दूरी का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। बड़ी कक्षा होने के कारण सूर्य की परिक्रमा के लिए भी प्लूटो को अधिक वर्ष लगते है, 248 पृथ्वी वर्ष। प्लूटो अपनी धूरी के इर्दगिर्द भी घूमता है। यह अपने अक्ष पर छह दिवसों में एक बार घूमता है। प्लूटो की कक्षा अंडाकार है। अपनी कक्षा पर भ्रमण करते हुए कभी यह नेप्चून की कक्षा को लांघ जाता है। तब नेप्चून की बजाय प्लूटो सूर्य के समीप होता है। हालांकि प्लूटो को यह सौभाग्य केवल बीस वर्षों के लिए मिलता है। 1979 से लेकर 1999 तक प्लूटो आठवां जबकि नेप्चून नौवां ग्रह था।

प्लूटो नीचे दायें चंद्रमा और पृथ्वी की तुलना मे
प्लूटो नीचे दायें चंद्रमा और पृथ्वी की तुलना मे

प्लूटो का आकार हमारे चंद्रमा का एक तिहाई है। यानी हमारे चंद्रमा के तीसरे हिस्से के बराबर है प्लूटो। इसका व्यास लगभग 2,300 किलोमीटर है। पृथ्वी प्लूटो से लगभग 6 गुना बड़ी है। प्लूटो सूर्य से औसतन 6 अरब किलोमीटर दूर है। इस कारण इसे सूर्य का एक चक्कर लगाने में हमारे 248 साल के बराबर समय लग जाता है।

यह नाइट्रोजन की बर्फ, पानी की बर्फ और पत्थरों से बना है। इसके वायुमंडल में नाइट्रोजन, मिथेन और कार्बन मोनोक्साइड गैस है। इस कारण यहां का तापमान काफी कम रहता है। शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस नीचे यानी -200 डिग्री सेल्सियस रहता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है यहां कितनी ठंड लगती होगी। इतने कम तापमान में कोई यहां नहीं रह सकता है। पढ़ना जारी रखें “प्लूटो : न्यु हारीजोंस की प्लूटो यात्रा पर विशेष भाग 1”