
यदि पृथ्वी के बाहर जीवन है, तो उसकी खोज कैसे हो ? उसके साथ संपर्क कैसे हो ? एक उपाय अंतरिक्षयान के द्वारा विभिन्न ग्रहो की यात्रा का है । लेकिन वर्तमान मे हमारे अंतरिक्ष यान इतने सक्षम नही है कि अपने सौर मंडल से बाहर जा कर जीवन की खोज कर सके।
दूसरा उपाय संचार माध्यमो का है जैसे रेडीयो तरंगे। पृथ्वी के बाहर यदि कोई बुद्धिमान सभ्यता निवास करती है और विज्ञान मे मानव सभ्यता से ज्यादा विकसित या मानव सभ्यता के तुल्य विकसित है तब वह संचार माध्यमो के लिये रेडीयो तरंगो का प्रयोग अवश्य करती होगी। इसी धारणा को लेकर पृथ्वी से बाहर सभ्यता की खोज प्रारंभ हुयी है।
सेटी
सर्च फ़ार एक्स्ट्राटेरेस्ट्रीयल इन्टेलीजेन्स (SETI) सौर मंडल के बाहर बुद्धिमान जीवन की खोज मे लगे एक समूह का नाम है। सेटी प्रोजेक्ट वैज्ञानिक विधीयो से दूरस्थ ग्रहो की सभ्यताओ से हो रहे विद्युत चुंबकिय संचार की खोज मे लगा हुआ है। संयुक्त राज्य अमरीका सरकार ने इस प्रोजेक्ट की शुरुवात मे इसे अनुदान दिया था लेकिन अब यह निजी श्रोतो से प्राप्त धन पर निर्भर है।
१९५९ मे भौतिकि विज्ञानीयो गीयुसेप्पे कोकोनी और फिलीप मारीशन ने ने एक शोधपत्र मे परग्रही सभ्यता के विद्युत चुंबकिय विकिरणो को 1 और 10 गीगा हर्ट्ज पर सुनने की सलाह दी थी। १ गीगाहर्टज से नीचे के संकेत तेजी से गति करते इलेक्ट्रान के द्वारा उत्सर्जित विकिरण से प्रभावित रहेंगे तथा 10 गीगाहर्टज से उपर के संकेत हमारे वातावरण मे मौजूद आक्सीजन और पानी के अणुओ द्वारा उत्पन्न शोर से प्रभावित रहेंगे। उन्होने 1420 गीगाहर्टज की आवृत्ति(Frequency) को बाह्य अंतरिक्ष के संकेतो को सुनने के लिये चूना क्योंकि यह साधारण हायड्रोजन गैस की उत्सर्जन आवृत्ति है और हायड़ोजन गैस सारे ब्रम्हाण्ड मे बहुतायत से है। इस श्रेणी की आवृत्तियों को ‘जल विवर'(Watering Hole) का नाम दिया गया क्योंकि यह परग्रही संचार के उपयुक्त थी।
’जल विवर’ के आसपास बुद्धिमान संकेतो को सुनने का प्रयास निराशाजनक रहा। 1960 मे फ्रेंक ड्रेक ने संकेतो की खोज के लिये ग्रीन बैंक पश्चिम वर्जीनिया मे 25 मीटर के रेडीयो दूरबीन से ने प्रोजेक्ट ओझ्मा की शुरूवात की। प्रोजेक्ट ओझ्मा और किसी भी अन्य प्रोजेक्ट को; जो रात्री के आकाश को संकेतो के लिए छान मारते है आजतक कोई भी सफलता नही मिली है।
अरेसीबो संदेश

1971 मे नासा मे SETI खोज पर धन लगाने का एक महात्वाकांक्षी प्रस्ताव दिया। उसे प्रोजेक्ट सायक्लोप्स नाम दिया गया, जिसमे10 अरब डालर की लागत से पन्द्रह सौ रेडीयो दूरबीन लगाये गये। कोई आश्चर्य नही था इस खोज का भी कोई परिणाम नही निकला। इसके बावजूद अंतरिक्ष मे परग्रही सभ्यताओ को एक संदेश भेजने वाले एक और छोटे प्रोजेक्ट को मंजूरी मीली।
यह संदेश फ़्रेंक ड्रेक ने कार्ल सागान और कुछ अन्य वैज्ञानिको के साथ लिखा था। इस संदेश मे निम्नलिखित सात भाग थे।
- 1. एक (1) से लेकर दस(10) तक के अंक
- 2. डी एन ए को बनाने वाले तत्व हायड्रोजन, कार्बन, नायट्रोजन, आक्सीजन और फास्फोरस के परमाणु क्रमांक
- 3. डी एन ए के न्युक्लेटाईड के शर्करा और क्षारो के रासायनिक सूत्र
- 4.डी एन ए के न्युक्लेटाईडो की संख्या और डी एन ए की संरचना का चित्रांकन
- 5.मानव के शरीर की आकृति का चित्रांकन तथा मानव जनसंख्या
- 6. सौर मंडल का चित्रांकन
