जुलाई 2015 के प्रथम सप्ताह मे सं रां अमरीका के पेटेंट कार्यालय ने विमान निर्माता कंपनी बोइंग के राबर्ट बुडिका, जेम्स हर्जबर्ग तथा फ़्रैंक चांडलर के “लेजर तथा नाभिकिय शक्ति” से चलने वाले विमान इंजन के पेटेंट आवेदन को अनुमति दे दी है।
विमान निर्माता कंपनी सामान्यत: अपने उत्पादो को उन्नत बनाने के लिये हमेशा नयी और पहले से बेहतर तकनीक की तलाश मे रहती है, इसी क्रम मे लेजर तथा नाभिकिय शक्ति से चालित विमान इंजन बोइंग के इंजिनीयरो का नया आइडीया है।
आधुनिक विमान जैसे बोइंग ड्रीमलाईनर मे एकाधिक टर्बोफ़ैन इंजन होते है। इन इंजनो मे पंखो और टर्बाइन की एक श्रृंखला होती है जो हवा के संपिड़न तथा ईंधन के प्रज्वलन से प्रणोद(Thrust) उत्पन्न करते है।
बोइंग के नये पेटेंट किये गये नये इंजन मे प्रणोद एक पुर्णतय भिन्न तथा अभिनव तरिके से किया जायेगा। पेटेंट आवेदन के अनुसार यह लेक्जर नाभिकिय इंजन राकेट, प्रक्षेपास्त्र तथा अंतरिक्षयान मे भी प्रयोग किया जा सकेगा।
वर्तमान मे यह इंजन केवल पेटेंटे के दस्तावेजो मे दर्ज है। इसे बनाने की तकनीक भी उपलब्ध है लेकिन इसे कोई बनायेगा या नही अभी स्पष्ट नही है।
अब देखते है कि यह इंजन कैसे कार्य करेगा।
1. बोइंग का नया जेट इंजन अत्याधिक शक्ति वाली लेजर किरणो को रेडीयो सक्रिय पदार्थ जैसे ड्युटेरीयम और ट्रिटियम पर केंद्रित करता है।

2.लेजर इन पदार्थो को बाष्पित कर देती है और उनमे नाभिकिय संलयन प्रतिक्रिया प्रारंभ करती है, जिससे एक छोटा उष्ण-नाभिकिय(thermonuclear) विस्फोट होता है।

3. इस प्रक्रिया के सह-उत्पाद हायड्रोजन और हीलीयम होते है, जो इंजन से के पीछे से उच्च दबाव से निकलते है और इससे प्रणोद (Thrust ) उत्पन्न होता है।

4. ज्वलन कक्ष(thruster chamber) की दिवारे युरेनियम 238 (uranium 238) से पुती हुयी होती है। नाभिकिय संलयन से उत्पन्न न्युट्रान इस युरेनियम से टकराते है , इस प्रक्रिया मे भी अत्याधिक उष्मा उत्पन्न होती है।

5.इस उष्मा को ज्वलन कक्ष की दीवार के दूसरी ओर से शितलक (coolant) को प्रवाहित कर प्रयोग मे लाया जाता है।

6. उष्मा से गर्म हुये इस शितलक को टर्बाइन तथा जनरेटर मे भेजा जाता है जो विद्युत उत्पन्न करता है। और इसी विद्युत से लेजर उत्पन्न की जाती है।

7. इस सारी प्रक्रिया मे रेडीयो सक्रिय पदार्थ की अल्प मात्रा के अतिरिक्त किसी अन्य ऊर्जा/इंधन की आवश्यकता नही होती है।

