तारों का जीवन और मृत्यु


सितारे का जीवनचक्र

सामान्यतः सितारे का जीवन चक्र दो तरह का होता है और लगभग सभी तारे इन दो जीवन चक्र मे से किसी एक का पालन करते है। इन दो जीवन चक्र मे चयन का पैमाना उस तारे का द्रव्यमान होता है। कोई भी तारा जिसका द्रव्यमान तीन सौर द्रव्यमान(1 सौर द्रव्यमान: सूर्य का द्रव्यमान) के तुल्य हो वह मुख्य अनुक्रम (नीले तारे से लाल तारे) मे परिवर्तित होते हुये अपनी जिंदगी बिताता है। लगभग 90% तारे इस प्रकार के होते है। यदि कोई तारा अपने जन्म के समय तीन सौर द्रव्यमान से ज्यादा द्रव्यमान का होता है तब वह मुख्य जीवन अनुक्रम मे काफी कम समय के लिये रहता है, उसका जीवन बहुत कम होता है। जितना ज्यादा द्रव्यमान उतनी ही छोटी जिंदगी और उससे ज्यादा विस्फोटक मृत्यु जो एक न्यूट्रॉन तारे या श्याम वीवर को जन्म देती है।

तारों का अपने जीवन काल मे उर्जा उत्पादन

अपनी जिंदगी के अधिकतर भाग मे मुख्य अनुक्रम के तारे हाइड्रोजन संलयन की प्रक्रिया के द्वारा उर्जा उत्पन्न करते है। इस प्रक्रिया मे दो हाइड्रोजन के परमाणु हिलीयम का एक परमाणु निर्मित करते है। उर्जा का निर्माण का कारण है कि हिलीयम के परमाणु का द्रव्यमान दो हाइड्रोजन के परमाणु के कुल द्रव्यमान से थोड़ा सा कम होता है। दोनो द्रव्यमानो मे यह अंतर उर्जा मे परिवर्तित हो जाता है। यह उर्जा आईन्सटाईन के प्रसिद्ध समीकरण E=mc2 जहाँ E= उर्जा, m=द्रव्यमान और c=प्रकाश गति। हमारा सूर्य इसी प्रक्रिया से उर्जा उत्पन्न कर रहा है। हाइड्रोजन बम भी इसी प्रक्रिया का प्रयोग करते है।

नीचे दी गयी तस्वीर मे दो प्रोटान (हाइड्रोजन का केण्द्रक) मिलकर एक ड्युटेरीयम (हाइड्रोजन का समस्थानिक) का निर्माण कर रहे है। इस प्रक्रिया मे एक पाजीट्रान और एक न्युट्रीनो भी मुक्त होते है। इस ड्युटेरीयम नाभीक पर जब एक प्रोटान से बमबारी की जाती है हिलीयम-३ का नाभिक निर्मित होता है साथ मे गामा किरण के रूप मे एक फोटान मुक्त होता है। इसके पश्चात एक हिलीयम ३ के नाभिक पर जब दूसरे हिलीयम-३ का नाभिक टकराता है स्थाई और सामान्य हिलीयम का निर्माण होता है और दो प्रोटान मुक्त होते है। इस सारी प्रक्रिया मे निर्मित पाजीट्रान किसी इलेक्ट्रान से टकरा कर उर्जा मे बदल जाता है और गामा किरण (फोटान) के रूप मे मुक्त होता है। हमारे सूर्य के केन्द्र से उर्जा इन्ही गामा किरणों के रूप मे वितरीत होती है।


तारो मे नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया

हमारा सूर्य अभी इसी अवस्था मे है, नीचे दिये गये आंकड़े सूर्य से संबधित है। सूर्य बाकी अन्य तारों के जैसा ही होने की वजह से ये सभी तारों के प्रतिनिधि आंकड़े माने जा सकते है और हम तारों के कार्य पद्धति के बारे मे समझ सकते है। हर सेकंड सूर्य 5000 लाख टन हाइड्रोजन को हिलीयम मे बदलता है। इस प्रक्रिया मे हर सेकंड 50 लाख टन द्रव्यमान उर्जा मे तब्दील होता है। यह उर्जा लगभग 1027 वाट की उर्जा के बराबर है। पृथ्वी पर हम इस उर्जा का लगभग 2/1,000,000,000 (2 अरबवां) हिस्सा प्राप्त करते है या 2x 1018 वाट उर्जा प्राप्त करते है। यह उर्जा 100 सामान्य बल्बो को 50 लाख वर्ष तक जलाये रखने के लिये काफी है। यह मानव इतिहास से भी ज्यादा समय है।