- 7.अरेसीबो रेडीयो दूरबीन का चित्रांकन तथा आकार
1974 मे 1679 बाईट के इस संदेश को पोर्ट रीको स्थित महाकाय अरेसीबो रेडीयो दूरबीन से ग्लोबुलर क्लस्टर एम 13 की ओर प्रक्षेपित किया गया जो कि 25,100प्रकाशवर्ष दूरी पर है। यह संदेश एक 23 गुणा 73की सारणी मे था। अंतरिक्ष इतना विशाल है कि इस संदेश का उत्तर आने मे कम से कम 52,200 वर्ष लगेंगे।
Wow संदेश

15 अगस्त 1977 को सेटी मे कार्यरत डा जेरी एहमन ने ओहीयो विश्वविद्यालय के बीग इयर रेडीयो दूरबीन पर एक रहस्यमयी संदेश प्राप्त किया। इस संदेश ने परग्रही जीवन से संपर्क की आशा मे नवजीवन का संचार कर दिया था।
यह संदेश 72 सेकंड तक प्राप्त हुआ लेकिन उसके बाद यह दूबारा प्राप्त नही हुआ। इस रहस्यमय संदेश मे अंग्रेजी अक्षरो और अंको की एक श्रंखला थी जो कि अनियमित सी थी और किसी बुद्धिमान सभ्यता द्वारा भेजे गये संदेश के जैसे थी।
डा एहमन इस संदेश के परग्रही सभ्यता के संदेश के अनुमानित गुणो से समानता देख कर हैरान रह गये और उन्होने कम्प्युटर के प्रिंट आउट पर “Wow!” लिख दिया जो इस संदेश का नाम बन गया।
यह संकेत धनु तारामंडल के समीप के तारा समूह चाई सगीट्टारी के तारे टाऊ सगीट्टारी से आया था। इसके बाद इस संदेश के श्रोत की खोज के ढेरो प्रयासो के बाद भी यह दूबारा प्राप्त नही हुआ। इतना तय है कि यह संदेश पृथ्वी से उत्पन्न नही था और अंतरिक्ष से ही आया था। लेकिन कुछ विज्ञानी जिन्होने ’Wow’ संदेश देखा था इस निष्कर्श से सहमत नही थे।
अमरीकी कांग्रेस इन प्रोजेक्टो के महत्व से प्रभावित नही हुयी, 1977 मे प्राप्त इस रहस्यमयी संदेश ‘Wow’ से भी नही।
अपडेट: अभी हाल ही में शोधकर्ताओं की एक टीम ने CPS(Center of Planetary Science) के साथ मिलकर wow! संकेत के रहस्यों को हल कर दिया है। शोधकर्ताओं के प्रमुख एंटोनियो पेरिस(Antonio Paris) ने अपने सिद्धांतों का वर्णन वाशिंगटन एकेडमी ऑफ साइंस के जर्नल में प्रकाशित पेपर में किया है। उनका रिपोर्ट यह बताता है कि यह संकेत एक धूमकेतु से आया था। wow! संकेत की आवृत्ति 1420 MHz दर्ज की गई थी जो कि साधारण हायड्रोजन गैस की उत्सर्जन आवृत्ति के समान ही है। इसका प्रत्यक्ष स्पष्टीकरण पिछले साल तब सामने आया जब CPS के शोधकर्ताओं की टीम ने एक सुझाव दिया कि धूमकेतु पर मौजूद हायड्रोजन के बादल भी इसी तरह के संकेत प्रसारित करते है। Wow! संकेत हमे दुबारा इसलिए नही मिल सका क्योंकि धूमकेतु तेज गति से गतिशील रहते है। जिस दिन बिग इयर को यह संकेत मिला था ठीक उस दिन दो धूमकेतु आसमान के उसी हिस्से में मौजूद थे। यह धूमकेतु 266P/Christensen और 335P/Gibbs को तब खोजा नही गया था। शोधकर्ताओं को अपनी विचार का परीक्षण करने जा मौका तब मिला जब नवंबर 2016 से फरवरी 2017 तक आकाश में दोनों धूमकेतु सामने आये। इस टीम ने परीक्षण किया और अपनी शोधपत्र में कहा 266P/Christensen से मिले रेडियो संकेत को हमने Wow! संकेत से मिलान किया। 40 साल पहले प्राप्त संकेत से मिलान के लिए हमने अन्य तीन धूमकेतु के रेडियो संकेतो को मिलाया है। उन्हें सभी धूमकेतु से लगभग इसी तरह के रेडियो संकेत के परिणाम प्राप्त हुये है। शोधकर्ताओं ने कहा वे निश्चित रूप से यह तो नही कह सकते कि Wow! संकेत धूमकेतु 266P/Christensen द्वारा ही उत्तपन्न हुआ था लेकिन वे सापेक्ष आश्वस्त रूप से कह सकते है कि यह संकेत धूमकेतु द्वारा ही उत्तपन्न किया गया था जो एक प्राकृतिक घटना है।
