महाकाय गुरु



गुरु यह सूर्य का पांचवा और सबसे बडा ग्रह है। गुरू अकेले का द्रव्यमान अन्य सभी ग्रहो के कुल द्रव्यमान का दूगना है ! यह पृथ्वी से 318 गुना ज्यादा द्रव्यमान रखता है।
गुरु आकाश मे चौथा सबसे चमकिला पिंड है(सूर्य,चन्द्रमा और शुक्र ग्रह के बाद)। इसके बहुत सारे चन्द्रमा(50से ज्यादा) है जिसमे आयो, युरोपा, गेनीमेड और केलिस्टो सबसे बडे है।

चित्र मे निचे बायें दिख रहा  छोटा काला धब्बा आयो की गुरु पर पडने वाली छाया है। दूसरे शब्दो मे गुरू पर उस छाया वाले स्थान पर सुर्य ग्रहण हो रहा है।

इन चन्द्रमाओ को गैलेलियो ने पहली बार अपनी दूरबीन से देखा था और पाया था कि ये गुरू की परिक्रमा करते है। इस खोज से उसने सिद्ध किया की ना तो पृथ्वी ब्रम्हांड का केन्द्र है ,ना सारे आकाशिय पिंड पृथ्वी की परिक्रमा करते है। उसने कोपरनिकस का समर्थन करना शुरू किया जिस कारण उसे अनेको परेशानीयो (वेटीकन से) का सामना करना पडा !
गुरू और उसके चन्द्रमाओ को किसी साधारण दूरबीन से या अछे बायनाकुलर से देखा जा सकता है।

गुरू यह गैस का एक महाकाय गोला है जो 90% हायड्रोजन और 10% हिलियम से बना है(काफी अल्प मात्रा मे मिथेन, अमोनिया, पानी और सीलीका भी है! गुरू आज भी उस निहारीका के जैसा है जिससे सौरमण्ड्ल का निर्माण हुआ। यह महाकाय ग्रह किन्ही अज्ञात कारणो से एक तारा बनते बनते रह गया , वर्ना हमारे सौर मण्डल मे दो सुर्य होते ! एक और तथ्य यह है कि गुरू सूर्य से जितनी उर्जा ग्रहण करता है उससे ज्यादा उत्सर्जीत करता है।
शनी भी गुरू के जैसा है। युरेनस और नेपच्युन भी गुरू के जैसे है लेकिन हायड्रोजन और हिलीयम की मात्रा उनमे कम है।
अन्य गैसीय ग्रहो (शनी, युरेनस, नेपच्युन) के जैसे गुरू के भी वलय है लेकिन शनी की तुलना मे धुंधले है।

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3 विचार “महाकाय गुरु&rdquo पर;

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