मुख्य अनुक्रम के तारे की मृत्यु

लगभग 10 अरब वर्ष मे एक मुख्य अनुक्रम का तारा अपनी 10% हाइड्रोजन को हिलीयम मे परिवर्तित कर देता है। ऐसा लगता है कि तारा अपनी हाइड्रोजन संलयन की प्रक्रिया को अगले 90 अरब वर्ष तक जारी रख सकता है लेकिन ये सत्य नही है। ध्यान दें कि तारे के केन्द्र मे अत्यधिक दबाव होता है और इस दबाव से ही संलयन प्रक्रिया प्रारंभ होती है लेकिन एक निश्चित मात्रा मे। बड़ा हुआ दबाव मतलब बड़ा हुआ तापमान। केन्द्र के बाहर मे भी हाइड्रोजन होती है लेकिन इतना ज्यादा दबाव नही होता कि संलयन प्रारंभ हो सके।

अब हिलीयम से बना केन्द्र सिकुड़ना प्रारंभ करता है और बाहरी तह फैलते हुये ठंडी होना शुरू होती है, ये तह लाल रंग मे चमकती है। तारे का आकार बड जाता है। इस अवस्था मे वह अपने सारे ग्रहो को निगल भी सकता है। अब तारा लाल दानव(red gaint) कहलाता है। केन्द्र मे अब हिलीयम संलयन प्रारंभ होता है क्योंकि केन्द्रक संकुचित हो रहा है, जिससे दबाव बढ़ेगा और उससे तापमान भी। यह तापमान इतना ज्यादा हो जाता है कि हिलीयम संलयन प्रक्रिया से भारी तत्व बनना प्रारंभ होते है। इस समय हिलीयम कोर की सतह पर हाइड्रोजन संलयन भी होता है क्योंकि हिलीयम कोर की सतह पर हाइड्रोजन संलयन के लिये तापमान बन जाता है। लेकिन इस सतह के बाहर तापमान कम होने से संलयन नही हो पाता है। इस स्थिती मे तारा अगले 100,000,000 वर्ष रह सकता है।


मीरा (Meera Red Gaint) लाल दानव

इतना समय बीत जाने के बाद लाल दानव का ज्यादातर पदार्थ कार्बन से बना होता है। यह कार्बन हिलीयम संलयन प्रक्रिया मे से बना है। अगला संलयन कार्बन से लोहे मे बदलने का होगा। लेकिन तारे के केन्द्र मे इतना दबाव नही बन पाता कि यह प्रक्रिया प्रारंभ हो सके। अब बाहर की ओर दिशा मे दबाव नही है, जिससे केन्द्र सिकुड जाता है और केन्द्र से बाहर की ओर झटके से तंरंगे (Shock wave)भेजना शुरू कर देता है। इसमे तारे की बाहरी तहे अंतरिक्ष मे फैल जाती है, इससे ग्रहीय निहारीका का निर्माण होता है। बचा हुआ केन्द्र सफेद बौना(वामन) तारा(white dwarf) कहलाता है। यह केन्द्र शुध्द कार्बन(कोयला) से बना होता है और इसमे इतनी उर्जा शेष होती है कि यह चमकीले सफेद रंग मे चमकता है। इसका द्रव्यमान भी कम होता है क्योंकि इसकी बाहरी तहे अंतरिक्ष मे फेंक दी गयी है। इस स्थिति मे यदि उस तारे के ग्रह भी दूर धकेल दिये जाते है, यदि वे लाल दानव के रूप मे तारे द्वारा निगले जाने से बच गये हो तो।


सफेद बौने(वामन) तारे

सफेद बौना तारा की नियती इस स्थिति मे लाखों अरबों वर्ष तक भटकने की होती है। धीरे धीरे वह ठंडा होते रहता है। अंत मे वह पृथ्वी के आकार (8000किमी व्यास) मे पहुंच जाता है। इसका घन्त्व अत्यधिक अधिक होता है, एक माचिस की डिब्बी के बराबर पदार्थ एक हाथी से ज्यादा द्रव्यमान रखेगा ! इसका अधिकतम द्रव्यमान सौर द्रव्यमान से 1.4 (चन्द्रशेखर सीमा) गुना हो सकता है। ठंडा होने के बाद यह एक काले बौने(black dwarf) बनकर कोयले के ढेर के रूप मे अनंत काल तक अंतरिक्ष मे भटकते रहता है। इस कोयले के ढेर मे विशालकाय हीरे भी हो सकते है।

महाकाय तारे की मौत

सूर्य से काफी बड़े तारे की मौत सूर्य(मुख्य अनुक्रम के तारे) की अपेक्षा तीव्रता से होगी। इसकी वजह यह है कि जितना ज्यादा द्रव्यमान होगा उतनी तेजी से केन्द्रक संकुचित होगा, जिससे हाइड्रोजन संलयन की गति ज्यादा होगी।

लगभग 100 से 150 लाख वर्ष मे (मुख्य अनुक्रम तारे के लिये 10 अरब वर्ष) एक महाकाय तारे की कोर कार्बन की कोर मे बदल जाती है और वह एक महाकाय लाल दानव(gignatic red gaint) मे परिवर्तित हो जाता है। मृग नक्षत्र मे कंधे की आकृती बनाने वाला तारा इसी अवस्था मे है। यह लाल रंग मे इसलिये है कि इसकी बाहरी तहे फैल गयी है और उसे गर्म करने के लिये ज्यादा उर्जा चाहिये लेकिन उर्जा का उत्पादन ढा नही है। इस वजह से वह ठंडा हो रहा है और चमक लाल हो गयी है। ध्यान दे नीले रंग के तारे सबसे ज्यादा गर्म होते है और लाल रंग के सबसे कम।