सेटी संस्थान
1995 मे सरकारी धन की कमी से परेशान विज्ञानीयो ने धन के निजी श्रोतो की ओर ध्यान देना शुरू किया। उन्होने माउन्टेन विउ कैलीफोर्निया मे केन्द्रित SETI संस्थान की स्थापना की। सेटी ने 1200 से 3000 मेगाहर्टज आवृत्ती पर हमारे पास के एक हजार सूर्य जैसे तारो के अध्यन के लिये के प्रोजेक्ट फिनिक्स का प्रारंभ किया। डाक्टर जील टार्टर को इस प्रोजेक्ट का निदेशक बनाया गया। इस प्रोजेक्ट के उपकरण 200 प्रकाशवर्ष दूर किसी हवाई अड्डे के राडार प्रणाली से उत्सर्जित विकिरण को पकड़ने मे सक्षम है।
1995 से अब तह सेटी संस्थान ने 50 लाख डालर प्रतिवर्ष के बजट से एक हजार से ज्यादा तारो का अध्यन किया है लेकिन कोई परिणाम प्राप्त नही हुआ है। हार ना मानते हुये सेटी के वरिष्ठ खगोलज्ञ सेठ शोस्तक के अनुसार सैन फ्रांसिस्को से 250 मील उत्तरपूर्व मे बन रहे 350 एन्टीना वाले एलन दूरबीनो के समूह से सन 2025 तक परग्रही संकेतो के पकड़ पाने की आशा है।
सेटी@होम
एक नूतन उपाय के रूप मे बार्कले स्थित कैलीफोर्निया विश्व विद्यालय के खगोलज्ञ ने 1999 मे सेटी@होम प्रोजेक्ट की शुरूवात की है। वे ऐसे लाखो घरेलु कम्प्युटर का उपयोग करना चाहते है जो अपने अधिकतर समय खाली रहते है। जो भी इस प्रोजेक्ट मे भाग लेना चाहता है उसे अपने कम्प्युटर मे एक साफ्टवेयर डाउनलोड कर डालना होता है। यह साफ्टवेयर जब आपका कम्युटर खाली होता है और स्क्रीन सेवर सक्रिय होता है तब सेटी के किसी रेडीयो दूरबीन से प्राप्त संकेतो को समझना शुरू करता है। इस साफ्टवेयर से कम्युटर प्रयोक्ता को कोई परेशानी नही होती है। अब तक पूरे विश्व मे 200से ज्यादा देशो के 50 लाख से ज्यादा प्रयोक्ता इस साफ्टवेयर को चला रहे है। यह मानव इतिहास का सबसे बड़ा सामूहिक कम्प्युटर प्रोजेक्ट है और यह ऐसे प्रोजेक्टो के लिये एक आदर्श बन सकता है जिन्हे गणना के लिये अत्याधिक कम्युटर शक्ति की आवश्यकता होती है। अब तक इस प्रोजेक्ट को भी निराशा हाथ लगी है, इस प्रोजेक्ट ने भी अभी तक कोई भी परग्रही संकेत नही पकड़े है।
दशको के कड़ी मेहनत के बाद भी असफलता ने सेटी के प्रस्तावको के सामने कठीन प्रश्न खड़े कर दिये है।
सेटी की अब तक की असफलता के संभावित कारण
- 1.एक साक्षात त्रुटि तो एक विशेष आवृत्ती पर रेडीयो संकेतो का प्रयोग है। कुछ विज्ञानियो के अनुसार परग्रही सभ्यता रेडीयो संकेतो की बजाय लेजर संकेतो का प्रयोग करती हो सकती है क्योंकि लेजर संकेत रेडीयो संकेतो से कहीं बेहतर है। लेजर संकेतो का कम तरंगदैर्ध्य उन्हे कम जगह मे ज्यादा संकेत भेजने मे सक्षम बनाता है लेकिन लेजर किसी विशेष दिशा मे ही भेजी जा सकती है इसलिये उसे किसी विशेष आवृत्ती पर प्राप्त कर पाना अत्याधिक कठीन है।
- 2.दूसरी त्रुटि एक सेटी के शोधकर्ताओ का एक विशेष रेडीयो स्पेक्ट्रम पर निर्भर होना है। परग्रही सभ्यता संपिड़ण तकनिक का प्रयोग कर या संकेतो को छोटे पेकेजो मे बांटकर भी भेज सकती है। यह वही तरिके है जो आज इंटरनेट पर प्रयोग किये जाते है। संपिड़ित संकेतो को यदि एकाधिक आवृत्ती पर भेजा जाये तो उन्हे समझना मुश्किल है, क्योंकि हम नही जानते की वे संपिड़ित है; ये हमे मात्र शोर के रूप मे सुनायी देंगी।
