कुर्ट फ्रेडरिक गाडेल (Kurt Friedrich Gödel; जन्म 28 अप्रैल 1906 - 14 जनवरी 1978) मूल रूप से ऑस्ट्रियाई और बाद में अमेरिकी तर्कशास्त्री, गणितज्ञ और दार्शनिक थे।

गाडेल का अपूर्णता प्रमेय(Gödel’s incompleteness theorem)


कुर्ट फ्रेडरिक गाडेल (Kurt Friedrich Gödel; जन्म 28 अप्रैल 1906 - 14 जनवरी 1978) मूल रूप से ऑस्ट्रियाई और बाद में अमेरिकी तर्कशास्त्री, गणितज्ञ और दार्शनिक थे।
कुर्ट फ्रेडरिक गाडेल (Kurt Friedrich Gödel; जन्म 28 अप्रैल 1906 – 14 जनवरी 1978) मूल रूप से ऑस्ट्रियाई और बाद में अमेरिकी तर्कशास्त्री, गणितज्ञ और दार्शनिक थे।

उन्नीसवीं शताब्दी तथा बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध मे गणितज्ञो का लक्ष्य था कि अंकगणित को कुछ स्वयंसिद्ध नियमों मे बांध दिया जाये। यह युक्लिड के ज्यामितिक नियमो के जैसा ही प्रयास था जिसमे कुछ निर्विवाद स्वयं सिद्ध नियमों के आधार पर हर प्रमेय को सिद्ध किया जा सकता था।

यह एक उत्कृष्ट लक्ष्य था। एक ऐसे सिद्धांत की कल्पना जिसमे पूर्णांको संबधित हर संभव स्वयं सिद्ध कथन(Axiom) का समावेश हो। गाडेल द्वारा प्रस्तावित अपूर्णता प्रमेय ने इस लक्ष्य को असंभव बना दिया।  
गाडेल के प्रमेय का गणितीय विवरण देना गणितीय तर्क शास्त्र नही जानने वालों से इस महत्वपूर्ण सहज ज्ञान से उत्पन्न ज्ञान को छुपाने के तुल्य होगा। इसलिए इसे मै सरल कम्प्युटर की भाषा मे दोहराउंगा। 
कल्पना कीजिये  हमारे पास एक शक्तिशाली कम्प्यूटर ’आरेकल’ है। जैसे की कम्प्युटर की कार्य विधि है, आरेकल को उपयोगकर्ता कुछ “Input”निर्देश देता है जो कुछ नियमों पर आधारित होते है,आरेकल इसके उत्तर मे उन नियमो के पालन से उत्पन्न’Output’ देता है। समान Input हमेशा समान Output देंगें। आरेकल के Input तथा Output को पूर्णांकों मे लिखा जाता है तथा आरेकल केवल साधारण गणितीय प्रक्रियाएं जैसे जोड़, घटाना, गुणा तथा भाग ही करता है। साधारण कम्प्यूटर के विपरीत हम इस कंप्यूटर से दक्षता या कम समय मे कार्य की आशा नही रखते हैं। आरेकल हमेशा दिये गये निर्देशो का पालन करता है, वह इसमे लगने वाले समय की परवाह नही करता है, आरेकल अपना कार्य निर्देशो के पालन के पश्चात ही बंद करेगा चाहे इसमे लाखों करोड़ो वर्ष लग जायें।[आरेकल (शाब्दिक अर्थ): कोई व्यक्ति या संस्था जो किसी दैवीय  शक्ति द्वारा हर प्रश्न का उत्तर देने मे समर्थ है।]