इस स्थिति मे मुख्य अनुक्रम के तारे और महाकाय तारे मे अंतर यह होता है कि महाकाय तारे मे कार्बन को लोहे मे परिवर्तित करने के लायक दबाव होता है जो कि मुख्य अनुक्रम के तारे मे नही होता है। लेकिन यह संलयन उर्जा देने की बजाय उर्जा लेता है। जिससे उर्जा का ह्रास होता है, अब बाहर की ओर के दबाव और अंदर की तरफ के गुरुत्वाकर्षण का संतुलन खत्म हो जाता है। अंत मे गुरुत्वाकर्षण जीत जाता है, तारा केन्द्र एक भयानक विस्फोट के साथ सिकुड जाता है , यह विस्फोट सुपरनोवा कहलाता है। 4 जुलाई 1054 मे एक सुपरनोवा विस्फोट 23 दिनो तक दोपहर मे भी दिखायी देते रहा था। इस सुपरनोवा के अवशेष कर्क निहारीका के रूप मे बचे हुये है।


कर्क निहारीका(सुपरनोवा विस्फोट के अवशेष)

इसके बाद इन तारों का जीवन दो रास्तों मे बंट जाता है। यदि तारे का द्र्व्यमान ९ सौर द्रव्यमान से कम लेकिन 1.4 सौर द्रव्यमान से ज्यादा हो तो वह न्यूट्रॉन तारे मे बदल जाता है। वही इससे बड़े तारे श्याम वीवर (black hole)मे बदल जाते है जिसका गुरुत्वाकर्षण असीम होता है जिससे प्रकाश भी बच कर नही निकल सकता।

बौने (वामन) तारे की मौत

सूर्य एक मुख्य अनुक्रम का तारा है, लेकिन यह पिले बौने तारे की श्रेणी मे भी आता है। इस लेख मे सूर्य से छोटे तारों को बौना (वामन) तारा कहा गया है।

बौने तारो मे सिर्फ लाल बौने तारे ही सक्रिय होते है जिसमे हाइड्रोजन संलयन की प्रक्रिया चल रही होती है। बाकी बौने तारों के प्रकार , भूरे, सफेद और काले है जो मृत होते है। लाल बौने का आकार सूर्य के द्रव्यमान से 1/3 से 1/2 के बीच और चमक 1/100 से 1/1,000,000 के बीच होती है। प्राक्सीमा सेंटारी , सूर्य के सबसे नजदिक का तारा एक लाल बौना है जिसका आकार सूर्य से 1/5 है। यदि उसे सूर्य की जगह रखे तो वह पृथ्वी पर सूर्य की चमक 1/10 भाग ही चमकेगा ,उतना ही जितना सूर्य प्लूटो पर चमकता है।


प्राक्सीमा (लाल वामन तारा– Red Dwarf) केन्द्र मे सबसे चमकिला लाल तारा

लाल बौने अपने छोटे आकार के कारण अपनी हाइड्रोजन धीमे संलयन करते है और कई सैकडो खरबो वर्ष तक जीवित रह सकते है।

जब ये तारे मृत होंगे ये सरलता से ग़ायब हो जायेंगे, इनके पास हिलीयम संलयन के लिये दबाव ही नही होगा। ये धीरे धीरे बुझते हुये अंतरिक्ष मे विलीन हो जायेंगे।

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12 विचार “तारों का जीवन और मृत्यु&rdquo पर;

  1. sir
    aapne kahaa ki mahakaay taaro me carbon ko lohe me parivartit karne ke laayak dabaab hota hai jo ki mukhya anukram ke taaro me nahi hota
    “लेकिन यह संलयन उर्जा देने की बजाय उर्जा लेता है।”sir isme ye samajh nahi aaya ki ye sanlayan urja leta kahaan se hai ?

    जिससे उर्जा का ह्रास होता है

    “अब बाहर की ओर के दबाव और अंदर की तरफ के गुरुत्वाकर्षण का संतुलन खत्म हो जाता है” aur isme jab core me carbon lohe me badal raha hai to baahar ki or ka dabaab khatam kaose ho gya

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  2. sir…
    आपने कहा की सूर्य एक मुख्य अनुक्रम का तारा हैं .. लेकिन sir आपने कहा की जिस तारे का द्रव्यमान 3 सौर द्रव्यमान(1 सौर द्रव्यमान = सूर्य का द्रव्यमान) के बराबर होता हैं वह अपना जीवन मुख्य अनुक्रम में परवर्तित होते हुए व्यतीत करता हैं
    तो सर सूर्य का द्रव्यमान तो 3 सौर द्रव्यमान के बराबर है नहीं तो सर वो कैसे मुख्य अनुक्रम का तारा हो गया

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