- 3.मानव इतिहास कुछ सौ हजार वर्ष पूराना है। इस कालखण्ड मे मानव सभ्यता रेडीयो संकेतो का प्रयोग पिछले 100 वर्षो से ही कर रही है। यह भी संभव है कि भविष्य मे हमे इससे बेहतर तकनिक मिल जाये। यदि ऐसा होता है तो पृथ्वी पर रेडीयो संकेतो के प्रयोग का काल खंड खगोलिय संदर्भ मे एक क्षण से भी कम का होगा। परग्रही जीवन यदि हम से पिछड़ा है तो उसके पास रेडीयो संकेतो की तकनिक नही होगी, यदि विकसित है तो उसके पास बेहतर तकनिक हो सकती है। शायद हम अंधेरे मे ही हाथ पैर मार रहे हों?
- 4. अतरिक्ष की विशालता। अंतरिक्ष हमारी कल्पना से ज्यादा विशाल है। हमारा(सौर मंडल का) सबसे नजदिकी तारा प्राक्सीमा सेंटारी 4 प्रकाश वर्ष दूर है। इससे रेडीयो संकेत पृथ्वी तक आने मे 4 वर्ष लगेंगे। हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी 100,000 प्रकाश वर्ष चौड़ी है जो कि एक साधारण आकार की आकाशगंगा है। हमारी पड़ोसी आकाशगंगा एंड़्रोमिडा 250 लाख प्रकाशवर्ष दूर है। हमारी आकाशगंगा और एन्ड्रोमीडा एक ही आकाशगंगा समूह मे है। यह आकाशगंगा समूह 100 लाख प्रकाशवर्ष चौड़ा है जो कि एक वर्गो सुपरक्लस्टर (आकाशगंगाओ के समुहो का समुह) जिसकी चौड़ाई 1100 लाख प्रकाशवर्ष है। ब्रम्हाण्ड मे ऐसे अरबो सुपरक्लस्टर है जिनके मध्य लाखो प्रकाशवर्ष की दूरी है। अर्थात यदि हमे कोई संदेश प्राप्त हुआ भी तो वह लाखो वर्ष पूराना हो सकता है,अगर हम उसका प्रत्युत्तर दे तब वह उत्तर लाखो वर्ष बाद पहुंचेगा।
सेटी के सम्मुख इन इन सभी समस्याओ के बावजूद आशा है कि इस शताब्दि मे हम किसी परग्रही सभ्यता के संकेत पकड़ने मे सक्षम हो जायेंगे। जब भी यह होगा मानव इतिहास मे एक मील का पत्त्थर होगा।

वायेजर गोल्डन रीकार्ड
वायेजर गोल्डन रीकार्ड दोनो वायेजर(I तथा II) अंतरिक्ष यानो पर रखे गये फोनोग्राफ रीकार्ड है। इन रिकार्डो पर पृथ्वी के विभिन्न प्राणीयो की आवाजे और चित्र है। यह रीकार्ड परग्रही प्राणीयो के लिये है जो इन यानो कभी भविष्य मे देख सकते है। ये दोनो वायेजर यान विस्तृत अंतरिक्ष की तुलना मे बहुत छोटे है, किसी बुद्धिमान सभ्यता के द्वारा इन यानो को पाने की संभावना न्युनतम है क्योंकि ये दोनो यान कुछ वर्षो बाद कोई भी विद्युत चुंबकिय संकेत उत्सर्जन बंद कर देंगे। यदि कोई परग्रही सभ्यता इन्हे खोज निकालेगी तब कम से कम 40000 वर्ष बीत चूके होंगे जब वायेजर 1 यान किसी तारे के समीप से गुजरेगा।
वायेजर गोल्डन रीकार्ड पर स. रा. अमरिका के राष्ट्रपति का संदेश है
यह एक लघु, दूरस्थ विश्व का उपहार है जिसमे हमारी ध्वनी, हमारे विज्ञान, हमारे चित्र, हमारे संगित, हमारे विचार और हमारी भावनाये सम्मिलित है। हम हमारे समय से सुरक्षित रहकर आपके समय मे जीने का प्रयास कर रहे है।
इस वायेजर गोल्डन रीकार्ड मे पहले ध्वनी संदेश मे हिंदी, उर्दू सहित 55 भाषाओ मे परग्रहीयो के लिये अभिनंदन संदेश है। दूसरे ध्वनी संदेश मे पृथ्वी की विभिन्न ध्वनियों का समावेश है जिसमे प्रमुख है : ज्वालामुखी, भूकंप , बिजली की ध्वनी; वायू, वर्षा की ध्वनी; पक्षियो, हाथी की ध्वनी; व्हेल का गीत, मां द्वारा बच्चे के चुंबन; दिल की धड़कन।