शायद यह इंजन हमारे भविष्य की दिशा तय करेगा।
sir agr battiry hi chahiye to isme laga jenerater kis kam me aayega
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बैटरी केवल प्रक्रिया आरंभ करने के लिये है। आपकी अपनी मोटरसाईकल मे जब आप बटन दबा कर स्टार्ट करते है तो बैटरी ही इंजन को चालु करती है, उसके बाद पेट्रोल काम सम्हाल लेता है।
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sir nuten ki gati ka niyam h kisi cheez ko viram avastha se motion me lane k liye hme us pr bl lagana padhega yaha pr surowat kha se hogi agr hm leser kirno ko prdarth p dalenge to laser ko chalne ke liye bijli ki aavshykta hogy wo kha se layenge
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लेजर आरंभ करने बैटरी का प्रयोग होगा।
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battery hi chahiye to phir jenerater kya kam aayega
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sir artificially robot kya h. aur kese bnaye jate h
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आप दो शब्दो को मिला रहे है। आर्टीफ़िशियल का अर्थ है कृत्रिम। हर वह वस्तु जो मानव ने बनाई है आर्टीफ़िशियल होती है।
रोबोट : ऐसी मशीने जो मानव की जगह काम कर सके। जैसे घर साफ़ करने वाला आटोमेटीक क्लिनर। आप उसे चालु कर के छोड़ दो घर के कोने कोने मे जाकर खुद ही झाडु लगायेगा। कार कारखाने मे पेंट, वेल्डींग करने वाली मशीने, ये कार के टुकड़े खुद उठाकर वेल्ड करती है, पेंट करती है। आपरेटर केवल दूर से नजर रखता है। ऐसे बहुत से उदाहरण है।
आर्टीफ़िशियल इंटेलिजेंश : यह एक ऐसा तरिका है जिसमे मशीन खुद सोचकर निर्णय ले सके कि उसे क्या करना है। रोबोट केवल वही काम करेगा जो उसे बताया गया है, वह अपना दिमाग नही लगा सकता। लेकिन आर्टीफ़िशियल इंटेलिजेंश वाले रोबोट खुद निर्णय ले पायेंगे। अभी ये बने नही है।
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sir mujhe ek bat samjh me nhi aayi ki ushma se bijli kese prapt krenge pls answer do
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बिजलीघरो मे उष्मा से पानी गर्म करते है, उससे उत्पन्न भाप से पिस्टन चलते है और जनरेटर घुमाये जाते है जिससे बिजली बनती है।
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AGR ye engine ban gya to hm iski power bda kr samay yatra kr sakte h kya sir
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समय यात्रा की तकनिक वर्तमान में उपलब्ध नही है। अकेली ऊर्जा पर्याप्त नही होंगी।
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time machine bnane ke liye kya kya chahiye
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इस विषय पर वैज्ञानिको के पास वर्तमान मे कोई उत्तर नही है।
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maja aa gaya
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टाइम मशीन बनाने में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक ईंधन की समस्या ही है। और संभवतः नाभिकीय ऊर्जा ही इसका व्यावहारिक हल हो सकती है। इस तरह के डिज़ाइन की यह शुरुवात है। भविष्य में इंजीनियर इसे बेहतर करते जायेंगे और एक व्यावहारिक कार्य का इंजन हमें मिल सकेगा। और यह टाइम मशीन की एक समस्या को सुलझा देगा।
मगर दूसरी समस्या अभी भी सुलझाने को है। वो है G फोर्स से संबंधित। मनुष्य पृथ्वी पर 1 G फ़ोर्स झेलने का आदी है। मगर अगर इसी फ़ोर्स से विमान चलाया गया तो प्रकाश की रफ़्तार के नजदीक पहुँचने में भी एक साल से ज्यादा का समय लग जायेगा, जो व्यवहारिक नहीं है। विमान में थोड़ा बहुत g फ़ोर्स मनुष्य झेल भी सकता है लेकिन इससे यात्रा के समय को कम करने में ज्यादा फर्क नहीं आएगा। और अगर हम g फ़ोर्स को एक हद से ज्यादा बढ़ा देते हैं, तो मनुष्य अपने ही भार से मर जायेगा। हमें ऐसा हल चाहिए जिससे विमान पर सवार मनुष्य g फ़ोर्स का अनुभव न कर सके। लेकिन अभी तक ज्ञात भौतिकी के नियमों से ऐसा होना संभव नहीं दिखाई देता। यानी यात्रा के समय को किसी भी हाल में एक वर्ष से कम नहीं किया जा सकता। जो कि एक ऊबाऊ यात्रा हो सकती है, ज्यादातर यात्रियों के लिए। मगर प्रकृति ने इसका कोई तो हल निकाला ही होगा। यह हल भविष्य के गर्त में है।
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विज्ञान फंतांशी उपन्यासो मे इसके हल है , जैसे फाउडेशन श्रृंखला मे आइजैक आसीमोव ने त्वरण से बचाव के लिये एंटी ग्रेवीटी चालित इंजन की कल्पना की है। लेकिन एंटी ग्रेवीटी तो अभी कल्पना मे ही है।
वैसे आसीमोव का फाउडेशन नाभिकीय ऊर्जा पर ही चलता है।
स्टार ट्रेक मे एक कंपेनसेटर लगा हुआ होता है, उन्होने तकनीकी विवरण नही दिया है।
इतना तो तह है कि जो भी हल होगा, वह अब तक ज्ञात विज्ञान और उसके नियमो से भिन्न होगा।
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