अब एक साधारण सरल उदाहरण लेते है। हम जानते है कि 1 से बड़ी  धनात्मक पूर्णांक संख्या( N)  जो 1 और स्वयं (N) के सिवाए किसी से भाज्य न हो रूढ़(अभाज्य-Prime) संख्या कहलाती है। अब आप ’आरेकल’ को कैसे निर्देश देंगे कि वह तय करे कि ‘N’ एक रूढ़ संख्या है? हम उसे कहेंगे कि N को 1 से लेकर N-1 तक की हर पूर्णांक संख्या से भाग दे तथा भागफल(Quotient) पूर्णांक संख्या मिलने  पर या भाजक(divisor) के N-1 तक पहुंचने पर रूक जाये।(वास्तविक रूप मे आप आरेकल को भाजक के  N के वर्गमूल तक पहुंचने पर रूकने कह सकते हैं । यदि भाजक के N के वर्गमूल तक  पहुंचने पर भी कोई पूर्णांक भागफल नही मिला हो तो N एक रूढ़ संख्या हैं ।)
गाडेल के प्रमेय के अनुसार पूर्णांको से संबधित कुछ प्रश्न ऐसे भी है जो केवल पूर्णांको का अंकगणित पर आधारित हो लेकिन उनका उत्तर देने मे आरेकल असमर्थ होगा। दूसरे शब्दो मे कुछ कथन ऐसे है कि जिनमे सही Input देने के पश्चात भी आरेकल उनके सत्य या असत्य निर्धारण मे असमर्थ रहेगा। ऐसे कथन अनिर्णनीय होते है और जटिल होते है। यदि ऐसे कथनो को आप डा. गाडेल ले पास लायें तो वे कहेंगे कि ऐसे कथन हमेशा से ही अस्तित्व मे रहे है और रहेंगे।
यदि आपको आरेकल का उन्नत माडेल आरेकल-स दिया जाये जिसमे एक विशेष अनिर्णनीय कथन UD को सत्य निर्धारित कर दिया गया है। किसी प्रश्न को हल करने दौरान UD के आने के बाद भी परिणाम मे एक दूसरा अनिर्णनीय कथन उसकी जगह ले लेगा। यदि आपको एक अन्य उन्नत आरेकल-अ दिया गया हो जिसमे  एक विशेष अनिर्णनीय कथन UD को असत्य निर्धारित कर दिया गया है। यह माडेल भी हल के दौरान UD के आने के बावजूद परिणाम मे अनिर्णनीय कथन ही देगा। आरेकल-स और आरेकल-अ के परिणाम भिन्न हो सकते है लेकिन दोनो वैध होंगे।
क्या आपको यह चौंकाने वाला तथा विरोधाभाषी लग रहा है ? 1931 जब गाडेल ने इस प्रमेय को विश्व के सामने रखा था समस्त विश्व स्तब्ध रह गया था, इसे अब अपूर्णता प्रमेय कहते है। गाडेल ने अपने परिणामो को कम्युटर भाषा मे नही लिखा था। वे एक निश्चित तर्क शास्त्र और गणित विषय मे कार्य करते थे और उनके परिणाम गणित तथा गणितीय तर्क शास्त्र की विशिष्टता पर निर्भर थे। अगले दशको मे कई अन्य गणितज्ञो जैसे स्टीफन सी क्लीने, एमील पोष्ट, जे बी रासर तथा महान गणितज्ञ, तर्क शास्त्री एलन ट्युरींग ने अपूर्णता प्रमेय को मान्यता दी।
क्या आपको गाडेल का अपूर्णता प्रमेय समझ मे आया ? नही ? थोड़ा और सरलीकरण का प्रयास करते है।
सरल शब्दों मे इसे कुछ ऐसा भी कह सकते है कि गणित को कुछ निश्चित नियमों मे नही बांधा जा सकता है, गणित के नियमों की सूची असीमित  है। सभी सत्य कथनो को सिद्ध करना असंभव है। आप कुछ कथनो को सिद्ध कर दें तब भी कुछ नये कथन आ जायेंगे, जिन्हे सिद्ध करना शेष रहेगा।
कुछ उदाहरण और लेते है :
  1. यह कथन असत्य है।
  2. मैं असत्यवादी हूँ।
  3. इस कथन को सिद्ध नही किया जा सकता है।
पहले कथन के संदर्भ मे, यदि यह वाक्य सत्य है, इसका अर्थ है कि वह कथन असत्य है। यदि वाक्य असत्य है अर्थात कथन सत्य है। दूसरे कथन मे, यदि मै सत्य कह रहा हूँ तब मै असत्य कथन कह रहा हूँ; यदि मै असत्य कह रहा हूँ तब मैं सत्य कथन कह रहा हूँ। अंतिम कथन मे यदि वाक्य सत्य है तब इसे सत्य सिद्ध नही किया जा सकता।
अब आपके के लिए एक चुनौती, क्या आप सिद्ध कर सकते है कि 

दो से बड़ी हर सम संख्या दो रूढ़ संख्या के योग के रूप मे लिखी जा सकती है।

          उदाहरण : 4=3+1 ,10=7+3
यह कथन सत्य है, लेकिन क्या आप इसे सिद्ध कर सकते है?
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6 विचार “गाडेल का अपूर्णता प्रमेय(Gödel’s incompleteness theorem)&rdquo पर;

  1. सर,मेरे मन मे एक शंका है,भौतिकशास्त्र पाठ्यपुस्तको मे well known न्युटन का गुरुत्वीय बल का सिध्दात को universal होने का विवरण है,मतलब विश्व के किन्ही भी दो कणो या वस्तूऔ मे इस आकर्षण बल का प्रभाव है ,पर सर क्या हम ग्रहगोलिय वस्तुऔ को छोडकर हम इस बल को किसी भी दो वस्तु के लिऐ अनुभव कर सकते है जैसे कि मेरे हाथ मे मोबाईल है और आँखो पर चश्मा ,क्या आप इन दो वस्तुऔ मे जो आकर्षण बल है क्या इसे सिध्द या अनुभव करवा सकते है

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    1. गुरुत्वाकर्षण बल बहुत ही कमजोर बल है। यह विद्युत-चुंबकीय बल से 10^36 गुना कमजोर है, इतने कमजोर बल को मोबाइल , या चश्मे जैसी छोटी वस्तुओं के लिये मापना कठिन है, उसके लिये मापन यंत्र वर्तमान तकनिक नही बना सकती है। लेकिन जब हम ग्रह, तारे की बात करते है तब उनका द्रव्यमान इतना होता है कि इस बल को मापा जा सकता है, इसके प्रभाव को महसूस किया जा सकता है।

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