अगले संदेश मे विभिन्न संस्कृतियो के संगीत का समावेश है जिसमे प्रमुख है : सुश्री केसरबाई केरकर का राग भैरवी मे “जात कहां हो” गायन; मोजार्ट का संगीत।इस वायेजर गोल्डन रीकार्ड के अगले भाग मे कार्ल सागन की पत्नि एन्न ड्रुयन के मष्तिष्क तरंगे की रीकार्डींग है। उसके अगले भाग मे ११६ चित्रो का समावेश है जिसमे प्रमुख है : सौर मंडल का मानचित्र, पृथ्वी का चित्र, सूर्य का चित्र, गणितिय और भौतिकि परिभाषाये, मानव शरीर के चित्र।
क्रमश:…..(अगला भाग : कहां है वे ?)……
Wow lekh jaisa k apne likha English aur ganit me that to alien bhi hamari language use karte ho ye thora mushkil lagta hai ye bhi to ho sakte hai jisne wow sunne ki baat kahi ho wo shayad famous hone ya Naam kamane k liye jhoot bola ho
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Aap or hum jab is prithvi par aastitva hain, to pargrahi apnay grah main bhi hain, unki lalak or unnat vigyan hamari prithvi tak salon pahlay kheench laya, hamara sust vigyan un tak hamko nahi pahucha saka hai, ya to unka gyan , ya fir lambay samay baad apne dam par hum untak pahunch hi jayengay
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किसी गृह पर जीवन हो यह हो सकता है लेकिन इतना विकसित हो की कई प्रकाशवर्ष की दूरी तय कर के हम तक पहुंचे ये असंम्भव जैसा है न वो हम तक कभी पहुंचेंगे न हम उन तक फिर बेकार ही इतनी रिसर्च में पैसे की बर्वादी क्यों ? हमे पृथ्वी के विकास के लिए काम करना चाहिए
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Ekdum correct
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WOW Signal क्या यह साबित करता है की ब्रह्माण्ड में कोई प्रजाति हमसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे है या यह किसी तकनिकी समस्या से उत्पन्न हुआ है
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Wow! संकेत केवल एक बार कुछ सेकंड के लिये आया था। ये क्यों आया, किसने भेजा, अभी भी एक रहस्य है। तकनीकी समस्या की संभावना से इंकार नही किया जा सकता है।
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मेरा मानना है कि हमे विकसित ऐलियन की खोज नही करनी चाहिए। क्यो कि अगर उन्हे हमारी स्थिती का पता चल गया तो हो सकता है कि वो पृथ्वी पर भी अपने जीवन बसाने की कोशिश करेगे और वो हमसे ज्यादा विकसित हूये तो हमे उनके सामने हार मानना ही पडेगा।
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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ye to 100 h ki aliyan h
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bahut hi achcha feel hota hai esa padne me
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Wow signal के बारे में मैने discovery channel भी पर देखा था
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yah ek bahut hi achha lagne wala le4kh tha joki maI padh kar bahut hi khush huaa huaa aur aage bhi padhna chahunga….dhanywaad
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अद्भुत..
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एक अलग फंतासी जैसी दुनिया है यह, रोमांचक.
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